आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Sunday, April 6, 2008

DATELINE INDIA, FINAL DISPATCH, APRIL 6, 2008

ओलंपिक मशाल तो सिर्फ बहाना है
आलोक तोमर

नई दिल्ली, 6 अप्रैल-पर्दे पर इमरान खान लाहौर से थे और सामने नवाब मंसूर अली खान पटौदी दिल्ली के टीवी स्टूडियों में बैठे थे। बरखा दत्त ने सवाल किया कि आपके बेटे सैफ अली खां ओलंपिक मशाल को लेकर दौड़ेंगे तो इसमें आपकी सहमति है क्या? नवाब ने कहा कि सैफ ने मुझसे पूछा था और मैंने कहा था कि यह तुम्हारा व्यक्तिगत फैसला है। मैं होता तो पता नहीं क्या करता।
अभी-अभी एनडीटीवी के वी द पीपुल शो की रिकार्डिंग से लौट रहा हूं और वहां का माहौल देख कर लगता है कि तिब्बत का मुद्दा ओलंपिक के बहाने नया जरूर हुआ हो लेकिन भारत की चीन संबंधी नीतियों को लेकर और उससे भी ज्यादा दलाई लामा की नपुंसकता को लेकर तिब्बतियों में और खास तौर पर भारतीयों में भी खासा गुस्सा है। पुराने ओलंपियन जी एस रंधावा और नई अश्विनी नचप्पा का सीधा कहना था कि हमें ओलंपिक में भाग लेना चाहिए और जब पदक मिले तो मंच से खड़े हो कर चीनी जुल्म की आलोचना करनी चाहिए। इसका ही असर होगा। कानून के ज्ञाता और अक्सर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लेने वाले सोली सोराबजी ने कहा कि हालांकि खेल और राजनीति को मिलाना अच्छी बात नहीं है लेकिन जिस तरह चीन ने निहत्थे तिब्बतियों पर जुल्म किए हैं और हमारे प्रधानमंत्री के अरूणाचल जाने पर चीन जिस तरह शोर मचाता है, उसके बारे में अगर सरकार विरोध दर्ज नहीं करवाती तो वह सरकार होने लायक नहीं है।
तिब्बत की निर्वासित संसद की एक सांसद ने तो सीधे कहा कि भारत और तिब्बत के रिश्ते हजारों साल पुराने हैं और भारत को तिब्बत का साथ देना ही चाहिए। दलाई लामा के प्रतिनिधि वहां थे और उन्होने कहा कि हम आजादी कहा मांग रहे हैं। सिर्फ स्वायत्तता मांग रहे हैं। गनीमत है कि किसी ने उनसे यह नहीं पूछा कि जब आप अलग देश नहीं मांग रहे हैं तो दलाई लामा को राषट्रप्र्रमुख का जो दर्जा दिया गया है, वह उन्हें क्यों मंजूर है। इमरान खान ने तो जैसी कि उम्मीद थी, कहा कि चीन को कोसते हो, कौन से देश में मनवाधिकारों का हनन नहीं हो रहा है। आपके कश्मीर में क्या हो रहा है? अब यह पत्ता नहीं ऐसा तकनीकी कारणों से हुआ या जानबूझ कर, इमरान खान सहसा पर्दे से गायब हो गये और उनकी आवाज आती रही। इसी आवाज से अपनी भी थोड़ी-बहुत बहस हो गई और इस बहस का सार यह था कि दो साल बाद भारत में होने वाले कामनवेल्थ खेलों पर भी पाकिस्तान कश्मीर की छाया डाल सकता है।
ओलंपिक मशाल पर हमले शुरू
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल-ग्रीस के ओलंपिया से निकली ओलंपिक मशाल लंदन पहुंची तो तिब्बती प्रदर्शनकारियों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने मशाल छीनने की भी कोशिश की। एक तरफ चीनी समर्थक झंडा लिए मशाल का स्वागत कर रहे थे, जबकि तिब्बत की आजादी की मांग करने वाले फ्री तिब्बत के नारे लगा रहे थे।
तिब्बत के प्रदर्शनकारियों ने दलाईलामा की अपील को ठुकरा दिया है। दलाईलामा ने कहा था कि वे नहीं चाहते की इस साल बीजिंग में होने वाले ओलंपिक का बहिष्कार हो। ओलंपिक में पांच बार के स्वर्ण पदक विजेता स्टीव रेडग्रावे ने लंदन के विंबले स्टेडियम से ओलंपिक मशाल की 31 मील के सफर की शुरूआत की। स्टेडियम से तीन प्रदर्शनकारियों का गिरफ्तार किया गया। बाद में पश्चिमी लंदन में प्रदर्शनकारियों ने ओलंपिक मशाल छीनने की कोशिश की।
ग्रीस के ओलंपिया शहर से जलाई गई यह मशाल बीजिंग पहुंचने तक 85 हजार मील का सफर तय करेगी। ग्रीस के ओलंपिया शहर में पहली बार ओलंपिक खेलों की शुरूआत हुई थी और उसके बाद से ही ओलंपिक दुनिया के किसी भी देश में आयोजित भले लेकिन ओलंपिक मशाल ओलंपिया में जलाई जाती है और पूरे विश्व भ्रमण पर जाती है। इंग्लैड में इस बार ओलंपिक मशाल का स्वागत जोरदार रहा क्योंकि अगला ओलंपिक 2012 में इंग्लैड में ही होगा।
सोनिया के बयान से राहुल की मुसीबतें बढ़ीं
सुप्रिया राय
नई दिल्ली, 6 अप्रैल-कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष का वात्सल्य आज एक राजनीतिक बयान में निकल पड़ा। उन्होने कहा कि वे चाहती थींकि राहुल गांधी मंत्री बने लेकिन खुद मेरे बेटे ने ही इंकार कर दिया। यह एक मां द्वारा राजनीति में लगातार फ्लाप हो रहे अपने बेटे को त्यागी और तपस्वी छवि देने की एक कातर कोशिश थी।
आज मंत्रिमंडल फेरबदल में जो हुआ उससे बहुत दुरगामी संदेश गए हैं। रमेश उरांव को मंत्री बनाकर शिबू सोरेन के सपनों पर पानी फेर दिया गया है। सोरेन हत्या के मामले में सजा पाने के बाद मंत्रिमंडल से हटाए गए थे और बरी होने के बाद से लगातार मंत्री बनने और अपना प्रिय कोयला मंत्रालय पाने की जिद्द कर रहे थे। मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल का यह संभवत: आखिरी विस्तार है और इसमें साफ कर दिया गया है कि नजर विधानसभा चुनावों पर भी रखी गई है। राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं और वहां से राज्य सभा सदस्य संतोष बगरोडिया को लाल बत्ती मिली है। पता नहीं इस बात का कितना असर होगा क्योंकि संतोष बगरोडिया का परिवार अर्से से कोलकाता और गुवाहाटी में व्यापार के सिलसिले में रह रहा है।
मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को देर से ही सही मंत्री बनाया गया और इससे सिर्फ यही संदेश जाता है कि मध्य प्रदेश की राजनीति में मध्य भारत को खुश करने के लिए फिलहाल यह कदम उठाया गया है। सुरेश पचौरी को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। वे भोपाल के हैं। चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह को बनाया गया और वे बघेलखण्ड यानी रीवा अंचल के हैं। ग्वालियर और मध्य भातर अंचल से ज्योतिरादित्य सिंधिया को मंत्री बनाने से कांग्रेस ने एक तरह का राजनीतिक संतुलन बैठाने की कोशिश की है।
जहां तक राहुल गांधी का सवाल है तो उत्तर प्रदेश के वर्तमान समीकरणों को देखते हुए उन्हें मंत्री बनाना कोई चतुराई का कदम नहीं होता। सांसद वे हैं ही, कांग्रेस के महासचिव भी हैं और सबसे आगे बढ़कर श्रीमती सोनिया गांधी के बेटे हैं। उन्होने छवि बनाने या अपने आधार का विस्तार करने के लिए मंत्री बनने की जरूरत नहीं है।
फिर भी श्रीमती सोनिया गांधी ने इस बयान से प्रतिपक्ष के उस आरोप को हवा दे दी है कि राहुल गांधी को मंत्री बनने का मोह नहीं है वरना उनकी मां तो वंश की विरासत उन्हें सौंपने के लिए तैयार बैठी थीं। श्रीमती सोनिया गांधी ने जब प्रधानमंत्री बनने से इंकार करके मुकूट मनमोहन सिंह को पहनाया था तो उनके त्यागी होने की बहुत तारीफ हुई थी लेकिन राहुल के बारे में बयान दे कर उन्होने अपनी छवि को तो धूमिल किया ही है, मनमोहन सिंह का अपमान किया है और राहुल के राजनीतिक भविष्य पर अनचाहे एक सवालिया निशान लगा दिया है।
श्रीमती गांधी के बयान का मतलब यह कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के नाते अपनी टीम चुनने का कोई स्वायत्त अधिकार नहीं दिया गया है। राहुल गांधी अगर चाहते तो मनमोहन सिंह के न चाहने के बावजूद मंत्री बनते। इसी बयान से यह भी जाहिर है कि श्रीमती गांधी राहुल को सुपर प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं। एम एस गिल को चुनाव आयोग में रहते हुए कांग्रेस की सेवा करने का इनाम मिला है और मंणिशंकर अय्यर के पंख कतर दिये गए हैं। कांग्रेस को सबसे ज्यादा झटका इस विस्तार में राजस्थान में लगा है जहां सचिन पायलट को मंत्री नहीं बनाकर पार्टी ने गुर्जर वोट बैंक को लगभग हाथ से निकाल दिया है। जितिन प्रसाद ब्रह्माण हैं और उनके पिता जितेंद्र प्रसाद पी वी नरसिंह राव के सलाहकार थे। नरसिंह राव से सोनिया गांधी के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे लेकिन उत्तर प्रदेश में बसपा द्वारा ब्रह्माणों को लुभाने की कोशिश करने के बहाने मनमोहन सिंह अपने भूतपूर्व बास के सबसे खास नेता के बेटे को मंत्रिमंडल में लाने में सफल हो गए। इसका दूसरा मतलब यह है कि मनमोहन सिंह को अब राजनीति समझ में आने लगी है। करूणानिधि की बेटी कौमीकाझी को मंत्री नहीं बनाकर कांग्रेस ने यह संकेत भी दे दिया है कि लोक सभा चुनावों में वह जयललिता के साथ ताल-मेल कर सकती है।

लाल कृष्ण आडवाणी का फिल्मी अवतार
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -राजनीति अपनी जगह लेकिन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी फिल्मी दुनिया में खासे लोकप्रिय हो चुके हैं। अजय देवगन और काजोल ने उनके घर जाकर उन्हें अपनी नई फिल्म- यू मी और हम के एक विशेष शो के लिए आमंत्रित किया।
एक समय काफी चर्चित फिल्म समीक्षक रहे लाल कृष्ण आडवाणी पिछले सात साल में नई फिल्मों के पचास से ज्यादा शो में शामिल हो चुके हैं और इनमें से 42 शो सिर्फ उनके सम्मान में आयोजित किए गए थे।जव वे उपप्रधानमंत्री थे तो फिल्मों को रियायत दिलाने के लिए उनके लिए खास शो आयोजित किए जाते थे लेकिन सत्ता जाने के बाद कम ही नेता हैं जिन्हें मतलबी बॉलीबुड वाले विशेष शो में बुलाते हैं।
अजय देवगन और काजोल की फिल्म देखने गए आडवाणी ने उस समय सबको चकित कर दिया जब उन्होंने काजोल की मां तनुजा की कई फिल्मों के संवाद तक सुना डाले। उन्हाेंने अजय देवगन से भी कहा कि तुम्हारी अब तक की सबसे अच्छी फिल्म मुझे जख्म लगी है। संयोग से ये फिल्म एनडीए के शासनकाल में रिलीज हुई थी और सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म पर संघ परिवार और शिवसेना के खिलाफ होने का आरोपर लगा कर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय भी फिल्म के निर्माता निर्देशक महेश भट्ट श्री आडवाणी के लिए एक विशेष शो आयोजित किया था। जिसमें वे नहीं आए थे अपने गृह संचिव को भेजा था। बाद में इसी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
इसके पहले श्री आडवाणी के लिए आमिर खान ने तारे जमीन पर फिल्म का विशेष शो आयोजित किया था और इस फिल्म में श्री आडवाणी भावुक होकर वाकयदा रो पडे थे। श्री आडवाणी के नजदीकी लोग बताते हैं कि उन्हें या तो फिल्मी नायिकाओं में देविका रानी पसंद थी या फिर बाद में आकर वे माधुरी दीक्षित के फैन हो गए है। फिल्मी नाययिकों मे ंपृथ्वीराज कूपर और दिलीप कुमार के बाद श्री आडवाणी ने कुछ समय तक शाहरूख को पंसद किया। लेकिन शाहरूख कांग्रेस की झोली में चले गए और श्री आडवाणी उनके प्रशंसक नहीं रहे। अपनी पार्टी के लाजबाव अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की उन्होंने बहुत ही कम फिल्में देखी हैं और अपनी सांसद हेमा मालिनी को अभिनेत्रा से ज्यादा नृत्यागंना के तौर पर पसंद करते हैं। उनके पति और भाजपा सांसद धमेन्द्र के बारे में आडवाणी की कोई बहुत अच्छी राय कम से कम अभिनेता के तौर नहीं हैं।
फ्लाप हुए बल्लेबाज, निशाना बने गेंदबाज
डेटलाइन इंडिया
अहमदाबाद, 6 अप्रैल-अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में भारतीय टीम के ऐतिहासिक हार के बाद तीसरे टेस्ट के लिए चयनकर्ताओं की गाज गेंदबाजों पर गिरी है। जबकि 76 रन पर ढ़ेर होने वाली बल्लेबाजी को बरकरार रखा गया है। टीम से तेज गेंदबाज आर पी सिंह की छु्ट्टी कर दी है। कप्तान कुंबले की फिटनेस पर अभी संशय बरकरार है।
अहमदाबाद टेस्ट में करारी शिकस्त के बाद टीम इंडिया में तेज गेंदबाज ईशांत शर्मा को फिटनेस टेस्ट पास करने के बाद शामिल किया गया है। आर पी सिंह के लचर प्रदर्शन के बाद उनकी जगह मुनफ पटेल को टीम बुलाया गया है। जबकि श्रीशांत को अनफिट बताया जा रहा है फिर भी वह टीम के साथ बने रहेंगे हैं। कप्तान अनिल कुंबले की कंधे में तकलीफ होने के कारण उनका एक और फिठनेस टेस्ट 10 अप्रैल को होगा, तब तक उनके स्थान पर विकल्प के रूप में मुंबई के आफ स्पिनर रोमेश पवार को टीम में जगह दी गई है। टीम में बल्लेबाजी में कोई फेर-बदल नहीं किया गया है। जबकि अहमदाबाद में इन्हीं बल्लेबाजों की जबरदस्त नाकामी की वजह से मोटेरा में टीम इंडिया को ऐतिहासिक हार कर सामना करना पड़ा था। लेकिन चयनकर्ताओं ने बल्लेबाजी क्रम में किसी तरह के बदलाव की गुंजाइश नहीं समझी। टीम इंडिया के ओपनर वसीम जाफर आस्ट्रेलिया दौरे से ही अपने फार्म को लेकर संघर्ष कर रहे हैं लेकिन चयनकर्ताओं का भरोसा अभी भी उन पर बना हुआ है।
दक्षिण अफ्रीका-भारत के तीन टेस्ट मैचों की सीरीज मेेंं भारत 0-1 पिछड़ गया है। तीसरा और आखिरी टेस्ट 11 अप्रैल से कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में खेला जाएगा। ग्रीन पार्क की पिच स्पिनरों के लिए स्वर्ग मानी जाती है। हो सकता है कि भारतीय टीम मैनेजमेंट पांच गेंदबाजों के ही रणनीति पर उतरे और इसमें तीन स्पिनरों को अंतिम एकादश में जगह दी जाए। फिलहाल टीम में कुंबले, हरभजन, पीयूष चावला और रोमेश पवार सहित चार स्पिनर मौजूद है। भारत को 0-1 से पिछड़ने के बाद सीरीज बचाने के लिए हर हाल में कानपुर टेस्ट में जीत हासिल करनी होगी।
टीम-अनिल कुंबले(कप्तान), वसीम जाफर, वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, वीवीएस लक्ष्मण, महेंद्र सिंह धोनी(विकेटकीपर, उपकप्तान), हरभजन सिंह, पीयूष चावला, रोमेश पवार, ईशांत शर्मा, इरफान पठान,मुनफ पटेल,एस. श्रीशांत, युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ।

