आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Tuesday, April 29, 2008

सामने आई शाहरूख की ब्लू फिल्म

सामने आई शाहरूख की ब्लू फिल्म

डेटलाइन इंडिया

मुंबई, 29 अप्रैल- शाहरूख खान आज सफलता की बुलंदियों पर हैं लेकिन उनकी एक तथाकथित ब्लू फिल्म इन दिनों मुंबई में मौजूद और इसे इंटरनेट बेबसाइट पर भी डाल दिया गया है। शाहरूख के लगभग 12 मिनट की इस फिल्म के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को तलाश रहे हैं और हो सके तो उससे सौदा करने के लिए भी तैयार हैं।

यह गरमागरम सीन शाहरूख खान की शुरूआत की एक फिल्म माया मेमसाहब का हिस्सा हैं। यह फिल्म केतन मेहता ने बनाई थी और उनकी पत्नी दीपा साही इस फिल्म की हीरोइन थीं। केतन मेहता ने 15 साल पहले असाधारण उदारता का परिचय देते हुए शाहरूख और दीपा के बीच लगभग आधे घंटे तक एक बंद स्टूडियो में वास्तविक प्रेम लीला करवायी थी और उसे फिल्म में रखा था।

सेंसर बोर्ड को ये दृश्य इतने आपत्ति जनक लगे कि इन्हें फिल्म से निकाल दिया गया। फिल्म के फुटेज में ये दृश्य फिर भी मौजूद थे और अब किसी ने इनकी डीवीडी बना कर बाजार में उतार दी और एक बेबसाइट पर भी डाल दी है। एक आदर्श गृहस्थ की छवि प्रस्तुत करने वाले शाहरूख खान अब फिल्में के अलावा खेल की दुनिया के बादशाह भी बन गए हैं और उन्हें छवि के स्तर पर यह डीवीडी सार्वजनिक होना काफी भारी पड़ सकता है। पिछले दिनाें एक शोरूम के उद्धाटन के सिलसिले में दिल्ली आए शाहरूख ने कहा कि वे इस डीवीडी के सार्वजनिक होने से बहुत आहत हैं और किसी भी कीमत पर इसका मूल प्रिंट खरीद लेना चाहते हैं। उन्हें यह पता नहीं कि वे फिल्म के अधिकार कैसे खरीदेंगे लेकिन पहले तो उन्हें बेचने वाले की तलाश है।

फिल्म के निर्माता और दीपा साही के पति केतन मेहता का कहना है कि उन्होंने फिल्म के प्रिंट इन्हें डेवलेप करने वाली लैव के पास छोड़ दिए थे और यह जानते कि वे इन प्रिंट के सार्वजनिक होने के लिए किसको जिम्मेदार माने। केतन मेहता ने कहा कि दीपा साही आज उनकी पत्नी नहीं हैं फिर भी वे उनकी बहुत इज्जत करते हैं और सपने में भी शाहरूख और उनके प्रेम दृश्यों को सार्वजनिक करने का विचार नहीं कर सकते।

सोनिया पर ज्योति बसु का हमला


डेटलाइन इंडिया

नई दिल्ली, 29 अप्रैल-माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उनके बुजुर्ग नेता ज्योति बसु सीधे सोनिया गांधी पर हमला बोल देंगे। एक जमाने में सोनिया गांधी को सरेआम अपनी बेटी करार देने वाले ज्योति बसु ने इतना हास्यास्पद बयान दिया है कि दिल्ली में कामरेडों को मुंह छिपाना मुश्किल पड़ रहा है।

कोलकाता में पोलित ब्यूरो की बैठक के बाद ज्योति बसु जिस तरह सोनिया गांधी पर बरसे वह अप्रत्याशित था। 93 साल के होने जा रहे ज्योति बसु ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राजनैतिक तौर पर नाबालिग करार दे दिया और कहा कि नंदीग्राम तो छोड़िए, सोनियां गांधी को पश्चिम बंगाल के भूगोल की भी पूरी जानकारी नहीं है।

नंदीग्राम एक ऐसा मुददा है जिस पर बंगाल की वामपंथी सरकार बार बार घेरे में आ रही है। उसके पास बचाव का कोई उपाय नही है लेकिन किसी को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि महंगाई पर बोलते बोलते ज्योति बसु इतना बहक जाएंगे कि सीधे श्रीमती गांधी को गालियां देने लगेंगे। जब मौका आया तो ज्योति बसु ने यह कहने से परहेज नहीं किया कि यूपीए गठबंधन के धर्म का पालन नहीं करेगी। उन्होने कहा कि सोनिया गांधी नंदीग्राम के लोगों के साथ झूठी सहानुभूति दिखा रही हैं और पश्चिम बंगाल सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं।

ज्योति बसु के इस बयान के बाद कांग्रस और वामपंथियों के बीच पहले से तनाव में चले आ रहे संबंध और ज्यादा बिगड़ गए थे और कोई नहीं जानता कि यह किस हद तक गिरेंगे। जहां तक ज्योति बसु की बात है तो वे तो अपनी तरफ से रिटायर्ड हो ही चुके हैं और पार्टी उन्हें सिर्फ इज्जत देने के लिए पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाए हुए है।

सुब्बा ने सीबीआई से जवाब मांगा

डेटलाइन इंडिया

नई दिल्ली, 29 अप्रैल-कांग्रेस के बदनाम लोकसभा सदस्य मणिकुमार सुब्बा के खिलाफ सीबीआई ने भले ही अपनी रपट दे दी हो और उन्हें भारत का नागरिक मानने से भी इनकार कर दिया हो लेकिन सुब्बा ने आज साफ कर दिया कि वे सीबीआई को देश की प्रीमियम जांच एजेंसी की बजाय सरकारी नौकर मानते हैं।

कांग्रेस द्वारा अनपढ़ घोषित सुब्बा की ओर से आज सीबीआई मुख्यालय में अंग्रेजी में लिखी हुई एक चिटठी पहुंची जिसमें साफ शब्दों में निर्देश दिया गया था कि सीबीआई अपने वे आधार बताए जिनको उसने सर्वोच्च न्यायालय के सामने दी गई रपट में इस्तेमाल किया। आपको याद होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुब्बा को सीबीआई जांच रपट का जवाब देने के लिए एक महीने का समय दिया है और उसमें से तीन दिन निकल चुके हैं।

सुब्बा दिल्ली में एक तालकटोरा रोड पर रहते हैं और उनका एक बड़ा फार्महाउस ही दिल्ली में है। सीबीआई अधिकारियों को आशंका है कि वे सच खुल जाने के बाद देश छोड़ कर भाग सकते हैं और इसीलिए सीबीआई अधिकारियों ने उन पर निगरानी रखने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति मांगने का फैसला किया है। इन अधिकारियों के मुताबिक सुब्बा आम तौर पर अपने सरकारी निवास पर नहीं रहते हैं और कहां कहां राते बिताते है यह उनके स्टाफ को भी नहीं पता होता है।

सुब्बा ने अब कांग्रेस को ब्लेकमेल करना शुरू कर दिया है। एक जमाने में उनके बंगले में मेहमान रहे एक भूतपूर्व मंत्री और वर्तमान सांसद के अनुसार सुब्बा ने उन्हें फोन करके कहा है कि अगर ऐसे मौके पर उनकी मदद नहीं की गई तो वे जिन जिन नेताओं को उन्होंने आर्थिक मदद दी है वे उन सबका खुलासा कर देगे। इसके अलावा उत्तर पूर्व की जिन पांच सरकारों ने सुब्बा पर सैकड़ों करोड़ रुपए हजम कर जाने के मामले दर्ज किए हैं, उन्हें भी सुब्बा कोई जवाब देने से इनकार कर रहे हैं। असम सरकार का नोटिस ले कर आए एक अधिकारी को तो कल ही बुरी धमका कर भगा दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय सीबीआई के जांच पत्र का जवाब मिलने के बाद फैसला करेगा कि सुब्बा के अतीत के बारे में कोई जानकारी नेपाल सरकार से मांगी जाए या नहीं।

रामदौस अब माल्या से भिड़े


डेटलाइन इंडिया

नई दिल्ली, 29 अप्रैल-केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदौस अब किंगफिशर के मालिक और राज्य सभा के सदस्य विजय माल्या से भिड़ गए हैं। अपने आपको शराब और सिगरेट का दुश्मन करार देने वाले रामदौस ने आरोप लगाया है कि विजय माल्या आईपीएल मैचों के जरिए शराब का प्रचार कर रहे हैं।

रामदौस को असली आपत्ति विजय माल्या की टीम के नाम पर है। माल्या की कंपनी रॉयल चैलेंज नाम की व्हिसकी बनाती है। रामदौस का कहना है कि माल्या ने अपनी टीम का नाम रॉयल चैलेंजर रख कर अपनी शराब के ब्रांड का प्रचार करने का फैसला किया है। रामदौस ने आज दिल्ली में कहा कि विजय माल्या चाहे जितने रईस सांसद हों, उन्हें समाज के हितों के साथ नहीं खेलने दिया जाएगा।

रामदौस की असली दिक्कत यह है कि वे खुद माल्या का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। उन्हें रॉयल चैलेंजर के मैचों के प्रसारण रोकने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी से शिकायत करनी पड़ेगी और श्री मुंशी पहले भी कई बार रामदौस की शिकायतों को गैर कानूनी बताते हुए अनदेखा और अनसुना कर चुके हैं। रामदौस ने कुछ महीने पहले सूचना और प्रसारण मंत्रालय से मांग की थी कि एल्कोहल और सिगरेट के विज्ञापन किसी भी रूप में प्रसारित होने से रोकने के लिए कानून बनना चाहिए।

श्री मुंशी ने जवाब दिया था कि शराब और उसके विज्ञापनों पर रोक लगाना राज्यों का काम है। रामदौस का यह भी प्रस्ताव है कि महात्मा गांधी के जन्म दिन दो अक्टूबर को किसी भी तौर पर शराब विरोधी दिवस घोषित किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार महात्मा गांधी के नाम के साथ इस तरह का कोई नया प्रयोग करने को तैयार नहीं है। वैसे भी महात्मा गांधी के जन्म प्रदेश गुजरात में पूरी नशाबंदी है।

दलाई लामा को चीनी लॉली पॉप


डेटलाइन इंडिया

नई दिल्ली, 29 अप्रैल-चीन ने अपना ओलंपिक बचाने के लिए अब दलाई लामा को ही हथियार बनाने का फैसला किया है। चीन सरकार ने दलाई लामा को बीजिंग ओलंपिक के उदघाटन समारोह में विशेष अतिथि के तौर पर बुलाने की तैयारी कर ली है और इस बारे में आधिकारिक पत्र कभी भी आ सकता है।

खुद दलाई लामा अपने समर्थकों और तिब्बत वासियों के प्रचंड विरोध को बावजूद कई बार कह चुके हैं कि चीन में ओलंपिक हों इससे उन्हें कोई एतराज नहीं हैं। उन्होंने इस आशय के कई बयान दिए है। दलाई लामा के समर्थक इन बयानों से बहुत नाराज हैं और उनमें से कई दलाई लामा की पूज्यता को भूलते हुए सरेआम उनके बयानों की आलोचना कर चुके हैं।

चीन सरकार की ओलंपिक कमेटी ने अपनी एक विशेष बैठक में यह प्रस्ताव पास किया है कि जिन विभूतियों को ओलंपिक के उदघाटन सत्र में बुलाया जा सकता है उनमें दलाई लामा भी एक हो सकते हैं। यह प्रस्ताव चीन के विदेश मंत्रालय को भेजा जाएगा और वहीं इस पर फैसला होगा।

भारत स्थित चीनी दूतावास का कहना है कि अभी तक उन्हें दलाई लामा को ओलंपिक के लिए आमंत्रित करने की कोई सूचना नहीं दी गई है लेकिन यह जरूर है कि चीन ने अपने भारत स्थित अधिकारियों को दलाई लामा के बारे में किसी भी तरह का काई भी बयान देने से रोक दिया है। अधिकारियों इस बात की पुष्टि की है। दलाई लामा के सचिवालय ने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है। एक अधिकारी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि दलाई लामा को बुलाने के पहले चीन सरकार को पहले यह तय करना होगा कि उन्हें बुलाया किस हैसियत से जा रहा है, अगर उन्हें तिब्बत राष्ट्र प्रमुख के तौर पर बुलाया जाएगा तो ही वे जाएंगे।

Friday, April 18, 2008

राहुल गांधी को मोहरा बनाने की कोशिश





आलोक तोमर
अर्जुन सिंह पहले आदमी नही हैं जिन्होने राहुल गांधी को देश का भावी प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान किया हो। इसके बहुत पहले अमेठी के जगदीश पीयूष और लखनऊ के जगदंबिका पाल भी यही मांग कर चुके थ। वैसे भी कांग्रेस में राहुल गांधी को युवराज कहने का चलन हो गया है और अर्जुन सिंह ने अगर युवराज को महाराज बनाने की मांग कर डाली तो कौन सा गुनाह कर दिया? वे बोले तो प्रणव मुखर्जी भी चुप क्यों रहते, उन्हें तो मनमोहन सिंह से वैसे भी पुराना हिसाब चुकाना था जब सोनिया गांधी ने प्रणव बाबू की पुरानी वफादारियों को भूलते हुए राजनीति का रा भी नही जानने वाले मनमोहन सिंह को देश का नेता घोषित कर दिया था।

यों तो अर्जुन सिंह और प्रणब मुखर्जी के रिश्ते राजनैतिक और निजी तौर पर बहुत मधुर नही हैं लेकिन जहां तक मनमोहन सिंह का सवाल है तो दोनों ही अपने-अपने कारणों से प्रधानमंत्री महोदय को खास पसंद नही करते। आप देख चुके हैं कि राहुल गांधी के राजतिलक वाले बयान को लेकर कितना हंगामा हुआ और कांग्रेस में लिफाफे पर गोंद की भूमिका निभाने वाली जयंती नटराजन को भी मौका मिल गया कि वे बडे नेताओं को उपदेश दे सकें। वह तो अर्जुन सिंह सीधे दस जनपथ पहुंच गए और उन्होने श्रीमती गांधी से साफ कह दिया कि वे उन नेताओं में से नही हैं जो अपने शब्द वापस लेते हैं। वैसे भी जब पत्रकारों ने उनसे राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बारे में पुछा था तो उन्होने सिर्फ इतना कहा था कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री क्यों नही बन सकते। इसके बाद कांग्रेस के महा प्रवक्ता वीरप्पा मोइली ने जल्दबाजी में पत्रकारों से कहा कि कांग्रेस की ओर से अपने किसी भी नेता को निशाना नही बनाया गया है और यह एक तरह का खुद को दिया गया अभय दान था।

कांग्रेस में वे लोग जो मनमोहन सिंह का वफादार होने का अब भी दावा कर रहें हैं और यह दावा उनके प्रधानमंत्री होने की वजह से है, का कहना है कि उनसे बडा विध्दान प्रधानमंत्री आज तक देश को मिला ही नही। यह लोग जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री का तो अपमान कर ही रहें हैं लेकिन पी वी नरसिंह राव को भुला रहे हैं जिन्हें ग्यारह भाषाएं आती थी और जो चंद्रास्वामी के आध्यात्मिक प्रभामंडल में बहुत भीतर तक शरीक थे। मनमोहन सिंह महान अर्थशास्त्री हैं इससे किसको ऐतराज हो सकता है लेकिन अगर अर्थशास्त्री होना ही प्रधानमंत्री होने की कसौटी है तो अपने अमर्त्य सेन ने किसी का क्या बिगाडा है। उन्हें तो अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है। रही मनमोहन सिंह ध्दारा लाई गई आर्थिक उदारवाद की बात तो इसका डंका पीटना कृपया बंद कर देना चाहिए। भारत अपने आप में इतनी बडी लेकिन बिखरी हुई आर्थिक महाशक्ति है कि दुनिया के बाजार में हमारे सिर्फ उतरने की देर थी। अमेरिका में तो यह बाजारवाद वहां के अर्थतंत्र का मूल सिध्दांत है और मनमोहन सिंह ने पूरी जिंदगी अमेरिका में विश्व बैंक से लेकर अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष में नौकरियां की है और उन्हें पंचायती नही, कॉरपोरेट अर्थव्यवस्था ही समझ में आती है। इसी लिए अपने देश में ऐसा हो रहा है कि अंबानी कुटुंब दुनिया के सबसे बडे रहीशों में शामिल हो गया है और खुद मनमोहन सिंह जिस गांव के रहने वाले है उसकी ग्राम पंचायत के पास अपना भवन बनाने तक का पैसा नही है।

बात राहुल गांधी की हो रही थी। खुद उनकी माताश्री कह चुकी है कि राहुल की मंत्री बनने में कोई दिलचस्पी नही है और वे सिर्फ पार्टी का काम करना चाहते हैं। जाहिर है कि सोनिया गांधी अपने लाडले को प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार कर रही हैं और इसके लिए जरूरी प्रशासनिक अनुभव दिलवाने की तैयारी करना चाहती थी। राहुल गांधी ने मेहरबानी की जो अपनी मां से कह दिया कि वे मंत्री नही बनना चाहते। वैसे ही वे सुपर प्रधानमंत्री है इसलिए मंत्री और वह भी राज्य मंत्री बन कर वे क्या कर लेगें। राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन जाएं तो उसमें अपने को क्या ऐतराज होने वाला है? जब देवगौड़ा बन गए थे और इंद्रकुमार गुजराल बने थे तो किसी ने उनका क्या बिगाड लिया था? उनकी किस्मत उन्हें उठा कर लाई थी और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जब तक किस्मत में लिखा था तब तक के लिए बिठा कर चली गई थी। इन दोनों को देश ने कभी नही चुना था। इससे ज्यादा तो प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी गुलजारी लाल नंदा की थी जो तीन बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रह चुके थे और इसके बावजूद दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी की जिस बरसाती में वे किराए पर रहते थे वहां से मकान मालिक ने उनका सामान उठा कर फेंक दिया था और इलाके के थाने में इस घटना की रपट भी नही लिखी थी।

विरासत और वंश का जहां तक सवाल है तो हम राहुल गांधी को ही निशाने पर लेकर क्यों चलते हैं? खुद अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह मध्य प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं और इस समय कांग्रेस की ताकतवर चुनाव अभियान समिति के मुखिया है वे अगर श्री सिंह के बेटे नही होते तो क्या उन्हें यह सम्मान और पद नसीब होता? प्रणब मुखर्जी के बारे में तो ये कहा जा सकता है कि उन्होने अपनी किसी संतान को राजनीति में नही उतारा। उनके बेटों और बडी बेटी का तो नाम भी किसी को नही पता। छोटी बेटी शास्त्रीय नृत्य में अपनी मेहनत से नाम कर चुकी है और पूरी दुनिया में घूमती रही है। हमारे देश का समाज अब भी मानसिकता के लिहाज से नेता नही, नायक या राजा खोजता है। हाल के वर्षो में दलित चेतना का जिस तरह उत्थान हुआ है उसे देखते हुए अब यह हालत बदलती जा रही है, लेकिन आप अगर गौर करें तो भारत में दलित चेतना का साक्षात प्रतीक मानी जाने वाली मायावती का रवैया क्या खुद किसी महारानी से कम है?

जैसे सबको यह आपत्तिा है कि राहुल गांधी को सिर्फ उनके राहुल गांधी होने के कारण प्रधानमंत्री नही बना देना चाहिए वैसे ही उन्हें अपने आप से सवाल करना चाहिए कि उनका नाम और वंश का नाम उनकी अयोग्यता क्यो साबित करना चाहिए? उनके पिता राजीव को इस देश ने असाधारण बहुमत देकर प्रधानमंत्री बनाया था लेकिन एक ही कार्यकाल के बाद कांग्रेस की हालत खराब हो गई और सच पुछिए तो अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी की जो दशा हुई थी उसमें नरसिंह राव अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को आर के आनंद और चंद्रास्वामी के तत्वाधान में मोटी रकम नही खिलाते और दुश्मन पार्टी के नेताओं को भी मंत्री का दर्जा नए-नए पद ग़ढ कर नही देते तो कांग्रेस की वह सरकार भी पुरे समय चलने वाली नही थी। इसी सरकार में प्रणब मुखर्जी का पूरा पुर्नवास हुआ था और अर्जुन सिंह को पार्टी से निकल कर अपनी एक कागजी पार्टी बनानी पडी थी और जल्दी ही वे वापस कांग्रेस में आ गए उनकी वापसी की भूमिका भी प्रणब मुखर्जी ने तैयार की थी। इन दोनों राजनैतिक महारथियों की इस ऐतिहासिक बैठक का एक गवाह मैं भी हुं। यह बैठक प्रणब मुखर्जी की सखी और तकनीकी तौर पर उस योजना आयोग में उनकी अफसर अमिता पॉल के घर हुई थी। यह अमिता पॉल दिल्ली के भूतपूर्व पुलिस कमिश्नर कृष्णकांत पॉल की पत्नी हैं और ये वही पॉल साहब हैं जिन्होनें बाद में अपने बेटे की पोल खुलने से दुखी हो कर किसी और बहाने से मुझे तिहाड जेल पहुंचा दिया था।

राहुल गांधी इस समय अपने पुज्य पिता की शैली में दुनिया को जानने और समझने का पूरा अभ्यास कर रहे हैं। वे गरीबों की झोपडी में सोते हैं और उन्हीं के साथ खाना खाते हैं। बहन मायावती का भरोसा करें तो इसके बाद वे दिल्ली आ कर अपने बाथरुम में किसी खास साबुन से नहाते भी हैं ताकि उनकी शुध्दि हो जाए। मायावती अगर इस साबुन का नाम भी घोषित कर देतीं तो कम्पनी का विज्ञापन का खर्चा बच जाता और हो सकता है यह पैसा पार्टी फंड में काम आ जाता। अब राहुल गांधी को इस साबुन का मॉडल बनने के बारे में विचार करना चाहिए। यह कहानियां तो आती जाती रहेगीं लेकिन असली सवाल राहुल गांधी की राजनैतिक पात्रता को ले कर किया जा रहा है और यह सवाल अपने आप में निपट आपत्तिाजनक है।

देश का प्रधानमंत्री मतदाता चुनते हैं और यह सवाल मतदाता की सामुदायिक बुध्दि पर संदेह करने जैसा है। हालांकि यह पुरानी बात हो गई मगर अब भी पुछा जा सकता है कि राजीव गांधी अगर अपनी मां ही हत्या के बाद चुनाव में नही उतरते तो भी क्या वैसा प्रचंड और ऐतिहासिक बहुमत ला पाते जैसा उनके नाम पर दर्ज है। युवा पीढी में अकेले राहुल नही है ज्योतिरादित्य सिंधिया भी है, मिलिंद देवडा भी हैं और सचिन पायलट भी हैं। पिछले मंत्रीमंडल विस्तार में बेचारे सचिन पायलट का नाम सिर्फ इसलिए कट गया क्योंकि वे कश्मीरी नेता फारुख अबदुला के दामाद भी हैं और फारुख अबदुला और सोनिया गांधी के बीच कोई खास घनिष्ठ रिश्ता नही चल रहा है, होने को ज्योतिरादित्य सिंधिया की बहन भी कश्मीर के महाराजा कर्ण सिंह के परिवार की बहु है और सिंधिया के जीजाजी कांग्रेस छोड़ कर चले गए हैं। लेकिन गनीमत है कि राजनीति का गुणा भाग करने वालों को यह तथ्य याद नही आया। या फिर मध्य प्रदेश की राजनीति में संतुलन बिठाने के लिए ग्वालियर के राज कुमार को मंत्री मंडल में जगह दी गई। ज्योतिरादित्य नाकाबिल नही है लेकिन उन्हें सिर्फ समीकरणों के कारण मंत्री बनाया गया है। अगर योग्यता के आधार पर बनाना होता तो कब का बना दिया गया होता। राहुल गांधी की शिखर की दावेदारी पर ऐतराज भी नही करना चाहिए और ना सिर्फ आनुवांशिक आरक्षण की तर्ज पर उन्हें सिर्फ इसलिए प्रधानमंत्री बनाने की बात की जानी चाहिए कि वे उस वंश के वारिस हैं जिसने देश को अब तक चार प्रधानमंत्री दिए हैं। (शब्दार्थ)

काठमांडू और रायपुर की दूरी

सुप्रिया रॉय

देश की सबसे बडी अदालत में छत्तीसग़ढ में माओवादियों से जूझने के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए सल्वा जोडुम अभियान की निंदा की है और कहा है कि आतंकवादियों से निपटने के लिए किसी राज्य सरकार को यह हक नहीं दिया जा सकता कि वह निजी सेनाएं ख़डी कर दें। अदालती फैसलों पर बहस करने में खतरा बहुत होता है लेकिन सब जानते हैं कि सल्वा जोडुम अभियान छत्तीसग़ढ के नागरिकों का एक प्रतिरोध मंच है और चूंकि यह भला और एक मात्र विकल्प है, इसलिए रमन सिंह सरकार ने भी अपने साधनों और संसाधनों का सहारा इसे दिया है।

जिन लोगों ने छत्तीसग़ढ देखा है और खासतौर पर उसके सुदूर, सुरम्य और दुर्गम जंगलों तक गए हैं वे जानते हैं कि इन वनों में रहने वाले वनवासी और आदिवासी कितने आतंकित और असहाय हो चुके हैं। अचानक आधुनिकतम हथियारों से लैस माओवादियों का एक जत्था वहां आता है और पहले धमकी की भाषा में बात करता है और फिर वनों की हरियाली में खून का लाल रंग बिखेर कर चला जाता है। जनता के लिए जनता द्वारा जनसंघर्ष के बहाने जनता के वघ यह सिलसिला आपत्तिजनक भी है और शर्मनाक भी।

छत्तीसग़ढ तो क्या किसी भी राज्य के पास कितनी पुलिस और हथियार बंद फौज नहीं होती कि वह हर घाटी और हर जंगल में निगरानी रख सके और रखवाली कर सके। इसके लिए जो एक विकल्प उपलब्ध था वह यही था कि आम लोगों का सशक्तीकरण किया जाए, उनके मन से भय निकाला जाए और उन्हें हथियारों का जवाब देने के लिए हथियारों का ही कवच दिया जाए। बस्तर इलाके में बहुत सारे गांव इन माओवादी गुंडो की वजह से वीरान हो चुके हैं और उनके लिए सरकारी शिविर बनाए तो गए हैं लेकिन शिविर की जिंदगी एक तरह से जेल की जिंदगी होती है और वक्त पर मिलने वाला खाना और सुरक्षा का आश्वासन किसी को उनके घर जैसी नैसर्गिकता और सहजता नहीं दे सकती। सरकारें भी कब तक इन शिविरों पर सिर्फ इस लिए खर्चा करतीं रहेंगी क्योंकि उनके पास लडाई के विकल्प नहीं हैं।

यह एक शुभ संयोग है कि खुद केंद्रीय गृह मंत्रालय में सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से असहमति जाहिर की है और कहा है कि सल्वा जोडुम के नाम से जो संगठन बनाया गया है उसे रणवीर सेना या भुजवाहिनी सेना की तरह जमीदारों की जातीय सेना से बराबरी पर नहीं देखा जाना चाहिए। छत्तीसग़ढ चूंकि असल में बहुत सारे प्रदेशों का रास्ता है और यह एक नया प्रदेश है इसलिए यहां संसाधन कम होने स्वाभाविक हैं। छत्तीसग़ढ के चारों ओर आंध्र प्रदेश झारखंड, बिहार और उडीसा हैं जहां माओवाद अपनी ज़डें जमा चुका है। खासतौर पर आंध्र प्रदेश में जब से माओवादियो पर वहां की पुलिस ने हंटर चलाया है तब से वे छत्तीसग़ढ के वनों में जमा होने लगे हैं।

माओवाद कोई भारतीय विचार नहीं है। ऐसा नहीं है कि भारत के समाज में सब कुछ शुभ ही शुभ हो रहा हो। यहां भी शोषण है, जातीयों के नाम पर होने वाले भेदभाव हैं, सरकारी बाबुओं से लेकर सरकार के शिखर तक बिखरा भ्रष्टाचार है, एक सामाजिक असहायता है लेकिन इस सबसे निजात पाने के लिए हम विचारों और हिंसा को क्या आयात होने देंगे। जिन माओवादियों को भारत में आदर्श बनाने के लिए एक महापुरूष नहीं मिला वे कैसे हमारे समाज का चेहरा बदलेंगे और उनके दिए गए आदर्शो से देश में समता मूलक व्यवस्था कायम हो जाएगी। भ्

भारत सरकार ने अपनी ओर से माओवाद को भारतीय संर्दभों में शतुत्रता के दायरे से निकालने की पूरी कोशिश की है। कम लोग जानते है कि नेपाल में माओवादियों को राजनीति की मुख्य धारा में शामिल करने और आखिरकार सरकार बनाने की हैसियत तक पहुंचने में भारत सरकार के दूतों ने काफी बडी भूमिका निभाई है। भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के कई दूत नेपाल में पडे रहे और आखिरकार 7 मार्च 2008 को एक राजनैतिक सहमति बनी जिसके तहत चुनाव हुए और बूढ़े और बीमार गिरिजा प्रसाद कोइराला के नेतृत्व को अस्वीकार करके वहां के मतदाता ने माओवादियों को उनके पुराने हिंसक पापों के बावजूद खुला समर्थन दिया। जाहिर है कि पिछले लगभग ढाई सौ साल से राजा को भगवान मानने वाली प्रजा को भी बदलाव का एक बहाना और अवसर चाहिए था। यह अवसर उनके लिए कितना श्रेयस्कर होगा यह अभी से कौन कह सकता है। इतना जरूर है कि भारत सरकार छत्तीसग़ढ और दूसरे सात आठ राज्यों में बिखरे माओवादियों के जहरीले जाल को तोड़ने में मदद पाने की उम्मीद कर सकते हैं। आखिर वामपंथी दलों भी कह ही दिया है कि भारत के माओवादियों को नेपाल से प्रेरणा लेनी चाहिए।

बेहतर तो यह होता कि रमन सिंह नेपाल के शासक बनने जा रहे कामरेड प्रचंड को छत्तीसग़ढ आने का आमंत्रण भेजते और उन्ही से यह कहलवाते की छत्तीसग़ढ में मौजूद माओवादी गोलियों की बजाए वोटों का रास्ता चुनें और चूंकि चुनाव इस राज्य में होने ही वाले हैं। इसलिए यह विकल्प शायद उनकी समझ में आ भी जाता। यह जब होगा तब होगा और अगर कामरेड प्रचंड चाहेंगे तभी होगा। तब तक सल्वा जोडुम एक मात्र ऐसा विकल्प है जो माओवादियों की संगठित हिंसा के खिलाफ विकल्प देता है और असहाय नागरिकों को सहायता का आश्वासन भी देता है।

अपने देश में कभी हिंसा से सामाजिक या राजनैतिक परिवर्तन संभव नहीं हुए और यह बात खुद महान ांतिकारी सरदार भगत सिंह भी अपनी डायरी में मंजूर कर चुके हैं। माओवाद के नाम से हिंसा का जो नंगा नाच चल रहा है उससे सुलझने के लिए सल्वा जोडुम के अलावा अगर दूसरा कोई विकल्प दिखता हो तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए मगर सर्वोदय के बाद पहली बार अगर समाज मेंं हिंसा से मुक्ति के लिए सल्वा जोडुम के बहाने ही कोई रास्ता निकला है तो उसे सिर्फ इसलिए खारिज नहीं कर देना चाहिए क्योंकि किसी जज साहब को यह तरीका पसंद नहीं है। सिंध्दातों की लडाई सिध्दांतों से लडी जाती है और और बंदूक के जवाब में बंदूक ही चलाई जाती है। नागरिक मरें तो वह कानून है और मारें तो गुनाह, यह किसी न्यायशास्त्रों में होता हो तो हो लेकिन अपनी समझ में नहीं आने वाला। (शब्दार्थ)

