आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Sunday, March 30, 2008

DATELINE INDIA NEWS, 25 MARCH 2008


एक बाल-सुलभ प्रधानमंत्री
आलोक तोमर
नई दिल्ली, 30 मार्च- राहुल गांधी को बिना मांगे मिला यह प्रमाण पत्र इतना अटपटा और हास्यास्पद है कि उस पर सिर्फ अवाक हुआ जा सकता है। बाकि सब तो छोड़िये, अस्सी साल के होने जा रहे कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह ने अब ऐलान कर दिया है कि राहुल गांधी ही देश में प्रधानमंत्री बनने लायक सबसे योग्य पात्र हैं।
अर्जुन सिंह ने अपना यह बयान भोपाल में दिया जहां हाल ही में राज्य सभा चुनाव में उनकी पार्टी का सफाया हो गया है। मनमोहन सिंह से अर्जुन सिंह के रिश्ते बहुत मधुर नहीं है लेकिन किसी को सपने में उम्मीद नहीं थी कि अर्जुन सिंह मनमोहन सिंह से भी ज्यादा लायक राहुल गांधी को मानेंगे और इस बात का ऐलान ठीक उस दिन करेंगे जब राहुल गांधी अपनी भारत यात्रा की दो किस्तें लगभग असफल यात्री के तौर पर पूरी करके कानपूर में कांग्रेस नेताओं को यह सिखा रहे थे कि चुनाव कैसे जीता जाता है। गनिमत है कि राहुल गांधी में इतनी ईमानदारी शेष है कि उन्होने इन्हीं यात्राओं के दौरान स्वीकार किया कि अगर उनके नाम के साथ गांधी नहीं जुड़ा होता तो राजनीति में उनकी आज वह जगह नहीं होती जो आज है।
पहले उत्तर प्रदेश और रायबरेली के छुटभैये नेताओं ने ऐलान किया था कि राहुल गांधी को अभी से देश का भावी प्रधानमंत्री कर देना चाहिए। बयान यह भी आया था कि बुढ़े लालकृषण आडवाणी का जवाब जवान राहुल गांधी आराम से दे सकते हैं। लेकिन अर्जुन सिंह ने जो साहसी और एक हद तक उन्हें मजाक बना देने वाला बयान दिया है उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। अर्जुन सिंह ने साफ शब्दों में कहा है कि राहुल गांधी के पास पर्याप्त अनुभव है और वे देश के बहुत योग्य प्रधानमंत्री सिध्द हो सकते हैं। काश यही बात श्री अर्जुन सिंह अपने बेटे राहुल के बारे में कहते जो कई बार विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं।
कांग्रेस में राहुल गांधी को लेकर एक विकट अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है। वे 38 साल के हैं और अभी तक बात टीनेजर्स की तरह करते हैं। इसको एकबार भुला भी दिया जाए तो भी जाहिर है कि सिर्फ बचकानी सरलता और असाध्य भोलापन राजनीति में बहुत गंभीरता से नहीं लिये जाते। जहां तक अर्जुन सिंह की बात है तो वे पहले नेहरू के भक्त थे, बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी के दरबार में आए और उनके घोषित चारण बने। फिर राजीव गांधी की उन्होने तमाम उपेक्षाओं के बावजूद इतनी सेवा की कि उन्हें कांग्रेस का पहला और आखिरी उपाध्यक्ष बना दिया गया। राजीव गांधी श्री पेरंबदूर में तमील बम का शिकार हो कर मारे गए थे और अभी उनकी अंतयोषठी भी नहीं हुई थी तभी उन्होने श्रीमति सोनिया गांधी से पार्टी का अध्यक्ष बन जाने की अपील की थी। सोनिय गांधी ने इस अपील को स्वीकार नहीं किया था और अर्जुन सिंह फटाफट उन पीवी नरसिंह राव को खोज लाए थे जिन्हें बुढ़ा और बीमार होने के कारण पार्टी ने चुनाव लड़ने लायक भी नहीं माना था। बाद में यहीं राव सत्ता की संजीवनी पा कर बहुत ताकतवर प्रधानमंत्री साबित हुए और अर्जुन सिंह ने कुछ समय तो उनकी भरपूर सेवा की लेकिन फिर श्रीमति सोनिया गांधी की उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी, नई पार्टी बनाई और घूम फिर कर वापस कांग्रेस में आ गए।
इन दिनों दलितों और अल्पसंख्यकों के स्वंयभू मसीहा बने हुए श्री अर्जुन सिंह के बारे में बार बार कहा जा रहा है कि दिल्ली में उनकी राजनीतिक पारी पूरी हो चुकी है और उन्हें कहीं राज्यपाल आदि बनाकर भेज दिया जाना चाहिए। राहुल गांधी ने खुद भी कई बार अर्जुन सिंह की शिक्षा नीतिओं की तीव्र आलोचना की है और राहुल गांधी अर्जुन सिंह के मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं। अब यह पता नहीं कि अर्जुन सिंह राहुल गांधी की आलोचना को साधने की कोशिश कर रहे हैं या दस जनपथ में अपने नंबर बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। सिर्फ तकनीकी लिहाज से राहुल गांधी अपने वांशीक आधार पर पारसी पिता और जन्म से ईसाई मां की संतान होने के कारण अलपसंख्यकों में गिने जाएंगे और कौन जानता है कि अर्जुन सिंह उन्हें भी अल्पसंख्यक के आधार पर प्रधानमंत्री बनाने की वकालत कर रहे हैं। यह तर्क कुतर्क लग सकता है लेकिन अगर है भी तो इससे बड़ा कुतर्क नहीं है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव पेश किया जाए और वह भी अर्जुन सिंह जैसे बड़े नेता की ओर से। मैं श्री अर्जुन सिंह का बहुत सम्मान करता हूं, एक लगभग प्राण घातक दुर्घटना के बाद अगर वे नहीं होते तो मेरे जीवित बचने का सवाल ही नहीं था, मेरे घर में पहला एयरकंडीशनर उन्होने लगवाया था और सिर्फ 19 साल की उम्र में जिंदगी में पहली बार हवाई जहाज में, मैं उनकी मेहरबानी से ही बैठा था। इस सबके बावजूद विनम्र निवेदन यह है कि जो अर्जुन सिंह कह रहे हैं उसमें कोई सार नहीं है और इसे खारिज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
आडवाणी-कांग्रेस की संदिग्ध दोस्ती
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 30 मार्च-आडवाणी कांग्रेस के साथ मिलकर क्या खेल खेल रहे हैं, इससे सभी भाजपाई भौचक्के है। वे कभी अपनी किताब के विमोचन के कार्यक्रम पर कंाग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को निमंत्रण देने चले जाते है तो किताब के विमोचन समारोह के मंच पर भाजपा अध्यक्ष को ही नहीं बुलाते हैं। कुछ भाजपा नेताओं पर उन शंका की उंगली भी उठाने लगी है।
भाजपा में आडवाणी को पीएम वेटिंग का खिताब मिलने के बाद से ही आडवाणी की राजनीतिक चाल बदलने लगी थी। अब चुनाव नजदीक है और इस समय अपने ही पार्टी के कद्दावर नेता
अटल बिहारी पर निशाना साध रहे हैं। यह समय तो कांग्रेस को घेरने का है लेकिन वह कंधार जैसे मुद्दे पर भी कांग्रेस के समाने चुप्पी साधे हुए हैं उनकी इस चुप्पी से भाजपा में अपसी गुटवाजी बढ़ती जा रही है।
हिदुत्व की राह पर चलकर सत्ता के कुर्सियों को पाने वाले आडवाणी आजकल अपनी धुन इतने मस्त है कि उन्हे संघ के लिए भी समय नही ंनिकाल पा रहे हैं। दो दिन पहले संघ ने कहा था कि उनका नंबर एक दुश्मन कांग्रेस नहीं बल्कि वामपंथी वहीं भाजपा की तरफ से बयान आया था कि वैचारिक तरीके से वामपंथियों को दुश्मन नंबर एक माना जा सकता है लेकिन राजनीतिक तौर पर भाजपा का नंबर दुश्मन कांग्रेस ही है। पार्टी के इन बयानो से भी श्री आडवाणी को खास लेना देना नहीं है। उन्होने किसी से भी नहीं पूछा कि यह बयान किसने और क्यों दिया। वह अभी भी अपनी किताब के चक्कर में फंसे हैं।
आडवाणी ने अपनी किताब में यूपीए अध्यक्ष की तारीफ करना और मोदी को एक तरह से अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप घोषित करना भी दूसरे भाजपाई नेताओं में शंका उत्पन्न कर रहा है। अगर आडवाणी ने अपनी स्थिति नहीं सुधारी तो भाजपा में बहुत बड़ा विघटन जरूर सामने आ सकता है। पूरा देश आज महंगाई को लेकर परेशान है लेकिन आडवाणी इस मुद्दे पर भी सत्तापक्ष को घेरने की वजाय चुप बैठे हैं।
श्री आडवाणी ने अपनी किताब में अपनी बेटी को एक बेहतर राजनीतिक घोषित किया है उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि उनकी बेटी प्रतिभा राजनीति में आती है तो एक बेहतर राजीतिकार के रूप में उभर कर आएगी। प्रतिभा अपने पिता को खाने के समय राजनीति का सबक देती है जिनका वह अधिकतर पालन भी करते है। सूत्रों की माने तो अडवाणी चाहते है जिस प्रकार नेहरू परिवार ने जिस प्रकार विरासत की राजनीति को आगे बढ़ाया है उसी प्रकार वह अपनी बेटी को भी पार्टी में बतौर उपाध्यक्ष बनाकर उतारने की सोच रहे है। लेकिन जिस तरह से वे इस समय चल रहे है उससे उनकी यह मंशा धूमिल भी हो सकती है।


राजबीर की मौत पर बंदूकें तनी
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 30 मार्च- दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की हत्या को लेकर गुडगांव और दिल्ली पुलिस के बीच तकरार इतनी बढ़ गई है कि कल गुड़गांव गई दिल्ली पुलिस की टीम के साथ वहां के पुलिस अधिकारियों की इतनी विकट कहासुनी हुई कि सिर्फ पिस्तौल निकलने की कसर रह गई। राजबीर सिंह की हत्या के मामले में हरियाणा पुलिस गले गले तक डूबी है और अब तो यह भी पता लगा गया है कि हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल हरियाण्ाा पुलिस के एक आईपीएस अधिकारी की थी।
गुड़गांव पुलिस का कहना है कि एलकांउटर स्पेशलिस्ट दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की हत्या पूरी योजना बनाकर की गई है। उनकी हत्या में जो पिस्तौल प्रयोग की गई है वह हिसार के एडिशनल एसपी की है जो जुलाई 2007 में एक आपेशन के दौरान खो गई थी। वहीं गुड़गांव पुलिस अब एसीपी राजबीर सिंह की हत्या में प्रयोग किए गए हथियार पर संदेह जता रही है।
विजय भरद्वाज ने एसीपी राजबीर सिंह की हत्या की जिम्मेदारी लेने के बाद तो गुड़गांव पुलिस निश्चिंत हो गई थी कि चलो राजबीर की हत्या की गुत्थी अपने आप सुलझ गई। लेकिन राजबीर की पत्नी ने जब कहा कि विजय ने उसके पति की हत्या नहीं की है उनकी हत्या किसी और ने की है। इसके बाद दिल्ली पुलिस की टीमों ने गुड़गांव जाकर खुद मामले की जांच की तो आज यह खुलासा हुआ है कि राजबीर की हत्या जिस पिस्तौल से की गई है वह हिसार के एक पुलिस अधिकारी की है।
गुड़गांव पुलिस अभी भी अपने को पाक साफ बताने के लिए कह रही है कि जो पिस्तौल उन्ही के एक अधिकारी है वह विजय से मिली है जिसको राजबीर ने उसे दिया था। पुलिस का कहना है कि पिस्तौल एक पुलिस अधिकारी की होने से कई और सवाल खड़े हो गए है जिसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। पुलिस का कहना है कि हिसार के एसपी की खोई हुई पिस्तौल राजबीर के पास कैसे आयी, या लाई गई? क्या वास्तव में विजय ने ही राजबीर को गोली मारी है या इसके बीच कोई और ? बिना सुरक्षा और हथियार के एसीपी राजवीर विजय के आफिस में क्यों आये थे। यह तमाम सवाल है जो गुड़गांव पुलिस सुलझाने में जुटी है हालांकि यह मामला सीबीआई तक पहुंच गया है सीबीआई की दखल के बाद इसमें और राज भी खुलेंगे।

Friday, March 28, 2008

राजबीर सिंह की डायरी के रहस्य







आलोक तोमर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली , 28 मार्च -हमने कल लिखा था कि गुडगांव में मारे गए दिल्ली के बहाुदर लेकिन विवादस्पद पुलिस अधिकारी राजबीर ंसिंह की डायरी को लेकर दिल्ली पुलिस के दर्जनों बड़े अधिकारी परेशान है क्योंकि इस डायरी में राजबीर के अलावा उनके घपलों का भी खुलासा होना तय है। राजबीर सिंह अपनी धन दौलत का हिसाब किताब रखता ही था लेकिन दिल्ली के कई आला अफसरों के पूंजी निवेश में उसी मदद ली थी।
यह डायरी अब मिल गई है और इसे सिर्फ जब्त करना बाकी है। राजबीर सिंह का परिवार इस डायरी को छुपाने वाला नहीं है क्योंकि दिल्ली पुलिस द्वारा अपनी उपेक्षा से नाराज राजबीर सिंह के परिवार ने दिल्ली पुलिस को सबक सिखाने की कसम खा ली है। अब आप देखते जाइए कि आने वाले दिनों में दिल्ली और हरियाणा पुलिस के कितने अफसरो ंके सिर कलम होते हैं। राजबीर सिंह की डायरी में जो उसकी बहन के पास चंडीगढ़ मे ंबतायी जा रही है, बहुत सारे बारूदी धमाके कैद हैं। हमें मिली जानकारी के अनुसार कुछ जानकारियां इस तरह हैं-
1- दिल्ली पुलिस के एक भूतपूर्व आयुक्त और उनकी पत्नी की चंडीगढ़ और आसपास संपत्ति की खरीद की जिम्मेदारी राजबीर सिंह ने ही ली थी और इसके लिए रकम जुटाने का काम भी राजबीर सिंह ने ही किया था। इनमे से कुछ संपत्तियां बेची भी गई हैं और उनसे होने वाली कमाई का ब्यौरा भी इसी डायरी में मौजूद है। अपने खिलाफ जांच कर रहे एक संयुक्त आयुक्त को राजबीर सिंह ने अपने एक अपराधी संपर्क से मोटा पैसा दिलवाया था और उसके लिए गुड़गांव में जमीन भी खरीदकर दी थी।
2- एक भूतपूर्व गृह सचिव के बेटे के नाम राजबीर सिंह ने दिल्ली और गुड़गांव में संपत्तियां खरीदी थी और नकद भुगतान भी किया था।
3- दिल्ली पुलिस के एक दिवंगत अधिकारी के पांडीचेरी से आए पैसे को हवाला के जरिए खपाने का काम भी राजबीर सिंह ने ही किया था।
4- अपनी एक विदेश यात्रा के दौरान राजबीर सिंह ने ओमान स्थित एक भारतीय बिल्डर से पैसा लेकर अपने अधिकारियों के लिए महंगे उपहार खरीदे थे और उन्हें कस्टम से बगैर कोई डयूटी दिए निकलवाने का काम हवाई अड्डे पर तब तैनात एक एसीपी ने किया था।
5-दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी की बेटी की शादी में राजबीर सिंह ने पूरा इतंजाम किया था। इस अधिकारी को इस काम के लिए इंतजाम की गई रकम में से बची हुई रकम दे दी गई थी और इस रकम से दक्षिण दिल्ली मे एक प्लॉट खरीदा गया।
6- राजबीर सिंह ने गुड़गांव पुलिस के कई बड़े अधिकारियों को भी समय समय पर रकम और उपहार दिए थे।
7- दिल्ली पुलिस की अपराध अन्वेषण शाखा के एक अधिकारी को जो राजबीर सिंह के पड़ोस में ही रहते हैं उसने निवेश के लिए मोटी रकम भी दी थी।
यह सारी जानकारियां हमारी सूचना के मुताबिक किसी कोड भाषा में नहीं लिखी हैं और इनकी पूरी जानकारी आसानी से ली जा सकती है। अब मामला चूंकि सीबीआई के पास पहुंच गया है इसलिए पुलिस अधिकारी चाह कर भी इसके रहस्यों को गोपनीय नहीं रख पाएंगे।

Thursday, March 27, 2008

अमिताभ बच्चन को छेड़ना खेल नहीं







आलोक तोमर
मुंबई, 27मार्च-महानायक अमिताभ बच्चन पर बाल ठाकरे की पैरोडी उनके भतीजे राज ठाकरे का हमला एक बार फिर हुआ तो बाजी पलट गई। राज ठाकरे की महाराषट्र नव निर्माण सेना ने मुंबई में पोस्ट लगाए जिसमें नाम लिए बगैर अमिताभ बच्चन को भिखारी दिखाया गया था। गुस्से में मुंबई के उत्तर भारतीयों ने न सिर्फ दीवारों से ये पोस्टर फाड़ दिए बल्कि बीच में आए राज ठाकरे के चेलों की पिटाई भी की।
खुद श्री बच्चन मुंबई में नहीं थे लेकिन उनके कर्यालय में संपर्क करने पर बताया गया कि श्री बच्चन ने किसी को ऐसा करने की सलाह नहीं दी थी और वे पहले ही कह चुके हैं कि राज ठाकरे के बचकाने बयानों की वे परवाह नहीं करते। अमिताभ बच्चन ने अपनी मेहनत की कमाई से मुंबई के पड़ोस में लोनावाला में जमीन खरीदी थी जिसे कानूनी मुसीबतों से पार पाने के लिए उन्होंने कहा था कि वे दान नहीं कर सकते हैं। अब जैसे ही उन्होने कहा कि उन्हें जमीन वापस चाहिए तो राज ठाकरे को एक और मुद्दा मिल गया। संयोग से यह जमीन बाला साहब ठाकरे के प्रसिध्द फार्म हाऊस के पड़ोस में ही है। बाल ठाकरे के दोस्त माने जाने वाले मराठा नेता शरद पवार ने भी राज ठाकरे को हिदायत दी है कि वे बड़े नामों के कंधे पर सवार हो कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश नहीं करें।
राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के लिए मुंबई में आतंक बन पाया हो या नहीं लेकिन उसने शिवसेना की जड़ें खोद दी है। मराठी मुद्दे को लेकर जब बाल ठाकरे मुखर हुए तो पूरे उत्तर भारत में बहुत वर्षो से चल रही शिव सेना की उनकी शाखाएं टूट गई और उनके बहुत पुराने शिषयों ने उन्हें गालियां देते हुए उनसे किनारा कर लिया। जहां तक राज ठाकरे की बात है तो उसने पहले बाल ठाकरे के नाम का सहारा लिया और फिर अमिताभ बच्चन जैसे बड़े नाम के सहारे अपने आप को खबरों में बनाए रखने के लिए तूल गए हैं। बहुत सारे उत्तर भारतीयों की तरह अमिताभ बच्चन भी एक संदूक लेकर मुंबई आए थे और अब वे इस मायानगरी पर ही नहीं पूरी दुनिया में बसे हिंदी फिल्मों के प्रेमियों की पहली पसंद हैं। राज ठाकरे का इरादा है कि अमिताभ बच्चन के नाम की नाव पर सवार हो कर वे अपने संगठन की जड़े हिंदी भाषी इलाकों में भी जमाए मगर जो काम उनके चाचा नहीं कर पाए वह राज ठाकरे क्या खा कर करेंगे। जहां तक अमिताभ बच्चन का सवाल है, उन्होने जब इस देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार और दस जनपथ की नाराजगी की परवाह नहीं की तो राज ठाकरे जैसा सड़क छाप गुंडा उनपर कोई असर डाल पाएगा इसका कोई कारण नहीं दिखता। इसीलिए घबरा कर राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन के बारे में लगे पोस्टरों से नाता तोड़ लिया है।

खाकी वर्दी के कुछ काले सवाल






आलोक तोमर

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी। सबसे पहले तो यह सवाल की दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह जिन्हें पांच बार राष्ट्रपति पदक मिला था और सिर्फ तेरह साल की नौकरी में वे थानेदार से एसीपी बन गए थे और जिनकी वीरता के किस्से हर पुलिस कमिश्नर गाया करता था, उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के पड़ोस में रेवाड़ी के उनके गांव में खेतों के बीच इतनी खामोशी से क्यों हुआ? इसी सवाल से जुड़ा एक और सवाल कि दिल्ली पुलिस के क्या किसी एक सिपाही के पास भी इतनी फुर्सत नही थी कि वे अपने इस हौनहार साथी की अंतिम यात्रा में शामिल हो पाते?

अभी कई सवाल बाकी हैं और उनके जवाब देने से हर कोई कतरा रहा है। साठ से ज्यादा मुठभेढे अौर लाशों की सेंचुरी बना देने वाले राजबीर सिंह की छवि और असर दोनों ही किसी डॉन से कम नही थे। फर्क इतना था कि यह डॉन कानून के दम पर कानून के लिए कानूनी काम करता था। कानूनी और गैर कानूनी में सिर्फ परिभाषा और व्याख्या का फर्क होता है और इस फर्क को जो मिटा लेते हैं वे तलवार की धार पर जरुर चलते हैं मगर समृध्दि और प्रसिध्दि दोनों ही उनका इंतजार कर रही होती है।

इन दिनों हर राज्य की पुलिस के पास विशेषाधिकार प्राप्त कई शाखाएं हैं जिनकी कोई कानूनी सीमा नजर नही आती। काम वे कानून के लिए करते है लेकिन भारतीय दंड विधान तो जैसे उनके लिए लिखा ही नही गया। जिस देश में एफ आई आर से लेकर केस डायरी तक आधी उर्दू और आधी फारसी में लिखी जाती है और अदालतों में मकतूल और मजकूर जैसे शब्द इस्तेमाल किए जाते है वहां कानून की उत्तार आधुनिक व्याख्याएं थानों और हवालातों में होती रहती हैं और दिल्ली में राजबीर सिंह और मुबई में प्रदीप शिंदे जैसे लोग नायक बनते हैं फिर उनके प्रतिनायक बनने की खबर आती है और आखिरकार खलनायक साबित होते हैं। मुंबई के एक भूतपूर्व पुलिस कमिश्नर और कई आई पी एस अधिकारी इस समय जेल में पडे हुए हैं। उन पर अपराधियों से संदिग्ध सांठगांठ का आरोप है।

पुलिस की नौकरी रौबदार जरुर मानी जाती है लेकिन पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों की जीवन दशा सुधारने का कोई ठोस इंतजाम अभी तक नही हुआ। कम से कम थानेदार स्तर के पुलिस वाले लगभग चौबीस घंट की डयूटी करते हैं और कई बार तो उन्हें चार-चार दिन तक नींद नसीब नही होती। हालांकि यह कोई बचाव का तर्क नही है लेकिन अगर वे थाने में बैठ कर शराब पीते हैं या खीझ में अपराधियों पर हाथ उठाते हैं तो उनकी मानसिकता समझी जा सकती है। पुलिस वाले कोई मंगल ग््राह से उतर कर नही आते। वे भी हमारे आपके बीच के लोग हैं। कई पुलिस वालों ने उदाहरण देकर बताया कि जिन लोगों को उन्होनें जेब काटते, जुआ खेलते, टिकट ब्लैक करते या भैंस चुराते पकड़ा था वे भी नेता हो गए और अब उन्हें सलाम करना पड़ता है। किसी नामी अपराधी को अदालत तक पहुचाने से पहले पुलिस वाले भी दस बार सोचते हैं कि कल को यही आदमी सांसद या मंत्री बनकर आ जाएगा और उसका तबादला करवा देगा।

तबादले से ज्यादा संकट में डालने वाला शब्द पुलिस वालों की परिभाषा में नही है। इसलिए नही कि उन्हें एक थाना ताजमहल लगता है तो दूसरा क्र्र्रब्रिस्तान लेकिन जब वे संकडो या हजारों मील दूर नौकरी कर रहे होते हैं तो उनके ध्दारा पकड़े गए अपराधियों पर चल रहे मुकदमों के सिलसिलों में उन्हें गवाही देने आना पड़ता है और जो यात्रा भत्ताा उन्हें दिया जाता है वह पिछली सदी के दामों के हिसाब से होता है। पुलिस एक्ट में बार बार संशोधन होते हैं लेकिन इस अटपटेपन की ओर किसी का ध्यान नही जाता।