लंबी पारी खेलना चाहते हैं सचिन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल- बल्लेबाजी के बादशाह सचिन तेंदुलकर अपने फिटनेस और संन्यास के कयासों पर पूर्ण विराम लगाते हुए 2011 विश्व कप खेलने के संकेत दिए हैं। वे क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद भी क्रिकेट से जुड़े रहना चाहते हैं।
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के रिकार्डधारी कैरियर में लगभग वह सारे रिकार्ड हैं जो अन्य बल्लेबाजों के लिए सपना है पर स्वंय यह मास्टर बल्लेबाज एक रिकार्ड अपने झोली में डालने के लिए अंतिम प्रयास करने को तैयार है। सचिन 2011 का विश्व कप खेल अपने देश को एक बार फिर विश्व कप जीताना चाहते है। यही उनकी हसरत भी है। उन्होने कहा कि वे अपने क्रिकेट कैरियर को सीरीज दर सीरीज आंकते हैं और उन्हें जब तक लगेगा की यह आंकलन सही तरीके से चल रहा है तब तक वह क्रिकेट के मैदान में अपने बल्ले से विरोधी गेंदबाजों के छक्के छुड़ाते नजर आएंगे। उन्होने कहा कि क्रिकेट में उनके कुछ सपने अभी भी अधुरे हैं जिसे वह पूरा करना चाहते हैं।
उन्होने अपने क्रिकेट कैरियर पर कहा कि वह इस खेल का भरपूर मजा ले रहें और कल के बारे में कभी नहीं सोचते वह सिर्फ आज में जीते हैं। सचिन ने कहा कि अपने 19 साल के कैरियर में लगातार खेलता आया हूं और भविषय को लेकर कभी चिंतित नहीं हुए। उन्होने आस्ट्रेलिया में हुए हरभजन-सायमंड्स विवाद के बारे में कहा कि हरभजन कभी नस्लवादी टिप्पणी नहीं किया और जब उस पर आरोप लगे थे तो उसे टीम के स्पोर्ट की जरूरत थी और मुझे लगा कि भाी का साथ देना जरूरी है और इसीलिए में इसके साथ खड़ा हुआ। उन्होने मैदान में छींटा कशीं पर कहा कि यह होना चाहिए पर हर चीज की एक सीमा होनी चाहिए वह सीमा से बाहर नहीं जानी चाहिए।
मास्टर ब्लास्टर ने आईपीएल में खिलाड़ियों के नीलामी के मुद्दे पर कहा कि मैं नहीं समझता कि इसमें कोई गलत है और अगर कोई पैसे के लिए खेलने की बात करता है तो मैं कम से कम ऐसा नहीं सोचता। मैं सिर्फ खेल पर ध्यान देता हूं। चाहे वह खेल का कोई भी संस्करण हो। टीम में सीनियर-जूनियर खिलाड़ियों के बीच तनाव की खबर पर सचिन ने कहा कि यह सब अफवाह है और टीम में सीनियर तथा जूनियर के बीच कोई तनाव नहीं, सभी एक दूसरे का सम्मान करते हैं।
आत्मघाती हमले में श्रीलंर्काई मंत्री की मौत
डेटलाइन इंडिया
कोलंबो। श्रीलंका में लिट्टे से चली आ रही वर्षो पुरानी लड़ाई में आज एक मंत्री सहित 11 लोगों मारे गए और 50 से अधिक घायल हो गए। 55 मंत्री वर्षीय जयराज राजधानी कोलंबो के बाहर स्थित वेलिवीरिया कस्बे में झंडारोहण करते सयम तमिल विद्रोहियों ने आत्मघाती हमला कर घटना को अंजाम दिया।
समारोह में स्थानीय लोग पारंपरिक नववर्ष का जश्न मनाने के लिए एकत्र हुए थे। एक संदिग्ध तमिल विद्रोही आत्मघाती हमलावर ने समारोह में घुसकर खुद को विस्फोटक से उडा लिया। जिस समय विस्फोट हुआ, उस समय मंत्री नववर्ष के समारोहाें की शुरुआत के लिए राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे। इस विस्फोट में कम से कम 11 लोग मारे गए। लगभग 50 लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। फर्नाडोपुले तमिल विद्रोहियाें के कट्टर आलोचक और लिट्टे के साथ हुई असफल शांति वार्ता के सदस्य थे। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि लिट्टे के कायर हमले में मंत्री की मौत हो गई।
कई सालों से लिट्टे और श्रीलंका सरकार की लड़ाई में पिछले कुछ दिनों तेजी आई थी। सरकार और लिट्टे के बीच वार्ता फेल होने के बाद से ही श्रीलंकाई सरकार ने तमिल विद्रोहियों पर हवाई हमला बोल दिया था। अभी कुछ ही महीने पहले इस तरह की घटना को अंजाम देने के लिए लिट्टे के महिला विद्रोही ने श्रीलंका के एक मंत्री से मिलने के बहाने उनके दफ्तर तक पहुंची थी और उसने खुद को उनके कार्यालय में उड़ा लिया था मगर मंत्री जी बाल-बाल बच गए थे।
सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिले-आस्ट्रेलिया
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल- भारत के सुरक्षा परिषद् में शामिल होने के मुहिम में अब आस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया है। आस्ट्रेलिया ने माना है कि आधुनिक विश्व में पुराने सदस्य देशों मात्र से काम नहीं चलने वाला। इसीलिए भारत और जापान को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए। इसके पहले ब्रिटेन और फ्रांस ने भी भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन की बात कह चुके हैं।
बीते कई सालों से भारत की एनडीए और वर्तमान यूपीए सरकार की कोशिश रही है कि भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिले। यूपीए सरकार के सत्ता में आते ही तत्कालिन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने इस मुहिम को तेज किया था। लेकिन अफ्रीकी देशों से प्रर्याप्त समर्थन नहीं मिलने और अमेरिका के ना-नुकुर के कारण भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हासिल करने से चुक गया था। लेकिन भारत ने इस मुहिम को ठंढे बस्ते में डालकर पहले ठोस पहल कर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ अपने समर्थन की लाबी को मजबूत करना शुरू किया है।
अस्ट्रेलिया ने अपने ताजा बयान में कहा है कि संयुक्त राषट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिलने के बाद आधुनिक विश्व की असल तस्वीर सामने आएगी। आस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री स्टीफेन स्मिथ ने कहा कि सुरक्षा परिषद के नए विस्तार अंतरराषट्रीय व्यापार, विकास के लक्ष्य और मौसम के बदलाव रूप में देखा जाना चाहिए। सुरक्षा परिषद में दूसरे विश्व युध्द के बाद संयुक्त राषट्र सुरक्षआ परिषद बनने के बाद से अब तक सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन को ही इसमें स्थायी सदस्यता मिली है।

खुराना की वापसी का कोई बडा मतलब नहीं
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -मदन लाल खुराना के भाजपा में वापस आने की पहल तो पार्टी के महानायक अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ से हुई थी लेकिन वाजपेयी ने खुराना से साफ कह दिया है कि उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी को ही अपना नेता मंजूर करना पडेगा।
चारो तरफ से हारे हुए खुराना ने एक थका हुआ बयान जरूर दे दिया है कि आडवाणी उनके सबसे बडे नेता हैं मगर यह बयान पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गले नहीं उतर रहा है। राजनाथ सिंह पहले से ही दुखी हैं कि उन्हें अध्यक्ष होने के बावजूद पार्टी में पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा और सारे फैसले आडवाणी ही करते हैं। यह बात अलग है कि आडवाणी के नाम पर राजनाथ ंसिंह की जुबान भी बंद हो जाती है और वे भी उन्हें अपना नेता करार देते हैं।
जिन लोगों को यक उम्मीद थी कि खुराना की बापसी उमा भारती और बाबू लाल मरांडी जैसे पार्टी में उपेक्षा के शिकार हुए नेता वापस आएंगे वे भी अब संशय में हैं। आज बाबू लाल मरांडी से बात की तो उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि न उन्हें किसी ने बुलाया और न वे भाजपा में जाने के लिए तरस रहे हैं। आडवाणी के एक निजी सहयोगी ने हाल ही में श्री मरांडी से भेंट की थी लेकिन इसे भी उन्होंने औपचारिक मुलाकात बताया।
उमा भारती से अभी किसी भाजपा नेता ने संपर्क नहीं किया है और उनकी भारतीय जन शक्ति पार्टी ने उनके पुराने शिष्य प्रहलाद पटेल ने साध्वी के तौर तरीकों पर आपत्ति करते हुए उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया है। वैसे भी जन शक्ति पार्टी कभी ठीक ठाक ताकत बन कर उभर ही नहीं पायी और उमा भारती के राजनैतिक भविष्य को लेकर लगातार सवाल किए जा रहे हैं। उमा भारती के शुभचिंतक और उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने साध्वी को भाजपा में वापस लाने की कोशिश की है लेकिन इन कोशिशों का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।
खुद कल्याण सिंह भी काफी दिनों भाजपा से बाहर रहने के बाद वापस आए हैं और वापसी का उनका रास्ता भी उन्हीं वाजपेयी ने खोला था जिन्हें कल्याण सिंह ने भरपूर कोसा है। कल्याण सिंह भी उमा भारती को भाजपा में लाना जरूर चाहते हैं लेकिन वे अपने पुराने प्रतिद्वद्वी और भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को नाराज करने की कीमत पर कोई कदम नहीं उठाना चाहते उधर उमा भारती भीसाफ कह चुकी हैं कि भाजपा को अगर जरूरत हो तो वह उन्हें बुलाये वे अर्जी देकर पार्टी में वापस नहीं आएगी। उमा भारती खुद आडवाणी से ही झग़डा कर के भाजपा छोड़ कर गई थी और एक बार वापस भी आ गइ्र थी लेकिन जब उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी गई तो फिर उन्होंने फिर से पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी बना ली।
उत्तर प्रदेश में माओवादियों के शिविर लगे
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -छत्तीसग़ढ, आंध्रपदेश, झारखंड और बिहार में मिट्टी को खून से लाल करने के बाद माओवादियों ने अब उत्तर प्रदेश को निशाना बनाया है। राज्य पुलिस की गुप्तचर शाखा ने केबिनेट सचिवालय को भेजे गए एक अनिवार्य परिपत्र में इस संबंध में सलाह मांगी है और पूछा है कि वे कितने समय बाद राज्य में अर्ध सैनिक बलों की नियुक्ति कर सकते हैं।
राज्य के पुलिस महानिदेशक विम ंसिंह के दस्तखत से भेजे गए इस पत्र के अनुसार चित्रकूट, इटावा और मिर्जापुर के जंगलों में माओवादियों ने प्रशिक्षण शिविर लगा दिए हैं और स्थानीय पुलिस की गुप्तचर शाखा को मिली जानकारी के अनुसार वे कई महत्वूपर्ण ठिकानों पर हमले बोलने की तैयारी में हैं। श्री विम ंसिह से जब फोन से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की पहली योजना सुरक्षा बलों और पुलिस के शिविरों पर हमला बोलने की है।
दिल्ली में मिली जानकारी के अनुसार माओवादियो ने सोनभद्र और मिर्जापुर इलाकों में पत्थरों की खदानों से विस्फोटक लूटने और नरसंहार करने की भी तैयारी की है। इस हमले से वे उत्तर प्रदेश में अपनी उपस्थिति अच्छी तरह स्थापित करेंगे और इन विस्फोटकों का इस्तेमाल आगे के हमलों में किया जाएगा।
उत्तर प्रदेश में माओवादियों का आखिरी बडा हमला 20 नबंवर 2004 को हुआ था। पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के पास बारूदी सुरंगे बिछा कर राज्य की सशस्त्र पुलिस - पीएसी के एक वाहन को उडा दिया गया था जिसमें सत्रह जवान और अधिकारी मारे गए थे। ये लोग माओवादियों की उपस्थिति की सूचना मिलने के बाद उनकी खोज में ही जा रहे थे। सूत्रों के अनुसार समाज के पिछडे वर्गो से कामरेड भर्ती करने के लिए छत्तीसग़ढ और झारखंड से लूटी गई रकम भी खर्च कर रहे हैं और जो लोग भर्ती हुए हैं उन्हें विस्फोटकों और हथियारों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कई अंशकालिक कार्यकर्ता भी भर्ती किए जा रहे हैं जो आमतौर पर एक हमले में हिस्सा लेते हैं और फिर गांव जाकर आम जिंदगी बिताने लगते हैं।
हिंदी इलाकों के वोट नहीं चाहिए माकपा को ?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -वामपंथी दलो खासतौर पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने तय कर दिया है कि हिंदी भाषी इलाकों में उन्हें राजनीति नहीं करनी है। पार्टी के पोलित ब्यूरो और नेशनल कमेटी के गठन में या तो बंगाली है या तो दक्षिण भारतीय। पार्टी के पिछले महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत का भी रिटायरमेंट का अनुरोध मान लिया गया है और ज्योति बसु का भी।
ठीक है कि बसु और सुरजीत की उम्र पचानवे साल के आस पास हो गई है और उन्हें रिटायर करने में कोई अटपटी बात नहीं है। लेकिन ऐसे मौके पर जब पार्टी अपने आप को देश की राजनीति की मुख्य धारा में स्थापित करना चाहती है और तीसरे मोर्चे के बहाने कांग्रेस और भाजपा दोनों का विकल्प बनना चाहती है, पोलित ब्यूरों में हिंदी इलाके के किसी भी नेता का नहीं होना एक विचित्र संकेत है।
ऐसा नहीं कि पार्टी में हिंदी भाषी इलाकों के कद्दावर नेता नहीं थे। मध्यप्रदेश में बादल सरोज जैसे नेता भी हैं जिन्होंने पार्टी के छात्र और युवा संगठनों में जान फूंकने की सफल कोशिश की है। पार्टी के प्रशासन के हिसाब से शायद इस बात से कोई फ नहीं पडे लेकिन लाल झंडे के साथ कामरेड जब लखनऊ, वनारस, दिल्ली या चंडीग़ढ में वोट मांगने जाएंगे तो उनसे यह सवाल जरूर पूछा जाएगा कि आपके नेताओं में हमारा कोई नेता कहां है।
यह ठीक है कि पार्टी ने पोलित ब्यूरो में न सही राष्ट्रीय कमेटी में महिलाओं को पर्याप्त जगह देकर बाकी दलों से बाजी मार ली है। लेकिन पोलित ब्यूरो का सवाल अब तक वहीं का वहीं ही अटका हुआ है। वृदां करात के रूप में पोलित ब्यूरों में एक महिला हैं और वे खासी खूबसूरत और मेकअप प्रेमी भी हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे पार्टी पोलित ब्यूरों के दूसरी बार निवार्चित हुए महासचिव प्रकाश करात की पत्नी हैं, प्रकाश करात कन्नड हैं और वृदां जन्म से बंगाली हैं।
पार्टी की बैठक और पुर्नगठन को लेकर हिंदी भाषी इलाकों के और खासतौर पर बिहार उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के नेताओं में खासी नाराजगी है और इसका फल पार्टी के चुनावी नतीजो की शक्ल में सामने आ सकता है। खासतौर पर पंजाब और मध्यप्रदेश में पार्टी ने अच्छी खासी ज़डे जमायी हैं मगर नेतृत्व में उनकी प्रतिनिधि विहीनता चुनाव अभियान में परेशानी करेगी ही। खासतौर पर केरल और बंगाल की सरकारे जैसी चल रही हैं, उन्हें देखते हुए और भाषा के कारण भी केरल के अच्चयुतानंदन और बंगाल के बु्द्ददेव भट्टाचार्य से किसी करिश्मे की उम्मीद करना बेकार होगा।
एमपी और यूपी में सिमी के महिला आतंक केंद्र
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -मध्यप्रदेश में अपना अड्डा तबाह होने जाने और ज्यादातर आतंकवादियों की शिनाख्त हो जाने के बाद सिमी यानी 'स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया ने अपनी महिला विंग
'शाहीन' का सहारा लिया है। शाहीन के निशाने पर सबसे पहले मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश हैं और इस लडाई को हाईटेक बनाने के लिए दोनों प्रदेशों के कई गुप्त ठिकानों पर लडकियों और युवतियों को कम्प्यूटर और मोबाइल इस्तेमाल के नए तरीके सिखाए जा रहे हैं। गुप्तचर ब्यूरो ने दोनों राज्यों की पुलिस को इस बात की जानकारी दे दी है और वे ठिकाने भी बता दिए हैं जहां यह हरकतें चल रही हैं।
ब्यूरो की जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में शहडोल, रतलाम, सीहोर और दतिया जिले में सिमी के प्रशिक्षण केंद्रों का तानाबाना फैल गया है जबकि उत्तर प्रदेश में बरेली, पीलीभीत, बस्ती, भदोही और फिरोजाबाद में ऐसे प्रशिक्षण केंद्र खुलने की खबर मिली है। गुप्तचर ब्यूरो के आधिकारियों के अनुसार इन राज्यों की गुप्तचर पुलिस से इन सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए कहा गया है और इसके बाद इन पर कार्रवाई की जाएगी।
शाहीन' को यूपी में सिमी के नए हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का ताना-बाना बुन लिया गया है। नेटवर्क बन गया है और उसकी नजर शैक्षिक संस्थाओं की ऐसी छात्राओं पर है, जो कंप्यूटर में माहिर हों। मकसद है इन छात्राओं का आतंकी वारदात के लिए इस्तेमाल। यह खुलासा हुआ है मध्य प्रदेश में धरे गए सिमी अंसारों से। इस खुलासे के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय यूपी के साथ ही पूरे देश में शाहीन पर अंकुश की रणनीति तैयार कर रहा है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन अप्रैल को सभी प्रदेशों के खुफिया तंत्र से जुड़े अफसरों की आनन-फानन में बैठक बुलाई थी। इसमें यूपी से अभिसूचना मुख्यालय लखनऊ के एक आईजी ने शिरकत की। बैठक मध्य प्रदेश में एक सप्ताह में चलाए गए आपरेशन के दौरान 28 से ज्यादा सिमी अंसारों की गिरफ्तारी और उनके खुलासों के मद्देनजर थी।
बैठक में प्रतिबंध के बाद सिमी के बढते प्रभाव को लेकर चिंता जताई गई। सिमी के खतरनाक मंसूबों को लेकर नए सिरे से आपरेशन चलाने का फैसला किया गया है। सबसे हैरतअंगेज तो यह कि धरे गए सिमी अंसारों ने कुबूला है कि यूपी में भी 'शाहीन' ने पूरी तरह पैर जमा लिए हैं।
सिमी के हूजी, लश्कर ए-ताइबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से सीधे रिश्तों का भी खुलासा हुआ है। पता चला है कि सिमी यूपी के कुछ चुनिंदा जिलों खासतौर पर पूर्वांचल के वाराणसी, गोरखपुर, महाराजगंज और पश्चिम के बुलंदशहर, सहारनपुर, मुरादाबाद में शैक्षिक संस्थानों में ऐसी छात्राओं को गुपचुप तौर पर चुन रहा है, जिनमें धर्म के प्रति घोर आस्था हो। इन छात्राओं को धार्मिक कट्टरता का पाठ पढाया जा रहा है।
ऐसी छात्राओं का चयन किया जा रहा है, जिन्हें कंप्यूटर का ज्ञान हो। उन्हें आधुनिकता से दूर रहने की हिदायत दी गई है। साथ ही धार्मिक पाबंदियों पर अमल करने की सीख दी जा रही है। यूपी में 'शाहीन' की करीब दो सौ फुलटाइम वर्कर का नेटवर्क बन चुका है। इसका मकसद आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में शाहीन की मदद लेना है। साथ ही उन्हें आतंकी संगठनों को भी खाद-पानी मुहैया कराने की ट्रेनिंग दी जा रही है। धार्मिक शैक्षिक संस्थानों में इसके लिए 'संपर्क कैंप' भी लगाए गए। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बैठक में खुफिया अफसरों को सिमी के साथ ही 'शाहीन' के नेटवर्क को तोड़ने और संदिग्ध गतिविधि वाले शैक्षिक संस्थानों पर नजर रखने को कहा है।
सेहत के खिलाफ क्यों है इस्लाम?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -पोलियो की दवा की तरह ही अब मुस्लिम मुल्लाओं ने स्वास्थ्य बीमा को मुस्लिम कानून के खिलाफ बता रहे हैं हालांकि पोलियो की दवा का असर देख मुल्लाओं की आंखे खुल गई थी लेकिन अब उन्होंने स्वास्थ्य बीमा के मामले में आंखे बंद कर ली है। फतवा जारी होने पर पूरे देश में यह बहश का एक बडा मुद्दा बन गया है। उधर इस फतवे के बाद बीमा कंपनियों की मानो जैसे सांस ही थम कई है।

