आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Sunday, June 29, 2008

एक लटकती हुई चार्जशीट



आलोक तोमर

दो साल, चार महीने और पाँच दिन। इतना वक्त लगा दिल्ली पुलिस को एक चार्जशीट दाखिल करने में। वो भी ऐसे मामले मैं जिसमें वह अभियुक्त की जमानत रद्द करवाने के लिए हाई कोर्ट में एक साल से अर्जी लगाये हुए है और वहां पुलिस का तर्क है कि अभियुक्त अगर आजाद रहा तो देश और न्याय के लिए भारी खतरा है।

ये मामला है 2006 के फरवरी महीने का जब एक संपादक पर इल्जाम लगाया गया था कि उसने वे डेनिश कार्टून भारत में छाप कर भारत में सांप्रदायिक अशांति फैलाने की कोशिश की है जिन्हें ले कर पूरी दुनिया के कई हिस्सों में फतवे जारी किए जा रहे है और खास तौर पर डेनमार्क में तो कार्टून छापने वाले संपादक को भूमिगत होना पड़ा है। तब पुलिस को इतनी फ़िक्र और इतनी जल्दी थी कि इस 'अभियुक्त संपादक' को बिना उचित अदालत में ले जाए, सीधे तिहाड़ जेल भेज दिया गया-इस आदेश के साथ कि इसे उस उच्च सुरक्षा बैरक में बंद करो जहाँ कश्मीरी आतंकवादी आदि बंद होते हैं। बारह दिन जेल में रहने के बाद जमानत हुई और इस बात का इंतजार भी कि कब अभियोग लगेंगे और कब मुक़दमा शुरू होगा। इस बीच संसार के लगभग हर देश के पत्रकार संगठनो ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इंटरनेट पर और सीधे भी अपीलें भेजी। सर्वोदयी प्रभाष जोशी से ले कर वामपंथी कमलेश्वर तक अदालत में हाजिर हुए और उन्होने संपादक की बेगुनाही और धर्मनिरपेक्षता की कसमें खाई और संबंधित मजिस्ट्रेट ने जमानत के आदेश में ही पुलिस के आरोप की धज्जियां उड़ा दी। लेकिन दिल्ली की पुलिस कसम खाए बैठी थी कि संसार के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में अभिव्यक्ति की आजादी का जो संवैधानिक मूल अधिकार है, उसे अपने बूटो ंके नीचे रौंद दिया जाय। दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी गृह मंत्री शिवराज पाटिल से इस गिरफ्तारी ंके खिलाफ अपील कर रहे थे तो झारखंड ंके उन्ही की पार्टी ंके एक नेता संपादक का सिर कलम करने वाले को करोड़ो रुपए का इनाम देने का ऐलान कर रहा था।

इस मामले में सवा दो साल में 17 जांच अधिकारी बदले गए, तीन थानेदार और तीन डीसीपी बदल गए लेकिन चार्ज शीट को न पेश होना था न वो हुई। हार कर कर अभियुक्त पत्रकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से ही कहा कि मी लार्ड, अगर इल्जाम है तो मुक़दमा चलवाइए या फिर एफ़ आई आर को ही खारिज कीजिए। अदालत ने पुलिस से पूछा औए एक थकी हारी एफ़ आई आर 5 जून को पेश कर दी गयी। अब मुक़दमा चलेगा, तारीखें पड़ेंगी और पत्रकार लिखने की वजाय अदालत में मुजरिम बना रहेगा।

गिरफ्तारी के वक्त वहुत खबरें बनी थी, टीवी चेनलों के ओ वी वैन लगे थे। बहुत सारे संपादक टीवी पर प्रेस की आजादी का राग गा रहे थे तो एक तो ऐसे थे जो संपादक को ही नालायक करार दे रहे थे। इसके बाद वे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर गए होंगे और अपने होम थियेटर पर कोई फिरंगी फिल्म देखी होगी। अपनी अपनी बुध्दि, अपने अपने सरोकार। कोई ये नहीं देख पा रहा था कि तत्कालीन पुलिस आयुक्त की ख़ुद इस मामले में क्या दिलचस्पी थी, यह भी नहीं कि इस आयुक्त के के पॉल की धर्मं पत्नी ज़िंदगी भर कांग्रेस के एक ठिगने महाबली मंत्री के साथ-तू जहाँ जहाँ रहेगा, मेरा साया साथ होगा-की अदा में काम करती रहीं थी, आज भी कर रही हैं। शिखंडी की तरह आचरण कर रहे गृह मंत्री को आगे रख कर चलाया गया था ये हथियार।

के के पॉल का गुस्सा कितना निजी था ये इसी से ज़ाहिर है कि एक और मामले में, इसी पत्रकार को गिरफ्तार करने के लिए, कुछ ही महीने बाद पुलिस टीम हवाई अड्डे पर जहाज़ के नीचे खड़ी कर दी और पत्रकार को उठवा लिया। इस बार गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने की थी। ये सेल आतंकवादियों और माफिया से निपटने के लिए वनाया गया है। फिर तिहाड़ जेल। इस बार संगत सांसद पप्पू यादव से ले कर नवी वार रूम लीक केस के अभियुक्तों की मिली। फिर जमानत हुई और ये लो, मामला अदालत की पहली पेशी में,दस- पन्द्रह मिनट में खारिज। कार्टून वाले मामले में चार्ज शीट तब तक भी नहीं आयी थी।

इस बीच के के पॉल को संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य बना दिया गया। एक लापता इन्स्पेटर से जान का खतरा बहाना बना और पहले उन्हें ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा मिली और फिर जेड प्लस श्रेणी की। अपने देश में भूतपूर्व पुलिस आयुक्त होना कितने खतरे की बात है? लापता इंस्पेक्टर वापस भी आ गया, उसे धमकी के आरोप में गिरफ्तार भी नहीं किया गया। मगर के के पौल की सुरक्षा अब भी कायम है। बेटा वकालत कर रहा है और पत्नी एनजीओ भी चलाती हैं और देश ंके विदेश मंत्री की सलाहकार भी हैं। यह जोड़ा इतना करामाती है कि एनजीओ के लिए हरियाणा सरकार से करोड़ो की जमीन मिल गई और पत्नी ंके नाम से गुड़गांव ंके महंगे बीएलएफ ईलाके में एक करोड़ रुपए की लागत से और यह सिर्फ मकान बनाने की लागत है उनकी एक तीन मंजीला कोठी भी तैयार हो गयी। इस कोठी की जानकारी बिल्डर एमएल आहुजा की बेबसाईट-www.mlahujaassociates.com से मिल सकती है। लेकिन लोग तरक्की करे और बीबी के नाम से उसके जीते जी ताजमहल बनवाए, खुद को शाहजहां साबित करें, अपना क्या जाता है।

ये में अपनी कहानी लिख रहा हूँ। गुणों की खान नहीं हूँ इस लिए न्यायोचित रूप से निरासक्त नहीं रह पाया तो न्याय और आप क्षमा करें। न मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ और न महात्मा गांधी, फिर भी चार अक्षर बेच कर रोजी चलाता हूँ। मेंरा एक सवाल है आप सब से और अपने आप से। जिस देश में एक अफसर की सनक अभिवक्ति की आजादी पर भी भरी पड़ जाए, जिस मामले में रपट लिखवाने वाले से ले कर सारे गवाह पुलिस वाले हों, जिसकी पड़ताल, 17 जांच अधिकारी करें और फिर भी चार्ज शीट आने में सालों लग जायें, जिसमें एक भी नया सबूत नहीं हो-सिवा एक छपी हुई पत्रिका के-ऐसे मामले में आज में कटघरे में हूँ, कल आप भी हो सकते हैं।