इसका अर्थ यह कतई नही है कि पुलिस के परामानवीय और संविधानेतर कर्मो को सिरे से ही खारिज कर दिया जाए। पता नही किसने कहा था कि पुलिस गुंडों का एक संगठित और मान्यता प्राप्त गिरोह है। हम उस हद तक नही जाएंगे लेकिन थानों से लेकर बाजारों तक खर्चे पानी की जो संस्कृति अब समाज ने लगभग स्वीकार ली है, उसे मानने में हिचक तो जरुर होती है। पुलिस में सिपाही से लेकर महानिदेशक स्तर के दोस्त हैं और उनसे इस परपंरा के बारे में जो सुनने को मिलता है वह कम हद्रय विदारक नही है। मैं और मुझे विश्वास है कि आप भी ऐसे बहुत सारे इलाकों के बारे में जानते होगें जहां के थानों की बकायदा नीलामी होती है और नीलामी की यह रकम जाहिर तौर पर बड़े अफसर वसूलते हैं। एक चौकी इंचार्ज दोस्त को एक प्लाजमा टी वी खरीदते देकर बधाई दी तो वह दो मोटी गालियां देकर बोला कि डी सी पी साहब की बहन की शादी है और उसका दहेज खरीद रहा हूं। ये वे लोग हैं जिन्हें ऑफिसर्स क्लब के दरवाजे के आगे नही जाने दिया जाता और डयूटी पर भी उन्हें मिलने वाला पेट्रोल कम पड़ता है इसलिए वे बाहर से वसूली करते हैं। वसूली जब करते ही हैं तो दो पहियों पर क्यों चले? आप भी बहुत सारे सिपाहियों को जानते होगें जो कम से कम मारुति कार में चलते हैं और महंगी शराब पीते हैं।

राजबीर सिंह के बहाने यह सब कहने का अवसर इसलिए है कि वर्तमान ढांचे में आप सिर्फ इसी स्तर तक उंगली उठा सकतें हैं। वर्ना बहुत सारे पुलिस आयुक्त हैं जिनकी जीवन शैली बादशाहों को भी शर्मिंदा कर दे। वे तीस चालीस हजार रुपए महीने की पगार में लगातार जहाजों में धूमते हैं और उनके बंगले में तीन चार गाड़ियां तो खड़ी ही रहती हैं। बहुत सारे पुलिस वालों ने एन जी ओ का धंधा शुरु कर दिया है। उनमें से कुछ अपवाद स्वरुप अच्छी नीयत वाले हैं लेकिन ज्यादातर ने समाजसेवा को दुकान बना दिया है। दिल्ली पुलिस के एक भूतपूर्व कमिश्नर की धर्म पत्नी ने तो जो एन जी ओ बनाया है वह पांच सितारा है और वहां हैलीपैड से लेकर रनवे तक बनाया जा रहा है। जाहिर है कि ये लोग समाजसेवा का शांपिग सेंटर खोल कर बैठे हुए हैं।

राजबीर सिंह चले गए। अब तक जो पता चला है उससे लगता है कि उनकी बहादुरी उन्हें काफी दौलत देकर गई थी। ऐसी दौलत मौत के साथ ही लापता हो जाती है। हम अपने नायकों और खलनायकों में भेद कर पाएं इसके लिए जरुरी है कि हम पूजा करने के पहले सोचें और गाली देने के पहले स्थगित हो जाएं। शुरुआत अहमद फराज़ के एक शेर से की थी इसलिए अंत भी उन्ही के एक कलाम से। कलाम है - मेरी बर्बादी में तू भी है बराबर का शरीक, मेरे किस्से लोगों को सुनाता क्या है।

Wednesday, March 26, 2008

मम्मी का नादान छोरा







आलोक तोमर
अब यह पता नहीं कि राहुल गांधी ने कैंब्ररिज विश्वविद्यालय से एम फिल की डिग्री कब ले ली? कम से कम लोक सभा की वेबसाइट पर उनके परिचय में यही लिखा है। जहां तक दिल्ली में जानकारी है राहुल सुरक्षा कारणों से शुरू में घर पर पढ़े फिर कनाट प्लेस के पास सेंट कोलंबस स्कूल में भर्ती हो गए। इसके बाद पिताजी के स्कूल में देहरादून चले गए और फिर सूना गया कि दिल्ली के प्रतिषिठत सेंट स्टीफंस कालेज में उन्हें खेल कोटे में दाखिला मिला है। उन्होने पिस्तौल से निशानेबाजी का खिलाड़ी होने के प्रमाणपत्र दिए थे। यहां भी एक साल बाद उन्होने कालेज छोड़ दिया और अगली जानकारी यह है कि वे विकास अर्थशास्त्र विषय में कैंब्ररिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कालेज में दाखिला लिया था और तर्क यह है कि सुरक्षा के हास्यास्पद कारणों की वजह से उन्होने वहां अपना नाम राहुल विंसी रख लिया था। इतालवी भाषा में विंसी का अर्थ दिग्विजयी होता है।

इन दिनों कांग्रेस की ओर से दिग्विजय करने की राहुल गांधी की कोशिशें जोर-शोर से चल रही है। राहुल गांधी इसी साल 38 साल के हो जाएंगे और उम्र के हिसाब से अमेठी से सांसद बन के उन्होने राजनीति की पहली मंजिल तो पार कर ली लेकिन अमेठी से उनका जीतना कोई बड़ा चमत्कार नहीं है। राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी ने इस क्षेत्र को लगातार पनपाया है। उनके चुनाव की मैनेजर बड़ी बहन प्रियंका थी और मां का आशीवार्द तो लाडले के साथ था ही। राहुल गांधी राजनीति में आते ही युवराज के तौर पर स्थापित कर दिये गए और अब तो उनका वैकल्पिक नाम बन गया है। राहुल गांधी ने सबसे पहले बूढ़े पुराने कांग्रेसियों को ज्ञान दिया कि खादी पहनना कोई जरूरी नहीं है और शराब पीने से किसी का चरित्र गिर नहीं जाता। यह ज्ञान उन्होने कांग्रेस कार्यसमिति में दिय था जहां उनके शब्दों को खंडित करने का साहस किसी ने नहीं दिखाया था।

इसके बाद राहुल गांधी ने लगातार कांग्रेस को लज्जित और राजनीति को स्तब्ध करने वाले बयान एक के बाद एक दिए। उनके सलाहकारों और जनसंपर्क अधिकारियों की एक फौज बनाई गई। उनका समाज में उठना बैठना बनाया गया। उनके लिए नए-नए कार्यक्रम तैयार किए गए लेकिन राहुल गांधी अपने आप को अपनी मम्मी के बेटे से आगे कुछ साबित नहीं कर पाए। शादी करने के मामले में भी वे अटल बिहारी वाजपेयी की लाइन पर चल रहें हैं मगर कुंवारा रहने से अगर प्रधानमंत्री बनना तय होता तो कोई राजनेता मंडप में बैठता ही नहीं। राहुल गांधी ने पहले कुलियों के हक का मुद्दा उठायाऔर फिर कालाहांडी के आकालग्रस्त इलाकों के दौरे पर निकल गए। वहां जा कर उन्होने अपने आप को भूख के खिलाफ लड़ने वाला योध्दा स्थापित किया लेकिन कमाल की बाद ये है कि वे पश्चिमी उड़ीसा का पूरा इलाका घूम लिए मगर कालाहांडी ही नहीं जा पाए। उड़ीसा में एनडीए यानि बीजू जनता दल की सरकार है इसलिए उन्होने जमकर राजनीतिक बयानबाजी की। आखिरकार वे वहां से वैसे ही निकल लिए जैसे उनके पिता और उनकी दादी बहुत बड़ी-बड़ी बातें करके निकल लिए थे।

मम्मी के लाडले राहुल राजनीति के दायरों में अभी तक अपने आप को परावर्तित सत्ता का केंद्र नहीं बना सके हैं और एक तरह से यह लोकतांत्रिक सौभाग्य ही था लेकिन राहुल के मामले में यह सौभाग्य एक तरह कि मजबूरी साबित हो गया है। मां के पड़ोस में एक बड़े बंगले में वे रहते हैं और अब मुख्यमंत्रियों और सारे बड़े कांग्रेसी नेताओं को हुक्कम दे दिया है कि 10 जनपथ के अलावा राहुल बाबा के बंगले पर भी हाजिरी लगाया करें। ऐसे ही एक बड़े नेता ने एक दिलचस्प किस्सा यह सुनाया की राहुल गांधी ने विशेष तौर पर उन्हें फोन करके सारी मतदाता सूचियों और राजनैतिक होमवर्क के साथ बुलाया, लंबी बातचीत की और दो घंटा माथा खपाने के बाद उठते हुए अपने मेहमान से अपने राज्य में कांग्रेस को मजबूत बनाने का प्रवचन दिया। यहां तक तो ठीक था मगर राहुल गांधी इतनी लंबी चर्चा के बाद भी राज्य का नाम भूल गये थे और गुजरात को मध्य प्रदेश समझने की भूल कर रहे थे। ऐसे ही हाल ही में उत्साही और लगातार चर्चित होते जा रहे राजीव शुक्ला ने उनकी दोस्ती शाहरूख खान से करवा दी और अपने आप को कांग्रेस का अमर सिंह सिध्द कर दिया। राहुल गांधी शायद शाहरूख खान की मौजूदगी में जितने सूखी नजर आते हैं उतने अपने राजनैतिक साथियों की मौजूदगी में नजर नहीं आते।

राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी हैं और देश के पहले प्रधानमंत्री के वंशज हैं। वे इंदिरा गांधी के नाती भी हैं और राजीव गांधी के बेटे भी है। इतनी सारी विरासतों का बोझ संभालने की उनकी शक्ति है या नहीं इसपर हमारे देश का आने वाले दिनों का सौभाग्य या दुर्भाग्य टिका हुआ है। जहां तक खुद राहुल गांधी के भविषय का सवाल है तो सबसे पहले लोगों को इंतजार है कि वे अपनी शादी कब रचाते हैं? रिश्तों की कमी नहीं है, प्राथमिकता की बात है। राहुला गांधी भी ठीक उसी तरह बुरे आदमी नहीं हैं जैसे उनके पिता राजीव गांधी नहीं थे। दिक्कत सिर्फ चुनाव की प्राथमिकता की है। इंदिरा गांधी ने अपने बड़े बेटे के स्वभाव को जानते हुए राजीव गांधी की बजाय संजय गांधी को राजनीति के लिए चुना था लेकिन नियति ने संजय को जीवित ही नहीं रखा। इसीलिए राजीव को राजनीति में आना पड़ा और जबतक उन्हें लोकतांत्रिक होश आता तब तक उनकी हत्या हो चुकी थी। राहुल गांधी की दीर्धायु की सभी कामना करते होंगे लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस न तो अपने वर्तमान रूप में रह पाएगी और न दीर्घायु हो पाएगी। आप जानते हैं कि राहुल गांधी का संसदीय रिकार्ड कोई बहुत चमकदार नहीं है और नई पीढी के ज्यादातर सांसद उनसे ज्यादा बेहतर काम कर रहे हैं। इसके बावजूद अगर राहुल को शिखर पर रहना है तो अपने आप को शिखर पर होने की शक्ति अर्जित करने वाला बनाना पड़ेगा। फिलहाल यह होता दिखाई नहीं पड़ता।
(शब्दार्थ)

Tuesday, March 25, 2008

DATELINE INDIA NEWS, 25 MARCH 2008






DATELINE INDIA NEWS, 25 MARCH 2008
कवर स्टोरी
हमारे हीरो पर शर्मनाक हमला
आलोक तोमर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- भारतीय क्रिकेट के महानायक सुनील मनोहर गावस्कर को निशाने पर ला कर अंतरराषट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड-आईसीसी ने अपने लिए अस्तित्व की सबसे बड़ी आफथ बुला ली है। क्रिकेट पर कालम लिखने वाले सुनील गावस्कर पहले और अकेले खिलाड़ी नहीं हैं और आईसीसी के कई बड़े पदाधिकारी यह करते रहें हैं और कर रहें हैं लेकिन गावस्कर का कसूर यह था कि उन्होने आईसीसी की आलोचना करनी शुरू कर दी थी।
आईसीसी के चीफ मैल्कम स्पीड ने सुनील गावस्कर को सफाई देने के लिए दुबई बुलाया है और वे जब जाएंगे तब जाएंगे लेकिन आईसीसी के खिलाफ पहले से आस्ट्रेलिया दौरे के दौरान शुरू हुई बगावत ने नया मोड़ ले लिया है। सौरव गांगुली से लेकर सचिन तेंदुलकर तक ने ऐलान कर दिया है कि अगर सुनील गावस्कर के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई तो वे खुद खेल के मैदान से संन्यास ले लेंगे। मैल्कम स्पीड ने झुठ बोला है कि बोर्ड की कार्यकारिणी की बैठक ने सर्वसम्मति से गावस्कर के खिलाफ फैसला किया गया क्योंकि आईसीसी के चैयरमैन के तौर पर उनकी भूमिका को चुनौती देने के बारे में दुबई में हुई बोर्ड की बैठक में सभी एकमत नहीं थे। इस समय दुनिया के कम से कम पचास वर्तमान और भूतवपूर्व खिलाड़ी कालम लिखते हैं और यह संयोग नहीं हो सकता की आईसीसी के लोकतंत्र में सवाल सिर्फ भारतीय खिलाड़ियों पर उठाया जाता है।
सुनील गावस्कर ने इस फैसले पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है लेकिन सौरव गांगुली से लेकर बीसीसीआई के अध्यक्ष शरद पवार तक इस फैसले को सरासर अपमानजनक मानते हैं। श्री पवार ने कहा कि गावस्कर की तुलना में सभी क्रिकेट खिलाड़ी छोटे बैठते हैं और उन्होने क्रिकेट को खगोलीय सम्मान दिलवाया है। उनके खिलाफ आईसीसी का यह कदम सिर्फ आपत्तिजनक ही नहीं अपमानजनक भी है। आईसीसी की लड़ाई यह है कि क्रिकेट का सबसे बड़ा बाजार भारत है और उसके कोष का दो तिहाई से भी ज्यादा भारत के प्रायोजक देते हैं। इसके अलावा भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया की सबसे लोकप्रिय टीमों में से एक है और इसके खिलाड़ियों को विज्ञापनों के लिए सबसे अधिक अनुबंध मिलते हैं। आईसीसी चाहता है की भारत क्रिकेट के कारोबार के एकाधिकार में उसे हिस्सेदारी दे लेकिन भारत पर वह अपनी शर्ते लादने की हालत में नहीं है। इसीलिए उसका कोप अक्सर भारतीय खेल प्रशासन और टीम के सदस्यों पर निकलता है।
सुनील गावस्कर का अपमान करके आईसीसी ने एक और मुसीबत बुला ली है। सुनील गावस्कर आईसीसी के प्रशासन के ब्रांड एंबेसडर भी हैं और उसके ज्यादात्तर कारोबारी फैसले वे ही किया करते हैं। ऐसे में अगर खुद गावस्कर के खिलाफ नैतिकता सवाल उठा दिया गया तो इससे पूरे क्रिकेट जगत में एक अटपटा संदेश जाएगा। जहां तक गावस्कर की बात है तो वे खुद कुछ नहीं बोल रहे हैं मगर इमरान खान और इंजमाम जैसे भूतपूर्व और वर्तमान पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों ने भी आईसीसी की दादागीरी की खुलकर आलोचना की है। अब यह लड़ाई इस चरण तक पहुंच गई है कि किसी न किसी को वापसी करनी ही पड़ेगी और इससे पूरी दुनिया के क्रिकेट जगत के समीकरण प्रभावित होंगे।
सबसे पहले तो दक्षिण अफ्रीका का भारत दौरा संकट में पड़ गया है। इस दौरे के दौरान विशेष कमेंटेटर के तौर पर सुनील गावस्कर को अनुबंधित किया गया है और प्रायोजकों ने उन्हें पूरी राशि का अग्रिम भुगतान कर दिया है। आईसीसी के फतवे के बाद सुनील गावस्कर की भूमिका पर भी सावलिया निशान लग गए हैं और जाहिर है कि अगर उनके खिलाफ बदतमीजी जारी रही तो भारतीय टीम अपने तरीके से इसका जवाब देगी। नतीजे में निवेशकों के करोड़ों रुपये तो डूबेंगे ही तीन साल बाद होनेवाले विश्व कप की तैयारियों पर भी सवालिया निशान लग जाएंगे। वैसे इस बीच शरद पवार का आईसीसी अध्यक्ष बनना तय हो चुका है और इसीलिए उम्मीद की जा सकती है कि आईसीसी कुछ दिनों में भारत के खिलाफ दादागीरी करना बंद कर देगा और उस पर बाबूगीरी दिखाने वाले आईसीसी के अफसरों का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
राजबीर के राज मौत के साथ ही दफन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह को कई बार पुलिस कमिश्नर से भी ज्यादा ताकतवर माना जाता था। उनकी हत्या को लेकर जो विवाद खड़े हुए हैं उनसे ज्यादा विवाद उनकी जिन्दगी में एनकाउंटर विशेषज्ञ के तौर पर उन्हें झेलने पड़े। उनके कई एनकाउंटरों को फर्जी बताया गया और खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्डर्वल्ड ने तो कई बार उन्हें जान से मारने की कोशिश भी की थी।
राजबीर सिंह पुलिस में सब-इंस्पेक्टर भर्ती हुए थे और एक बार राषट्रपति पदक और दूसरी बार शोर्य पदक पाने के साथ ही बगैर बारी के उनको पद्दोन्नति दी गई और वे सहायक पुलिस आयुक्त बन गए। कम से कम दिल्ली पुलिस में ऐसी असाधारण तरक्कियां बहुत कम हुईं थीं। राजबीर सिंह के एक जमाने में सीनियर रहे इंस्पेक्टर स्वतंत्र सिंह गिल हाल ही में यातायात पुलिस में उनके अधीन काम कर रहे थे और वे याद करते हैं कि राजबीर सिंह ने ऐसे ही गपशप में उनसे कहा था कि वे अपनी नौकरी से तंग आ चुके हैं और जल्दी ही वीआरएस लेकर अपना काम शुरू करना चाहते हैं। तबतक उनपर आरोप लग चुका था कि वे लैंड माफिया की भरपूर मदद करते हैं। इसी सिलसिले में उनकी एक फोन काल को रिकार्ड भी किया गया था उसके बाद उनके खिलाफ जांच शुरू हुई थी जिसमें उन्हें निर्दोष पाया गया था।
राजबीर सिंह देश के अकेले और सबसे पहले एसीपी थे जिन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी। इसके बावजूद जब उनकी हत्या उन्हीं की पिस्तौल से की गई तो उनके पास कोई सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं था। संसद और लालकिले पर हमले के मामले में जांच करने वाले अधिकारी के तौर पर उनकी जान को गंभीर खतरा होने की जानकारी गुप्तचर ब्यूरो ने भी दी थी। राजबीर सिंह ने 1982 में शुरू हुए अपने पुलिस कैरियर के दौरान 60 से ज्यादा मूठभेंड़े की और सौ से ज्यादा अपराधियों की लाशें गिराई। जब वे नौरकोटिक्स ब्यूरो में थे तब तस्करों की लाबी ने उनपर आर्थिक आरोप भी लगवाये थे। इनसब आरोपों से मुक्त होने के बाद राजबीर सिंह को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा में सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी।
राजबीर सिंह ने अपनी पूरी जिन्दगी बंदूक के सहारे कानून की रखवाली करने में बिताई और विडंबना यह है कि उनकी उसी बंदूक की गोली से उनकी जान गई। 1994 में जब उन्होने वीरेंद्र जाट नामक एक कुख्यात अपराधी को मुठभेड़ के बाद बकायदा कुश्ती लड़कर जिंदा पकड़ा था तो उन्हें पहले पद्दोन्नति दे कर इंस्पेक्टर बनाया गया था। इसके बाद राजबीर रमोला और रणपति गुर्जर नामक के अपराधियों को उन्होंने अकेले गोली से उड़ा दिया था। राजबीर सिंह का सबसे विवादास्पद एनकाउंटर असंल शापिंग प्लाजा में हुआ था जहां पुलिस ने दो कश्मीरी आतंकवादियों को मारने का दावा किया और उसे झुठा करार दिया गया। इस मामले की जांच अभी चल रही है।

राजबीर हत्या-कुछ और सवाल
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की सनसनीखेज हत्या के मामले में गुथ्थियां सुलझने का नाम नहीं ले रहीं हैं। पहली तो ये है कि दो-दो पिस्तौलें रखने वाले और उसका इस्तेमाल अच्छी तरह जानने वाले राजबीर सिंह ने आखिर इतनी असावधानी क्यों बरती की उनकी जान चली गई। यह ठीक है कि उन्हें गोलियां पीछे मारी गई थी लेकिन इतने भोले राजबीर सिंह भी नहीं थे कि वे शराब की बोतल सहित अपने हत्यारों से मिलने पहुंच जाते।
इसके अलावा राजबीर सिंह अपने हत्यारे विजय भरद्वाज के परिवार को अच्छी तरह जानते थे और उनके साथियों के अनुसार उनकी शैली यहीं थी कि वे अपने सुरक्षा अधिकारियों को एक तय दुरी पर रखकर उन्हें अपने मोबाइल के जरिए सिर्फ एक घंटी मारकर कभी भी बुला सकते थे। इसके अलावा दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि राजबीर सिंह आखिर कितने बड़े पैसे का कौन सा सौदा करने गए थे और क्या वह सौदा खुद उनका था या वे अपने किसी पुलिस अधिकारी के लिए यह काम कर रहे थे? दिल्ली पुलिस के पिछले पुलिस आयुक्त के. के. पाल इसी गुड़गांव में संपत्ति के कई सौदों के लिए चर्चित रहे हैं और वहां उनकी करोड़ों की संपत्ति है। क्या राजबीर सिंह अपनी पुरानी वफादारी के कारण वसूली करने वहां गए थे? जेड श्रेणी की सुरक्षा के बावजूद राजबीर सिंह के साथ तैनात सुरक्षा गार्डों का ना होना भी यह बताता है कि चूक जान-बुझकर सुरक्षा घेरे में हुई थी और हो सकता है कि दिल्ली पुलिस कुछ अधिकारियों का नाम भी इस कांड में सामने आए।
दिल्ली पुलिस के इस सबसे चर्चित अधिकारी की मौत ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को खासतौर पर मुसीबत में डाल दिया है। इस सेल का काम ही यह है कि कुख्यात आतंकवादियों और बड़े अपराधियों का सामना करे और इस चक्कर में निजी दुश्मनियां भी होती ही रहती हैं। दिल्ली पुलिस के अधिकारी जायज तौर पर ही कहते हैं कि हर पुलिस कर्मी को तो सुरक्षा गार्ड नहीं दिए जा सकते। इसके अलावा विजय भारद्वाज ने जिस तरह बड़ी आसानी से हत्या का इल्जाम अपने सिर ले लिया उसी से जाहिर है कि उसपर दबाव डाला गया है।
मौके पर मौजूद लोगों के अनुसार हत्यारे बाहर से आये थे और खुद विजय भारद्वाज ने उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहा था। राजबीर सिंह विजय भारद्वाज के छोटे भाई संजय के बचपन के दोस्त थे और दोनों साथ में खेल कर बड़े हुए थे। संजय भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उसके भाई की इस हत्या में कोई भूमिका रही होगी। संजय का कहना है कि राजबीर सिंह और उनके भाई के बीच अच्छा-खासा रिश्ता था। संजय ने यह भी कहा कि जैसा की कहा जा रहा है कि यह पचास साठ लाख रुपये की लेन-देन का मामला है तो ऐसे में कोई भी पैसा देने वाले की हत्या क्यों करेगा? इससे तो पैसे डूब ही जाएंगे।
गिलानी बख्शेंगे सरबजीत की जान?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च -पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के रूप में युसुफ रजा गिलानी को शपथ लेने के बाद पाकिस्तान की जेल में बंद सरबजीत के परिवार को एक आष की नई किरण दिखी है। पाक जेल बंद सरबजीत की बहन गुरूमीत कौर ने कहा है कि श्री गिलानी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुझे आषा है कि मेरे भाई की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाएगा । इससे मेरे भाई की रिहाई संभंव हो सकेगी।
पाकिस्तान में आज प्रधानमंत्री की शपथ युसुफ रजा गिलानी ने ली लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की खुषी सरबजीत के परिवार को हुई क्योंकि वे अगर चाहेंगे तो तो सरबजीत का फांसी की सजा से बचा सकते हैं। वहीं पाकिस्तना मनावाधिकार आयोग के मंत्री अंसार बर्नी ने भी इस बात को कहा है कि वह अपनी तरफ से पाक प्रधानमंत्री श्री गिलानी से बात करेंगे कि 18 साल की जेल काट चुके सरबजीत को फांसी की सजा न देकर उम्र कैद की सजा दी जाए। ताकि सरबजीत की रिहाई संभव हो सके।
श्री बर्नी ने सरबजीत की बहन को विश्वास दिलाया कि प्रधानमंत्री सरबजीत मामले में जरूर कोई ठोस कदम उठाऐंगे। बर्नी की बात सरबजीत के परिवार को एक ढाढस बढाने का काम कर रही है। उधर श्री गिलानी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान के राषट्रपति परवेज मुशर्रफ भी नरम पड गए हैं। उन्होंने ने ही श्री गिलानी को आज शपथ दिलायी। परवेज मुर्षरफ के द्वारा गिलानी को शपथ लेने के कारण पाकिस्तान मुस्लिम लीग -एन के नेता नवाज षरीफ ने शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लिया। उनकी पार्टी ने शपथ ग्रहण समारोह वहिषकार कर दिया। जबकि उनकी पार्टी भी श्री गिलानी की पार्टी को समर्थन हासिल है। पाकस्तिान में नए उभरे समीकरणों से यह साफ हो रहा है कि श्री गिलानी से परवेज मुशर्रफ से बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं। लेकिन ऐसा अगर श्री गिलानी करेंगे तो उनके लिए परेशानी का शबब बन सकती है। पाक के नए प्रधानमंत्री श्री गिलानी ने पाक-भारत की दोस्ती को और मजबूत करने का इशारा किया है। इससे साफ हो जाता है कि पाक जेल में बंद सरबजीत को रिहाई मिल सकती है।