Sunday, April 13, 2008

बिरंची दास की मौत का खतरनाक रहस्य


डेटलाइन इंडिया
भुवनेश्वर, 13 अप्रैल - उड़ीसा के एथलेटिक चैम्पियन रहे बिरंची दास को भरी दोपहर राज्य की राजधानी में उनके घर के पास गोली से क्यों उड़ा दिया गया? बिरंची दास की ज्यादा ख्याति चार वर्ष- अब छह के हो चुके नन्हें बुधिया के गुरू के तौर पर है जिसका नाम सबसे कम उम्र में मैराथन दौड़ने के लिए गिनीज बुक में जा चुका है।
बिरंची दास का नाम किसी रिकार्ड पुस्तक में नहीं पहुंचा लेकिन एक एनजीओ द्वारा एक नन्हें बच्चे पर जुल्म ढाने के आरोप में वे जेल जरूर भेज दिए गए थे और वे इन दिनों जमानत पर थे। बुधिया ने हालांकि अदालत में बयान दिया था कि वह बिरंची दास को ही अपना पिता मानता है और उसके साथ कभी कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गर्इ्र लेकिन इस बयान को अदालत ने मान्यता नहीं दी। अभियोजन पक्ष का कहना था कि इतने छोटे बच्चे के बयान का कोई मतलब नहीं होता है यह बात अलग है कि दो साल के बच्चे के बयान के आधार पर एक मामले में उम्र कैद भी दी जा चुकी है।
बिरंची दास का नाम बहुत हो चुका था और विदेशों से बुधिया की मदद के लिए उनके पास पैसा भी बहुत आ रहा था यही उनकी मौत का कारण बन गया। कमाल यह है कि बिरंची दास को जेल भेजने वाली राज्य सरकार जिसने मांगने पर भी उन्हें सुरक्षा नहीं दी थी और कई समारोहों में उन्हें सम्मानित कर चुकी थी और ये सम्मान खुद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर के हाथों दिए गए थे।
बिरंची दास की हत्या के बाद बुधिया कैरियर तबाह हो गया है। हाल ही में बिरंची दास को बुधिया के साथ अमेरिका आकर मैराथन में हिस्सा लेने का न्यौता मिला था और वीजा के कागज आ चुके थे। सिर्फ तीन महीने पहले दिल्ली में आए बिरंची दास ने आशंका जताई थी कि उन्हें जान से मार दिया जाएगा और पुलिस इसका जिम्मा प्रेम संबंधों के कारण हुए विवादों पर डालेगी। भुवनेश्वर पुलिस का पहला बयान भी यही है।
अरूण जेटली ने शरद से पूछा, तुम कौन?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 13 अप्रैल -भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड में राजनैतिक स्वार्थो को साधने के लिए आंख की शर्म का पर्दा भी आज गिर गया। भाजपा में कर्नाटक के प्रभारी अरूण जेटली आज सीधे सवाल कर दिया कि जबलपुर में पैदा हुए और बिहार से चुनाव जितने वाले शरद यादव कर्नाटक की राजनीति के मामलों में सवाल करने वाले कौन होते हैं।
शरद यादव ने कल भाजपा पर आरोप लगाया था कि बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा एनडीए के अन्य घटकों और खासतौर पर जनता दल यूनाइटेड की उपेक्षा कर रही है और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपनी दादागीरी चला रही है। श्री यादव ने कहा था कि इस स्थिति में उनकी पार्टी एनडीए में शामिल रहने पर विचार कर सकती है। श्री यादव को जब यह याद दिलाया गया था कि एनडीए के संयोजक उन्हीं की पार्टी के नेता जार्ज फर्नांडीज हैं तो उन्होंने पलट कर कहा था कि जार्ज अब एनडीए के नेता है, हमारे नहीं।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी संकट भरी घटना साबित होता जा रहा है। कर्नाटक के तुमकूर लोक सभा क्षेत्र से सांसद एस मल्लिकार्जुनैया ने अपने समर्थकों को टिकट नहीं मिलने के विरोध में संसद से इस्तीफा दे दिया है और अरूण जेटली ने जब उन्हें समझाने के लिए फोन किए तो वे लाइन पर भी नहीं आए। श्री जेटली के अनुसार यह पार्टी का अंदरूनी मामला है और जहां तक जनता दल यूनाइटेड का सवाल है तो वे कर्नाटक के पार्टी नेताओ से बातचीत करके रास्ता निकालेंगे। दूसरे शब्दों में जेटली ने कर्नाटक के मामले में शरद यादव को किसी भी किस्म का भाव देने से इनकार कर दिया है।
कर्नाटक भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दक्षिण भारत में कम समय के लिए ही सही भाजपा की पहली सरकार यहीं बनी। जनता दल सेकुलर ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के तानाशाह और अवसरवादी तौर तरीकों से उनकी पार्टी में भी बगावत हो चुकी है और इसका सीधा लाभ भाजपा को ही मिलने वाला है। देवगौड़ा अपने राज्य की विधानसभा चुनने के मामले में फिलहाल असाधरण रूप से खामोश हैं और इसी से जाहिर होता है कि वे अगली बार कोई चुनाव जीतने की उम्मीद गवां बैठे हैं।

Friday, April 11, 2008

तिब्बत क्यों, कश्मीर क्यों नहीं






आलोक तोमर
तिब्बत को लेकर भारत सरकार संशय में तो है ही लेकिन यह संशय खुद उसका खड़ा किया हुआ है। चीन में ओलंपिक के बहाने बागी तिब्बतियों ने पूरी दुनिया में बवाल कर रखा है, ओलंपिक मशाल कई बार बुझाई जा चुकी है, अमेरिका में तो इसे गलियों छिपते छिपाते निकाला गया और ऐसा ओलंपिक इतिहास में पहली बार हो रहा है। चीन से अपन को कोई खास प्यार नहीं है और यहां तक की चीनी खाने के भी हम शौकीन नहीं हैं लेकिन ओलंपिक को लेकर उसे जिस तरह से खगोलीय स्तर पर ब्लैकमेल किया जा रहा है वह न सिर्फ आपत्तिजनक बल्कि शर्मनाक भी है।


कितनी बार याद दिलाया जाए कि भारत में नपुंसक बगावत की मशाल लेकर बैठे दलाईलामा को तो छोड़िए खुद भारत सरकार सरेआम स्वीकार कर चुकी है कि तिब्बत चीन का ही हिस्सा है और वहां जो हो रहा है वह दरअसल चीन का आंतरिक मामला है। इसके बदले में चीन ने सिक्किम पर से अपना कब्जा खत्म किया और अरूणाचल प्रदेश को लेकर जो झमेला चल रहा था उसे भी काफी हद तक निपटा लिया गया है। नाथूलागर्रा भी व्यापार के लिए खुल गया है और जब सब कुछ ठीक होता जा रहा है तो भारत को तिब्बत के मामले में कम से कम तटस्थ तो रहना ही चाहिए।


ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हमारे पास अपना कश्मीर भी है और उसे ले कर पाकिस्तान की दावेदारी कम विकट नहीं है। कारगिल मिलाकर साढ़े तीन युध्द हो चुके हैं और भले ही इन सब मे ंपाकिस्तान पराजित हुआ हो, जितना बड़ा मुद्दा तिब्बत चीन के लिए नहीं है उससे कई सौ गुना कश्मीर भारत के लिए है। तिब्बत तो पूरा का पूरा चीन के नियंत्रण में है मगर हमारा एक तिहाई कश्मीर अब भी पाकिस्तान के कब्जे में है। तिब्बती तो चीन मे घुस कर कभी हिंसा नहीं फेलाते लेकिन पाकिस्तान की आईएसआई कश्मीर में दिन रात खून की नदियां बहाने वालों को रकम और प्रशिक्षण दोनो उपलब्ध कराती है। कश्मीर के मामले में हमारी मदद करने उस तरह पूरी दुनिया उठ खड़ी नहीं हुई जैसे तिब्बत के मामले में मानवाधिकार संगठनों और खासतौर पर अमेरिका ने अपनी जालिम दिलचस्पी दिखाई।


मेरा पहला और आखिरी सवाल यही है कि हम जब अपने कश्मीर के खूनी और विषाक्त चक्र में इतनी बुरी तरह उलझे हुए हैं तो हमें तिब्बत को लेकर हंगामा मचाने का क्या हक है? तिब्बत में मानवाधिकारो का उल्लंघन हो रहा है यह भी हमें उन्हीं शीर्षकों और चैनलों से पता चलता है जिनसे कश्मीर के बारे में खबरें आती हैं कि हमारी फौजें वहां कत्लेआम और बलात्कार कर रही हैं। जैसे हम कश्मीर से आयी खबरों पर ऐतवार नहीं करते वैसे ही तिब्बत के मामलों में क्यों नहीं होता। हम अगर चीन को अहींसक होने का प्रमाण पत्र नहीं देना चाहते तो न दे लेकिन आज अगर हम ओलंपिक के मामले में चीन के ब्लैकमेल होने में मदद कर रहे हैं तो कल कॉमनवेल्थ के मौके पर कश्मीर के बहाने अपने साथ होने वाले ब्लैकमेल को हम कैसे रोक सकते हैं?
तिब्बत की कहानी अजीब है। वहां के भोले भाले और निषपाप लोगों पर जुल्म हो रहे हैं तो हमें उनका वैसे ही साथ देना चाहिए जैसे मानवाधिकारों के मामले में हम वियतनाम से लेकर कांगो तक चीखते चिल्लाते रहें हैं। तिब्बत एक देश नहीं है यह हम भी स्वीकार करते हैं मगर पिछले पचास साल से वहां के राष्ट्राध्यक्ष दलाईलामा को घर जमाई बनाकर हमने रखा हुआ है। उन पर करोड़ो रूपए खर्च होते हैं और जिन दलाईलामा का नियंत्रण एक हवलदार पर नहीं है उन्हें शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिल जाता है। भारत में सुनामी आए, भूकम्प आए, महाचक्रवात में लाखों लोग मारे जायें तो यह संयोग नहीं हो सकता कि इन सब हादसों के बाद दलाई लामा दुनिया के किसी दूर दराज के देश में सत्य और अहिंसा का प्रचार करते नजर आते हैं। उन्हें भारत की आपदाओं और विपदाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके बावजूद उनके नेतृत्व में भारत आकर बसे उनके शिष्य भी अब उनसे मोहभंग के शिकार हो चुके हैं और बार बार सवाल कर रहे हैं कि आखिर इस लड़ाई का अंत क्या है। दलाई लामा खुद चीन को लेकर मतिभ्रम के शिकार हैं और अलग अलग बयान देते रहते हैं। कभी वे चीन को अपना मित्र और संरक्षक बताते है तो कभी दुनिया से अपील करने लगते हैं उन्हें उनका अधिकार दिलवाया जाए।
हम अपने कश्मीर को हासिल करने के लिए क्या नहीं कर रहे हैं। जितना हिस्सा हमारे पास है उसी की सुरक्षा में तीन करोड़ रूपए रोज का औसत खर्चा होता है और इसमें सेना और अर्ध सैनिक बलों की पगार शामिल नहीं है। इसके अलावा हमारा विदेश मंत्रालय दुनिया भर के मीडिया और लाबियों मे जिस तरह का अपार खर्चा करता है ताकि कश्मीर पर अपने हक को वह प्रमाणित कर सके। शिमला समझौता एक आदर्श अवसर था जब हम आगे पीछे का सारा हिसाब चुकता कर सकते थे लेकिन हमारी उदारता कहिए या दुनिया में सहनशीलता का सिक्का जमाने कोशिश, हमने वह मौका हाथ से जाने दिया।
जिस गति से भारत की सभी सरकारें चलती रही है और चल रही हैं उससे कश्मीर का मुद्दा हल होने का कोई आसार नजर नहीं आता है। आखिर जो भी लड़ाइयां हुई वे हमने जीती, लेकिन कहा गया कि कश्मीर का हल बंदूक से नहीं निकलेगा। क्यों नहीं निकलेगा भैया? उधर से बंदूक और बारूद दोस्ती के मौसम में भी बरसती है और हम अपनी विरासत पाने के लिए मैदान में जीते हुए युध्द टेबल पर बैठ कर हार जाते हैं। चीन को तिब्बत का मामला सुलझाने दीजिए, अमेरिका की औकात हो तो उसे चीन को इराक और अफगानिस्तान बनाने की कोशिश करने दीजिए। मगर भगवान के लिए पहले अपने कश्मीर के लिए चिंता कीजिए।

Thursday, April 10, 2008

अर्जुन सिंह की सबसे बडी जीत





आलोक तोमर

नई दिल्ली, 10 अप्रैल - आज अर्जुन सिंह को बहुत दिनों बाद एक ऐसी जीत मिली जिससे वे सिर्फ कांग्रेस के नहीं बल्कि पूरी भारतीय राजनीति के हीरो बन गए हैं। भाजपा सहित कोई दल ऐसा नही था जिसने इस फेसले की मजबूरी में ही सही सराहना नहीं की हो।

सर्वोच्च न्यायालय के फेसले का एक राजनैतिक अर्थ यह भी है कि आने वाले बहुत सारे दिनों तक कांग्रेस की राजनीति अब उनके आस पास घूमने वाली है। अर्जुन सिंह ने कांग्रेस के लिए ओबीसी वोट बैंक का मुख्यद्वार खोल दिया है। यह जरूर है कि युवा मतदाता उनके पक्ष में गए इस फेसले से नाराज हाेंगे लेकिन चुनावी गणित को देखते हुए यह नाराजगी झेली जा सकती है। एक संयोग यह भी है कि ओबीसी आरक्षण के खिलाफ इस कानूनी अभियान का नेतृत्व मशहूर वकील विवके तन्खा कर रहे थे जो हाल ही में अर्जुन सिंह के गृह राज्य मध्यप्रदेश से कांग्रेस समर्थित राज्यसभा उम्मीदवार थे।

आरक्षण व्यवस्था को बढावा देते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज आईआईटी, आईआईएम और अन्य केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन कानून को बरकरार रखा लेकिन ीमी लेयर को इस लाभ से बाहर कर दिया। न्यायालय की पांच सदस्यों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत फैसले में आरक्षण प्रदान करने वाले केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थान (दाखिले में आरक्षण) कानून 2006 को मंजूरी दे दी। मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने ओबीसी की ीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से अलग कर दिया।

न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यह कानून संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। न्यायालय ने यह फैसला आरक्षण विरोधी कार्यकर्ताओं की याचिकाओं पर सुनाया है। इन याचिकाओं में कानून को चुनौती दी गई थी। इन याचिकाओं में सरकारी कदम का जबरदस्त विरोध करते हुए कहा गया था कि पिछडे वर्गों की पहचान के लिए जाति को शुरुआती बिंदु नहीं माना जा सकता। आरक्षण विरोधी याचिकाओं में ीमी लेयर को आरक्षण नीति में शामिल किए जाने का भी विरोध किया गया था। इस फैसले से न्यायालय के 29 मार्च 2007 के अंतरिम आदेश में कानून के कार्यान्वयन पर लगाई गई रोक समाप्त हो जाएगी। फैसले के बाद अब आरक्षण नीति को 2008-09 शैक्षणिक सत्र में लागू किया जा सकेगा।

न्यायालय ने कहा कि संविधान संशोधन (93वां संशोधन) कानून जिसके तहत सरकार ने सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने वाला कानून तैयार किया था संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। पीठ के सभी न्यायाधीशों ने 27 प्रतिशत आरक्षण के कार्यान्वयन का समय-समय पर समीक्षा करने का समर्थन किया।

न्यायालय ने व्यवस्था दी कि ओबीसी निर्धारण का अधिकार केन्द्र को देना कानून सम्मत है। न्यायालय ने कहा कि आठ सितंबर 1993 के सरकारी ज्ञापन के अनुरूप नौकरियों के लिए ओबीसी में ीमी लेयर की पहचान के लिए निर्धारित मापदंड सामाजिक और शैक्षणिक पिछडे वर्गों की पहचान के लिए लागू होंगे। पीठ ने कानून के तहत अल्पसंख्यक संस्थाओं को आरक्षण की हद से बाहर रखने को सही ठहराया। मुख्य न्यायाधीश के अलावा पीठ में न्यायमूर्ति अरिजित पसायत, सीके ठक्कर, आरवी रवीन्द्रन और दलवीर भंडारी शामिल थे।
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने आज आईआईटी, आईआईएम और अन्य उच्च शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि आने वाले शैक्षणिक सत्र से इसे लागू करने के प्रयास किए जायेंगे।

सिंह ने उच्चतम न्यायालय द्वारा इस बारे में बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाए जाने के बाद संवाददाताओं से कहा- यह ऐतिहासिक फैसला है। ओबीसी श्रेणी से संबंधित सैंकडों छात्रों को इससे फायदा होगा। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय का यह फैसला सामाजिक न्याय के प्रति संप्रग सरकार की प्रतिबध्दताओं को सिध्द करता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने वाले संविधान संशोधन कानून को शैक्षणिक सत्र से यिान्वित करने के काम को सुनिश्चित करेगी।

मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा- मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसे सभी लोग इस फैसले का समर्थन करेंगे जो यह चाहते हैं कि उच्च शिक्षा तक सभी की समान रूप से पहुंच हो। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी को भी इस प्रयिा से अलग नहीं रखा जायेगा। उन्होंने कहा कि ओबीसी को आरक्षण दिए जाने से दूसरे वर्ग के छात्र प्रभावित नहीं होंगे और न ही हितों का कोई टकराव होगा।

सिंह ने इस मामले से निपटने में दिशा-निर्देश और समर्थन देने के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का आभार जताया। ओबीसी के ीमी लेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बारे में पूछे जाने पर अर्जुन सिंह ने कहा कि इसमें कुछ दिक्कतें होंगी लेकिन साथ ही कहा कि मसले का समाधान कर लिया जायेगा।
सिंह ने कहा कि वह न्यायालय के इस फैसले से व्यक्तिगत रूप से काफी प्रसन्न हैं और अब इसे लागू करने की दिशा में आगे बढने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा एक दो दिन में मैं आपको विभिन्न संस्थानों में ढांचागत गतिविधियों में प्रगति के बारे में बताऊंगा। इस कानून को लेकर उठे विवाद की चर्चा करते हुए कहा कि समस्या इसलिए थी क्योंकि लोग इस मसले को सही तरीके से समझते नहीं हैं।

उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछडे वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को संविधान सम्मत बताने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का भाजपा ने आज स्वागत किया। पार्टी ने कहा कि शीर्ष अदालत की यह व्यवस्था आ जाने के बाद सरकार को चाहिए वह तुरंत प्रभाव से इसे लागू कर दे। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा- देश की शीर्ष अदालत के इस महत्वपूर्ण और दूरगामी फैसले का हम तहे दिल से स्वागत करते हैं। इससे सभी को सामाजिक न्याय दिए जाने के हमारे विचार के सही होने की पुष्टि होती है। उन्होंने कहा- उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से हम अत्यधिक खुश हैं क्योंकि विकास को अधिक अर्थपूर्ण और सभी के लिए उपलब्ध कराने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की जरूरत थी। इसीलिए संसद में हमने संबंधित विधेयक का पूर्ण समर्थन किया था।

जावडेकर ने कहा कि इस कानून को लागू करते समय सरकार को सभी दलों के बीच बनी उस सर्वानुमति को ध्यान में रखना चाहिए जिसमें राय बनी थी कि उच्च शिक्षण संस्थाओं में अन्य पिछडे वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के साथ वहां 27 प्रतिशत सीटों में भी बढोत्तरी की जाए। उन्होंने इन दोनों बातों को समयबध्द तरीके से लागू करने की मांग की।
उच्चतम न्यायालय ने आज महत्वपूर्ण फैसले में आरक्षण व्यवस्था को बढावा देते हुए आईआईटी, आईआईएम और अन्य केन्द्रीय उच्च शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने वाले संविधान संशोधन कानून को बरकरार रखा लेकिन ीमी लेयर को इस लाभ से बाहर कर दिया।
माकपा ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछडा वर्ग को दाखिलों में 27 फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर आज आए उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और सरकार से इसे शैक्षणिक सत्र से कार्यान्वित करने को कहा।
पार्टी द्वारा जारी एक बयान में यहां कहा गया- माकपा पोलित ब्यूरो अन्य पिछडा वर्ग को केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की सरकारी पहल को न्यायालय द्वारा बरकरार रखे जाने के फैसले का स्वागत करता है। बयान में अन्य पिछडा वर्ग से ीमी लेयर को बाहर किए जाने का भी स्वागत किया गया।

Wednesday, April 9, 2008

दंगाइयों का मददगार जज करेगा उनका फैसला?





आलोक तोमर
नई दिल्ली, 9 अप्रैल -गुजरात दंगे के एक कुख्यात अभियुक्त ने तहलका के टेप पर खुलासा किया था कि राज्य उच्च न्यायालय के एक जज ने हिंदू होने के नाते और पैसा लेकर भी, दंगे के बहुत सारे अभियुक्तों को जमानत दी थी। ये टेप गुजरात दंगे की जांच कर रहे नानावती आयोग के पास है और इनकी पडताल अब आयोग के जिस नए न्यायमूर्ति को करनी है वह यही कलंकित जज है।
आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति के जे शाह के पिछले महीने हुए निधन के बाद इस विवादास्पद जज अक्षय मेहता को कल नानावती आयोग का सदस्य नियुक्त कर दिया गया । तहलका के टेप मे नरौदा पटिया नरसंहार के मुख्य अभियुक्त बाबू बजंरंगी ने खुल शब्दों में कहा था कि अक्षय मेहता ने उसे और उसके साथियो को उच्च न्यायालय से जमानत दिलवाने में पूरी मदद की।बजरंगी के बयान के अनुसार मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हे एक संदेश भेज कर कहा था कि वे परेशान नहीं हो उनके लिए अदालती सुरक्षा का इंतजाम कर दिया जाएगा। इसके बाद ही श्री मोदी की ही पहल पर अक्षय मेहता को उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किया गया। बजरंगी के अनुसार अदालत में जब भी दंगे के अभियुक्तों की जमानत का मामला पहुंचता है तो श्री मेहता न फाइल देखते और न दलील सुनते, वे सीधे एक लाइन में आदेश देते थे कि जमानत दी जाती है। इस तरह उनकी अदालत में दंगाइयों के जितने मामले गए उन सब में अभियुक्त जमानत पर छूट गए और उनमें से ज्यादातर अब लापता हो गए हैं। जो आदमी हाईकोर्ट का जज बनने के लिए बिक सकता है उससे न्याय की उम्मीद करना मुर्दे से फ्री स्टाइल कुश्ती लडने की उम्मीद करने जैसा होगा।

Tuesday, April 8, 2008

बाथरूम में राहुल का देश



आलोक तोमर

राहुल गांधी कांग्रेस के युवराज नहीं हैं। उन्हें तो राजनीति में आते ही सम्राट बना देने की तैयारी की जा रही है। वे डगर डगर घूम रहे हैं और नगर नगर में जाकर ऐलान कर रहे कि वे कांग्रेस को जिंदा करने आए हैं। इसलिए उनकी मम्मी के अनुसार उनके लाड़ले बेटे ने मंत्री पद ही छोड़ दिया है।

आखिर जब बैठे बिठाए सुपर प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल रही तो मंत्री पद का मोह कौन करे? राहुल गांधी का दरबार रोज सजता है और वहां उनके बाप दादा के उम्र के लोग हाजिरी लगाते हैं। वे भी आते है तो राजनीति और दुनियादारी को राहुल से ज्यादा जानते हैं। राहुल गांधी को लगता है कि उन्हाेंने कालाहांडी घूम लिया तो भूख और अकाल का भेद जान गए। इसके बाद वे दलितो के घर खाना खाने चले गए और मान लिया कि उन्हें देश के गरीबों का पूरा हाल पता है। पता नहीं मायावती कहां से यह खबर निकाल लायी कि राहुल दलितो से मिलने के बाद गंगाजल से अपनी शुद्भि करते हैं। अभी तक इस बात की खबर किसी को नहीं मिली है कि मायावती ने स्टिंग आपरेशन करने के लिए कोई जुगाड़ की हो और उसके लिए किसी संस्था को नियुक्त किया हो।

जहां तक तहलका का सवाल है, उसे नरेंद्र मोदी और कांग्रेस से ही फुर्सत नहीं है और मायावती के सोशल इंजिनियरिंग के महारथी इतने बड़े इंजिनियर नहीं हैं कि उन्हें दस जनपथ के घुसने की कला मालूम हो। लेकिन राहुल गांधी राजनैतिक आत्महत्या करने के मामले में सिर्फ मायावती पर आश्रित नहीं हैं। इसके लिए उनकी सलाहकार मंडली ही काफी है।

राहुल गांधी भले है और भोले हैं लेकिन आप भी जानते है कि भले और भोले लोगों की गुजर राजनीति में नहीं होती है। राहुल अगर अपनी मां की जगह पिता को आदर्श बनाते तो उनका मजाक भले ही उड़ता लेकिन उतना नहीं जितना इन दिनों उड़ रहा है। अपनी विनम्र सलाह तो यह है कि वे सात समंदर पार से ही बहु लाना चाहते है तो ले आए लेकिन शादी जरूर कर ले। अविवाहित रहने से अटल बिहार बाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए इसका मतलब यह कतई नहीं है कि राहुल गांधी के साथ भी यही कारनामा होने वाला है।

Monday, April 7, 2008

नेहरू के पत्र पर जेल गए थे आडवाणी

डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 7 अप्रैल-लालकृष्ण आडवाणी की तथाकथित आत्मकथा में कांधार का वर्णन मीडिया के दिमाग पर इस कदर छाया हुआ है कि मुद्दे की कई बातें लोगों ने याद ही नहीं रखी। उन्होने अपनी पुस्तक में विभाजन के लिए महात्मा गांधी को माफ करते हुए जवाहर लाल नेहरू की जल्दबाजी को जिम्मेदार ठहराया है। आडवाणी ने यह भी लिखा है कि नेहरू की ही एक चिठ्ठी के आधार पर गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
गिरफ्तार आडवाणी भी हुए थे और तीन महीने अलवर जेल में रहे थे। यह पाकिस्तान से भाग कर आने के बाद भारत में उनकी पहली गिरफ्तारी थी। पाकिस्तान में तो आज तक जिन्ना की हत्या के षड़यंत्र में उनके शामिल होने के बारे में फाइल खुली ही हुई है। आडवाणी ने लिखा है कि नेहरू ने गांधी जी की हत्या के बाद सरदार बल्लभ भाई पटेल को पत्र लिखा था कि गांधी जी की हत्या में पाकिस्तान से आए लोग शामिल हो सकते हैं जो मेरी जानकारी के अनुसार राजस्थान के अलवर और भरतपुर में मौजूद थे। सरदार पटेल ने फौरन इस संबंध में कार्यवाही के आदेश दे दिए। आडवाणी के अनुसार कांग्रेस के कई नेताओं ने तो उस समय नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के हिन्दू महासभा में शामिल होने की वजह से उन्होने भी गांधी हत्या का दोषी ठहराया था और मंत्रिमंडल से निकालने की मांग की थी। यहां यह याद किया जा सकता है कि गांधी पर गोली चलाने वाला नाथुराम गोड्से हिन्दू महासभा का ही सदस्य था।
आडवाणी ने अपनी आज की राजनीति को ध्यान में रखते हुए नेहरू को भी संदेह का लाभ दिया है। उन्होने कहा है कि लार्ड माऊंट बेटन ने नेहरू सहित सभी कांग्रेसी नेताओं को यह समझाया था कि विभाजन हिन्दू-मुस्लिम विवाद का एक मात्र हल है और इससे कोई हिंसा पैदा नहीं होगी। आडवाणी पर उनकी बहु गौरी ने हिन्दू धर्म के कर्म कांड नहीं मानने का आरोप अदालत में लगाया है और आजवाणी ने भी अपनी आत्मकथा में इसकी पुष्टि की है। उन्होने कहा है कि महाशिवरात्रि का व्रत अलवर जेल में जेलर के आग्रह के बावजूद उन्होने नहीं रखा था। लेकिन व्रत तोड़ने के लिए जेल अधिकारियों ने जो हलवा-पूड़ी का इंतजाम किया था उसमें हिस्सा जरूर लिया था।
आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में गांधी हत्या में संघ परिवार के लिप्त होने के बारे में भी लंबा अध्याय लिखा है और याद दिलाया है कि तत्कालीन संघ प्रमुख गोपाल कृष्ण गोलवलकर ने नेहरू को पत्र लिख कर इस कांड की निंदा की थी और बाद में इस हत्या की जांच के लिए बिठाये गए कपूर आयोग ने संघ और इसके स्वंय सेवकों को दोष मुक्त कर दिया था। आडवाणी याद दिलाते हैं कि सात अक्टूबर 1949 को कांग्रेस कार्यसमिति में संघ के स्वंय सेवकों को कांग्रेस में शामिल हो कर देश के लिए काम करने का निमंत्रण दिया था।
कांधार पर कुछ और अर्धसत्य
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 7 अप्रैल-आडवाणी की किताब में कंधार मसले को लेकर जो हंगामा मच रहा है वह उनकी किताब को बगैर पढ़े ही मचाया जा रहा लगता है। किसी ने यह नहीं लिखा कि इस आफत से निजात पाने के लिए एनडीए सरकार ने राजवी गांधी भवन में एक नियंत्रण कक्ष बनाया था और उसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलहकार ब्रजेश मिश्र के अलावा गुप्तचर ब्यूरो के अजीत डोभाल, रा के सी.डी सहाय और विदेश मंत्रालय के विवेक काडजू भी मौजूद थे। बाद में इन्हीं तीनों अधिकारियों को आतंकवादियों से बातचीत करने के लिए कांधार भेजा गया।
आडवाणी लिखते हैं कि शुरू में वे आतंकवादियों द्वारा भारत में बंद अपने साथियों की रिहाई की मांग से कतई असहमत थे। इसके अलावा आतंकवादियों ने बीस करोड़ डालर की नकद फिरौती देने की मांग की थी। आडवाणी ने लिखा है कि उस समय अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था और तालिबान और आईएसआई के जो रिश्ते हैं उन्हें देखते हुए इस पूरे कांड पर पाकिस्तान का ही नियंत्रण था। आडवाणी को पता नहीं कहां से यह जानकारी मिली थी कि तालिबान भारतीय उड़ान आईसी 184 को टैंकों से उड़ाने वाले थे। इस बात की धमकियां टीवी चैनलों पर आ चुकी थी।
आडवाणी ने जसवंत की भी तारिफ की है और उनके अधिकारियों की भी। उन्होने यह भी लिखा है कि आतंकवादी कांधार से निकलने के बाद कराची में प्रकट हुए थे। इसी से जाहिर है कि पाकिस्तान कितने भीतर तक इस षडयंत्र से जुड़ा है। यह सिर्फ संयोग की बात है कि कराची लालकृष्ण आडवाणी की जन्मभूमि है। अभी तक श्री आडवाणी ने यह नहीं कहा कि इस अपहरण कांड का पाकिस्तान में असली सूत्रधार कौन था। उन्होने अपनी किताब में कहीं यह नहीं लिखा है कि उनकी जानकारी में नकद फिरौती अदा नहीं की गई। बाद के साक्षात्कारों और बयानों में उन्होने जरूर इस तरह के आरोप लगाये हैं।
लालकृष्ण आडवाणी ने यह किताब अपने चुनावी भविष्य को ध्यान में रख कर लिखी है और यह इसी बात से जाहिर है कि वे इसका हर मंच और हर फोरम से प्रचार करवाना चाहते हैं। अब तो एक नहीं दो-दो वेबसाइट इस किताब को लेकर भाजपा की ओर से बनवाई गई है और पुस्तक के प्रकाशक इनसे होने वाले प्रचार से अपना नुकसान होना तय मान रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि उन्हे इस पुस्तक के पठनीय और लोकप्रिय होने की उम्मीद है। अटल जी नहीं जानते रहे होंगे कि पुस्तक में उनकी भूमिका पर भी कई गंभीर सवाल खड़े किए जाएंगे।