ंअब स्वास्थ्य बीमा को जुए समान बताते हुए देश के प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने मुसलमानों के लिए हराम घोषित किया है। मुस्लिम कानून की रोशनी में मुसलमानों से जुड़ी समस्याओं पर निर्णय देने के लिए बनाई गई भारतीय इस्लामी फिकह अकादमी ने अपने चौहदवें सम्मेलन में तीन दिन की चर्चा के बाद आखिरी फैसले में कहा गया इस्लामी कानून में किसी तरह के जुए की इजाजत नहीं है। स्वास्थ्य बीमे के वर्तमान स्वरूप का जमीनी हकीकत पर विश्लेषण करने पर पाया गया कि वास्तव में यह जुए की ही एक शक्ल है।
फैसला देने वाली अकादमी के जिस सम्मेलन में यह फैसला किया गया उसमें दारूल उलूम, देवबंद जमाते इस्लामी, जमियत उलेमाए हिंद के उलेमाओं के अलावा देश भर के लगभग 300 प्रमुख मदरसों के प्रतिनिधि शामिल थे। फैसले में कहा गया- अन्य बीमों की तरह स्वास्थ्य बीमा भी उन गैर मुनासिब सौदों की तरह है जिसकी इस्लाम में अनुमति नहीं है। इसलिए सामान्य स्थिति में स्वास्थ्य बीमे की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इस फैसले में सरकार या निजी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में भी फर्क नहीं किया जाएगा।
अकादमी ने कहा कि अगर किसी कानूनी बाध्यता के अंतर्गत स्वास्थ्य बीमा कराया गया है तो उसकी अनुमति प्रदान किए जाने पर गौर किया जा सकता है। लेकिन ऐसी परिस्थितियों में भी सक्षम मरीज पर यह वाजिब होगा कि वह अपने ईलाज में उसको बीमा कंपनी द्वारा दिए गए धन से अधिक खर्च होने पर उस अतिरिक्त रकम को किसी परोपकार के काम में लगाए तथा इसके बदले खुदा से किसी ईनाम की उम्मीद नहीं रखे। प्रचलित सरकारी और निजी कंपनियों की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का विकल्प सुझाते हुए उलेमाओं ने सुझाव दिया कि मुस्लिम स्वयं ऐसी स्वास्थ्य सेवाएं और संस्थान शुरू करें जिसमें गरीब लोगों का उपचार हो सके और उनकी जरूरतों के अनुसार मदद की जा सके।
अजीत जोगी ने छत्तीसग़ढ में महाभारत शुरू की
डेटलाइन इंडिया
रायपुर, 6 अप्रैल -छत्तीसग़ढ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने राज्य में नक्सली समस्या के मामले पर मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा कि अभी तक हुई आदिवासियों और पुलिसकर्मियों की हत्याओं और ग़डबड़ियों की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए।