मित्रो, ग़लत फहमी मत पालिए। में न मुकदमा लड़ने ंके लिए चंदा मांग रहा हूँ और न जुलूस निकालने के लिए भीड़। न्याय या दंड भी मुझे अदालत से मिलेगा। मेरा सवाल सिर्फ़ यह है कि जब एक साथी पूरी व्यवस्था से निरस्त्र या ज्यादा से ज्यादा काठ की तलवारों के साथ लड़ता है तो आप सिर्फ़ तमाशा क्यों देखते हैं? समर शेष है, नही पाप का भागी केवल व्याध / जो तटस्थ है, समय लिखेगा, उनका भी अपराध।

अब चाहें तो वो लेख (मूल हिन्दी के इंग्लिश अनुवाद का हिन्दी अनुवाद ) पढ़ लें जिस पर सारा बवाल कटा है---

'पिछले दिनों इस्लाम धर्म की स्थापना करने वाले पवित्र हजरत मोहम्मद के एक कार्टून पर, जो डेनमार्क में छपा है, काफ़ी प्रदर्शन हुए, और अब भी चल रहे हैं। हजरत मोहम्मद के कार्टून छापने वाली पत्रिका वाही है जिसने च्रिस्ट के कार्टून छपने से इनकार कर दिया था। अब जॉर्ज बुश भी कहते हैं कि मुस्लिमों में परिहास बोध नहीं होता और इसी से उनके धर्म के मूल आधार का पता चलता है। अमेरिका की इन मूर्खता भरी टिप्पणियों से आतिशबाजी उठनी स्वाभाविक हैं। आप किसी भी धर्म की मूल आधार को चुनौती दे कर बच नहीं सकते।

माना कि किसी भी धर्मं की महानता का पैमाना उसकी सहिष्णुता है और यह तथ्य भी कि वह अपने पर की गयी टिप्पणियों को कितना सहन कर सकता है। किंतु अगर कोई धर्म अगर अपने पर मजाक का बुरा मानता हो तो उसे अपने पथ का संधान करने के लिए ख़ुद छोड़ देना चाहिए।'

कुछ ग़लत लिखा था?

Friday, June 20, 2008

रोटी चाहिए या यूरेनियम?


आलोक तोमर

रात को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एटमी करार की भव बाधाओं से जूझ और एक हद तक निपट कर सोए थे लेकिन जागे तो एक जोरदार झटका उनका इंतजार कर रहा था। मुद्रास्फीति का इंडेक्स आ चुका था और यह कोई अच्छी खबर नही थी कि बाजार में एक सप्ताह में महंगाई की दर साढ़े ग्यारह फीसदी तक पहुंच गई है और सरल भाषा में कहें तो आलू-प्याज से गाजर-मूली और साबुन तेल तक के दाम बढ़ गए हैं और बाजार आम आदमी और सरकार दोनों की पकड़ से बाहर हो गया है।

यह कोई शुभ सूचना नही है। सब लोग और खासतौर पर विपक्षी यह याद दिलाने में कतई नही चुक रहे कि यह महंगाई तेरह साल का एक रिकॉर्ड है और पिछली बार भी यह रिकॉर्ड तभी बना था जब मनमोहन सिंह नरसिंह राव सरकार में वित्ता मंत्री हुआ करते थे। मनमोहन सिंह वित्ता मंत्री रहने के पहले रिजर्व बैंक के गर्वनर भी रह चुके हैं और उन्हें अच्छी तरह पता है कि मुद्रास्फीति क्यों होती है और इसके क्या-क्या उपाय हो सकते हैं। अब तो खैर बहुत देर हो गई है मगर चिदम्बरम को वित्तामंत्री बना कर मनमोहन सिंह ने कोई बहुत शानदार फैसला नही किया था। जब उनको मोंटेक सिंह अहलुवालिया को भारत सरकार में लाना ही था तो उन्हें ही वित्ता मंत्री बना देते। या प्रधानमंत्री रहते हुए भी वित्ता मंत्रालय वे खुद अपने पास रख सकते थे। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है।

अब जब महंगाई पर हाहाकार मचा हुआ है और कोई निदान बताने की बजाय सभी धिक्कार मंत्र जपने में लगे हुए हैं तो एक बात पर हैरत होती है। जिस दिन पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े थे उसी दिन वित्ता मंत्री चिदम्बरम ने घोषित कर दिया था कि इसका असर बाजार पर पड़ना लाजमी है। जब ये भाव बढ़ाए गए थे तो दुनिया के तेल बाजार में पेट्रोलियम की कीमत 135 डॉलर प्रति बैरल थी। आज की ताजा खबर यह है कि यह कीमत इसी साल 200 डॉलर तक पहुंच सकती है। सरकार को अगर दीवालिया नही होना है तो उसे फिर से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाने पडेेंग़े और जाहिर है कि मनमोहन सिंह सरकार को और जूते पड़ेंगे। एक बैरल में 119 लीटर से कुछ ज्यादा का आंकड़ा होता है और इस हिसाब से कच्चे तेल का दाम ही लगभग 38 रुपए प्रति लीटर बैठता है। इसके बाद रिफाइनरी का खर्चा और पेट्रोल पंपो से ले जाने और पंप मालिकों के कमीशन आदि को मिला कर अगर 200 डॉलर का भाव हो गया तो हमें तमाम रियायतों के बावजूद एक लीटर पेट्रोल लगभग 75 रुपए में पड़ेगा। उस हालत में चुनाव में कांग्रेस का क्या हाल होगा यह समझा जा सकता है।

कृषि मंत्री शरद पवार आज बहुत हैरत में बता रहे थे कि हमारे पास इतना अनाज और आलू प्याज हुआ है कि किसानों के पास उसे रखने के लिए जगह नहीं है। भारतीय खाद्य निगम के गोदाम भी पूरी तरह भरे हुए हैं। श्री पवार का कहना यह है कि किसानों को सरकार उचित दाम नही दे पा रही और यह भी बाजार में आए संकट की एक जड़ है। अब श्री पवार को यह कौन याद दिलाए कि दो साल पहले जब अनाज के भंडार खाली थे तो विदेशों से खराब श्रेणी का गेंहू आयात करने के लिए भारत सरकार ने शायद उन्हीं की सहमति से जो दाम दिया था वही भारतीय किसानों को क्यों नही दिया जा सकता। अगर आप किसान की जेब और पेट भरा रखेंगे तो उनका कर्जा माफ करने की नौबत ही नही आएगी।

वामपंथी सबके सब लगता है कि अपने किचन गार्डन में सब्जियां और अनाज उगाते हैं। पूरा देश जब महंगाई को ले कर हैरान और परेशान था तो माक्र्सवादी पोलित ब्यूरो के महासचिव प्रकाश करात ने लगभग खीझ कर पत्रकारों से कहा कि महंगाई क्यों बढ़ी यह आप मुझसे क्यों पूछते हैं। उनसे पूछिए जिन्होंने पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए हैं और उन्हें एटमी करार की चिंता ज्यादा है। इस संदर्भ में कुत्तो की दुम वाला मुहावरा अपने आप याद आ जाता है। देश में सुनामी हो या चक्रवात अपने कामरेड भाई इंकलाब जिंदाबाद ही करते रहेंगे।

भारत में सिर्फ खाना ही महंगा नही हो रहा। थोक भाव इंडेक्स के आधार पर ही महंगाई का हिसाब किया जाता है और यह शुक्रवार की रात तक ग्यारह से काफी आगे निकल गया था। रिजर्व बैंक की सुरक्षित सीलिंग सीमा इस मामले में साढ़े पांच प्रतिशत की है। इसका सीधा असर बैंकों पर पड़ा है और घर से ले कर गाड़ी खरीदने तक के कर्जे फटाफट महंगे हो गए हैं। फरवरी में जब मुद्रास्फीति साढ़े पांच प्रतिशत के आस पास थी तो बैंकों को छुट दी गई थी कि वे अपनी आधार पूंजी यानी नकद कर्ज अनुपात यानी केश क्रेडिट रेशियो का प्रतिशत छह तक ले जा सकते हैं। आज की तारीख में यह प्रतिशत नौ करने की जरूरत आ गई है और इतना पैसा खुद रिजर्व बैंक के खजाने में भी नही है।