बिग बी मराठी में बोले और ठाकरे बचाव में
डेटलाइन इंडिया
्रमुंबई, 7 अप्रैल-अमिताभ बच्चन और बाल ठाकरे ने अपने-अपने दांव खेल दिए हैं। बाल ठाकरे ने आज अपने अखबार सामना के संपादकीय में अपने ही अखबार में छपे एक लेख की आलोचना करते हुए श्री बच्चन को पूरे देश का नायक बताया और कहा कि उन पर क्षेत्रीयता के बंधन नहीं लादे जाने चाहिए।
उधर अमिताभ बच्चन ने दस मिनट तक धारा प्रवाह मराठी बोलकर महाराष्ट्र को अपने लिए सबसे बड़ी ताकत बताया और कहा कि मुंबई ने मुझे घर दिया, पत्नी दी, प्रसिध्दि दी और आजीविका दी। लोकमत और सीएनएन के मराठी समाचार चैनल के उद्धाटन के मौके पर दिए गए संदेश में श्री बच्चन ने मराठी बोल कर सबको चकित कर दिया। उन्होने यह भी कहा कि मेरे पिता की कविताओं का अनुवाद मराठी में हो चुका है। लेकिन अमिताभ बच्चन ने घुमा फिरा कर मराठियों की सर्वोच्चता और उत्तर भारतीयों की हीन्नता को लेकर चलाए जा रहे अभियान की भी खबर ली और कहा कि अगर हमें पूरे संसार में स्वीकार योग्य बनना है तो एक-दूसरे की संस्कृति और भाषाओं का सम्मान करना चाहिए।
उधर सामना के पहले पन्ने के अपने विशेष संपादकीय में बाल ठाकरे भी अमिताभ बच्चन के सुर में बोल रहे थे। उन्होंने लिखा की अमिताभ बच्चन की ख्याति और परिचय को किसी क्षेत्रीयता के बंधन में नहीं बांधा जा सकता और इस तरह के विवाद खड़े करना उचित नहीं है। ठाकरे ने लिखा कि अमिताभ बच्चन हमारे परिवार के हिस्से हैं और मैंने खुद कभी उनके बारे में कोई अनुचित टिप्पणी नहीं की। फिर भी उन्हें अपने अखबार को बचाना था इसलिए उन्होने लिखा कि हमारे बच्चन परिवार से रिश्ते इतने कमजोर नहीं हैं कि कुछ टीवी चैनल उन्हें तोड़ देंगे। पिछले शनिवार को सामना ने अमिताभ बच्चन को सलाह दी थी कि अमिताभ बच्चन को रजनीकांत की तरह होना चाहिए जो तमिल हितों के बारे में खुल कर बोल रहे हैं। प्रसंग वश रजनीकांत ने भी अब कर्नाटक के खिलाफ अपना बयान वापस ले लिया है।
चोरी के अभियुक्त है मुंबई पुलिस
डेटलाइन इंडिया
मुंबई, 7 अप्रैल-मुंबई पुलिस अपराधियों को पकड़ने के साथ खुद भी चोरी का काम शुरू कर चुकी है। पुलिस बिजली के चोरी का आरोप है। यह नायाब तरीका मुंबई में करीब 88 पुलिस चौकियों में वर्षों से आजमाया जा रहा है। एक चौकी तो ऐसी है कि 2001 से अब तक सिर्फ सात यूनिट ही खर्च कर पाई है।
मुंबई पुलिस के मरीन ड्राइव ट्रैफिक पुलिस चौकी पर एक विज्ञापन बोर्ड 2001 से लगा है। इसमें 2001 से इलेक्ट्रिक सप्लाई दी जा रही है लेकिन तब से अब तक यह मीटर मात्र सात यूनिट ही बता रहा है। आई के चौगानी ने इस विज्ञापन बोर्ड को लेकर एक अपील बंबई हाईकोर्ट में डाली है। अपील में उन्होने कहा है कि करीब तीन-चार सप्ताह से मैं मरीन ड्राईव चौकी के मीटर को देख रहा हूं वह सात यूनिट ही है। जबकि यहां पर विज्ञापन बोर्ड दिन-रात रौशन रहता है। इसलिए मुझे शक है कि बिजली की यहां चोरी की जा रही है। चौगानी ने मुंबई के अन्य पुलिस चौकियों पर भी आरोप लगाया है कि शहर में कई पुलिस चौकियां अवैध रूप से स्ट्रीट लाइट और ट्रैफिक सिग्नल से बिजली की चोरी कर इस्तेमाल कर रही है।
इस अपील के जवाब में बेस्ट के सहायक जेनरल मैनेजर अशोक वासुदेव ने कहा कि वह मीटर एक आउटडोर कंपनी के नाम पर लगाया गया था लेकिन इस अपील के बाद हमने मीटर बदल दिया है और पुराने मीटर को जांच के लिए भेज दिया गया है। यहीं नहींइसमें 88 पुलिस चौकियों की लंबी फेहरिस्त है जो कि बिजली की चोरी करते हैं। इनमें से 42 चौकियों के खिलाफ कदम उठाये गए हैं, इन चौकियों में अवैध रूप से बिजली का उपयोग किया जा रहा था और 16 चौकियां ऐसी थी जो कि बिना मीटर के बिजली का उपयोग रहीं थीं।
कुवैत के अदालती फैसले पर टिकी जिन्दगी
डेटलाइन इंडिया
अलाप्पाजहा(केरल), 7 अप्रैल- केरल के एक गांव से दो साल पहले 26 वर्षीय सीमील कुवैत के लिए रवाना हुआ था ताकि वह अपने परिवार के माली हालत को सुधारने में मदद कर सके। जब वह गया तो घरवालों को भी रोटी की एक नई उम्मीद दिखी पर अब रोटी तो दूर सीमील अपने ही साथी के मौत के आरोप में कुवैत में जेल के सलाखों के पीछे अपने रिहाई की बाट जो रहा है।
21 नवंबर 2007 को क्रिकेट मैच के बाद हार-जीत को लेकर सीमील और उसके 31 वर्षीय दोस्त सुरेश से धक्का-मुक्की हो गई और इतने में चाकू सुरेश के गले के पार हो गया और मौके पर उसकी मौत हो गई। सुरेश आंध्र पदेश के कुद्दापाह जिले का रहने वाला है। सुरेश के मरने के बाद सीमील तुरंत नजदीक के पुलिस स्टेशन गया और घटना के बारे में बताया। अब सीमील कुवैत में सलाखों के पीछे है और उसके परिवार वाले कुवैत कोर्ट से उसकी रिहाई की अपील कर रहे हैं। लेकिन कुवैत के कानून के अनुसार सीमील को तभी छोड़ा जा सकता है जब मृतक के परिवार वाले उसे माफ कर दें।
सुरेश की पत्नी ने सीमील को माफी देने के लिए कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और उसे कुवैत स्थित भारतीय दूतावास में भेज दिया गया है। अब इस आधार पर कुवैत के कोर्ट में मामले की सुनवाई होगी। इस मामले में केरल के विपक्ष के कांग्रेसी नेता ओमान चांडी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होने सुरेश की पत्नी को माफी देने के बदले में 10 लाख रुपये देने का इंतजाम किया। इसके बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी ने भी सुरेश की पत्नी को 5 लाख रुपये दिए। अब कुवैत के वकील की महंगी फीस को चुकाने के लिए कुवैत में रह रहे बहुत सारे केरलवासियों ने मिलकर रकम की व्यवस्था की है ताकि सीमील की रिहाई हो सके।

फेरबदल कर फंसे मनमोहन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 7 अप्रैल -शिबू सोरेन ने बगावत कर दी है और इसके नतीजे कांग्रेस को भुगतने पडेंगे। वैसे भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केन्दीय मंत्रिमंडल में फेरबदल में क्षेत्रीय संतुलन ठीक से न होने पर उनको कोई खास फायदा नहीं मिलने वाला है। गुर्जरों के नेता सचिन पायलट को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाने से गुर्जरों में कांग्रेस आलाकमान के प्रति गहरी नाराजगी फैल गई है। राजस्थान में कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पडेगी। वहीं यह फेरबदल क्षेत्रीय और जातीय संतुलन नहीं बन पाया। उत्तराखंड और छत्तीसग़ढ को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया। उडीसा को भी निराशा ही हाथ लगी। सचिन पायलट जगह मंत्रिमंडल में शामिल किए गए संतोष बगरोडिया गांधी परिवार के पुराने वफादार हैं।
दो दिनों तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के यहां मंत्रिमंडल को लेकर हुई माथापच्ची के बावजूद संतुलन को लेकर कई नेताओं में नाराजगी है। आंध्रप्रदेश के हनुमंत राव का पत्ता ऐन मौके पर कटा। शिबू सोरेन अदालत से राहत पाने के बाद से ही दबाव बनाए हुए थे, लेकिन वह भी कामयाब नही हो पाए। दागदार छवि की वजह से उन्हें प्रधानमंत्री खुद नहीं चाहते थे। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की खूब चल रही है। उन्होंने कोटे से बाहर जाकर अपनी पार्टी के रघुनाथ झा को तो मंत्री बनवाया ही, साथ ही आईपीएस अधिकारी रहे डॉ. रामेश्वर ओरांव के लिए भी पैरवी की। यह बात अलग है कि वह कांग्रेस कोटे से हैं। फेरबदल के बाद बनी टीम को चुनावी टीम के रूप में देखा जा रहा है।
केंद्रीय राज्यमंत्री जितिन प्रसाद ने पार्टी की नेता सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रति बेहद विनम्र लहजे में कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा कि दोनों नेताओं ने उन पर विश्वास करके जो जिम्मेदारी सौंपी है, उसे पूरा करने का हरसंभव प्रयास करते रहेंगे। फोन पर हुई बातचीत में प्रसाद ने कहा कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस युवाओं को आगे बढाने का प्रयास कर रही है और मंत्रिमंडल विस्तार पार्टी की इसी सोच का प्रमाण है। जहां तक उन्हें मिली जिम्मेदारी का सवाल है, पार्टी नेतृत्व और प्रधानमंत्री के विश्वास की कसौटी पर खरा उतरने का प्रयास करूंगा।
माओवादियों के नक्शे में पंजाब भी
डेटलाइन इंडिया
चंडीग़ढ, 7 अप्रैल -नक्सलियों का अगला निशाना पंजाब होगा। पंजाब में नक्सली आंदोलन को योजना वद्भ तरीके से चलाने के लिए नक्सली नेताओं ने तैयारी कर दी है। इसका खुलासा खुफिया एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट में किया है। पंजाब में नक्सली आंदोलन को तेज करने के लिए बिहार के नक्सली नेताओं को तैनात किया गया है। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीआई माओ के केंद्रीय कमेटी के सदस्य प्रमोद मिश्र को पंजाब की कमान दी गई है। शुरूआती दौर में राज्य के शहरी इलाकों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों को लक्ष्य कर संगठन को मजबूत करने की कोशिश है।
झारखंड में सीपीआई माओ के केंद्रीय समिति के सदस्य मिसिर बेसरा उर्फ भास्कर उर्फ सुनीरमल की गिरफ्तारी और उससे पूछताछ के बाद कई खुलासे सामने आए हैं। इस खुलासे में अब देश के उतरी राज्यों को नक्सलवादी आंदोलन का लक्ष्य बताया गया है। इसमें पंजाब और हरियाणा भी शामिल है।
खुफिया एजेंसियों के अनुसार बेसरा से पूछताछ में पता चला है कि पंजाब की कमान बिहार के औरंगाबाद जिले के रहने वाले प्रमोद कुमार मिश्र को दी गई है। प्रमोद कुमार मिश्र औरंगाबाद जिले के रफीगंज का रहने वाला है और यह भी सीपीआई माओ के केंद्रीय कमेटी का सदस्य है।
पंजाब इंटेलिजेंस ने भी पिछले माह अपने डीएसपी और एआईजी की बैठक बुलाकर नक्सलवादी आंदोलन के खतरे के संबंध में चेतावनी दी और पूरी रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया। राज्य में छोटे किसान और मजदूर यूनियन नक्सलियों के लक्ष्य हैं और पंजाब इंटेलिजेंस के आला अधिकारी भी इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं। मालवा इलाके में किसानों की बढती खुदकुशी और किसानी को फायदा नहीं होना भी चिंता का विषय है, यह भी नक्सलियों के लक्ष्य होंगे। इंटेलिजेंस के अधिकारियों के अनुसार रिलायंस फ्रेश और शुभिच्छा जैसे रिटेल स्टोर के खुलने से बेरोजगार होने वाले रेहडी फडी वाले भी नक्सलियों के लक्ष्य हैं।
गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद हाल ही में राज्यों को भेजी जानकारी में आईबी ने बिहार के कई जेलों पर नक्सलियों के हमले का अंदेशा जताया है। बिहार पुलिस को इस संबंध में सतर्क किया गया है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक नक्सली दरभंगा, बेगूसराय, भागलपुर, गया, जहानाबाद, सासाराम, सीतामढी, पटना (बेउर), बेतिया, खगड़िया, बगहा, मोतिहारी, जमुई, बक्सर और औरंगाबाद जेल पर हमले की योजना बना रहे हैं ताकि इन जेलों में बंद कैडरों को छुड़ाया जा सके।
महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में अपना प्रभाव जमाने के बाद सीपीआई माओवादी के नक्सलियों के टारगेट में पुणे-अहमदाबाद इंडस्ट्रियल कॉरीडोर भी है। इस इंडस्ट्रियल कॉरीडोर में अहमदनगर, पुणे, मुंबई, ठाणे, नासिक, धुले आदि जिले शामिल हैं, जहां पर अब नक्सली अपने प्रभाव को बढाने की कोशिश में है। इस इलाके में कैडर रिूटमेंट की योजना नक्सली संगठनों ने बनाई है।
पंजाब में नक्सलियों की गतिविधियों पर पुलिस की पूरी नजर है। जो भी जानकारी अलग-अलग एजेंसियों से मिल रही है, उस हिसाब से पुलिस अपने काम के अंजाम दे रही है। राज्य के कुछ जिलों में जिसमें संगरूर, मानसा, बठिंडा आदि इलाके शामिल हैं जो पहले भी नक्सली प्रभाव वाले इलाके रहे हैं।
हॉकर का बेटा मेजर, पकडा गया
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 7 अप्रैल -मेजर की वर्दी पहन कर पुलिस के कई अधिकारियों को काफी समय तक झांसे रखने वाले का खेल अधिक देर तक नहीं सका और संदेह होने पर पुलिस ने जब उसे पकडा तो वह एक बहुत बडा जालसाज निकला। पुलिस ने उसके पास से सेना की वर्दी, बैज-बेल्ट के साथ अखबार और पत्रिका के दो फर्जी परिचय पत्र भी जब्त किए हैं। वह ठगी के इरादे से सेना और पुलिस में घुसपैठ कर रहा था।
एएसपी सिटी पूर्वी हरीश कुमार ने बताया कि इंस्पेक्टर कैंट पीआर वर्मा ने अपनी टीम की मदद से बुलंदशहर के नवलपुरा खुर्जा निवासी कपिल शर्मा उर्फ कपिल अवस्थी उर्फ कपिल अर्जुन को गिरफ्तार करके उसके कब्जे से सेना के बैज, कैप, बैग, इनलाइमेंट न्यूज व ाइम नेशनल के फर्जी परिचय पत्र और तीन मोबाइल बरामद किए हैं। वह खुद को सेना का मेजर बताकर अधिकारियों पर रौब गांठकर ठगी का प्रयास कर रहा था। उसने खुद को इंटरपोल का सदस्य और अपना मुख्यालय ज्वाइंट इंटेलीजेंस कमीशन आरके पुरम दिल्ली बताया।
पूछताछ में खुलासा हुआ कि चार दिन से हुसैनगंज क्षेत्र के एक होटल में ठहरे कपिल शर्मा ने पुलिस के कई अधिकारियों को फोन करके हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट संचालन और ड्रग्स का कारोबार करने वालों के बारे में सटीक सूचना देने का झांसा देकर घुसपैठ बनानी शुरू की। पुलिस के अधिकारी काफी समय तक उसके रौब में रहे। बाद में संदेह होने पर मिलिट्री इंटेलीजेंस के मेजर डबास से कपिल का सामना कराया गया। थोड़ी देर की बातचीत में सच्चाई उजागर होने लगी। पुलिस ने उसे कस्टडी में ले लिया।
हरीश कुमार ने बताया कि कपिल के पिता जेपी शर्मा बुलंदशहर में न्यूज पेपर एजेंट हैं। कपिल बचपन से ही सेना का बडा अफसर बनने का ख्वाब देख रहा था। किन्हीं कारणों से ख्वाब पूरा न होने पर उसने सेना और पुलिस के बारे में तमाम जानकारी हासिल की और खुद को मेजर बताने लगा। इस पर किसी ने आपत्ति नहीं की तो उसने फर्जी मेजर बनकर ठगी का इरादा बनाया। पुलिस अफसरों के फोन नंबर संकलित किए। उनसे फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करके प्रभावित किया। छोटी मोटी ठगी कर चुका कपिल मोटा हाथ मारने के इरादे से लखनऊ आया था लेकिन पुलिस की गिरफ्त में फंस गया।
छोटे लालच से फंस गए मेजर साहब
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 7 अप्रैल - कहते हैं कि अपराध करने वाली एक चूक ही उसे सलाखों के पीछे पहुंचा देती है। ऐसी ही एक गलती फर्जी मेजर साहब से भी हो गई थी। जब कोई मेजर एसएसपी से सिर्फ पांच सौल का मोबाइल रिचार्ज करने की बात कहेगा तो उस पर शक होना लाजिमी ही हो जाता है।
कई आला अधिकारियों को अपने झांसे में लेने के बाद खुद को सेना का मेजर बता रहे मास्टर माइंड कपिल से गलती ये हुई कि उसने एएसपी सिटी से मोबाइल रीचार्ज कूपन मांग लिया था। हैलो..एसएसपी लखनऊ...मैं मेजर कपिल शर्मा बोल रहा हूं। संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था ज्वाइंट इन्वेस्टीगेशन कमीशन से जुड़ा हूं। अपराध के बदलते तौर-तरीकों की इन्वेस्टीगेशन कर रहा हूं। लखनऊ में हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट और ड्रग्स सप्लायर के बारे में सटीक जानकारी है। उनकी धरपकड कराना चाहता हूं। अंग्रेजी मिक्स हिंदी में बातचीत करके एसएसपी अखिल कुमार पर विश्वास जमाने की कोशिश की। इस पर एसएसपी ने एएसपी सिटी पूर्वी हरीश कुमार को कार्रवाई के निर्देश दिए।
कप्तान का निर्देश मिलते ही हरीश कुमार ने मेजर कपिल का नंबर डायल किया। फोन पर बातचीत करके वह भी प्रभावित हो गए, लेकिन कपिल ने उनसे मोबाइल 500 रुपये का रीचार्ज कराने की मांग कर दी। इस पर एएसपी का माथा ठनका। मेजर से उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कपिल को कैंट कोतवाली बुलाया। वहां बातचीत शुरू की तो संदेह गहराने लगा। एएसपी ने मिलिट्री इंटेलीजेंस के मेजर डबास को बुला लिया। इसके बाद दोनों अधिकारियों ने कपिल से वार्ता शुरू की। उसने खुद को 96 बैच का मेजर बताया।
खास बात ये थी कि उसी मेजर डबास भी उसी बैच के हैं। उन्होंने कई सवाल किए। कपिल बडी सफाई से जवाब देता रहा। उसने यह भी बता डाला कि सेना के अधिकारी भी इंटरपोल में होते हैं। सवालों की बौछार होने पर कपिल का भांडा फूट गया। उसने खुलासा किया कि वह पुलिस अधिकारियों पर रौब गांठने के लिए नकली मेजर बना और लोगों को ठगी का शिकार बनाने लगा। राजधानी में मोटा हाथ मारने का इरादा था।

रेल से कट मरा एक चैम्पियन
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 7 अप्रैल -स्कूल में ऐसा क्या कह दिया गया कि ताइक्वांडो चैम्पियन ने खुदकुशी कर ली। बताया जा रहा है कि ताइक्वांडो चैम्पियन छात्र गौरव सिंह 11 वीं की परीक्षा में फेल हो गया था और स्कूल प्रशासन ने उसे स्कूल से निकालने की धमकी दे दी। उसी आहत होकर उसने ट्रेन कटकर जान दे दी। लखनऊ में छात्रों की खुदकुशी करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में तीन छात्रों ने भी आत्महत्या कर ली थी।

ताइक्वांडो की राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में तीन बार गोल्ड मेडल जीतने वाले गौरव परिजनों का आरोप है कि स्कूल में शिक्षक उस पर टयूशन पढने के लिए भी दबाव बनाते थे। स्कूल प्रबंधक राजीव तुली और प्रधानाध्यापिका शम्सा बेगम के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है।गोमतीनगर के खरगापुर के सरस्वतीपुरम निवासी आशा सिंह का बेटा गौरव (17) विराम खंड-5 के मार्डन एकेडमी इंटर कालेज में 11वीं कक्षा का छात्र था। शनिवार की शाम करीब 7.30 बजे वह घर से किसी को कुछ बताए बिना चला गया। तलाश करने के बाद परिजनों ने रात करीब 12 बजे गोमतीनगर थाने में उसकी गुमशुदगी दर्ज करा दी।
रविवार की सुबह 8 बजे परिजनों को सूचना मिली कि खरगापुर रेलवे ासिंग के पास एक किशोर का शव मिला है। घटनास्थल पर पहुंचे परिजनों ने मृतक की शिनाख्त गौरव के रूप में की। स्थिति यह थी कि काफी देर बाद तक कोई उसकी मां को सूचना देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
गौरव के मामा सुनील कुमार सिंह ने बताया कि वह कामर्स का छात्र था। 11वीं की परीक्षा में वह चार विषयों में फेल हो गया था। इस बात पर स्कूल की प्रधानाध्यापिका ने उसे बुलाकर खूब डांटा और स्कूल से निकालने की धमकी भी दी। उसके बाद जब स्कूल से घर लौटा तो काफी गुमसुम था। वह किसी से बात नहीं कर रहा था। फेल होने और स्कूल में अपमानित किए जाने के सदमे को वह बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने अपनी जान दे दी। 2 अप्रैल को उसका रिजल्ट निकला था।
घटना के बाद जब परिजनों ने स्कूल की प्रधानाध्यापिका शम्सा बेगम को गौरव के खुदकुशी करने की सूचना दी तो उन्होंने उसे पागल लडका बताकर फोन काट दिया। जब शम्सा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि गौरव सारे विषयों में फेल था। दो से ज्यादा विषयों में फेल होने वाले छात्रों की दोबारा परीक्षा नहीं होती है। विद्यालय प्रबंधन ने स्कूल से निकालने के लिए नहीं बल्कि 11वीं कक्षा में ही पढाई जारी रखने का प्रस्ताव दिया था। कहा कि उस पर ट्यूशन पढने के लिए भी कोई दबाव नहीं था। मार्डन एकेडमी इंटर कालेज ने खेल में अव्वल होने के कारण ही गौरव को अपने स्कूल में एडमिशन लेने के लिए बुलाया था।
प्रबंधतंत्र बिना फीस लिए गौरव को एडमिशन देने के लिए तैयार था, क्योंकि गौरव की प्रसिध्दि से स्कूल का 'गौरव' जुड़ रहा था। पर परीक्षा के बोझ ने गौरव के राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीतने का सपना पूरा नहीं होने दिया। बचपन से ताइक्वांडो के प्रति रुचि ने गौरव को इस खेल का माहिर खिलाडी बना दिया। 14 वर्ष की उम्र तक आते-आते उसके पास शील्ड, मेडल और सर्टीफिकेटों का ढेर लग गया। उसने तीन बार राज्यस्तरीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीते। कई समाचार पत्रों में उसके इंटरव्यू छपे। उसकी बढती प्रसिध्दि देख मार्डन एकेडमी इंटर कालेज के प्रबंधक ने उसके परिजनों से बात की। उन्होंने गौरव का एडमिशन उनके स्कूल में कराने का प्रस्ताव रखा। वे सत्र शुरू होने के बावजूद उसे बिना फीस लिए एडमीशन देने को तैयार थे। 8वीं कक्षा से परिजनों ने गौरव का एडमीशन मार्डन एकेडमी में करा दिया। अखबारों में जब भी गौरव का नाम छपता तो स्कूल को भी वाहवाही मिलती थी।
करीब तीन वर्ष पहले एक दैनिक समाचार पत्र को दिए गए इंटरव्यू में हम उम्र साथियों को हिम्मत न हारने की सीख देने वाला गौरव आखिर क्यों हिम्मत हार गया, यह सवाल उसके परिजनों और साथियों को परेशान कर रहा है। जून 2005 में पिता जगदीश सिंह की मौत के बाद वह अपनी मां का एकमात्र सहारा बचा था। उसके पिता ग्राम्य विकास विभाग से सहायक विकास अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। ऐसा नहीं है कि गौरव की योग्यता सिर्फ खेलने तक ही सीमित रही हो, हाईस्कूल तक की परीक्षाएं उसने अच्छे नंबरों से पास की थीं। ऐसा क्या दबाव या वजह रही कि दूसरों को हिम्मत रखने की सीख देने वाले गौरव की हिम्मत खुद जवाब दे गई।
वैष्णो देवी से उदास लौटे लालू
डेटलाइन इंडिया
जम्मू, 7 अप्रैल -माता वैष्णो देवी के दरबार में भी केंदीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव
ने अपनी चलानी चाही लेकिन माता के दरबार में उनकी एक नहीं चली और उन्हें मायूस होकर लौटना पडा। पुजारियों ने उनका मां की पिंडियों के सामने बने प्लेटफार्म पर बैठकर पूजा करने का अनुरोध ठुकरा दिया। इससे नाराज लालू ने सरकारी भोज भी नहीं किया और सिर्फ चाय पीकर ही लौट आए।
यात्रा के दौरान उनकी पत्नी राबडी देवी और बच्चे भी थे। इससे पहले रेलमंत्री ने जम्मू से काठगोदाम के लिए गरीब रथ को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। उन्होंने जम्मू-सुच्ची पिंड रेलवे लाइन विद्युतीकरण परियोजना का भी शिलान्यास किया।बोर्ड सूत्रों के मुताबिक पवित्र गुफा में पुजारियों के समक्ष उस समय अजीबोगरीब स्थित पैदा हो गई, जब लालू ने पिंडियों के समक्ष बैठ कर पूजा की इच्छा जताई। तब लालू को बताया गया कि अगर वह पिंडियों के समक्ष बैठते हैं तो उनके पैर पिंडियों के चबूतरे पर होंगे, जो वर्जित है।
इसके बाद लालू सामान्य दर्शन कर बाहर आ गए। इस संबंध में श्राइन बोर्ड प्रबंधन ने कहा कि रेल मंत्री की सुविधा के मद््देनजर आम भक्तों के लिए कुछ देर तक दर्शन रोके गए। एक आला अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि पिंडियों के सामने बैठकर पूजा का प्रावधान नहीं है। कोई भी इसकी इजाजत नहीं दे सकता। अलबत्ता आरती में शामिल होने की व्यवस्था है, जो बुकिंग पर निर्भर करता है।
कश्मीर में किशोरों की गिरोहों में भर्ती
डेटलाइन इंडिया
श्रीनगर, 7 अप्रैल -कलम पकडने वाले हाथों में बंदूके थमा कर अब घाटी में आतंकवादियों की संख्या को बढाया जा रहा है। आतंकी संगठन ऐसा घाटी में कम हो रहे आतंकवादियों की संख्या बढाने के लिए कर रहे हैं। आतंकी संगठनों ने कम उम्र बच्चों को लालच देकर उनके हाथ में बंदूक थमाकर अपने नापाक इरादों में कामयाब होना चाहते हैं। हालांकि ऐसी जानकारी मिलते ही सुरक्षा बलों ने उनके एक नापाक इरादे को चकनाचूर कर दिया।
आतंकी ट्रेनिंग लेने जा रहे अवंतीपोरा के तीन किशोरों को पुलिस ने दबोच लिया है।सुरक्षा बलों को दिन ब दिन मिलती कामयाबी और आतंकियों की घटती संख्या से घबरा कर संगठनों ने किशोरों को फंसाना शुरू कर दिया है। जानकारी के अनुसार कम उम्र युवक आतंकी ट्रेनिंग के लिए जाते समय पहली बार नहीं पकडे गए हैं। इतना जरूर है कि सालों बाद इस तरह की कोई घटना समाने आई है।
अवंतीपोरा के एसएचओ निसार अहमद ने बताया कि पुलिस ने सतूरा के ऊपर वस्तरवस जंगल से तीन किशोरों को गिरफ्तार किया। इनकी पहचान सीराज अहमद खान पुत्र बशीर अहमद खान, फिरदौस अहमद पंडित पुत्र मोहम्मद सुल्तान पंडित और तनवीर अहमद शेख पुत्र शाबान शेख सभी निवासी बडू अवंतीपोरा के रूप में हुई है। तीनों की उम्र 14 साल से कम है। इन लोगों ने पूछताछ में बताया कि अनंतनाग के नादिम ने बंदूक उठाने के लिए प्रेरित किया था। युवकों ने पूछताछ में बताया कि कुछ कारणों से पैसों की जरूरत थी और ऐसे भी बंदूक चलाना अच्छा लगता है।
नादिम को ही पता था कि इन लोगों को कहां जाना है और किससे मिलना है। उसी ने जंगल तक पहुंचाया था। हालांकि नादिम अभी पुलिस की पकड में नहीं आ सका है। एसएचओ ने बताया कि नादिम ने ही लडकों को बहला कर आतंकियों से मिलने के लिए राजी किया था। इन लोगों की उम्र ऐसी नहीं है जो सही और गलत का फैसला कर सकें। यही वजह थी कि नादिम लडकों को रजामंद करने में कामयाब रहा। पूछताछ के बाद तीनों लडकों को घर वालों के हवाले कर दिया गया है।
सुरक्षा बलों को बेशुमार कामयाबी मिली है। तीन दिन पहले पुलिस ने घाटी के सबसे बडे आतंकी संगठन हिज्ब की कमर तोड़ दी। पुलिस ने हिज्ब को वैचारिक मजबूती देने वाले और संगठन के प्रवक्ता जुनैदुल इस्लाम को दबोच लिया। इससे दो दिन पहले संगठन के टॉप आतंकी भी पुलिस के हत्थे चढ थे। उससे ठीक पहले हिज्ब का आईईडी मास्टर रईस काचरू भी सीआरपीफ के हत्थे चढ गया। पुलिस के अनुसार सिर्फ नार्थ कश्मीर में अभी हाल में हुए मुठभेड़ में करीब 12 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया है। इसके अलावा दूसरे आतंकी संगठनों को भी इस साल जबरदस्त झटका दिया गया है।
कश्मीर मे फिर बनने लगी फिल्में
डेटलाइन इंडिया
श्रीनगर, 7 अप्रैल -हिन्दुस्तान में स्वर्ग है तो वह कश्मीर मे है, कश्मीर में है। जीं हां हमारे ख़डी बोली के जन्मदाता और कवि आमिर खुसरो ने अपनी रचना मे लिखा है। ऐसा मुगल बादशाह शाहजहां ने कहा था। लेकिन समय बदला और यह स्वर्ग से सुन्दर शहर को आतंकवादियाें की नजर लगी। यहां आए दिन खून की होली खेली जाती थी। पूरी घाटी में दर्जनों की संख्या में लाशों को दफनाया जाता था। अंग्रेजो से जब देश आजाद हुआ तो कश्मीर में अमन चैन था। तब उस समय बॉलीबुड में कश्मीर सुंदरता का सुदर चित्रण किया जाता । लेकिन जैसे जैसे आतंकवादी गतिविधियों ने जोर पकडा तो यहां के नजारे कैमरे से दूर होते चले गए । लेकिन अब धीरे धीरे फिर वह समय लौट रहा है।
बॉलीवुड की गोल्डन जुबली फिल्मों की लिस्ट तैयार की जाए तो दर्जनों ऐसी फिल्में सामने आएंगी, जिसकी शूटिंग धरती के स्वर्ग कश्मीर में हुई है। चाहे जुबली स्टार राजेंद्र कुमार की आरजू हो, शम्मी कपूर का जंगली, शशि कपूर का जब जब फूल खिले या फिर शम्मी कपूर की ही कश्मीर की कली हो। घाटी में कुछ साल पहले हर समय लाइट... कैमरा... एक्शन गूंजता रहता था। अचानक गरजी बंदूक के सामने ये आवाजें दब सी गई।
अब माहौल बदल रहा है। इन दिनों शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को अवंतीपोरा के खेतों में नाचते देखा जा रहा है ये बात कल्पना से बाहर हो गई थी कि आतंकियों का ग़ढ समझे जाने वाले अवंतीपोरा में किसी फिल्म की शूटिंग भी हो सकती है। उस समय सैकडों लोग राजमार्ग पर जमा हो गए, जिसे हटाने के लिए पुलिस को बल का प्रयोग करना पडा। इलाके के लोग अपने खेत खलिहान में सितारों को देख हैरत में पड गए थे। नई पीढ़ी के सितारे एक बार फिर धरती के स्वर्ग की तरफ रुख करने लगे हैं।
अमिताभ बच्चन और राखी की फिल्म बेमिसाल की शूटिंग पहलगाम में हुई थी। यहीं पर राजेश खन्ना की रोटी बनी थी। 1984 में पहलगाम से कुछ दूर स्थित घाटी में सनी देओल की पहली फिल्म बेताब बनी थी। तभी उस घाटी को बेताब वैली के नाम से पुकारा जाता है। 1989 के बाद कश्मीर में कहीं भी फिल्म की शूटिंग नहीं हुई। इस खाई को मशहूर कैमरा मैन संतोष सिवन ने पाटा और 22 नवंबर 2007 को एक मराठी फिल्म दास्तान की शूटिंग शुरू की, जो करीब 15 दिनों तक चली।
इस दौरान पहलगाम की वादियों ने सालों बाद अपने चहेतों के दर्शन किए। इस फिल्म की शूटिंग के लिए अनुपम खेर, राहुल खन्ना, टाम अल्टर और विक्टर बनर्जी पहलगाम आए थे।
पर्यटन विभाग के निदेशक फारूक अहमद शाह ने बताया कि कश्मीर हर लिहाज से फिल्म की शूटिंग के लिए बेहतर है। मुंबई के लोग स्विटजरलैंड जाते हैं। वहां पैसा पानी की तरह बहाया जाता है। जबकि कश्मीर में कम बजट में उनको वैसा ही लोकेशन मिल जाएगा। एक बार मशहूर निर्माता निर्देशक महेश भट््ट ने अफरवट से गंडोला की सवारी करते हुए कहा कि था कि हम लोग बेकार स्विटजरलैंड जाते हैं। यहां का लोकेशन उससे बेहतर है। शाह ने कहा कि यहां आने वाले फिल्मकारों को सारी सुविधा दी जाएगी।