जहां एक तरफ जोगी ने मुख्यमंत्री पर निशाना साध दिया है वहीं राज्य में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे जनजागरण अभियान सलवा जुडूम पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी ने उन्हे परेशान कर रखा हे। इस आंदोलन का विरोध करने वालों का कहना है कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए बातचीत जरूरी है। छत्ताीसग़ढ के बस्तर क्षेत्र में चल रहे नक्सल विरोधी जनजागरण अभियान सलवा जुडूम के शुरू होने के बाद से तरह-तरह के आरोपों से घिरी राज्य सरकार के लिए यह और परेशान करने वाली बात है कि इस आंदोलन को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी कर दी है।
राज्य सरकार विरोधी दल के कुछ नेता और मानवाधिकार संगठन आमने-सामने हैं। राज्य के दंतेवाडा और बीजापुर जिले में चल रहे इस अभियान को राज्य सरकार आदिवासियों का स्वस्फूर्त आंदोलन कहती है वहीं इस आंदोलन का विरोध करने वालों ने इसे सरकार द्वारा प्रायोजित आंदोलन करार देते हुए आंदोलन के औचित्य पर ही सवाल किया है।
पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राज्य इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र सायल का कहना है कि पीयूसीएल समेत चार संगठनों ने पहले ही बस्तर क्षेत्र का दौरा कर सलवा जुडूम को लेकर रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें पाया गया था कि यह आंदोलन सरकार द्वारा प्रायोजित है तथा हिंसक है। सायल का कहना है कि इस आंदोलन में निहित स्वार्थी तत्व जुड़े हैं जिन्हें आदिवासियों की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है।
जोगी कहते हैं कि साठ हजार से अधिक आदिवासियों को उनके घर गांव जंगल से उजाडकर प्रदेश की भाजपा सरकार ने सुरक्षा के नाम पर बेस कैंपों में लाकर जानवरों की तरह ठूंस दिया है। कैंपों की अव्यवस्था एवं कैंपवासियों की हालत किसी से छिपी नहीं है। जिस सुरक्षा के नाम पर आदिवासियों को उजाडा गया राज्य सरकार उन्हें वह सुरक्षा भी उपलब्ध कराने में असफल रही है। इधर न्यायालय की टिप्पणी से परेशान राज्य सरकार किसी भी आदिवासी को हथियार देने से मना कर रही है।
अपनी छवि बदलने में लगे आडवाणी
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -पीएम इन वेटिंग का सपना सजोए भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी को अपनी कट्टरवादी छवि को बदलने के चक्कर काफी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। उनके इस कदम से भाजपा में ही फाड हो गया है।
श्री आडवाणी के करीबी नेताआें का कहना है कि उन्हें भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत किया है और चुनाव में वह सबसे अधिक विरोधियों के निशाने पर रहेंगे। इसलिए शायद वह अपनी छवि को सुधार रहे ताकि विरोधियों का निशाना कम बन पाएं। तभी तो जिन्ना प्रकरण हो या फिर पुस्तक के जरिये अपनी बात लोगों तक पहुंचाना या फिर होली के दिन अपनी प्रमुख विरोधी सोनिया गांधी के घर जाकर बधाई देना, यह सारी कवायद अपने आपको सभी लोगों में स्वीकार्य बनाने के उद्देश्य से ही की जा रही है।
अपनी छवि सुधारने के अभियान की शुरूआत श्री आडवाणी ने पाकिस्तानकी यात्रा से की थी।जहां उन्होंने जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष करार दिया था। हालांकि इस बयान पर हुए विवाद के चलते वह अपनी ही पार्टी में किनारे कर दिये गये थे और संघ के दबाव में उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद भी छोड़ना पडा था। आडवाणी ने अध्यक्ष पद की कुर्बानी तो दे दी मगर जिन्ना को लेकर अपने रुख को नहीं बदला। यह रुख उन्होंने हाल ही में अपनी पुस्तक 'माई कंट्री माई लाइफ' के विमोचन के अवसर पर भी दोहराया। यह अचंभित करने वाली बात रही कि जसवंत सिंह भी उनकी राय से इत्तेफाक रखते हैं लेकिन जब आडवाणी इस मुद्दे पर पार्टी में अलग-थलग पड गये थे तब जसवंत सिंह उनके साथ नजर नहीं आये थे।
आडवाणी ने पुस्तक विमोचन समारोह में देश की जानी मानी हस्तियाें (जिनमें उद्योग जगत, मनोरंजन जगत, मीडिया जगत, राजनीतिक क्षेत्र और सामाजिक क्षेत्र प्रमुख हैं) के अलावा संघ के बडे नेताओं और राजग के सहयोगियों सहित भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों का जमावडा लगाकर यह दर्शाना चाहा कि प्रधानमंत्री पद पर उनकी उम्मीदवारी को लेकर लोग गंभीर हैं। हालांकि यह गंभीरता चुनावों के समय क्या परिणाम लाएगी यह अलग बात है क्योंकि देश के बडे राज्यों में भाजपा की हालत पतली है।
आडवाणी जिन्हें बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में आरोपित किया गया है, ने अपनी पुस्तक में कहा है कि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर उन्हें गहरा दु:ख हुआ था। आडवाणी ने अपनी पुस्तक में मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री के तौर पर कार्यों की तो प्रशंसा की है लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में उनकी आलोचना की है क्योंकि वह कथित रूप से सोनिया गांधी के निर्देशों पर काम करते हैं। पुस्तक के अनुसार, आडवाणी को मलाल है कि सोनिया गांधी के साथ कभी उनके रिश्ते अच्छे नहीं बन पाए लेकिन आडवाणी यह भूल गये कि उनके विदेशी मूल के मुद्दे को सबसे पहले उन्होंने ही उछाला था और चुनाव सभाओं में अटल बिहारी वाजपेयी की अपेक्षा वही इस मुद्दे को ज्यादा तूल देते थे। हालांकि उन्होंने अब सोनिया गांधी से रिश्ते सुधारने की कवायद के चलते होली के दिन उनके घर जाकर उन्हें बधाई दी। आडवाणी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के घर भी गये।
आडवाणी ने अपनी पुस्तक विमोचन के समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी सहित कई केन्द्रीय मंत्रियों को निमंत्रण पत्र भेजा था लेकिन उनमें से एक रक्षा मंत्री एके एंटनी ने ही निमंत्रण पत्र का जवाब पत्र के माध्यम से दिया और दो केन्द्रीय मंत्री (जोकि कांग्रेस के नहीं थे) कृषि मंत्री और राकांपा प्रमुख शरद पवार और नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल ही समारोह में उपस्थित हुए। इनका आना इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि उसी दिन मेघालय में राकांपा के सहयोग से बनी गठबंधन सरकार को भाजपा के भी एक विधायक ने अपना समर्थन दिया है। राकांपा के महाराष्ट्र में शिवसेना से भी गठबंधन की खबरें जब-तब आती रहती हैं। इस संदर्भ में भी पवार के आगमन को देखा जा रहा है।
समारोह में आडवाणी सहित अन्य लोगों को यदि किसी की कमी खली तो वह थे अटल बिहारी वाजपेयी। भाजपा के शीर्षस्थ नेता वाजपेयी स्वास्थ्य कारणों से समारोह में नहीं आ सके जिसका आडवाणी ने मलाल भी व्यक्त किया। आडवाणी ने अपना राजनीतिक सफर वाजपेयी के सहयोगी के रूप में शुरू किया था और बाद में उन दोनों की जोड़ी ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस का मुख्य प्रतिद्वंद्वी बना दिया।
पुस्तक में निश्चित रूप से आडवाणी ने कई जगह ईमानदारी दिखाई है और वाजपेयी के साथ विभिन्न मुद्दों पर मतभेद की बात स्वीकारी है साथ ही उन्होंने आपातकाल के दौरान सत्ता पक्ष द्वारा संविधान का मखौल उडाने का जि करने के साथ ही 1998 में वाजपेयी सरकार के गठन के दौरान राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल उठाने के साथ ही विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
अब सवाल यह है कि आडवाणी इस पुस्तक के जरिये क्या हासिल करना चाहते थे। यदि वह अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे, तो वह तो उन्होंने कर दिया लेकिन यदि वह पीएम इन वेटिंग की बजाय पीएम बनना चाहते हैं तो सिर्फ छवि को नरमपंथी बनाने से काम नहीं चलेगा।
अपने वनवास से वापस आएंगे घीसिंग?
डेटलाइन इंडिया
दार्जिलिंग, 6 अप्रैल -अपने बनाए साम्राज्य में शरणार्थी बन कर कैसा लगता है यह जानना हो तो सुभाष घीसिंग से पूछिए। एक सिपाही से पहाडो के राजा और अब रास्ते पर आने की उनकी कहानी कम फिल्मी नहीं है।
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में राजनीति और राजनेता का पर्याय बन चुके गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के प्रमुख सुभाष घीसिंग के दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद के कामचलाऊ प्रशासक के पद से इस्तीफे के साथ ही पर्वतीय राजनीति में दो दशक लंबा एक दौर खत्म हो गया है। इसके साथ ही अब यह बहस भी तेज हो गई है कि पर्वतीय राजनीति का ऊंट अब किस करवट बैठेगा? दो साल से भी लंबे समय तक अलग गोरखालैंड की मांग के लिए चले हिंसक आंदोलन के बाद वर्ष 1988 में केंद्र, राज्य और जीएनएलएफ के बीच हुए एक करार के तहत जिस परिषद का जन्म हुआ था, उस पर पहले ही दिन से घीसिंग का कब्जा रहा है।
कूचबिहार के राजा की कोठी रही लालकोठी पर जबरन कब्जा कर उसे परिषद का मुख्यालय बना कर राजसी ठाठ के साथ काम करने वाले सुभाष घीसिंग के लिए इन दो दशकों में समय का पहिया पूरी तरह घूम गया है। उनको अपना इस्तीफा सिलीगुड़ी में एक सरकारी गेस्ट हाउस में बैठ कर लिखना और भेजना पडा। परिषद के गठन के बाद पहाड़ियों में घीसिंग ने अपनी छवि एक राजा की तरह बना ली थी। परिषद के पिछले दो चुनावों में तमाम सीटों पर कब्जा जमाने के बाद तो घीसिंग पूरी तरह निरंकुश हो गए थे। उन्होंने पहाड़ियों के विकास से नजरें फेर ली थी। अपने कुछ नेताओं और समर्थकों के बूते घीसिंग ने दो दशकों के दौरान जो तिलस्म बनाया था उसे टूटने में महज पांच महीने लगे। बीते साल अक्तूबर में विमल गुरुंग, जो उससे पहले तक घीसिंग के दाहिना हाथ समझे जाते थे, ने सामने आकर विरोध के इन स्वरों को संगठित किया और राजा का सिंहासन घीसिंग से छीन लिया।
सुभाष घीसिंग ने 18 साल की उम्र में सेना की नौकरी शुरू की थी। लेकिन छह साल बाद ही अचानक नौकरी छोड़ कर दार्जिलिंग लौट आए। वहां उन्होंने प्राइवेट छात्र के तौर पर बीए पास किया। उसके बाद घीसिंग ने तरुण संघ नामक एक क्लब का गठन किया। उसका महासचिव रहते हुए ही उन्होंने राजनीतिक पार्टी बनाने के सपने देखने शुरू किए। वर्ष 1968 में उन्होंने नीला झंडा नामक एक पार्टी बनाई। तब वे उसके अकेले नेता और कार्यकर्ता थे। घीसिंग ने 22 अप्रैल 1979 को अपने कुछ सहयोगियों के साथ दार्जिलिंग के चौक बाजार इलाके में एक जनसभा में पहली बार गोरखालैंड की मांग उठाई थी। पांच अप्रैल 1980 को उन्होंने जीएनएलएफ का गठन किया।
परिषद पर काबिज रहने के दौरान घीसिंग बीच-बीच में केंद्र व राज्य सरकार पर दबाव बनाने के लिए गोरखालैंड की मांग का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते रहे। परिषद से इस्तीफे के बाद उन्होंने एक बार फिर गोरखालैंड की मांग उठाई है। लेकिन अबकी किसी पर कोई दबाव बनाने नहीं, बल्कि अपना वजूद बचाने के लिए। हाल के महीनों में उनके पैरों तले की जमीन तेजी से खिसकी है। दो दशकों से पहाड़ियों का निर्विवाद राजा रहा यह शख्स अब पूरी तरह लाचार नजर आ रहा है। उनकी लाचारी का आलम यह है कि बीते महीने दिल्ली से लौटने के बाद जीजेएम की नाकेबंदी की वजह से वे उन पहाड़ियों में कदम तक नहीं रख सके, जहां हाल तक उनकी तूती बोलती थी। जहां घीसिंग की मर्जी के बिना पला तक नहीं हिलता था, वहीं अब घीसिंग-विरोधी नारे गूंज रहे हैं।
घीसिंग के तिलस्म टूटने की प्रयिा बीते साल इंडियन आइडल में पहाडी युवक प्रशांत तामंग को लेकर इलाके में पैदा होने वाले जुनून से शुरू हुई। उसके कुछ दिनों पहले ही घीसिंग ने पार्टी-विरोधी गतिविधियों के आरोप में अपने नजदीकी सहयोगी विमल गुरुंग को पार्टी से निकाल दिया था। विमल ने बाद में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) का गठन किया और तामंग के मुद्दे पर लोगों में पैदा हुए जुनून का घीसिंग के खिलाफ इस्तेमाल शुरू किया। गुरुंग पर्वतीय परिषद के पार्षद थे लेकिन घीसिंग ने उनसे डेढ़ साल तक मुलाकात नहीं की। कुछ पार्षद जब घीसिंग से मिलने का समय मांगते थे तो घीसिंग उनसे एक या दो साल बाद का अप्वायंटमेंट लेने को कहते थे। लेकिन अब घीसिंग अपने मिलने वालों से बातचीत करते हुए अपनी आंखों से आंसू पोंछते नजर आते हैं। अब वे मुलाकातियों से बातचीत में मानते हैं कि अतीत में कई गलतियां हुई हैं, अब सोच-समझ कर आगे कदम बढाना होगा। कहते हैं कि अब जो भी करूंगा गोरखालैंड के लिए ही करूंगा।

घीसिंग ने महीने भर बाद दार्जिलिंग लौट खुद को अपने घर में बंद कर लिया है। वे अपने कट्टर समर्थकों से भी मुलाकात नहीं कर रहे हैं। गोरखालैंड आंदोलन की जिस विरासत के बूते उन्होंने लंबे अरसे तक पहाड़ियों पर राज किया, वह अब उनके हाथों से छिन चुकी है। स्थानीय लोगों के आंदोलन की तेज होती धार को देखते हुए मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य को मजबूरन घीसिंग से इस्तीफा मांगना पडा। परिषद में घीसिंग का कार्यकाल 24 मार्च को खत्म होना था। अब सरकार के सामने परिषद का चुनाव कराने की भी चुनौती है।

गोरखा जनमु्क्ति मोर्चा के प्रमुख विमल गुरुंग कहते हैं कि घीसिंग के रुख बदलने के बावजूद वे लोग अब घीसिंग को अपने साथ नहीं लेंगे। वे कहते हैं कि घीसिंग के कार्यकाल में परिषद में तमाम आर्थिक घपले हुए हैं। हम जल्दी ही इन घपलों की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठाएंगे। यानी पहाड़ियों के निर्विवाद राजा रहे घीसिंग की मुसीबतें फिलहाल कम होने की बजाय बढती ही नजर आ रही हैं। फिलहाल घीसिंग अपने कुछ नजदीकी लोगों के साथ आगे की रणनीति बनाने में जुटे हैं। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब घीसिंग की राह आसान नहीं होगी। पहले न तो उनकी सला को कोई चुनौती देने वाला था और न ही आम लोग उनके खिलाफ थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। अपने कामकाज के निरंकुश तरीके से घीसिंग ने इतने दुश्मन पैदा कर लिए हैं कि उनसे पार पाना आसान नहीं होगा।

एक अक्षर का दाम 44 करोड़
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल - गूगल में सबसे पहले समुद्र सैर सपाटे के कारोबार की जानकारी देने वाली बेबसाइट उसकी कंपनी की खुले इसके लिए कंपनी ने एक अक्षर को करोड़ो रूपए खरीदा है। अक्षर खरीदने वाली एक ब्रिटिश कंपनी है। कंपनी ने एक अक्षर की करीब 4.4 करोड़ रुपए की रकम अदा की है।
दरअसल कंपनी के पास अब तक 'ूज.को.यूके' नामक डोमेन नेम था। लेकिन अब उसने 11 लाख डालर की रकम देकर 'ूजेज.को.यूके' नामक डोमेन नेम हासिल किया है। इससे पहले .को.यूके. श्रेणी का डोमेन नेम हासिल करने के लिए अदा किया गया सबसे ज्यादा मूल्य था तीन लाख डालर, या 1.2 करोड़ रुपए।
जिस कंपनी ने साढे चार करोड़ में नया डोमेन नेम खरीदा है उसके अधिकारियों का कहना है कि समुद्री सैर-सपाटे के कारोबार में अपनी बढत बनाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी था। गूगल में खोज करने पर 'ूजेज' कीवर्ड लगातार 'ूज' कीवर्ड से ऊपर आता रहा है। कंपनी चाहती थी कि जब भी कोई व्यक्ति इंटरनेट सर्च इंजन पर समुद्री सैरसपाटे के दौरों के बारे में खोज करे तो सबसे पहले उसी के बारे में जानकारी दिखाई दे।
हालांकि इस खरीद ने ब्रिटेन में डोमेन नेम बिी की रकम के लिहाज से रिकॉर्ड बना दिया है लेकिन किसी डोमेन नेम के लिए दी गई रकम का विश्व रिकॉर्ड इससे भी कहीं ऊपर है। इस समय सबसे ज्यादा खर्चीला डोमेन नेम सेक्स.कॉम है जिसे 2005 में करीब पचास करोड़ रुपए (1.2 करोड़ डालर) देकर खरीदा गया था। इसके पीछे पोर्न.कॉम डोमेन नेम है जिसे पाने के लिए पिछले साल करीब 38 करोड़ रुपए (95 लाख डॉलर) की रकम अदा की गई थी।
सनी देओल का कैरियर तबाह
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल -गदर और घातक जैसी फिल्मों में गजब का अभिनय करने वाले सनी देओल अब बडे पर्दे पर कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हालत यह है कि उनकी हाल की फिल्मों को दर्शकों ने कोई तव्वजों नहीं दी है। फिल्म आलोचकों का कहना है कि बडे पर्दे पर एक छत्र राज कायम करने वाला यह अभिनेता अब थक चुका है। उनकी हालिया प्रदर्शित फिल्मों 'जो बोले सो निहाल', 'नक्शा', 'बिग ब्रदर' 'फुल एण्ड फाइनल' का बॉक्स आफिस पर हश्र देखें तो शायद यह सही भी लगता है। इन फिल्मों ने बॉक्स आफिस पर पानी भी नहीं मांगा जबकि इन फिल्मों में सनी के एक्शन दृश्यों को खूब बढा-चढा के प्रस्तुत किया गया था।
सनी देओल का असली नाम अजय सिंह है। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1956 को नई दिल्ली में हुआ था। उनके पिता धर्मेन्द्र बडे पर्दे के पहले ही मैन के रूप में विख्यात हैं। उनका भाई बॉबी देओल भी अभिनेता है। उनके पिता की दूसरी पत्नी और बॉलीवुड की खूबसूरत अभिनेत्रियों में शुमार रहीं हेमा मालिनी की दोनों बेटियां भी अभिनेत्री हैं। सनी की पत्नी का नाम पूजा है और उनके दो बेटे राजवीर और रणवीर हैं। यही दोनों नाम फिल्म दिल्लगी में सनी देओल और बॉबी देओल के थे। सनी ने अपने बेहतरीन अभिनय के लिए 1990 में फिल्म घायल के लिए पहली बार नेशनल अवार्ड जीता था। बॉलीवुड की सबसे सफलतम फिल्मों में से एक रही 'गदर- एक प्रेम कथा' के भी वह नायक रहे।
उनकी कुछ अन्य प्रमुख फिल्मों में बेताब, अर्जुन, पाप की दुनिया, त्रिदेव, चालबाज, डर, जीत, घातक, जिद्दी, बॉर्डर और इंडियन आदि शुमार हैं। सनी देओल की निर्देशक राहुल रवैल और राजकुमार संतोषी से खूब पटी। राहुल रवैल के साथ उन्होंने फिल्म बेताब, अर्जुन, समंदर, डकैत और अर्जुन पंडित में काम किया तो राजकुमार संतोषी के साथ फिल्म घायल, दामिनी और घातक में काम किया। राजीव राय, जे.पी. दत्ता, अनिल शर्मा, राज कंवर और गुड्डु धनोआ भी सनी के प्रिय निर्देशकों में से रहे। राजीव राय के साथ जहां उन्होंने त्रिदेव और विश्वात्मा में काम किया तो वहीं गुड्डु धनोआ के साथ फिल्म जिद्दी, सलाखें, शहीद और जाल फिल्मों में काम किया। जे.पी. दत्ता के साथ उन्होंने यतीम, क्षत्रिय और बॉर्डर में काम किया तो अनिल शर्मा के साथ गदर- एक प्रेम कथा और द हीरो में काम किया। इसके अलावा राज कंवर के साथ उन्होंने जीत और फर्ज में काम किया।
सनी ने फिल्म दिल्लगी के माध्यम से निर्देशन के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया लेकिन इसमें उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इस फिल्म में उनके अलावा बॉबी देओल और उर्मिला मातोंडकर भी थीं। सनी की अब तक प्रदर्शित फिल्मों की बात करें तो उनमें गजब, बेताब, सनी, सोहनी महिवाल, मंजिल मंजिल, जबरदस्त, अर्जुन, सवेरे वाली गाडी, सल्तनत, समंदर, डकैत, यतीम, पाप की दुनिया, इंतकाम, राम अवतार, निगाहें, मैं तेरा दुश्मन, जोशीले, त्रिदेव, चालबाज, वर्दी, घायल, आग का गोला, ोध, योध्दा, शंकरा, नरसिम्हा, विष्णु देवा, विश्वात्मा, गुनाह, डर, क्षत्रिय, दामिनी, इज्जत की रोटी, इन्सानियत, इम्तिहान, दुश्मनी, अंगरक्षक, हिम्मत, जीत, घातक, अजय, बॉर्डर, जोर, जिद्दी, और प्यार हो गया, कहर, सलाखें, इसकी टोपी उसके सर, प्यार कोई खेल नहीं, अर्जुन पंडित, दिल्लगी, चैम्पियन, फर्ज, गदर- एक प्रेम कथा, ये रास्ते हैं प्यार के, इंडियन, कसम, मां तुझे सलाम, शहीद, जानी दुश्मन, कर्ज, द हीरो, कैसे कहूं की प्यार है, जाल, खेल, लकीर, रोक सको तो रोक लो, जो बोले सो निहाल, नक्शा और बिग ब्रदर शामिल हैं।
मायावती से डरी हुई है कांग्रेस
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 अप्रैल - कांग्रेस में उत्तर भारतीय राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावो की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। कांग्रेस को यह डर खाए जा रहा है कि उत्तर भारतीय राज्यों के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी उसको नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए पार्टी ने निर्णय लिया है कि मायावती को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश कांग्रेस चुनौती पेश करे ।
राजनीति के जानकारो का कहना है कि बसपा राजनीतिक खलबली मचा सकती है। इसके कारण कांग्रेस को उत्तर भारत में चार से सात प्रतिशत वोटों का नुकसान उठाना पड सकता है। आने वाले विधानसभा चुनावों में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अगर थोड़ा भी रुझान इधर-उधर हुआ तो कांग्रेस को भाजपा के हाथों कुछ सीटें गंवानी पड सकती हैं।
मायावती को रोके रखने के लिए जरूरी है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में चुनौती पेश की जाए। पिछले कुछ महीनों के दौरान समाजवादी पार्टी राजनीतिक रूप से शांत थी। उसने बसपा के विरोध का कोई खास प्रयास नहीं किया। वह वाम दलों से संबंध मजबूत करने और तीसरा मोर्चा पुनर्जीवित करने का प्रयास करती रही। आखिरकार उसकी झोली में 40 लोकसभा सीटें हैं। जाहिर है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। आने वाले चुनाव में मायावती 50 सीटें जीतने की क्षमता रखती हैं, पर फिलहाल वह कई मोर्चों पर राजनीतिक युध्द लड रही हैं। आामक शैली और नौकरशाही के साथ अपनाए गए तौर-तरीकों से उनकी छवि नकारात्मक हो रही है। वह विरोधियों के प्रति अहंकार और बैरभाव दिखा रही हैं।
वाम मोर्चा 65 सीटों से 45 पर सिमट सकता है, जबकि सपा की सीटें 40 से घटकर 20-25 पर आ सकती हैं। इस प्रकार दोनों को 70-85 सीटें हासिल हो सकती है। कांग्रेस इतनी सीटों की अवहेलना नहीं कर सकती। गठबंधन की अवधारणा व्यक्तिगत पसंद या नापसंदगी के दायरे से ऊपर है। संप्रग-वाम दलों का गठबंधन 2009 चुनाव के बाद भी जारी रह सकता है, क्योंकि इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि बसपा, अन्नाद्रमुक और तेलगुदेशम क्या फैसला लेंगे? गठबंधन के ढांचे में राजनीतिक रुझान और
वरीयताओं के बारे में भविष्यवाणी करना मुश्किल है। मीडिया कवरेज बढने तथा अन्य तकनीकी विकास के चलते आज मतदाता पहले से ज्यादा जागरूक है। सत्ताविरोधी रुझान लोगों के मूड को जाहिर करते हैं।
शायद ही कोई अनुमान लगा पाया हो कि उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती दो सौ से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर सकती हैं। परम्परागत जातिवादी बाधाएं दूर हो गईं और उन्हें स्थायित्व एवं सुशासन के लिए वोट मिला। उत्तर प्रदेश में नई सरकार बने कई माह बीत चुके हैं, लेकिन क्या वहां वास्तव में स्थायित्व और सुशासन की स्थापना हो सकी है? पिछले दिनों पश्चिम उत्तर प्रदेश में युध्द सरीखी स्थिति उत्पन्न हो गई थी। मायावती के प्रति आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने के विरोध में महेंद्र सिंह टिकैत को गिरफ्तार करने के लिए तमाम पुलिस बल झोंक दिया गया।


