आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Thursday, April 3, 2008

DATELINE INDIA NEWS APRIL,3,2008






DATELINE INDIA NEWS APRIL,3,2008
प्रतिपक्ष की भूमिका में सोनिया गांधी
डेटलाइन इंडिया
बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर), 3 अप्रैल - कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज एक चुनावी किस्म की सभा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम को खुले शब्दों में झाड़ा। उन्होंने कहा कि वे इस बात शर्मिन्दा है कि किसानों की कर्ज माफी में छोटे किसानों को लाभ नहीं मिल पाया है। मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस बारे में शीघ्र उचित कार्रवाई करेंगे।
श्रीमती सोनिया गांधी ने उन राज्यों का दौरा शुरू कर दिया है जहां जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनमें से ज्यादातर ने भाजपा की सरकारें हैं। सोनिया गांधी का पहला पड़ाव राजस्थान में तीर्थ माने जाने वाले बैंगेश्वर में था जहां उन्होंने खुले शब्दों में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी को कंाधार का मुजरिम करार दिया और कहा कि आडवाणी अपनी पुस्तक में लिखे अपने ही झूठ के जाल फंस गए हैं और खुद उनकी पार्टी में उनकी नीयत पर शक किया जा रहा है। श्रीमती गांधी ने राज्य सरकार या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में कुछ नहीं कहा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भावी मुख्यमंत्री भी घोषित नहीं किया।
श्रीमती गांधी अब भी पढ़कर ही बोलती हैं लेकिन इस आम सभा की खास बात यह भी थी कि बीच बीच में उन्होंने लिखे हुए भाषण से नजर हटा कर श्रोताओं से सीधा संवाद करने की कोशिश की। बीच में जहां वे हिंदी में अटक जाती थी वहां गिरिजा व्यास उनकी मदद करने सामने आती थी। श्रीमती गांधी का कार्यक्रम नए सिरे से बनाया जा रहा है और इसमें चुनाव के लिए तैयार हो रहे राज्यों को प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया जाएगा।
राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आज चुनाव प्रचार का शंखनाद करते हुए लोगों का आह्वान किया कि वे भारतीय जनता पार्टी के बहकावे में नहीं आयें और प्रदेश एवं देश के विकास के लिए कांग्रेस का सहयोग करें। उन्होंने बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सयुंक्त प्रगतिशील गठबंधन द्वारा प्रयास करने का जिक्र करते हुए इसके लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि जमाखोरों और मुनाफाखोरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने तथा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण भी महंगाई बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल समेत अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने के कारण महंगाई बढ़ी है।
मायावती को रोक पाएंगे राहुल?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 अप्रैल- कांग्रेस आलाकमान बसपा की मुखिया को उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं निकलने देना चाहती है इसके लिए आलाकमान ने कांग्रेस युवराज राहुल गांधी को लगाया है। उत्तर प्रदेश में फ्लॉप रहे राहुल गांधी अब दोबारा जमीन तलाशने के लिए जेल में जाने तक को तैयार हैं।
प्रदेश मुख्यमंत्री मायावती के दलित वोट बैंक पर सेंध मारने के लिए युवराज कर्नाटक दौरे की भूमिका यहां भी करने को तैयार हैं। राहुल गांधी गरीब दलित और आत्महत्या करने पर मजबूर किसानों को गले लगाने और उनके घर में एक रात गुजारने का कार्यक्रम बना रहे हैं इसकी शुरूआत बुंदेलखंड से करेंगे।
दलितों को पार्टी के साथ जोड़ने के लिए पार्टी महासचिव ने युवा कांग्रेस और एनएसयूआई की दलित यूनिट बनाने की हिदायत दी है। कांग्रेस प्रदेश में बसपा सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक चुकी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी साफ कर चुकी हैं कि कार्यकर्ता जेल जाने के लिए तैयार रहे। पार्टी महासचिव राहुल गांधी भी इसी रणनीति के तहत दलित बस्तियों में जाकर बैठकें करेंगे। राहुल उन किसानों के परिवार के साथ रात्रि विश्राम करेंगे, जिन्होंने कर्ज के बोझ में दब कर आत्महत्या कर ली। 14 अप्रैल से 18 अप्रैल तक चलने वाले इस कार्यक्रम का मकसद बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगाना है। इसके अलावा राहुल गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का जायजा भी लेंगे।
हिमाचल प्रदेश और गुजरात में बसपा ने कांग्रेस को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाने के कारण कांग्रेस बसपा प्रमुख को उत्तर प्रदेश में ही रोक कर रखना चाहती हैं क्योंकि कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हाल ही चुनाव होने हैं और यहां दलितों की तादाद काफी ज्यादा है। बसपा को उत्तर प्रदेश में नहीं रोका गया तो वह इन प्रदेशों में भी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है। इन सभी को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी 23 से 29 अप्रैल को आदिवासी क्षेत्रों के दौरे की तैयारी कर रहे हैं।