बहुत साल पहले जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तब यह नौबत आई थी कि रिजर्व बैंक का सोना भी विदेशी बैंकों के पास गिरवी रखना पड़ा था ताकि रुपए का दाम डॉलर के अनुपात में बहुत ज्यादा नही घट जाए। फिलहाल उलटी धारा चल रही है। रुपया डॉलर की तुलना में मजबूत होता जा रहा है और इस बात से चिदम्बरम भले ही खुश हों लेकिन कमल नाथ नाराज हैं क्योंकि निर्यात करने के लिए उन्होंने जो लक्ष्य अपने सामने रखा था वह अब डॉलर की कीमत से निर्धारित होता है और यह कीमत बदलने से निर्यात का इंडेक्स नीचे चला जाता है। निर्यात नही होगा तो देश में विदेशी मुद्रा नही आएगी और विदेशी मुद्रा का अभाव कम से कम कमल नाथ की राय में भारत को दुनिया के व्यापार जगत में बहुत पीछे ले जाएगा।

इस तर्क को अगर उलट कर देखें तो अगर निर्यात नही भी हो और रुपए का भाव बढ़ता रहे तो डॉलर का अनुपातिक दाम गिरेगा और भारत को मिलने वाला कच्चा तेल भी उन्ही बढ़े हुए डॉलर वाले दामों पर प्राप्त होगा। जाहिर है कि इसका असर महंगाई पर भी पड़ेगा और फिलहाल महंगाई के आंकड़ो को न सरकार अनदेखा कर सकती है और न किसी भी पार्टी के नेता। भाजपा के जो नेता उछल उछल कर बोल रहे हैं कि मनमोहन सिंह की सरकार महंगाई के मामले में फेल हो गई वे भी अगर किसी संयोग से सत्ताा में आए तो यही महंगाई उन्हें भी विरासत में मिलने वाली है और इससे सुलझने के लिए वे कोई ऐसे मौलिक प्रयास नही कर पाएंगे जिन्हें करने से वे अपने आप को महंगाई के इस प्रपंच से निकाल सकें।

वैसे सही बात यह है कि भारत सरकार को कम से कम आने वाले कुछ महीनों तक सारी और चिंताएं भूल कर महंगाई से सुलझने में ध्यान लगाना पड़ेगा क्योंकि एटमी करार इंतजार कर सकता है लेकिन अगर देश की जनता भूखी मरी और लोगों की जिंदगी दुभर हुई तो सरकार को कोई नही बचा पाएगा और यह सरकार ऐसे कारणों से गिरेगी जो दरअसल कुछ दिनों बाद उसके नियंत्रण से बाहर चले जाएगें। सोनिया गांधी के इस तर्क में कुछ नही धरा है कि राज्य सरकारें असल में इस महंगाई के लिए जिम्मेदार हैं। फिलहाल दामों पर राजनीति की बजाय राजनीति के मूल्य ठीक से तय किए जाने चाहिए और मूल्यों पर राजनीति नही की जानी चाहिए।

Thursday, June 19, 2008

दुर्भाग्य में वासना खोजते लोग



सुप्रिया रॉय

जब तक आप नाम रहते है और संज्ञा होने की सीमा से बाहर नही जाते, तब तक यह आभास कर पाना भी असंभव है कि आपके अस्तित्व का अर्थ आपके आस पास के समाज के लिए क्या है। चौदह साल की नादान और सपनो की दुनिया मे रहने वाली आरूषि तलवार को अपनी यह कीमत जान का दाम देकर चुकानी पड़ी। जिन लाल बत्तिायो पर वह अपनी स्कूल बस मे बैठ कर साथियो से हॅसी मजाक करते हुए निकल जाती थी, वहा पर लगें मजमो मे भी उसकी बात हो रही है और जिन अखबारो का उसने कभी नाम तक नही सुना था, उनमे भी उसकी मौत को ले कर किस्से और कहानियां रचे जा रहे है।

इस देश मे बल्कि हमारी दुनिया मे अक्सर यह होता है कि एक जीता जागता शख्स अचानक शीर्षको और फाइल नंबरो मे तब्दील हो जाता है और फिर उसके बारे मे वे लोग भी कहानियां कहने लगते है जिनसे उसका कभी वास्ता नही रहा होता। तलवार परिवार जिसे आम तौर पर गुमनाम और एक हसमुख परिवार कहा जाता था, जिसकी पूरी दुनिया अपनी बेटी के लाड प्यार के आस पास घूमती थी, अचानक दंत कथाओ की चीज बन गई है और इस घर का चप्पा-चप्पा इस तरह सार्वजनिक हो गया है जितना शायद ताजमहल या कोई दूसरी मशहूर इमारत भी नही रही होगी।

लोग और उससे भी ज्यादा सीबीआई इन दंत कथाओ की नियमित रचनाकार बन गई है। निष्पाप लोग अचानक गुनाहगार साबित कर दिये जाते है, सीबीआई डॉ. तलवार के यहा कंपाउडर कृष्णा को गैर कानूनी हिरासत मे ले कर उसके तमाम तरह के कानूनी परीक्षण करवा लेता है और बाद मे उसको हत्या के आरोप मे गिरफ्तार कर लिया जाता है। मोहल्ले, पड़ोस और दोस्तो का घेराव होता है और कभी आरूषि को चरित्रहीन बताया जाता है तो कभी उसके पिता की चरित्रहीनता को इस कांड की वजह बताया जाता है। एक त्रासदी मे भी स्वाद खोजने वाले इतने तल्लीन है कि आईपीएल का फाइनल भी टीआरपी मे इस खबर के सामने पिट जाता है। रामदेव से ले कर राजू श्रीवास्तव तक सब फेल हो जाते हैं और हमारी विकृत कल्पनाओं में एक विभत्स हत्या कांड मनोरंजन का पर्याय बन कर जीवित रहता है।

चलिए, पहले पुलिस और अब सीबीआई की बुरी से बुरी कल्पना को एक बार सच मान लें और यह मंजूर कर लें कि जेल में बंद राजेश तलवार ने ही अपनी फुल सी बेटी का पहले सिर फोड़ा और गला काट दिया। लेकिन इस पूरी कथा में आनंद लेने वालों को यह समझ में नही आता कि कानून की अदालत में जाने के पहले समाज की अदालत में अचानक फैसले क्यों होने लगे? एक पिता जिसे अपनी इकलौती बेटी खोने का संताप सता रहा है, उसे सहानुभूति मिलने की बजाय जेल में बंद कर दिया गया और इसके बावजूद बंद रखा गया जब सीबीआई के जासूस सरेआम कह चुके थे कि उन्हें कृष्णा के तौर पर असली कातिल मिल गया है।

विकृत आनंद लेने वालों में सिर्फ हमारे आपके जैसे टीवी देखने वाले या अखबार पढ़ने वाले लोग नही हैं बल्कि उस समय उत्तार प्रदेश पुलिस के आई जी गुरबख्श सिंह का वह चेहरा भुलाए नही भुलता जब वे मीडिया को यह बताने में लगे थे कि कैसे डॉक्टर साहब घर में घुसे और उन्होंने नौकर हेमराज और अपनी बेटी को आपत्तिाजनक स्थिति में देखा और आपे में दोनों की हत्या कर दी। सरदार गुरबख्श सिंह की वर्दीधारी वासना को सिर्फ यह कह कर चैन नही पड़ा, उन्होंने फिर से कहा कि आपत्तिाजनक स्थिति थी लेकिन वे लोग यानी वह नन्ही बच्ची और बूढ़ा हो रहा नौकर भोगविलास में नही डूबे थे। इस मूर्ख ने यह खुलासा करते हुए अपने परम मूर्ख अधिकारियों द्वारा तैयार केस डायरी भी ठीक से नही देखी थी जिसमें पिता अपनी बेटी के कमरे में बैठ कर उसके कम्पयूटर से किस किस को मेल कर रहा है और कौन कौन सी वेबसाइट देख रहा है, इसका पूरा ब्यौरा दर्ज है। अब तो सीबीआई भी कहती है कि नोएड़ा पुलिस ने जांच का कबाड़ा कर दिया।