पराजित राजा को अब आया जोश
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 6 अप्रैल - विधानसभा चुनाव में हार के बाद हाशिए पर पडे वीरभद्र सिंह ने प्रतिपक्ष में प्रासंगिक बने रहने के लिए भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल पर प्रतिशोध की राजनीति करने का आरोप लगाया है और कहा है कि धूमल जब भी मुख्यमंत्री बनते हैं, कांग्रेसियों के खिलाफ फाइलें खोल देते हैं। श्री सिंह ने इशारों में ही अपनी राजनैतिक प्रतिद्वद्वी मानी जाने वाली प्रतिपक्ष की नेता विद्या स्टोक्स से भी कह दिया कि वे लाल बत्ती मिलने से खुश न रहे और सडक पर आकर मोर्चा संभालें।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा है कि क्षेत्रवाद और जातिवाद प्रदेश हित में नहीं है। वीरभद्र ने कहा कि प्रेम कुमार धूमल ने अपने पिछले मुख्यमंत्रित्वकाल में भी कांग्रेसियों को फंसाने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें मुंह की खानी पडी थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह ईश्वर के सिवा किसी से नहीं डरते हैं। धूमल ने पहले भी उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश की थी। उस समय वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए थे। अब दोबारा कांग्रेसियों के खिलाफ षडयंत्र रचे जा रहे हैं।मुख्यमंत्री पर पलटवार करते हुए वीरभद्र ने कहा कि धूमल ने उन पर अफसरों को धमकाने का आरोप लगाया है। इस तरह की भ्रामक बयानबाजी धूमल की पुरानी आदत रही है। वीरभद्र ने कहा कि सारा हिमाचल जानता है कि कौन अफसरों को डराता और धमकाता रहा है।
विपक्ष में रहते हुए प्रेम कुमार धूमल कई बार अफसरों को बयानों के माध्यम से चेतावनी दे चुके हैं। भाजपा सरकार अब क्या कर रही है, इसकी उनको कोई चिंता नहीं है। अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रधान निजी सचिव रहे सुभाष आहलुवालिया को मुख्यमंत्री के दफ्तर में रखा जाए। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन अधिकारियों को धूमल के करीबी माना जाता था, उनको भी कांग्रेस के शासनकाल में अच्छे पदों पर रखने के प्रयास किए गए थे, जबकि आज उसके विपरीत हो रहा है।
वीरभद्र ने कहा कि भ्रष्टाचार में डूबे लोग दूसरों पर अंगुलियां न उठाएं। कांग्रेस शासनकाल को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस सरकार ने हिमाचल को तरक्की की वर्तमान मंजिल पर ईमानदारी, समर्पण और पारदर्शिता से पहुंचाया है। हमारी राजनीति सरकारी कर्मचारियों पर आधारित नहीं है। भाजपा के शासनकाल में बडे पैमाने पर राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से स्थानांतरण किए जा रहे हैं। क्षेत्रवाद और जातिवाद को बढावा दिया जा रहा है जो प्रदेश हित में नहीं है।
जालसाज मंत्री को जमानत मगर सवाल बाकी
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 6 अप्रैल - सिंघी राम और उनके सहयोगी अफसर को जमानत तो मिल गई लेकिन उनके बहाने हिमाचल में फर्जी स्कूली प्रमाण पत्रों और मार्कशीटों का एक बडा घोटाला सामने आ रहा है। इससे एक आशंका यह भी पैदा हो गई है कि हिमाचल से पढे छात्र छात्राओं को देश के दूसरे हिस्सों में विश्वविद्यालय और कालेजो में प्रवेश लेने में भारी दिक्कतों का सामना करना पडेगा।
उधर पूर्व बागवानी मंत्री सिंघी राम और हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बीआर राही को विशेष न्यायाधीश (वन) जेएल गुप्ता की अदालत ने विजिलेंस हिरासत से रिहा कर दिया। अदालत ने गिरफ्तारी गैर कानूनी बताते हुए अभियोजन पक्ष की रिमांड बढाने की याचिका खारिज कर दी। मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।आरोपी पक्ष के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को इसी अदालत के 24 मार्च के आदेश की प्रतिलिपि दिखाई और कहा कि इसमें अभियोजन द्वारा आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा - 13 (2) का उल्लेख नहीं किया गया है। पहले इसी के आधार पर विशेष न्यायाधीश की अदालत से अंतरिम जमानत याचिका वापस ली गई थी। विशेष अदालत ने अपने उस आदेश में लिखा था कि जब कभी भी अभियोजन पक्ष भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा-13 (2) को एफआईआर में शामिल करेगा, तो आरोपियों को हिरासत में लेने से पूर्व दो दिन का नोटिस जारी करेगा।
अदालत ने इसी आधार पर इस गिरफ्तारी को गैर कानूनी करार दिया। इसके साथ ही बीआर राही को रिमांड पर लेने की विजिलेंस की याचिका भी खारिज कर दी गई। राही के अतिरिक्त सिंघी राम को भी विजिलेंस हिरासत से रिहा कर दिया गया। विजिलेंस की ओर से मामले की पैरवी जिला न्यायवादी कश्मीर सिंह ठाकुर ने की, जबकि आरोपी बीआर राही के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता श्रवण डोगरा और सिंघी राम की तरफ से अधिवक्ता पवन ठाकुर ने पैरवी की। इससे पहले मामले की सुनवाई मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी शिमला यशवंत चोगल की अदालत में की गई, जहां अभियोजन पक्ष ने रिमांड याचिका में पीसी एक्ट की धारा -13 (2) को जोड़ने का हवाला दिया। इस पर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने मामला विशेष न्यायाधीश (वन) की अदालत को हस्तांतरित कर दिया।
हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड में लगातार तीसरे दिन स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने छानबीन जारी रखी। शनिवार को टीम ने बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बीआर राही के तत्कालीन पीए की अलमारियों में रखा गया रिकार्ड चेक किया। इसमें उन्हें उन कागजों की तलाश है, जिससे यह पता चल सके कि डुप्लीकेट सर्टिफिकेट ब्रांच से पीए को जारी की गईं खाली मार्कशीटों का क्या किया गया। साथ ही यह भी साक्ष्य जुटाया जाना है कि इसके पीछे राही का कितना हाथ है।
फिलहाल बोर्ड अध्यक्ष के कार्यालय की अलमारियों में रखा गया रिकार्ड इतना ज्यादा है कि विजिलेंस जांच टीम को कडी मशक्कत करनी पडेगी। जांच को पूरा होने में दो दिन का समय और लग सकता है।शनिवार को की गई कार्रवाई में राही के पीए का रिकार्ड कब्जे में लिया गया है। इसे जांचने में ही विजिलेंस टीम को दो दिन का समय लग सकता है। इस समय जांच पूरी तरह इस बात पर केंद्रित है कि डुप्लीकेट सर्टिफिकेट ब्रांच से विभिन्न अधिकारियों को जारी की जाने वाली खाली मार्कशीटों का क्या किया गया। बोर्ड के नियमों के तहत बोर्ड अध्यक्ष सहित कुछ अन्य अधिकारियों को ऐसी खाली मार्कशीट जारी की जाती हैं और इसका पूरा रिकार्ड रखा जाता है। विजिलेंस टीम ने ये सारा रिकार्ड कब्जे में लेकर इसकी छानबीन शुरू की है।
अब यह पता लगाने की कवायद चल रही है कि कितनी खाली मार्कशीटें रिकार्ड में मौजूद हैं और कितनी को नष्ट किया गया है। इस जांच में सहयोग कर रहे विजिलेंस के नार्थ जोन के एसपी संतोष पटियाल ने बताया कि उन्होंने राही के कार्यालय से रिकार्ड तलब किया है यह इतना ज्यादा है कि इसकी जांच को दो दिन का समय लग सकता है। इसके बाद ही पता चल पाएगा कि पूर्व मंत्री सिंघी राम की बेटी के अलावा यहां से और कितने फर्जी सर्टिफिकेट जारी किया गए हैं।
अपराधियों की प्रेम कथा का अंत
डेटलाइन इंडिया
चंडीग़ढ, 6 अप्रैल - यह एक आपराधिक प्रेम कहानी है। प्रेमी अपने गिरोह के साथ सडक चलती महिलाओं के गले से हार और गहने छीनता था और उसकी प्रेमिका उन्हें बाजार में बेच कर नकदी लाती थी। प्रेमिका दीपिका ने बहुत सारा पैसा एक साझा खाते में अपनी भविष्य निधि की तरह जमा कर रखा था। इन खातों की तलाश की जा रही है।
'स्नैचर इन ब्लैक' गिरोह के सरगना कमलदीप सिंह ने पुलिस के समक्ष कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं।
उसने पुलिस को बताया है कि स्नैचिंग के आभूषणों को भानुप्रताप सिंह की 'गर्लफ्रेंड' दीपिका बेचती थी। आभूषणों को मोहाली और पंचकूला के किसी ज्वेलर्स के पास बेचा जाता था। पुलिस दीपिका की भी तलाश में जुटी है। इधर, स्नैचिंग का सरगना भानुप्रताप सिंह अब भी पुलिस की पकड से बाहर है। शनिवार को उसकी धरपकड के लिए उसके सभी संभावित ठिकाने खंगाले गए।
आरोपी कमलदीप ने पुलिस को बताया कि पूरा नेटवर्क मोबाइल फोन के जरिए चलता था। गिरोह के सदस्य पहले आभूषणों से लैस महिला को ढूंढते थे और उसके बाद उसे काफी देर फॉलो किया जाता था। बाद में मोबाइल के जरिए अन्य को सूचित किया जाता था। दूसरे सदस्य वारदात से पूर्व नजदीकी लोकेशन में ख़डे रहते थे। वारदात को अंजाम देने वाले कुछ देर में ही उक्त लोकेशन पर पहुंचते थे और इसके बाद मोटरसाइकिल बदल दिए जाते थे। अक्सर वारदात के लिए बुलेट और पल्सर मोटरसाइकिलों को प्रयोग में लाया जाता था। उसने बताया कि भानु और दीपिका पिछले एक वर्ष से एक दूसरे से प्यार करते हैं। इधर, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि चोरी के आभूषण खरीदने वालों पर भी पुलिस नकेल कसेगी।
डीएसपी (सीआईडी) सतवीर सिंह का कहना है कि गिरोह के सदस्य वारदात के एकदम बाद मोटर साइकिल बदलते थे और अलग अलग हो जाते थे। जब पुलिस की जांच ठंडी पडती तो सभी एकत्र हो जाते थे। कई बार तो यह इतने पैशन में होते थे कि कुछ देरी में ही दूसरी वारदात को अंजाम दे डालते थे। उनकी योजना के आगे पुलिस का नेटवर्क भी कई बार फेल साबित हो जाता था।
पुलिस ने एक स्नैचर का स्केच भी जारी किया था। इसमें भानुप्रताप की शक्ल ट्रेस हुई थी। एक अखबार में स्केच दिखने के बाद उन्होंने अपना हुलिया बदल लिया था। कमलदीप ने बताया कि 22 मार्च को उसने अपने केश कटवा लिए थे। जबकि भानु प्रताप सिंह ने भी अपने बाल छोटे कर लिए थे और कुछ दिनों के लिए ाइम करना छोड़ दिया था। मगर जैसे ही पैसे खत्म हो जाते, वे फिर से स्नैचिंग शुरू कर देते थे।
कपिल रोए और कोसा बीसीसीआई को
डेटलाइन इंडिया
चंडीग़ढ, 6 अप्रैल - पिछले लगभग पचास साल में टीम इंडिया की सबसे शर्मनाक हार की खबर सुनकर महान किेटर कपिल देव रो पडे। अगले दिन उन्होंने पत्रकारों से अपना दुख बांटा और कहा कि टीम के खिलाडी जब अपनी लीग के प्रचार में रात भर नाचते रहेंगे और हिरोइनों के साथ बीडियो बनवाते रहेंगे तो किेट कौन खेलेगा।
विश्व कप विजेता टीम का नेतृत्व करने वाले पूर्व भारतीय कप्तान ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खिलाड़ियों के घटिया प्रदर्शन के लिए बीसीसीआई जिम्मेदार है। आईसीएल के सिलसिले में चंडीग़ढ पहुंचे कपिल ने कहा कि किेट एक टीम गेम है। जब टीम इंडिया को इकट््ठे होकर अभ्यास करना चाहिए था, उस समय अधिकांश खिलाडी बोर्ड के कहने पर इंडियन प्रीमियर लीग के प्रमोशन के लिए प्रायोजकों के इशारों पर नाच रहे थे।
बकौल कपिल 'विश्व कप के बाद बोर्ड ने नियम बनाया था कि किसी सीरीज से 15 दिन पहले और बीच में कोई भी खिलाडी किसी विज्ञापन का हिस्सा नहीं बन सकता। मुझे यह देखकर काफी हैरानी हुई कि अधिकांश खिलाडी बोर्ड के कहने पर पहला टेस्ट खत्म होने के बाद आईपीएल के प्रमोशन के लिए जगह-जगह टहल रहे थे। यहां बोर्ड ने अपने ही बनाए नियमों की खूब धाियां उडाई। इसलिए इस हार के लिए मैं खिलाड़ियों को कम और बोर्ड को अधिक जिम्मेदारी मानूंगा।
'आईसीएल के एग्जिक्यूटिव बोर्ड के चेयरमैन कपिल ने कहा कि बोर्ड वही कर रहा है, जो उसे अच्छा लग रहा है। बार-बार नियम बनाना और फिर उन्हें तोड़ना भारतीय किेट के लिए खतरे की घंटी है। इसका उदाहरण अहमदाबाद टेस्ट से पहले कैंप में मौजूद पांच खिलाड़ियों से ही मिल गया था। कपिल ने कहा कि खिलाड़ियों ने वही किया, जो बोर्ड ने कहा।
कपिल ने कहा कि टीम इंडिया के खिलाड़ियों पर इन दिनों अतिरिक्त भार डाला जा रहा है। खिलाडी गेम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे हैं। आस्ट्रेलिया के लंबे दौरे के बाद उन्हें आईपीएल में फंसा दिया गया और फिर दक्षिण अफ्रीका के सामने ख़डा कर दिया गया। ऐसे में खिलाड़ियों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी होगा।
पिछले कुछ दिन से सुर्खियों में बने शोएब अख्तर के मामले में कपिल ने सिर्फ इतना ही कहा कि वे इस पूरे घटनाम पर केवल रावलपिंडी एक्सप्रेस को सांत्वना ही देना चाहेंगे। कपिल ने कहा कि शोएब के साथ जो भी हुआ, वह किेट के लिए ठीक नहीं है। पूर्व भारतीय विकेटकीपर किरण मोरे ने भी कहा कि टीम इंडिया की हार के लिए पिच को जिम्मेदार ठहराना बिलकुल गलत होगा। मोरे ने कहा कि टेस्ट मैच के लिए पिच बिल्कुल ठीक थी। टीम इंडिया के खिलाडी खराब शॉट सेलेक्शन और बोर्ड की खराब नीति के कारण फेल हुए। साउथ अफ्रीका ने पूरे मैच में अच्छा खेल दिखाया, जबकि भारतीय खिलाडी मैच के दौरान दर्शक बने रहे।
आजमग़ढ चुनाव का असली मतलब
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 6 अप्रैल - आजमग़ढ का लोक सभा उपचुनाव इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि लोक सभा की उम्र ज्यादा नहीं बची है लेकिन चूंकि विधान सभा चुनाव में बसपा की जीत के बाद यह पहला महत्वपूर्ण चुनाव है इसलिए सारे दल यहां पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
उपसंसदीय चुनाव के लिए जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे अपने-अपने प्रत्याशियों के पक्ष में मतदाताओं का रुझान करने के लिए पार्टियां अपनी ताकत झोक दी है। इसी म में सपा प्रत्याशी के पक्ष में आस पास के सपा नेता तो प्रचार में जुटे ही साथ ही कई संगठनों ने भी प्रचार में अपनी जान लडा दी है।
सपा प्रत्याशी बलराम यादव के पक्ष में प्रचार करने के लिए अंबेडकर नगर जिले के सपा नेता और पूर्व विधायक पवन पांडेय अपने लाव-लश्कर के साथ सदर संसदीय क्षेत्र का दौरा किया। पवन पांडेय ने गोपालपुर विधान सभा क्षेत्र के ब्राह्मण आबादी वाले क्षेत्र गोर्वधनपुर, टीकरपठान, भैसहागोनापुर, समधीपुर, सिंघवारा, शुक्ल का पुरा, भटनी मिश्रा का पुरा, तेरही आदि गांवों का दौरा किया। पवन पांडेय ने सपा की नीतियों और रीतियों पर मतदाताओं को पूरी तरह से अवगत कराया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला मंत्री परिषद की बैठक हुई। इसमें लोक सभा सदर उपसंसदीय चुनाव के बाबत चरचा की गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि पार्टी के नेतृत्व के निर्णय पर सपा प्रत्याशी बलराम यादव के पक्ष में मतदान और प्रचार प्रसार करना है। कामरेड रामाज्ञा यादव ने बताया कि लोक सभा चुनाव में संप्रदायिक पार्टी भाजपा, अवसरवादी पार्टी बसपा और पूजीवांद को बढावा देने का काम करने वाली कांग्रेस के प्रत्याशियों को हराने के लिए जरुरी है कि सपा चुनाव जीते। तभी इन समाज विरोधी संगठनों को सबक मिलेगा।