तिब्बत पर सच निकली पटेल की चेतावनी"
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च - देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सरदार बल्लभ पटेल ने अपने पत्र के माध्यम से पहले की अगाह कर दिया था कि तिब्बतियों के साथ चीन विश्वासघात करेगा जबकि भारत ने तिब्बितियों पर हमेशा विश्वास किया है और उनका मार्गदर्षन करते रहे है।

बल्लभ भाई पटेल ने श्री जवाहर लाल को 7 नवंबर, 1950 को लिखे पत्र से अवगत कराया गया था कि चीन सरकार ने हमें अपने शांतिपूर्ण उद्देश्याें के आंडबर में उलझाने का प्रयास किया है। मेरा यह मानना है कि वह हमारे राजदूत के मन में यह झूठ विश्वास कायम करने में सफल रहे कि चीन तिब्बत की समस्या को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहता है। चीन की अंतिम चाल, मेरे विचार से कपट और विश्वासघात जैसा ही है। दुखद बात यह है कि तिब्बतियाें ने हम पर विश्वास किया है, हम ही उनका मार्गदर्शन भी करते रहे हैं और अब हम ही उन्हें चीनी कूटनीति या चीनी दुर्भाव के जाल से बचाने में असमर्थ हैं। ताजा प्राप्त सूचनाओं से ऐसा लग रहा है कि हम दलाई लामा को भी नहीं निकाल पाएंगे । यह असंभव ही है कि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति तिब्बत में एंग्लो-अमेरिकन दुरभिसंधि से चीन के समक्ष उत्पन्न तथाकथित खतरे के बारे में विश्वास करेगा।
पिछले कई महीनाें से रूसी गुट से परे हम ही केवल अकेले थे जिन्हाेंने चीन को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता दिलवाने की कोशिश की तथा फारमोसा के प्रश्न पर अमेरिका से कुछ न करने का आश्वासन भी लिया।
मुझे इसमें संदेह हैं कि चीन को अपनी सदिच्छाओं, मैत्रीपूर्ण उद्देश्याें और निषकपट भावनाओं के बारे में बताने के लिए हम जितना कुछ कर चुके हैं, उसमें आगे भी कुछ किया जा सकता है। हमें भेजा गया उनका अंतिम टेलिग्राम घोर अशिष्टता का नमूना है। इसमें न केवल तिब्बत में चीनी सेनाओं के घुसने के प्रति हमारे विरोध को खारिज किया गया है बल्कि परोक्ष रूप से यह गंभीर संकेत भी किया गया है कि हम विदेशी प्रभाव में आकर यह रवैया अपना रहे हैं। उनके टेलिग्राम की भाषा साफ बताती है कि यह किसी दोस्त की नहीं बल्कि भावी शत्रु की भाषा हैं। इस सबके पटाक्षेप में हमें इस नई स्थिति को देखना और संभालना होगा जिसमें तिब्बत के गायब हो जाने के बाद जिसका हमें पता था चीन हमारे दरवाजे तक पहुंच गया है। इतिहास में कभी भी हमें अपनी उत्तर-पूर्वी सीमा की चिंता नहीं हुई है। हिमालय श्रृंखला उत्तर से आने वाले किसी भी खतरे के प्रति एक अभेद्य अवरोध की भूमिका निभाती रही है। तिब्बत हमारे एक मित्र के रूप में था इसलिए हमें कभी समस्या नहीं हुई। हमने तिब्बत के साथ एक स्वतंत्र संधि कर उसकी स्वायत्तता का सम्मान किया है। उत्तर-पूर्वी सीमा के अस्पष्ट सीमा वाले राज्य और हमारे देश में चीन के प्रति लगाव रखने वाले लोग कभी भी समस्या का कारण बन सकते हैं।
चीन की कुदृष्टि हमारी तरफ वाले हिमालयी इलाकाें तक सीमित नहीं है, वह असम के कुछ महत्वपूर्ण हिस्साें पर भी नजर गडाए हुए है। बर्मा पर भी उसकी नजर है। बर्मा के साथ और भी समस्या है क्योकि उसकी सीमा को निर्धारित करने वाली कोई रेखा नहीं है जिसके आधार पर वह कोई समझौता कर सके। हमारे उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में नेपाल, भटान, सिक्किम, दार्जिलिंग और असम के आदिवासी क्षेत्र आते हैं। संचार की दृष्टि से उधर हमारे साधन बडे ही कमजोर व अपर्याप्त है; सो यह क्षेत्र 'कमजोर' है। उधर कोई स्थायी मोर्चे भी नहीं हैं
इसलिए घुसपैठ के अनेकाें रास्ते हैं। मेरे विचार से अब ऐसी स्थिति आ गई है कि हमारे पास आत्मसंतुष्ट रहने या आगे-पीछे सोचने का समय नहीं है। हमारे मन में यह स्पष्ट धारणा होनी चाहिए कि हमें क्या प्राप्त करना है और किन साधनाें से प्राप्त करना है।
इन खतराें के अलावा हमे गंभीर आंतरिक संकटाें का भी सामना करना पड सकता है। मैने एच वी आर आयंगर को पहले ही कह दिया है कि वह इन मामलाें की गुप्तचर रिपोर्टों र्की एक प्रति विदेश मंत्रालय भेज दें। निश्चित रूप से सभी समस्याओं को बता पाना मेरे लिए थकाऊ और लगभग असंभव होगा। लेकिन नीचे मैं कुछ समस्याओं का उल्लेख कर रहा हू जिनका मेरे विचार में तत्काल समाधान करना होगा और जिन्हें दृष्टिगत रखते हुए ही हमें अपनी प्रशासनिक या सैन्य नीतियां बनानी हाेंगी तथा उन्हें लागू करने का उपाय करना होगा :
· सीमा व आंतरिक सुरक्षा दोनाेंमोर्चों र्पर भारत के समक्ष उत्पन्न चीनी खतरे का सैन्य व गुप्तचर मूल्यांकन।
· हमारी सैन्य स्थिति का एक परीक्षण।
· क्षेत्र की दीर्घकालिक आवशयकताओं पर विचार.
· हमारे सैन्य बलाें के ताकत का एक मूल्यांकन.
· संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रवेश का प्रश्न.
· उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी सीमा को मजबूत करने के लिए हमें कौन से राजनीतिक व प्रशसनिक कदम उठाने हाेंगे?
· चीन की सीमा के करीब स्थित राज्याें जैसे यूद्बऱ्पीद्बऱ्, बिहार, बंगाल, व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में आंतरिक सुरक्षा के उपाय.
· इन क्षेत्रों और सीमावर्ती चौकियाें पर संचार, सडक, रेल, वायु और बेहतर सुविधाओं में सुधार.+
· ल्हासा में हमारे दूतावास और गयांगत्से व यातुंग में हमारी व्यापार चौकियाें तथा उन सुरक्षा बलाें का भविष्य जो हमने तिब्बत में व्यापार मार्गो की सुरक्षा के लिए तैनात कर रखी हैं.
· मैकमोहन रेखा के संदर्भ में हमारी नीति.

आपका
वल्लभ भाई पटेल

आडवाणी के खिलाफ भाजपा में बगावत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च -आडवाणी की किताब की वजह से पार्टी में उनकी सर्वोच्चता को चुनौती मिलने लगी है। पार्टी के अंदर मौजूद दूसरे दिग्गज नेता कंधार मामले में उन ही निषाना साधने लगे हैं। कंधार प्रकरण में आतंकियों के छोड़े जाने की जानकारी न होने संबंधी बयान जो उन्होंने अपनी किताब में छापा है उसे भाजपा के दूसरे बडे नेता झूठा करार दे रहे हैं।पार्टी ने स्पष्ट किया कि अपहृत यात्रियाें के बदले आतंकवादियाें को छाेडे जाने की जानकारी आडवाणी को थी।
भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि आडवाणी को न सिर्फ आतंकवादियों को छाेडने की जानकारी थी बल्कि वह निर्णय का हिस्सा थे। दरअसल भाजपा में आडवाणी के इस बयान के बाद एक बार फिर विघटन की स्थिति समाने आ गई है। 'पीएम इन वेटिंग' आडवाणी का असली वेट इस कदर सामने आया है कि पार्टी नेता परेशान हो गए हैं। संतुलन के लिए अटल जैसे कद का सही नेता पार्टी के पास है नहीं, सो इंसाफ के लिए नजरें संघ पर टिक गई हैं। पार्टी की बागडोर थामे राजनाथ असहाय नजर आ रहे हैं। उन्हाेंने संघ से गुहार लगाई। संघ से बातचीत के बाद पार्टी प्रवक्ता का यह बयान आया।
आडवाणी ने अपनी किताब के विमोचन पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ को मंच पर स्थान नहीं दिया। फिर एक चैनल को साक्षात्कार में यह कहा कि अपहृत विमान यात्रियों के बदले तीन खूंखार आतंकवादियों को छाेडने की जानकारी उन्हें नहीं थी। इसके अलावा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्होंने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर प्रोजेक्ट किया। इससे पार्टी में खलबली मच गई है। चर्चा होने लगी है कि क्या ऐसा बयान यदि आडवाणी के अलावा कोई और नेता देता तो पार्टी उस पर चुप रहती? वाजपेयी ने कभी भी आडवाणी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया। उत्तराधिकार आडवाणी को मिला तो पार्टी संसदीय बोर्ड में चर्चा और सहमति के बाद।

एक और एसीपी की रहस्यमय मौत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- शिवानी भटनागर हत्याकांड में मुख्य अभियुक्त रविकांत शर्मा के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण सबूत लाने वाले दिल्ली पुलिस के सहायक पुलिस आयुक्त हेमंत चोपड़ा की मौत का रहस्य अभी भी नहीं सुलझा है। यह मौत 35 साल पुराने नागरवाला जालसाजी कांड के जांच अधिकारी की सड़क दुर्घटना में मौत की तरह रहस्यमय बन गई है।
अक्टूबर 2004 में जब हेमंत त्रिवेदी की लाश उनके कमरे में मिली थी। दरअसल, जब उन्हें बेहोश पाया गया तबतक उनकी सांसे चल रही थी लेकिन अस्पताल पहुंचते-पहुंचते उनकी मौत हो गई। हेमंत चोपड़ा उस समय सिर्फ 36 साल के थे और सबसे पहले यह कहा गया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है जिससे उनकी मौत हुई है। सच यह है कि हेमंत चोपड़ा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक नहीं किया गया और यह भी सच है कि हेमंत चोपड़ा को दिल की कोई बीमारी नहीं थी और कुछ दिन पहले उन्होने सिर्फ पेट में दर्द की शिकायत की थी जो मामूली दवाईयों से ठीक हो गई थी।
जिन रविकांत शर्मा के खिलाफ हेमंत चोपड़ा जांच कर रहे थे वे पद और संपर्कों में उनसे बहुत ऊपर थे और हरियाणा में भी तैनात थे। जांच के दौरान हेमंत चोपड़ा ने अपने अधिकारियों से कहा था कि वे भी कुरूक्षेत्र के हरियाणा के रहनेवाले हैं और रविकांत शर्मा के साथियों की ओर से उनके परिवार को बहुत धमकियां मिल रहीं हैं।
1993 में सीधे दिल्ली पुलिस में शामिल होने वाले हेमंत चोपड़ा सीधे एसीपी बने थे और उन्होने जांच के दौरान हिमाचल प्रदेश के सोलन में छिपे रविकांत शर्मा की तलाश कर ली थी। सोलन के तार घर में काम कर रहे वीपी सैनी नामक जूनियर इंजिनियर से पूछताछ करके उन्होने रविकांत शर्मा का ठिकाना भी जान लिया था लेकिन तभी दिल्ली से उन्हें वापस लौटने का हुक्म सुना दिया गया। इसी तार घर से शर्मा अपने परिवार से गुप्त शैली में लिखे गए कई तार भेजे थे और मोबाइल पर निगरानी रखने के इस जमाने में संपर्क का यह तरीका काफी काम आया था।
हेमंत चोपड़ा ने रविकांत शर्मा को अपने सूत्रों के जरिये एक निजी संदेश भी भेजा था जिसमें पद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए पूरे आदर सहित उन्हें पूछताछ में शामिल होने के लिए बुलाया गया था। श्री शर्मा ने पुलिस के सामने आत्मसमपर्ण करने के बाद दिए गए बयान में इस बात की पुषिट भी की है और हेमंत चोपड़ा को एक शानदार पुलिस अधिकारी बताया है। मुद्दे फिर भी वही है कि दिल्ली पुलिस ने डीएसपी रैंक के हेमंत चोपड़ा को आईजी स्तर के एक अधिकारी के खिलाफ जांच देना कितना अव्यवहारिक था यह बड़े अधिकारियों ने नहीं देखा। इस बात पर भी गौर नहीं किया गया कि हेमंत चोपड़ा कुरूक्षेत्र के रहने वाले हैं जो रविकांत शर्मा के असरवाला इलाका था।
हेमंत चोपड़ा का इकलौता बेटा राजीव अब वकालत की पढ़ाई कर चुका है और उसका इरादा है कि अपनी पिता के मौत के रहस्य को वह सबसे सामने ला सके। उसका साफ कहना है कि उसके पिता एकदम स्वस्थ थे और उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सार्वजनिक किए बगैर पूरे सच का खुलासा नहीं हो सकता। हेमंत चोपड़ा के परिवार का आरोप है कि उन्होने जब तत्कालीन मंत्री स्वर्गीय प्रमोद महाजन से अपने आप को इस जांच से अलग करने की अपील की थी तो महाजन ने उन्हें सहयोग का पूरा वचन दिया था। इसके बावजूद बहुत संदिग्ध हालत में उनकी मौत हो गई और यह कैसे हुआ इसपर से अभी तक पर्दा नहीं उठा है।

भूटान में राजा की पार्टी ही करेगी राज
डेटलाइन इंडिया
थिंपू ,25 मार्च - नेपाल की राह पर अब चला भूटान। भूटान की जनता ने जिस प्रकार संसदीय चुनाव मेंं राजशाही को नकारा है उससे साफ हो गया है कि अब वह नेपाल की तरह जीना चाहता है। भूटान में 100 साल बाद राजशाही के खिलाफ ख़डे होकर ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि राजशाही ज़ड से ही समाप्त हो गई है।
भूटान में संसदीय चुनावों में राजशाही के खिलाफ जिग्मी थिन्ले ने जीत दर्ज की है। उन्होंने 47 में से 44 सीटों पर कब्जा कर लिया है। अब भूटान का पहला निर्वाचित प्रधानमंत्री राषट्रीय संसद के सदस्यों में से ही बनेगा। चुनाव में राजा की पार्टी की कमान राजा के मामा सांगे न्गेदप ने संभाली थी लेकिन उन्होंने यह कभी न समझा था कि उन्हें भूटान की जनता इस कदर नकार देगी कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र से ही हार गए।
भूटान के मतदाता राजशाही से इतने आतंकित थे कि वह मतदान के दिन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। जहां महिलाए और पुरूश अपनी पारंपरिक वेशभूशा पहनकर मत डालने के लिए मतदान केंद्रो पर पहुंची थी। भिक्षुओं ने भूटान में लोकतंत्र बहाली के लिए विशेष प्रार्थना और देशी घी के दिए जलाए और उनकी प्रार्थना भगवान ने सुनी और भूटान में राजशाही का खात्मा हो गया। ं।
आजमगढ़ चुनाव और सांप्रदायिक तनाव
डेटलाइन इंडिया
र्र्र्नई दिल्ली, 25 मार्च-उत्तर प्रदेश में होने वाले आजमगढ़ उपचुनाव में सभी योध्दा अपने जहरीले बयान से जनता को दंगों की आग में झोंक देना चाहते हैं। क्या शहर, क्या गांव हर तरफ सांप्रदायिक नारे जोर पकड़ने लगे हैं।
इस लड़ाई का अकेले सबसे खतरानक केंद्र बन चुका आजमगढ़ अब सुलगने की तैयारी में है। सदर लोस सीट पर हो रहे उपचुनाव को धार्मिक रंग में रंगने का खेल शुरू हो गया है। शहर के साथ ही गांवों में भी अब गूंजने लगा है कि यूपी भी गुजरात बनेगा आजमगढ़ आगाज करेगा। यह नारा किसने दिया इसको लेकर
राजनीतिक दलों में घमासान छिड़ा हैं। सभी दल एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहें हैं पर आग तो जनता के मन में सुलगाई जा चुकी है और यह कभी भी बड़े पैमाने पर हिंसा फैला सकती है। दलों की चुनावी तैयारी देखने से भी ऐसा लगता है कि इस उपचुनाव को सांप्रदायिक रंग में रंग कर सीधी लड़ाई में आने की कोशिश नेता कर रहे हैं।
हरबंशपुर स्थित सपा के केंद्रीय चुनाव कार्यालय में एक्रत्र हजारों कार्यकर्ताओं को पार्टी के महासचिव अमर सिंह और कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव मिले। सपा महासचिव अमर सिंह ने आगाह किया कि क्षेत्र में कुछ लोग नारा दे रहे हैं कि यूपी भी गुजरात बनेग आजमगढ़ आगाज करेगा, इनसे सतर्क रहना होगा। इतना ही नहीं नेलोपा द्वारा घोषित प्रत्याशी आरोपी आतंकी हकीम तारिक कासमी के प्रति भी उनकी जुबां से मीठे बोल ही फूटे। मुसलमानों को आक र्षित करते हुए उन्होंने कहा कि हकीम तारिक कासमी को एसटीएफ ने आतंकी होने का आरोप लगाते हुए फंसाया तो सबसे पहले सपा ने आवाज उठाई। जहां भी मुसलमानों पर अन्याय हुआ सपा ही सबसे पहले आगे आई।
दूसरी तरफ एक प्रत्याशी के समर्थको ने यूपी भी गुजरात बनेगा, आजमगढ़ आगाज करेगा नारा लगाक र सरायमीर कस्बे में माहौल को गरमा दिया है। सैकड़ों समर्थक एक त्रित हो गए। समर्थकों ने नारेबाजी शुरू की। कुछ समर्थकों ने यूपी भी गुजरात बनेगा, आजमगढ़ आगाज करेगा का नारा लगाया। लगभग पांच मिनट तक नारेबाजी चली। इससे एक समुदाय के लोग भड़क उठे। धीरे-धीरे यह नारा क्षेत्र के आम मतदाताओं के बीच चर्चा और भय का विषय बना हुआ है।
बेटी की चिता सजाए बैठा एक पिता
डेटलाइन इंडिया
पवई (आजमगढ़), 25मार्च-बाप बेटी को जब ब्याह देता है तो यहीं समझता है कि अब उसकी जिम्मेदारियां खत्म हो गई पर एक बाप ऐसा भी जो अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने की बाट जोह रहा है। लेकिन पुलिस और कागजी खानापूर्ति ने उसे बेबस और लाचार बना दिया है।
एक बाप अपनी बेटी की शादी के बाद चैन की सांस ले ही रहा था कि उस पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा। वह भी ऐसा की बाप अपनी बेटी के कंकाल के सामने बैठा तिल-तिल कर अपनी अंतिम सांसों की दुआ मांग रहा है। पवई थाना क्षेत्र के मुहमदपुर गांव में ब्याही शकुंतला की जहर खाने से मौत हो गई थी। मायके वालों का आरोप है कि उसे जहर देकर मारा गया है। पुलिस ने शकुंतला की लाश को जलती चिता से उतरवाया था। बेटी को खोने वाले पिता को अंतिम संस्कार के लिए उसकी लाश भी नसीब नहीं हो सकी। पोस्टमार्टम के बाद सील कर थाने में रखे शकुंतला के कंकाल के पास पूरा परिवार चार दिन से बैठा हुआ है।
मुहमदपुर गांव निवासी अंगद सिंह की पत्नी शकुंतला देवी की संदिग्ध परिस्थितियों में विषाक्त पदार्थ का सेवन करने से 20 मार्च को मौत हो गई थी। ससुरालवालों ने गांव के बाहर नदी के किनारे उसकी लाश को जला रहे थे। इसी दौरान मायके वालों की सूचना पर पुलिस वहां पहुंची और जलती चिता से शकुंतला की लाश को कब्जे में ले लिया। सुल्तानपुर जिले के अखंडनगर थाना क्षेत्र के भ्यूरा के रहनेवाले शकुंतला के पिता सर्वजीत सिंह ने जहर देकर मारने तथा साक्ष्य को छिपाने के लिए उसकी लाश को जलाने ता मुक दमा दायर करवाया है। इस संबंध में पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन आरोपी बनाई गई सास और जेठानी फरार हैं। सर्वजीत सिंह अपने परिवार के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे। उन्होंने कहा कि बेटी तो गई, अब उसकी लाश मिल जाए, जिसका अंतिम संस्कार कर दें।
हालांकि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की क ार्रवाई के बीच फंसी शकुंतला की लाश भी उनको मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। थानाध्यक्ष टीबी सिंह ने कह कि लाश 90 प्रतिशत से अधिक जल चुकी है। बिसरा रिजर्व को छोड़कर सिर्फ कंकाल बचा है। वह भी जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ भेजा गया। सर्वजीत सिंह अपने परिवार के साथ थाने में बेटी के सीलबंद कंकाल के पास चार दिन से इस आश में बैठे रहे कि लाश के नाम पर उन्हें कंकाल मिलेगा। उनकी इस मंशा पर भी पानी फिरता लग रहा है। थानाध्यक्ष ने कहा कि कंकाल परिजनों को मिलेगा या नहीं, इस बारे में जांच के बाद ही कुछ बताया जा सकता है।

मां की मौत का गवाह है अंतरिक्ष
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च - उच्च न्यायालय द्वारा पत्नी की हत्या के आरोपी को उसके बच्चों को सौंप देने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बदल कर बच्चे को नाना- नानी को सौंप दिया है क्योंकि आठ साल का अंतरिक्ष नाम का बच्चा ही अपनी मां की मौत का गवाह है।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश सी.के. ठक्कर और डी.के. जैन की खंडपीठ ने यह आदेश कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दिया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में जमानत पर छूटे पर पिता को बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक मानते हुए उसके संरक्षण की जिम्मेदारी दे दी थी। बच्चे के नाना-नानी ने अधिवक्ता राजकुमार गुप्ता के जरिए इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। गुप्ता ने कहा कि यह सही है कि अभिजित कुंडु बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है, लेकिन इस मामले में यह देखना जरूरी है कि उसके पिता पर ही उसकी मां की हत्या का आरोप है। इस मामले का वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह भी है, क्याेंकि मां के मरने पर उसने ही नाना को फोन करके वारदात की जानकारी दी थी। उन्हाेंने कहा कि ऐसी स्थिति में पिता के पास बच्चे का सही विकास नहीं हो सकता क्याेंकि वह उस पर अनेक किस्म के दबाव बनाएंगे।
खंडपीठ ने इस पर बच्चे का चेंबर में बयान लिया। उसके बाद दोनाें पक्षाें के वकीलाें की जिरह सुनने के बाद नाना-नानी को बच्चे की कस्टडी दे दी। नाना का आरोप है कि उनके दामाद अभिजित ने 2004 में उनकी बेटी की हत्या कर दी थी। मृतक उनकी अकेली बेटी थी जिसकी शादी में उन्हाेंने दहेज के रूप में कार भी दी थी। अभिजित एक कंपनी में मैनेजर है।

