आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Saturday, May 31, 2008

एक कलंकित कांग्रेसी अभिषेक




आलोक तोमर

पैंतीस साल की उम्र में अरबपति बन कर लंदन में घर खरीदने और पिकनिक के लिए पानी का जहाज, दिल्ली और लंदन में रहने के लिए कोठियां रखने वाले छत्ताीसगढ़ के बिलासपुर के एक परिवार के लड़के अभिषेक वर्मा को आज तिहाड़ जेल से मुक्ति मिल गई। सांसद पिता श्रीकांत वर्मा और सांसद मांँ रीता वर्मा के बेटे अभिषेक पर पनडुब्बी घोटाले में दलाली करने और नौ सेना के रहस्य खरीद कर बेचने वाले नेवी वार रूम लीक मामले में मुख्य अभियुक्त होने का आरोप है और उसके जमानत पर रिहा होने का मतलब कांग्रेस के कई बड़े नेताओं की आफत आ जाना है।

इन नेताओं में सबसे पहली कतार में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और छत्ताीसगढ़ के कांग्रेसी नेता और कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा के अलावा श्रीमती सोनिया गांधी के सचिव विन्सेंट जॉर्ज के भी नाम हैं। इस तथाकथित घोटाले की जांच सीबीआई कर रही है और इसके सिलसिले में नौ सेना के एडमिरल से ले कर सेना के कर्नल तक स्तर के अधिकारी अब भी बगैर सुनवाई के तिहाड़ जेल में बंद हैं। यह मामला फ्रांँस की एक कंपनी का है जिसमें भारत की नौ सेना को स्कोर्पियन नाम की पनडुब्बियां बेचने का सौदा किया था और इस सौदे के खिलाफ नौ सेना अधिकारी, रक्षा मुख्यालय और खुद प्रणब मुखर्जी बताए जाते थे लेकिन इस सौदे में लगभग सात सौ करोड़ रुपए की सिर्फ दलाली शामिल है।

जाहिर है कि आकार और रकम के मामले में यह सौदा बोफोर्स का भी बाप है। अभिषेक वर्मा जवान होने के पहले ही करामाती हो गए थे और सबसे पहले उनका नाम तब उछला था जब उन्होंने करोल बाग दिल्ली के एक ज्वेलर सुभाष चंद्र बड़जात्या को इनकम टैक्स अधिकारी अशोक अग्रवाल के साथ मिल कर करोड़ों रुपए का चुना लगाया था। इस मामले में लाभ पाने वालों में विन्सेंट जॉर्ज का नाम आने के बाद मामला दब गया था और सिर्फ अशोक अग्रवाल को नौकरी से हाथ धोना पड़ा और जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा।

यह सीबीआई ने सच पाया है कि दलाली ली गई थी और इस भुगतान की कहानी बड़ी मनोरंजक है। अक्टूबर 2005 में तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी ने फ्राँस की थेल्स कंपनी से पनडुब्बियों का करार किया और अगले ही दिन थेल्स चेरिटेबल ट्रस्ट 2, डेशवुड लांग रोड, हडलिस्टन, सरे, इंग्लैंड में पांच करोड़ डॉलर दो किस्तों में स्विटजरलैंड की यूबीएस बैंक ज्यूरिक के खाता नंबर 0026324 से एलजीटी बैंक बडूज, लिंकेस्टिन में जमा करवा दिए। सीबीआई के पास इस बात का रिकॉर्ड है कि इसके तुंरत बाद अभिषेक वर्मा लिंकेस्टिन गया और वहां से इस एकाउंट से सारे पैसे निकाल कर वापस अपने स्विस बैंक एकाउंट में रख दिए। सौदा पूरा हुआ।

कांग्रेस को असली चिंता हो सकती है तो अभिषेक वर्मा की रिकॉर्ड की हुई बातचीत और उसके ई मेल रिकॉर्ड से हो सकती है। आखिर जब स्कोर्पियन बनाने वाली थेल्स कंपनी के प्रेसिडेंट भारत में थे तो अभिषेक वर्मा ने इस सौदे से संबंधित कई लोगों को ई मेल लिखी और एक ई मेल में साफ लिखा है कि थेल्य के प्रेसिडेंट सीधे सोनिया गांधी से मिलना चाहते हैं लेकिन जो भी सौदा होगा वह कांग्रेस की ओर से मैं करूगां और मैं ही संबंधित महिला यानी श्रीमती सोनिया गांधी को पैसा पहुंचाऊगां। इसी दौरान अभिषेक ने अपने पिता के दोस्त और कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा से 28 मई 2005 को फोन पर दिन के एक बज कर तैंतीस मिनट से एक बज कर चालीस मिनट तक यानी पूरे सात मिनट बात की और यह बातचीत सीबीआई के रिकॉर्ड में है। कांग्रेस का खजांची अगर हथियारों के किसी दलाल से सात मिनट तक बात करता है तो वह कम से कम हनुमान चालीसा तो नही पढ़ रहा होगा। इस घोटाले में नौ सेना अध्यक्ष अरुण प्रकाश के भतीजे रवि शंकरन भी शामिल हैं और सीबीआई ने उसके खिलाफ इंटरपोल से वांरट निकलवा लिया है।