उप्र विश्वकर्मा समाज ने भी सपा के प्रत्याशी को जिताने के लिए सपा को सर्मथन दिया। समाज के पदाधिकारियों ने शनिवार को क्षेत्र में जनसंपर्ककिया। विश्वकर्मा समाज के पदाधिकारियों ने लोकसभा सदर क्षेत्र के गुलऊर, बनकट, ग़ढवल, पुरूषोत्तमपुर, बलरामपुर, ब्रह्मस्थान, किशुनदासपुर, अवती, बसही जरमजेयपुर आदि गांवाें का दौरा कर स्वजातिय बंधुओं से सपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की। भासपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री राजधारी सिंह ने अपने साथियों के साथ सदर क्षेत्र के पल्हनी, मुसेपुर, जमालपुर, हेंगापुर, मनचोभा, कोठरा, हाफिजपुर, गेरवुपुरवा, घोरठ, धन्नीसराय आदि गांवों का दौरा कर सपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की अपील की। भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राजकुमार गुप्त ने प्रचार करने के लिए बीस-बीस कार्यकर्ताओं की 25 टोलियां बनाई है। सभी टोलियाेंं को लोकसभा सदर क्षेत्र के पांचों विधानसभाओं में भेजा गया है। जो जनसंपर्क कर लोगों को सपा की नीतियों और जिले में हुए विकास के बारे में जानकारी देकर पक्ष में वोट मांगने का काम कर रहें हैं।
बसपा प्रत्याशी अकबर अहमद डंपी के प्रचार अभियान को प्रदेश सरकार केमंत्रियों ने काफी गति दे दी है। मंत्रियों के तुफानी दौरे उन गांवों तक हो रहे हैं जहां तक प्रत्याशी भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। इनके चलने और बैठकें करने की गति काफी तेज है। हर जगह मंत्री क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने की बात कर रह ेहैं।डंपी को जिताने केलिए बसपा के हर तबके के मंत्री और नेता यहां आकर जम गए हैं। राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त आनंद शेखर गिरी ने गोस्वामी समाज से बसपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की। बसपा गोस्वामी भाईचार समिति के प्रदेश से लेकर पूर्वांचल के हर जिलों केपदाधिकारी भी उनके साथ हैं।
ये नेता बसपा मुखिया मायावती की सर्वहारा समाज की नीतियों को भी बता रहे हैं। इसी म में होम्योपैथ और धर्माथ कार्य मंत्री राजेश त्रिपाठी, शिक्षक नेता ओमप्रकाश राय, सिकंदपुर के विधायक भगवान पाठक ने समर्थकों के साथ शनिवार को दर्जनों गांवों का दौरा कर बसपा के पक्ष में मतदान करने की अपील की।
नदी में कूद कर टूट गया प्रेमी जोड़ा
डेटलाइन इंडिया
इलाहाबाद, 6 अप्रैल - हिंदी के एक अमर प्रेम उपन्यास गुनाहों का देवता के शहर में एक प्रेम कथा का अंत यमुना की धाराओं में हुआ। एक प्रेमी जोड़ा पुल के ठीक उसी ठिकाने से यमुना में कूद गया जिसे ऐसी ही घटनाओं के लिए जाना जाता है। प्रेमिका को मछुआरों ने बचा लिया।
लेकिन यह एक और प्रेम कहानी का दुखद था। सुसाइड प्वाइंट बन चुके नए पुल से शनिवार को बीए के एक छात्र और छात्रा ने यमुना नदी में छलांग लगा दी। दोनों को एक साथ पुल से यमुना में कूदते देख वहां से गुजर रहे राहगीर स्तब्ध रह गए। नाव से मछलियां पकड रहे कई मल्लाह उन्हें बचाने के लिए यमुना में उतर गए। छात्रा को जीवित खींच लिया गया लेकिन उसके प्रेमी छात्र को नहीं बचाया जा सका। उसकी लाश ही मिली।
युवक मांडा क्षेत्र के एक शिक्षक का पुत्र था। जबकि युवती हरदोई की है। उसे अस्पताल में भर्ती कराकर हरदोई में घरवालों को खबर दी गई है।शुवार दोपहर मौसम सुहाना होने के कारण नए पुल पर तमाम लोग चहलकदमी कर रहे थे। तभी बैरहना की ओर से टहलते हुए एक युवक और युवती पुल के बीच में पहुंचे। उन दोनों ने कुछ क्षण पुल से नीचे झांका। इसके बाद युवक ने हाथ पकडकर युवती को रेलिंग पर चढाया और खुद भी तेजी से रेलिंग पर चढकर उसके साथ यमुना में कूद गया। यह देखकर पुल पर मौजूद लोगों और राहगीरों ने शोर मचाया। इस पर नीचे नदी में पुल के आसपास मछलियां पकड रहे कुछ मल्लाह दोनों को बचाने के लिए नाव से यमुना में कूद गए। इस दौरान पुल पर भीड़ लग गई। मल्लाहों ने दो-तीन मिनट में ही लडकी को बेहोशी की हालत में निकाल लिया और एसआरएन अस्पताल भेजा। पर युवक का पता नहीं चल रहा था।
इसी बीच, बस से रामबाग आ रहे मांडा के बेलहा गांव के शशि सिंह और पिंटू भी भीड़ देख वहां रुक गए। उन्होंने यमुना से निकाली गई युवती को देखकर बताया कि उन्होंने कुछ देर पहले उसे अपने चचेरे भाई आशीष सिंह उर्फ विपुल (22) के साथ पुल पर टहलते देखा था। पुल के निकट स्थित बांग़ड धर्मशाला के पास आशीष की बाइक भी मिलने पर यह साफ हो गया कि युवती के साथ आशीष ने ही पुल से छलांग लगाई थी। शशि और पिंटू ने परिवार के लोगों को फोन से सूचना दी। कुछ देर में कई रिश्तेदार और परिचित नए पुल पर पहुंच गए। इस बीच खबर पाकर कीडगंज थाने की पुलिस भी वहां आ गई।
शाम करीब सवा चार बजे गोताखोरों को नदी में आशीष की लाश मिली। शव देखकर परिवार के लोग बिलख पडे।
पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। रिश्तेदारों ने बताया कि आशीष के पिता लालजीत सिंह मांडा स्थित लाल बहादुर शास्त्री इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं। उसकी मां कमला सिंह बेलहा की प्रधान हैं। छह बहनों में इकलौता आशीष सीएमपी डिग्री कॉलेज में बीए अंतिम वर्ष का छात्र था। वह मोतीलाल नेहरू रोड पर केपीयूसी हॉस्टल के पास रहने वाले अपने ठेकेदार चाचा लालमणि के घर में रहकर पढाई कर रहा था। आशीष के इस कदम से परिवार के लोग सकते में हैं। उन्हें कभी पता ही नहीं चला कि आशीष का किसी लडकी से मेलजोल है। शाम को युवती को हल्का होश आया तो उसने अपना नाम विधि बाजपेयी पुत्री बृजनंदन बाजपेयी और पता हरियावां जिला हरदोई बताया। खबर लिखने तक विधि को यह नहीं बताया गया था कि उसके विधान से अब आशीष लापता हो गया है।
जेल में रह कर अदालती जालसाजी
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 6 अप्रैल - एक आदमी आगरा जेल में बंद था। उस पर जापानी पर्यटकों से बलात्कार का आरोप था। वह जानता था कि इतने गंभीर आरोप में उसे जमानत नहीं मिल सकेगी। उसने अदालत के नाम से एक फर्जी फैसला बनवाया और जेल में पेश कर दिया। जालसाजी इतनी फूहड थी कि पकडी गई और अपराधी पर दूसरा मुकदमा भी दायर हो गया है।
जापानी पर्यटकों से बलात्कार के मामले में जिला जेल में बंद एक आरोपी ने फर्जी तरीके से जमानत कराने की कोशिश की। इस मामले पर नाराज जिला जज ने सीजेएम को अभियुक्त के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के आदेश दिए हैं।
थाना ताजगंज क्षेत्र स्थित एक होटल में 19 सितंबर से 21 सितंबर 2007 तक दो जापानी महिला पर्यटकों के साथ बलात्कार करने के आरोपी रहीश, राजन सिंह, दीपक, राजेंद्र, विनय, चिंटू आदि जिला कारागार में बंद हैं। उनके खिलाफ बलात्कार, आपराधिक षडयंत्र व धमकाने का मामला दर्ज करवाया गया था। शुवार को सीजेएम नेत्रपाल सिंह के फर्जी आदेश से रहीश का रिहाई आर्डर जेल पहुंचा।
यहां रिहाई आर्डर लाने वाले कर्मचारी ने इस आदेश पर संदेह व्यक्त किया। इस पर कराई गई जांच में रिहाई का आदेश फर्जी पाया गया। इसमें पाया गया कि उक्त आदेश फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रथम के न्यायालय से जारी ही नहीं किया गया था, जबकि यह मामला वहीं विचाराधीन है। इस मामले में जिला जज राजेश चंद्रा ने सख्त रुख अपनाते हुए सीजेएम को अभियुक्त के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के आदेश दिए हैं।
चिता के पडोस में जी उठा मुर्दा
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गुरदासपुर, 6 अप्रैल -एक बीमार नौजवान को अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वहां हालत और बिग़डी और उसकी सांस चलनी बंद हो गई। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया और इलाज के 31 हजार रूपए मांगे जो चंदा करके दिए गए।लेकिन अंतिम संस्कार के ठीक पहले इस युवक की 'लाश' को जब रिवाज के अनुसार नहलाया जा रहा था तो उसने आंखें खोल दी।
संस्कार करने गए लोगों ने तत्काल उसे यहां के सिविल अस्पताल में भर्ती कराया। हालांकि उसकी हालत अब भी नाजुक बनी हुई है।जानकारी के अनुसार काहनूवान के मुहल्ला तेलिया का निवासी मंगत राम (22) पुत्र हंसराज का लंबी बीमारी के बाद गुर्दा खराब हो गया था। साथ ही उसे टीबी की भी बीमारी थी। बीते दिनों तबीयत खराब होने पर उसे काहनूवान के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से डाक्टरों ने उसकी हालत गंभीर देखते हुए अमृतसर के ईएमसी अस्पताल में भर्ती कराया। वहां पर से वेंटीलेटर पर रख गया।
यहां पर डाक्टरों ने 31 हजार रुपये का बिल बना दिया। लेकिन मंगत राम का गरीब परिवार इतने रुपये देने में असमर्थ था। इस पर काहनूवान इलाके के लोगों ने चंदा एकत्र करके भेजा। शनिवार को ईएमसी अस्पताल के डाक्टरों उसे जुबानी तौर पर मृत घोषित कर दिया। उन्होंने कहा कि इसके बचने की कोई संभावना नहीं है। निराशा होकर उसके परिजन अस्पताल के ही ऐंबूलेंस से लाश को लेकर वापस काहनूवान आ रहे थे। रास्ते में देखने पर उसकी सांस बंद थी और नाडी भी नहीं चल रही थी।
उन्होंने रास्ते में से ही घर पर फोन करके संस्कार की तैयारी करने की सूचना दे दी थी। गांव पहुंचने पर उसे ऐंबूलेंस से ही श्मशानाघाट ले जाया गया। जहां पर संस्कार से पहले नहलाते समय लाश में हलचल शुरु हो गई। लोगों ने उसी वक्त उसी एंबुलेंस से काहनूवान अस्पताल पहुंचाया। जहां पर उसका इलाज चल रहा है।
आतंकवादियों के दोस्त आखिर पकडे गए
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रियासीपौनी, कश्मीर, 6 अप्रैल -खतरनाक आतंकवादियों के तीन मददगार यहां के जंगलों में छिपे हुए थे। यह बात सबको मालूम थी लेकिन पुलिस उधर जा ही नहीं रही थी। फिर एक स्थानीय अखबार में खबर और आतंकवादियों के ठिकाने का विवरण छपा और पुलिस को छापा मारना पडा।
पौनी के जंगलों में छिपे आतंकियों के तीन मददगारों को शुवार देर रात पुलिस ने बनदेरई भारखु से विशेष अभियान चलाकर गिरफ्तार किया। पुलिस ने जिसे सघन छापामारी अभियान कहते हैं, वह चलाया और तीन को बंदी बना लिया।
पौनी ब्लाक के अंतर्गत बनदेरई भारखु से पकडे गये तीनों लोग शब्बीर अहमद पुत्र अब्दुल गनी निवासी शडोल गुलाबग़ढ, मोहम्मद मंजूर पुत्र मोहम्मद हुसैन निवासी देवक राजौरी तथा समिया पुत्र बाबू निवासी बनदरेई को शनिवार को रिमांड पर लेने के लिए पुलिस द्वारा रियासी लाया गया, जबकि इससे पहले प्राइमरी हेल्थ सेंटर पौनी में उनकी डॉक्टरी जांच भी करवाई गई। पुलिस ने आशंका जताई है कि ये तीनों आए दिन आतंकवादिओं मदद पहुंचाते हैं। एसएसपी रियासी जगदीश लाल शर्मा के मुताबिक शब्बीर तथा मंजूर आतंकी अबु मोहम्मद उर्फ अहसान इलाही व नजीर के करीबी माने जाते हैं, वहीं समिया को इनके साथ रहने के कारण पकडा गया है।
ये तीनों जंगल में किसी स्थान पर छिपे हुए आतंकियों को कुछ सामान पहुंचाने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया। इन सभी पर केस दर्ज कर लिया गया है तथा पूछताछ जारी है। अखबार ने प्रकाशित खबर में इसका खुलासा किया था कि पौनी के अंतर्गत पडने वाले भारख, बनदरेई, त्रिपाठ, झंडी व अन्य इलाकों में बारह आतंकवादी अलग-अलग ग्रुप में बंटकर छिपे हुए हैं जिनमें नौ आतंकी विदेशी तथा तीन स्थानीय हैं। इस खबर के प्रकाशित होने के कुछ घंटों के बाद ही पकडे गए इन तीनों ओवरग्राउंड वर्करों की गिरफ्तारी को पुलिस की बडी सफलता मानी जा रही है।
बालिका वधू से बलात्कार, पति जेल में
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कठुआ, जम्मू, 6 अप्रैल - एक छोटी बच्ची को उसके गरीब परिवार ने कुछ पैसों के लिए दुल्हन बना दिया। उसे वयस्क होने पर ससुराल जाना था। खरीददार पति को यह इंतजार बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने ससुराल आकर अपनी बालिका वधू के साथ खेतों में सुहागरात मना ली। पति देव पर अब बलात्कार का आरोप है और वे जेल में हैं।
गरीबी के कारण एक परिवार ने पहले अपनी बेटी की पैसों की खातिर शादी कर दी। तय हुआ था कि शादी के सात साल बाद पत्नी को ससुराल भेजा जाएगा। लेकिन एक दिन मौका पाकर पति अपनी पत्नी के घर आ धमका और घर में किसी को न पाकर अपनी नाबालिग पत्नी को बरगला कर खेतों में ले कर उसके साथ जबरदस्ती बलात्कार किया। मासूम पत्नी के पिता को जब इसका पता चला तो उसने अदालत में गुहार लगाई। जिस पर सीजेएम की अदालत ने 156, 3 सीआरपीसी के तहत संबधित थाने के इंचार्ज को केस दर्ज करने के निर्देश दिये।
पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज कर पति को गिरफ्तार कर लिया। अदालत में पेश करने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। शनिवार को पुलिस ने आरोपी पति का चालान भी माननीय अदालत में पेश कर दिया।सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करती हुई यह शर्मनाक घटना बिलावर तहसील के दूरदराज गांव वदनौता की है। करीब एक वर्ष पूर्व चौथी कक्षा में पढने वाली निशा (काल्पनिक नाम) के पिता ने गरीबी के कारण अपनी मासूम बच्ची की शादी बसोहली तहसील के पलासी गांव के रिंकू पुत्र मोहिन्द्र के साथ कर दी थी। शादी के वक्त लडकी के पिता को लडकी वालों ने 20 हजार रुपए दिये और बाकी तय रकम को बाद में देना तय हुआ। लडकी वालों ने शादी तो कर दी। परंतु लडकी को सात साल बाद ससुराल में भेजने पर सहमति हुई।
करीब आठ माह पहले रिंकू अपनी पत्नी से मिलने उसके गांव जा पहुंचा। घर में अपनी पत्नी को अकेली देखकर रिंकू उसे खेतों में ले गया और जबरदस्ती उसके साथ कई बार बलात्कार किया। जब लडकी के पिता को इसका पता चला तो उन्होंने सीजेएम की अदालत में जाकर शिकायत की। जिसके निर्देश पर पुलिस ने शिकायत दर्ज कर कार्रवाई की। बाद में रिंकू के खिलाफ पुलिस ने 26 अगस्त 07 को आरपीसी की धारा 376 के तहत मामला दर्ज किया और 20 मार्च को आरोपी पति को गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने रिंकू को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। आरोपी की जमानत याचिका को हाईकोर्ट में भी पेश किया गया। लेकिन माननीय अदालत ने वहां पर भी जमानत याचिका को रद कर दिया। शनिवार को पुलिस ने मामले की जांच करके आरोपी का चालान भी पेश कर दिया। जव इस संबंध में एसपी बेनाम तोष से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पुलिस ने मामले की जांच करके चालान अदालत में पेश कर दिया है। बाल विवाह करवाने में जिन लोगों का हाथ होगा उनके विरुध्द भी कार्रवाई हो सकती है।