जैसे सीबीआई ने जांच का बहुत कल्याण किया हो। पन्द्रह दिन से साले जांच करते घूम रहे थे और अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान के विशेषज्ञ साथ में थे लेकिन सोलहवें दिन अचानक राज खुलता है कि पोस्टमॉर्टम में आरूषि के साथ बलात्कार के संकेतों की ठीक से जांच नही की गई। इतने दिन तक इतने वैज्ञानिक परीक्षण करने और आकाश पाताल एक कर देने वाले इन अनपढ़ो को सबसे मूल प्रमाण और कारण की याद इतनी देर में आई। जाहिर है कि उनके लिए भी आरूषि तलवार अब फाइल नंबर से ज्यादा कुछ नही रह गई है।

आखिर यह समझ में आता है कि जिस देश में अपराध पत्रिकाएं और धार्मिक पत्रिकाएं दोनों ही सबसे ज्यादा बिकती हैं, वहां अपराध को और उसके दर्शन को धर्म करार दे देने वाले लोग भी कम नही होंगे। सीबीआई अब मीडिया पर तोहमत मढ़ने में लगी है कि उसे ठीक से और शांति से जांच नही करने दी गई। आज तक सीबीआई, पिछले पन्द्रह वर्षो में अपने द्वारा जांच किए गए मामलों में पन्द्रह फीसदी लोगों को भी सजा नही दिलवा पाई। उस पर वह बात करती है कि उसे सबूत मिलते जा रहे हैं और वह मामला सुलझाने के कगार पर ही है। सीबीआई भी न्याय पालिका की तरह आचरण कर रही है और बयान सबूत होने के पहले ही चाहे जिस को मुजरिम करार देने में जूट जाती है।

आरूषि की मौत के तीसवें दिन मुंबई में भी लगभग मिलती जूलती घटना घटी। इंजीनियरिंग कॉलेज की एक छात्रा अचानक लापता हो गई और उसके खास दोस्तों को ला कर झूठ पकड़ने वाली मशीन पर बिठा दिया गया। इस मशीन से करंट वगैरा तो नही लगता लेकिन उन पर सामाजिक लांछन तो लगा ही। आखिरकार इस लड़की की लाश उसके घर के पलंग के भीतर बने बॉक्स से बरामद हुई और अब उसके माता पिता को झूठ पकड़ने वाली मशीन पर बिठा दिया गया है। जांच में गोपनीयता बनाए रखने के नाम पर हमारी पुलिस और जांच एजेंसियां जितने झूठ बोलती हैं उस हिसाब तो इन सबका दैनिक लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाना चाहिए।

यहां आरूषि या मुंबई की वह अभागी लड़की मुल विषय नही है। मूल विषय है हमारे अंत:करण में छिपी बैठी वह वासना और हर घटना के पीछे अपनी दमित कल्पनाओं को आकार देने वाली वह भावना जिसकी वजह से आरूषि तलवार एक दुर्भाग्यवश मरे पात्र का नाम नही बल्कि एक धारावाहिक कथा बन जाती है और जिसे टीवी सीरियल में शामिल होने से रोकने के लिए चैनल को एक सरकारी पत्र लिखना पड़ता है। टीआरपी और सर्कुलेशन धंधें के हिसाब से अच्छे शब्द हैं लेकिन हर शब्द की और हर कर्म की अपनी सीमा होती है और इस सीमा को तोड़ने वालों का अपराध भी तो किसी को तय करना चाहिए। वैसे आप चाहें तो यह भी कह सकते हैं कि इस विषय पर इतना लिख कर मैंने भी लोकप्रियतावाद की इस दौड़ में शामिल होने की कोशिश की है। आजाद देश है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

कांग्रेस अब चुनाव की मुद्रा में

कांग्रेस अब चुनाव की मुद्रा में
आलोक तोमर

कांग्रेस ने भले ही एटमी करार के मामले पर वाम मोर्चा को भले ही उसकी औकात बता दी हो और फिर भी अपनी नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को टिकाए रखने का इंतजाम कर दिया हाें मगर सोनिया गांधी कोई खतरा मोल नही लेना चाहती। उन्होने चुनाव अभियान की शैली मे देश घूमना शुरू कर दिया है। इसी महीने वे लगभग पंद्रह साल बाद मिजोरम गयी थी जहां उनकी बांस की टोपी पहने तस्वीरे आपने अब तक देंख भी ली होगी।

इसके बाद उन्होने महाराष्ट्र के औरंगाबाद के दौरे का कार्यक्रम बनाया। यह विदर्भ का वह इलाका है जहां शरद पवार की खूब चलती है और भाजपा ने भी अच्छा खासा वोट बैंक विकसित किया है। शिव सेना का भी यहां खूब असर है। कांग्रेस जानती हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद अगर महाराष्ट्र भी हाथ से गया तो सरकार बनाने मे अच्छी खासी दिक्कते आ सकती है। कांग्रेस के पास श्रीमती सोनिया गांधी से ज्यादा बड़ा और जीत सुनिश्चित करवाने वाला कोई दुसरा नेंता नही है और जाहिर है कि सोनिया गांधी अपनी इस महिमा को अच्छी तरह समझती है और इसलिए वे अभी से चुनाव अभियान मुद्रा मे आ गयी है।

सोनिया गांधी के भाषण भी खासे चुनावी अंदाज मे होते है। इसके पहले कि दुसरे लोग महंगाई को मुद्दा बनाएं, खुद सोनिया गांधी मुद्रास्फीति और महंगाई की बात छेड़ देती है और लगे हाथ एटमी करार को सभी मुसीबतो का निदान बता कर एक तीर से कई निशाने साध लेती है। वे मनमोहन सिंह को उनकी गैर हाजिरी में देश का अब तक का सबसे काबिल प्रधानमंत्री करार दे देती है और इस चक्कर मे नेहरू जी, इंदिरा गांधी और अपने पति राजीव गांधी का नाम भी किनारे कर देती है। सोनिया गांधी वर्तमान मे रहने की राजनैतिक ललित कला सीख गई है।

मिजोरम की सभा उस दिन हुई जिस दिन के अखबारो के शीर्षक पेट्रोलियम के दाम और ज्यादा बढ़ने की आशंकाओ से भरे हुए थे। सोनिया गाधी अपने भाषण मे कहा - भाइयो और बहनो, आपको हमारे माक्र्सवादी मित्रो और देश की आत्म निर्भरता मे से एक का चुनाव करना है। एटमी करार को एक चुनावी मुद्दा बना देना न आकस्मिक है और न अनायास। अ्रगर यूपीए की सरकार दोबारा बनी तो बहुत आराम से यह कहा जा सकता है कि अब तो इस समझौते को जनादेश भी मिल गया है। अगर कांग्रेस और उसके साथी सरकार बनाने लायक बहुमत नही जुटा सके और भाजपा सहित किसी तीसरे चौथे या पांचवे मोर्चे की सरकार आई तो इस करार पर फैसला लेने की जिम्मेदारी होगी। भाजपा तो वैसे भी इस करार का विरोध बहुत मुखर हो कर नही कर रही है। उसका कहना सिर्फ यह है कि भारत के हितो को सर्वोपरि रखना चाहिए। इस मामले मे मनमोहन सिह पहले ही भारतीय हितो की रक्षा करने वाले दस्तावेज तैयार कर चुके है।