हिमाचल में ही टिके रहेंगे वीरभद्र
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 7 अप्रैल -हिमाचल के राजा और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र ने अपने विरोधियों पर निशाना साधते हुए कहा कि वह हिमाचल छोड़ कर केंद्र की राजनीति में नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनकी पार्टी के ही उन्हें हिमाचल की राजनीति से बाहर देखना चाहते हैं उनकी ये मंशा कभी पूरी नहीं हो पाएगी। श्री वीर भद्र ने कहा कि लोकसभा चुनाव लडने का उनका कोई विचार नहीं है और न ही पार्टी की ओर से ऐसे कोई निर्देश या संकेत हैं।
वीरभद्र ने कहा कि जैसा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कहेंगी। कुछ नेताओं की ख्वाहिश या सुविधा के लिए वह दिल्ली जाने वाले नहीं। विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया, लेकिन भाजपा की 'फौज' के सामने वह अकेले पड गए। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि लोकसभा चुनाव लडने का उनका कोई इरादा नहीं है।
उन्होंने कहा कि उन्हें प्रदेश की राजनीति से बाहर करने को प्रयासरत कांग्रेस के ही कुछ नेता इस तरह की चर्चा कर रहे हैं। कभी मेरे लोकसभा चुनाव लडने का शगूफा छोड़ा जाता है, तो कभी राज्यपाल बनाने का। उन्होंने कहा कि चंद स्थानीय नेताओें की ख्वाहिश और सुविधा के लिए वह प्रदेश छोड़ने वाले नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पार्टी आलाकमान की ओर से उन्हें लोकसभा चुनाव को लेकर कोई निर्देश नहीं मिले हैं। पार्टी के कुछ लोगों की ख्वाहिश हो सकती है कि वह प्रदेश की राजनीति में न रहें। महज ऐसे लोगों को खुश करने के लिए वह दिल्ली नहीं जा सकते। उनके अनुसार वह पार्टी हित और सोनिया गांधी के कहने पर ही कोई कदम उठाएंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री का कहना है कि प्रदेश के कुछ नेता पहले भी पार्टी आलाकमान के समक्ष प्रदेश की गलत स्थिति पेश करते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत को सुनिश्चित करने का उन्होंने पूरा प्रयास किया, लेकिन वह भाजपा की फौज के सामने अकेले पड गए। विरोधियों की अपेक्षा केंद्र से उनकी पार्टी के कम नेता प्रचार के लिए हिमाचल आए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी एकजुट है।
नाचते हुए डॉक्टरों में खून खराबा
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चंडीग़ढ, 7 अप्रैल -रेजीडेंट डॉक्टरों ने पीकर जो ड्रामा किया उससे पूरा पीजीआई खासा चर्चा में बना हुआ है। जिस पीजीआई में पूरे देश के काफी गंभीर हालत में मरीज भर्ती होते है। वहीं के डॉक्टरों और स्टॉफ ने मरीजों को अपने हाल पर छोड़कर 'लेट नाइट डीजे पार्टी का आयोजन किया गया जिसमें जमकर हंगामा हुआ। पार्टी में डॉक्टर और टेक्नीशियन आपस में भिड गए। मामला हाथापाई और गाली-गलौज तक पहुंच गया। बाद में पीजीआई प्रशासन को हस्तक्षेप करना पडा तब जाकर हंगामा शांत हुआ और पार्टी दोबारा शुरू हुई।
पीजीआई के स्प्रिंग फेस्ट में हंगामे की एक ही दिन में यह दूसरी घटना थी।स्प्रिंग फेस्ट में रात को कैंपस में ही बने अपर कैफेटेरिया में लेट नाइट डीजे पार्टी का आयोजन होता है। पार्टी में रेजीडेंट डॉक्टर समेत संस्थान के सभी विभागों के विद्यार्थी हिस्सा लेते हैं। शनिवार देर रात करीब सवा एक बजे जब पार्टी चरम पर थी तब रेडियोथेरेपी विभाग के टेक्नीशियन कंचन तथा कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के लैब टेक्नीशियन गोस्वामी यहां पहुंचे। कंचन ने बताया कि जब वे और उनका दोस्त गोस्वामी डीजे फ्लोर पर चढने लगे तो वहां मौजूद डेंटल विभाग के सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर ने उन लोगों को चढने नहीं दिया।
इतना ही नहीं डॉक्टर ने दोनों को कालर पकडकर धक्का दे दिया। मामला बढता देख आयोजकों ने बीच बचाव करना शुरू कर दिया। बात बनती न देख पीजीआई प्रशासन को रात में ही सूचना दी गई। पीजीआई के सुरक्षाकर्मियों समेत तमाम लोग मौके पर पहुंचे। इस बारे में पीजीआई के कल्चरल कमेटी एवं पल्मोनरी विभाग के प्रमुख डॉ. एसके जिंदल ने बताया कि घटना शनिवार देर रात को हुई थी। दोनों पक्षों ने आपस में समझौता कर लिया है। उधर, सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर से जब इस संबंध में बात करने की कोशिश की गई तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
नर्सिंग इंस्टीटयूट की छात्राएं एवं फिजियोथेरेपी विभाग के छात्र भी आपस में भिड गए थे। दोनों पक्षों में जमकर हंगामा हुआ। इस हंगामे की वजह फिजियोथेरेपी विभाग के छात्रों के चरित्र पर कमेंट किया जाना था। छात्राओं ने टि््विस्टेड मूवी के एक दृश्य में दर्शाया कि फिजियोथरेपी विभाग के छात्र पढाई के दौरान प्यार किसी और से करते हैं और शादी किसी और से करते हैं। बस इसी को लेकर बवाल मचा था। मंजू वाडवलकर, प्रवक्ता, पीजीआई ने बताया कि पीजीआई प्रशासन से देर रात होने वाली पार्टी की इजाजत ली जाती है। दो तारीख से शुरू हुए स्प्रिंग फेस्ट में रोज ही कोई न कोई इवेंट होता है। इसमें सुरक्षा व्यवस्था भी पुख्ता होती है।
सुरों के शाहशाह की समाधि अभी नहीं
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वाराणसी, 7 अप्रैल -
फातमान स्थित दरगाह में भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां को दफनाए गए स्थान पर मकबरा बनाने का मामला फिर अधर मे अटक गया है। इस बार मकबरा बनाने वाली कंपनी ने ही मकबरा बनाने से मना कर दिया है उसने रकम वापसी के लिए भी मेयर को पत्र लिखा है। आपकों बता दे कि फातमान स्थित दरगाह में भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां की मजार बनाने के लिए अभी शिया-सुन्नी वक्फ बोर्ड का आपसी विवाद सुलझा ही नही हैं।
मकबरा अवस्थापना निधि से बनना है। इस निधि में पर्याप्त धन है फिर भी काम शुरू नहीं हो रहा है।आर्टिस्टिक विजन के अरुण सिंह का कहना है कि काम शुरू करने के लिए धरोहर राशि जमा किए छह महीने से अधिक हो गए थे फिर भी काम शुरू नहीं हुआ तो हाथ खींचने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। योजना के मुताबिक 21 फुट ऊंची मजार पर के प्रवेश द्वार पर धातु की शहनाई बनाई जाएगी।
उधर, नगर निगम के मुख्य अभियंता रामकेवल प्रसाद का कहना है कि धरोहर राशि वापस करने का आवेदन मिला है। मुख्य अभियंता का कहना है कि दोनों पक्षों के विवाद को देखते हुए इस संबंध में फाइल महापौर को भेजी गई है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रदेश अध्यक्ष ने हाल ही में बनारस दौरे के समय कहा था कि आसपास के चीजों को कोई नुकसान न हो तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। इस संबंध में नगर निगम को बोर्ड से अनुरोध करना था, जो अब तक नहीं किया गया। सुन्नी वक्फ बोर्ड के जिलाध्यक्ष शकील अहमद बबलू भी कहते हैं कि नगर निगम की ओर से पहल न करने के कारण ही मामला लटका हुआ है।
शादी की जिद में अश्लीलता का नाटक
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आगरा, 7 अप्रैल -पहले दोस्त बनाया और फिर पेय पदार्थ में नशीला पदार्थ मिलाकर उसकी अश्लील बीडियो बनाकर युवती और उसके परिवार को करने लगा ब्लैकमेल। पीड़िता पुलिस में शिकायत भी की लेकिन पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं । लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और कोर्ट में गई, जिसके आदेश के बाद पुलिस ने युवक के खिलाफ आईटी एक्ट में मामला दर्ज कर लिया है।

शातिर चाहता है कि युवती से उसका विवाह हो जाए। इसीलिए जहां भी युवती के परिजन रिश्ता तय करते शातिर उसे अश्लील क्लिपिंग दिखा कर तुड़वा देता। इस बार भी उसने ऐसा ही किया, युवती का शादी तय हो गई थी और माह के अंतिम सप्ताह में बारात आनी थी। इसे शातिर ने तुड़वा दिया।न्यू आगरा थाना क्षेत्र निवासी युवती के पिता ने एक माह पहले इस संबंध में थाना छत्ता में शिकायत की थी। पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले मामले की जांच करना उचित समझा। करीब एक माह बाद भी जब छत्ता पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया तो पीड़िता के पिता ने कोर्ट की शरण ली। कोर्ट के आदेश पर शनिवार को थाना छत्ता ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस की मानें तो आरोपी युवक शातिर है। उसने युवती की अश्लील क्लिपिंग खींची है। छत्ता पुलिस ने युवती के पिता की तहरीर पर आरोपी प्रेम कुमार उर्फ छोटू पुत्र कैलाशी निवासी नाला भैरों चंदा पान वाली गली थाना छत्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।
युवती के पिता ने तहरीर में लिखा कि उसके पुत्र बल्केश्वर स्थित कालेज में 11 वीं की छात्रा थी। उसके साथ पढने वाली दो सहेलियों ने आरोपी का परिचय उनकी पुत्री से कराया था। उसी दौरान छोटू ने पुत्री का मोबाइल नंबर ले लिया। इसके बाद उसने पुत्री से मोबाइल पर वार्ता करना शुरू कर दिया। शातिर ने दोस्ती करके उनकी बेटी को सेंट जोंस कालेज के समीप अपने दोस्त एस कुमार के घर बुलाया। जहां उसे कोल्ड ड्रिंक में धोखे से नशीला पदार्थ पिलाकर उसकी अश्लील सीडी बनाई गई।
उन्होंने लिखा कि इसके बाद वह दबाव में उसे कलेक्ट्रेट ले गया, जहां वकील से तैयार कराए कागजों पर उनकी बेटी के हस्ताक्षर भी कराए। इतना ही नहीं पुत्री की सहेलियों के घर भी मोबाइल से अश्लील क्लिपिंग बनाई गई। युवती के पिता ने लिखा कि इसका उनको पता ही नहीं चला। जब उन्होंने बेटी का रिश्ता तय करना शुरू किया तो शातिर आरोपी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। उसने बनाई सीडी को अपने दोस्तों में बांट दिया और रिश्तेदारों को उसे दिखाना शुरू कर दिया।
आरोपी का कहना था कि युवती से उसकी शादी कराई जाए। उन्होंने लिखा कि हाल ही में उन्होंने अपनी बेटी का रिश्ता मथुरा से तय किया था। गोद भराई वाले दिन शातिर ने मंगेतर के भाई से उसका मोबाइल नंबर ले लिया। इसके बाद उसके फोन पर पहले तो धमकी दी, फिर अश्लील सीडी की जानकारी दे दी। इस पर भी जब बात नहीं बनी तो शातिर मथुरा में युवती के मंगेतर के घर चला गया, जहां उसने युवती की अश्लील क्लिपिंग को दिखाकर रिश्ता तुड़वा दिया। युवती के पिता ने लिखा कि उनकी पुत्री की शादी अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में होनी तय हुई थी। युवती के पिता का कहना है कि अब शातिर पूरी तरह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया है। पुलिस ने आरोपी की तलाश शुरू कर दी है।

नशे की तस्करी के लिए मशहूर हिमाचल
डेटलाइन इंडिया
कुल्लू, 7 अप्रैल -
कुल्लत प्रदेश में 'काला सोना' का सालाना अरबाें रुपये का कारोबार होता है। इंटरनेशनल मार्केट में उत्तम किस्म की चरस की कीमत 20 लाख रुपये प्रति किलो है। गोरखधंधों के मास्टर माइंड बाहरी राज्यों से धंधों का संचालन कर रहे हैं।
उन्होंने स्थानीय लोगों को रिटेलर बना रखा है। ऊंची पहुंच वाले और विदेशी पर्यटक भी सैर-सपाटे के बहाने यहां ड्रग्स का जाल बिछा रहे हैं। खुफिया सूत्रों की मानें तो चरस तस्करी के केवल दस प्रतिशत मामले ही पुलिस के हत्थे चढते हैं। राज्य से बाहर उजागर हुए चरस के मामले स्पष्ट करते हैं कि ड्रग्स का कारोबार देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों तक चल रहा है। हर साल पुलिस करीब क्विंटल चरस बरामद करती है, जिसकी कीमत करोड़ों रुपये में है। पुलिस से बच निकलने वाले लोगों की संख्या इससे कहीं अधिक है। गोवा, दिल्ली जैसे शहरों में चरस की अच्छी कीमत है।
कुल्लू पुलिस ने पिछले सत्रह वर्षों में करीब 17 क्विंटल चरस पकडी है। काले सोने के अलावा स्मैक, अफीम, गांजा, ब्राउन शूगर और एलएसडी के सौदागर भी पांव पसारने लगे हैं। खुफिया सूत्रों के मुताबिक चरस के अलावा अन्य ड्रग्स का कारोबार अरबों रुपये में पहुंच रहा है। चरस को स्टिल की शक्ल देकर तो कभी मूर्तियों में डालकर तस्करी के तरीके अपनाए जा रहे हैं। अखरोट और नारियल को काटकर उसके भीतर चरस तस्करी के मामले पुलिस ने उजागर किए हैं। स्मैक और एलएसडी जैसे महंगे और घातक ड्रग्स भी देवभूमि में फैलाए जा रहे हैं। चरस तस्करों में विदेशी, नेपाली और बाहरी राज्यों के लोग शामिल हैं। अब तक सीआईडी और जिला पुलिस ने दो सौ से अधिक विदेशी सैलानियों को ड्रग्स के साथ दबोचा है।
पुलिस अधीक्षक जगत राम के अनुसार चरस तस्करी में विदेशियों और दूसरे राज्यों के लोग ही मास्टर माइंड हैं। उन्होंने कहा कि एक किलो चरस की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 20 लाख रुपये तक है। इस धंधे से जुड़े कुछ प्रतिशत लोग ही पुलिस के हत्थे चढते हैं। पुलिस तस्करों पर कडी नजर रखे हुए है। चरस तस्करी को रोकने में पुलिस की पकड कमजोर पडती नजर आ रही है। पिछले तीन सालों में पुलिस द्वारा बरामद चरस की मात्रा घटती जा रही है। 2004 में 160.790, 2005 में 123. 680, 2006 में 105.652, 2007 में 66. 489 किलोग्राम चरस बरामद हुई। एसपी जगत राम कहते हैं कि 'भांग उखाडो' अभियान की कामयाबी से तस्करी कम होती प्रतीत हो रही है। इस साल ड्रग्स का कारोबार शुरुआती दौर में फलने फूलने लगा है। एक जनवरी 2008 से 30 मार्च तक जिला पुलिस ने 32 किलोग्राम चरस बरामद की है। चरस के 23 मामलों में 26 लोग दबोचे गए। इनमें से 14 हरियाणा के हैं। एक विदेशी को भी दबोचा गया है। आनी क्षेत्र में तीन तस्करों से हाल ही में 17 किलोग्राम चरस बरामद हुई है।
पुलिस ने पिछले 17 सालों में करीब 17 क्विंटल चरस पकडी है तथा दो सौ विदेशियों समेत करीब छह सौ लोगों को गिरफ्तार किया गया। 1990 में 17.160, 1991 में 12.900, 1992 में 14.622, 1993 में 7.045, 1994 में 15.655, 1995 में 108, 1996 में 67.330, 1997 में 22. 125, 1998 में 39.105, 1999 में 28.185, 2000 में 193.870, 2001 में 106.435, 2002 में 385.200, 2003 में 146.346, 2004 में 160.790, 2005 में 123. 680, 2006 में 105.652, जबकि 2007 में 66.489 किलोग्राम चरस बरामद हुई।
कश्मीर पुलिस का सिपाही क्या डॉन है?
डेटलाइन इंडिया
जम्मू, 7 अप्रैल -शिमला पुलिस ने एक हत्याकांड की गुत्थियां सुलझायी चाही तो पता चला कि कश्मीर पुलिस का एक सिपाही दरअसल अंडरवर्ल्ड का छोटा मोटा डॉन है । इस सिपाही को लेकर हिमाचल और कश्मीर पुलिस के बीच तन गई है।
शिमला हत्याकांड का तीसरा आरोपी अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। उसे पकडने के लिए शिमला पुलिस अब दूसरे आरोपी को जम्मू लेकर आई है। उसकी निशानदेही पर शिमला पुलिस जम्मू में छापामारी करेगी।तीन हत्याओं के बाद परेशानी में पडी शिमला पुलिस इस केस को हल करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। शिमला पुलिस के पास इस समय सिर्फ बंटी है, जिसे लेकर वह जम्मू पहुंच गई है और उसकी निशानदेही पर वह छापामारी करेगी।
बताया जाता है कि तीन हत्याओं के बाद शिमला पुलिस के रोंगटे ख़डे हो गए हैं, क्योंकि हत्याओं को देखते हुए लगता है कि गैंगवार शुरू हो चुका है। शिमला में ऐसी पहली घटना सामने आई है जिसमें गैंगवार के चलते तीन शव बरामद हुए हैं जिनमें से दो युवक जम्मू के हैं और एक युवती जिसके बारे में अभी तक पुलिस असमंजस में है कि वह मोनिका है या कोई और। इस समय शिमला पुलिस के दो सब इंस्पेक्टर, दो एएसआई, दो हवलदार तथा तीन सिपाही बंटी को लेकर जम्मू में डेरा डाले हुए हैं जो इस सारे मामले में जम्मू पुलिस के साथ शालू की गिरफ्तारी के लिए सुराग जुटाने की कोशिश करेंगे।
बताया जाता है कि बंटी के साथ शिमला पुलिस गांधी नगर थाने में है और वहीं पूछताछ की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि छानबीन में सामने आया है कि हत्याकांड में इस्तेमाल हुई एक गाडी जम्मू से बाहर भेज दिया गया है। इस समय हत्याकांड में इस्तेमाल हुई दो गाड़ियों में से एक ही जम्मू पुलिस के पास है और उसमें गोलियों के दो निशान तथा खून से लथपथ सीट कभर मिले हैं। सूत्रों का कहना है कि शिमला पुलिस जम्मू पुलिस से कह रही है कि उन्हें गाडी दी जाए ताकि वह उसमें मिले खून की जांच करवाए और पता लगा सके कि खून किसका है क्योंकि शिमला पुलिस को शक है कि वह खून मोनिका का हो सकता है जिसका शव कांग़डा से मिला था। हालांकि मोनिका के परिजनों को जब पुलिस थाने में लाकर शव का फोटो दिखाया गया था तो उन्होंने उसे मोनिका मानने से इंकार कर दिया था।
सूत्रों का कहना है कि शिमला पुलिस मिंटा को साथ लेने के लिए जम्मू में डेरा डाले हुए है लेकिन जम्मू पुलिस मिंटा पर जम्मू में चल रहे मामलों को सुलझाने में लगी हुई है जिनमें वह पुलिस से फरार बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि पुलिस शहर में कई स्थानों पर छापे मार सकती है जिनमें दोनों के पुराने साथी भी शामिल हैं। जानकारी के अनुसार इन घटनाओं के होने से शिमला पुलिस सकते में है और शिमला पुलिस पर दबाव है कि वह इन मामलों को जल्द से जल्द सुलझाए। सूत्रों का कहना है कि इस प्रकरण से जुड़े साक्ष्यों को एकत्रित करने के लिए आरोपी को जम्मू लाया गया है। जम्मू के अतिरिक्त कठुआ में भी जांच की जाएगी। आरोपी के जम्मू स्थित घर की भी तलाशी जांच टीम करेगी। बंटी 10 अप्रैल तक पुलिस रिमांड पर है।
शिमला हत्याकांड में शामिल जितेंद्र सिंह उर्फ शालू पुलिस वाला है या गैंगस्टर इसके बारे में उधेड़बुन बनी हुई है क्योंकि उसके खिलाफ कई पुलिस थानों में आपराधिक मामले भी दर्ज हैं। हाल ही में उसने मार्च महीने में विजयपुर थाना अंतर्गत क्षेत्र में एक युवक पर कुछ साथियों के साथ तेजधार हथियारों से जानलेवा हमला किया था। हमले में युवक गम्भीर रूप से घायल हो गया था और पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। लेकिन बावजूद इसके वह आज भी पुलिस में कर्मचारी है। पहला मामला सिटी थाना जम्मू में एफआईआर नंबर 1698 के तहत 324.34 आरपीसी के तहत। दूसरा मामला पीएस सिटी जम्मू में एफआईआर नंबर 6601 में 353 आरपीसी के तहत। तीसरा मामला पीएस पक्का डंगा में एफआईआर नंबर 13206 के तहत। हत्या के प्रयास का चौथा मामला विजयपुर थाना में दर्ज। पांचवां मामला एफआईआर नंबर 12305 के तहत धारा 452, 427, 425 में विजयपुर में दर्ज। छठा मामला एफआईआर नंबर के तहत 6306 में विजयपुर में दर्ज। जानकारी के अनुसार उस पर कोई भी मामला हत्या का प्रयास करने से कम नहीं है।

बहुत दुर्गति होने वाली है मुशर्रफ की
अक्षय कुमार
आने वाले दिनों में पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ नाम के राष्ट्रपति रह जाएंगे, क्योंकि सत्तारूढ गठबंधन मुशर्रफ की शक्तियों में कटौती करने की योजना बना रहा है। जल्द ही इसके लिए संविधान संशोधन किए जाएंगे। पाकिस्तानी संसद में इन संशोधनों के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा। अगर सत्तारूढ गठबंधन ऐसा करने में सफल रहा तो मुशर्रफ से संसद को बर्खास्त करने और देश में इमरजेंसी लगाने जैसी महत्वपूर्ण शक्तियां छिन जाएंगी। इसके अलावा इन संशोधनों के जरिए जजों को नियुक्त करने की प्रयिा में बदलाव किया जाएगा और यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रांतों की स्वायत्तता का दुरुपयोग कोई न कर सके।
डॉन अखबार की रिपोर्ट के अनुसार सत्तारूढ गठबंधन संविधान के अनुच्छेद 58 (2 बी) के तहत मुशर्रफ की शक्तियां छीनेगा। यह शक्तियां संसद में समाहित कर दी जाएंगी। असेंबली अनुच्छेद 58 (2 बी) के तहत प्रांत में गवर्नर और सेना प्रमुख को नियुक्त कर सकेगी। सूत्रों के अनुसार प्रस्तावित संशोधन संविधान में 18वां परिवर्तन होगा, जिसके माध्यम से राष्ट्रपति पद में निहित शक्तियां छीनकर इस पद को बिना शक्तियों का (प्रतीक) बना दिया जाएगा। सत्तारूढ गठबंधन में शामिल पाकिस्तान मुसलिम लीग - नवाज के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अगर मुशर्रफ की शक्तियां छिन जाएंगी तो उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी।
उन्होंने कहा कि वह मुशर्रफ के साथ काम कर सकते हैं, यदि वह संसद के मामले में हस्तक्षेप न करें। पीएमएल-एन सरकार में शामिल एक प्रमुख गठबंधन है और सरकार पर बर्खास्त जजों की बहाली और मुशर्रफ को हटाने के लिए लगातार दबाव बनाता रहा है। सूत्रों के अनुसार बर्खास्त जजों को संसद में प्रस्ताव लाकर फिर से बहाल किया जा सकता है और अगर जरूरी होगा तो प्रधानमंत्री भी इस मामले में शासकीय आदेश जारी कर सकते हैं। यह सारे संशोधन 2006 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुसलिम लीग - एन द्वारा हस्ताक्षर किए गए एक चार्टर में उल्लिखित शर्तों के ही तहत किए जाएंगे। बहरहाल सत्तारूढ दलों के गठबंधन द्वारा चलाई गई इस नई मुहिम से आने वाले दिनों में राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मुश्किलें काफी बढ सकती हैं।
पाकिस्तान की गठबंधन सरकार के मंत्री राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से मिलने से कतरा रहा हैं। इसीके चलते मुशर्रफ और उनके सहयोगियों के पास काफी कम काम रह रहा है। राष्ट्रपति के रूप में कई प्रमुख शक्तियां अपने पास रखने वाले मुशर्रफ इससे पहले की सरकारों के साथ अक्सर काफी मिलजुल कर काम करते रहे हैं। लेकिन गिलानी सरकार के मंत्री मुशर्रफ को भाव नहीं दे कहे हैं। इन मंत्रियों ने शपथ समारोह में भी मुशर्रफ के विरोध में बांह पर काली पट््टी बांध रखी थी, हालांकि उन्हें शपथ राष्ट्रपति मुशर्रफ ने ही दिलाई थी।
प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने प्रधानमंत्री का पद संभालते ही कहा था कि वह राष्ट्रपति मुशर्रफ के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं, फिर भी उनके मंत्री राष्ट्रपति से कतरा रहे हैं। दि न्यूज अखबार ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के हवाले से लिखा है कि पार्टी के नेताओं और मंत्रियों ने मुशर्रफ से मिलने पर अघोषित प्रतिबंध लगा रखा है। खाली वही मंत्री मुशर्रफ से मिल रहे हैं प्रोटोकॉल के अनुसार जिनकी उपस्थिति जरूरी होती है।
प्रधानमंत्री गिलानी ने भी शपथ लेने के बाद केवल एक बार राष्ट्रपति मुशर्रफ के साथ बैठक की है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी अभी तक मुशर्रफ से नहीं मिले हैं और न ही उनकी निकट भविष्य में उनसे मिलने की कोई योजना है। सत्तारूढ गठबंधन में शामिल दूसरे महत्वपूर्ण दल पीएमएल-एन के अध्यक्ष नवाज शरीफ मुलाकात तो दूर हाल ही में मुशर्रफ से कह चुके हैं कि वह जल्द ही राष्ट्रपति पद भी छोड़ दें। शरीफ मुशर्रफ के धुर विरोधी माने जाते हैं, उनकी सरकार का 1999 में तख्तापलट करके ही मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्जा जमाया था।
पाकिस्तान नेशनल असेंबली की पहली महिला स्पीकर फहमिदा मिर्जा ने पद संभालने के बाद पहली बार चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि यदि सांसद चाहे तो मौजूदा राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को हटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सभी सांसदों को एकजुट होने की जरूरत नहीं है, सदन के दो तिहाई सांसद ही महाभियोग चलाकर मुशर्रफ को हटा सकते हैं। फहमिदा ने पाक के प्रमुख दैनिक 'डेली टाइम्स' को दिए एक इंटरव्यू में ये बातें कहीं।
उन्होंने कहा कि मैं सभी पहलुओं को संविधान के दायरे में रख कर देखती हूं क्योंकि अब मैं किसी राजनीतिक पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हूं बल्कि संवैधानिक निकाय नेशनल असेंबली का हिस्सा हूं।' देश की संसद सर्वोच्च है या राष्ट्रपति, के जवाब में उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 58 (2 बी) के तहत संसद को भंग करने का अधिकार है। लेकिन उन्होंने संकेत दिया कि इस अनुच्छेद के जरिए पाकिस्तान के लोकतंत्र के साथ बार-बार खिलवाड हुआ है और यह अनुच्छेद विवाद का विषय बना हुआ है।उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में संसद का स्थान सर्वोपरि होना चाहिए। संसद को मजबूत स्थिति में कैसे लाया जाए , इस सवाल का जवाब देते हुए मिर्जा ने कहा कि सभी राष्ट्रीय मुद््दों पर संसद में विचार विमर्श होना चाहिए। इसके लिए किसी दूसरी संस्थाओं की मदद न ली जाए। इस प्रयिा के जरिए संसद की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। उन्होंने बताया अब समय आ चुका है कि संसद को मजबूत बनाया जाए।
उन्होंने नई संसद के सांसदों से उम्मीद जताते हुए कहा कि उन्हें पार्टी से ऊपर उठकर संसद की गरिमा और सर्वोच्चता का ख्याल रखते हुए काम करना चाहिए। गौरतलब है कि आम चुनाव में मुशर्रफ समर्थित पार्टी की हार के बाद उन पर महाभियोग चलाए जाने का दबाव बढता जा रहा है। उन्हें राष्ट्रपति पद से हटाए जाने को लेकर नई गठबंधन सरकार में शामिल देश की दूसरी सबसे बडी पार्टी 'पाकिस्तान मुसलिम लीग-एन' ने मुहिम चला रखी है। पार्टी के गुस्से का आलम यह है कि कुछ सदस्यों ने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेते वक्त मुशर्रफ के विरोध में बांह में काली पट््टी बांध रखी थी।
पाकिस्तान में नई सरकार के गठन के बाद राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मुश्किलें थमने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं क्योंकि नई सरकार ने कहा है कि पिछले साल मुशर्रफ द््वारा लगाई गई इमेरजेंसी के दौरान उन्होंने संविधान के खिलाफ जो कडे कदम उठाए थे उन्हें कहीं से भी संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है और अब वक्त आ गया है जब उन फैसलों की समीक्षा की जाए।
नए कानून मंत्री फारूक नाइक ने कहा कि किसी भी अकेले इंसान को यह अधिकार नहीं है कि वह संविधान और संसद के किसी भी संशोधन पर अकेले निर्णय ले सके क्योंकि इसके लिए उसके पास दो तिहाई बहुमत होना चाहिए। नाइक ने कहा कि नई सरकार मुशर्रफ द््वारा अपदस्थ जजों को जिनमें पूर्व चीफ जस्टिस इख्तियार मोहम्मद चौधरी शामिल हैं, को 30 दिनों के भीतर उनका पदभार देते हुए उनकी जिम्मेदारी उन्हें सौंप देगा। नाइक ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अपदस्थ जजों की तीस दिनों की यह गिनती 31 मार्च से शुरू हो चुकी है। हो सकता है कि नए जजों की बहाली के संदर्भ में सरकार जल्द ही कोई खुशखबरी सुनाएं।
नया नहीं है तिब्बतियों पर जुल्म
विजय आर्य
मार्च के महीने में तिब्बती, सारी दुनिया में जहां कहीं भी शरणार्थी की जिंदगी बिता रहे हैं, अपने देश पर चीनी आधिपत्य से मुक्ति और आजादी के लिए धरना-प्रदर्शन करते हैं। हाल के दिनों में तिब्बत की राजधानी ल्हासा में तिब्बतियों ने सडकों पर जोरदार प्रदर्शन और प्रतिरोध किए। जो जानकारियां अभी तक मिली हैं, चीनी सेना ने बेरहमी के साथ एक बार फिर इस संघर्ष को दबाने की कोशिश की है। प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चलाई गईं और काफी संख्या में लोगों के मरने की खबरें भी हैं। चीनी सेना ने कई मुहल्लों में कर्फ्यू लगा दिया है और बिजली-पानी तक काट दिया है। इस संघर्ष और दमन की पूरी जानकारी मिलने में तो समय लगेगा, फिर भी इतना साबित हो गया है कि तिब्बत में स्वतंत्रता की वह आग बुझी नहीं है, जिसका चीनी सरकार दावा करती रही है। बीस साल पहले भी ल्हासा की सडकों पर ऐसा संघर्ष हुआ था।
तब भी चीनी सेना ने दमन का च काफी लंबे समय तक चलाया था। इस बार जो दमन हुआ है, उसकी खबरें और चित्र बहुत समय से मीडिया से प्राप्त हो रहे हैं और उस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतियिाएं भी आने लगी हैं। तिब्बतियों के धर्मगुरु और भारत में निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रमुख दलाई लामा ने चीनी दमन की तीखी निंदा की है। उनके साथ ही यूरोप के कई देशों समेत हमारे देश में जॉर्ज फर्नाडिंस सरीखे कुछ साहसी नेताओं ने भी चीन के इस कदम की आलोचना की है। लेकिन कुछ समय पूर्व जब धर्मशाला से तिब्बतियों ने संप्रभु तिब्बत के लिए जुलूस निकाला, तो उन्हें रोका गया और पुलिस ने उनके साथ निर्ममतापूर्वक व्यवहार किया
तिब्बतियों के साथ हमारी पुलिस का यह व्यवहार भारतीय जनता को भी अच्छा नहीं लगता। ऐसे व्यवहार केबावजूद तिब्बती भारत के विरुध्द कुछ भी नहीं बोलते। ऐसा वे शायद अपनी मजबूरी के कारण ही करते हैं।
इधर हमारे यहां चिंता की बात यह हुई है कि तिब्बतियों के मुक्ति संग्राम को जनता और संसद का जो समर्थन मिलता था, वह अब लगभग समाप्त हो गया है। पहले तिब्बतियों के प्रदर्शनों में भारतीय भी शामिल होते थे, लेकिन अब ऐसा देखने को नहीं मिलता। भारतीय संसद भी तिब्बत की मुक्ति और तिब्बतियों के मुक्ति संग्राम के समर्थन के सवाल पर मौन हो गई है। फिर भी कुछ लोग भारत-तिब्बत मैत्री संघ या एशिया समर्थक तिब्बती मंच चला रहे हैं।
हाल के वर्र्षों में तिब्बतियों की आजादी और मुक्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय अभियान के केंद्रबिंदु दलाई लामा स्वयं रहे हैं। अभी कुछ माह पूर्व ही उन्होंने कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की यात्रा कर वहां के प्रधानमंत्रियों से मुलाकात की थी। हालांकि बीजिंग ने इसे गंभीरता से लिया। दलाई लामा अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और राष्ट्रपति जॉर्ज बुश से कई बार मिल चुके हैं। उन्हें मिल रही अंतरराष्ट्रीय मान्यता और उनके बढ रहे विदेश दौरों से चीन को परेशानी होती है। दलाई लामा यूरोप के राष्ट्राध्यक्षों से भी मिल चुके हैं। यूरोपीय संघ तथा यूरोप के कई देशों की संसद ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से तिब्बत की आजादी का समर्थन किया है। सूचना है कि अगले कुछ महीनों में दलाई लामा एक बार फिर कई देशों के दौरे पर जा रहे हैं। स्वाभाविक है कि इससे चीन की परेशानी बढेगी।
ल्हासा की हाल की घटनाओं को बीजिंग ओलंपिक खेलों से जोड़कर भी देखा जा रहा है, लेकिन यह ठीक नहीं है। जो मुक्ति संघर्ष विगत पचास वर्षों से निरंतर चल रहा है और जिसके चलते रहने की संभावना है, उससे जुड़े लोग यदि किसी अंतरराष्ट्रीय आयोजन पर सवाल उठाते भी हैं, तो इसमें एतराज की बात नहीं हो सकती। तिब्बत की मुक्ति के साथ तिब्बतियों के मानवाधिकारों के हनन का मामला भी अकसर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उछलता रहता है और अब तो मानवाधिकारों का इस कदर अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में इसके मसले पर धरने-प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं। तिब्बत की मुक्ति का सवाल और तिब्बतियों के मानवाधिकारों के हनन के मामले फिलहाल अंतरराष्ट्रीय मंच पर तेजी से उछल रहे हैं। बीजिंग ओलंपिक पर भी इसकी छाप दिखाई पडती है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वर्ष 1987 में मॉस्को ओलंपिक खेलों का दुनिया के देशों ने तो इसीलिए बहिष्कार किया था कि तत्कालीन सोवियत संघ की सेना ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।
भारत ने विगत पचास वर्षों में तिब्बत के मसले पर कई बडी गलतियां की हैं, इसे आम भारतीय जनता भी मानती है। 1948 में कम्युनिस्ट ांति होने के बाद चीन ने अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में जो पहला काम किया, वह तिब्बत में सशस्त्र घुसपैठ का था। तब निहत्थे तिब्बतियों ने कडा प्रतिरोध किया था। उसी वर्ष तिब्बत में चीनी सेना की घुसपैठ का मामला सुरक्षा परिषद में उठा था। भारत ने इस मामले में चीन के साथ बातचीत की बात कही थी।
तब कम्युनिस्ट चीन को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता नहीं मिली थी और भारत चीन का बडा समर्थक था। यह मामला भारत पर छोड़ दिया गया और भारत ने चीन के साथ समझौता कर 1950 में तिब्बत को चीन का स्वशासी हिस्सा मान लिया। लेकिन चीन ने तिब्बतियों को कभी स्वशासन का अधिकार नहीं दिया। बीजिंग के आधिपत्य अभियान के दबाव के चलते दलाई लामा गुप्त रूप से भारत चले आए। भारत ने सुरक्षा परिषद से तिब्बत का मामला वापस लेकर तथा चीन से समझौता कर भारी कूटनीतिक भूल की थी। बाद में हमारी सरकार को एहसास हुआ कि यह भारी राजनीतिक भूल भी थी। इस भूल के चलते ही भारत पर चीनी हमला हुआ और इसी कारण भारतीय सीमाओं पर चीनी सेना का दबाव बना हुआ है। और चीन इस दबाव का कूटनीतिक लाभ भी उठा रहा है।
वर्ष 1950 में जब भारत सरकार ने चीन के साथ तिब्बत से वह समझौता किया, तो सरदार वल्लभ भाई पटेल व डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे कांग्रेसी इसके विरोध में थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी जिंदगी भर तिब्बत की आजादी के सवाल को जिंदा रखे हुए थे। बीती सदी के पचास और साठ के दशक में संसद में तिब्बत का सवाल गूंजता रहा।
लेकिन संप्रग सरकार शायद 1950 के समझौते और सीमा पर चीनी सेना के दबाव में है, किंतु जनता पर कोई मजबूरी नहीं है। भारत की उत्तरी सीमाओं पर चीनी सेना का दबाव, भारतीय भूमि पर चीन का अवैध कब्जा और तिब्बत की मुक्ति एक-दूसरे से जुड़े सवाल हैं। इन सवालों को हल करने के लिए तिब्बत की आजादी और तिब्बत के मुक्ति संग्राम को भारतीय जनता का खुला समर्थन जरूरी है। जो गलती या चूक हमसे हो गई है, उसे ठीक भी हमें ही करना है। हमारी जनता को देश में और भारत के बाहर तिब्बतियों द्वारा छेड़े गए मुक्ति संग्राम में बडे पैमाने पर भाग लेना चाहिए। यह भारतीयों की जिम्मेदारी है और कर्तव्य भी।