करोड़ो के शेर, मैदान में ढेर
अक्षय कुमार
हाल ही की नीलामी में जो खिलाडी छह छह करोड़ में बिके थे वे भी टीम इंडिया को नहीं बचा सके। प्रायोजक अब खिलाड़ियों पर रकम खर्च करने से पहले दस बार सोचेंगे और एक जीत पर जयजयकार के नारे बुलंद करने वालों के हौसले भी ढीले पड गए हैं।
टीम इंडिया की पिटाई के तीसरे दिन भी मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम के एक कोने पर राष्ट्रीय बैंक का बैनर सबसे अलग चमक रहा था। बैनर कुछ यूं था, 'टीम इंडिया वी आर विद यू' (हम आपके साथ हैं)। आईपीएल में इन स्टार खिलाड़ियाें की छह करोड़ तक की बोली लगी है। ऐसे में शर्मनाक प्रदर्शन के बावजूद किसी बैंक के मैनेजर को कभी कोई फर्क नहीं पडेगा। फर्क पडता है तो उन किेट प्रेमियाें को जो इस खेल को पसंद करते हैं। बडी टीमें भी हारती हैं लेकिन यहां तो भारतीयों ने संघर्ष की कोशिश तक नहीं की।
पहली पारी की तरह दूसरी में भी नवाबाें जैसी लापरवाहियाें के कारण टीम इंडिया को अपने लोगों के ही बीच अपने मैदान पर तीन दिन के भीतर एक पारी और 90 रन हार की जिल्लत झेलनी पडी। पहले मिनट से मैच पर पूरा नियंत्रण रखने के कारण मेहमान टीम सीरीज में 1-0 की बढत की हर तरह से हकदार थी। हालांकि महज 76 रन पर भारतीय ड्रेसिंगरूम के लुटने के बाद इस मैच के भविष्य का अंदाजा हो गया था। दूसरे दिन जॉक कालिस और मैन ऑफ द मैच रहे एबी डीविलियर्स के बीच 256 रन की साझेदारी ने काफी समय रहते जीत का माहौल बना दिया। दो दिन पहले मिली हार के बाद भारतीय टीम के पास यह जानने के लिए काफी समय है कि आखिर वह खुद अपने साथ ऐसी ज्यादिती कर सकती है।
सुबह हल्के ठंडे मौसम और विकेट की नमी को देखते हुए स्मिथ ने दूसरे दिन के स्कोर पर ही पारी घोषित करने का फैसला किया।
तीन स्लिप, बैकवर्ड प्वाइंट और गली के साथ फील्डिंग से साफ था कि कप्तान अपने तेज गेंदबाजाें के दम पर इस मैच का फैसला तीसरे दिन ही करने के आत्मविश्वास के साथ उतरे थे। जिस विकेट पर बल्लेबाजी के बाद तेज गेंदबाज विकेट के लिए तरस रहे थे, डेल स्टेन और मखाया एंटिनी ने अच्छे पेस और बाउंस के साथ मिशन की शुरुआत की। वीरेंद्र सहवाग ने पारी के पहले ही ओवर में डेल स्टेन को दो छक्के ठोक दिए। समझ से बाहर था कि इसे अच्छी शुरुआत कहा जाए या नाश की तरफ बढाया एक कदम! क्याेंकि टीम को ओपनराें से रन नहीं बल्कि विकेट पर टिक कर लंबी पारी की जरूरत थी।
चेन्नई के सपाट और मरी हुई पिच पर ट्रिपल सेंचुरी ठोंक कर रिकॉर्ड बुक में दर्ज हुए सहवाग की यह आामकता आठवें ही ओवर में मखाया एंटिनी की गुडलेंथ डिलिवरी के साथ खत्म हो गई। कालिस जैसे एक लय के साथ गेंदबाजी करने में माहिर गेंदबाज के सामने बिना पैर हिलाए स्ट्रोक खेलने की गलती कोई कैसे कर सकता है, जाफर को अपने आउट होने के वीडियो को देख कर समझने की कोशिश करनी पडेगी। अच्छे बाउंस और मूवमेंट के साथ राहुल को स्लिप पर लपकवाने के लिए मोरने मोर्केल की जितनी तारीफ की जाए कम है। सौरव गांगुली और महेंद्र सिंह धोनी के विकेट पर रहने तक लग रहा था कि वे लंबी पारियां खेलने की कोशिश में हैं। लेकिन इन दोनाें ने ही ऐसे समय में अपने विकेट ऐसे समय में गंवाए जब वे पूरी तरह से सेट हो चुके थे और घटिया ढंग से आउट होने का कोई कारण नहीं था।