अब यह मनमोहन सिह का कसूर नही है कि माक्र्सवादियो को यह दस्तावेज और उसकी भाषा पसंद नही आ रही है। लेकिन यह कांग्रेस की चिंता का विषय जरूर है। वामपंथी सरकार के अस्तित्व के लिए पच्चीस जून तक की समय सीमा दे चुके है। इसके बाद अगर एटमी करार पर उनकी बात नही मानी गई तो वे समर्थन वापस लेगें और पक्की बात है कि अविश्वास प्रस्ताव ले कर आएगें। भाजपा उनका समर्थन करेगी और अभी तक जो गणित है उसके अनुसार सरकार यह विश्वास मत जीत भी सकती है मगर इसके लिए उसे मुलायम सिंह यादव आदि को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और यह कीमत सिर्फ राजनैतिक नहीं होगी। इसीलिए कांग्रेस अव्वल तो वामपंथियो को सरकार गिराने का सुख नही लेने देगी और बाइज्जत विश्वास मत जीत कर लोक सभा भंग करने की सिफारिश करेगी और फिर शान से चुनाव के मैदान में जाएगी।

जैसे कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि अगले आम चुनाव में माक्र्सवादियों के सांसदों की गिनती बीस तक घटेगी तो यही हाल लालू यादव का भी होने वाला है। वे दस जनपथ के वफादार सही लेकिन यूपीए के लिए गणित में मददगार नही होगें। लालू यादव का नुकसान नीतिश कुमार का लाभ होगा और कांग्रेस का मानना है कि वह धर्मनिरपेक्षता के टोटके के सहारे नीतिश कुमार और उड़ीसा के नवीन पटनायक को भी अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो सकेगी।

समीकरणों पर और गणित पर ही जब पूरी राजनीति चलनी है तो एटमी करार से बढ़िया मुद्दा कांग्रेस को नही मिल सकता। जहां बिजली नही है, और वह देश के ज्यादातर हिस्सों में नही है, मतदाता को आसानी से समझाया जा सकता है कि अगर लेफ्ट वालों ने यह करार होने दिया होता तो आपके घर इस समय दीवाली मन रही होती। सौ बातों की एक बात यह है कि कांग्रेस अब आम चुनाव की मुद्रा में आ चुकी है और जाहिरा तौर पर वामपंथियों को ब्लैकमेलर साबित करने पर तुल गई है। शुरूआत बहुत पहले ही खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कर दी थी जब हरियाणा की एक सभा में कई महीने पहले उन्होंने गरज कर कहा था कि वामपंथी सरकार कल गिरा रहे हों तो आज गिरा दें लेकिन यूपीए उनकी धमकियों के बीच नही चलेगा और हमें कुर्सी से कोई खास मोह नही है।

उधर कांग्रेस भी जानती है कि भाजपा को भले ही साथियों की कमी खल रही हो, उसे हल्का प्रतिपक्ष मान कर नही चला जा सकता। आखिरकार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस लगातार हारती जा रही है और भाजपा उसका सफाया करती जा रही है। जब यूपीए सरकार बनी थी तो उसके पास चौदह राज्य सरकारे थीं जो अब घट कर चार रह गई हैं। इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कोई बहुत चमकदार नतीजों की उम्मीद नही करनी चाहिए। जिस राजस्थान में भाजपा घिसटती हुई दिख रही थी वहां भी गुर्जरों और उनके साथ दूसरी जातियों के गरीबों को आरक्षण दे कर वसुंधरा राजे ने तुरप चाल चल दी है। सोनिया गांधी को इन राज्यों में लोकल नेता की तरह मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि मध्य प्रदेश, छत्ताीसगढ़ और राजस्थान में जो लोकल नेता उन्होंने भावी शासक बना कर भेजे हैं उनमें से ज्यादातर का कोई जनाधार ही नही है। इसके अलावा कांग्रेस को यह अच्छी तरह याद है कि तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार करेंगे। इसीलिए आश्चर्य नही होना चाहिए कि सरकार विश्वास मत जीते और अगले दिन लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दे।

Tuesday, June 10, 2008

चंदन मित्र का नया पता





राजेन्द्र जोशी
डेटलाइन इंडिया
देहरादून, 8 जून-उत्तराखंड में भाजपा की सरकार आने का सबसे बडा लाभ तो खैर मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने वाले भुवन चंद्र खंडूडी को हुआ है लेकिन वामपंथी से भाजपा के सांसद बने पत्रकार और फिल्माें तथा वास्तविक जीवन की हीरोइनों के प्रेमी चंदन मित्र भी कम फायदे मे नहीं रहे।

इन्हीं पन्नो पर आप पढ़ चुके है कि चंदन मित्र को भाजपा ने उत्तराखंड के मामले में रिपोर्ट तैयार करने और वहां के कामकाज की जानकारी हाई कमान को देने के लिए अधिकृत किया था। इस सिलसिले में देहरादून गए चंदन मित्र अपने अखबार के लिए भी मोटे विज्ञापन वसूल लाए। यह कहानी का सिर्फ एक पहलू है। नई कहानी यह है कि नैनीताल जिले के खूबसूरत हिल स्टेशन रामगढ के पास चंदन मित्र अचानक पचास लाख रुपये की जमीन के मालिक हो गए है और अब वहां एक करोड़ रुपये की अनुमानीत लागत से उनका बागान और रमणीय रिसॉर्ट बन रहा है। चंदन मित्र को जिस अखबार पायनियर का मालिक बनवाने और अखबार चलाने में लालकृष्ण आड़वाणी ने एक बडी बैंक से एनडीए सरकार के दौरान दिल खोल कर मदद दिलवाई थी, उसका दिल्ली संस्करण अब भी घाटे में चल रहा बताया जाता है और कर्मचारियों को समय पर वेतन भी नहीं मिलता। और तो और, अंग्रेजो द्वारा स्थापित इस अखबार में विश्व प्रसिध्द जंगल बुक के लेखक रूडयार्ड किपलिंग के काम करने का प्रचार बहुत जोर शोर से पायनियर के विज्ञापनों में किया जाता है, उनका इलाहाबाद स्थित मकान जर्जर हालत में है और कभी भी गिर सकता है।

एक तरफ अखबार के संपादक करोडों का आसियाना बनवा रहे है तो दूसरी ओर इस अखबार से जूडे रहे एक बडे नाम की विरासत को सहेजने के लिए भी यह अखबार पैसा नहीं खर्च करना चाहता। भाजपा की जैसे जैसे राज्य सरकारो में स्थापना होती जा रही है, जाहिर है कि चंदन मित्र का अखबार और निजी तौर पर खुद श्री मित्र भी अच्छी-खासी तरक्की करेंगे। दिल्ली में भी चंदन मित्र की अच्छी खासी कोठी है और उसका दाम चार करोड़ रुपये से कम नहीं आंका जा सकता। इसके पहले वे इंडियन एयरलाइंस की सहयोगी संस्था अलायंस एयर के यात्रियों के लिए एक पत्रिका दर्पण निकाला करते थे और इस पत्रिका मेंं भी भाजपा शासित राज्यों के , खासतौर पर पर्यटन विभागों के विज्ञापन बहुत धडल्ले से छपा करते थे। इन विज्ञापनों की आमदनी की साझेदारी को लेकर इंडियन एयरलाइंस से उनका विवाद हुआ और एयरलाइंस ने ये पत्रिका चंदन मित्र से छीन ली। वियाग्रह के चलते फिरते विज्ञापन चंदन मित्रा से बहुत लोगों को इर्श्या हो सकती ह।ै लेकिन सब भगवा झंडा ओढ़ने के लिए वामपंथी दोस्तो को दगा नहीं दे पाते।

Tuesday, June 3, 2008

हत्या, मंत्री, पत्रकार और रिश्वत





डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 जून - असम के शिक्षा मंत्री रिपुन बोरा आज जब दिल्ली में सीबीआई के एक अधिकारी को रिश्वत देते पकड़े गए तो पत्रकारों और दिल्ली के व्यापारियों के बीच एक बहुत विवादास्पद गठजोड़ का भी खुलासा हो गया। रिपुन बोरा असम में हत्या के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं और कुख्यात सांसद मणिकुमार सुब्बा के सहयोगी माने जाने वाले रिपुन बोरा को मंत्रिमंडल से फिर भी नही हटाया गया था।