Monday, March 24, 2008

Dateline India News Service, 24th March, 2008

राकेश भटनागर नहीं थे अदालत में
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च-पिछले तीस साल में किसी भी अदालत ने ऐसा कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं हुआ जिसमें एक आदमी मौजूद न होता हो। यह व्यक्ति दिल्ली के एक सबसे बड़े अखबार में कानून संवाददाता है और बड़े-बड़े मामलों के फैसलों की समीक्षा करता रहा है।

लेकिन राकेश भटनागर आज कड़कड़डूमा अदालत में मौजूद नहीं थे। आज उनकी ही पत्नी और इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार शिवानी भटनागर की लगभग आठ साल पहले हुई हत्या के मामले में फैसला आना था और जब हत्या के आरोप में शिवानी के दोस्त और पुलिस अधिकारी रविकांत शर्मा और तीन अन्य अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई तो राकेश भटनागर अपने कार्यालय में भी नहीं पहुंचे और उनका मोबाइल फोन बंद था।

शिवानी और राकेश भटनागर की मित्रता दिल्ली के प्रेस क्लब में शुरू हुई थी दोनों के बीच उम्र का काफी अंतर था लेकिन जल्दी यह दोस्ती रिश्ते में बदल गई और यह रिश्ता शादी में। शिवानी और राकेश भटनागर का स्वभाव एकदम अलग था। उस वक्त राकेश बड़े पत्रकार थे और शिवानी प्रशिक्षु पत्रकार बनकर इंडियन एक्सप्रेस में आईं थीं। राकेश ने शिवानी की अपने संपर्कों के जरिए बहुत मदद की और विडंबना यह है कि हरियाणा के आईपीएस अधिकारी रवि शर्मा से भी शिवानी का परिचय राकेश ने ही करवाया था। बाद में राकेश भटनागर ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि शिवानी और रवि शर्मा के बीच दोस्ती हद से ज्यादा बढ़ गई थी और उनका जो बेटा है वह भी असल में रवि शर्मा का है। डीएनए जांच से यह साबित हो चुका है।

शिवानी जब इंडियन एक्सप्रेस में आईं थीं तो ऊर्जा से भरी हुई लेकिन शर्मीली लड़की थीं। उस वक्त स्थानीय रिपोर्टिंग टीम में उसे दिल्ली नगर निगम और बाद में स्थानीय भाजपा कवर करने के लिए दिए गए थे। उसी दौरान रवि शर्मा ने उसे कुख्यात पनडुब्बी सौदे के कागज सौंप दिए और यह खबर छपने पर शिवानी को ब्यूरो में खोजी संवाददाता बना दिया गया। जल्दी ही वे प्रमुख संवाददाता बन गई जो मुख्य संवाददाता के बराबर का पद होता है।

रवि शर्मा शिवानी से अपनी दोस्ती के दिन को आजतक कोस रहे होंगे क्योंकि जल्दी ही उनका मोह भंग शिवानी से हो गया था। उधर, शिवानी पूरी तरह खिलाड़ी रवि शर्मा के प्रेम में डुब चुकी थी और उनसे शादी की जिद कर रहीं थीं। अपने पारिवारिक जीवन और इात को बचाने के लिए रवि शर्मा ने शिवानी की हत्या का इंतजाम कर दिया और कानून के रखवाले से अचानक अभियुक्त और फिर अपराधी बन गए।

जेल में लंबा समय बिताया रवि शर्मा ने कैरम खेलते हुए और टेबल टेनिस में जेल का चैम्पियन बनकर बिताया। संयोग से रवि शर्मा हरियाणा में पुलिस के चैम्पियन थे। हालांकि रवि शर्मा के खिलाफ कोई सीधा मामला सामने नहीं आया लेकिन परिस्तितिजन्य साक्ष्य इतने थे की उनका बचना मुश्किल था। अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है और आगे की अदालतों में मामला अभी लंबा खिंचेगा। एक और विडंबना ये है कि कत्ल के आरोप में जेल पहुंचने के सिर्फ एक सप्ताह पहले रवि शर्मा हरियाणा के जेल महानिरीक्षक के नाते तिहाड़ जेल का दौरा करने गए थे। वहां उनसे कैदियों ने खाना खाने के लिए कहा था मगर उन्होंने नहीं खाया था और तिहाड़ की कहावत है कि अगर कोई जेल की रोटी ठुकरा देता है तो जेल उसे वापस बुलाती है।

शाटगन कांग्रेस के दरवाजे पर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24मार्च-अभिनेता से राजनीति में आए शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा का मोह त्याग अब नई पार्टी की तलाश में लगे हैं, जहां उन्हें पार्टी अभिनेता नहीं बल्कि नेता समझा जाए।
शत्रुघ्न सिन्हा के राजनीति में आने करीब एक दशक से ऊपर बीत जाने के बाद भी वे आज तक अपने को एक राजनीतिक के रूप में स्थापित नहीं कर पाए हैं। उनका दर्द ये है कि आखिर कब उन्हें अभिनेता नहीं नेता माना जाएगा। इसी जमीन की तलाश में भाजपा से खार खाए शत्रु अब नई पार्टी तलाश रहे हैं। ऐसा अंदेशा है कि शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में शामिल होने का मन बना चुके हैं और इसी जुगत में वो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से मुलाकात कर अपनी स्थिति साफ कर दी है। हालांकि शत्रु ने इसे महज निजी मुलाकात बताया पर बीते दिनों की घटनाक्रम से यह संकेत साफ मिल रहा है कि श्री सिन्हा का मन अब भाजपा छोड़ किसी और पार्टी का दामन थामने का है।

शत्रुघ्न सिन्हा अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए पिछले कई दिनों में जुगाड़ में लगे हैं और वह उसी पार्टी में जाएंगे जहां उनको राजनीतिज्ञ का दर्जा मिलेगा। इस बात के संके त शत्रु ने कई बार दिया है मसलन जब शिवसेना के मुखपत्र सामना में राज ठाकरे ने बिहारियों पर जहरीला लेख लिखा था तब अपने परंपरागत बिहारी बाबू होने का दम भरने वाले इस सिने अभिनेता ने राज ठाकरे को भगवान का दर्जा देकर ठाकरे का अनुयायी बन कर सामने आया था। यह बात और है कि जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बिहारियों को दिल्ली से बाहर करने की वकालत की थी तो शत्रुघ्न सिन्हा ने श्रीमति दीक्षित को खरी-खरी सुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।

बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा को वर्षों से भाजपा का स्टार प्रचारक माना जाता था। लेकिन इस बार उन्हें पार्टी ने राज्यसभा का टिकट नहीं दिया। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने कभी कुछ नहीं समझा एनडीए सरकार में उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी बनाया गया पर शत्रु अपने मंत्रालय के बारे कम लालू और फिल्मी डायलाग बोलते ज्यादा नजर आए। अब शत्रु अपने हाल के बयान से बिहार में भी राजनीतिक जमीन खो चुके और वह राहुल गांधी से मुलाकात कर मुंबई में अपना राजनीतिक जमीन तलाशना चाहते हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस भी उन्हें मन ही मन गांधीवादी बैनर तले मुंबई में किसी सीट से राज ठाकरे के खिलाफ शंखनाद करने के लिए उतार सकती है।




आईएसआई और अकाली दल के खतरनाक रिष्ते
डेटलाइन इंडिया
अमृतसर, 24 मार्च- पाकिस्तान की आईएसआई भारत को तबाह करने के लिए हेरोइन भेजती है यह कोई रहस्य नहीं है। असली सनसनीखेज घोटाला तो तब हुआ जब आईएसआई के लिए तस्करी करने वाला पंजाब में राज कर रहे अकाली दल का एक नेता निकला।

यहां के राजासासी हवाई अड्डे के इतिहास में हेरोइन की सबसे बड़ी खेप कल पकड़ी गई और इसे ला रहे सज्जन युवा अकाली दल के बड़े नेता पुरूषोत्तम लाल सौंधी थे। लोक सभा के उपाध्यक्ष चरनजीत सिंह अटवाल के प्रिय पात्रों में से एक सौंधी से 23 किलो हेरोइन बरामद की गई है और उन्होंने पाकिस्तान के उन आईएसआई अधिकारियाें के नाम भी बता दिए हैं जो इस देषद्रोह में उनके साथी थे।

हेरोइन की बरामदगी और वह भी अकाली दल के नेता से, एनडीए के लिए यह मुद्दा बहुत भारी पड़ने वाला है। खासतौर पर इसलिए कि सिख धर्म में मादक पदार्थो के कारोबार पर सख्त पाबंदी लगी हुई है और पुरूषोत्तम सौंधी खुद अकाली दल की ओर से तस्करी विरोधी सेल के नेता भी हैं।

अमुतसर हवाई अड्डे से हेरोइन तस्करी होने की खबर दिल्ली पहुंची थी और यहां से राजस्व गुप्तचर विभाग के जासूसों की एक टीम ने अमृतसर जाकर छापा मारा। पुरूषोत्तम सौंधी की इंडिका कार में पीछे की सीट पर टीवी के बाक्स में रखी गई 23 करोड़ की यह हेरोइन मिली। कार चला रहा उसका साथी विट्टू अटवाल गायब हो गया। विट्टू लोक सभा उपाध्यक्ष के परिवार से ही है। पुरूषोत्तम सौंधी ने ष्षुरूआती पूछतांछ में बताया है कि महिलाओं के कपड़ों में छिपा कर यह हेरोइन उन्हें उनके पाकिस्तानी साथियों ने सौंपी थी और इसे कनाडा भेजा जाना था।

पुरूषोत्तम सौंधी ने बहुत मासूमियत से कहा कि वे पहले भी ऐसा करते रहे हैं और आईएसआई के जरिए होने वाली इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा पार्टी के खजाने में जमा करते रहे हैं। इसका दूसरा अर्थ यह है कि अपने को पाक साफ बताने वाली एनडीए का एक घटक दरअसल आईएसआई के पैसे से चलता है। पहले से की कंधार विवाद मे फंसे एनडीए के लिए यह झटका बहुत भारी है।

लोक सभा उपाध्यक्ष श्री अटवाल से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पुरूषोत्तम सौंधी अकाली दल के कार्यकर्ता जरूर हैं लेकिन उनके किसी आपराधिक काम से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। अटवाल ने कहा कि उनकी पार्टी कानून के रास्ते में बाधक नहीं बनेगी। यह बात अलग है कि डीआरआई के अधिकारियों ने जब पुरूषोत्तम सौंधी की कार रोकी थी तो स्थानीय पुलिस ने उनके काम में रोक लगाने की पूरी कोषिष की थी।


भाजपा का हाथ चौटाला के साथ
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च - भाजपा हरियाणा को तमिलनाडु बनाने पर तुली है। हरियाणा में इस बार भाजपा ने इनेलो प्रमुख ओम प्रकाष चौटाला से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया है। हरियाणा में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए भाजपा और इनेलो मिलकर आगामी चुनाव लड़ने की योजना तैयार की है। भाजपा के पाले में यह दूसरा स्वतंत्र संगठन आएगा इससे पहले एडीएमके पहले से ही षामिल है।

पाटर्ाी सूत्रों की माने तो भाजपा आलाकमान हरियाणा में कांग्रेस को खत्म करने के लिए कांग्रेस के विरोधियों को हर हालत में अपने पाले में मिलाना चाहती है। पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि कांग्रेस से किनारा काट चुके पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल और उनके पुत्र कुलदीप विष्नोई को अपने पाले में मिलाने के लिए भाजपा हर संभव प्रयास कर रही है। पार्टी को बेहतर तरीके से मालूम है कि भजनलाल और उनके पुत्र विष्नोई ने जिन सैनिको से अपनी सेना खड़ी की है वह कभी कांग्रेस के ही सिपाही हुआ करते थे। लेकिन कांग्रेस के निर्मोह ने उन्हें पार्टी से अलग रहने को मजबूर कर दिया।

जातिगत समीकरणो को देखा जाए तो भाजपा के साथ चौटाल या भजन लाल में से एक ही ष्षामिल हो सकता है क्योंकि चौटाला जाट समुदाय से हैं जिसमें अधिकतर राज्य पर ष्षासन किया है और पूरा बहुमत लेकर बैठे कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र ंसिंह हुड्डा भी इज्जतदार जाट परिवार से ही हैं। उधर भजन लाल विष्नोई वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भले ही बहुसंख्यक नहीं हो फिर भी भजनलाल ने इसे ष्षक्तिषाली अवष्य बना दिया है। हाल ही में हरियाणा में जाट राजीति के आयामों में लोकदल के चौधरी अजीत सिंह भी दिलचस्पी दिखाने लगे हैं लेकिन पाले बदल बदल कर कुख्यात हो गए चौधरी चरण सिंह के बेटे पर कोई भी विष्वास करने को तैयार नहीं है।

कांग्रेस से भजन लाल और कुलदीप के निकलने से यहां की राजनीति में नया तूफान आने वाला है । कांग्रेस से इस्तीफा देने के कारण यहां पर एक लोकसभा सीट और चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए यह सीटे हथियाना ष्षेर की मांद में हाथ डालने के बराबर होगी। उधर हरियाणा के राजनीति के जानकारों का कहना है कि चूंकि यह सीटे भजन लाल और उसके बेटे को अगर दोबारा मिलती हैं तो हरियाणा की आगे की राजनीति में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा।


राज्यसभा में अंबानी के मोहरे
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च - मुकेष और अनिल अंबानी में एक अंतर साफ है। अनिल अंबानी जहां अपने समाजवादी दोस्तों के साथ सीधे राजनीति में आए और राज्यसभा में पहुंच गए, वहीं मुकेष अंबानी ने अपने पिता धीरू भाई की तर्ज पर संसद में अपने मोहरे बिठाने को प्राथमिकता दी है।

अगले महीने राज्यसभा में मुकेष अंबानी के समर्थित और प्रायोजित कम से कम छह सांसद होंगे जिनमे से तीन को तो सीधे सीधे रिलायंस का उम्मीदवार कहा जा सकता है। संसद में अपने प्रतिनिधि पहुंचाने का एक सीधा अर्थ यह होता है कि सरकार की नीतियों के निर्माण पर असर डाला जा सके। स्वर्गीय धीरू भाई अंबानी सांसद लाबी काफी बड़ी थी।

अनिल अंबानी ने खुद राज्यसभा में आकर और वह भी प्रतिपक्ष की ओर से, अपने औद्योगिक हितों के लिए खतरा मोल लिया है। मुकेष अंबानी ज्यादा सधे हुए खिलाड़ी निकले उन्होंने रिलायंस बोर्ड के निदेषक वी के त्रिवेदी के अलावा रिलायंस समूह के कारपोरेट मामलों के मुखिया परिमल नाथवानी को मैदान में उतारा और अपनी आर्थिक ताकत से उनका संसद में पहुंचना सुनिष्चित कर दिया। इस अलावा भूतपूर्व कैबिनेट सचिव एम के सिंह रिलायंस समूह के सलाहकार भी हैं और बिहार से जनता दल युनाइटेड के टिकट पर लड़ रहे हैं।

नाथवानी ने तो झारखंड पहली बार देखा ही तब जब वे राज्यसभा के लिए नामांकन भरने रांची पहुंचे। मुकेष अंबानी ने उनके लिए भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री षिबू सोरेन से हाथ मिलाया और उनके झारखंड मुक्ति मोर्चा की मदद ले ली। नाथवानी की उम्मीदवारी से मोर्चा में दरार पड़ गई है।

पहले से ही राज्यसभा सदस्य रह चुके विवादस्पद वकील आर के आनंद यहां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। श्री आनंद ने दिल्ली में कहा कि जब नाथवानी बाहर से आकर ग्यारह विधायकों का समर्थन ले सकते हैं तो मै तो झारखंड से पहले भी चुना गया हूं और यहां की राजनीति को अच्छी तरह जानता हॅू। आर के आनंद षिबू सोरेन से नाराज हैं क्योंकि उनके अनुसार सोरेने ने विधायकों को बेच दिया है। सोरेन के वकील रह चुके आनंद बहुत वीरोचित उत्साह से भरकर कहते हैं कि झारखंड की जनता और यहां के जनप्रतिनिधि उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। उन्हाेंने कहा कि रिलायंस लोकतंत्र नहीं खरीद सकता है।


मुषर्रफ की चार्जषीट तैयार

डेटलाइन इंडिया
इस्लामाबाद , 24 मार्च - पाकिस्तान की नई सरकार ने परवेज मुषर्रफ के खिलाफ 33 आरोपों की एक सूची के तौर पर अभियोग पत्र तैयार कर लिया है और इनमें से कम से कम चार आरोप ऐसे है जिनमें उन्हें उम्र कैद से लेकर मौत की सजा भी हो सकती है।

मुषर्रफ ने आफतो का अंदाजा पहले से ही लगाया था और इसलिए संविधान में संसोधन करके अपने आप को हर कानूनी दायरे से बाहर करवा लिया था। पाकिस्तान की संसद ष्षपथ के दौरान ही कह चुकी कि वह मुषर्रफ के संविधान की बजाय पाकिस्तान के मूल संविधान को मानेगी। मूल संविधान में प्रेसीडेंट पर संसद में महाभियोग चलाया जा सकता है और परवेज मुषर्रफ की त्रासदी यह है कि उन्होंने देष के सभी जजों को वर्खास्त करके न्याय पालिका को अपना इतना बढ़ा ष्षत्रु बना लिया है कि कोई वकील इस महाभियोग के दौरान उनकी मदद करने भी नहीं आएगा।

मुषर्रफ पर जो सबसे बड़ा और गंभीर आरोप है वह नबाज ष्षरीफ का तख्ता पलटने को लेकर सेना का अवैध इस्तेमाल करने को लेकर है। इसे संविधान के मूल संविधान के अनुसार इस आरोप में मौत की सजा भी हो सकती है। इसके अलावा तालिवानों को समर्थन देने के मामले में भी मुषर्रफ गले गले तक फंसे हुए हैं और पाकिस्तान के खजाने से तालिबानों को मदद देने के बारे में उनके खिलाफ सारे सबूत मौजूद हैं।

परवेज मुषर्रफ ने इसी डर के कारण नई सरकार बनने की भूमिका सामने आते ही सबसे पहला बयान यही दिया कि वे आने वाली सरकार के साथ हर तरह से सहयोग करेंगे और प्रेसीडेंट की मार्यादा मेंं रहते हुए उसके हर फेसले को स्वीकार करेंगें। यह छह महीने पहले की मुषर्रफ की जुबान नहीं है जब वे कहा करते थे कि मुषर्रफ का मतलब ही पाकिस्तान है। इंदिरा इज इंडिया की तर्ज पर बयान देने वाले मुषर्रफ यह भूल गए थे कि उन्हें इंदिरा गांधी के तरह कभी कोई सा्फ जनादेष नहीं मिला।

नई सरकार में फिलहाल मुषर्रफ के खिलाफ मामले तो बनाए हैं लेकिन उनके सुरक्षा इंतजामों के किसी भी किस्म की कमी करने का अभी कोई फैसला नहीं किया गया है। एक सबसे दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता आसिफ अली जरदारी से मुषर्रफ ने मिलने की इच्छा जाहिर की है अभी जरदारी ने इसका कोई जबाव नहीं दिया है लेकिन साफ जाहिर है कि मुषर्रफ हर तरफ से हताष हो चुके हैं और हर संभंव सुरक्षा कवच खोज रहे हैं।




क्रिकेट के षिखर पर कानूनी संग्राम
डेटलाइन इंडिया
मुंबई , 24 मार्च - क्रिकेट का खेल अब हवालात तक पहुंचता नजर आ रहा है। बीसीसीआई के भूतपूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमियां पर 1996 में आयोजित विष्वकप के दौरान लगभग तीन करोड़ रूपए की हेराफेरी करने का आरोप है और बोर्ड के अनुसार पुलिस को इससे संबंधित सारे दस्तावेज सौंप दिए गए हैं। जगमोहन डालमियां ने जबावी हमले में कहा है कि उनके पास वर्तमान बोर्ड के कई सौ करोड़ के घपले के कागज हैं।

डालमियां अपने कागज जब दिखायेंगे दिखायेेंगे लेकिन मुबंई पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान ष्षाखा ने इन दस्तावेजों के आधार पर अदालत से डालमियां के खिलाफ चार्जषीट दाखिल करने की अनुमति मांगी है। वर्तमान बोर्ड ने मार्च 2006 में डालमियां के खिलाफ अमानत में खयानत, जालसाजी और धोखाधड़ी की एफआईआर लिखवायी है।
डालमियां के साथ बोर्ड के भूतपूर्व खजांची एस के नायर और किषोर रूंगटा और ज्योति वाजपेई के अलावा डालमियां के निजी सहयोगी किषन चौधरी के नाम भी अभियुक्तों की सूची में हैं।


ज्गमोहन डालमियां ने एफआईआर दर्ज होते समय ही इन आरोपो को गलत बताया था और इसे प्रतिषोध की कार्रवाई करार दिया था। पिछले साल कोलकाता के क्रिकेट बोर्ड चुनाव में हिस्सा लेने के लिए वहां के उच्च न्यायालय ने कार्रवाई को स्थगित कर दिया था और डालमियां ने बोर्ड के खिलाफ दुष्मनी निभाने के लिए कानून इस्तेमाल करने का आरोप भी अदालत में लगाया था।

इस झगड़े की जड़ में ललित मोदी हैं जिन्हें कानून से सबसे ज्यादा खतरा है। अमेरिका में नषीली दवाओं के धंधे और अपहरण के आरोप में ललित मोदी के खिलाफ मामला साबित हुआ था और उन्हें दस साल की सजा सुनायी गई थी। इसके बाद भारी जुर्माना भरने पर ललित मोदी को इस ष्षर्त पर छोड़ा गया कि वे अमेरिका में ही रह कर अच्छे आचरण का प्रमाण देंगे। ललित मोदी लेकिन भारत भाग आए और उनके खिलाफ अमेरिका में अब भी वारंट मौजूद है। इसलिए श्री मोदी पूरी दुनिया घूमते हैं लेकिन अमेरिका नहीं जाते।





अरबों का खर्च, बिजली लापता
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र्र्र्
नई दिल्ली,24 मार्च-बिजली की समस्या का निदान करने के लिए सरकार आये दिन तरह-तरह के इंतजाम करती है पर लालफीताशाही और राजनीतिक अड़चनों की वजह से अंत में मामले का पता चलता है कि रुपये खर्च तो हुए करोड़ पर काम जहां से चला था अभी वहीं पर खड़ा है। कुछ यहींहाल ओबरा की सिर्फ ढाई सौ मोगावाट क्षमता की इकाइयों को चलवाने को लेकर है।
इस इकाइ को चलवाने के लिए अब शासन और राज्य विद्युत उत्पादन निगम के अधिकारी जी-जान से लगे हुए हैं। दरअसल, इस इकाइ को शुरू करने के लिए रुस की एक फर्म जिम्मा दिया गया था लेकिन समय सीमा समाप्त होने के कारण्ा और सरकारी दखलअंदाजी से त्रस्त यह फर्म पांच साल में 160 करोड़ खर्च कर अपना समयसीमा समाप्त कर चुकी है और अब वह अपना बोरिया बिस्तर समेट रही है। इस 160 करोड़ रुपये के खर्च के बवजूद आलम यह है कि इसके अंतर्गत आने वाली इंकाइयां जस की तस वाली स्थिति में हैं। अब इस स्थिति से खार खाई राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने रूसी कंपनी पर हर्जाने का दावां ठोंकने की जुगत में है।

अब इस काम को जल्द से जल्द पूरा करने का जिम्मा भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (भेल) को सौंपने पर विचार किया जा रहा है। अपनी उम्र पूरी कर चुकी ओबरा बिजलीघर की 50-50 मेगावाट क्षमता की पांच इकाइयों के जीर्णोध्दार का काम 2003 में रूस की कंपनी टेक्नोप्रोम एक्सपर्ट को सौंपा गया था। इस पर तकरीबन 335 करोड़ रुपये व्यय अनुमानित था। दो चरणों में इकाइयों का जीर्णोध्दार कराया जाना था और 2007 तक सभी पांचों इकाइयों को चालू कर दिए जाने का लक्ष्य रखा गया था। बीच में कई बार इकाइयों के जीर्णोध्दार को लेकर कंपनी और उत्पादन निगम के बीच विवाद भी हुआ। करीब 160 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद इस साल जनवरी में जैसे-तैसे 50 मेगावाट की एक नंबर इकाई चालू की गई, लेकिन कुछ ही दिन बाद वह ठप हो गई। इतनी ही क्षमता दो नंबर इकाई का 95 फीसदी काम पूरा हो चुका था इसी बीच 15 मार्च को कंपनी का करार रद्द कर दिया गया।