कांग्रेस से दूरी का मौका तलाश रहे कामरेड
विद्याशंकर तिवारीमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कोयंबटूर महाधिवेशन में पारित राजनीतिक प्रस्ताव से दो बातें साफ हो गईं। पहली यह कि पार्टी की नजर में कांग्रेस अब भी बूर्जुआ पूंजीवादी पार्टी है, लिहाजा उसके साथ कोई मोरचा या गठबंधन नहीं बनाया जा सकता। दूसरी यह कि तीसरा विकल्प दूर की कौड़ी है। इससे पहले भाकपा ने भी अपने हैदराबाद अधिवेशन में ऐसी ही राय व्यक्त की थी। दिल्ली लौटकर भाकपा महासचिव एबी वर्धन दो कदम और आगे बढे और जोड़ा कि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देना बहुत सुखद प्रयोग नहीं रहा। शुरू के दो वर्षों में सरकार ने वाम दलों की बातें मानीं, किंतु बाद में एकतरफा निर्णय लेने लगी। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव समय से पूर्व होने की आशंका नहीं है।
राजनीति और रणभूमि में दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति कारगर मानी जाती है, किंतु वामपंथी जितना आगे बढ रहे हैं, उतना ही पीछे हट जा रहे हैं। दरअसल जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य है, उसमें कोई भी दल चुनाव के लिए अपने को तैयार नहीं पा रहा है। तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, केरल व त्रिपुरा में सत्ता पर काबिज वामपंथियों पर नंदीग्राम व सिंगुर जैसी घटनाओं के बदनुमा दाग हैं। आत्ममंथन के दौरान भी पार्टी ने माना कि चूक हुई। सेज की मौजूदा नीति में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत बताई गई। जिस परमाणु करार को लेकर वह यूपीए सरकार को बंदरघुड़की दे रही है, उस पर वह खुद सवालों के घेरे में है
यही वह मुद््दा है, जिसको लेकर यूपीए सरकार व वाम दल बार-बार आमने-सामने दिखे। म्यान से तलवारें भी निकलीं, पर चलाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया। दोनों पक्ष यह भलीभांति समझ रहे हैं कि आगे बढे, तो अंजाम क्या होगा? महंगाई आसमान छू रही है। ऐसे में यदि चुनाव की नौबत आई, तो नुकसान साफ दिख रहा है। लिहाजा आगे-पीछे हटने की राजनीति हो रही है।
वाम दल यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि अपने दम पर चुनाव की रपटीली राह पकडें या बिछडे व कुछ नए साथियों को जोड़कर गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी तीसरा विकल्प तैयार करें। विकल्प को लेकर वे सशंकित हैं। शर्त जोड़ी जा रही है कि साथ जुड़ने वाली क्षेत्रीय पार्टियां उनके आर्थिक एजेंडे को स्वीकार करें, तभी बात आगे बढेगी। प्रकारांतर में संयुक्त मोरचे को मिली विफलता वाम दलों को आगे बढने से पहले मंथन करने को मजबूर कर रही है।
यह दुविधा सिर्फ वामपंथियों की ही नहीं, तीसरे मोरचे की पैरोकार सपा की भी है। वह समझ रही है कि जिस नाव पर वह सवार है, उसमें कितने छेद हैं। चंद्रबाबू नायडू और फारूक अब्दुल्ला कहां तक और कब तक साथ निभाएंगे? जबलपुर में राजनीतिक रास्ता तलाशने को जुटे दिग्गज चुनावी हुंकार भरकर रह गए। जाना किधर है, निर्णय नहीं कर पाए। यूपीए के रणनीतिकारों में सर्वाधिक प्रभावशाली लालू प्रसाद यादव के जरिये कांग्रेस का हाथ थामने को बढे हाथ ठिठक गए। सफाई आई, गठबंधन का इरादा नहीं। हो भी नहीं सकता, सवाल वोट बैंक का है। उत्तर प्रदेश से 45 लोकसभा सीटें लाने का पार्टी का दावा मुसलिम वोट बैंक के भरोसे है। दो दशक पूर्व तक यह वोट बैंक कांग्रेस का था। उसे पाने के लिए वह जी तोड़ प्रयास कर रही है, लिहाजा उसने भी कानपुर अधिवेशन से संदेश दिया, नजदीकियां तक तो ठीक, पर मिलकर चुनाव नहीं लड सकते। गलबहियां चलती रहेंगी, क्योंकि यह दोनों के मुफीद हैं।
कांग्रेस को सपा से भी उतना ही खतरा है, जितना कि बसपा से। एक ने मुसलिमों को अपने पाले में खींच लिया है, तो दूसरे ने दलितों को। किंतु दोनों में एक फर्क है, वह यह कि बसपा न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि और भी राज्यों, मध्य प्रदेश, छत्तीसग़ढ, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक सरीखे राज्यों में कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। उसे उत्तर प्रदेश में ही रोकने के लिए कांग्रेस को सपा का साथ चाहिए। बसपा को रोकना और किसी के बूते की बात नहीं। खुद कांग्रेस व भाजपा प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर हैं। मुलायम सिंह यादव को कांग्रेस की दरकार निजी व राजनीतिक, दोनों वजहों से है। सो दोस्त भी रहेंगे और प्रतिद्वंद्वी भी। दुश्मन नहीं, क्योंकि बडा दुश्मन सामने है। कांग्रेस को लंबा अरसा दुश्मन पहचानने में लग गया।
कांग्रेस ने लोकलुभावन बजट व किसानों के लिए पैकेज रूपी फसल तो चुनाव के लिए बोए थे, किंतु आसमान छूती कीमतों ने उसे बरबाद कर दिया। महंगाई की खोह में वह ऐसे फंसी कि गठबंधन में ही खींचतान शुरू हो गई है। कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं दिखता। औपचारिक तौर पर तो महंगाई की जिम्मेदारी राज्यों पर टाली जा रही है, पर सवाल कृषि मंत्री शरद पवार की कार्यप्रणाली को लेकर भी उठाए जा रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी चुनावी रणभूमि में एक साथ उतरने को आतुर है, पर राजनीतिक नफे-नुकसान का आकलन कर चुकी कांग्रेस किनारा करने में फायदा देख रही है। नतीजतन कटुता बढी ही नहीं, दिखने भी लगी है।
दूसरे महत्वपूर्ण घटक दल डीएमके से भी कांग्रेस की कुछ दूरियां बढी हैं। कर्नाटक की राजनीति में एसएम कृष्णा की दोबारा दस्तक से करुणानिधि की भृकुटि तनी। बहाना बयान बना, पर वजह चुनावी राजनीति है। फिलहाल कांग्रेस-राजद के रिश्ते ठीक हैं, किंतु यह कब तक रहेंगे, कहा नहीं जा सकता। झारखंड में दोनों के हित टकरा रहे हैं, कांग्रेस अध्यक्ष के हस्तक्षेप से रिश्ता निभ रहा है। आम चुनाव तक राजनीति के स्वभाव के मुताबिक न जाने कितने समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे, लेकिन जो सबसे अहम मुद््दा उभर रहा है, वह यह कि चार साल तक सत्ता में रहने और उनका साथ देने वाले अधिकांश राजनीतिक दल एक साथ चुनाव में जाने को तैयार नहीं! जिस कांग्रेस के हाथ में यूपीए सरकार का नेतृत्व है, वह खुद संशय का शिकार है, किसका साथ लें और किसे छोड़ें, तय नहीं कर पा रही। जनता के प्रति जवाबदेही लोकतंत्र का मूल मंत्र है, पर वह उसे भी नहीं लेना चाहती।
राजनीति में कोई स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता। समीकरण बनने, बिग़डने के साथ सरकारें आती-जाती रहती हैं। पर मौजूदा राजनीतिक माहौल में संशय, अविश्वास व गैरजिम्मेदारी की भावना इस कदर हावी हो गई है कि नैतिकता की उम्मीद बेमानी-सी लगने लगी है। जिम्मेदारी लेने से वह पार्टी बच रही है, जिसकी विरासत लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता रहे, जिन्होंने एक रेल दुर्घटना पर त्याग पत्र दे दिया था। पार्टी से उनके अनुसरण की अपेक्षा तो की ही जा सकती है। शब्दार्थ
किेट राजनीति का तीसरा अंपायर
सुप्रिया रॉय
राजीव शुक्ला आज राजनीति में भी हैं, किेट में भी, पत्रकारिता में भी, खबरों के कारोबार में भी और ग्लैमर की दुनिया में भी। सैंतालीस साल की उम्र में राज्य सभा में दूसरी बार आ जाने और देखते ही देखते किेट की दुनिया पर छा जाने वाले राजीव शुक्ला ने बचपन में कंचे और गिल्ली ठंडा खूब खेला है और कानपुर के दैनिक जागरण में, बडे भाई दिलीप शुक्ला की छत्र छाया में जब उन्होनें पत्रकारिता शुरू की होगी तो ज्यादातर लोगों की तरह उनकी उम्मीदें बडी भले ही हों लेकिन खुद उन्हें अंदाजा नही होगा कि आखिर उनकी नाव किस घाट पर जा कर लगेगी। आज वे सफल भी हैं, समृध्द भी और प्रसिध्द भी लेकिन यह नही कहा जा सकता कि उनकी नाव घाट पर लग गई है। अभी बहुत सारी धाराएं, बहुत सारे भंवर और बहुत सारे प्रपात रास्तें में आने हैं और राजीव शुक्ला को उन्हें पार करना है। इतना तो है कि 1983 में दिल्ली के एक ठांतिकारी अखबार में नौकरी के लिए इंटरव्यूह देने आए सभी लोगों के बीच कम से कम ढाई हजार रुपए की मांग करने की आम सहमति बनाते धूम रहे राजीव शुक्ला आज अपने टी वी चैनल में लोगों को आसानी से ढाई-ढाई लाख रुपए की नौकरियां देते हैं और एक जमाने में स्कूटर तक नही खरीद पाने वाले राजीव अब हवाई जहाज से नीचे नही उतरते और आम तौर पर उन्हें चार्टड जहाजों में भी देखा जाता है।
इन दिनों जब भारतीय किेट कंट्रोल बोर्ड में वर्चस्व की लडाई जोर शोर से चल रही है, जगमोहन डालमिया पर आरोप लगें हैं और वे इनके जवाब में लंबी कानूनी लडाई लडने के मूड में हैं, भारतीय किेट टीम कभी शेर हो जाती तो कभी ढेर हो जाती है- ऐसे दौर में बी सी सी आई के ताकतवर उपाध्यक्ष और सबसे प्रसिध्द चेहरे के तौर पर होने के बावजूद राजीव शुक्ला विवादों के घेरे में नही आते। वे रणवीर महिन्द्रा, बिन्द्रा, ललित मोदी और शरद पवार के साथ आसानी से चल लेते है और यह बात बहुतों को आश्चर्य में डालती है लेकिन उन्हें नही जो राजीव शुक्ला की फितरत को जानते हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो काफी आसानी से राजीव शुक्ला के सब तरह के उथान को जूगाड और अवसरवाद करार दे कर अपना कलेजा ठंडा कर लेते हैं और उनके पास इसके बारे में कुछ तर्क, कुछ कारण जरूर होगें लेकिन उनके लिए यह समझना कठिन है कि अस्तित्व और आकांक्षा के अध्दैत को साधने के लिए निर्गुण और सगुण का नही निराकार और साकार में से साकार का चुनाव करना पडता है। राजीव शुक्ला ने राजनीति के साकार पात्रों को साधा और एक बडी बात यह है कि धाराएं भले ही अलग हो गई हो, नाता किसी से नही तोड़ा। पता नही कब और किस मोड़ पर वे यह ध््राुव सत्य सीख गए थे कि असली निवेश रिश्तों में किया गया निवेश होता है। जब वे राज्य सभा का पहला चुनाव निर्दलीय लडे और बडे बडे धन्ना सेठों को हरा कर सबसे ज्यादा वोटों से जीते तब यह सच पहली बार उनके संदर्भ में सामने आया था।
राजीव शुक्ला के बहाने समकालीन राजनीति का और खेल की राजनीति का एक पूरा खाका आप खींच सकते हैं। वे जब किराए के एक मकान में, सरकारी कॉलोनी में कई दोस्तों के साथ रहते थे तो अखबार के काम के अलावा उनका ज्यादातर समय अपनी निजी संपर्क डायरेक्टरी विकसित करने में बीतता था। दिल्ली आ कर वे सबसे पहले पडोसी मेरठ जिले के संवाददाता बने और देखते ही देखते मेरठ खबरों के अखिल भारतीय नक्शे पर आ गया। फिर वे रविवार में गए और जिस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह को निरमा साबुन से भी ज्यादा साफ समझा जाता था और उन्हें जयप्रकाश नारायण के उत्ताराधिकारी के तौर पर स्थापित करने की समवेत कोशिशें चल रहीं थी, राजीव ने रविवार के आवरण कथा में एक सच लिख कर सबके छक्के छुड़ा दिए। सच यह था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक नाटकीय क्षण में अपनी बहुत सारी जमीन विनोबा भावे की भूदान यात्रा में दान कर के यश कमाया था और फिर जब उन्हें लगा था कि गलती हो गई तो उन्होनें अपनी पत्नी की ओर से अपने ही खिलाफ हलफनामा दिलवाया कि उनका पति पागल है और उसके ध्दारा दस्तखत किए गए किसी भी दस्तावेज को कानूनी मान्यता नही दी जाए। राजीव शुक्ला को कांग्रेस का एजेंट घोषित कर दिया गया मगर वे यह मुहावरा चलने के बहुत साल पहले मुन्ना भाई की तर्ज पर लगे रहे। कम लोग जानते हैं कि शाहबानों प्रसंग में बागी आरिफ मोहम्मद खान और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच संवाद का एक सबसे बडा सेतु भी राजीव ही थे और यही उनके इस परिवार से संपर्क स्थाापित होने की शुरूआत थी।
किेट की दुनिया में राजीव शुक्ला को स्वर्गीय माधव राव सिंधिया लाए थे। राजीव ने इस खेल की महिमा और ताकत को पहचाना और इसके सहारे कई राजनैतिक मंजिलें भी पार की। इस बीच वे अचानक बहुत हाई प्रोफाइल हो चुके थे, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच चाहे जैसी तनातनी चलती रहे लेकिन दोनों की विदेश यात्राओं में राजीव की सीट पक्की होती थी। दिल्ली की पीटीआई बिल्डिंग में अपने ऑफिस में काम करते वक्त पीटीआई की एक बहुत दमदार पत्रकार अनुराधा से पहचान हुई, रिश्ता बना और आज तक बना हुआ है। अनुराधा टीवी में चैनलों की ांति होने के पहले से ही दिलचस्पी रखती थी और पीटीआई टीवी के नाम से शुरू हुई संस्था में उनकी मुख्य भूमिका थी। राजीव शुक्ला से भी उन्होनें दूरदर्शन पर बडे लोगाेंं से अंतरग मुलाकातों का कार्यम रूबरू शुरू करवाया। इस कार्यम को आज एनडीटीवी पर चलने वाले शेखर गुप्ता के वॉक द टॉक का पूर्वज माना जा सकता है। इसी दौरान वे फिल्मकार रमेश शर्मा के टीवी शो के लिए निकले और चंबल घाटी पर कई ऐपीसोड की किस्तें बना कर ले आए।
राजीव शुक्ला की कहानी हमारे समय की राजनीति की एक प्रतिनिधि कथा है। बहुत सारे परिचित और अपरिचित हैं जो राजीव शुक्ला की छवि को पच्चीस साल पुराने सांचे में रखकर देखते हैं जब वे दिल्ली की एक्सप्रेस बिल्डिंग के बगल के एक ढाबे में दोस्तों के साथ खाना खाते थे और अपने हिस्से का दाम चुकाने के लिए चिल्लर की तलाश करते थे। नए अवतार में राजीव शुक्ला पुराने ही हैं मगर उनकी एक छवि में बहुत सारी छवियां समा गई हैं। उनके दोस्तों में अब शाहरुख खान भी हैं और विजय माल्या भी। अंबानी कुटुबं से तमाम विरोधाभासों के बावजूद उनकी इतनी तो निभती ही है कि अंबानी समूह के अखबार ऑब्जर्बर के संपादक वे सांसद बनने के बाद तक बने रहे। आज भी संसद की उनकी परिचय पुस्तिका में उनका पेशा पत्रकारिता ही लिखा हुआ है। रिडिफ वेबसाईट ने तो उन्हें पिछले पंद्रह साल से भारत में सबसे ज्यादा प्रभावशाली संपर्को वाला पत्रकार घोषित किया हुआ है। हिंदी मीडियम में पढ़े और ज्यादातर हिंदी पत्रकारिता करने वाले राजीव शुक्ला ने इतनी धमाकेदार अंग््रोजी कब और कहां से सीख ली, यह जरुर सबके लिए रहस्य बना हुआ है।
लिखने के मामले में राजीव शुक्ला प्रभाष जोशी या राजेन्द्र माथुर नही हैं और न उनकी रिर्पोटिंग में पत्रकारिता में उनके अग््राज उदयन शर्मा वाली तल्लीनता है। लेकिन उनके लिखने, राजनीति करने और किेट से ले कर कांग््रोस तक के उलझे हुए समीकरण सुलझाने में एक त्वरित तात्कालिकता जरुर है जो उन्हें किसी का विकल्प बनने की मजबूरी में नही फंसाती। बचपन में वे अपने कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम कितने गए हैं यह तो पता नही लेकिन किेट की दुनिया में अपनी प्रासंगिकता बनाने के लिए वे टीम के मैनेजर भी बने और बहुत सारे निशाने साधने वाले तीरंदाज भी। जगमोहन डालमिया और शरद पवार के बीच डालमिया के भूतपूर्व शिष्य इंद्रजीत सिंह बिंद्रा की वजह से जो लफडा शूरू हूआ है उसे निपटाने में राजीव शुक्ला की बडी भूमिका रहने वाली है। आपने गौर किया होगा कि डालमिया ने शरद पवार, निरंजन शाह और उनकी मंडली पर सैकेंड़ों करोड़ के घोटाले के आरोप लगा डाले हैं, शरद पवार को तो उन्होनें मुशर्रफ से बडा तानाशाह कह डाला है लेकिन इस शत्रु सूची में राजीव शुक्ला का नाम नही है। राजीव शुक्ला किेट की राजनीति के लगभग अदृश्य रहने वाले तीसरे अंपायर हैं। (शब्दार्थ)


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