रिपुन बोरा पर छात्र नेता डेनियल टोपो की हत्या का आरोप है। टोपो चाय बगान मजदूरों के छात्र बेटों का संगठन चलाते थे और 1996 विधानसभा चुनाव में रिपुन बोरा चुनाव हार गए थे। और इसके लिए वे टोपो को जिम्मेदार मानते थे। 2001 में हुए विधानसभा चुनाव में उसी गोहपुर सीट से रिपुन बोरा लड़े और जीते लेकिन इसके पहले 27 सितंबर 2000 को डेनियल टोपो की हत्या कर दी गई थी। रिपुन बोरा मंत्री थे इसलिए असम पुलिस ने जांच खत्म कर दी और कहा कि हत्याकांड का पता नही चल रहा है। इसके बाद जांच सीबीआई ने अपने हाथ में ली और रिपुन बोरा के खिलाफ लगातार सबूत मिलते चले गए।

रिपुन बोरा आतंकित थे और उन्होंने दिल्ली में असम के एक अखबार के संवाददाता मुकुल पाठक के जरिए सीबीआई के जांच अधिकारी से संपर्क किया। बगैर मांगे इस अधिकारी को दस लाख रुपए की रिश्वत का प्रस्ताव दिया गया ताकि वह मामला खत्म कर सके। सीबीआई ने जाल बिछा लिया था और रिपुन बोरा ने असम में कारोबार करने वाले दिल्ली के एक व्यापारी रमेश महेश्वरी को दस लाख रुपए का इंतजाम करने के लिए कहा। यह खुलेआम रिश्वत का मामला था। पैसे का इंतजाम हुआ।

असम भवन की कार में बिठा कर अधिकारी को मथुरा रोड़ पर एक मकान में लाया गया और रिपुन बोरा ने खुद एक हजार के नोटों की शक्ल में दस लाख रुपए अधिकारी को सौंपे। वे नही जानते थे कि जाल बिछा हुआ है और वे बुरी तरह फंसने वाले हैं। बोरा ने जैसे ही पैसे दिए, अधिकारी ने मोबाइल पर पहले से निर्धारित और तैयार एसएमएस भेज दिया। सीबीआई की पूरी टीम अंदर घुसी और मामला बिगड़ता देख कर मंत्री जी ने पिछले दरवाजे से भागने की कोशिश की। लेकिन उन्हें वहां भी सीबीआई के अधिकारी इंतजार करते मिले। पत्रकार पाठक भागा हुआ है लेकिन दस लाख देने वाले व्यापारी रमेश महेश्वरी को कैद कर लिया गया। बोरा को यह खबर मिलते ही मंत्रिमंडल से निकाल दिया गया है और उन्हें सीबीआई मुख्यालय में ले जा कर पूछताछ जारी है।

सीबीआई की जांच के पहले दिन खुले रहस्य
हरियाणा के बड़े नामों पर नजर


डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 जून- सीबीआई ने दिल्ली पुलिस के सहायक आयुक्त राजबीर सिंह की हत्या का मामला आज औपचारिक रूप से अपने हाथ में लिया और फिलहाल गुड़गांव पुलिस की एफआईआर के अनुसार हत्यारे विजय भारध्दाज के खिलाफ ही जांच शुरू नही की। अब सीबीआई राजबीर सिंह के पूरे परिवार और उसके परिचित लोगों और उनके निवेशों के बारे में पड़ताल कर रही है और सिर्फ आज की तारीख में एजेंसी ने आठ बैंको में बीस खाते जांच के दायरे में ले लिए हैं।


चौबीस मार्च को दिल्ली पुलिस के एनकांउटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह को गुड़गांव में गोली से उड़ा दिया गया था और प्रोपट्री डीलर विजय भारध्दाज ने ही खुद स्वीकार किया था कि उसने राजबीर सिंह को पैसे अदा ना कर पाने के कारण मारा था। सीबीआई ने बहुत हिम्मत कर के एक पत्र केबिनेट सचिवालय को भी भेज दिया है जिसके अनुसार जेड प्लस सुरक्षा वाले राजबीर सिंह के सुरक्षा कर्मियों की लापरवाही के बारे में हुई जांच की रिपोर्ट मांगी गई है। इसके अलावा हरियाणा की राजनीति और कारोबार के कई बड़े नाम सीबीआई की सूची में हैं जिनसे एक एक कर के पूछताछ की जाएगी।


गुड़गांव पुलिस दिल्ली पुलिस की मदद ले कर भी अब तक राजबीर सिंह की लेन देन वाली डायरी बरामद नही कर सकी है और सीबीआई अधिकारियों के अनुसार राजबीर सिंह के हत्या के उद्देश्य को ले कर उसकी पहली प्राथमिकता इस डायरी की बरामदगी है। इसीलिए राजबीर सिंह के परिवार और खासतौर पर उसकी बहन और पत्नी से पूछताछ की जाएगी। सीबीआई निदेशक विजय शंकर ने अपनी एजेंसी को इस मामले में चार्ज शीट दाखिल करने के लिए तीन महीने का समय दिया है। यह बात अलग है कि अगले ही महीने विजय शंकर रिटायर हो रहे हैं। राजबीर सिंह अपनी हिम्मत और मुठभेड़ो में सफलताओं के कारण सब इंस्पेक्टर से एसीपी के पद पर पहुंचे थे लेकिन संपत्तिा विवादों को ले कर उन पर कई बार गंभीर आरोप भी लग चुके थे।

सीबीआई की जांच के दायरे में दिल्ली पुलिस के कई वर्तमान और भूतपूर्व अधिकारी भी हैं और सीबीआई अधिकारियों के अनुसार राजबीर सिंह के अंडर वर्ल्ड से भी संबंध थे। अधिकारियों ने स्वीकार किया कि पहली नजर में विजय भारध्दाज कातिल तो है लेकिन इस पूरे मामले में वह अकेला नही है। जिस पिस्तौल से राजबीर की हत्या की गई वह सरकारी थी और हरियाणा पुलिस के अधिकारी अशोक शरण को आबंटित की गई थी। अशोक शरण का कहना है कि एक छापे के दौरान हिसार जिले के दादरी इलाके में 21 जुलाई 2007 को यह पिस्तौल खो गई थी। सीबीआई इस गुत्थी को सुलझाने के लिए अशोक शरण से भी नए सिरे से पूछताछ करेगी।

सीबीआई को बहुत लोगों पर शक

डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 जून - आरूषि-हेमराज हत्याकांड में सीबीआई चौबीस घंटे की रिमांड में भी आरूषि के पिता डॉक्टर राजेश तलवार से कुछ निकलवा नही पाई।

वैसे भी सीबीआई अब एक एक कर के इस जांच से जुड़े नोएडा पुलिस के अधिकारियों को बुलाने वाली है और उन्हें बताने वाली है कि इस जांच में उन्होंने कितनी बड़ी मूर्खताएं की हैं। सीबीआई अधिकारियों को राजेश तलवार को दो दिन की रिमांड और मिल गई है और नॉर्को टेस्ट के बारे में अभी उसे अनुमति नही मिली है।

खुद सीबीआई अधिकारी मानते हैं कि इस मामलें में राजेश तलवार एक तो मुख्य अभियुक्त नही हैं क्योंकि खुद एफआईआर उन्होंने लिखवाई थी और इसमें हेमराज को कातिल बताया गया था। तब तक हेमराज की लाश नही मिली थी। इसके अलावा आज अदालत में सीबीआई के वकील ने यह भी कहा कि राजेश तलवार से नोएडा पुलिस द्वारा की गई पूछताछ समय की बर्बादी थी और अगर घर सील कर के जांच की जाती तो पहले ही दिन मामला सुलझ जाता। नतीजा साफ था।