सूत्रों के अनुसार करार की शर्त है कि समय से काम पूरा न होने पर कंपनी उत्पादन निगम को क्षतिपूर्ति करेगी। चूंकि टेक्नोप्रोम एक्सपर्ट अपना ओबरा से कामकाज समेटने में जुटी है इसलिए उसके ऊपर भुगतान किए कए 160 करोड़ रुपये के अलावा इतने दिनों तक उत्पादन न होने की वजह से हुए नुकसान की भरपाई का दावा ठोंकने की तैयारी की जा रही है। इसके साथ ही जीर्णोध्दार का काम भेल तथा कोटा स्थित इंस्ट्रूमेंटेशन लिमिटेड को सौंपने पर भी विचार किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि जितना श्रम और पैसा 50 मेगावाट की इकाइयों के लिए लगाया जा रहा है उतने में नई इकाइयां लगाई जा सकती हैं। चूंकि ये इकाइयां कमाई का अच्च्छा जरिया हैं इसलिए इनके जीर्णोध्दार में अफसरों की ज्यादा दिलचस्पी है।

जब फाइलों में समार्र्र् गईं गंगा नदी
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हरिद्वार, 24 मार्च-सरकारी बाबूगीरी से पहले आम आदमी त्रस्त था अब पवित्र गंगा भी उनके कारगूजारियों से अपना रंग बदलने को मजबूर हो गई हैं। बाबूओं पर होली का खुमार ऐसा छाया की वह गंगा की अविरल धारा पर ही अपनी कलम चला दी और दूसरों को पानी देने वाली गंगा हरिद्वार में खुद बूंद-बूंद को तरस गई।

हरिद्वार में रविवार सुबह अचानक गंगा सूख गई। किसी को भी समझ नहीं आया कि आखिर गंगा में जल लगातार कम होते-होते इस कदर क्याें घट गया कि आचमन तक करना मुश्किल हो गया। बाद में पता चला कि टिहरी बांध अफसराें और कर्मियाें पर होली का खूमार ऐसा छाया कि भागीरथी को बंद कर दिया था, जिससे रविवार सुबह हरिद्वार में गंगा पानी मांगती नजर आई। सिंचाई विभाग से मिली जानकारी के अनुसार भागीरथी नदी पर बने टिहरी बांध के अफसराें, कर्मियाें ने होली मनाते हुए वे फाटक बंद कर दिए, जो भागीरथी के जल को देवप्रयाग की ओर भेजते हैं। इसका असर यह हुआ कि ऋषिकेश, हरिद्वार तक केवल अलकनंदा का जल ही पहुंचा। गंगा में चूंकि अधिकांश जल भागीरथी का है, अत: सभी जगह गंगा का जल स्तर तक रविवार तडके से घटना शुरू हो गया।

एसडीओ कैनाल केपी सिंह ने बताया कि इस बात की सूचना टिहरी से हरिद्वार प्रशासन को दी भी नहीं गई। पता तब चला जब हरकी पैडी एकाएक जल विहीन हो गई। तीन दिनाें का अवकाश होने के कारण बिना किसी पर्व हरिद्वार में लाखाें यात्रियाें का आगमन होली के अवसर पर हो गया था। रविवार के दिन और अधिक भीड धर्मनगरी में आ गई। रविवार को चूंकि पुलिस की होली भी थी, अत: तमाम वाहन हरकी पैडी के आसपास जमा हो गए। सडकाें पर कहीं भी पुलिस कर्मी नजर नहीं आ रहे थे। हरकी पैडी पर उमडे लाखाेंं श्रध्दालुआें को गंगा के आचमन तक के लिए तो तरसना ही पडा। उधर, खडखडी श्मशान घाट पर जहां केवल अविछिन्न धारा का जल आता है, पानी की बूंद तक नसीब नहीं हुई। श्मशान घाट आए श्रध्दालुआें को भारी कठिनाइयां उठानी पडी। अब सरकारी बाबूगीरी का यह नमूना अपने आप में विचित्र है हालांकि सरकार को इस बाबत सूचित कर दिया है और शासन इस पर क्या कार्रवाई करेगी इसपर मंथन जारी है।

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नई दिल्ली, 24 मार्च- उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर हो रहे उप चुनावों में जरिए एक बार फिर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की साइकिल और मायावती की हाथी आपस में टकराने वाली है हाथी साइकिल का दिल्ली जाने के लिए रोकने में लगी है तो साइकिल हाथी को रोकने में लगी है। दोनों दल इस उप चुनाव को दिल्ली पहुंचने का माध्यम मान रहे हैं।
प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले लगभग यह आखिरी चुनाव है इसलिए सपा और बसपा इसे आम चुनाव से पूर्व सेमीफाइनल मान कर चल रही है और अपना पूरा जरो लगा कर लोकसभा चुनावों की तैयारी का जायजा और केंद्र की सत्ता में अपनी हिस्सेदारी का दावा ठोंकने के लिए फूल एण्ड फाइनल के मूड में है। सपा नेतृत्व का मानना है कि अगर उप चुनाव में बसपा को पटकनी मिलती है तो उसके दिल्ली जाने के मंसूबों को निश्चित ही झटका लगेगा, साथ ही सपा की संभावनाएं भी प्रबल होंगी। पार्टी के जबलपुर सम्मेलन के बाद सारे नेता इन्हीं चुनावों में जुटेंगे। वहीं बसपा की पूरी कोशिश इन चुनावों के जरिए लोकसभा चुनाव के लिए अपनी दावेदारी और मजबूत ढंग से पेश करने की है। मायावती का मंसूबा है चिघाड़ मारता हुआ उनका हाथी पूरे देश में अपना जनाधार मजबूत कर दिल्ली के सिंहासन के लिए अपने घर को दस जनपथ की दर्जा दिला दे।

सपा बसपा के बीच छीड़े घमासान से विचलित भाजपा और कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि दोनों दल अधिसूचना जारी होने के एक हफ्ते बाद तक अपने सारे प्रत्याशियों के नाम तक घोषित नहीं कर सके हैं। प्रदेश में लोकसभा की दो और विधानसभा की तीन सीटों पर उपचुनाव हो रहा है। खास बात यह है कि करनैलगंज और मुरादनगर विधानसभा सीट को छोड उपचुनाव वाली सभी सीटों पर बसपा का कब्जा था। लेकिन आजमगढ और खलीलाबाद पर जिन्होंने (रमाकांत यादव व भालचंद्र यादव) बसपा का परचम फहराया था वह अब बसपा के विरोध में हैं। सबसे दिलचस्प मुकाबला आजमगढ में होना है जहां सपा ने पूर्व काबीना मंत्री बलराम यादव को प्रत्याशी बनाया है और बसपा ने अकबर अहमद डंपी को टिकट दिया है। डंपी एक बार 1998 में बसपा प्रत्याशी के तौर पर यहां से चुनाव जीत चुके हैं।

आक्रामक तरीके से चुनाव लडने वाले डंपी हर तरह से सक्षम हैं। प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार है। पर लोगों का कहना है कि 1998 में चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इस इलाके में मुड़कर नहीं देखा। इस बात का उन्हें थोडा नुकसान हो सकता है। अपेक्षा की जा रही थी कि सपा इस सीट पर रमाकांत यादव को अपना प्रत्याशी बनाएगी पर अपेक्षाओं को लगाम देते हुए सपा ने पूर्व काबीना मंत्री बलराम यादव को प्रत्याशी बनाया है। सपा नेताओं का तर्क है कि रमाकांत की तुलना में बलराम जनता में ज्यादा स्वीकार्य हैं। पर रमाकांत यादव अगर निर्दलीय भी मैदान में उतरते हैं तो सीधा असर बलराम पर ही डालेंगे। खलीलाबाद से सपा ने पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर जीतने वाले भालचंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है। भालचंद्र ने अपनी राजनीति सपा से ही प्रारंभ की है पर मुलायम सिंह यादव से नाराज होने के कारण उन्होंने पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर लडा और जीते। इस बार बसपा प्रत्याशी के तौर पर उनके सामने हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म नारायण तिवारी उर्फ कुशल तिवारी हैं। हर स्तर पर सक्षम होने के बावजूद कुशल विगत समय में लोकसभा के दो चुनाव हार चुके हैं। नतीजे कुछ भी हों पर इतना तय है कि बसपा प्रत्याशी होने के कारण कुशल चुनाव मजबूती से लडेंगे।
जबकि गोंडा जिले की करनैलगंज सीट पर बसपा ने कांग्रेस से चुनाव जीतने वाले लगा भैया को इस्तीफा दिलवाकर उनकी बहन को पार्टी प्रत्याशी बनाया है, वहीं सपा ने पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है। योगेश पिछली बार भी बसपा से ही जीते थे पर मुलायम सिंह की सरकार बनने के दौरान वह पाला बदल कर सपा खेमे में शामिल हो गए थे। लोगों का कहना फिलहाल यही है कि जो व्यक्ति कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत सकता है उसे बसपा का सहयोग मिल जाए तो उसको परास्त करना काफी मुश्किल होगा। बिलग्राम सीट बसपा विधायक उपेंद्र तिवारी के निधन के कारण रिक्त हुई थी। बसपा ने उपेंद्र की पत्नी को इस उम्मीद के साथ टिकट दिया है कि उसे सहानुभूति का भी लाभ मिलेगा। वहीं सपा ने पुराने विधायक विश्राम सिंह यादव को टिकट दिया है। सपा और बसपा दोनों ने इस इलाके में एक महीने पहले से कवायद प्रारंभ कर दी थी। तय है कि मुकाबला कड़ा होगा। मुरादनगर सीट निर्दल विधायक राजपाल त्यागी के इस्तीफे से रिक्त हुई है। राजपाल इस बार बसपा प्रत्याशी हैं नतीजे कुछ भी हों पर लोगों का अभी यही कहना है कि जो व्यक्ति कांग्रेस और निर्दल प्रत्याशी के तौर पर जीत सकता है उसे बसपा के टिकट पर हरा पाना बहुत ही मुश्किल होगा।

जेल की बच्ची, जेल में मायका
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आगरा, 24मार्च-एक बच्ची जेल में ही पैदा हुई थी। उसकी शादी जेल में ही हुई थी। जब उसे मायके जाकर होली मनाने के लिए कहा गया तो वह अपनी होली जेल में ही जाकर मनाई।

सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुंवरपाल की बेटी मीना ने शादी के बाद पहली होली अपने मायके (सेंट्रल जेल) में मनायी।अलीग़ढ के सजायाफ्ता कैदी कुंवरपाल ने लाड़िली मीना की शादी विगत 24 फरवरी को सेंट्रल जेल में अलीग़ढ के संदीप से की थी। जेल परिसर के मंदिर में आयुक्त सीताराम मीना की देखरेख में स्टाफ ने शादी की रस्म पूरी करवायी। परंपरा के अनुसार शादी के बाद पहली होली लडकी अपने मायके में मनाती है। होली पर वह वहीं जाती है जहां से शादी होती है। मीना अपने पति संदीप के साथ होली से एक दिन पहले जेल पहुंची।

यहां दोनों नव दंपत्ति ने कुंवरपाल से मुलाकात की। जेल के बाहर एक सिपाही के क्वार्टर में दोनों को ठहराया गया। ज्ञात हो कि कुंवरपाल को जेल प्रशासन ने शादी के लिए पैरोल पर रिहा नहीं किया था। उसकी पत्नी विकलांग है। इस कारण जेल प्रशासन ने मीना की शादी जेल परिसर से करायी थी।

सीमा के लोगों को करोड़ो की मदद
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जम्मू, 24 मार्च-खौड़ हलके के 6072 सीमांत विस्थापितों के प्रति परिवार 25 हजार रुपये की आर्थिक मदद मुहैया कराई गई। इसके खौड हलके के 6072 विस्थापित परिवाराें को प्लाट और प्रति परिवार 25000 रुपये की आर्थिक मदद मुहैया करा दी गई है। सीमांत विस्थापिताें को सुरक्षित स्थान पर मकान बनाने लिए आर्थिक सहायता की दूसरी किस्त भी जल्द मिलेगी। शनिवार को मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने खौड़ हलके में सैकडाें लोगाें के बीच विस्थापिताें को प्लाटाें के दस्तावेज और पच्चीस-पच्चीस हजार रुपये के चेक बांटे। राज्य विधानसभा के स्पीकर और खौड़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक तारा चंद के मुताबिक सीमांत विस्थापिताें के बीच 15 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की जा चुकी है। बकाया राशि का भुगतान भी जल्द किया जाएगा। उन्हाेंने बताया कि विस्थापिताें को अखनूर तहसील में बनाई गई कालोनी में मकान बनाने के लिए 25-25 हजार रुपये मुहैया कराए गए हैं। मुख्यमंत्री ने अपने हाथाें से इसका शुभारंभ किया। तारा चंद ने बताया कि उन्हाेंने खौड़ में इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत तीन हजार लोगाें को छत मुहैया कराने की मांग भी सीएम से की है।

मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने इस मौके पर सैकडाें लोगाें को संबोधित करते हुए कहा कि कारगिल संघर्ष के दौरान कांग्रेस ने ही दूसरे राज्याें से मदद लेकर विस्थापिताें की मदद की थी। पार्टी ने विस्थापिताें के साथ जो भी वादे किए उन्हें पूरा करके दिखाया है। विधानसभा के स्पीकर तारा चंद, सांसद मदन लाल शर्मा और विधायक शाम शर्मा ने भी इस मौके पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया। स्वास्थ्य एवं मेडिकल शिक्षा मंत्री पंडित मंगत राम शर्मा ने मौजूद लोगाें से विधायक को दोबारा विजयी बनाने आग्रह किया।

मुठभेड़ मौत मामले में अदालत जागी
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जम्मू, 24 मार्च-एक जून, 1999 में हुए एनकाउंटर में मारे एक अज्ञात आतंकी के मामले में जारी ट्रायल को सुप्रीम कोर्ट ने जिला सत्र न्यायालय जम्मू में स्थानांतरित करने का निर्देश जारी किया है। यह एनकाउंटर बडगाम के निकट पखुरपुर इलाके में हुआ था। इस मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर बडगाम स्थित सेशन कोर्ट में वर्ष 2003 से सुनवाई जारी थी।

मामले में पुलिस की एसओजी टीम में शामिल एसआई बारिस गिल और इशपाल सिंह समेत तीन लोगाें को आरोपी बनाया गया है। ाइम ब्रांच द्वारा इन लोगाें के खिलाफ आरपीसी की धारा 302 और 120-बी के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भान और जस्टिस दलवीर भंडारी ने इस मामले में आरोपी बनाए गए इशपाल सिंह के पिता जनक सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया। याचिका में जनक सिंह ने बडगाम में उनके बेटे से संबंधित मामले की पैरवी के लिए वकीलाें द्वारा पेश होने से इनकार करने को आधार बनाया था।

एक जून, 1999 को गुप्त सूचना के आधार पखुरपुर में एसओजी की टीम ने तलाशी अभियान शुरू किया। इस दौरान हुए एनकांउटर में एसओजी के एक सदस्य को गोली लगी और एक हथियाराें के साथ एक अज्ञात व्यक्ति का शव बरामद किया गया। लेकिन मीडिया रिपोर्ट के आधार पर राज्य मानवाधिकार आयोग ने नोटिस लिया और इस एनकाउंटर में शामिल पुलिस कर्मियाें के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की हिदायत पुलिस को दी। बाद में मामले की जांच ाइम ब्रांच ने की और बीस सितंबर, 2003 को आरपीसी की धारा 302 और 120-बी के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था।

लंदन में बिका अनाथ भारतीय बच्चा
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लंदन, 24मार्च-जब अपनों का साया सर से उड़ जाए तो हमारे देश में रिश्तेदार आगे आकर मदद करते हैं पर एक भारतीय बच्चे मां-बाप के गुजर जाने के बाद उसके रिश्तेदार ने ही उसको बेच कर ब्रिटेन की सड़कों की खाक छानने को मजबूर कर दिया।

वह बच्चा ब्रिटेन में एक बस स्टॉप पर खडा मिला और उसे अंग्रेजी नहीं आती है। पुलिस का मानना है कि र्र्र्कोई तस्कर गिरोह बच्चे को ब्रिटेन लाया है। पुलिस ने बताया कि गुरिंदर सिंह नामक वह बच्चा सिख है और सिर्फ पंजाबी बोलता है। गुरिंदर ने पुलिस को बताया कि उसके चाचा ने उसे बस स्टॉप पर खडे रहने के लिए कहा और कहीं चले गए। पुलिस दुभाषिए के जरिए गुरिंदर से बातचीत कर रही है। उसके मुताबिक उसके माता-पिता का निधन हो चुका है। वह पिछले दो-तीन वर्षों से ब्रिटेन में है।

उसने कहा कि वह अपने चाचा के साथ तीन कमराें के एक फ्लैट में रहता था। उसने कहा कि उसके चाचा श्वेत हैं और उनकी उम्र तीस साल के आसपास है। वह साउथहॉल तक एक बस में अपने चाचा के साथ सफर करके पहुंचा था। साउथहॉल के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने कहा कि बडी हैरानी की बात है कि गुरिंदर को यह पता नहीं है कि वह कहां है और पिछले कुछ वर्षों से वह क्या कर रहा था। यह कोई मामूली घटना नहीं है। पुलिस इस बच्च्चे के परिवार की खोज में जुटी है। पुलिस ने लोगाें से अपील की है कि अगर गुरिंदर के बारे में उन्हें कोई जानकारी है तो पुलिस को बताएं। पुलिस अधिकारी इयान जेनकिंस ने बताया, जब वह हमें मिला तो बुरी तरह से थका हुआ था। यदि कुछ दिनाें तक उसका कोई रिश्तेदार सामने नहीं आया तो हम इसे मानव तस्करी का एक मामला मान लेंगे। हम उससे मंगलवार को भी पूछताछ करेंगे। हो सकता है वह अपने बारे में कोई जानकारी दे सके। वहीं इस पूरी घटना पर साउथहॉल के सबसे बडे गुरुद्वारे के जनरल सेटरी डॉक्टर परविंदर सिंह ने कहा, इस केस में सबसे अधिक शक तो उस गोरे व्यक्ति पर जा रहा है, जिसे यह बच्च्चा अपना अंकल बता रहा है। इस मामले की गहन जांच किए जाने की जरूरत है।

भज्जी के बचाव में आए लिटिल मास्टर
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मुंबई, 24 मार्च- भारत के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर जल्दी मुंह नहीं खोलते लेकिन जब खोलते हैं तो अपनी नपी-तुली बात से विपक्षी की गेंद सीमा रेखा के पार होती है। इसी अंदाज में गावस्कर ने इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया को आड़े हाथों लिया है। खासकर आस्ट्रेलिया में भज्जी पर लगे आरोप उन्हें नागवार गुजरे हैं।
आईसीसी किेट कमेटी के प्रमुख गावस्कर ने अपने कॉलम में के जरिए कहा है, 'वो समय अब बीत चुका है जब अंतरराष्ट्रीय किेट में इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया का दबदबा हुआ करता था। यहां तक वे अभी भी मीडिया में पक्षपात पूर्ण सलाह देने की कोशिश कर रहे हैं। वह आंख खोलकर सच्च्चाई को नहीं देख सकते। विश्व किेट जानती है कि अंतरराष्ट्रीय किेट समुदाय में भारत की आवाज कमजोर नहीं रह गई है। वह एक आश्वस्त आवाज है जो जानता है कि किेट के लिए क्या अच्च्छा है और वह उसे हर हालत में पाएगा।

पूर्व कप्तान ने लिखा, 'अपने खिलाडी हरभजन सिंह पर लगाए गए नस्लभेदी आरोप का अगर भारत ने बचाव किया तो इससे इन लोगाें की चिंता क्याें बढ गई। दुनिया की सभी तकनीकें इस बात को साबित करने में नाकाम रही कि हरभजन ने ऐसा कुछ कहा था। इसके बाद इनकी तकलीफ और बढ गई। खास कर आस्ट्रेलियनों ने अपने ढंग से बयानबाजी की। जब खुद पर पडी तो पचा नहीं पाए।' भारत विश्व किेट का आर्थिक केंद्र बन चुका है।

आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में भी दूसरे पायदान पर पहुंच गया। 2010 में बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार का आईसीसी प्रमुख चुना जाना है। गावस्कर ने यह भी कहा, मैल्कम स्पीड के उत्तराधिकारी के होड में इंद्रजीत सिंह बिंद्रा के शामिल होने को ब्रिटिश और आस्ट्रेलियाई मीडिया ने अच्च्छी तरह पेश नहीं किया। बकौल गावस्कर, 'जब बिंद्रा के नाम की घोषणा की गई तब इंग्लैंड और आस्ट्रेलियाई मीडिया में हडबडी में कई लेख लिखीं गई। यह लिखा गया कि इससे भारत के हाथाें में काफी शक्ति आ जाएगी। भारत की प्रगति से चिंतित ये लोग इस बात को भूल गए कि कुछ साल पहले तक आईसीसी के दो प्रमुख शीर्ष पद आस्ट्रेलियाई ही कार्यरत थे।
मैं टीम इंडिया के इंतजार में हूं
जैक कालिस
वैसे तो हरेक दौरा रोमांच से भरपूर होता है लेकिन भारत के खिलाफ शुरू होने वाली आगामी टेस्ट सीरीज मेरे कैरियर की उन सीरिजों में से एक है जिसके लिए मैं अत्यधिक उत्साहित हूं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय किेट नई ऊंचाइयां छू रही है और वह आस्ट्रेलिया के साथ एक महीने पहले हुई टेस्ट सीरीज बांटने का हकदार थी। हम सभी ने भारत को विवादों पीछे छोड़ कर आस्ट्रेलिया की बादशाहत भी काबू में करते हुए देखा। आस्ट्रेलिया में भारतीय टीम ने बेहतरीन किेट खेली।
मेरे पास पिछले भारत दौरे पर खुशनुमा यादें नहीं है और पिछले दौरे पर तो हमें टेस्ट सीरीज गंवानी भी पडी। कानपुर में शानदार ड्रा खेलने के बाद ईडेन गार्डंस में हमें हार का सामना करना पडा और हम सीरीज 1-0 से हार बैठे। व्यक्तिगत तौर पर ईडेन गार्डंस (जिसे एशियाई किेट का मक्का कहा जाता है) में शतक मेरे कैरियर की सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक है। इस दौरे पर मैं यह देखने के लिए काफी उतावला हूं कि टेस्ट मैचों के लिए पिचें स्पिन या फिर तेज गेंदबाजों की मददगार बनाई जाएगी। भारत किस रास्ते पर जाने के लिए आकर्षित होगा? टीम में कुंबले के साथ हरभजन होंगे, क्या वे सूखी और धूल भरी पिच पर मैच जिताऊ साबित होंगे? या इशांत शर्मा के 'आगाज' के बाद बनी परिस्थितियों के बीच भारत श्रीसंत और इरफान पठान के साथ तेज गेंदबाजों से ज्यादा विकेट हासिल करने की उम्मीद करेगा।

जहां तक मेरा अनुमान है कि भारत अपने स्पिन आमण और अनुभव पर ध्यान केंद्रित करेगा जबकि दक्षिण अफ्रीका की ताकत उसका तेज गेंदबाजी आमण है। डेल स्टेन और मोर्ने मोकेल अफ्रीकी टीम के नए एलेन डोनाल्ड और शॉन पोलाक हैं और उनके साथ निस्संदेह वर्तमान समय के महान तेज गेंदबाज मखाया एंटिनी। यदि उनके पास हाल में समाप्त हुए बांग्लादेश दौरे जैसी स्विंग रही तब हम शुरुआत में ही कुछ विकेट हासिल कर लेंगे। इस सीरीज का एक अन्य रोमांचक पहलू गैरी कर्स्टन और पैडी अपटन की विपक्षी ड्रेसिंगरूम में मौजूदगी होगी। हाल में कर्स्टन ने कहा था कि वह किसी खास खिलाडी के खिलाफ बहुत प्रभावशाली योजना नहीं बना पाएंगे क्योंकि 2004 में उनके रिटायर होने के बाद दक्षिण अफ्रीका टीम के ज्यादातर खिलाडी अब टीम में नहीं है लेकिन मैने किेट नहीं छोडी है और कर्स्टन मेरे खेल को अच्छी तरह से जानते हैं। हम दोनों ही केप टाउन में रहते हैं और वेस्टर्न प्रोविंस के लिए खेले हैं।

कर्स्टन का मेरे कैरियर में अहम योगदान हैं, खासतौर पर शुरुआती सालों में जब मैं शुरुआत कर रहा था। वह मेरे आदर्श और सलाहकार हैं और उसके बाद वह मेरे खास दोस्त बन गए। मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि जब मैं उन्हें टीम इंडिया की टी-शर्ट में देखूंगा तो किस तरह की प्रतियिा जाहिर करूंगा। लेकिन मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि वह किसी तरह प्रतियिा करेंगे क्योंकि वह पेशेवर हैं और परिस्थितियां संभालने में सक्षम हैं। मुझे आश्चर्य होगा यदि किसी दिन के खेल के बाद मैं उन्हें बीयर के लिए प्रस्ताव दूं और वह स्वीकार कर लें। जब कर्स्टन भारतीय टीम के कोच नियुक्त हुए थे तो मुझे काफी खुशी हुई थी। सबसे पहले जो विचार मेरे दिमाग में आया वह था कि कैसे पूर्व कप्तान हैंसी ोनिए हमेशा उनसे सचिन और अजहरुद््दीन की बगेबाजी का लुत्फ उठाने के लिए कहते थे। अब जितना हमारे गेंदबाज परेशान होंगे, कर्स्टन को उतना अधिक मजा आएगा।