यह न समझ में आने वाली बात है कि शंकरन का लंदन का पता सीबीआई और इंटरपोल के पास है और उसे दो बार पूछताछ के लिए लंदन में बुलाया जा चुका है लेकिन अब तक भारत नही लाया जा सका। अभिषेक की ई मेल में उसकी तत्कालीन रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी से कई बहुत 'संतोषजनक और फलदायी' बातचीत का भी वर्णन है। यह फल किसके लिए है और किसको मिला यह तो पता नही मगर जेल अभिषेक वर्मा ही गए। श्रीमती सोनिया गांधी की दिक्कत वही है जो उनके पति राजीव गांधी की थी। दोनों बहुत भले लोग कहे जा सकते हैं लेकिन अपने को बचाने और उनकी मदद करने के चक्कर में वे अक्सर मुसीबत में फंसत रहे हैं। बोफोर्स और एचडीडल्यू पनडुब्बी कांड की विस्तार से जांच करने वाले महेश दत्ता शर्मा और इसे अदालत में ले जाने वाले अरुण जेटली से भी पूछिए तो वे भी कहते हैं कि बेचारे राजीव गांधी को तो पता ही नही था कि बोफोर्स में हो क्या रहा है।

वित्त मंत्री के नाते विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इस सौदे पर आपत्तिा की थी और बाद में जब रक्षा मंत्री बने तो खुद ही इस सौदे को मंजूरी दी थी। उनके पहले रक्षा मंत्री रहे कृष्ण चंद पंत आज भाजपा में हैं लेकिन जब वे कांग्रेस में थे तब भी इस बात पर स्तब्ध रहते थे कि वी पी सिंह उन्हें उत्तार प्रदेश वापस भेजने पर क्यों तुले हुए थे। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह पर भी इस मामले की आंच आनी स्वाभाविक है और यह तब है जब कोई भी जांच के नतीजे आने के पहले ही कसम खा कर कह सकता है कि मनमोहन सिंह ने इस पूरे कर्मकंाड में एक धेला भी नही खाया। लेकिन जो मनमोहन सिंह खुद इस सौदे के खिलाफ थे वे अचानक इसे मंजूरी क्यों दे बैठे, इस सवाल का जवाब तो उन्हें ही देना पड़ेगा। उनके मंत्रिमंडल से वोलकर रपट के बाद बाहर हो चुके विदेश मंत्री नटवर सिंह भी कहते हैं कि मनमोहन सिंह या सोनिया गांधी ने उनके काम में कभी हस्तक्षेप नही किया। अभिषेक वर्मा का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया है।

हर महीने दूसरे और चौथे सोमवार को उसे अदालत में हाजिर हो कर भारत में ही होने का प्रमाण भी देना पड़ेगा। किसी भी बहाने और किसी भी तरह कोई विदेश यात्रा वह नही कर सकेगा। तीस लाख रुपए का जूर्माना उस पर लगाया गया है और उसके सारे बैकों के सारे ज्ञात खाते सील कर दिए गए हैं। इस मामले में वर्तमान रक्षा मंत्री ए के एंटनी की भी जवाबदेही बनती है और इस जवाबदेही के साथ उन्हें प्रणब मुखर्जी के जमाने की फाइलों पर भी शोध करनी पड़ेगी। रही बात सीबाआई की तो वह मोती लाल वोरा और प्रणब मुखर्जी को बुला कर पूछे तो कि फोन पर क्या बात हुई थी और संतोषजनक और फलदायी चर्चाए क्या क्या हुई थीं।

4 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

भाई साहब, हमेशा की तरह बढ़िया रपट.
एक आग्रह है कि लेख को कई पैराग्राफस में बाँट दीजिये वरना पढ़ना दुरूह और भारी हो जाता है.

Unknown said...

-एक कलंकित कांग्रेसी- की बजाय "कलंकित कांग्रेसी" ज्यादा उचित होता शायद, क्योंकि शायद ही कोई कांग्रेसी हो जो कलंकित न हो :):) बेहतरीन रिपोर्ट, चतुर्वेदी जी की बात से सहमत कि पैराग्राफ़ होना चाहिये…

Sanjeet Tripathi said...

बेहतरीन!
सुरेश जी से काफी हद तक सहमत, वैसे बीजेपी में या अन्य दलों में भी गैर-कलंकित हैं ही कितने, हैं भी?

बालकिशन said...

संजीत जी से सहमत हूँ.