नोएडा के एसएसपी और तलवार को कातिल घोषित करने वाले आई जी गुरदर्शन सिंह से भी सीबीआई अब पूछताछ कर सकती है। पहले दिन की जांच में सीबीआई ने इतना पता लगा लिया है कि आरूषि से बलात्कार की कोशिश या बलात्कार नही हुआ था, उस रात घर में कम से कम तीन बाहरी लोग आए थे, हेमराज की हत्या अचानक नही बल्कि काफी गुत्थमगुत्था होने के बाद हुई थी, हेमराज नेपाली होने के बावजूद खुखरी नही रखता था इसलिए उसे हत्या का हथियार नही माना जा सकता, और आखिर में यह भी जब तक हत्या का हथियार बरामद नही हो जाता तब तक राजेश तलवार की इस कांड में भूमिका के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नही कहा जा सकता।

सीबीआई की छह सदस्यों वाली टीम हरिद्वार भी हो आई है और वहां आरूषि के अस्थि विसर्जन करने वाले पंडो को पूरे छह घंटे तक एक स्थानीय होटल में पूछताछ के लिए बंदं रखा। मुख्य पंडे के मोबाइल रिकॉर्ड उसके बयानों को झूठ साबित करते हैं। यह झूठ इस पंडे ने खुद बोला या इसकी कीमत वसूल की, सीबीआई को यह भी पता लगाना है। पंडे ने तलवार परिवार का आने और जाने का जो समय बताया है वह गलत पाया गया है और यह भी पाया गया है कि जो समय वह अस्थि विसर्जन का बता रहा है उस समय वह अपना बिजली का बिल भरने गया हुआ था।


इस दौरान तलवार से उसकी तीन बार बात हुई और तलवार परिवार उस समय घाट पर ही मौजूद था। राजेश तलवार धीरे धीरे हत्या के आरोप के दायरे से तो दूर होता जा रहा है लेकिन उसके अटपटे बयान सीबीआई की समझ में नही आ रहे। सच जानने का तरीका सिर्फ नॉर्को टेस्ट बचता है।

Sunday, June 1, 2008

अतीत और भविष्य में जाने की तैयारी

अतीत और भविष्य में जाने की तैयारी

डेटलाइन इंडिया
कैप कार्निवाल, अमेरिका, 1 जून- अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के पास एक पूरा कार्यक्रम भी है और इसके लिए पर्याप्त पैसा भी, लेकिन एक प्रयोग को ले कर खुद अमेरिका की सरकार से उसकी ठनी हुई है। यह प्रयोग सापेक्षता के नियम को इस्तेमाल करते हुए अतीत और भविष्य में यात्रा का है।

नोबेल पुरस्कार विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन के इस सिध्दांत कें उनसार प्रकाश की गति से चलने पर पृथ्वी के समय से बहुत आगे और बहुत पीछे जाया जा सकता है। अब तक की अंतरिक्ष उड़ानों में इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है कि अंतरिक्ष यात्री यात्रा में छह महीने रहते हैं तो पृथ्वी पर छह साल का औसतन समय बीत जाता है। मंगल पर गए फीनिक्स को पृथ्वी के समय के हिसाब से वहां पहुंचने में छह महीने और दो दिन लगे जब कि फीनिक्स की घड़ियां बताती हैं कि यह यात्रा तिरेपन घंटे में पूरी हो गई। नासा के वैज्ञानिक भी मानते हैं कि सिध्दांत के तौर पर धरती के समय की सीमा को पार करते हुए अतीत और भविष्य दोनों में जाया जा सकता है।

1981 से लगातार नासा के प्रशासक अमेरिका सरकार से यह प्रयोग करने की अनुमति चाह रहे हैं लेकिन अमेरिकी सीनेट ने इस प्रयोग की नैतिकता और परिणामों पर लंबा विचार करके रपट अपने पास रख ली है। समिति की आपत्तिायां काफी व्यवहारिक और सनसनीखेज हैं। पहली आपत्तिा तो यह है कि मनुष्य अगर भविष्य में पहुंच गया तो वह अपनी अगली कई पीढ़ियों से एड़वांस में मिल लेगा और उससे सामाजिक रचना और व्यक्ति का जीवन भी प्रभावित होगा। वह अपनी मौत भी देख लेगा और खुद को दफनाए जाते हुए भी देख लेगा। ऐसा होने पर व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ने की पूरी संभावना है।

अमेरिकी सीनेट की कमेटी ने अतीत में जाने के बारे मे बहुत मनोरंजक उदाहरण दिया है। इसके अनुसार कोई व्यक्ति तीन पीढ़ी पीछे अतीत में पहुंचा और उसने वहां अपने दादा-दादी को जवानी की हालत में पाया। उसने किसी तरह उनकी हनीमून रोक दी, तो जाहिर है कि न उसके पिता पैदा होगें और न उसके इस संसार में आने का कोई कारण बचेगा। धारणा काल्पनिक ही है लेकिन अतीत में एक बार पहुंच कर वर्तमान हो जाने के बाद ऐसी किसी घटना से इंकार नही किया जा सकता। इसी तरह सीनेट ने यह भी एक तर्क दिया है कि आज की तारीख में अतीत में पहुंचने वाले किसी व्यक्ति का जमीन जायदाद का झगड़ा किसी से चल रहा है तो वह अतीत में जा कर उसके पूर्वजों को ही निपटा देगा और इस आधार पर आने वाली पीढ़ियां ही मिट जाएगीं।

नासा का यह सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रयोग के तौर पर भी इसीलिए खटाई में पड़ा है। चूहों और खरगोशों पर इस तरह के प्रयोग किए जा चुके हैं और वे सफल भी हुए हैं। एक खरगोशों के जोड़े को अंतरिक्ष में भेजा गया और तीन महीने बाद जब यह जोड़ा लौटा तो उसकी पीढ़ी के खरगोश बूढ़े हो कर मर भी चुके थे और उनकी तीसरी पीढ़ी चल रही थी। यह बहुत कुछ ऐसा ही है कि आप आज अंतरिक्ष में जाए, दो साल बाद लौटें तो अपने सारे दोस्तों की तस्वीरों पर माला चढ़ी देखें और शाम को जब टहलने निकले तो उन दोस्तों के बेटे या पोते पार्क में छड़ी ले कर टहलते हुए नजर आएं। सीनेट ने ईसाई धर्म का हवाला देते हुए इसे प्रकृति और ईश्वर के सिध्दांत के साथ अन्याय बताया है।

अभिषेक वर्मा ब्लैकमेल पर उतरा


डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 1 जून- नेवी वॉर रूम मामले में जमानत पर छूटे अभिषेक वर्मा ने कल पूरी रात अपने खास दोस्तों के साथ दक्षिण दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में पार्टी की। भुगतान उन्होंने अपने क्रेडिट कार्ड से किया। लगभग दो लाख रुपए का यह भुगतान होटल को तो मिल गया मगर सवाल अब भी बाकी बचा है कि लगभग चार साल तिहाड़ जेल में रहने के बाद भी उनका कार्ड चालू कैसे था और इसका इस्तेमाल और भुगतान कौन कर रहा था।

अभिषेक के अपने सारे ज्ञात बैंक खाते तो सील हैं। इसी पार्टी में अभिषेक ने जो बड़े बड़े बयान दिए वे बहुत गंभीर हैं। इन बयानों से जाहिर है कि वे कांग्रेस के बड़े नेताओं और यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तक को ब्लैकमेल करना चाहते हैं। ब्लैकमेल का उपकरण र्स्कोपियन पनडुब्बी सौदे में दलाली का मामला है और अभिषेक वर्मा इतना भी बोल पा रहा है तो इसकी वजह यह है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो - सीबीआई ने आपस में जुड़े नेवी वॉर रूम लीक और इस सौदे की दलाली के मामले में अदालत के बार बार कहने और समय सीमा तय करने बावजूद अब तक अपनी अंतिम रपट नही दी है। सीबीआई के अधिकारी इस संबंध में यह भी नही बता पाए हैं कि नेवी वॉर रूम लीक और पनडुब्बी सौदे में आपस में सीधे क्या संबंध है। सीबीआई ने इस मामलें में अब तक कई जांच अधिकारी बदले हैं, अदालत में सरकारी वकील बार बार बदले गए हैं और जो सीबीआई अभी दो महीने पहले तक यह कह रही थी कि अभिषेक वर्मा को जिंदगी भर जेल में रखने के लिए उसके पास पर्याप्त प्रमाण हैं, उसी ने अब अदालत को कहा है कि उसके पास सूचनाएं तो हैं लेकिन इनके बारे में प्रमाण मिलना बाकी है।