Sunday, April 6, 2008

DATELINE INDIA, FINAL DISPATCH, APRIL 6, 2008

ओलंपिक मशाल तो सिर्फ बहाना है
आलोक तोमर

नई दिल्ली, 6 अप्रैल-पर्दे पर इमरान खान लाहौर से थे और सामने नवाब मंसूर अली खान पटौदी दिल्ली के टीवी स्टूडियों में बैठे थे। बरखा दत्त ने सवाल किया कि आपके बेटे सैफ अली खां ओलंपिक मशाल को लेकर दौड़ेंगे तो इसमें आपकी सहमति है क्या? नवाब ने कहा कि सैफ ने मुझसे पूछा था और मैंने कहा था कि यह तुम्हारा व्यक्तिगत फैसला है। मैं होता तो पता नहीं क्या करता।
अभी-अभी एनडीटीवी के वी द पीपुल शो की रिकार्डिंग से लौट रहा हूं और वहां का माहौल देख कर लगता है कि तिब्बत का मुद्दा ओलंपिक के बहाने नया जरूर हुआ हो लेकिन भारत की चीन संबंधी नीतियों को लेकर और उससे भी ज्यादा दलाई लामा की नपुंसकता को लेकर तिब्बतियों में और खास तौर पर भारतीयों में भी खासा गुस्सा है। पुराने ओलंपियन जी एस रंधावा और नई अश्विनी नचप्पा का सीधा कहना था कि हमें ओलंपिक में भाग लेना चाहिए और जब पदक मिले तो मंच से खड़े हो कर चीनी जुल्म की आलोचना करनी चाहिए। इसका ही असर होगा। कानून के ज्ञाता और अक्सर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लेने वाले सोली सोराबजी ने कहा कि हालांकि खेल और राजनीति को मिलाना अच्छी बात नहीं है लेकिन जिस तरह चीन ने निहत्थे तिब्बतियों पर जुल्म किए हैं और हमारे प्रधानमंत्री के अरूणाचल जाने पर चीन जिस तरह शोर मचाता है, उसके बारे में अगर सरकार विरोध दर्ज नहीं करवाती तो वह सरकार होने लायक नहीं है।
तिब्बत की निर्वासित संसद की एक सांसद ने तो सीधे कहा कि भारत और तिब्बत के रिश्ते हजारों साल पुराने हैं और भारत को तिब्बत का साथ देना ही चाहिए। दलाई लामा के प्रतिनिधि वहां थे और उन्होने कहा कि हम आजादी कहा मांग रहे हैं। सिर्फ स्वायत्तता मांग रहे हैं। गनीमत है कि किसी ने उनसे यह नहीं पूछा कि जब आप अलग देश नहीं मांग रहे हैं तो दलाई लामा को राषट्रप्र्रमुख का जो दर्जा दिया गया है, वह उन्हें क्यों मंजूर है। इमरान खान ने तो जैसी कि उम्मीद थी, कहा कि चीन को कोसते हो, कौन से देश में मनवाधिकारों का हनन नहीं हो रहा है। आपके कश्मीर में क्या हो रहा है? अब यह पत्ता नहीं ऐसा तकनीकी कारणों से हुआ या जानबूझ कर, इमरान खान सहसा पर्दे से गायब हो गये और उनकी आवाज आती रही। इसी आवाज से अपनी भी थोड़ी-बहुत बहस हो गई और इस बहस का सार यह था कि दो साल बाद भारत में होने वाले कामनवेल्थ खेलों पर भी पाकिस्तान कश्मीर की छाया डाल सकता है।
ओलंपिक मशाल पर हमले शुरू
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल-ग्रीस के ओलंपिया से निकली ओलंपिक मशाल लंदन पहुंची तो तिब्बती प्रदर्शनकारियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने मशाल छीनने की भी कोशिश की। एक तरफ चीनी समर्थक झंडा लिए मशाल का स्वागत कर रहे थे, जबकि तिब्बत की आजादी की मांग करने वाले फ्री तिब्बत के नारे लगा रहे थे।
तिब्बत के प्रदर्शनकारियों ने दलाईलामा की अपील को ठुकरा दिया है। दलाईलामा ने कहा था कि वे नहीं चाहते की इस साल बीजिंग में होने वाले ओलंपिक का बहिष्कार हो। ओलंपिक में पांच बार के स्वर्ण पदक विजेता स्टीव रेडग्रावे ने लंदन के विंबले स्टेडियम से ओलंपिक मशाल की 31 मील के सफर की शुरूआत की। स्टेडियम से तीन प्रदर्शनकारियों का गिरफ्तार किया गया। बाद में पश्चिमी लंदन में प्रदर्शनकारियों ने ओलंपिक मशाल छीनने की कोशिश की।
ग्रीस के ओलंपिया शहर से जलाई गई यह मशाल बीजिंग पहुंचने तक 85 हजार मील का सफर तय करेगी। ग्रीस के ओलंपिया शहर में पहली बार ओलंपिक खेलों की शुरूआत हुई थी और उसके बाद से ही ओलंपिक दुनिया के किसी भी देश में आयोजित भले लेकिन ओलंपिक मशाल ओलंपिया में जलाई जाती है और पूरे विश्व भ्रमण पर जाती है। इंग्लैड में इस बार ओलंपिक मशाल का स्वागत जोरदार रहा क्योंकि अगला ओलंपिक 2012 में इंग्लैड में ही होगा।
सोनिया के बयान से राहुल की मुसीबतें बढ़ीं
सुप्रिया राय
नई दिल्ली, 6 अप्रैल-कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष का वात्सल्य आज एक राजनीतिक बयान में निकल पड़ा। उन्होने कहा कि वे चाहती थींकि राहुल गांधी मंत्री बने लेकिन खुद मेरे बेटे ने ही इंकार कर दिया। यह एक मां द्वारा राजनीति में लगातार फ्लाप हो रहे अपने बेटे को त्यागी और तपस्वी छवि देने की एक कातर कोशिश थी।
आज मंत्रिमंडल फेरबदल में जो हुआ उससे बहुत दुरगामी संदेश गए हैं। रमेश उरांव को मंत्री बनाकर शिबू सोरेन के सपनों पर पानी फेर दिया गया है। सोरेन हत्या के मामले में सजा पाने के बाद मंत्रिमंडल से हटाए गए थे और बरी होने के बाद से लगातार मंत्री बनने और अपना प्रिय कोयला मंत्रालय पाने की जिद्द कर रहे थे। मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल का यह संभवत: आखिरी विस्तार है और इसमें साफ कर दिया गया है कि नजर विधानसभा चुनावों पर भी रखी गई है। राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं और वहां से राज्य सभा सदस्य संतोष बगरोडिया को लाल बत्ती मिली है। पता नहीं इस बात का कितना असर होगा क्योंकि संतोष बगरोडिया का परिवार अर्से से कोलकाता और गुवाहाटी में व्यापार के सिलसिले में रह रहा है।
मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को देर से ही सही मंत्री बनाया गया और इससे सिर्फ यही संदेश जाता है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में मध्य भारत को खुश करने के लिए फिलहाल यह कदम उठाया गया है। सुरेश पचौरी को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। वे भोपाल के हैं। चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह को बनाया गया और वे बघेलखण्ड यानी रीवा अंचल के हैं। ग्वालियर और मध्य भातर अंचल से ज्योतिरादित्य सिंधिया को मंत्री बनाने से कांग्रेस ने एक तरह का राजनीतिक संतुलन बैठाने की कोशिश की है।
जहां तक राहुल गांधी का सवाल है तो उत्तर प्रदेश के वर्तमान समीकरणों को देखते हुए उन्हें मंत्री बनाना कोई चतुराई का कदम नहीं होता। सांसद वे हैं ही, कांग्रेस के महासचिव भी हैं और सबसे आगे बढ़कर श्रीमती सोनिया गांधी के बेटे हैं। उन्होने छवि बनाने या अपने आधार का विस्तार करने के लिए मंत्री बनने की जरूरत नहीं है।
फिर भी श्रीमती सोनिया गांधी ने इस बयान से प्रतिपक्ष के उस आरोप को हवा दे दी है कि राहुल गांधी को मंत्री बनने का मोह नहीं है वरना उनकी मां तो वंश की विरासत उन्हें सौंपने के लिए तैयार बैठी थीं। श्रीमती सोनिया गांधी ने जब प्रधानमंत्री बनने से इंकार करके मुकूट मनमोहन सिंह को पहनाया था तो उनके त्यागी होने की बहुत तारीफ हुई थी लेकिन राहुल के बारे में बयान दे कर उन्होने अपनी छवि को तो धूमिल किया ही है, मनमोहन सिंह का अपमान किया है और राहुल के राजनीतिक भविष्य पर अनचाहे एक सवालिया निशान लगा दिया है।
श्रीमती गांधी के बयान का मतलब यह कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के नाते अपनी टीम चुनने का कोई स्वायत्त अधिकार नहीं दिया गया है। राहुल गांधी अगर चाहते तो मनमोहन सिंह के न चाहने के बावजूद मंत्री बनते। इसी बयान से यह भी जाहिर है कि श्रीमती गांधी राहुल को सुपर प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। एम एस गिल को चुनाव आयोग में रहते हुए कांग्रेस की सेवा करने का इनाम मिला है और मंणिशंकर अय्यर के पंख कतर दिये गए हैं। कांग्रेस को सबसे ज्यादा झटका इस विस्तार में राजस्थान में लगा है जहां सचिन पायलट को मंत्री नहीं बनाकर पार्टी ने गुर्जर वोट बैंक को लगभग हाथ से निकाल दिया है। जितिन प्रसाद ब्रह्माण हैं और उनके पिता जितेंद्र प्रसाद पी वी नरसिंह राव के सलाहकार थे। नरसिंह राव से सोनिया गांधी के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे लेकिन उत्तर प्रदेश में बसपा द्वारा ब्रह्माणों को लुभाने की कोशिश करने के बहाने मनमोहन सिंह अपने भूतपूर्व बास के सबसे खास नेता के बेटे को मंत्रिमंडल में लाने में सफल हो गए। इसका दूसरा मतलब यह है कि मनमोहन सिंह को अब राजनीति समझ में आने लगी है। करूणानिधि की बेटी कौमीकाझी को मंत्री नहीं बनाकर कांग्रेस ने यह संकेत भी दे दिया है कि लोक सभा चुनावों में वह जयललिता के साथ ताल-मेल कर सकती है।

लाल कृष्ण आडवाणी का फिल्मी अवतार
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -राजनीति अपनी जगह लेकिन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी फिल्मी दुनिया में खासे लोकप्रिय हो चुके हैं। अजय देवगन और काजोल ने उनके घर जाकर उन्हें अपनी नई फिल्म- यू मी और हम के एक विशेष शो के लिए आमंत्रित किया।
एक समय काफी चर्चित फिल्म समीक्षक रहे लाल कृष्ण आडवाणी पिछले सात साल में नई फिल्मों के पचास से ज्यादा शो में शामिल हो चुके हैं और इनमें से 42 शो सिर्फ उनके सम्मान में आयोजित किए गए थे।जव वे उपप्रधानमंत्री थे तो फिल्मों को रियायत दिलाने के लिए उनके लिए खास शो आयोजित किए जाते थे लेकिन सत्ता जाने के बाद कम ही नेता हैं जिन्हें मतलबी बॉलीबुड वाले विशेष शो में बुलाते हैं।
अजय देवगन और काजोल की फिल्म देखने गए आडवाणी ने उस समय सबको चकित कर दिया जब उन्होंने काजोल की मां तनुजा की कई फिल्मों के संवाद तक सुना डाले। उन्हाेंने अजय देवगन से भी कहा कि तुम्हारी अब तक की सबसे अच्छी फिल्म मुझे जख्म लगी है। संयोग से ये फिल्म एनडीए के शासनकाल में रिलीज हुई थी और सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर संघ परिवार और शिवसेना के खिलाफ होने का आरोपर लगा कर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय भी फिल्म के निर्माता निर्देशक महेश भट्ट श्री आडवाणी के लिए एक विशेष शो आयोजित किया था। जिसमें वे नहीं आए थे अपने गृह संचिव को भेजा था। बाद में इसी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
इसके पहले श्री आडवाणी के लिए आमिर खान ने तारे जमीन पर फिल्म का विशेष शो आयोजित किया था और इस फिल्म में श्री आडवाणी भावुक होकर वाकयदा रो पडे थे। श्री आडवाणी के नजदीकी लोग बताते हैं कि उन्हें या तो फिल्मी नायिकाओं में देविका रानी पसंद थी या फिर बाद में आकर वे माधुरी दीक्षित के फैन हो गए है। फिल्मी नाययिकों मे ंपृथ्वीराज कूपर और दिलीप कुमार के बाद श्री आडवाणी ने कुछ समय तक शाहरूख को पंसद किया। लेकिन शाहरूख कांग्रेस की झोली में चले गए और श्री आडवाणी उनके प्रशंसक नहीं रहे। अपनी पार्टी के लाजबाव अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की उन्होंने बहुत ही कम फिल्में देखी हैं और अपनी सांसद हेमा मालिनी को अभिनेत्रा से ज्यादा नृत्यागंना के तौर पर पसंद करते हैं। उनके पति और भाजपा सांसद धमेन्द्र के बारे में आडवाणी की कोई बहुत अच्छी राय कम से कम अभिनेता के तौर नहीं हैं।
फ्लाप हुए बल्लेबाज, निशाना बने गेंदबाज
डेटलाइन इंडिया
अहमदाबाद, 6 अप्रैल-अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में भारतीय टीम के ऐतिहासिक हार के बाद तीसरे टेस्ट के लिए चयनकर्ताओं की गाज गेंदबाजों पर गिरी है। जबकि 76 रन पर ढ़ेर होने वाली बल्लेबाजी को बरकरार रखा गया है। टीम से तेज गेंदबाज आर पी सिंह की छु्ट्टी कर दी है। कप्तान कुंबले की फिटनेस पर अभी संशय बरकरार है।
अहमदाबाद टेस्ट में करारी शिकस्त के बाद टीम इंडिया में तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा को फिटनेस टेस्ट पास करने के बाद शामिल किया गया है। आर पी सिंह के लचर प्रदर्शन के बाद उनकी जगह मुनफ पटेल को टीम बुलाया गया है। जबकि श्रीशांत को अनफिट बताया जा रहा है फिर भी वह टीम के साथ बने रहेंगे हैं। कप्तान अनिल कुंबले की कंधे में तकलीफ होने के कारण उनका एक और फिठनेस टेस्ट 10 अप्रैल को होगा, तब तक उनके स्थान पर विकल्प के रूप में मुंबई के आफ स्पिनर रोमेश पवार को टीम में जगह दी गई है। टीम में बल्लेबाजी में कोई फेर-बदल नहीं किया गया है। जबकि अहमदाबाद में इन्हीं बल्लेबाजों की जबरदस्त नाकामी की वजह से मोटेरा में टीम इंडिया को ऐतिहासिक हार कर सामना करना पड़ा था। लेकिन चयनकर्ताओं ने बल्लेबाजी क्रम में किसी तरह के बदलाव की गुंजाइश नहीं समझी। टीम इंडिया के ओपनर वसीम जाफर आस्ट्रेलिया दौरे से ही अपने फार्म को लेकर संघर्ष कर रहे हैं लेकिन चयनकर्ताओं का भरोसा अभी भी उन पर बना हुआ है।
दक्षिण अफ्रीका-भारत के तीन टेस्ट मैचों की सीरीज मेेंं भारत 0-1 पिछड़ गया है। तीसरा और आखिरी टेस्ट 11 अप्रैल से कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में खेला जाएगा। ग्रीन पार्क की पिच स्पिनरों के लिए स्वर्ग मानी जाती है। हो सकता है कि भारतीय टीम मैनेजमेंट पांच गेंदबाजों के ही रणनीति पर उतरे और इसमें तीन स्पिनरों को अंतिम एकादश में जगह दी जाए। फिलहाल टीम में कुंबले, हरभजन, पीयूष चावला और रोमेश पवार सहित चार स्पिनर मौजूद है। भारत को 0-1 से पिछड़ने के बाद सीरीज बचाने के लिए हर हाल में कानपुर टेस्ट में जीत हासिल करनी होगी।
टीम-अनिल कुंबले(कप्तान), वसीम जाफर, वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण, महेंद्र सिंह धोनी(विकेटकीपर, उपकप्तान), हरभजन सिंह, पीयूष चावला, रोमेश पवार, ईशांत शर्मा, इरफान पठान,मुनफ पटेल,एस. श्रीशांत, युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ।

लंबी पारी खेलना चाहते हैं सचिन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल- बल्लेबाजी के बादशाह सचिन तेंदुलकर अपने फिटनेस और संन्यास के कयासों पर पूर्ण विराम लगाते हुए 2011 विश्व कप खेलने के संकेत दिए हैं। वे क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी क्रिकेट से जुड़े रहना चाहते हैं।
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के रिकार्डधारी कैरियर में लगभग वह सारे रिकार्ड हैं जो अन्य बल्लेबाजों के लिए सपना है पर स्वंय यह मास्टर बल्लेबाज एक रिकार्ड अपने झोली में डालने के लिए अंतिम प्रयास करने को तैयार है। सचिन 2011 का विश्व कप खेल अपने देश को एक बार फिर विश्व कप जीताना चाहते है। यही उनकी हसरत भी है। उन्होने कहा कि वे अपने क्रिकेट कैरियर को सीरीज दर सीरीज आंकते हैं और उन्हें जब तक लगेगा की यह आंकलन सही तरीके से चल रहा है तब तक वह क्रिकेट के मैदान में अपने बल्ले से विरोधी गेंदबाजों के छक्के छुड़ाते नजर आएंगे। उन्होने कहा कि क्रिकेट में उनके कुछ सपने अभी भी अधुरे हैं जिसे वह पूरा करना चाहते हैं।
उन्होने अपने क्रिकेट कैरियर पर कहा कि वह इस खेल का भरपूर मजा ले रहें और कल के बारे में कभी नहीं सोचते वह सिर्फ आज में जीते हैं। सचिन ने कहा कि अपने 19 साल के कैरियर में लगातार खेलता आया हूं और भविषय को लेकर कभी चिंतित नहीं हुए। उन्होने आस्ट्रेलिया में हुए हरभजन-सायमंड्स विवाद के बारे में कहा कि हरभजन कभी नस्लवादी टिप्पणी नहीं किया और जब उस पर आरोप लगे थे तो उसे टीम के स्पोर्ट की जरूरत थी और मुझे लगा कि भाी का साथ देना जरूरी है और इसीलिए में इसके साथ खड़ा हुआ। उन्होने मैदान में छींटा कशीं पर कहा कि यह होना चाहिए पर हर चीज की एक सीमा होनी चाहिए वह सीमा से बाहर नहीं जानी चाहिए।
मास्टर ब्लास्टर ने आईपीएल में खिलाड़ियों के नीलामी के मुद्दे पर कहा कि मैं नहीं समझता कि इसमें कोई गलत है और अगर कोई पैसे के लिए खेलने की बात करता है तो मैं कम से कम ऐसा नहीं सोचता। मैं सिर्फ खेल पर ध्यान देता हूं। चाहे वह खेल का कोई भी संस्करण हो। टीम में सीनियर-जूनियर खिलाड़ियों के बीच तनाव की खबर पर सचिन ने कहा कि यह सब अफवाह है और टीम में सीनियर तथा जूनियर के बीच कोई तनाव नहीं, सभी एक दूसरे का सम्मान करते हैं।
आत्मघाती हमले में श्रीलंर्काई मंत्री की मौत
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कोलंबो। श्रीलंका में लिट्टे से चली आ रही वर्षो पुरानी लड़ाई में आज एक मंत्री सहित 11 लोगों मारे गए और 50 से अधिक घायल हो गए। 55 मंत्री वर्षीय जयराज राजधानी कोलंबो के बाहर स्थित वेलिवीरिया कस्बे में झंडारोहण करते सयम तमिल विद्रोहियों ने आत्मघाती हमला कर घटना को अंजाम दिया।
समारोह में स्थानीय लोग पारंपरिक नववर्ष का जश्न मनाने के लिए एकत्र हुए थे। एक संदिग्ध तमिल विद्रोही आत्मघाती हमलावर ने समारोह में घुसकर खुद को विस्फोटक से उडा लिया। जिस समय विस्फोट हुआ, उस समय मंत्री नववर्ष के समारोहाें की शुरुआत के लिए राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे। इस विस्फोट में कम से कम 11 लोग मारे गए। लगभग 50 लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। फर्नाडोपुले तमिल विद्रोहियाें के कट्टर आलोचक और लिट्टे के साथ हुई असफल शांति वार्ता के सदस्य थे। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि लिट्टे के कायर हमले में मंत्री की मौत हो गई।
कई सालों से लिट्टे और श्रीलंका सरकार की लड़ाई में पिछले कुछ दिनों तेजी आई थी। सरकार और लिट्टे के बीच वार्ता फेल होने के बाद से ही श्रीलंकाई सरकार ने तमिल विद्रोहियों पर हवाई हमला बोल दिया था। अभी कुछ ही महीने पहले इस तरह की घटना को अंजाम देने के लिए लिट्टे के महिला विद्रोही ने श्रीलंका के एक मंत्री से मिलने के बहाने उनके दफ्तर तक पहुंची थी और उसने खुद को उनके कार्यालय में उड़ा लिया था मगर मंत्री जी बाल-बाल बच गए थे।
सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिले-आस्ट्रेलिया
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल- भारत के सुरक्षा परिषद् में शामिल होने के मुहिम में अब आस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया है। आस्ट्रेलिया ने माना है कि आधुनिक विश्व में पुराने सदस्य देशों मात्र से काम नहीं चलने वाला। इसीलिए भारत और जापान को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए। इसके पहले ब्रिटेन और फ्रांस ने भी भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन की बात कह चुके हैं।
बीते कई सालों से भारत की एनडीए और वर्तमान यूपीए सरकार की कोशिश रही है कि भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिले। यूपीए सरकार के सत्ता में आते ही तत्कालिन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इस मुहिम को तेज किया था। लेकिन अफ्रीकी देशों से प्रर्याप्त समर्थन नहीं मिलने और अमेरिका के ना-नुकुर के कारण भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हासिल करने से चुक गया था। लेकिन भारत ने इस मुहिम को ठंढे बस्ते में डालकर पहले ठोस पहल कर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ अपने समर्थन की लाबी को मजबूत करना शुरू किया है।
अस्ट्रेलिया ने अपने ताजा बयान में कहा है कि संयुक्त राषट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिलने के बाद आधुनिक विश्व की असल तस्वीर सामने आएगी। आस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री स्टीफेन स्मिथ ने कहा कि सुरक्षा परिषद के नए विस्तार अंतरराषट्रीय व्यापार, विकास के लक्ष्य और मौसम के बदलाव रूप में देखा जाना चाहिए। सुरक्षा परिषद में दूसरे विश्व युध्द के बाद संयुक्त राषट्र सुरक्षआ परिषद बनने के बाद से अब तक सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन को ही इसमें स्थायी सदस्यता मिली है।

