आलोक तोमर
राहुल गांधी कांग्रेस के युवराज नहीं हैं। उन्हें तो राजनीति में आते ही सम्राट बना देने की तैयारी की जा रही है। वे डगर डगर घूम रहे हैं और नगर नगर में जाकर ऐलान कर रहे कि वे कांग्रेस को जिंदा करने आए हैं। इसलिए उनकी मम्मी के अनुसार उनके लाड़ले बेटे ने मंत्री पद ही छोड़ दिया है।
आखिर जब बैठे बिठाए सुपर प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल रही तो मंत्री पद का मोह कौन करे? राहुल गांधी का दरबार रोज सजता है और वहां उनके बाप दादा के उम्र के लोग हाजिरी लगाते हैं। वे भी आते है तो राजनीति और दुनियादारी को राहुल से ज्यादा जानते हैं। राहुल गांधी को लगता है कि उन्हाेंने कालाहांडी घूम लिया तो भूख और अकाल का भेद जान गए। इसके बाद वे दलितो के घर खाना खाने चले गए और मान लिया कि उन्हें देश के गरीबों का पूरा हाल पता है। पता नहीं मायावती कहां से यह खबर निकाल लायी कि राहुल दलितो से मिलने के बाद गंगाजल से अपनी शुद्भि करते हैं। अभी तक इस बात की खबर किसी को नहीं मिली है कि मायावती ने स्टिंग आपरेशन करने के लिए कोई जुगाड़ की हो और उसके लिए किसी संस्था को नियुक्त किया हो।
जहां तक तहलका का सवाल है, उसे नरेंद्र मोदी और कांग्रेस से ही फुर्सत नहीं है और मायावती के सोशल इंजिनियरिंग के महारथी इतने बड़े इंजिनियर नहीं हैं कि उन्हें दस जनपथ के घुसने की कला मालूम हो। लेकिन राहुल गांधी राजनैतिक आत्महत्या करने के मामले में सिर्फ मायावती पर आश्रित नहीं हैं। इसके लिए उनकी सलाहकार मंडली ही काफी है।
राहुल गांधी भले है और भोले हैं लेकिन आप भी जानते है कि भले और भोले लोगों की गुजर राजनीति में नहीं होती है। राहुल अगर अपनी मां की जगह पिता को आदर्श बनाते तो उनका मजाक भले ही उड़ता लेकिन उतना नहीं जितना इन दिनों उड़ रहा है। अपनी विनम्र सलाह तो यह है कि वे सात समंदर पार से ही बहु लाना चाहते है तो ले आए लेकिन शादी जरूर कर ले। अविवाहित रहने से अटल बिहार बाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए इसका मतलब यह कतई नहीं है कि राहुल गांधी के साथ भी यही कारनामा होने वाला है।
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