अभी कुछ दिन पहले ही महेंद्र सिंह धोनी के उस बयान ने सीनियर्स को काफी तकलीफ पहुंचाई होगी, जिसमें उन्हाेंने कहा था कि आस्ट्रेलिया में उन्हीं के कहने पर वन-डे टीम का चयन किया गया था। जिसका साफ मतलब यह निकाला गया कि वह पूर्व कप्तान राहुल द्रविड और सौरव गांगुली का पत्ता साफ हुआ। अब टीम दक्षिण अफ्रीका से भिडने के लिए तैयारियाें को आखिरी रूप देने में जुटी है। कप्तान अनिल कुंबले जूनियर्स और सीनियर्स के बीच तालमेल बनाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं। उन्हाेंने कहा कि टीम में जूनियर्स और सीनियर्स जैसा कोई बंटवारा नहीं है। टीम एक इकाई की तरह है। सभी खिलाड़ियाें की अपनी भूमिका है और सब एकजुट होकर अभ्यास कर रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीन मैचाें की टेस्ट सीरीज 26 मार्च से शुरू होनी है। इस पर कप्तान कुंबले का मानना है कि घरेलू सीरीज होने का फायदा होने के बावजूद भारत को दक्षिण अफ्रीकी से कडी चुनौती मिलने वाली है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि मौसम भी इस सीरीज में रंग में भंग का काम नहीं करेगा। नए कोच गैरी कर्स्टन के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कुंबले ने कहा, 'पिछली बार जब दक्षिण अफ्रीकी यहां दो मैचाें की टेस्ट सीरीज खेलने यहां आएं थे तो उन्हाेंने उम्दा प्रदर्शन किया था। कानपुर में हम पहला टेस्ट ड्रा कराने में कामयाब रहे जबकि कोलकाता में दूसरा टेस्ट मुश्किल से जीते। उनकी टीम में कुछ महान खिलाडी हैं और वे बार-बार खुद को साबित कर चुके हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में जीत दर्ज कर उन्हाेंने दिखाया कि उपमहाद्वीपीय क्षेत्र में उनको हलके में लेना भूल होगी।

कुंबले श्रीलंका के ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन और आस्ट्रेलिया के शेन वार्न के बाद टेस्ट मैचाें में तीसरे सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। बतौर कप्तान कुंबले की यह दूसरी सीरीज है। बकौल कुंबले, 'हमें घरेलू सीरीज होने का फायदा मिलेगा। फिर भी यह सीरीज काफी चुनौतीपूर्ण है क्याेंकि दक्षिण अफ्रीका ने हमेशा ही हमारे खिलाफ बेहतर प्रदर्शन किया है।' यह पूछे जाने पर कि क्या आप दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में भी आस्ट्रेलिया दौरे के समान ही स्लेजिंग की उम्मीद करते हैं! इस पर भारतीय कप्तान का जवाब था, 'यह सीरीज स्लेजिंग के बजाय उम्दा किेट के लिए याद की जाएगी। मैं इसे सकारात्मक देख रहा हूं।'

क्या युवाआें ने अपने प्रदर्शन से सौरव गांगुली और राहुल द्रविड के वन-डे के कैरियर पर पर्दा डाल दिया है? इस सवाल पर बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार कन्नी काट गए और कहा कि वह चयन मामले पर दखल नहीं देना चाहते है और ये सब बातें प्रदर्शन पर निर्भर करती हैं। सीनियर खिलाड़ियाें ने ट््वंटी-20 टूर्नामेंट से अपना नाम वापस लेकर युवाआें के लिए रास्ता खोला। पवार ने कहा, 'सचिन तेंदुलकर मुझसे मिले थे और उन्हाेंने मुझसे बताया कि मेरी पीढी के खिलाडी ट््वंटी-20 के लिए फिट नहीं हैं। लिहाजा युवाआें को मौका दिया जाए।

' गांगुली और द्रविड की वन-डे टीम में वापसी की संभावना के बारे में उन्हाेंने कहा, 'मैं यह नहीं कह सकता कि उनमें वन-डे के लिए कितना किेट बाकी है अथवा नहीं। चयन मामले में मेरी दखलंदाजी भी नहीं है। इसका फैसला चयनकर्ताआें पर होता है। यहां भी चयनकर्ता ही फैसला ही लेंगे कि किसे मौका दिया जाए और किसे नहीं।'
पवार ने अपने बचपन के दिन को याद करते हुए कहा कि उनके पिताजी ने उन्हें किेट खेलने के लिए पांच रुपये दिए थे जबकि आज आईपीएल में खेलने के लिए महेंद्र सिंह धोनी की बोली छह करोड़ रुपये लगी है। हालांकि उन्हाेंने यह भी स्वीकार किया कि आईपीएल से मिलने वाली भारी भरकम रकम से देश के युवा किेटराें का कैरियर खराब नहीं होगा। बकौल पवार, 'यह पैसा युवाआें को स्थायित्व प्रदान करेगी और बढ़िया करने के लिए प्रेरित करेगी।'
(शब्दार्थ)
जैककालिस दक्षिण अफ्रीका के स्टार खिलाड़ी हैं

होली के बाद के विचार
शशि शेखर
इसे प्रौढ़ावस्था का सिंड्रोम कहूं या फिर अतीत की धुंधलाती यादाें का मोह? होली आते ही मन बेचैन होने लगता है। एक अजब-सी खुमारी मन को घेर उठती है। जी करता है। कुछ नया करूं। पर नया है कहां? महानगरीय सूनापन अंदर भी है और बाहर भी। त्योहार अब अखबाराें और टीवी की स्ीन पर सजे नजर आते हैं। बाजार सरसब्ज होने की खबरें आती हैं। पर मस्ती और रंग के त्योहार की एंद्रजालिक पौराणिकता एक मिथक की तरह हर साल दूर होती नजर आती है।

जब आप तक ये पंक्तियां पहुंचेेंगी, होली का हगा शांत हो चुका होगा। पर इन शब्दाें को सोचते-लिखते समय गहरी तनहाई के बीच होली हर ओर पसरी नजर आती है। मोबाइल हर कुछ देर में बज रहा है। तरह-तरह के एसएमएस नमूदार हो रहे हैं। कुछ में व्यंग्य है, तो कुछ में विद्रूप। कोई मस्ती की बात कर रहा है, तो कोई सुस्त नजर आ रहा है। ठंडाई पीने वालाें को मलाल है कि तन और मन को शीतलता प्रदान करने वाला उनका यह पारंपरिक पेय तामसी शराब से पिट चुका है। दिगी और आसपास 'ड्राइ डेज' शुरू होने से पहले 150 करोड़ रुपये की शराब बिक गई, जबकि ठंडाई का पूरे देश में बाजार सिर्फ 100 करोड़ का है। कुछ मन से बुढ़ाए लोग खुशी से इस तथ्य पर रोना-पीटना मचा सकते हैं

उन्हें इसमें भारतीयता का पतन भी नजर आ सकता है। वेलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे आदि नए-नए त्योहारों और उत्सवों से आजिज इन लोगों को हर समय भय सताता रहता है। वे कांपते रहते हैं। हमारी महान संस्कृति पर हमले हो रहे हैं। कहीं वह खत्म न हो जाए। यह भय पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी रगों में बहता आया है। ईसा से सैकड़ों साल पहले महर्षि वेदव्यास को आर्यों के पतन की चिंता होती थी। उनकी लेखनी ने पतन के तमाम उदाहरण्ा पेश करते हुए द्वंद्व की अनोखी गाथा रच डाली थी। लिप्सा, मोह, मद, आकांक्षा, अभिप्सा, जुगुप्सा, महाभारत में सब कुछ था। जो लोग आज के बाजारवाद को गरियाते नजर आते हैं, वे भूल जाते हैं कि बाजार स5यता के विकास के साथ ही शुरू हुआ। आदमीयत के उद्भव के साथ वह भी उठता और गिरता रहता है।
त्योहाराें की पवित्रता और अस्मिता का रोना रोते वक्त हम यह भी भूल जाते हैं कि यह यांत्रिकता का दौर है। मशीनाें ने हमारे जीवन को जितना सरल बनाया है, उतना ही दुरूह भी कर दिया है। एक समय था, जब हम अपने किसी प्रिय को देखने और उसकी आवाज सुनने के लिए तरसा करते थे। दूरियां भौगोलिक तौर पर उतनी विकराल नहीं थीं, जितनी दिक्कत उनको तय करने में होती थी। 'नौ दिन चले अढाई कोस' की रवायत वाले इस देश में हम त्योहाराें, पर्वों और खास मौकाें का इंतजार किया करते थे। इसीलिए ऐसे अवसर ग़ढे गए। जब लोग मिल सकें। इकट््ठा होकर सुख-दुख बांट सकें। अगर थोड़ी गहराई से देखें, तो यह वजह और आसानी से समझ में आती है। काल और देश के साथ-साथ हमारे यहां त्योहार और परंपराएं भी बदली नजर आती थीं। कभी सोचा है। उत्तर के भगवान गोरे क्याें हैं और दक्षिण भारत के ज्यादातर देवी-देवता किस वजह से गहरी रंगत लिए हुए हैं? महादेव की नगरी काशी की होली का रंग और उनकी ससुराल हिमालय की होली का ढंग एक-दूसरे से बिलकुल जुदा क्याें है?
एक समय था। जब केदारनाथ और बदरीनाथ जाने वाले लोग अपना यिा-कर्म खुद निपटाकर घर से निकलते थे। सात समंदर पार जाना तो जन्म-जन्मांतर का खेल नजर आता था। पर अब कब आप हवा में उडते हैं और कितनी दूरी किस कालखंड में तय कर लेते हैं, इसके मानक बदलते जा रहे हैं। इसी होली पर यांत्रिक आधुनिकता का अद््भुत नजारा देखने को मिला। आगरा में मेरे एक मित्र हैं। रिटायर हो चुके हैं। उनकी दो बेटियां और एक बेटे हैं। ये सारे के सारे विदेश में रहते हैं। दोनाें दामाद हिंदुस्तानी हैं, पर बहू रूसी।
कुछ दिन पहले उन्हें पोते की प्राप्ति हुई। वे दोनाें तत्काल विदेश नहीं जा सकते। क्या करें? विदेश में बैठे उनके बच्च्चाें ने सलाह दी कि वे वेब कैमरा खरीद लें। आनन-फानन में कंप्यूटर से कैमरा जोड़ लिया गया। अब ये दोनाें बुजुर्ग आगरा में बैठे-बैठे इस कैमरे के जरिये अपने नाती-पोते से बात करते हैं। स्ीन पर एक तसवीर उभरती है। कंप्यूटर से ही बच्च्चाें की किलकारियाें की आवाज आती है और हजाराें मील दूर से हैप्पी होली या हैप्पी दिवाली का आदान-प्रदान होता है। हम खुश हो सकते हैं। मॉडर्न तकनीक ने दूरियां घटा दी हैं। पर आगरा के आलीशान मकान में बैठे इस बुजुर्ग दंपति से पूछिए कि उनके लिए दूरियां घटी हैं या बढीं? खुद उनके बच्च्चे भी परदेस में जमकर कमा रहे हैं। खुशी है, तो बस इतनी कि पैसा आ रहा है। आज की व्यावसायिक दुनिया में अकेला मूल मंत्र है-चलते रहो। जो थम जाता है, वह खत्म हो जाता है। असुरक्षा बढ गई है और इसी ने लोगाें को आामक और जुझारू बना दिया है। परदेस में बैठे उन बच्च्चाें को होली या दिवाली की छुट््टी नहीं मिलती। आगरा में बैठे उनके मां-बाप अपनी तनहाई में चाराें ओर पसरी नीरवता को कोसते नजर आते हैं और धीरज धारण कर लेते हैं। उनके बच्च्चे इस दौर के बच्च्चे हैं। मुझे याद आती है वह उक्ति-चरैवति चरैवति, यानी चलते रहो, चलते रहो।
मतलब साफ है। हजाराें साल पहले भी यही युग धर्म था। जो चलता नहीं था, वह समाप्त हो जाता था। आज भी जो चलता नहीं है, उसे अलविदा कहना होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि टेक्नोलॉजी ने लोगाें को अपने से बांध लिया है। अब टेलीविजन को ही लें। इसने लोगाें को खुद से जोड़ा है या सामाजिक ताने-बाने को तोड़ डाला है? लोग अपने घराें में इस बुध्दू बक्से से चिपटे नजर आते हैं। उनकी दुनिया सिमट गई है। टीवी के सहारे वे दिन तो कट जाते हैं, जब काम करना होता है। पर छुटि््टयां या त्योहार फुर्सत के पुराने दिनाें की याद दिलाते हैं। अब तय आपको करना है। आप चरैवति चरैवति की परंपरा में ढलना चाहते हैं या भय की चादर ओढ़कर कांपने की कामना करते हैं? एक बात और। क्या आपने इस बार रंग खेला? हो सकता है। वह रंग भी चीन में बना हो। हमारी कामनाएं ही नहीं, रंगत भी सार्वदेशिक हो गई है। इस तेजी से बदलते दौर की परंपराएं भी रफ्तार से घट-बढ रही हैं। मन कितना भी अकुलाए, हमें उनका खैर मकदम करना चाहिए। (शब्दार्थ)
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)

डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च- हमारी सरकार अपने जासूसों के साथ किस तरह का व्यवहार करती है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने पाक सीमा पर खास मिशन पर काम कर रहे एक जासूस को लोकल पुलिस ने ही तस्करी के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया और इस मामले में उसकी संस्था गुप्तचर ब्यूरो ने उसे पहचानने से भी इंकार कर दिया।

वह देश को दुश्मनों के षड़यंत्र से बचाने निकला था पर उलटा जेल की सलाखों के पीछे अपने जिन्दगी के अहम 25 साल बिता कर कैद से आजाद हो गया है। 5 अगस्त 1983 को जासूस नमन सिंह शेखावत को रात को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। नमन सिंह की नियुक्ति राजस्थान में की गई थी। शेखावत के जीप से उस दिन 530 इलेक्ट्रानिक कैलकुलेटर, 19 ट्रांजिस्टर के साथ टेप और 1767 मीटर के सिंथेटिक फैबरिक बरामद हुए। जो कि पाकिस्तान की थी और इसकी कीमत करीब 19 लाख की थी। शेखावत ने तब कहा था कि वो इसे वाड़मेर के पास गागरिया गांव से बरामद किया है और इसे कस्टम विभाग को जांच के लिए सौंपने जा रहा है। आईबी के सब इंस्पेक्टर शेखावत का जो कुछ भी कहना था ठीक वहीं बात उसके जीप के ड्राईवर ने भी दुहराई। लेकिन पुलिस ने एक न सुनी और उनकी सर्विस रिवाल्वर जब्त कर उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत विदेशी एक्ट, आर्म्स एक्ट और कस्टम एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया। साथ ही उन पर तस्करी करने के लिए उकसाने का भी आरोप लगा।

हालांकि अंत में भारत के उच्च्चत्तम न्यायालय ने जासूस नमन सिंह को 25 साल बाद रिहा कर दिया है। लेकिन यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक ओर जहां भारत सरकार पाकिस्तान की जेल में कैद सर्वजीत सिंह को पहले फांसी के फंदे पर लटकने से बचाने की कवायद के बाद अब उसे पाकिस्तानी कैद से आजाद करवाने के लिए राजनीतिक और रणनीतिक पहलूओं को खंगाल रही है। वहीं दूसरी तरफ इस देश का जासूस सरहद पर सुरक्षा का जायजा लेते हुए षड़यंत्र का आरोप बता कर जेल की चार दीवारी के पीछे अपने जिन्दगी के 25 साल काटने पर मजबूर हो गया।

Sunday, March 23, 2008

ओम पुरी की एक सीमा भी है

ओम पुरी की एक सीमा भी है
डेटलाइन इंडिया
रायपुर, छत्तीसगढ़, 23 मार्च- फिल्म स्टार ओम पुरी ने निजी रिश्तों के नए समीकरण बना दिए हैं। वे अपनी भूतपूर्व पत्नी सीमा कपूर द्वारा राज्य के पर्यटन विभाग के लिए बनाए जा रहे एक वृतचित्र में सूत्रधार के तौर पर शूटिंग करने रायपुर पहुंचे और उनके साथ एक ही होटल में रुके।

यह बात इसलिए और ध्यान देने लायक है कि ओम पूरी और सीमा कपूर की शादी डेढ़ साल से भी ज्यादा नहीं चली थी। उस दौरान भी सीमा कपूर ने ओम पूरी पर अनपढ़ जाहिल और सभ्य समाज में नहीं बैठने लायक होने के आरोप लगाये थे। जब बात हद से बढ़ गई थी तो सीमा कपूर के भाई अंताक्षरी की ख्याति वाले अन्नू कपूर, फिल्म निदेशक राजकुमार संतोषी और दोनों के पत्रकार मित्र आलोक तोमर ने ओम पूरी के मुंबई वाले घर त्रिशूल में बैठ कर दोनों के बीच सूलह का रास्ता निकाला था। सीमा कपूर की मांग पर ओम पूरी ने उन्हें एक फ्लैट, राजस्थान के झालावाड़ शहर में रह रही उनकी मां कमल शबनम के नाम जमीन, और सीमा को मोटी धनराशि देकर तलाक दिया था।

इसके बाद सिटी आप जाय फिल्म की शूटिंग के दौरान कोलकाता मिली नंदिता नामक एक पत्रकार से ओम पूरी ने शादी की और उनका अब एक आठ साल का बेटा भी है। फिर भी लोगों को आश्चर्य होता है कि इतने कड़वे संबंध होने के बावजूद ओम पूरी सीमा कपूर से अपने घनिषठ रिश्ते निभा रहे हैं और उनके लिए बगैर कोई फीस लिए शूटिंग करने दूर्गम आदिवासी इलाकों में पहुंच जाते हैं। सीमा कपूर ने एक दो सीरियल बनाए हैं लेकिन पहले वे दिल्ली के श्रीराम सेंटर में कठपुतलियां नचाया करतीं थीं। उधर ओम पूरी इस समय यूरोप और हालीवुड में सबसे ज्यादा मांग रखने वाले भारतीय अभिनेता हैं।

सीमा कपूर अपने मित्रों से अक्सर कहा करती हैं कि ओम पूरी को उन्होने अपने पालतू जानवर की तरह रखा हुआ है जो चाहे जहां रहे उनकी एक पुकार पर दौड़ चला आता है। रिश्तों को आखिरी हद तक निभाने वाले और कई राषट्रीय पुरस्कार जीत चुके, और भारत की पद्मश्री और ब्रिटेन के आर्डर आफ मैरिट से सम्मानित होने वाले ओम पूरी सबकी मदद करने में हमेशा आगे रहते हैं और अब ये जाहिर हो चुका है कि सीमा कपूर हर रिश्ते का शोषण करके अपनी जिन्दगी बिताने की विशेषज्ञ हो चुकी हैं।
पत्रकार पाक प्रधानमंत्री से कितनी उम्मीद?
डेटलाइन इंडिया
इस्लामाबाद, 23मार्च- पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार कोई पत्रकार प्रधानमंत्री बनने जा रहा है और वह भी ऐसा पत्रकार जो मुशरर्फ की जेल में छह साल काट चुका है। मुल्तान के एक रईस परिवार में जन्म ईरानी मूल के यूसुफ रजा गिलानी के पूर्वज तो सूफी साधुओं में गिन जाते थे। उनकी एक बुआ केरल के सबसे पूज्य धर्मगूरु पीर पगारा की पत्नी हैं।

पत्रकारिता में मास्टर्स डिग्री लेने वाले यूसुफ गिलानी 26 साल की उम्र में जनरल जिया के मार्शल ला के विरोध में खुलकर सामने आ गए थे और उन्होने जूल्फिकार अली भूट्टो को फांसी दिए जाने के खिलाफ इस्लामाबाद की पाक मीनार पर आत्मदाह की कोशिश की थी। अंग्रजी में स्नातक यूसुफ गिलानी स्वर्गीय बेनजरी भूट्टों के निजी दोस्त भी थे और जब पूरा भूट्टो कुटूंब आसिफ अली जरदारी से उनकी शादी का विरोध कर रहा था तो यूसुफ गिलानी ने ही बेनजीर को नैतिक सहारा दिया था। वैसे भी पाकिस्तान की राजनीति में उनके परिवार का काफी असर है और वे मुल्तान से कई बार संसद के लिए चुने जा चुके हैं। इस साल के चुनाव में वे मुशरर्फ के सबसे खास और प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे सिकन्दर हयात को हरा कर आए थे। दरअसल, मुशरर्फ द्वारा बर्खास्त न्यायधिशों की बिना शर्त बहाली के मुद्दे पर जब नवाज शरीफ अकेले पड़ गए थे तो यूसुफ गिलानी ही उनका साथ दिया था।

यूसुफ गिलानी की जेल यात्रा कम कमाल की नहीं थी फरवरी 2001 में उन्हें अपने पद का दूरपयोग करने के आरोप में जेल में डाल दिया गया था और खुद मुशरर्फ की पार्टी के एक सबसे बड़े नेता सैयद मुसाहिद हुसैन ने इस कदम के विरोध में पार्टी छोड़ दी थी। जेल में रहते हुए यूसुफ गिलानी ने अपनी बहुत प्रसिध्द किताब लिखी जिसमें पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली भारतीय लोकतंत्र की तर्ज पर करने की वकालत की थी। इस किताब का अब कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यूसुफ गिलानी अपनी जेल यात्रा के दौरान तब बहुत सनसनी फैला दी थी, जब एक दिन वे जेल से गायब पाये गए थे और पता चला कि वे एक जेल कर्मचारी की मोटरसाइकिल पर जेल की ही ड्रेस पहनकर बाहर निकल गए थे। यूसुफ गिलानी अगर चाहते तो जेल से फरार हो सकते थे लेकिन उन्होने खुद जेल आकर आत्मसमर्पण कर दिया और उस कर्मचारी का नाम भी कभी नहीं बताया। यूसुफ गिलानी का नाम पहले प्रधानमंत्री के तौर पर किसी सूची में नहीं था लेकिन बाद में सबको वे सबसे निरापद उम्मीदवार लगे और खास तौर पर इसलिए क्योंकि संसद के अध्यक्ष के नाते अपने संक्षिप्त कार्यकाल में उन्होने सबका दिल जीत लिया था। कश्मीर के मामले में यूसुफ गिलानी पाकिस्तान की परंपरागत धारा को मानते हैं लेकिन इस मामले में उनका रवैया दूसरे पाकिस्तानी राषट्रनायकों की तरह हमेशा टकराव का नहीं रहता है।

दिल्ली पुलिस ने फिर निर्दोषों को पकड़ा
डेटलाइन इंडिया
कौंसपूर(जालंधर), 23 मार्च- पंजाब पुलिस ने दिल्ली पुलिस की लगभग आतंकवादी साबित हो रही स्पेशल सेल का एक और झूठ पकड़ा है। आमतौर पर बेगूनाह कश्मीरियों को आंतकवादी बता कर पकड़ने या मारने के लिए कुख्यात स्पेशल सेल ने पंजाब के जिन दो युवकों को बब्बर खालसा का आतंकवादी होने के आरोप में पकड़ा है वे पंजाब पुलिस के रिकार्ड में एकदम बेदाग पाए गए हैं। उनके खिलाफ जो हथियार रखने के सबूत थे वे भी दिल्ली पुलिस के मालखाने से निकाले हुए थे।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने कोई तीन महीने पहले जालंधर के कौंसपूर के 23 वर्षीय सुरिन्दर सिंह उर्फ फौजी और 31 साल के जसवंत सिंह उर्फ काला को बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सदस्यों के तौर पर गिरफ्तार किया था और अब वे दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं। कौंसपूर गांव शाहपूर पुलिस थाने के अंतर्गत आता है और इस थाने में सुरिन्दर के खिलाफ भी जोर से बोलने की शिकायत भी दर्ज नहीं हुई। वह तो गुरूद्वारों में पाठ करने नियमित रूप से जाता था और अजनाला में दमदमी टकसाल नामक प्रसिध्द गुरूद्वारे में भी वह एक रागी के तौर पर खासा लोकप्रिय है। पुलिस अधिकारी खुद सुरिन्दर की गिरफ्तारी पर हैरान हैं। उनका कहना है कि सुरिन्दर 18 मार्च की सुबह स्थानीय पुलिस के एक सिपाही के साथ स्वर्ण मंदिर में अरदास करने बस से गया था। तभी दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच के एक सिपाही ने शाहपुर थाने में आकर बताया कि सुरिन्दर को 19 मार्च को जसंवत के साथ जालंधर के सतुलज नदी के पुल के पास से दौ पिस्तौंलों और कारतूसों के साथ पकड़ा गया है।