खुराना की वापसी का कोई बडा मतलब नहीं
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल -मदन लाल खुराना के भाजपा में वापस आने की पहल तो पार्टी के महानायक अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से हुई थी लेकिन वाजपेयी ने खुराना से साफ कह दिया है कि उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी को ही अपना नेता मंजूर करना पडेगा।
चारो तरफ से हारे हुए खुराना ने एक थका हुआ बयान जरूर दे दिया है कि आडवाणी उनके सबसे बडे नेता हैं मगर यह बयान पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गले नहीं उतर रहा है। राजनाथ सिंह पहले से ही दुखी हैं कि उन्हें अध्यक्ष होने के बावजूद पार्टी में पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा और सारे फैसले आडवाणी ही करते हैं। यह बात अलग है कि आडवाणी के नाम पर राजनाथ ंसिंह की जुबान भी बंद हो जाती है और वे भी उन्हें अपना नेता करार देते हैं।
जिन लोगों को यक उम्मीद थी कि खुराना की बापसी उमा भारती और बाबू लाल मरांडी जैसे पार्टी में उपेक्षा के शिकार हुए नेता वापस आएंगे वे भी अब संशय में हैं। आज बाबू लाल मरांडी से बात की तो उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि न उन्हें किसी ने बुलाया और न वे भाजपा में जाने के लिए तरस रहे हैं। आडवाणी के एक निजी सहयोगी ने हाल ही में श्री मरांडी से भेंट की थी लेकिन इसे भी उन्होंने औपचारिक मुलाकात बताया।
उमा भारती से अभी किसी भाजपा नेता ने संपर्क नहीं किया है और उनकी भारतीय जन शक्ति पार्टी ने उनके पुराने शिष्य प्रहलाद पटेल ने साध्वी के तौर तरीकों पर आपत्ति करते हुए उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया है। वैसे भी जन शक्ति पार्टी कभी ठीक ठाक ताकत बन कर उभर ही नहीं पायी और उमा भारती के राजनैतिक भविष्य को लेकर लगातार सवाल किए जा रहे हैं। उमा भारती के शुभचिंतक और उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने साध्वी को भाजपा में वापस लाने की कोशिश की है लेकिन इन कोशिशों का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।
खुद कल्याण सिंह भी काफी दिनों भाजपा से बाहर रहने के बाद वापस आए हैं और वापसी का उनका रास्ता भी उन्हीं वाजपेयी ने खोला था जिन्हें कल्याण सिंह ने भरपूर कोसा है। कल्याण सिंह भी उमा भारती को भाजपा में लाना जरूर चाहते हैं लेकिन वे अपने पुराने प्रतिद्वद्वी और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को नाराज करने की कीमत पर कोई कदम नहीं उठाना चाहते उधर उमा भारती भीसाफ कह चुकी हैं कि भाजपा को अगर जरूरत हो तो वह उन्हें बुलाये वे अर्जी देकर पार्टी में वापस नहीं आएगी। उमा भारती खुद आडवाणी से ही झग़डा कर के भाजपा छोड़ कर गई थी और एक बार वापस भी आ गइ्र थी लेकिन जब उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी गई तो फिर उन्होंने फिर से पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी बना ली।
उत्तर प्रदेश में माओवादियों के शिविर लगे
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल -छत्तीसग़ढ, आंध्रपदेश, झारखंड और बिहार में मिट्टी को खून से लाल करने के बाद माओवादियों ने अब उत्तर प्रदेश को निशाना बनाया है। राज्य पुलिस की गुप्तचर शाखा ने केबिनेट सचिवालय को भेजे गए एक अनिवार्य परिपत्र में इस संबंध में सलाह मांगी है और पूछा है कि वे कितने समय बाद राज्य में अर्ध सैनिक बलों की नियुक्ति कर सकते हैं।
राज्य के पुलिस महानिदेशक विम ंसिंह के दस्तखत से भेजे गए इस पत्र के अनुसार चित्रकूट, इटावा और मिर्जापुर के जंगलों में माओवादियों ने प्रशिक्षण शिविर लगा दिए हैं और स्थानीय पुलिस की गुप्तचर शाखा को मिली जानकारी के अनुसार वे कई महत्वूपर्ण ठिकानों पर हमले बोलने की तैयारी में हैं। श्री विम ंसिह से जब फोन से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की पहली योजना सुरक्षा बलों और पुलिस के शिविरों पर हमला बोलने की है।
दिल्ली में मिली जानकारी के अनुसार माओवादियो ने सोनभद्र और मिर्जापुर इलाकों में पत्थरों की खदानों से विस्फोटक लूटने और नरसंहार करने की भी तैयारी की है। इस हमले से वे उत्तर प्रदेश में अपनी उपस्थिति अच्छी तरह स्थापित करेंगे और इन विस्फोटकों का इस्तेमाल आगे के हमलों में किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में माओवादियों का आखिरी बडा हमला 20 नबंवर 2004 को हुआ था। पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के पास बारूदी सुरंगे बिछा कर राज्य की सशस्त्र पुलिस - पीएसी के एक वाहन को उडा दिया गया था जिसमें सत्रह जवान और अधिकारी मारे गए थे। ये लोग माओवादियों की उपस्थिति की सूचना मिलने के बाद उनकी खोज में ही जा रहे थे। सूत्रों के अनुसार समाज के पिछडे वर्गो से कामरेड भर्ती करने के लिए छत्तीसग़ढ और झारखंड से लूटी गई रकम भी खर्च कर रहे हैं और जो लोग भर्ती हुए हैं उन्हें विस्फोटकों और हथियारों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कई अंशकालिक कार्यकर्ता भी भर्ती किए जा रहे हैं जो आमतौर पर एक हमले में हिस्सा लेते हैं और फिर गांव जाकर आम जिंदगी बिताने लगते हैं।
हिंदी इलाकों के वोट नहीं चाहिए माकपा को ?
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल -वामपंथी दलो खासतौर पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने तय कर दिया है कि हिंदी भाषी इलाकों में उन्हें राजनीति नहीं करनी है। पार्टी के पोलित ब्यूरो और नेशनल कमेटी के गठन में या तो बंगाली है या तो दक्षिण भारतीय। पार्टी के पिछले महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत का भी रिटायरमेंट का अनुरोध मान लिया गया है और ज्योति बसु का भी।
ठीक है कि बसु और सुरजीत की उम्र पचानवे साल के आस पास हो गई है और उन्हें रिटायर करने में कोई अटपटी बात नहीं है। लेकिन ऐसे मौके पर जब पार्टी अपने आप को देश की राजनीति की मुख्य धारा में स्थापित करना चाहती है और तीसरे मोर्चे के बहाने कांग्रेस और भाजपा दोनों का विकल्प बनना चाहती है, पोलित ब्यूरों में हिंदी इलाके के किसी भी नेता का नहीं होना एक विचित्र संकेत है।
ऐसा नहीं कि पार्टी में हिंदी भाषी इलाकों के कद्दावर नेता नहीं थे। मध्यप्रदेश में बादल सरोज जैसे नेता भी हैं जिन्होंने पार्टी के छात्र और युवा संगठनों में जान फूंकने की सफल कोशिश की है। पार्टी के प्रशासन के हिसाब से शायद इस बात से कोई फ नहीं पडे लेकिन लाल झंडे के साथ कामरेड जब लखनऊ, वनारस, दिल्ली या चंडीग़ढ में वोट मांगने जाएंगे तो उनसे यह सवाल जरूर पूछा जाएगा कि आपके नेताओं में हमारा कोई नेता कहां है।
यह ठीक है कि पार्टी ने पोलित ब्यूरो में न सही राष्ट्रीय कमेटी में महिलाओं को पर्याप्त जगह देकर बाकी दलों से बाजी मार ली है। लेकिन पोलित ब्यूरो का सवाल अब तक वहीं का वहीं ही अटका हुआ है। वृदां करात के रूप में पोलित ब्यूरों में एक महिला हैं और वे खासी खूबसूरत और मेकअप प्रेमी भी हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे पार्टी पोलित ब्यूरों के दूसरी बार निवार्चित हुए महासचिव प्रकाश करात की पत्नी हैं, प्रकाश करात कन्नड हैं और वृदां जन्म से बंगाली हैं।
पार्टी की बैठक और पुर्नगठन को लेकर हिंदी भाषी इलाकों के और खासतौर पर बिहार उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के नेताओं में खासी नाराजगी है और इसका फल पार्टी के चुनावी नतीजो की शक्ल में सामने आ सकता है। खासतौर पर पंजाब और मध्यप्रदेश में पार्टी ने अच्छी खासी ज़डे जमायी हैं मगर नेतृत्व में उनकी प्रतिनिधि विहीनता चुनाव अभियान में परेशानी करेगी ही। खासतौर पर केरल और बंगाल की सरकारे जैसी चल रही हैं, उन्हें देखते हुए और भाषा के कारण भी केरल के अच्चयुतानंदन और बंगाल के बु्द्ददेव भट्टाचार्य से किसी करिश्मे की उम्मीद करना बेकार होगा।
एमपी और यूपी में सिमी के महिला आतंक केंद्र
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल -मध्यप्रदेश में अपना अड्डा तबाह होने जाने और ज्यादातर आतंकवादियों की शिनाख्त हो जाने के बाद सिमी यानी 'स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया ने अपनी महिला विंग
'शाहीन' का सहारा लिया है। शाहीन के निशाने पर सबसे पहले मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश हैं और इस लडाई को हाईटेक बनाने के लिए दोनों प्रदेशों के कई गुप्त ठिकानों पर लडकियों और युवतियों को कम्प्यूटर और मोबाइल इस्तेमाल के नए तरीके सिखाए जा रहे हैं। गुप्तचर ब्यूरो ने दोनों राज्यों की पुलिस को इस बात की जानकारी दे दी है और वे ठिकाने भी बता दिए हैं जहां यह हरकतें चल रही हैं।
ब्यूरो की जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में शहडोल, रतलाम, सीहोर और दतिया जिले में सिमी के प्रशिक्षण केंद्रों का तानाबाना फैल गया है जबकि उत्तर प्रदेश में बरेली, पीलीभीत, बस्ती, भदोही और फिरोजाबाद में ऐसे प्रशिक्षण केंद्र खुलने की खबर मिली है। गुप्तचर ब्यूरो के आधिकारियों के अनुसार इन राज्यों की गुप्तचर पुलिस से इन सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए कहा गया है और इसके बाद इन पर कार्रवाई की जाएगी।
शाहीन' को यूपी में सिमी के नए हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का ताना-बाना बुन लिया गया है। नेटवर्क बन गया है और उसकी नजर शैक्षिक संस्थाओं की ऐसी छात्राओं पर है, जो कंप्यूटर में माहिर हों। मकसद है इन छात्राओं का आतंकी वारदात के लिए इस्तेमाल। यह खुलासा हुआ है मध्य प्रदेश में धरे गए सिमी अंसारों से। इस खुलासे के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय यूपी के साथ ही पूरे देश में शाहीन पर अंकुश की रणनीति तैयार कर रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन अप्रैल को सभी प्रदेशों के खुफिया तंत्र से जुड़े अफसरों की आनन-फानन में बैठक बुलाई थी। इसमें यूपी से अभिसूचना मुख्यालय लखनऊ के एक आईजी ने शिरकत की। बैठक मध्य प्रदेश में एक सप्ताह में चलाए गए आपरेशन के दौरान 28 से ज्यादा सिमी अंसारों की गिरफ्तारी और उनके खुलासों के मद्देनजर थी।
बैठक में प्रतिबंध के बाद सिमी के बढते प्रभाव को लेकर चिंता जताई गई। सिमी के खतरनाक मंसूबों को लेकर नए सिरे से आपरेशन चलाने का फैसला किया गया है। सबसे हैरतअंगेज तो यह कि धरे गए सिमी अंसारों ने कुबूला है कि यूपी में भी 'शाहीन' ने पूरी तरह पैर जमा लिए हैं।
सिमी के हूजी, लश्कर ए-ताइबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से सीधे रिश्तों का भी खुलासा हुआ है। पता चला है कि सिमी यूपी के कुछ चुनिंदा जिलों खासतौर पर पूर्वांचल के वाराणसी, गोरखपुर, महाराजगंज और पश्चिम के बुलंदशहर, सहारनपुर, मुरादाबाद में शैक्षिक संस्थानों में ऐसी छात्राओं को गुपचुप तौर पर चुन रहा है, जिनमें धर्म के प्रति घोर आस्था हो। इन छात्राओं को धार्मिक कट्टरता का पाठ पढाया जा रहा है।
ऐसी छात्राओं का चयन किया जा रहा है, जिन्हें कंप्यूटर का ज्ञान हो। उन्हें आधुनिकता से दूर रहने की हिदायत दी गई है। साथ ही धार्मिक पाबंदियों पर अमल करने की सीख दी जा रही है। यूपी में 'शाहीन' की करीब दो सौ फुलटाइम वर्कर का नेटवर्क बन चुका है। इसका मकसद आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में शाहीन की मदद लेना है। साथ ही उन्हें आतंकी संगठनों को भी खाद-पानी मुहैया कराने की ट्रेनिंग दी जा रही है। धार्मिक शैक्षिक संस्थानों में इसके लिए 'संपर्क कैंप' भी लगाए गए। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बैठक में खुफिया अफसरों को सिमी के साथ ही 'शाहीन' के नेटवर्क को तोड़ने और संदिग्ध गतिविधि वाले शैक्षिक संस्थानों पर नजर रखने को कहा है।
सेहत के खिलाफ क्यों है इस्लाम?
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल -पोलियो की दवा की तरह ही अब मुस्लिम मुल्लाओं ने स्वास्थ्य बीमा को मुस्लिम कानून के खिलाफ बता रहे हैं हालांकि पोलियो की दवा का असर देख मुल्लाओं की आंखे खुल गई थी लेकिन अब उन्होंने स्वास्थ्य बीमा के मामले में आंखे बंद कर ली है। फतवा जारी होने पर पूरे देश में यह बहश का एक बडा मुद्दा बन गया है। उधर इस फतवे के बाद बीमा कंपनियों की मानो जैसे सांस ही थम कई है।

ंअब स्वास्थ्य बीमा को जुए समान बताते हुए देश के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने मुसलमानों के लिए हराम घोषित किया है। मुस्लिम कानून की रोशनी में मुसलमानों से जुड़ी समस्याओं पर निर्णय देने के लिए बनाई गई भारतीय इस्लामी फिकह अकादमी ने अपने चौहदवें सम्मेलन में तीन दिन की चर्चा के बाद आखिरी फैसले में कहा गया इस्लामी कानून में किसी तरह के जुए की इजाजत नहीं है। स्वास्थ्य बीमे के वर्तमान स्वरूप का जमीनी हकीकत पर विश्लेषण करने पर पाया गया कि वास्तव में यह जुए की ही एक शक्ल है।
फैसला देने वाली अकादमी के जिस सम्मेलन में यह फैसला किया गया उसमें दारूल उलूम, देवबंद जमाते इस्लामी, जमियत उलेमाए हिंद के उलेमाओं के अलावा देश भर के लगभग 300 प्रमुख मदरसों के प्रतिनिधि शामिल थे। फैसले में कहा गया- अन्य बीमों की तरह स्वास्थ्य बीमा भी उन गैर मुनासिब सौदों की तरह है जिसकी इस्लाम में अनुमति नहीं है। इसलिए सामान्य स्थिति में स्वास्थ्य बीमे की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इस फैसले में सरकार या निजी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में भी फर्क नहीं किया जाएगा।
अकादमी ने कहा कि अगर किसी कानूनी बाध्यता के अंतर्गत स्वास्थ्य बीमा कराया गया है तो उसकी अनुमति प्रदान किए जाने पर गौर किया जा सकता है। लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी सक्षम मरीज पर यह वाजिब होगा कि वह अपने ईलाज में उसको बीमा कंपनी द्वारा दिए गए धन से अधिक खर्च होने पर उस अतिरिक्त रकम को किसी परोपकार के काम में लगाए तथा इसके बदले खुदा से किसी ईनाम की उम्मीद नहीं रखे। प्रचलित सरकारी और निजी कंपनियों की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का विकल्प सुझाते हुए उलेमाओं ने सुझाव दिया कि मुस्लिम स्वयं ऐसी स्वास्थ्य सेवाएं और संस्थान शुरू करें जिसमें गरीब लोगों का उपचार हो सके और उनकी जरूरतों के अनुसार मदद की जा सके।
अजीत जोगी ने छत्तीसग़ढ में महाभारत शुरू की
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रायपुर, 6 अप्रैल -छत्तीसग़ढ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने राज्य में नक्सली समस्या के मामले पर मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा कि अभी तक हुई आदिवासियों और पुलिसकर्मियों की हत्याओं और ग़डबड़ियों की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए।

जहां एक तरफ जोगी ने मुख्यमंत्री पर निशाना साध दिया है वहीं राज्य में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे जनजागरण अभियान सलवा जुडूम पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी ने उन्हे परेशान कर रखा हे। इस आंदोलन का विरोध करने वालों का कहना है कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए बातचीत जरूरी है। छत्ताीसग़ढ के बस्तर क्षेत्र में चल रहे नक्सल विरोधी जनजागरण अभियान सलवा जुडूम के शुरू होने के बाद से तरह-तरह के आरोपों से घिरी राज्य सरकार के लिए यह और परेशान करने वाली बात है कि इस आंदोलन को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी कर दी है।
राज्य सरकार विरोधी दल के कुछ नेता और मानवाधिकार संगठन आमने-सामने हैं। राज्य के दंतेवाडा और बीजापुर जिले में चल रहे इस अभियान को राज्य सरकार आदिवासियों का स्वस्फूर्त आंदोलन कहती है वहीं इस आंदोलन का विरोध करने वालों ने इसे सरकार द्वारा प्रायोजित आंदोलन करार देते हुए आंदोलन के औचित्य पर ही सवाल किया है।
पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राज्य इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र सायल का कहना है कि पीयूसीएल समेत चार संगठनों ने पहले ही बस्तर क्षेत्र का दौरा कर सलवा जुडूम को लेकर रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें पाया गया था कि यह आंदोलन सरकार द्वारा प्रायोजित है तथा हिंसक है। सायल का कहना है कि इस आंदोलन में निहित स्वार्थी तत्व जुड़े हैं जिन्हें आदिवासियों की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है।
जोगी कहते हैं कि साठ हजार से अधिक आदिवासियों को उनके घर गांव जंगल से उजाडकर प्रदेश की भाजपा सरकार ने सुरक्षा के नाम पर बेस कैंपों में लाकर जानवरों की तरह ठूंस दिया है। कैंपों की अव्यवस्था एवं कैंपवासियों की हालत किसी से छिपी नहीं है। जिस सुरक्षा के नाम पर आदिवासियों को उजाडा गया राज्य सरकार उन्हें वह सुरक्षा भी उपलब्ध कराने में असफल रही है। इधर न्यायालय की टिप्पणी से परेशान राज्य सरकार किसी भी आदिवासी को हथियार देने से मना कर रही है।
अपनी छवि बदलने में लगे आडवाणी
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नई दिल्ली, 6 अप्रैल -पीएम इन वेटिंग का सपना सजोए भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी को अपनी कट्टरवादी छवि को बदलने के चक्कर काफी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। उनके इस कदम से भाजपा में ही फाड हो गया है।
श्री आडवाणी के करीबी नेताआें का कहना है कि उन्हें भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत किया है और चुनाव में वह सबसे अधिक विरोधियों के निशाने पर रहेंगे। इसलिए शायद वह अपनी छवि को सुधार रहे ताकि विरोधियों का निशाना कम बन पाएं। तभी तो जिन्ना प्रकरण हो या फिर पुस्तक के जरिये अपनी बात लोगों तक पहुंचाना या फिर होली के दिन अपनी प्रमुख विरोधी सोनिया गांधी के घर जाकर बधाई देना, यह सारी कवायद अपने आपको सभी लोगों में स्वीकार्य बनाने के उद्देश्य से ही की जा रही है।
अपनी छवि सुधारने के अभियान की शुरूआत श्री आडवाणी ने पाकिस्तानकी यात्रा से की थी।जहां उन्होंने जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दिया था। हालांकि इस बयान पर हुए विवाद के चलते वह अपनी ही पार्टी में किनारे कर दिये गये थे और संघ के दबाव में उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद भी छोड़ना पडा था। आडवाणी ने अध्यक्ष पद की कुर्बानी तो दे दी मगर जिन्ना को लेकर अपने रुख को नहीं बदला। यह रुख उन्होंने हाल ही में अपनी पुस्तक 'माई कंट्री माई लाइफ' के विमोचन के अवसर पर भी दोहराया। यह अचंभित करने वाली बात रही कि जसवंत सिंह भी उनकी राय से इत्तेफाक रखते हैं लेकिन जब आडवाणी इस मुद्दे पर पार्टी में अलग-थलग पड गये थे तब जसवंत सिंह उनके साथ नजर नहीं आये थे।
आडवाणी ने पुस्तक विमोचन समारोह में देश की जानी मानी हस्तियाें (जिनमें उद्योग जगत, मनोरंजन जगत, मीडिया जगत, राजनीतिक क्षेत्र और सामाजिक क्षेत्र प्रमुख हैं) के अलावा संघ के बडे नेताओं और राजग के सहयोगियों सहित भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों का जमावडा लगाकर यह दर्शाना चाहा कि प्रधानमंत्री पद पर उनकी उम्मीदवारी को लेकर लोग गंभीर हैं। हालांकि यह गंभीरता चुनावों के समय क्या परिणाम लाएगी यह अलग बात है क्योंकि देश के बडे राज्यों में भाजपा की हालत पतली है।
आडवाणी जिन्हें बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में आरोपित किया गया है, ने अपनी पुस्तक में कहा है कि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर उन्हें गहरा दु:ख हुआ था। आडवाणी ने अपनी पुस्तक में मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री के तौर पर कार्यों की तो प्रशंसा की है लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में उनकी आलोचना की है क्योंकि वह कथित रूप से सोनिया गांधी के निर्देशों पर काम करते हैं। पुस्तक के अनुसार, आडवाणी को मलाल है कि सोनिया गांधी के साथ कभी उनके रिश्ते अच्छे नहीं बन पाए लेकिन आडवाणी यह भूल गये कि उनके विदेशी मूल के मुद्दे को सबसे पहले उन्होंने ही उछाला था और चुनाव सभाओं में अटल बिहारी वाजपेयी की अपेक्षा वही इस मुद्दे को ज्यादा तूल देते थे। हालांकि उन्होंने अब सोनिया गांधी से रिश्ते सुधारने की कवायद के चलते होली के दिन उनके घर जाकर उन्हें बधाई दी। आडवाणी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के घर भी गये।
आडवाणी ने अपनी पुस्तक विमोचन के समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी सहित कई केन्द्रीय मंत्रियों को निमंत्रण पत्र भेजा था लेकिन उनमें से एक रक्षा मंत्री एके एंटनी ने ही निमंत्रण पत्र का जवाब पत्र के माध्यम से दिया और दो केन्द्रीय मंत्री (जोकि कांग्रेस के नहीं थे) कृषि मंत्री और राकांपा प्रमुख शरद पवार और नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल ही समारोह में उपस्थित हुए। इनका आना इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि उसी दिन मेघालय में राकांपा के सहयोग से बनी गठबंधन सरकार को भाजपा के भी एक विधायक ने अपना समर्थन दिया है। राकांपा के महाराष्ट्र में शिवसेना से भी गठबंधन की खबरें जब-तब आती रहती हैं। इस संदर्भ में भी पवार के आगमन को देखा जा रहा है।
समारोह में आडवाणी सहित अन्य लोगों को यदि किसी की कमी खली तो वह थे अटल बिहारी वाजपेयी। भाजपा के शीर्षस्थ नेता वाजपेयी स्वास्थ्य कारणों से समारोह में नहीं आ सके जिसका आडवाणी ने मलाल भी व्यक्त किया। आडवाणी ने अपना राजनीतिक सफर वाजपेयी के सहयोगी के रूप में शुरू किया था और बाद में उन दोनों की जोड़ी ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का मुख्य प्रतिद्वंद्वी बना दिया।
पुस्तक में निश्चित रूप से आडवाणी ने कई जगह ईमानदारी दिखाई है और वाजपेयी के साथ विभिन्न मुद्दों पर मतभेद की बात स्वीकारी है साथ ही उन्होंने आपातकाल के दौरान सत्ता पक्ष द्वारा संविधान का मखौल उडाने का जि करने के साथ ही 1998 में वाजपेयी सरकार के गठन के दौरान राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल उठाने के साथ ही विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
अब सवाल यह है कि आडवाणी इस पुस्तक के जरिये क्या हासिल करना चाहते थे। यदि वह अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे, तो वह तो उन्होंने कर दिया लेकिन यदि वह पीएम इन वेटिंग की बजाय पीएम बनना चाहते हैं तो सिर्फ छवि को नरमपंथी बनाने से काम नहीं चलेगा।
अपने वनवास से वापस आएंगे घीसिंग?
डेटलाइन इंडिया
दार्जिलिंग, 6 अप्रैल -अपने बनाए साम्राज्य में शरणार्थी बन कर कैसा लगता है यह जानना हो तो सुभाष घीसिंग से पूछिए। एक सिपाही से पहाडो के राजा और अब रास्ते पर आने की उनकी कहानी कम फिल्मी नहीं है।
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में राजनीति और राजनेता का पर्याय बन चुके गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के प्रमुख सुभाष घीसिंग के दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद के कामचलाऊ प्रशासक के पद से इस्तीफे के साथ ही पर्वतीय राजनीति में दो दशक लंबा एक दौर खत्म हो गया है। इसके साथ ही अब यह बहस भी तेज हो गई है कि पर्वतीय राजनीति का ऊंट अब किस करवट बैठेगा? दो साल से भी लंबे समय तक अलग गोरखालैंड की मांग के लिए चले हिंसक आंदोलन के बाद वर्ष 1988 में केंद्र, राज्य और जीएनएलएफ के बीच हुए एक करार के तहत जिस परिषद का जन्म हुआ था, उस पर पहले ही दिन से घीसिंग का कब्जा रहा है।
कूचबिहार के राजा की कोठी रही लालकोठी पर जबरन कब्जा कर उसे परिषद का मुख्यालय बना कर राजसी ठाठ के साथ काम करने वाले सुभाष घीसिंग के लिए इन दो दशकों में समय का पहिया पूरी तरह घूम गया है। उनको अपना इस्तीफा सिलीगुड़ी में एक सरकारी गेस्ट हाउस में बैठ कर लिखना और भेजना पडा। परिषद के गठन के बाद पहाड़ियों में घीसिंग ने अपनी छवि एक राजा की तरह बना ली थी। परिषद के पिछले दो चुनावों में तमाम सीटों पर कब्जा जमाने के बाद तो घीसिंग पूरी तरह निरंकुश हो गए थे। उन्होंने पहाड़ियों के विकास से नजरें फेर ली थी। अपने कुछ नेताओं और समर्थकों के बूते घीसिंग ने दो दशकों के दौरान जो तिलस्म बनाया था उसे टूटने में महज पांच महीने लगे। बीते साल अक्तूबर में विमल गुरुंग, जो उससे पहले तक घीसिंग के दाहिना हाथ समझे जाते थे, ने सामने आकर विरोध के इन स्वरों को संगठित किया और राजा का सिंहासन घीसिंग से छीन लिया।
सुभाष घीसिंग ने 18 साल की उम्र में सेना की नौकरी शुरू की थी। लेकिन छह साल बाद ही अचानक नौकरी छोड़ कर दार्जिलिंग लौट आए। वहां उन्होंने प्राइवेट छात्र के तौर पर बीए पास किया। उसके बाद घीसिंग ने तरुण संघ नामक एक क्लब का गठन किया। उसका महासचिव रहते हुए ही उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाने के सपने देखने शुरू किए। वर्ष 1968 में उन्होंने नीला झंडा नामक एक पार्टी बनाई। तब वे उसके अकेले नेता और कार्यकर्ता थे। घीसिंग ने 22 अप्रैल 1979 को अपने कुछ सहयोगियों के साथ दार्जिलिंग के चौक बाजार इलाके में एक जनसभा में पहली बार गोरखालैंड की मांग उठाई थी। पांच अप्रैल 1980 को उन्होंने जीएनएलएफ का गठन किया।
परिषद पर काबिज रहने के दौरान घीसिंग बीच-बीच में केंद्र व राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए गोरखालैंड की मांग का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते रहे। परिषद से इस्तीफे के बाद उन्होंने एक बार फिर गोरखालैंड की मांग उठाई है। लेकिन अबकी किसी पर कोई दबाव बनाने नहीं, बल्कि अपना वजूद बचाने के लिए। हाल के महीनों में उनके पैरों तले की जमीन तेजी से खिसकी है। दो दशकों से पहाड़ियों का निर्विवाद राजा रहा यह शख्स अब पूरी तरह लाचार नजर आ रहा है। उनकी लाचारी का आलम यह है कि बीते महीने दिल्ली से लौटने के बाद जीजेएम की नाकेबंदी की वजह से वे उन पहाड़ियों में कदम तक नहीं रख सके, जहां हाल तक उनकी तूती बोलती थी। जहां घीसिंग की मर्जी के बिना पला तक नहीं हिलता था, वहीं अब घीसिंग-विरोधी नारे गूंज रहे हैं।
घीसिंग के तिलस्म टूटने की प्रयिा बीते साल इंडियन आइडल में पहाडी युवक प्रशांत तामंग को लेकर इलाके में पैदा होने वाले जुनून से शुरू हुई। उसके कुछ दिनों पहले ही घीसिंग ने पार्टी-विरोधी गतिविधियों के आरोप में अपने नजदीकी सहयोगी विमल गुरुंग को पार्टी से निकाल दिया था। विमल ने बाद में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) का गठन किया और तामंग के मुद्दे पर लोगों में पैदा हुए जुनून का घीसिंग के खिलाफ इस्तेमाल शुरू किया। गुरुंग पर्वतीय परिषद के पार्षद थे लेकिन घीसिंग ने उनसे डेढ़ साल तक मुलाकात नहीं की। कुछ पार्षद जब घीसिंग से मिलने का समय मांगते थे तो घीसिंग उनसे एक या दो साल बाद का अप्वायंटमेंट लेने को कहते थे। लेकिन अब घीसिंग अपने मिलने वालों से बातचीत करते हुए अपनी आंखों से आंसू पोंछते नजर आते हैं। अब वे मुलाकातियों से बातचीत में मानते हैं कि अतीत में कई गलतियां हुई हैं, अब सोच-समझ कर आगे कदम बढाना होगा। कहते हैं कि अब जो भी करूंगा गोरखालैंड के लिए ही करूंगा।

घीसिंग ने महीने भर बाद दार्जिलिंग लौट खुद को अपने घर में बंद कर लिया है। वे अपने कट्टर समर्थकों से भी मुलाकात नहीं कर रहे हैं। गोरखालैंड आंदोलन की जिस विरासत के बूते उन्होंने लंबे अरसे तक पहाड़ियों पर राज किया, वह अब उनके हाथों से छिन चुकी है। स्थानीय लोगों के आंदोलन की तेज होती धार को देखते हुए मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य को मजबूरन घीसिंग से इस्तीफा मांगना पडा। परिषद में घीसिंग का कार्यकाल 24 मार्च को खत्म होना था। अब सरकार के सामने परिषद का चुनाव कराने की भी चुनौती है।

गोरखा जनमु्क्ति मोर्चा के प्रमुख विमल गुरुंग कहते हैं कि घीसिंग के रुख बदलने के बावजूद वे लोग अब घीसिंग को अपने साथ नहीं लेंगे। वे कहते हैं कि घीसिंग के कार्यकाल में परिषद में तमाम आर्थिक घपले हुए हैं। हम जल्दी ही इन घपलों की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठाएंगे। यानी पहाड़ियों के निर्विवाद राजा रहे घीसिंग की मुसीबतें फिलहाल कम होने की बजाय बढती ही नजर आ रही हैं। फिलहाल घीसिंग अपने कुछ नजदीकी लोगों के साथ आगे की रणनीति बनाने में जुटे हैं। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब घीसिंग की राह आसान नहीं होगी। पहले न तो उनकी सला को कोई चुनौती देने वाला था और न ही आम लोग उनके खिलाफ थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। अपने कामकाज के निरंकुश तरीके से घीसिंग ने इतने दुश्मन पैदा कर लिए हैं कि उनसे पार पाना आसान नहीं होगा।