अभिषेक वर्मा की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि उसने सीधे श्रीमती सोनिया गांधी से मिलने के लिए भी समय मांगा है। यह समय उसे मिलेगा या नही इस बारे में कांग्रेस नेता एकदम खामोश हैं और अभिषेक वर्मा की माँ रीता वर्मा असली धर्म संकट में हैं क्योंकि वे अब भी कांग्रेस की सदस्य हैं और भूतपूर्व सांसद होने के नाते अब भी संगठन की कई समितियों में हैं। अभिषेक वर्मा ने आज असली मुसीबत में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा को डाला। अभिषेक उनके बंगले पर पहुंचे और अंकल कह कर बाकायदा उनके पांव छुए।

श्री वोरा को और कुछ नही सूझा तो उन्होंने एक फोन करने के बहाने बंगले के भीतर जाने में ही खैरियत समझी। हालांकि उनका सचिव मोबाइल और कॉर्डलैस फोन ले कर साथ में ही खड़ा हुआ था। अभिषेक भाजपा के नेताओं से भी मिलना चाहते हैं और उन्होंने एक साझा मित्र के जरिए भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी से भी समय मांगा है। जाहिर है कि जेल से निकले अभिषेक वर्मा अपनी इस आजादी को अपनी अदालती मुक्ति के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। लेकिन श्रीमती सोनिया गांधी और दूसरे कांग्रेसी नेताओं को ब्लैकमेल कर के वे कुछ कर पाएंगे इसकी संभावना बहुत कम दिखती है। उन्होंने तीस लाख रुपए जमानत के तौर पर कहां से जमा करवाए इसकी भी जांच की जा रही है।

अमरिंदर और उनकी आरूसा


अमरिंदर और उनकी आरूसा
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 1 जून - प्रकाश सिंह बादल की सीआईडी ने पिछले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की हसीन प्रेमिका या मित्र अरूसा आलम के बारे में पड़ताल करके पूरी जानकारी गृह मंत्रालय को भेज दी है और मांग की है कि गुप्तचर ब्यूरो से भी पड़ताल करवा के अमरिंदर सिंह के खिलाफ देशद्रोह और आफीशियल सीक्रेट एक्ट के तहत मुकदमा कायम किया जाए। इन दोनों अपराधों में फांसी से ले कर उम्र कैद तक की सजा है।

अभी तक जमा की गई जानकारी के अनुसार पहले पाकिस्तान के सैनिक शासक याह्या खान और फिर कुछ समय जुलफिकार अली भूट्टो की अंतरंग मित्र रही और अपने प्रभाव के कारण रानी जनरल के नाम से कुख्यात माँ की बेटी अरूसा आलम के आईएसआई से सीधे संपर्को के सबूत मिले हैं और भारत के एक निर्वाचित राजनेता का उसके साथ अंतरंगता बढ़ाना संदेह का विषय है। सीआईडी रिपोर्ट में विदेश सचिव श्री शिव शंकर मेनन का भी नाम है जिनकी अरूसा से दोस्ती तब हुई थी जब मेनन पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त थे और उन्हीं के कहने पर अरूसा आलम को भारत में असीमित प्रवेश वाला वीजा मिला था। यह विशेषाधिकार भारत सरकार ने आज तक किसी दूसरे पाकिस्तान पत्रकार को नही दिया है। हाल ही में सरबजीत सिंह को छुड़ाने में लगे पाकिस्तान के भूतपूर्व मंत्री अजीज बर्नी को दिल्ली हवाई अव्े से ही वापस लौटा दिया गया था। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार बावन साल की हो चुकी अरूसा अब भी काफी हसीन दिखती हैं और रसिया पटियाला नरेश हाल ही में हिमाचल की वादियों में उनके साथ हनीमून की मुद्रा में घूम कर आए हैं।

अरूसा आलम पेशे से पत्रकार हैं और उन्हें राजनयिक और जासूसी मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। परवेज मुशर्रफ के सबसे करीबी लोगों में उनकी गिनती है और मुशर्रफ जब भी किसी विदेश यात्रा पर गए तो यह देवी जी जरूर साथ गई। जब श्री मुशर्रफ पिछली भारत यात्रा पर आए थे तब भी अरूसा उनके साथ आए पत्रकारों के दल में थी और यह संयोग नही हो सकता कि बाकी पत्रकारों से अलग, ताज होटल के पास पंजाब सरकार के महल कपूरथला हाउस जिसे अब अतिथि गृह बना दिया गया है, में ठहरीं और इस दौरान राजा अमरिंदर सिंह भी दिल्ली में ही रहे। अमरिंदर सिंह की पत्नी रानी परणीत कौर लोक सभा की सदस्य हैं और वे अपने पति के इस बुढ़ापे के प्रेम की शिकायत कई बड़े कांग्रेसी नेताओं से कर चुकी हैं जिनमें अब कांग्रेस से बाहर कर दिए गए अमरिंदर सिंह के बहनोई और भूतपूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह भी हैं। अरूसा ने कॉलेज से निकतते ही इस्लामाबाद के पहले अंग्रेजी अखबार डेली मुस्लिम में रक्षा संवाददाता के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्हें सीधे रक्षा और राजनयिक संवाददाता बना दिया गया। इस दौरान आईएसआई के कई बड़े अधिकारियों के संपर्क में आईं और उस समय उन्हें भारत विराधी कामों के लिए जाना जाता था। इसके अलावा उन्होंने एक मीडिया एनजीओ भी बनाया जिसे सीधे सीधे आईएसआई से मदद मिलने की खबर आम हैं।

फिलहाल रावलपिंडी-इस्लामाबाद प्रैस क्लब की उपाध्यक्ष अरूसा पाकिस्तान ऑबजर्वर में काम करती हैं जिसके मालिक जाहिद मलिक पाकिस्तान के एटम बम के संस्थापक और फिलहाल एटमी रहस्यों की तस्करी के आरोप में घर में नजरबंद है। अरूसा ने एक ब्रिटिश राजनयिक गार्डन हाईलेंडर के पाकिस्तानी औरताें के साथ संबंध उजागर किए थे और यह करने के लिए वे उनके बेडरूम में भी चली गईं थीं। वह भी तब जब वे अपनी हनीमून से लौटीं ही थीं। दो बच्चों की माँ अरूसा मशहूर गायक अदनान सामी की मौसेरी बहन हैं और उन्होंने अपने बेटे को भी एक पॉप बैंड बनाने में अदनान सामी की मदद की है। पाकिस्तान अखबारों के अनुसार वहां के राजनेता भी अमरिंदर और अरूसा के रिश्तों को ले कर चिंतित हैं और हाल ही में अरूसा ने रावलपिंडी में एक कोठी खरीदी है जिसका दाम पाकिस्तानी मुद्रा में सात करोड़ रुपए बताया जाता है। सीआईडी का आरोप है कि यह रकम श्री अमरिंदर सिंह ने अपनी खूबसुरत मित्र को भेंट की थी।

अमरिंदर सिंह पर आरोप सिर्फ सीआईडी ही नही लगा रही बल्कि अकाली दल के ही एक संगठन के नेता और भूतपूर्व आईपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान ने भी यही आरोप अमरिंदर सिंह पर लगाए हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि आरूसा को कश्मीर में भी घूमने का खास इंतजाम अमरिंदर सिंह ने ही करवाया और गुलाम नबी आजाद ने उनकी इस काम में पूरी मदद की। जहां तक आरूसा का सवाल है तो वे इन दिनों पेरिस में एक फैशन शो में हिस्सा लेने गई हैं।