शाहपूर इलाके के पुलिस उप अधिक्षक दजिन्दर सिंह ढिल्लों ने भी कहा कि सुरिन्दर और जसवंत की गिरफ्तारी की कोई सूचना पंजाब पुलिस को नहीं दी गई और यह न सिर्फ अवैद्य है बल्कि कानून के सारे नियमों का उल्लंघन करता है। फिर ढिल्लो ने कहा कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सदस्य की हैसियत से दिल्ली पुलिस जिन दिनों जसंवत और सुरिन्दर को पाकिस्तान गया हुआ बता रही है उन दिनों जसवंत मध्यप्रदेश में सहडोज जिले के अपने एक रिश्तेदार के घर मौजूद था और सुरिन्दर दमदमी टकसाल में पाठ करने गया हुआ था। उसी दौरान टकसाल में पंजाब के तीन मंत्री भी आये थे जिनमें से एक ने सुरिन्दर को अच्छी कलाकारी के लिए बख्शीश भी दी थी।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल आप तौर पर अपने संदिग्ध कारनामों के लिए जानी जाती है। कश्मीर के एक नौजवान छात्र को दिल्ली हवाई अड्डे से एक आतंकवादी के नाम पर कैद करने के बाद भी अबतक वह इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह आतंकवादी था। कश्मीर पुलिस और पूरे कश्मीर के वकील शिकायत कर चुके हैं कि दिल्ली पुलिस निर्दोष कश्मीरियों को गिरफ्तार करके उन्हें आतंकवादी करार दे देती है और उन्हें लगभग 10-10 साल तक जेल में रखती है। इसी सेल ने हाल ही में हरिद्वार में हरियाणा के घोषित अपराधी को हरिद्वार में एक मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था और इस दावे का खंडन खुद हरिद्वार पुलिस कर रही है। इतना ही नहीं मारे गए अपराधी की पत्नी जिसे दिल्ली पुलिस अपने साथ लेकर आई थी अब लापता है और दिल्ली उच्च न्यायालय लगातार पुलिस से कह रहा है कि इस महिला को अदालत में पेश किया जाए या उसका पता ठिकाना बताया जाए। दिल्ली पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है।

हाल ही में सूचना करे अधिकार के तहत दिल्ली पुलिस से जानकारी मांगी गई थी कि कितने कश्मीरी उसने आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार करके जेल में बंद किए हैं और उनका मूल पता ठिकाना क्या है। पुलिस के सूचना अधिकारी ने इसका एक सक्षिप्त जवाब बनाकर दे दिया। जिसमें कहा गया था कि यह बहुत संवेदनशील जानकारी है और इसके बारे में कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर गई दिल्ली पुलिस से यह जवाब सुनना रावण के मुंह से रामायण सुनने की तरह है।

राजस्थान का दंगा गुजरात पहुंचा
डेटलाइन इंडिया
जयपुर, अहमदाबाद, 23 मार्च- भाजपा शासित ये दोनों राज्य एक बड़े सांप्रदायिक दंगे के ज्वालामुखी के फटने का इंतजार कर रहे हैं। राजस्थान में चितौड़गढ़ और टौंक जिले में होली को लेकर शुरू हुए सांप्रदायिक दंगे ने इतना जोर पकड़ा की राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में भी अल्पसंखयकों की पिटाई शुरू हो गई।

राजस्थआन से शुरू हुआ दंगा जब गुजरात के बनासकांठा तक पहुंचा तबतक 50 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो चुके थे। इनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक वर्ग के लोग थे और कई पुलिस वाले में उन्हें बचाने में घायल हुए। गुजरात में तो नरेंद्र मोदी हाल में ही तीसरी बार भाजपा की सरकार लाने में सफल हुए हैं लेकिन असली आफत राजस्थान की मुख्यमंत्री महारानी वसुंधरा राजे की है। यहां इसी साल चुनाव होने हैं और वसुंधरा दो तरफ से आफत में हैं। अगर उन्होने अल्पसंख्यकों का बचाव किया और हिंदु नेताओं को जेल में भेजा तो पहले से नाराज संघ परिवार और उसके सहयोगी संगठन हमलावर साबित हो सकते हैं। अगर उन्होने ऐसा नहीं किया तो उन्हें नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा गालियां पड़ेंगी क्योंकि राजस्थान सांप्रदायिक हिंसा के लिए नहीं जाना जाता। चितौड़गढ़ में फिलहाल कर्फ्यू लगा हुआ है और वहां के कलेकटर पुरूषोत्तम लाल अग्रवाल ने फोन पर बताया कि रबर की गोलियां चलाने और आंसू गैस छोड़ने के बावजूद हालात को सामान्य नहीं किया जा सका है।

जिन घायलों को अस्पताल ले जाया गया था उनपर हमला करने के लिए एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी जिस पर पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी। टोंक के पुलिस अधिक्षक गिरीराज मीणा ने कहा है कि होली के जूलुस जब मुस्लिम बस्तियों से निकले तो दोनों तरफ से पत्थर चले और कई लोग घायल हुए ,उधर गुजरात के बनासकांठा में हिंदु-मुस्लिम समुदाय में एक मजार के पास से जूलुस निकलने को लेकर तनाव पैदा हो गया था। थोड़ी ही देर में दोनों तरफ से लोग हथियार लेकर आ गए और हालात काबू से बाहर होने लगे। बनासकांठा पुलिक अधिाकरियों के अनुसार ज्यादात्तर हमलावरों की शिनाख्त कर ली गई है और वे राजस्थान के ही हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा राजे से फोन पर बात की और उनसे हालात सुधारने के लिए कहा। गुजरात सरकार के सूत्रों के अनुसार मोदी ने कहा कि जबतक हालात ठीक नहीं हो जाते तबतक राजस्थान की ओर से घुसनेवाले हर वयक्ति चाहे वह किसी भी धर्म का हो, गोली से उड़ा दिया जाएगा। लोकतंत्र की जंग जितने के बाद मोदी अब अपनी छवि सुधारना चाहते हैं।

महाराष्ट्र का एक करोड़पति गांव
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अमलनेर, महाराषट्र, 23मार्च-इस छोटे से गांव में फसल खराब हो जाने और कर्ज के कारण आत्महत्या करने पर उतारू एक परिवार में परिवार की गृहणी कपिला मजदूरी के लिए निकलने और घर में ताला लगाने के लिए समान एक कमरे में बंद कर रही थी। एक बक्से से कुछ पुराने कागज निकले जिन्हें वे फेकने जा रही थी उनके पति अरविन्द ने ये कागज गांव के स्कूल के अध्यापक को दिखाने का फैसला किया।
अब कपिला का परिवार सारे कर्जे चुका कर 16 लाख रूपये का मालिक है और खेती के लिए ट्रैक्टर खरीदने की तैयारी कर रहा है। और तो और उनके घर में एक एयरकंडीशनर भी लग गया है। इन कागजों से हुई कमाई लगातार जारी रहने वाली है क्योंकि ये देश की सबसे बड़ी साफ्टवेयर कंपनी विप्रो के एकदम शुरूआती दिनों के शेयर सर्टिफिकेटस हैं। विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी ने इसे विश्वव्यापी संस्था तो बाद में बनाया लेकिन उनके पिता जी ने 1947 में जो 17 हजार शेयर बेचकर विप्रो की शुरूआत की थी उनमें से हर शेयर का दाम अब एक लाख रुपये हो गया है इसके अलावा हर तीन साल पर एक बोनस शेयर भी जुड़ता गया है।

जिन गांव वालों को प्रेमजी सीनियर ने ये सर्टिफिकेट खुद एक पुरानी कार में आकर बेचे थे उनमें से बहुत कम लोग जीवित बचे हैं और अंदाजा भी नहीं है कि शेयर बाजार चलता कैसे है। इसीलिए इन गांव वालों को पता ही नहीं था कि वे लाखों रुपये के खजाने पर बैठे हैं। एक बार जब खुलासा हुआ और कपिला की तरह बाकी लोगों ने भी इन कागजों के साथ विप्रो के कार्यलय में संपर्क किया तो पता चला कि हर परिवार दस लेकर 25 लाख रुपये का मालिक है और यह कमाई सिर्फ लाभांश के भुगतान की है। अगर ये शेयर आज बेचे जाएं तो गरीबी कि सीमारेखा पर मौजूद इस गांव को हर परिवार करोड़पति हो जाएगा।

विप्रो के मुखिया अजीम प्रेमजी को उनके प्रबंधकों ने जब इस गांव की कहानी बताई तो बहुत दिनों से उलझी हुई गुत्थी सुलझ कर सामने आई। अजीम प्रेमजी ने बताया कि हर साल उनके आडिटर उनसे पुछते थे कि लगभग आठ हजार शेयरों पर लगातार पैसा जमा होता जा रहा है लेकिन पते पुरे नहीं होने के कारण यह पैसा इन शेयर धारकों के पास पहुंचाया नहीं जा रहा है। श्री प्रेमजी ने कहा कि गांव के जिन लोगों के शेयर्स का इस्तेमाल कंपनी ने किया है उन्हें ब्याज के तौर पर भी अतिरिक्त रकम दी जाएगी। इस घोषणा के बाद तो जिस गरीब गांव में लोग लड़कियां नहीं ब्याहना चाहते थे वहां जोर-शोर से रिश्ते आने लगे हैं।

अजीम प्रेमजी के पिता की ननिहाल इसी गांव में थी और इसलिए जब उन्होने अपना कारोबार शुरू करने के लिए गांव वालों से मदद मांगी तो जिसके पास जितना हो सकता था उतना दिया गया तब तो गांव के लोग अपनी गांव की बेटी के बेटे की मदद कर रहे थे लेकिन वे नहीं जानते थे कि अगली पीढ़ियों को इस मदद के बदले कितना बड़ा लाभ हासिल होगा। अबतक इस गांव के सबसे बड़े जमींदार और सबसे रईस मानेजाने वाले रसिक चौहान के पूवर्जो ने एक भी शेयर नहीं खरीदा था और वे आज गांव के सबसे गरीब आदमी है।

प्रभात, विवेक और चुनाव में खुली थैलियां
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नई दिल्ली, 23 मार्च-मध्य प्रदेश में राज्यसभा चुनावों को लेकर अच्छी खासी नौटंकी चल रही है। कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार विवेक तन्खा पर पैसे देकर वोट खरीदने का आरोप लगाने वाले भूतवपूर्व अपराधी विधायक किशोर शमरीते को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है और विवेक तन्खा दिल्ली में आकर बैठ गए हैं। उनकी ओर से उनका चुनाव अभियान मध्यप्रदेस कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी चला रहे हैं जिन्हें 24 साल राज्य सभा में रहने के बाद इस बार टिकट नहीं दिया गया।

दिल्ली में बसंत विहार की अपनी अभिजात कोठी में बैठे श्री तन्खा ने कहा कि उन्हें मालूम है कि वे जीत रहे हैं इसलिए वे किसी भी हाल में किसी आरोप का जवाब देना नहीं चाहते। उन्होने कहा कि किशोर समरीते पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं और वे इनमें से कुछ में उनके खिलाफ वकील हैं। समरीते अगर कानून की लड़ाई को चुनाव में लड़ना चाहते हैं और भारतीय जनता पार्टी उनका इस्तेमाल करना चाहती है तो ये उनके मुबारक हो। किशोर समरीते ने टीवी चैनलों के जरिए आरोप लगाया था कि उन्हें तीस लाख रुपये एक वोट के बदले देने का वायदा किया गया था और दस लाख रुपये अग्रीम किश्त के तौर पर हजार के नोटों की शक्ल में दिए गए थे। समरीते ने यह भी कहा कि जहां तक कानूनी मामलों का सवाल है वे जानते हैं कि अदालत उनके साथ न्याय करेगी।

मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों पर चुनाव हो रहा है और असली झमेला इस तीसरी सीट को लेकर है इसके लिए प्रदेश भाजपा के भूतपूर्व प्रवक्ता अब अखिल भारतीय सचिव प्रभात झा और देश के सबसे बड़े वकिलों में से एक और राज्य महाधिवक्ता रह चुके विवेक तन्खा के बीच मुकाबला है। कांग्रेस में बहुत लोग विवके तन्खा की उम्मीदवारी को पचा नहीं पा रहे हैं तो भाजपा में भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो प्रभात झा को पसंद नहीं करता। ग्वालियर से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले प्रभात झा भाजपा के सहयोगी दैनिक स्वदेश में पत्रकार भी रह चुके हैं लेकिन एक तो बाहरी यानी बिहारी होने के कारण उन्हें स्वीकार करने में दिक्कत आ रही है और दूसरे अपने मुखर स्वभाव के कारण श्री झा ने बहुत सारे दुश्मन बनाए हैं। उधर विवेक तन्खा भी जन्म से कश्मीरी हैं लेकिन मध्यप्रदेश में सब उन्हें जानते हैं। उनके ससुर कैप्टर अजय नारायण मिश्रा लंबे समय मध्यप्रदेस कांग्रेस के ताकतवर नेता रहे हैं। प्रभात झा को जीतने के लिए पांच अतिरिक्त वोट चाहिए जबकि श्री तन्खा को आठ वोटों की जरूरत है। इनमें से छह उन्हें समाजवादी पार्टी के विधायकों के वोट मिल गए हैं और तीन वांमदलों के। इसके अलावा यह भी पक्का माना जा रहा है कि चुकी विधानसभा चुनाव करीब है इसलिए भाजपा के कुछ विधायक ही अपनी दलगत निषठा को त्याग कर उन्हें वोट दे सकते हैं।

दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं की स्थिति को समझ पाना मुश्किल है। प्रदेश कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक अजुर्न सिंह तो दिल्ली छोड़कर राजस्थान के जोधपुर में जाकर बैठ गए हैं और कांग्रेस विधायकों में आधे से ज्यादा ऐसे हैं जो उनके ही आदेश का पालन करेंगे। श्री तन्खा ने उनका आर्शीवाद पाने के लिए समय मांगा है लेकिन कुंवर साहब शहर में ही नहीं हैं। श्री तन्खा के सबसे बड़े समर्थकों में से एक कमलनाथ संक्षिप्त विदेश यात्रा पर हैं और लौट भोपाल जाने वाले हैं। प्रदेश के भूतवपूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खुलकर विवेक तन्खा का प्रचार कर रहे हैं। यह चुनाव एकदम फिल्मी कहानी के तर्ज पर चल रहा है।



चुनाव आयोग में महाभारत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 23मार्च-चुनाव आयोग में झगड़ा हो गया है। मध्य प्रदेश कैडर के बड़े अफिसर रहे एस वाई कुरैशी को छोड़कर बाकी दोनों आयुक्त चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को बेल्जियम सरकार का सम्मान लेने और वहां के संविधान को स्वीकार करने को लेकर नोटिस दिया जाए। नोटिस देने की राय रखने वाले नवीन चावला भी हैं जो इंदिरा गांधी परिवार के चपरासी की तह आचरण करते रहें हैं और आपात काल में ज्यादातर कांग्रेस और गैर कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी में उनकी मुख्य भूमिका थी।

नवीन चावला एनडीए सरकार में सूचना मंत्रालय के सचिव थे और अपने मंत्री रविशंकर प्रसाद से उनकी कभी नहीं बनी। यहां तक की तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दूरदर्शन के समाचार चैनल के प्रमुख के तौर पर काम करने के लिए जिस पत्रकार का नाम दिया था और मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी उसपर मुहर लगा दी थी, नवीन चावला ने तकनीकि मुद्दे निकाल कर इस नियुक्ति में इतनी देर की कि पत्रकार ने ही इंकार कर दिया। नवीन चावला चुनाव आयुक्त के तौर पर अब कर्नाटक चुनाव को टलना चाहते हैं और इसे लेकर भी चुनाव आयुक्तों में झगड़ा मचा हुआ है। नवीन चावला ने तो परिसीमन से लेकर चुनाव अधिनियम की धारा 24 तक का हवाला देते हुए कर्नाटक में नियत 29 मई को चुनाव टालने की हर संभव कोशिश की। इस बार श्री कुरैशी भी उनसे समहत थे लेकिन आयोग कानूनी सलाह देने वाले विशेषज्ञों ने इसे आप्रत्याशित और आलोचित बताया। कांग्रेस का कहना है कि कर्नाटक में 58 लाख फर्जी वोटर हैं और 20 लाक मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए हैं। इसलिए जबतक मतदाता सूचियों की ठीक से समीक्षा न हो जाए तबतक कांग्रेस वहां किसी भी किस्म की राजनीतिक गतिविधि नहीं चाहती। भले ही इसके लिए चुनाव टाल कर वहां राषट्रपति शासन कुछ समय के लिए और बढाना पड़े। नवीन चावला लगातार अपनी पूरानी वफादारी निभा रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग के नियमों और शर्तो में किसी भी किस्म की वफादारी और पक्षपात के लिए कोई जगह नहीं होती।

श्री कुरैशी ने जीवन में पहली बार अपने बंगले 10 अकबर रोड़ पर होली मिलन का आयोजन किया और बिरहा तथा कजरी संगीत का इंतजाम भी किया। वहां मौजूद अतिथियों में से सबसे महत्वपूर्ण सीबीआई के निदेशक विजयशंकर थे। जिन्हें कांग्रेस के खिलाफ लगे आरोपों खासतौर पर इराक से दलाली वसूलने के मुद्दे की जांच करनी है। श्री विजयशंकर संगीत के बीच इस मामले और राजवी गांधी हत्याकांड जांच से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात कर रहे थे कि श्री कुरैशी हाथ पकड़कर इस संवाददाता को खींच ले गए और हाथ में गोलगप्पे का दोना पकड़ा दिया। इस संक्षिप्त आहार व्यवधान के बाद लौट कर पाया कि श्री विजयशंकर जा चुके थे। वाफादारी दिखाने के अपने-अपने हर रंग होते है।

पाक अफसर ने खोली भारत की पोल
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नई दिल्ली, 23 मार्च- 1971 के भारत-पाक युध्द में लोंगेवाला की लड़ाई को लेकर भारतीय वायुसेना और थलसेना के बीच जो टकराव चल रहा है उसे पाकिस्तान के एक जनरल ने हवा दे दी है।

उस समय ब्रिगेडियर रहे इस अधिकारी जाहिर आलम खान ने दो टूक शब्दों में कहा है कि अगर भारतीय वायुसेना नहीं आती या पाकिस्तान वायुसेना के जहाज समय पर आ जाते तो इस लड़ाई का नतीजा कुछ और ही होता। जाहिर आलम अपनी जल्दी ही प्रकाशित होने वाली खिताब में और भी कई भेद खोले हैं। उन्होने लिखा है कि भारत के उत्तर-पूर्व के मिजो आतंकवादियों को पाकिस्तान सेना ने मिजो ललदेंगा के कहने पर मदद की थी। बाद में राजीव गांधी और ललदेंगा के बीच समझौता होने के बाद वे मिजोरम के मुख्यमंत्री भी बने थे। जाहिर आलम ने यह भी कहा जुल्फिकार अली भूट्टो ने सैनिक शासक याहिया खान का तख्ता पलटने की जबरदस्त कोशिश की थी और इससे घबरा कर याहिया खान ने सत्ता भूट्टो को सौंप दी थी। कहा जाता है कि सैनिक इस अपमान का ही बदला जनरल जियाउल हक ने भूट्टो को फांसी पर चढ़ा कर लिया था।

बांग्लादेश के नायक शेख मुजीबल रहमान को खुद गिरफ्तार करने वाले जाहिर आलम ने बहुत सारे सनसनीखेज खुलासे किए हैं। श्री खान खुद प्रशिक्षित कमांडों हैं और लोंगेवाला में वे ही पाकिस्तानी सेना का नेतृत्व कर रहे थे। राजस्थान सीमा पर तनोट क्षेत्र से पाकिस्तान सेना घूंसी थी और रामगढ़ तथा भोटुरू कस्बो पर कब्जा करने के बाद पाक सेना को जैसलमेर पर कब्जा करना था। जाहिर आलम का आज भी दावा है कि भारतीय वायुसेना ने आकर सारे पाकिस्तानी टैंक उड़ा दिए और कई बार बुलाने पर भी पाक वायुसेना के जहाज नहीं आ पाए। उन्होने ये भी कहा है कि हमारे पास विमानभेदी मिसाइलें थी लेकिन वे रेत में जाम हो गई थीं और काम नहीं कर रहीं थीं।

मिजो आतंकवादियों को मदद करने के बारे में खुलासा पहलीबार हुआ है कि असम सीमा के पास से पाकिस्तान मिजो बागियों को लगातार हर तरह की मदद कर रहा था। उस समय ललदेंगा अपने आप को मिजोरम का राषट्रपति कहते थे और उन्होन अपने तथा कथित विदेशमंत्री को पाकिस्तान के साथ संपर्क के लिए इस्तेमाल किया था। इरादा यह था कि इन मिजो बागियों की मदद लेकर बांग्लादेश के चटगांव इलाके से भारतीय सैनिकों को भगाया जा सके।

कर्नाटक में अकेले जूझेगी भाजपा
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नई दिल्ली, 23 मार्च-कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। इसी तर्ज पर भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक में जनता दला(एस) की बेवफाई से सबक लेते हुए इस बार वहां के विधान सभा के चुनावी समर में अपनी दम पर उतरने का फैसला किया है। हालांकि पार्टी राज्य के चुनावी समीकरणों के बिगड़ने पर गंठबंधन से भी गुरेज नहीं करने वाली है।

कर्नाटक में मई में चुनाव होना तय हुआ है। नए परिसीमन के आधार पर होने वाले इस चुनाव में भाजपा अकेले उतरेगी पर नजरें पांच साल के लिए किसी हमसफर पर भी होगी। राज्य के चुनावी समीकरणों से एक बात तो पक्की है कि मैदान में तीन ही पार्टी जद(एस), कांग्रेस और स्वंय भाजपा होगी और ऐसा हो
सकता है कि भाजपा फिर उसी बेवफा से वफा की उम्मीद भी रखे। इस बाबत राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा हाल ही में दिल्ली आए भी थे। हालांकि भाजपा के अनुसरा यह एकला चलो का नारा अंतिम फैसला न होकर चुनावी तिथियों के घोषणा के बाद तय होगा। चुनाव आयोग की हुई बैठक के बाद यह साफ हो गया है कि राज्य में 28 मई से पहले चुनाव करा लिए जाएंगे। पार्टी के इस फैसले पर कल कर्नाटक प्रभारी अरूण जेटली के साथ येदियुरप्पा और राज्य के भाजपा अध्यक्ष सदानंद गौडा के बीच गुफ्तगू हुई। इसमें यह तय किया गया कि पार्टी राज्य में अकेले दम पर चुनाव लडेगी।

सूत्रों के अनुसार अरुण जेटली के जरिए शीर्ष नेतृत्व ने इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। रणनीति के उस्ताद अरुण जेटली ने हालांकि, चुनाव बाद गठजोड़ का विकल्प खुला रखा है। ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि जेडीएस के सदस्य चुनाव भले अपनी पार्टी के बैनर तले लडें लेकिन, चुनाव बाद वह बहुमत के करीबी दल के पक्ष में जा सकते हैं। वैसे भाजपा नेता यह मानकर चल रहे हैं कि चुनाव की तारीख घोषित होने के साथ ही जेडीएस के कुछ सदस्य भाजपा के करीब आ सकते हैं।

पर्दे के हीरो मैदान में जीरो
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नई दिल्ली, 23 मार्च-चुनावी मौसम में रूपहले पर्दे के तेवरों के साथ बॉलीवुड की ग्लैमरस दुनिया के फिल्मी सितारे जब चुनावी सभा में पहुंचते है तो उस मंच पर ऐसे डायलाग बोलते है कि जनता को लगता है कि आ गया उनका असली रहनुमा पर उन्हें यह नहीं पता कि रुपहले पर्दे के ये डायलाग बोलने वाले सपनों के सौदागर उनके विचारों का सौदा कर रफूचक्कर हो जाएंगे। यानी जो दिखता है वो है नहीं जो है वो दिखता नहींवाली बात है।