एक अक्षर का दाम 44 करोड़
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल - गूगल में सबसे पहले समुद्र सैर सपाटे के कारोबार की जानकारी देने वाली बेबसाइट उसकी कंपनी की खुले इसके लिए कंपनी ने एक अक्षर को करोड़ो रूपए खरीदा है। अक्षर खरीदने वाली एक ब्रिटिश कंपनी है। कंपनी ने एक अक्षर की करीब 4.4 करोड़ रुपए की रकम अदा की है।
दरअसल कंपनी के पास अब तक 'ूज.को.यूके' नामक डोमेन नेम था। लेकिन अब उसने 11 लाख डालर की रकम देकर 'ूजेज.को.यूके' नामक डोमेन नेम हासिल किया है। इससे पहले .को.यूके. श्रेणी का डोमेन नेम हासिल करने के लिए अदा किया गया सबसे ज्यादा मूल्य था तीन लाख डालर, या 1.2 करोड़ रुपए।
जिस कंपनी ने साढे चार करोड़ में नया डोमेन नेम खरीदा है उसके अधिकारियों का कहना है कि समुद्री सैर-सपाटे के कारोबार में अपनी बढत बनाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी था। गूगल में खोज करने पर 'ूजेज' कीवर्ड लगातार 'ूज' कीवर्ड से ऊपर आता रहा है। कंपनी चाहती थी कि जब भी कोई व्यक्ति इंटरनेट सर्च इंजन पर समुद्री सैरसपाटे के दौरों के बारे में खोज करे तो सबसे पहले उसी के बारे में जानकारी दिखाई दे।
हालांकि इस खरीद ने ब्रिटेन में डोमेन नेम बिी की रकम के लिहाज से रिकॉर्ड बना दिया है लेकिन किसी डोमेन नेम के लिए दी गई रकम का विश्व रिकॉर्ड इससे भी कहीं ऊपर है। इस समय सबसे ज्यादा खर्चीला डोमेन नेम सेक्स.कॉम है जिसे 2005 में करीब पचास करोड़ रुपए (1.2 करोड़ डालर) देकर खरीदा गया था। इसके पीछे पोर्न.कॉम डोमेन नेम है जिसे पाने के लिए पिछले साल करीब 38 करोड़ रुपए (95 लाख डॉलर) की रकम अदा की गई थी।
सनी देओल का कैरियर तबाह
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -गदर और घातक जैसी फिल्मों में गजब का अभिनय करने वाले सनी देओल अब बडे पर्दे पर कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हालत यह है कि उनकी हाल की फिल्मों को दर्शकों ने कोई तव्वजों नहीं दी है। फिल्म आलोचकों का कहना है कि बडे पर्दे पर एक छत्र राज कायम करने वाला यह अभिनेता अब थक चुका है। उनकी हालिया प्रदर्शित फिल्मों 'जो बोले सो निहाल', 'नक्शा', 'बिग ब्रदर' 'फुल एण्ड फाइनल' का बॉक्स आफिस पर हश्र देखें तो शायद यह सही भी लगता है। इन फिल्मों ने बॉक्स आफिस पर पानी भी नहीं मांगा जबकि इन फिल्मों में सनी के एक्शन दृश्यों को खूब बढा-चढा के प्रस्तुत किया गया था।
सनी देओल का असली नाम अजय सिंह है। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1956 को नई दिल्ली में हुआ था। उनके पिता धर्मेन्द्र बडे पर्दे के पहले ही मैन के रूप में विख्यात हैं। उनका भाई बॉबी देओल भी अभिनेता है। उनके पिता की दूसरी पत्नी और बॉलीवुड की खूबसूरत अभिनेत्रियों में शुमार रहीं हेमा मालिनी की दोनों बेटियां भी अभिनेत्री हैं। सनी की पत्नी का नाम पूजा है और उनके दो बेटे राजवीर और रणवीर हैं। यही दोनों नाम फिल्म दिल्लगी में सनी देओल और बॉबी देओल के थे। सनी ने अपने बेहतरीन अभिनय के लिए 1990 में फिल्म घायल के लिए पहली बार नेशनल अवार्ड जीता था। बॉलीवुड की सबसे सफलतम फिल्मों में से एक रही 'गदर- एक प्रेम कथा' के भी वह नायक रहे।
उनकी कुछ अन्य प्रमुख फिल्मों में बेताब, अर्जुन, पाप की दुनिया, त्रिदेव, चालबाज, डर, जीत, घातक, जिद्दी, बॉर्डर और इंडियन आदि शुमार हैं। सनी देओल की निर्देशक राहुल रवैल और राजकुमार संतोषी से खूब पटी। राहुल रवैल के साथ उन्होंने फिल्म बेताब, अर्जुन, समंदर, डकैत और अर्जुन पंडित में काम किया तो राजकुमार संतोषी के साथ फिल्म घायल, दामिनी और घातक में काम किया। राजीव राय, जे.पी. दत्ता, अनिल शर्मा, राज कंवर और गुड्डु धनोआ भी सनी के प्रिय निर्देशकों में से रहे। राजीव राय के साथ जहां उन्होंने त्रिदेव और विश्वात्मा में काम किया तो वहीं गुड्डु धनोआ के साथ फिल्म जिद्दी, सलाखें, शहीद और जाल फिल्मों में काम किया। जे.पी. दत्ता के साथ उन्होंने यतीम, क्षत्रिय और बॉर्डर में काम किया तो अनिल शर्मा के साथ गदर- एक प्रेम कथा और द हीरो में काम किया। इसके अलावा राज कंवर के साथ उन्होंने जीत और फर्ज में काम किया।
सनी ने फिल्म दिल्लगी के माध्यम से निर्देशन के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इस फिल्म में उनके अलावा बॉबी देओल और उर्मिला मातोंडकर भी थीं। सनी की अब तक प्रदर्शित फिल्मों की बात करें तो उनमें गजब, बेताब, सनी, सोहनी महिवाल, मंजिल मंजिल, जबरदस्त, अर्जुन, सवेरे वाली गाडी, सल्तनत, समंदर, डकैत, यतीम, पाप की दुनिया, इंतकाम, राम अवतार, निगाहें, मैं तेरा दुश्मन, जोशीले, त्रिदेव, चालबाज, वर्दी, घायल, आग का गोला, ोध, योध्दा, शंकरा, नरसिम्हा, विष्णु देवा, विश्वात्मा, गुनाह, डर, क्षत्रिय, दामिनी, इज्जत की रोटी, इन्सानियत, इम्तिहान, दुश्मनी, अंगरक्षक, हिम्मत, जीत, घातक, अजय, बॉर्डर, जोर, जिद्दी, और प्यार हो गया, कहर, सलाखें, इसकी टोपी उसके सर, प्यार कोई खेल नहीं, अर्जुन पंडित, दिल्लगी, चैम्पियन, फर्ज, गदर- एक प्रेम कथा, ये रास्ते हैं प्यार के, इंडियन, कसम, मां तुझे सलाम, शहीद, जानी दुश्मन, कर्ज, द हीरो, कैसे कहूं की प्यार है, जाल, खेल, लकीर, रोक सको तो रोक लो, जो बोले सो निहाल, नक्शा और बिग ब्रदर शामिल हैं।
मायावती से डरी हुई है कांग्रेस
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल - कांग्रेस में उत्तर भारतीय राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावो की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। कांग्रेस को यह डर खाए जा रहा है कि उत्तर भारतीय राज्यों के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी उसको नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए पार्टी ने निर्णय लिया है कि मायावती को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश कांग्रेस चुनौती पेश करे ।
राजनीति के जानकारो का कहना है कि बसपा राजनीतिक खलबली मचा सकती है। इसके कारण कांग्रेस को उत्तर भारत में चार से सात प्रतिशत वोटों का नुकसान उठाना पड सकता है। आने वाले विधानसभा चुनावों में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अगर थोड़ा भी रुझान इधर-उधर हुआ तो कांग्रेस को भाजपा के हाथों कुछ सीटें गंवानी पड सकती हैं।
मायावती को रोके रखने के लिए जरूरी है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में चुनौती पेश की जाए। पिछले कुछ महीनों के दौरान समाजवादी पार्टी राजनीतिक रूप से शांत थी। उसने बसपा के विरोध का कोई खास प्रयास नहीं किया। वह वाम दलों से संबंध मजबूत करने और तीसरा मोर्चा पुनर्जीवित करने का प्रयास करती रही। आखिरकार उसकी झोली में 40 लोकसभा सीटें हैं। जाहिर है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। आने वाले चुनाव में मायावती 50 सीटें जीतने की क्षमता रखती हैं, पर फिलहाल वह कई मोर्चों पर राजनीतिक युध्द लड रही हैं। आामक शैली और नौकरशाही के साथ अपनाए गए तौर-तरीकों से उनकी छवि नकारात्मक हो रही है। वह विरोधियों के प्रति अहंकार और बैरभाव दिखा रही हैं।
वाम मोर्चा 65 सीटों से 45 पर सिमट सकता है, जबकि सपा की सीटें 40 से घटकर 20-25 पर आ सकती हैं। इस प्रकार दोनों को 70-85 सीटें हासिल हो सकती है। कांग्रेस इतनी सीटों की अवहेलना नहीं कर सकती। गठबंधन की अवधारणा व्यक्तिगत पसंद या नापसंदगी के दायरे से ऊपर है। संप्रग-वाम दलों का गठबंधन 2009 चुनाव के बाद भी जारी रह सकता है, क्योंकि इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि बसपा, अन्नाद्रमुक और तेलगुदेशम क्या फैसला लेंगे? गठबंधन के ढांचे में राजनीतिक रुझान और
वरीयताओं के बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है। मीडिया कवरेज बढने तथा अन्य तकनीकी विकास के चलते आज मतदाता पहले से ज्यादा जागरूक है। सत्ताविरोधी रुझान लोगों के मूड को जाहिर करते हैं।
शायद ही कोई अनुमान लगा पाया हो कि उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती दो सौ से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती हैं। परम्परागत जातिवादी बाधाएं दूर हो गईं और उन्हें स्थायित्व एवं सुशासन के लिए वोट मिला। उत्तर प्रदेश में नई सरकार बने कई माह बीत चुके हैं, लेकिन क्या वहां वास्तव में स्थायित्व और सुशासन की स्थापना हो सकी है? पिछले दिनों पश्चिम उत्तर प्रदेश में युध्द सरीखी स्थिति उत्पन्न हो गई थी। मायावती के प्रति आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने के विरोध में महेंद्र सिंह टिकैत को गिरफ्तार करने के लिए तमाम पुलिस बल झोंक दिया गया।


पराजित राजा को अब आया जोश
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 6 अप्रैल - विधानसभा चुनाव में हार के बाद हाशिए पर पडे वीरभद्र सिंह ने प्रतिपक्ष में प्रासंगिक बने रहने के लिए भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल पर प्रतिशोध की राजनीति करने का आरोप लगाया है और कहा है कि धूमल जब भी मुख्यमंत्री बनते हैं, कांग्रेसियों के खिलाफ फाइलें खोल देते हैं। श्री सिंह ने इशारों में ही अपनी राजनैतिक प्रतिद्वद्वी मानी जाने वाली प्रतिपक्ष की नेता विद्या स्टोक्स से भी कह दिया कि वे लाल बत्ती मिलने से खुश न रहे और सडक पर आकर मोर्चा संभालें।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा है कि क्षेत्रवाद और जातिवाद प्रदेश हित में नहीं है। वीरभद्र ने कहा कि प्रेम कुमार धूमल ने अपने पिछले मुख्यमंत्रित्वकाल में भी कांग्रेसियों को फंसाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें मुंह की खानी पडी थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरते हैं। धूमल ने पहले भी उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश की थी। उस समय वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए थे। अब दोबारा कांग्रेसियों के खिलाफ षडयंत्र रचे जा रहे हैं।मुख्यमंत्री पर पलटवार करते हुए वीरभद्र ने कहा कि धूमल ने उन पर अफसरों को धमकाने का आरोप लगाया है। इस तरह की भ्रामक बयानबाजी धूमल की पुरानी आदत रही है। वीरभद्र ने कहा कि सारा हिमाचल जानता है कि कौन अफसरों को डराता और धमकाता रहा है।
विपक्ष में रहते हुए प्रेम कुमार धूमल कई बार अफसरों को बयानों के माध्यम से चेतावनी दे चुके हैं। भाजपा सरकार अब क्या कर रही है, इसकी उनको कोई चिंता नहीं है। अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रधान निजी सचिव रहे सुभाष आहलुवालिया को मुख्यमंत्री के दफ्तर में रखा जाए। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन अधिकारियों को धूमल के करीबी माना जाता था, उनको भी कांग्रेस के शासनकाल में अच्छे पदों पर रखने के प्रयास किए गए थे, जबकि आज उसके विपरीत हो रहा है।
वीरभद्र ने कहा कि भ्रष्टाचार में डूबे लोग दूसरों पर अंगुलियां न उठाएं। कांग्रेस शासनकाल को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस सरकार ने हिमाचल को तरक्की की वर्तमान मंजिल पर ईमानदारी, समर्पण और पारदर्शिता से पहुंचाया है। हमारी राजनीति सरकारी कर्मचारियों पर आधारित नहीं है। भाजपा के शासनकाल में बडे पैमाने पर राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से स्थानांतरण किए जा रहे हैं। क्षेत्रवाद और जातिवाद को बढावा दिया जा रहा है जो प्रदेश हित में नहीं है।
जालसाज मंत्री को जमानत मगर सवाल बाकी
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 6 अप्रैल - सिंघी राम और उनके सहयोगी अफसर को जमानत तो मिल गई लेकिन उनके बहाने हिमाचल में फर्जी स्कूली प्रमाण पत्रों और मार्कशीटों का एक बडा घोटाला सामने आ रहा है। इससे एक आशंका यह भी पैदा हो गई है कि हिमाचल से पढे छात्र छात्राओं को देश के दूसरे हिस्सों में विश्वविद्यालय और कालेजो में प्रवेश लेने में भारी दिक्कतों का सामना करना पडेगा।
उधर पूर्व बागवानी मंत्री सिंघी राम और हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बीआर राही को विशेष न्यायाधीश (वन) जेएल गुप्ता की अदालत ने विजिलेंस हिरासत से रिहा कर दिया। अदालत ने गिरफ्तारी गैर कानूनी बताते हुए अभियोजन पक्ष की रिमांड बढाने की याचिका खारिज कर दी। मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।आरोपी पक्ष के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को इसी अदालत के 24 मार्च के आदेश की प्रतिलिपि दिखाई और कहा कि इसमें अभियोजन द्वारा आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा - 13 (2) का उल्लेख नहीं किया गया है। पहले इसी के आधार पर विशेष न्यायाधीश की अदालत से अंतरिम जमानत याचिका वापस ली गई थी। विशेष अदालत ने अपने उस आदेश में लिखा था कि जब कभी भी अभियोजन पक्ष भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा-13 (2) को एफआईआर में शामिल करेगा, तो आरोपियों को हिरासत में लेने से पूर्व दो दिन का नोटिस जारी करेगा।
अदालत ने इसी आधार पर इस गिरफ्तारी को गैर कानूनी करार दिया। इसके साथ ही बीआर राही को रिमांड पर लेने की विजिलेंस की याचिका भी खारिज कर दी गई। राही के अतिरिक्त सिंघी राम को भी विजिलेंस हिरासत से रिहा कर दिया गया। विजिलेंस की ओर से मामले की पैरवी जिला न्यायवादी कश्मीर सिंह ठाकुर ने की, जबकि आरोपी बीआर राही के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता श्रवण डोगरा और सिंघी राम की तरफ से अधिवक्ता पवन ठाकुर ने पैरवी की। इससे पहले मामले की सुनवाई मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी शिमला यशवंत चोगल की अदालत में की गई, जहां अभियोजन पक्ष ने रिमांड याचिका में पीसी एक्ट की धारा -13 (2) को जोड़ने का हवाला दिया। इस पर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने मामला विशेष न्यायाधीश (वन) की अदालत को हस्तांतरित कर दिया।
हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड में लगातार तीसरे दिन स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने छानबीन जारी रखी। शनिवार को टीम ने बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बीआर राही के तत्कालीन पीए की अलमारियों में रखा गया रिकार्ड चेक किया। इसमें उन्हें उन कागजों की तलाश है, जिससे यह पता चल सके कि डुप्लीकेट सर्टिफिकेट ब्रांच से पीए को जारी की गईं खाली मार्कशीटों का क्या किया गया। साथ ही यह भी साक्ष्य जुटाया जाना है कि इसके पीछे राही का कितना हाथ है।
फिलहाल बोर्ड अध्यक्ष के कार्यालय की अलमारियों में रखा गया रिकार्ड इतना ज्यादा है कि विजिलेंस जांच टीम को कडी मशक्कत करनी पडेगी। जांच को पूरा होने में दो दिन का समय और लग सकता है।शनिवार को की गई कार्रवाई में राही के पीए का रिकार्ड कब्जे में लिया गया है। इसे जांचने में ही विजिलेंस टीम को दो दिन का समय लग सकता है। इस समय जांच पूरी तरह इस बात पर केंद्रित है कि डुप्लीकेट सर्टिफिकेट ब्रांच से विभिन्न अधिकारियों को जारी की जाने वाली खाली मार्कशीटों का क्या किया गया। बोर्ड के नियमों के तहत बोर्ड अध्यक्ष सहित कुछ अन्य अधिकारियों को ऐसी खाली मार्कशीट जारी की जाती हैं और इसका पूरा रिकार्ड रखा जाता है। विजिलेंस टीम ने ये सारा रिकार्ड कब्जे में लेकर इसकी छानबीन शुरू की है।
अब यह पता लगाने की कवायद चल रही है कि कितनी खाली मार्कशीटें रिकार्ड में मौजूद हैं और कितनी को नष्ट किया गया है। इस जांच में सहयोग कर रहे विजिलेंस के नार्थ जोन के एसपी संतोष पटियाल ने बताया कि उन्होंने राही के कार्यालय से रिकार्ड तलब किया है यह इतना ज्यादा है कि इसकी जांच को दो दिन का समय लग सकता है। इसके बाद ही पता चल पाएगा कि पूर्व मंत्री सिंघी राम की बेटी के अलावा यहां से और कितने फर्जी सर्टिफिकेट जारी किया गए हैं।
अपराधियों की प्रेम कथा का अंत
डेटलाइन इंडिया
चंडीग़ढ, 6 अप्रैल - यह एक आपराधिक प्रेम कहानी है। प्रेमी अपने गिरोह के साथ सडक चलती महिलाओं के गले से हार और गहने छीनता था और उसकी प्रेमिका उन्हें बाजार में बेच कर नकदी लाती थी। प्रेमिका दीपिका ने बहुत सारा पैसा एक साझा खाते में अपनी भविष्य निधि की तरह जमा कर रखा था। इन खातों की तलाश की जा रही है।
'स्नैचर इन ब्लैक' गिरोह के सरगना कमलदीप सिंह ने पुलिस के समक्ष कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं।
उसने पुलिस को बताया है कि स्नैचिंग के आभूषणों को भानुप्रताप सिंह की 'गर्लफ्रेंड' दीपिका बेचती थी। आभूषणों को मोहाली और पंचकूला के किसी ज्वेलर्स के पास बेचा जाता था। पुलिस दीपिका की भी तलाश में जुटी है। इधर, स्नैचिंग का सरगना भानुप्रताप सिंह अब भी पुलिस की पकड से बाहर है। शनिवार को उसकी धरपकड के लिए उसके सभी संभावित ठिकाने खंगाले गए।
आरोपी कमलदीप ने पुलिस को बताया कि पूरा नेटवर्क मोबाइल फोन के जरिए चलता था। गिरोह के सदस्य पहले आभूषणों से लैस महिला को ढूंढते थे और उसके बाद उसे काफी देर फॉलो किया जाता था। बाद में मोबाइल के जरिए अन्य को सूचित किया जाता था। दूसरे सदस्य वारदात से पूर्व नजदीकी लोकेशन में ख़डे रहते थे। वारदात को अंजाम देने वाले कुछ देर में ही उक्त लोकेशन पर पहुंचते थे और इसके बाद मोटरसाइकिल बदल दिए जाते थे। अक्सर वारदात के लिए बुलेट और पल्सर मोटरसाइकिलों को प्रयोग में लाया जाता था। उसने बताया कि भानु और दीपिका पिछले एक वर्ष से एक दूसरे से प्यार करते हैं। इधर, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि चोरी के आभूषण खरीदने वालों पर भी पुलिस नकेल कसेगी।
डीएसपी (सीआईडी) सतवीर सिंह का कहना है कि गिरोह के सदस्य वारदात के एकदम बाद मोटर साइकिल बदलते थे और अलग अलग हो जाते थे। जब पुलिस की जांच ठंडी पडती तो सभी एकत्र हो जाते थे। कई बार तो यह इतने पैशन में होते थे कि कुछ देरी में ही दूसरी वारदात को अंजाम दे डालते थे। उनकी योजना के आगे पुलिस का नेटवर्क भी कई बार फेल साबित हो जाता था।
पुलिस ने एक स्नैचर का स्केच भी जारी किया था। इसमें भानुप्रताप की शक्ल ट्रेस हुई थी। एक अखबार में स्केच दिखने के बाद उन्होंने अपना हुलिया बदल लिया था। कमलदीप ने बताया कि 22 मार्च को उसने अपने केश कटवा लिए थे। जबकि भानु प्रताप सिंह ने भी अपने बाल छोटे कर लिए थे और कुछ दिनों के लिए ाइम करना छोड़ दिया था। मगर जैसे ही पैसे खत्म हो जाते, वे फिर से स्नैचिंग शुरू कर देते थे।
कपिल रोए और कोसा बीसीसीआई को
डेटलाइन इंडिया
चंडीग़ढ, 6 अप्रैल - पिछले लगभग पचास साल में टीम इंडिया की सबसे शर्मनाक हार की खबर सुनकर महान किेटर कपिल देव रो पडे। अगले दिन उन्होंने पत्रकारों से अपना दुख बांटा और कहा कि टीम के खिलाडी जब अपनी लीग के प्रचार में रात भर नाचते रहेंगे और हिरोइनों के साथ बीडियो बनवाते रहेंगे तो किेट कौन खेलेगा।
विश्व कप विजेता टीम का नेतृत्व करने वाले पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खिलाड़ियों के घटिया प्रदर्शन के लिए बीसीसीआई जिम्मेदार है। आईसीएल के सिलसिले में चंडीग़ढ पहुंचे कपिल ने कहा कि किेट एक टीम गेम है। जब टीम इंडिया को इकट््ठे होकर अभ्यास करना चाहिए था, उस समय अधिकांश खिलाडी बोर्ड के कहने पर इंडियन प्रीमियर लीग के प्रमोशन के लिए प्रायोजकों के इशारों पर नाच रहे थे।
बकौल कपिल 'विश्व कप के बाद बोर्ड ने नियम बनाया था कि किसी सीरीज से 15 दिन पहले और बीच में कोई भी खिलाडी किसी विज्ञापन का हिस्सा नहीं बन सकता। मुझे यह देखकर काफी हैरानी हुई कि अधिकांश खिलाडी बोर्ड के कहने पर पहला टेस्ट खत्म होने के बाद आईपीएल के प्रमोशन के लिए जगह-जगह टहल रहे थे। यहां बोर्ड ने अपने ही बनाए नियमों की खूब धाियां उडाई। इसलिए इस हार के लिए मैं खिलाड़ियों को कम और बोर्ड को अधिक जिम्मेदारी मानूंगा।
'आईसीएल के एग्जिक्यूटिव बोर्ड के चेयरमैन कपिल ने कहा कि बोर्ड वही कर रहा है, जो उसे अच्छा लग रहा है। बार-बार नियम बनाना और फिर उन्हें तोड़ना भारतीय किेट के लिए खतरे की घंटी है। इसका उदाहरण अहमदाबाद टेस्ट से पहले कैंप में मौजूद पांच खिलाड़ियों से ही मिल गया था। कपिल ने कहा कि खिलाड़ियों ने वही किया, जो बोर्ड ने कहा।
कपिल ने कहा कि टीम इंडिया के खिलाड़ियों पर इन दिनों अतिरिक्त भार डाला जा रहा है। खिलाडी गेम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे हैं। आस्ट्रेलिया के लंबे दौरे के बाद उन्हें आईपीएल में फंसा दिया गया और फिर दक्षिण अफ्रीका के सामने ख़डा कर दिया गया। ऐसे में खिलाड़ियों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी होगा।
पिछले कुछ दिन से सुर्खियों में बने शोएब अख्तर के मामले में कपिल ने सिर्फ इतना ही कहा कि वे इस पूरे घटनाम पर केवल रावलपिंडी एक्सप्रेस को सांत्वना ही देना चाहेंगे। कपिल ने कहा कि शोएब के साथ जो भी हुआ, वह किेट के लिए ठीक नहीं है। पूर्व भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे ने भी कहा कि टीम इंडिया की हार के लिए पिच को जिम्मेदार ठहराना बिलकुल गलत होगा। मोरे ने कहा कि टेस्ट मैच के लिए पिच बिल्कुल ठीक थी। टीम इंडिया के खिलाडी खराब शॉट सेलेक्शन और बोर्ड की खराब नीति के कारण फेल हुए। साउथ अफ्रीका ने पूरे मैच में अच्छा खेल दिखाया, जबकि भारतीय खिलाडी मैच के दौरान दर्शक बने रहे।
आजमग़ढ चुनाव का असली मतलब
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लखनऊ, 6 अप्रैल - आजमग़ढ का लोक सभा उपचुनाव इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि लोक सभा की उम्र ज्यादा नहीं बची है लेकिन चूंकि विधान सभा चुनाव में बसपा की जीत के बाद यह पहला महत्वपूर्ण चुनाव है इसलिए सारे दल यहां पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
उपसंसदीय चुनाव के लिए जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में मतदाताओं का रुझान करने के लिए पार्टियां अपनी ताकत झोक दी है। इसी म में सपा प्रत्याशी के पक्ष में आस पास के सपा नेता तो प्रचार में जुटे ही साथ ही कई संगठनों ने भी प्रचार में अपनी जान लडा दी है।
सपा प्रत्याशी बलराम यादव के पक्ष में प्रचार करने के लिए अंबेडकर नगर जिले के सपा नेता और पूर्व विधायक पवन पांडेय अपने लाव-लश्कर के साथ सदर संसदीय क्षेत्र का दौरा किया। पवन पांडेय ने गोपालपुर विधान सभा क्षेत्र के ब्राह्मण आबादी वाले क्षेत्र गोर्वधनपुर, टीकरपठान, भैसहागोनापुर, समधीपुर, सिंघवारा, शुक्ल का पुरा, भटनी मिश्रा का पुरा, तेरही आदि गांवों का दौरा किया। पवन पांडेय ने सपा की नीतियों और रीतियों पर मतदाताओं को पूरी तरह से अवगत कराया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला मंत्री परिषद की बैठक हुई। इसमें लोक सभा सदर उपसंसदीय चुनाव के बाबत चरचा की गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि पार्टी के नेतृत्व के निर्णय पर सपा प्रत्याशी बलराम यादव के पक्ष में मतदान और प्रचार प्रसार करना है। कामरेड रामाज्ञा यादव ने बताया कि लोक सभा चुनाव में संप्रदायिक पार्टी भाजपा, अवसरवादी पार्टी बसपा और पूजीवांद को बढावा देने का काम करने वाली कांग्रेस के प्रत्याशियों को हराने के लिए जरुरी है कि सपा चुनाव जीते। तभी इन समाज विरोधी संगठनों को सबक मिलेगा।
उप्र विश्वकर्मा समाज ने भी सपा के प्रत्याशी को जिताने के लिए सपा को सर्मथन दिया। समाज के पदाधिकारियों ने शनिवार को क्षेत्र में जनसंपर्ककिया। विश्वकर्मा समाज के पदाधिकारियों ने लोकसभा सदर क्षेत्र के गुलऊर, बनकट, ग़ढवल, पुरूषोत्तमपुर, बलरामपुर, ब्रह्मस्थान, किशुनदासपुर, अवती, बसही जरमजेयपुर आदि गांवाें का दौरा कर स्वजातिय बंधुओं से सपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की। भासपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री राजधारी सिंह ने अपने साथियों के साथ सदर क्षेत्र के पल्हनी, मुसेपुर, जमालपुर, हेंगापुर, मनचोभा, कोठरा, हाफिजपुर, गेरवुपुरवा, घोरठ, धन्नीसराय आदि गांवों का दौरा कर सपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की अपील की। भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राजकुमार गुप्त ने प्रचार करने के लिए बीस-बीस कार्यकर्ताओं की 25 टोलियां बनाई है। सभी टोलियाेंं को लोकसभा सदर क्षेत्र के पांचों विधानसभाओं में भेजा गया है। जो जनसंपर्क कर लोगों को सपा की नीतियों और जिले में हुए विकास के बारे में जानकारी देकर पक्ष में वोट मांगने का काम कर रहें हैं।
बसपा प्रत्याशी अकबर अहमद डंपी के प्रचार अभियान को प्रदेश सरकार केमंत्रियों ने काफी गति दे दी है। मंत्रियों के तुफानी दौरे उन गांवों तक हो रहे हैं जहां तक प्रत्याशी भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। इनके चलने और बैठकें करने की गति काफी तेज है। हर जगह मंत्री क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की बात कर रह ेहैं।डंपी को जिताने केलिए बसपा के हर तबके के मंत्री और नेता यहां आकर जम गए हैं। राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त आनंद शेखर गिरी ने गोस्वामी समाज से बसपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की। बसपा गोस्वामी भाईचार समिति के प्रदेश से लेकर पूर्वांचल के हर जिलों केपदाधिकारी भी उनके साथ हैं।
ये नेता बसपा मुखिया मायावती की सर्वहारा समाज की नीतियों को भी बता रहे हैं। इसी म में होम्योपैथ और धर्माथ कार्य मंत्री राजेश त्रिपाठी, शिक्षक नेता ओमप्रकाश राय, सिकंदपुर के विधायक भगवान पाठक ने समर्थकों के साथ शनिवार को दर्जनों गांवों का दौरा कर बसपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की।
नदी में कूद कर टूट गया प्रेमी जोड़ा
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इलाहाबाद, 6 अप्रैल - हिंदी के एक अमर प्रेम उपन्यास गुनाहों का देवता के शहर में एक प्रेम कथा का अंत यमुना की धाराओं में हुआ। एक प्रेमी जोड़ा पुल के ठीक उसी ठिकाने से यमुना में कूद गया जिसे ऐसी ही घटनाओं के लिए जाना जाता है। प्रेमिका को मछुआरों ने बचा लिया।
लेकिन यह एक और प्रेम कहानी का दुखद था। सुसाइड प्वाइंट बन चुके नए पुल से शनिवार को बीए के एक छात्र और छात्रा ने यमुना नदी में छलांग लगा दी। दोनों को एक साथ पुल से यमुना में कूदते देख वहां से गुजर रहे राहगीर स्तब्ध रह गए। नाव से मछलियां पकड रहे कई मल्लाह उन्हें बचाने के लिए यमुना में उतर गए। छात्रा को जीवित खींच लिया गया लेकिन उसके प्रेमी छात्र को नहीं बचाया जा सका। उसकी लाश ही मिली।
युवक मांडा क्षेत्र के एक शिक्षक का पुत्र था। जबकि युवती हरदोई की है। उसे अस्पताल में भर्ती कराकर हरदोई में घरवालों को खबर दी गई है।शुवार दोपहर मौसम सुहाना होने के कारण नए पुल पर तमाम लोग चहलकदमी कर रहे थे। तभी बैरहना की ओर से टहलते हुए एक युवक और युवती पुल के बीच में पहुंचे। उन दोनों ने कुछ क्षण पुल से नीचे झांका। इसके बाद युवक ने हाथ पकडकर युवती को रेलिंग पर चढाया और खुद भी तेजी से रेलिंग पर चढकर उसके साथ यमुना में कूद गया। यह देखकर पुल पर मौजूद लोगों और राहगीरों ने शोर मचाया। इस पर नीचे नदी में पुल के आसपास मछलियां पकड रहे कुछ मल्लाह दोनों को बचाने के लिए नाव से यमुना में कूद गए। इस दौरान पुल पर भीड़ लग गई। मल्लाहों ने दो-तीन मिनट में ही लडकी को बेहोशी की हालत में निकाल लिया और एसआरएन अस्पताल भेजा। पर युवक का पता नहीं चल रहा था।
इसी बीच, बस से रामबाग आ रहे मांडा के बेलहा गांव के शशि सिंह और पिंटू भी भीड़ देख वहां रुक गए। उन्होंने यमुना से निकाली गई युवती को देखकर बताया कि उन्होंने कुछ देर पहले उसे अपने चचेरे भाई आशीष सिंह उर्फ विपुल (22) के साथ पुल पर टहलते देखा था। पुल के निकट स्थित बांग़ड धर्मशाला के पास आशीष की बाइक भी मिलने पर यह साफ हो गया कि युवती के साथ आशीष ने ही पुल से छलांग लगाई थी। शशि और पिंटू ने परिवार के लोगों को फोन से सूचना दी। कुछ देर में कई रिश्तेदार और परिचित नए पुल पर पहुंच गए। इस बीच खबर पाकर कीडगंज थाने की पुलिस भी वहां आ गई।
शाम करीब सवा चार बजे गोताखोरों को नदी में आशीष की लाश मिली। शव देखकर परिवार के लोग बिलख पडे।
पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। रिश्तेदारों ने बताया कि आशीष के पिता लालजीत सिंह मांडा स्थित लाल बहादुर शास्त्री इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं। उसकी मां कमला सिंह बेलहा की प्रधान हैं। छह बहनों में इकलौता आशीष सीएमपी डिग्री कॉलेज में बीए अंतिम वर्ष का छात्र था। वह मोतीलाल नेहरू रोड पर केपीयूसी हॉस्टल के पास रहने वाले अपने ठेकेदार चाचा लालमणि के घर में रहकर पढाई कर रहा था। आशीष के इस कदम से परिवार के लोग सकते में हैं। उन्हें कभी पता ही नहीं चला कि आशीष का किसी लडकी से मेलजोल है। शाम को युवती को हल्का होश आया तो उसने अपना नाम विधि बाजपेयी पुत्री बृजनंदन बाजपेयी और पता हरियावां जिला हरदोई बताया। खबर लिखने तक विधि को यह नहीं बताया गया था कि उसके विधान से अब आशीष लापता हो गया है।
जेल में रह कर अदालती जालसाजी
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आगरा, 6 अप्रैल - एक आदमी आगरा जेल में बंद था। उस पर जापानी पर्यटकों से बलात्कार का आरोप था। वह जानता था कि इतने गंभीर आरोप में उसे जमानत नहीं मिल सकेगी। उसने अदालत के नाम से एक फर्जी फैसला बनवाया और जेल में पेश कर दिया। जालसाजी इतनी फूहड थी कि पकडी गई और अपराधी पर दूसरा मुकदमा भी दायर हो गया है।
जापानी पर्यटकों से बलात्कार के मामले में जिला जेल में बंद एक आरोपी ने फर्जी तरीके से जमानत कराने की कोशिश की। इस मामले पर नाराज जिला जज ने सीजेएम को अभियुक्त के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के आदेश दिए हैं।
थाना ताजगंज क्षेत्र स्थित एक होटल में 19 सितंबर से 21 सितंबर 2007 तक दो जापानी महिला पर्यटकों के साथ बलात्कार करने के आरोपी रहीश, राजन सिंह, दीपक, राजेंद्र, विनय, चिंटू आदि जिला कारागार में बंद हैं। उनके खिलाफ बलात्कार, आपराधिक षडयंत्र व धमकाने का मामला दर्ज करवाया गया था। शुवार को सीजेएम नेत्रपाल सिंह के फर्जी आदेश से रहीश का रिहाई आर्डर जेल पहुंचा।
यहां रिहाई आर्डर लाने वाले कर्मचारी ने इस आदेश पर संदेह व्यक्त किया। इस पर कराई गई जांच में रिहाई का आदेश फर्जी पाया गया। इसमें पाया गया कि उक्त आदेश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम के न्यायालय से जारी ही नहीं किया गया था, जबकि यह मामला वहीं विचाराधीन है। इस मामले में जिला जज राजेश चंद्रा ने सख्त रुख अपनाते हुए सीजेएम को अभियुक्त के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के आदेश दिए हैं।
चिता के पडोस में जी उठा मुर्दा
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गुरदासपुर, 6 अप्रैल -एक बीमार नौजवान को अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वहां हालत और बिग़डी और उसकी सांस चलनी बंद हो गई। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया और इलाज के 31 हजार रूपए मांगे जो चंदा करके दिए गए।लेकिन अंतिम संस्कार के ठीक पहले इस युवक की 'लाश' को जब रिवाज के अनुसार नहलाया जा रहा था तो उसने आंखें खोल दी।
संस्कार करने गए लोगों ने तत्काल उसे यहां के सिविल अस्पताल में भर्ती कराया। हालांकि उसकी हालत अब भी नाजुक बनी हुई है।जानकारी के अनुसार काहनूवान के मुहल्ला तेलिया का निवासी मंगत राम (22) पुत्र हंसराज का लंबी बीमारी के बाद गुर्दा खराब हो गया था। साथ ही उसे टीबी की भी बीमारी थी। बीते दिनों तबीयत खराब होने पर उसे काहनूवान के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से डाक्टरों ने उसकी हालत गंभीर देखते हुए अमृतसर के ईएमसी अस्पताल में भर्ती कराया। वहां पर से वेंटीलेटर पर रख गया।
यहां पर डाक्टरों ने 31 हजार रुपये का बिल बना दिया। लेकिन मंगत राम का गरीब परिवार इतने रुपये देने में असमर्थ था। इस पर काहनूवान इलाके के लोगों ने चंदा एकत्र करके भेजा। शनिवार को ईएमसी अस्पताल के डाक्टरों उसे जुबानी तौर पर मृत घोषित कर दिया। उन्होंने कहा कि इसके बचने की कोई संभावना नहीं है। निराशा होकर उसके परिजन अस्पताल के ही ऐंबूलेंस से लाश को लेकर वापस काहनूवान आ रहे थे। रास्ते में देखने पर उसकी सांस बंद थी और नाडी भी नहीं चल रही थी।
उन्होंने रास्ते में से ही घर पर फोन करके संस्कार की तैयारी करने की सूचना दे दी थी। गांव पहुंचने पर उसे ऐंबूलेंस से ही श्मशानाघाट ले जाया गया। जहां पर संस्कार से पहले नहलाते समय लाश में हलचल शुरु हो गई। लोगों ने उसी वक्त उसी एंबुलेंस से काहनूवान अस्पताल पहुंचाया। जहां पर उसका इलाज चल रहा है।
आतंकवादियों के दोस्त आखिर पकडे गए
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रियासीपौनी, कश्मीर, 6 अप्रैल -खतरनाक आतंकवादियों के तीन मददगार यहां के जंगलों में छिपे हुए थे। यह बात सबको मालूम थी लेकिन पुलिस उधर जा ही नहीं रही थी। फिर एक स्थानीय अखबार में खबर और आतंकवादियों के ठिकाने का विवरण छपा और पुलिस को छापा मारना पडा।
पौनी के जंगलों में छिपे आतंकियों के तीन मददगारों को शुवार देर रात पुलिस ने बनदेरई भारखु से विशेष अभियान चलाकर गिरफ्तार किया। पुलिस ने जिसे सघन छापामारी अभियान कहते हैं, वह चलाया और तीन को बंदी बना लिया।
पौनी ब्लाक के अंतर्गत बनदेरई भारखु से पकडे गये तीनों लोग शब्बीर अहमद पुत्र अब्दुल गनी निवासी शडोल गुलाबग़ढ, मोहम्मद मंजूर पुत्र मोहम्मद हुसैन निवासी देवक राजौरी तथा समिया पुत्र बाबू निवासी बनदरेई को शनिवार को रिमांड पर लेने के लिए पुलिस द्वारा रियासी लाया गया, जबकि इससे पहले प्राइमरी हेल्थ सेंटर पौनी में उनकी डॉक्टरी जांच भी करवाई गई। पुलिस ने आशंका जताई है कि ये तीनों आए दिन आतंकवादिओं मदद पहुंचाते हैं। एसएसपी रियासी जगदीश लाल शर्मा के मुताबिक शब्बीर तथा मंजूर आतंकी अबु मोहम्मद उर्फ अहसान इलाही व नजीर के करीबी माने जाते हैं, वहीं समिया को इनके साथ रहने के कारण पकडा गया है।
ये तीनों जंगल में किसी स्थान पर छिपे हुए आतंकियों को कुछ सामान पहुंचाने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया। इन सभी पर केस दर्ज कर लिया गया है तथा पूछताछ जारी है। अखबार ने प्रकाशित खबर में इसका खुलासा किया था कि पौनी के अंतर्गत पडने वाले भारख, बनदरेई, त्रिपाठ, झंडी व अन्य इलाकों में बारह आतंकवादी अलग-अलग ग्रुप में बंटकर छिपे हुए हैं जिनमें नौ आतंकी विदेशी तथा तीन स्थानीय हैं। इस खबर के प्रकाशित होने के कुछ घंटों के बाद ही पकडे गए इन तीनों ओवरग्राउंड वर्करों की गिरफ्तारी को पुलिस की बडी सफलता मानी जा रही है।
बालिका वधू से बलात्कार, पति जेल में
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कठुआ, जम्मू, 6 अप्रैल - एक छोटी बच्ची को उसके गरीब परिवार ने कुछ पैसों के लिए दुल्हन बना दिया। उसे वयस्क होने पर ससुराल जाना था। खरीददार पति को यह इंतजार बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने ससुराल आकर अपनी बालिका वधू के साथ खेतों में सुहागरात मना ली। पति देव पर अब बलात्कार का आरोप है और वे जेल में हैं।
गरीबी के कारण एक परिवार ने पहले अपनी बेटी की पैसों की खातिर शादी कर दी। तय हुआ था कि शादी के सात साल बाद पत्नी को ससुराल भेजा जाएगा। लेकिन एक दिन मौका पाकर पति अपनी पत्नी के घर आ धमका और घर में किसी को न पाकर अपनी नाबालिग पत्नी को बरगला कर खेतों में ले कर उसके साथ जबरदस्ती बलात्कार किया। मासूम पत्नी के पिता को जब इसका पता चला तो उसने अदालत में गुहार लगाई। जिस पर सीजेएम की अदालत ने 156, 3 सीआरपीसी के तहत संबधित थाने के इंचार्ज को केस दर्ज करने के निर्देश दिये।
पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज कर पति को गिरफ्तार कर लिया। अदालत में पेश करने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। शनिवार को पुलिस ने आरोपी पति का चालान भी माननीय अदालत में पेश कर दिया।सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करती हुई यह शर्मनाक घटना बिलावर तहसील के दूरदराज गांव वदनौता की है। करीब एक वर्ष पूर्व चौथी कक्षा में पढने वाली निशा (काल्पनिक नाम) के पिता ने गरीबी के कारण अपनी मासूम बच्ची की शादी बसोहली तहसील के पलासी गांव के रिंकू पुत्र मोहिन्द्र के साथ कर दी थी। शादी के वक्त लडकी के पिता को लडकी वालों ने 20 हजार रुपए दिये और बाकी तय रकम को बाद में देना तय हुआ। लडकी वालों ने शादी तो कर दी। परंतु लडकी को सात साल बाद ससुराल में भेजने पर सहमति हुई।
करीब आठ माह पहले रिंकू अपनी पत्नी से मिलने उसके गांव जा पहुंचा। घर में अपनी पत्नी को अकेली देखकर रिंकू उसे खेतों में ले गया और जबरदस्ती उसके साथ कई बार बलात्कार किया। जब लडकी के पिता को इसका पता चला तो उन्होंने सीजेएम की अदालत में जाकर शिकायत की। जिसके निर्देश पर पुलिस ने शिकायत दर्ज कर कार्रवाई की। बाद में रिंकू के खिलाफ पुलिस ने 26 अगस्त 07 को आरपीसी की धारा 376 के तहत मामला दर्ज किया और 20 मार्च को आरोपी पति को गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने रिंकू को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। आरोपी की जमानत याचिका को हाईकोर्ट में भी पेश किया गया। लेकिन माननीय अदालत ने वहां पर भी जमानत याचिका को रद कर दिया। शनिवार को पुलिस ने मामले की जांच करके आरोपी का चालान भी पेश कर दिया। जव इस संबंध में एसपी बेनाम तोष से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पुलिस ने मामले की जांच करके चालान अदालत में पेश कर दिया है। बाल विवाह करवाने में जिन लोगों का हाथ होगा उनके विरुध्द भी कार्रवाई हो सकती है।


करोड़ो के शेर, मैदान में ढेर
अक्षय कुमार
हाल ही की नीलामी में जो खिलाडी छह छह करोड़ में बिके थे वे भी टीम इंडिया को नहीं बचा सके। प्रायोजक अब खिलाड़ियों पर रकम खर्च करने से पहले दस बार सोचेंगे और एक जीत पर जयजयकार के नारे बुलंद करने वालों के हौसले भी ढीले पड गए हैं।
टीम इंडिया की पिटाई के तीसरे दिन भी मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम के एक कोने पर राष्ट्रीय बैंक का बैनर सबसे अलग चमक रहा था। बैनर कुछ यूं था, 'टीम इंडिया वी आर विद यू' (हम आपके साथ हैं)। आईपीएल में इन स्टार खिलाड़ियाें की छह करोड़ तक की बोली लगी है। ऐसे में शर्मनाक प्रदर्शन के बावजूद किसी बैंक के मैनेजर को कभी कोई फर्क नहीं पडेगा। फर्क पडता है तो उन किेट प्रेमियाें को जो इस खेल को पसंद करते हैं। बडी टीमें भी हारती हैं लेकिन यहां तो भारतीयों ने संघर्ष की कोशिश तक नहीं की।
पहली पारी की तरह दूसरी में भी नवाबाें जैसी लापरवाहियाें के कारण टीम इंडिया को अपने लोगों के ही बीच अपने मैदान पर तीन दिन के भीतर एक पारी और 90 रन हार की जिल्लत झेलनी पडी। पहले मिनट से मैच पर पूरा नियंत्रण रखने के कारण मेहमान टीम सीरीज में 1-0 की बढत की हर तरह से हकदार थी। हालांकि महज 76 रन पर भारतीय ड्रेसिंगरूम के लुटने के बाद इस मैच के भविष्य का अंदाजा हो गया था। दूसरे दिन जॉक कालिस और मैन ऑफ द मैच रहे एबी डीविलियर्स के बीच 256 रन की साझेदारी ने काफी समय रहते जीत का माहौल बना दिया। दो दिन पहले मिली हार के बाद भारतीय टीम के पास यह जानने के लिए काफी समय है कि आखिर वह खुद अपने साथ ऐसी ज्यादिती कर सकती है।
सुबह हल्के ठंडे मौसम और विकेट की नमी को देखते हुए स्मिथ ने दूसरे दिन के स्कोर पर ही पारी घोषित करने का फैसला किया।
तीन स्लिप, बैकवर्ड प्वाइंट और गली के साथ फील्डिंग से साफ था कि कप्तान अपने तेज गेंदबाजाें के दम पर इस मैच का फैसला तीसरे दिन ही करने के आत्मविश्वास के साथ उतरे थे। जिस विकेट पर बल्लेबाजी के बाद तेज गेंदबाज विकेट के लिए तरस रहे थे, डेल स्टेन और मखाया एंटिनी ने अच्छे पेस और बाउंस के साथ मिशन की शुरुआत की। वीरेंद्र सहवाग ने पारी के पहले ही ओवर में डेल स्टेन को दो छक्के ठोक दिए। समझ से बाहर था कि इसे अच्छी शुरुआत कहा जाए या नाश की तरफ बढाया एक कदम! क्याेंकि टीम को ओपनराें से रन नहीं बल्कि विकेट पर टिक कर लंबी पारी की जरूरत थी।
चेन्नई के सपाट और मरी हुई पिच पर ट्रिपल सेंचुरी ठोंक कर रिकॉर्ड बुक में दर्ज हुए सहवाग की यह आामकता आठवें ही ओवर में मखाया एंटिनी की गुडलेंथ डिलिवरी के साथ खत्म हो गई। कालिस जैसे एक लय के साथ गेंदबाजी करने में माहिर गेंदबाज के सामने बिना पैर हिलाए स्ट्रोक खेलने की गलती कोई कैसे कर सकता है, जाफर को अपने आउट होने के वीडियो को देख कर समझने की कोशिश करनी पडेगी। अच्छे बाउंस और मूवमेंट के साथ राहुल को स्लिप पर लपकवाने के लिए मोरने मोर्केल की जितनी तारीफ की जाए कम है। सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी के विकेट पर रहने तक लग रहा था कि वे लंबी पारियां खेलने की कोशिश में हैं। लेकिन इन दोनाें ने ही ऐसे समय में अपने विकेट ऐसे समय में गंवाए जब वे पूरी तरह से सेट हो चुके थे और घटिया ढंग से आउट होने का कोई कारण नहीं था।

कांग्रेस से दूरी का मौका तलाश रहे कामरेड
विद्याशंकर तिवारीमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कोयंबटूर महाधिवेशन में पारित राजनीतिक प्रस्ताव से दो बातें साफ हो गईं। पहली यह कि पार्टी की नजर में कांग्रेस अब भी बूर्जुआ पूंजीवादी पार्टी है, लिहाजा उसके साथ कोई मोरचा या गठबंधन नहीं बनाया जा सकता। दूसरी यह कि तीसरा विकल्प दूर की कौड़ी है। इससे पहले भाकपा ने भी अपने हैदराबाद अधिवेशन में ऐसी ही राय व्यक्त की थी। दिल्ली लौटकर भाकपा महासचिव एबी वर्धन दो कदम और आगे बढे और जोड़ा कि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देना बहुत सुखद प्रयोग नहीं रहा। शुरू के दो वर्षों में सरकार ने वाम दलों की बातें मानीं, किंतु बाद में एकतरफा निर्णय लेने लगी। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव समय से पूर्व होने की आशंका नहीं है।
राजनीति और रणभूमि में दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति कारगर मानी जाती है, किंतु वामपंथी जितना आगे बढ रहे हैं, उतना ही पीछे हट जा रहे हैं। दरअसल जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य है, उसमें कोई भी दल चुनाव के लिए अपने को तैयार नहीं पा रहा है। तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, केरल व त्रिपुरा में सत्ता पर काबिज वामपंथियों पर नंदीग्राम व सिंगुर जैसी घटनाओं के बदनुमा दाग हैं। आत्ममंथन के दौरान भी पार्टी ने माना कि चूक हुई। सेज की मौजूदा नीति में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत बताई गई। जिस परमाणु करार को लेकर वह यूपीए सरकार को बंदरघुड़की दे रही है, उस पर वह खुद सवालों के घेरे में है
यही वह मुद््दा है, जिसको लेकर यूपीए सरकार व वाम दल बार-बार आमने-सामने दिखे। म्यान से तलवारें भी निकलीं, पर चलाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया। दोनों पक्ष यह भलीभांति समझ रहे हैं कि आगे बढे, तो अंजाम क्या होगा? महंगाई आसमान छू रही है। ऐसे में यदि चुनाव की नौबत आई, तो नुकसान साफ दिख रहा है। लिहाजा आगे-पीछे हटने की राजनीति हो रही है।
वाम दल यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अपने दम पर चुनाव की रपटीली राह पकडें या बिछडे व कुछ नए साथियों को जोड़कर गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी तीसरा विकल्प तैयार करें। विकल्प को लेकर वे सशंकित हैं। शर्त जोड़ी जा रही है कि साथ जुड़ने वाली क्षेत्रीय पार्टियां उनके आर्थिक एजेंडे को स्वीकार करें, तभी बात आगे बढेगी। प्रकारांतर में संयुक्त मोरचे को मिली विफलता वाम दलों को आगे बढने से पहले मंथन करने को मजबूर कर रही है।
यह दुविधा सिर्फ वामपंथियों की ही नहीं, तीसरे मोरचे की पैरोकार सपा की भी है। वह समझ रही है कि जिस नाव पर वह सवार है, उसमें कितने छेद हैं। चंद्रबाबू नायडू और फारूक अब्दुल्ला कहां तक और कब तक साथ निभाएंगे? जबलपुर में राजनीतिक रास्ता तलाशने को जुटे दिग्गज चुनावी हुंकार भरकर रह गए। जाना किधर है, निर्णय नहीं कर पाए। यूपीए के रणनीतिकारों में सर्वाधिक प्रभावशाली लालू प्रसाद यादव के जरिये कांग्रेस का हाथ थामने को बढे हाथ ठिठक गए। सफाई आई, गठबंधन का इरादा नहीं। हो भी नहीं सकता, सवाल वोट बैंक का है। उत्तर प्रदेश से 45 लोकसभा सीटें लाने का पार्टी का दावा मुसलिम वोट बैंक के भरोसे है। दो दशक पूर्व तक यह वोट बैंक कांग्रेस का था। उसे पाने के लिए वह जी तोड़ प्रयास कर रही है, लिहाजा उसने भी कानपुर अधिवेशन से संदेश दिया, नजदीकियां तक तो ठीक, पर मिलकर चुनाव नहीं लड सकते। गलबहियां चलती रहेंगी, क्योंकि यह दोनों के मुफीद हैं।
कांग्रेस को सपा से भी उतना ही खतरा है, जितना कि बसपा से। एक ने मुसलिमों को अपने पाले में खींच लिया है, तो दूसरे ने दलितों को। किंतु दोनों में एक फर्क है, वह यह कि बसपा न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि और भी राज्यों, मध्य प्रदेश, छत्तीसग़ढ, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक सरीखे राज्यों में कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। उसे उत्तर प्रदेश में ही रोकने के लिए कांग्रेस को सपा का साथ चाहिए। बसपा को रोकना और किसी के बूते की बात नहीं। खुद कांग्रेस व भाजपा प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर हैं। मुलायम सिंह यादव को कांग्रेस की दरकार निजी व राजनीतिक, दोनों वजहों से है। सो दोस्त भी रहेंगे और प्रतिद्वंद्वी भी। दुश्मन नहीं, क्योंकि बडा दुश्मन सामने है। कांग्रेस को लंबा अरसा दुश्मन पहचानने में लग गया।
कांग्रेस ने लोकलुभावन बजट व किसानों के लिए पैकेज रूपी फसल तो चुनाव के लिए बोए थे, किंतु आसमान छूती कीमतों ने उसे बरबाद कर दिया। महंगाई की खोह में वह ऐसे फंसी कि गठबंधन में ही खींचतान शुरू हो गई है। कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं दिखता। औपचारिक तौर पर तो महंगाई की जिम्मेदारी राज्यों पर टाली जा रही है, पर सवाल कृषि मंत्री शरद पवार की कार्यप्रणाली को लेकर भी उठाए जा रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी चुनावी रणभूमि में एक साथ उतरने को आतुर है, पर राजनीतिक नफे-नुकसान का आकलन कर चुकी कांग्रेस किनारा करने में फायदा देख रही है। नतीजतन कटुता बढी ही नहीं, दिखने भी लगी है।
दूसरे महत्वपूर्ण घटक दल डीएमके से भी कांग्रेस की कुछ दूरियां बढी हैं। कर्नाटक की राजनीति में एसएम कृष्णा की दोबारा दस्तक से करुणानिधि की भृकुटि तनी। बहाना बयान बना, पर वजह चुनावी राजनीति है। फिलहाल कांग्रेस-राजद के रिश्ते ठीक हैं, किंतु यह कब तक रहेंगे, कहा नहीं जा सकता। झारखंड में दोनों के हित टकरा रहे हैं, कांग्रेस अध्यक्ष के हस्तक्षेप से रिश्ता निभ रहा है। आम चुनाव तक राजनीति के स्वभाव के मुताबिक न जाने कितने समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे, लेकिन जो सबसे अहम मुद््दा उभर रहा है, वह यह कि चार साल तक सत्ता में रहने और उनका साथ देने वाले अधिकांश राजनीतिक दल एक साथ चुनाव में जाने को तैयार नहीं! जिस कांग्रेस के हाथ में यूपीए सरकार का नेतृत्व है, वह खुद संशय का शिकार है, किसका साथ लें और किसे छोड़ें, तय नहीं कर पा रही। जनता के प्रति जवाबदेही लोकतंत्र का मूल मंत्र है, पर वह उसे भी नहीं लेना चाहती।
राजनीति में कोई स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता। समीकरण बनने, बिग़डने के साथ सरकारें आती-जाती रहती हैं। पर मौजूदा राजनीतिक माहौल में संशय, अविश्वास व गैरजिम्मेदारी की भावना इस कदर हावी हो गई है कि नैतिकता की उम्मीद बेमानी-सी लगने लगी है। जिम्मेदारी लेने से वह पार्टी बच रही है, जिसकी विरासत लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता रहे, जिन्होंने एक रेल दुर्घटना पर त्याग पत्र दे दिया था। पार्टी से उनके अनुसरण की अपेक्षा तो की ही जा सकती है। शब्दार्थ
किेट राजनीति का तीसरा अंपायर
सुप्रिया रॉय
राजीव शुक्ला आज राजनीति में भी हैं, किेट में भी, पत्रकारिता में भी, खबरों के कारोबार में भी और ग्लैमर की दुनिया में भी। सैंतालीस साल की उम्र में राज्य सभा में दूसरी बार आ जाने और देखते ही देखते किेट की दुनिया पर छा जाने वाले राजीव शुक्ला ने बचपन में कंचे और गिल्ली ठंडा खूब खेला है और कानपुर के दैनिक जागरण में, बडे भाई दिलीप शुक्ला की छत्र छाया में जब उन्होनें पत्रकारिता शुरू की होगी तो ज्यादातर लोगों की तरह उनकी उम्मीदें बडी भले ही हों लेकिन खुद उन्हें अंदाजा नही होगा कि आखिर उनकी नाव किस घाट पर जा कर लगेगी। आज वे सफल भी हैं, समृध्द भी और प्रसिध्द भी लेकिन यह नही कहा जा सकता कि उनकी नाव घाट पर लग गई है। अभी बहुत सारी धाराएं, बहुत सारे भंवर और बहुत सारे प्रपात रास्तें में आने हैं और राजीव शुक्ला को उन्हें पार करना है। इतना तो है कि 1983 में दिल्ली के एक ठांतिकारी अखबार में नौकरी के लिए इंटरव्यूह देने आए सभी लोगों के बीच कम से कम ढाई हजार रुपए की मांग करने की आम सहमति बनाते धूम रहे राजीव शुक्ला आज अपने टी वी चैनल में लोगों को आसानी से ढाई-ढाई लाख रुपए की नौकरियां देते हैं और एक जमाने में स्कूटर तक नही खरीद पाने वाले राजीव अब हवाई जहाज से नीचे नही उतरते और आम तौर पर उन्हें चार्टड जहाजों में भी देखा जाता है।
इन दिनों जब भारतीय किेट कंट्रोल बोर्ड में वर्चस्व की लडाई जोर शोर से चल रही है, जगमोहन डालमिया पर आरोप लगें हैं और वे इनके जवाब में लंबी कानूनी लडाई लडने के मूड में हैं, भारतीय किेट टीम कभी शेर हो जाती तो कभी ढेर हो जाती है- ऐसे दौर में बी सी सी आई के ताकतवर उपाध्यक्ष और सबसे प्रसिध्द चेहरे के तौर पर होने के बावजूद राजीव शुक्ला विवादों के घेरे में नही आते। वे रणवीर महिन्द्रा, बिन्द्रा, ललित मोदी और शरद पवार के साथ आसानी से चल लेते है और यह बात बहुतों को आश्चर्य में डालती है लेकिन उन्हें नही जो राजीव शुक्ला की फितरत को जानते हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो काफी आसानी से राजीव शुक्ला के सब तरह के उथान को जूगाड और अवसरवाद करार दे कर अपना कलेजा ठंडा कर लेते हैं और उनके पास इसके बारे में कुछ तर्क, कुछ कारण जरूर होगें लेकिन उनके लिए यह समझना कठिन है कि अस्तित्व और आकांक्षा के अध्दैत को साधने के लिए निर्गुण और सगुण का नही निराकार और साकार में से साकार का चुनाव करना पडता है। राजीव शुक्ला ने राजनीति के साकार पात्रों को साधा और एक बडी बात यह है कि धाराएं भले ही अलग हो गई हो, नाता किसी से नही तोड़ा। पता नही कब और किस मोड़ पर वे यह ध््राुव सत्य सीख गए थे कि असली निवेश रिश्तों में किया गया निवेश होता है। जब वे राज्य सभा का पहला चुनाव निर्दलीय लडे और बडे बडे धन्ना सेठों को हरा कर सबसे ज्यादा वोटों से जीते तब यह सच पहली बार उनके संदर्भ में सामने आया था।
राजीव शुक्ला के बहाने समकालीन राजनीति का और खेल की राजनीति का एक पूरा खाका आप खींच सकते हैं। वे जब किराए के एक मकान में, सरकारी कॉलोनी में कई दोस्तों के साथ रहते थे तो अखबार के काम के अलावा उनका ज्यादातर समय अपनी निजी संपर्क डायरेक्टरी विकसित करने में बीतता था। दिल्ली आ कर वे सबसे पहले पडोसी मेरठ जिले के संवाददाता बने और देखते ही देखते मेरठ खबरों के अखिल भारतीय नक्शे पर आ गया। फिर वे रविवार में गए और जिस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह को निरमा साबुन से भी ज्यादा साफ समझा जाता था और उन्हें जयप्रकाश नारायण के उत्ताराधिकारी के तौर पर स्थापित करने की समवेत कोशिशें चल रहीं थी, राजीव ने रविवार के आवरण कथा में एक सच लिख कर सबके छक्के छुड़ा दिए। सच यह था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक नाटकीय क्षण में अपनी बहुत सारी जमीन विनोबा भावे की भूदान यात्रा में दान कर के यश कमाया था और फिर जब उन्हें लगा था कि गलती हो गई तो उन्होनें अपनी पत्नी की ओर से अपने ही खिलाफ हलफनामा दिलवाया कि उनका पति पागल है और उसके ध्दारा दस्तखत किए गए किसी भी दस्तावेज को कानूनी मान्यता नही दी जाए। राजीव शुक्ला को कांग्रेस का एजेंट घोषित कर दिया गया मगर वे यह मुहावरा चलने के बहुत साल पहले मुन्ना भाई की तर्ज पर लगे रहे। कम लोग जानते हैं कि शाहबानों प्रसंग में बागी आरिफ मोहम्मद खान और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच संवाद का एक सबसे बडा सेतु भी राजीव ही थे और यही उनके इस परिवार से संपर्क स्थाापित होने की शुरूआत थी।
किेट की दुनिया में राजीव शुक्ला को स्वर्गीय माधव राव सिंधिया लाए थे। राजीव ने इस खेल की महिमा और ताकत को पहचाना और इसके सहारे कई राजनैतिक मंजिलें भी पार की। इस बीच वे अचानक बहुत हाई प्रोफाइल हो चुके थे, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच चाहे जैसी तनातनी चलती रहे लेकिन दोनों की विदेश यात्राओं में राजीव की सीट पक्की होती थी। दिल्ली की पीटीआई बिल्डिंग में अपने ऑफिस में काम करते वक्त पीटीआई की एक बहुत दमदार पत्रकार अनुराधा से पहचान हुई, रिश्ता बना और आज तक बना हुआ है। अनुराधा टीवी में चैनलों की ांति होने के पहले से ही दिलचस्पी रखती थी और पीटीआई टीवी के नाम से शुरू हुई संस्था में उनकी मुख्य भूमिका थी। राजीव शुक्ला से भी उन्होनें दूरदर्शन पर बडे लोगाेंं से अंतरग मुलाकातों का कार्यम रूबरू शुरू करवाया। इस कार्यम को आज एनडीटीवी पर चलने वाले शेखर गुप्ता के वॉक द टॉक का पूर्वज माना जा सकता है। इसी दौरान वे फिल्मकार रमेश शर्मा के टीवी शो के लिए निकले और चंबल घाटी पर कई ऐपीसोड की किस्तें बना कर ले आए।
राजीव शुक्ला की कहानी हमारे समय की राजनीति की एक प्रतिनिधि कथा है। बहुत सारे परिचित और अपरिचित हैं जो राजीव शुक्ला की छवि को पच्चीस साल पुराने सांचे में रखकर देखते हैं जब वे दिल्ली की एक्सप्रेस बिल्डिंग के बगल के एक ढाबे में दोस्तों के साथ खाना खाते थे और अपने हिस्से का दाम चुकाने के लिए चिल्लर की तलाश करते थे। नए अवतार में राजीव शुक्ला पुराने ही हैं मगर उनकी एक छवि में बहुत सारी छवियां समा गई हैं। उनके दोस्तों में अब शाहरुख खान भी हैं और विजय माल्या भी। अंबानी कुटुबं से तमाम विरोधाभासों के बावजूद उनकी इतनी तो निभती ही है कि अंबानी समूह के अखबार ऑब्जर्बर के संपादक वे सांसद बनने के बाद तक बने रहे। आज भी संसद की उनकी परिचय पुस्तिका में उनका पेशा पत्रकारिता ही लिखा हुआ है। रिडिफ वेबसाईट ने तो उन्हें पिछले पंद्रह साल से भारत में सबसे ज्यादा प्रभावशाली संपर्को वाला पत्रकार घोषित किया हुआ है। हिंदी मीडियम में पढ़े और ज्यादातर हिंदी पत्रकारिता करने वाले राजीव शुक्ला ने इतनी धमाकेदार अंग््रोजी कब और कहां से सीख ली, यह जरुर सबके लिए रहस्य बना हुआ है।
लिखने के मामले में राजीव शुक्ला प्रभाष जोशी या राजेन्द्र माथुर नही हैं और न उनकी रिर्पोटिंग में पत्रकारिता में उनके अग््राज उदयन शर्मा वाली तल्लीनता है। लेकिन उनके लिखने, राजनीति करने और किेट से ले कर कांग््रोस तक के उलझे हुए समीकरण सुलझाने में एक त्वरित तात्कालिकता जरुर है जो उन्हें किसी का विकल्प बनने की मजबूरी में नही फंसाती। बचपन में वे अपने कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम कितने गए हैं यह तो पता नही लेकिन किेट की दुनिया में अपनी प्रासंगिकता बनाने के लिए वे टीम के मैनेजर भी बने और बहुत सारे निशाने साधने वाले तीरंदाज भी। जगमोहन डालमिया और शरद पवार के बीच डालमिया के भूतपूर्व शिष्य इंद्रजीत सिंह बिंद्रा की वजह से जो लफडा शूरू हूआ है उसे निपटाने में राजीव शुक्ला की बडी भूमिका रहने वाली है। आपने गौर किया होगा कि डालमिया ने शरद पवार, निरंजन शाह और उनकी मंडली पर सैकेंड़ों करोड़ के घोटाले के आरोप लगा डाले हैं, शरद पवार को तो उन्होनें मुशर्रफ से बडा तानाशाह कह डाला है लेकिन इस शत्रु सूची में राजीव शुक्ला का नाम नही है। राजीव शुक्ला किेट की राजनीति के लगभग अदृश्य रहने वाले तीसरे अंपायर हैं। (शब्दार्थ)