जनता जब अपना नेता चुनती है तो हकीकत से ज्यादा भावनाओं में बह कर अपना फैसला करती है और भावनाओं पर राज करने वाले सीने जगत के सितारे तो माहिर हैं अपने इसी हुनर का फायदा वो भाड़े पर या फिर किसी पार्टी के टिकट पर कैश करते हैं। आज फिल्मी संसद में फिल्मी सीतरों की फेहरिस्त काफी लंबी हैं जो सिलवर स्क्रीन से लोकतंत्र के दिल संसद भवन तक सफर अपने फिल्मी जुबान के भरोसे पहुंच जाते हैं। सांसद विनोद खन्ना, धमर्ेंद्र और गोविंदा का नाम उन लोगाें की फेहरिस्त में शामिल है, जो बजट सत्र के अहम तीन दिन गैरहाजिर रहे। वे संसद का रास्ता भूल कैमरे के सामने अपनों और उनके रिश्ते की दुहाई दे कर जनता का सिना छल्ली करते रहे। उनके संमोहित करने वाले डायलाग से जनता यह भूल जाती है कि इन्हें संसद में आखिरी बार कब देखा था।

वाजपेयी के कुटुंब में निकले हत्यारे
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 23मार्च-भारत में उदारवाद के प्रतीक माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उलट उनके दो नाती हत्या के प्रयास तथा दलित उत्पीड़न के मामले में फंस गए हैं। उनके खिलाफ दलित के साथ मारपीट करने के आरोप में एससीएसटी एक्ट और जानलेवा हमला करने का मामला दर्ज किय है।

पूर्व प्रधानमंत्री पूरे देश में जाति-धर्म के दिवार को तोड़ने के लिए जनता को समझाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी वह अपने नातियों पर दलितों पर अत्याचार का आरोप लगा। रिपोर्ट में विवाद आटो ख़डा करने को लेकर हुआ। आरोपियों का कहना है कि विवाद जमीन को लेकर है। इसी के चलते शिकायतकर्ता ने उनके घर पर अपने साथियों के साथ आकर हंगामा किया और लूटपाट की। इस संबंध में देर शाम उन्हाेंने भी लिखित शिकायत पुलिस को दे दी। भाजपा ने वाजपेयी के नातियाें के खिलाफ दर्ज मुकदमे को पूरी तरह फर्जी करार दिया और उसे तत्काल खारिज करने की मांग की है। एसएसपी ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी की बहन निर्मला दीक्षित अपने परिवार के साथ अलकापुरी इलाके में रहती हैं। उनके पुत्र अनिल दीक्षित के तीन बेटे पुनीत, अक्षय और पराग हैं। शुवार को गढी भदौरिया निवासी भानसिंह सोन ने थाना जगदीशपुरा को दी लिखित शिकायत में कहा कि वह गुरुवार रात अपने भाई के साथ फीरोजाबाद से लौटा था। बिजलीघर से दोनाें आटो में घर आ रहे थे। उन्हाेंने आटो को पुनीत दीक्षित के दरवाजे के सामने ख़डा कर दिया था। बस इसी बात पर पुनीत घर से निकल कर आया और अभद्रता करने लगा। जब उन्हाेंने विरोध किया तो पुनीत के भाई अक्षय और पराग निकल आए। आरोप है कि अक्षय और पराग ने भान सिंह और उसके भाई के साथ मारपीट व गाली गलौज शुरू कर दी। इसके बाद पराग घर से चाकू निकाल लाया और जान से मारने की धमकी देते हुए वार किया, जिससे भान सिंह घायल हो गया। इसी बीच शोर-शराबा सुनकर बस्ती के लोग आ गए और उन्हें बचाया।

शिकायतकर्ता के कहने मात्र पर पुलिस ने बिना जांच किए अटल बिहारी वाजपेयी के नातियाें के खिलाफ हत्या के प्रयास और दलित उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कर लिया, जबकि मामले में नामजद अक्षय और पराग का कहना है कि विवाद जमीन का है। गुरुवार की रात भान सिंह ने अपने 15-20 साथियाें के साथ उनके घर पर हमला बोला दिया। विरोध करने पर मारपीट और लूटपाट की। पराग का कहना है कि भान सिंह और उनके साथी 20 हजार रुपए और जेवरात लूट ले गए। उन्हाेंने बताया कि घटना के संबंध में शुवार सुबह उन्हाेंने लिखित रूप से शिकायत की थी, लेकिन देर शाम पुलिस ने दबाव के चलते उसे रिसीव किया।

देहरादून जेल में आनंद ही आनंद
डेटलाइन इंडिया
देहरादून, 23मार्च-राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष गीता ठाकुर का जिला कारागार में हुआ आकस्मिक निरीक्षण कैदियों के लिए होली की सौगात लेकर आया। उनके साथ आए महानिरीक्षक (जेल) भास्करानंद जोशी ने गीता की तरफ से ध्यान खींचे जाने पर सभी वार्डों में टेलीविजन लगाने और एक महिला कैदी के परिवार को संदेश भेज कर मिलने आने के लिए कहा।

ठाकुर तथा जोशी एक साथ दोपहर सुद््धोंवाला के आदर्श जेल पहुंचे। आयोग की उपाध्यक्ष महिला बैरक में पहुंचीं। उन्होंने वहां उनके रहने के स्थान, रसोई और आसपास का जायजा लिया। महिला कैदियों की तादाद 15 थीं। उनसे पूछा गया कि किसी प्रकार की नाजायज परेशानी तो उन्हें नहीं हो रही। किसी ने भी उनसे शिकायत नहीं की। सिर्फ, यह मांग रखी गई कि उन्हें टेलीविजन नहीं दिया गया है। यह मिल जाए तो उनका वक्त कट जाएगा।

ठाकुर ने इस पर महानिरीक्षक (जेल) जोशी से इस बाबत कदम उठाने को कहा। उन्होंने सभी वार्डों में टेलीविजन लगाने के निर्देश प्रभारी जेलर को दिए। एक महिला कैदी मोनिका ने पूछे जाने पर ठाकुर से कहा कि उनके घर से उन्हें मिलने कोई नहीं आता है। इस पर आयोग की उपाध्यक्ष ने लुधियाना की इस महिला कैदी के परिवार वालों के घर तुरंत संदेश भेज कर मिलने के लिए आने को कहा।

उन्होंने जेल में महिला कैदियों की स्थिति पर संतोष जताया लेकिन उन्हें प्रशिक्षित कर उनके हाथों से बनाई गई वस्तुओं को बेचने और उनकी प्रदर्शनी लगाने की व्यवस्था करने की जरुरत भी जेल प्रशासन से जताई। उन्होंने जेल में उत्तराखंड की एक भी महिला कैदी के न होने को राज्य की महिलाओं के शरीफ और स%चे होने का सुबूत करार दिया।

हिन्दुस्तानी मां का पाकिस्तानी बेटा
डेटलाइन इंडिया
चंडीगढ, 23 मार्च-20 साल पहले सीमा पार कर गया बेटा वापस लौट आया है तो अमीना उससे नहीं मिल सकती। बेटे अहमद के पास पाकिस्तानी नागरिकता है और अमीना गुजरात की निवासी हैं।

पुलिस की दलील है कि किसी विदेशी नागरिक से मिलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अमीना ने अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अमीना ने याचिका दायर कर बेटे से मिलने की अनुमति दिए जाने का आग्रह किया है। याचिका पर 25 मार्च के लिए सेंट्रल जेल अमृतसर के सुपरिटेंडेंट को नोटिस जारी किया गया है।अमीना की तरफ से याचिका में कहा गया है कि उसका बेटा अहमद 20 साल पहले क%छ के रास्ते सीमा पार कर गया था।

वहां जाकर उसने सीमा नामक लडकी से शादी कर ली और पाकिस्तान की नागरिकता हासिल कर कराची में रहने लग गया। कुछ समय पहले ही उसके पिता का देहांत हो गया और गरीबी रेखा से नीचे होने के कारण गुजरात सरकार की तरफ से परिवार के गुजर बसर के लिए हर्जाना भी दिया गया। इस बात की जानकारी मिलने पर अहमद अपनी मां से मिलने समझौता एक्सप्रेस के जरिए भारत आया तो बीएसएफ ने उसे पत्नी समेत गिरफ्तार कर लिया।

अधिकारियाें का कहना है कि उसके पास वीजा संबंधी पूरे दस्तावेज नहीं हैं। ऐसे में वह अवैध ढंग से भारत आया है। इस मामले में अहमद और उसकी पत्नी को एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। दोनों इस समय अमृतसर सेंट्रल जेल में हैं। अमीना ने कई बार जेल में बेटे से मिलने का प्रयास किया लेकिन जेल अथारिटी ने उसे मिलने की इजाजत नहीं दी। अमीना ने इस संबंध में अब हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मुलाकात की इजाजत मांगी है।
शेर सिंह के खजानों से निकली अपार दौलत
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 23मार्च-स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन-ने पूर्व स्टेट ड्रग कंट्रोल शेर सिंह के पिंजौर-और चंडीगढ-के ठिकानाें से विभिन्न बैंकाें की 14-एफडी-बरामद की है। इसके साथ ही कुछ गाड़ियाें की नंबर प्लेट भी जांच के दौरान मिली हैं। अंदेशा जताया जा रहा है कि आरोपी की आकूत संपत्ति में गाड़ियाें की संख्या बढ सकती हैं।

शुवार सुबह विजिलेंस टीम ने एक बार फिर से इन ठिकानाें को खंगाल कर वापस लौट आई। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (विजिलेंस) आईडी-भंडारी ने कहा कि मामले की जांच चल रही है इस बारे में अभी ज्यादा कुछ कहा नहीं जा सकता।रिश्वत लेने के आरोप में फंसे शेर सिंह के खिलाफ सतर्कता विभाग में आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला भी दर्ज है। राज्य सरकार की अनुमति के बाद स्टेट विजिलेंस ने प्रीवेंशन-ऑफ करप्शन-एक्ट की धारा 13डी-के तहत दर्ज हुआ है।

सूत्र बताते हैं कि अब तक की जांच में आरोपी की सोलन, शिमला, ऊना, मंडी सहित पंजाब के मोहाली आदि में करोड़ाें की संपत्ति है। अब तक की जांच में विजिलेंस ने करीब साढे चार करोड़ की संपत्ति का पता लगाया है। इससे पूर्व ड्रग कंट्रोलर-के खिलाफ सोलन में पौने पांच लाख रुपये की घूस लेने का मामला दर्ज है। तफ्तीश के दौरान आरोपी की आय से अधिक संपत्ति होने के साक्ष्य जांच टीम को मिले।

संपत्ति के ब्यौरे की रिपोर्ट एसपी विजिलेंस आनंद प्रताप सिंह ने तैयार की। विजिलेंस द्वारा राज्य सरकार के समक्ष वास्तविक स्थिति रखने के बाद आरोपी पर मामला दर्ज किया गया। सोलन में दर्ज घूसखोरी के मामले में शेर सिंह के कुछ सहयोगियाें का पता जांच टीम ने लगाया है। इनकी संख्या आधा दर्जन से अधिक है। इनसे विजिलेंस एक बार पूछताछ कर चुकी है। इनमें से कुछ सहयोगियाें के खिलाफ भी विजिलेंस मामला दर्ज करने की तैयारी कर रही है।

जांच टीम अब तक शेर सिंह के सोलन आवास से करीब 15-लाख रुपये नगद, नौ लाख रुपये के इलेक्ट्रानिक उपकरण, विदेशी महंगी शराब ,-11 किलो चांदी, शिमला ,मोहाली, ऊना, मंडी, पंचकूला-में करोड़ाें की अचल संपत्ति के दस्तावेज, पांच लाख की एफडी-के कागजात, विभिन्न बैंकाें की पासबुक सहित कई अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद कर चुके हैं।

जलती चिता से उठाई गई लाश
डेटलाइन इंडिया
पवई (आजमग़ढ), 23मार्च-तीन बच्चाें की मां को ससुरालीजनाें ने जहर देकर मार डाला। मायके वालाें की सूचना पर शुवार की अल सुबह पुलिस ने मझुई नदी के किनारे जल रही चिता को बुझाकर 60 फीसदी तक झुलस चुकी लाश को कब्जे में लिया।
पवई थाना क्षेत्र के महमदपुर गांव में हुई इस घटना में पुलिस ने ससुरालीजनाें के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज किया है। इस मामले में पति को गिरफ्तार किया गया है और अन्य परिजनों को हिरासत में लेकर पूछताछ चल रही है। मृतका शकुंतला देवी (35) महमदपुर गांव निवासी अंगद सिंह की पत्नी थी। उसका मायका सुल्तानपुर के अखंड नगर थाना क्षेत्र के भिऊरा गांव में था। शकुंतला की शादी 14 साल पूर्व हुई थी।

उसने ससुराल में तीन बच्चाें को जन्म दिया। पति के घर पर रहने के चलते उसका परिवार आर्थिक समस्याआें से जूझ रहा था। आए दिन नोकझाेंक और मारपीट होती रहती थी। ससुरालियों के अनुसार पांच दिन पूर्व शकुंतला ने विषाक्त पदार्थ का सेवन कर लिया था। उपचार के दौरान अंबेडकर नगर में उसकी गुरुवार की रात मौत हो गई। शुवार की अलसुबह ससुरालीजन उसका शव लेकर मझुई नदी के किनारे पहुंचे और चिता पर रखकर फूंकने लगे।

इसकी सूचना मायके वालाें को नहीं दी गई थी। इसी बीच किसी दूसरे से जानकारी पाकर पवई थाने पहुंचे मायके वालाें ने बेटी की हत्या कर शव को जलाने का आरोप लगाया। इस पर मौके पर पहुंची पुलिस ने जलती चिता को बुझाकर शव को कब्जे में ले लिया। ससुरालीजनाें को भी हिरासत में ले लिया। लाश 60 फीसदी तक जल चुकी थी। थानाध्यक्ष टीबी सिंह ने कहा कि हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। साथ ही पति को गिरफ्तार कर अन्य परिजनों से पूछताछ चल रही है। उधर ससुराल पक्ष के लोगाें ने पुलिस को बताया कि घर में अनबन के बाद शकुंतला ने खुद जहर निगल लिया था।

आजमगढ़ में लोकदल उम्मीदवार आतंकवादी
डेटलाइन इंडिया
आजमगढ, 23 मार्च-कचहरियाें में सीरियल बलास्ट के आरोपी हकीम मोहम्मद तारिक कासमी को संसदीय उपचुनाव में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद अरशद खां ने कोट चौराहा स्थित पार्टी कार्यालय पर यह घोषणा की।
इस घोषणा के बाद तारिक समर्थक उसके निर्दोष होने की बात कहकर उसके बचाव के लिए उसके पक्ष में मुसलमानाें को लामबंद होकर वोट मांगने में जुट गए हैं।श्री खां ने कहा कि आजमग़ढ संसदीय उपचुनाव में जनता की अदालत में हकीम तारिक को फर्जी तरीके से आतंकी बनाने का पक्ष रखा जाएगा। उन्हाेंने कहा कि देश में किसी भी मुसलमान को पकडकर आतंकवादी बनाने की गलत परंपरा शुरू हो गई है।
यदि किसी मुसलमान को शक के आधार पर भी आरोपी बना दिया जाता है, उसे तब तक जेल में रखा जाता है, जब तक कि वह खुद अपनी बेगुनाही साबित न कर दे। श्री खां ने कहा कि मुलाकात के दौरान हकीम तारिक को 12 दिसंबर को उठाए जाने के बाद उसे जबरदस्ती शराब पिलाकर मनमर्जी बयान लिया गया। बैटरी आदि पर फिंगर प्रिंट लिए गए। आज भी एसटीएफ के जवान और जेल अधीक्षक उसे प्रतिदिन प्रताड़ित करते हैं। श्री खां ने कहा कि एक आलिम-ए-दीन को जबरदस्ती शराब पिलाना मुसलमानाें की धार्मिक भावनाओं पर चोट है।
उन्हाेंने कहा कि तारिक कासमी को दिगी की लोकसभा में भेजकर आजमग़ढ की जनता एसटीएफ को करारा जवाब देगी। श्री खां ने कहा कि हकीम तारिक और खालिद मुजाहिद मामले में उनकी पार्टी को राजनीति करने का शौक नहीं है, क्याेंकि न्याय की यह लडाई हम अब तक जनता की अदालत में ही लडते रहे हैं। इसलिए हकीम मोहम्मद तारिक के अनुरोध पर पार्टी ने उन्हें आजमग़ढ लोकसभा उपचुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए उनका मुकदमा जनता के अदालत में पेश करेगी। इस दौरान अमित यादव पहलवान, छोटेलाल कन्नौजिया, महताब फरीद, फिरोज अख्तर ने सपा छोड़कर नेलोपा की सदस्यता ग्रहण की।

सरकार को सीमाओं की कितनी चिंता है?

जगमोहन सिंह राजपूत
जब 1962 में चीन ने भारत पर आमण किया था, तब इस देश का नेतृत्व आश्चर्यचकित रह गया था। वह हिंदी-चीनी भाई-भाई का दौर था। अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर भारत आत्ममुग्ध था। स्वतंत्र भारत में कश्मीर पर कबाइलियाें को आगे कर पाकिस्तान ने जो हमला किया था, उसे हमारी सेना ने विफल कर दिया था। लेकिन राजनीतिक निर्णयाें के कारण आज भी भारत के एक भूभाग पर पाकिस्तान का कब्जा है। चीन ने भी भारत की काफी जमीन पर अधिकार जमा रखा है। चीनी आमण ने विदेशी खतराें के रूप में भारत को पहली बार झकझोर दिया था। सत्तासीन नेतृत्व रूस और चीन के साम्यवाद व वामपंथ से प्रभावित था और विपरीत विचाराें की सुनना भी नहीं चाहता था। परिणामस्वरूप देश को इतना बडा घाटा सहना पडा। आज पाकिस्तान से शांति वार्ता भी जारी है और आईएसआई की भारत-विरोधी गतिविधियां भी चल रही हैं। प्रधानमंत्री की सफल चीन यात्रा के बाद बीजिंग मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर विरोध जताता है और हमारी सरकार अत्यंत विनम्र तथा लचर ढंग से उसे अस्वीकार करती है।

वर्ष 1962 के चीनी हमले के समय सारा देश एक साथ उठ ख़डा हुआ था। उस हमले से देश को सबक मिला। हमारी सैनिक तैयारियां बढीं। उसी के कारण वर्ष 1965, 1971 और 1999 में हमें सामरिक सफलताएं मिलीं। वर्ष 1962 में भारत की विविधता में एकता का दर्शन सभी को हुआ था। साहस, शौर्य तथा वीरता की कहानियां हर तरफ फैलीं। तब देश का नेतृत्व उन लोगाें के हाथ में था, जिनका व्यक्तित्व स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि में निखरा था। आज देश के पास अनुभव तो है, पर उसका उपयोग कर संकीर्णताआें से ऊपर उठकर निर्णय लेने का साहस रखने वाला नेतृत्व नहीं है। जबकि किसी भी बाहरी आमण या घुसपैठ को नजर अंदाज करना घातक ही सिध्द होता है। बांग्लादेशी घुसपैठिये हमारे यहां बहुत बडी संख्या में हैं

लेकिन उनके बारे में कोई सुचिंतित राजनीति नहीं है। घुसपैठ की समस्या को आधार बनाकर असम में असम गण परिषद सत्ता में आई थी, लेकिन आज वह पार्टी हाशिये पर है। उल्फा के कैंप उस बांग्लादेश में अब भी पनाह लिए हुए हैं, जो आतंकवाद और कट््टरवाद का नया ग़ढ बनता जा रहा है। भारत के जन-जन को इन खतरों के प्रति आगाह करना आवश्यक है। किसी राष्ट्र की बाह्य सुरक्षा तभी संभव है, जब उसकी आंतरिक एकजुटता की दृढ़ता से बाहरी विश्व भली भांति परिचित हो। पिछले कुछ वर्षों से सामाजिक तथा धार्मिक एकजुटता में जो दरारें बढ रही हैं, वर्तमान राजनीति उन्हें पाटने का नहीं, बल्कि बढाने का सुनियोजित प्रयास कर रही है। जाति और धर्म आधारित राजनीति से सभी परिचित हैं। अल्पसंख्यकाें की राजनीति सदाशयता से प्रेरित होकर नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थवश की जा रही है। अल्पसंख्यक समुदाय को केवल वायदे मिलते हैं, स%चर कमेटी जैसे प्रतिवेदन चर्चा में आते हैं, घोषणाएं होती हैं और स्थिति जस की तस बनी रहती है।
व्यावहारिक रूप में आपसी भाईचारे, परस्पर विश्वास तथा समझ आशंका व अविश्वास का रूप ले लेते हैं। आम नागरिक इससे चिंतित होता है। दिन-प्रतिदिन के सामान्य जीवन पर इसका प्रभाव पडता है और कहीं न कहीं यह आंतरिक सुरक्षा तथा सामाजिक समरसता को प्रभावित करता है। कुछ महीने पहले एकाएक एक दिन के लिए कोलकाता किसके अधिकार में चला गया था? कुछ अनजान लोग सारे शहर को बंधक बना लें और सरकार के हाथ-पांव फूल जाएं, सेना बुलाने की नौबत आ जाए, तो व्यवस्था में निश्चित रूप से कहीं न कहीं असमर्थता व असहायता घर कर गई है। जिस प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर भारत को गर्व है, उसे कमजोर करने के प्रयासाें की जानकारी प्राप्त करना तथा उसे सुधारने के लिये जनमत को तैयार करने का काम अब प्रबुध्द नागरिकाें को ही स्वत: संभालना पडेगा। ऐसा न होने पर यह देश छोटी-छोटी उलझनाें में अपनी ऊर्जा और संसाधन गंवाता रहेगा। राजनेता अपनी रोटी अलग-अलग सेंकते रहेंगे। इसका खामियाजा तो आम नागरिक को ही भुगतना पडेगा। पिछले दिनों मुंबई में जो कुछ घटा, उसने भाषा और क्षेत्र के आधार पर भावनाएं भडकाकर कुत्सित राजनीति का एक और उदाहरण पेश किया।

सवाल यह है कि आजादी के साठ साल पूरे कर चुकने के बाद क्या किसी को भी इस प्रकार राष्ट्रीय एकता की ज़डों में विष घोलने की आजादी मिलनी चाहिए? पश्चिम बंगाल में भी हाल ही में इस तरह का एक मामला सामने आया, जिसमें एक मंत्री ने मारवाड़ियों की क्षमता, कर्मठता तथा कौशल को सिरे से नकारते हुए उन पर बेईमानी से आगे बढने का आरोप लगा दिया। कुछ महीने पहले असम में एक आदिवासी महिला को शर्मनाक ढंग से सैकडों लोगाें के सामने जलील किया गया, आदिवासी युवकाें को बेरहमी से पीटा गया। अपने देश में अपने लोगाें द्वारा अपनाें पर ऐसा अन्याय न होने देने के लिए सारे देश को सोचना होगा, केवल राजनेताआें के भरोसे रहने का समय निकल चुका है। उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा में जो दस हजार से अधिक लोग मुंबई से लौट गए हैं, उनके रोजगार और उनके ब%चों की शिक्षा का क्या होगा? भाषण देकर स्थितियां बिगाडने वाले तो उसी ढंग से भाषण देते रहेंगे, विकास तथा प्रगति की बातें करते रहेंगे। जम्मू-कश्मीर के लाखाें लोग आज अपने ही देश में शरणार्थी शिविराें में रह रहे हैं। हमारी असमर्थता बढ गई है या संवेदनशीलता घट गई है कि उनकी मदद करने और उन्हें फिर उन्हें अपनी ज़डों से जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं हो पा रहा? कुछ दिन पहले लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि राजनेताआें में अहंकार तथा हठवादिता बढ गई है। मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा इसका सुबूत है। ऐसे उदाहरण हर तरफ मिल जाते हैं।

जैसी कि अपेक्षा थी, आडवाणी के राजनीतिक विरोधियाें ने तत्काल उनकी उस टिप्पणी का विरोध किया। काश वे राजनीति में संवाद की महत्ता को समझते और सच को स्वीकार करने की क्षमता रखते। वरिष्ठ राजनीतिज्ञ आडवाणी का यह कथन विशेष रूप से उभरते हुए उस हर राजनेता के लिए सोचने और सीखने का अवसर दे सकता है, जो संवाद की राजनीति की शक्ति को समझ सकता हो। स्थिति इतनी विद्वेषपूर्ण है कि यदि कोई आडवाणी की इस उक्ति को सही कहे, तो हमारे देश के सेक्यूलर उसे तत्काल कम्युनल घोषित कर देंगे। राष्ट्रहित में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना आवश्यक है। देश की जनता की शक्ति का अंदाजा लगाने के लिए राजनीतिक दलाें को इंदिरा गांधी के सत्ता से हटने, जनता दल के बनने तथा विघटित होने और इंदिरा गांधी की वापसी को पूरे परिदृश्य में समझने वाले दल ही आगे अपना अस्तित्व कायम रख सकेंगे। शेष दल कब कहां बिखर जाएं, यह कोई नहीं कह सकता। शब्दार्थ
(लेखक एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक हैं)