राजनाथ की नहीं सुनेंगी वसुंधरा
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली#जयपुर, 3 अप्रैल - राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने साफ साफ शब्दों में कह दिया है कि वे पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के कहने पर अपनी राजनीति नहीं चलाती। वसुंधरा और राजनाथ सिंह के बीच लंबे अरसे से चले आ रहे टकराव को वसुंधरा ने अपनी ओर से यह एक निर्णायक मोड़ दे दिया है।
वसंधरा मानती है और यह काफी हद तक सही भी है कि भारतीय जनता पार्टी में आज भी राजनाथ ंसिंह की तुलना में भूतपूर्व उपराष्ट्रपति भैरों ंसिंह शेखावत की हैसियत है। देश में राजपूत नेता के तौर पर भी चंद्र शेखर के निधन के बाद श्री शेखावत को सबसे बड़ा माना जाता है और खास तौर पर राजस्थान के मामले में शेखावत का समर्थ्रन वसुंधरा के लिए ज्यादा जरूरी है।
उधर भाजपा के बड़े नेता भी मानते हैं कि राजनाथ सिंह अपने आप को उत्तर प्रदेश और उसमें भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेता की हैसियत से आगे नहीं बढ़ा सके। अपने पुत्र पंकज सिंह को राजनीति में आगे बढ़ाने की उनकी कोशिशों में पार्टी के ज्यादातर नेताओं को और नाराज कर दिया है। वसुंधरा से राजनीति सिंह का झगड़ा उनकी हैसियत या राजनैतिक कद को लेकर नहीं है। वसुंधरा राजे की मां राजमाता विजयाराजे खुद राजपूत थी और इस नाते राजपूतों से उनका लगाव अच्छा खासा है।
राजनाथ सिंह ने लेकिन राजस्थान भाजपा में अकारण और अप्रत्याशित हस्तक्षेप करके वसुंधरा को खासा नाराज कर दिया है। जिस राज्य में चुनाव होने हो वहां पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री की सहमति के बगैर नहीं बदला जाता। इसके बावजूद राजनाथ सिंह ने वसुंधरा समर्थक महेश शर्मा को हटा कर उनकी जगह एक अज्ञात किस्म के नेता को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया। यह बात अलग है कि महेश शर्मा को लगभग पूरा जीवन दिल्ली में रहते बीत गया और उनकी सबसे बड़ी योग्यता यही थी कि वे भाजपा में सबसे आदरणीय माने जाने वाले नाना जी देशमुख के सचिव थे। उन्हें राज्यसभा में बनाए रखकर राजनाथ सिंह ने कमी तो पूरी की है लेकिन वसुंधरा को वे अब तक खुश नहीं कर पाए।
भाजपा के दोस्त बन गए टिकैत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 अप्रैल- उत्तर प्रदेश की राजनीति में अचानक प्रासंगिक हो गए महेंद्र सिंह टिकैत आखिरकार किस राजनैतिक दल की धरोहर बनेंगे? बसपा को उन्होंने परेशान कर रखा है, समाजवादी पार्टी के मित्रतापूर्ण संकेता का भी टिकैत ने कोई जबाव नहीं दिया है।
अंदर की बात यह है कि श्री टिकैत अपने बेटे राकेश के जरिए भारतीय जनता पार्टी से रिश्ते बढ़ाने में लग गए हैं। भाजपा से टिकैत का पहला मोलजोल तब स्थापित हुआ था जब उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह की सरकार थी और राकेश टिकैत तत्कालीन शहरी विकास मंत्री लाल जी टंडन कई गुप्त मुलाकाते करने गए थे। इन्हीं मुलाकातो के बदले टिकैत की भारतीय किसान यूनियन ने गन्ना किसानों को उनके बकाया दाम का सत्तर फीसदी भी दिलवा दिया था।
सैंकड़ों करोड़ की इस दक्षिणा के बाद भाजपा ने राकेश टिकैत को भाजपा में शामिल होने का निमंत्रण भी दिया था। उस समय दल बदल को ललित कला के तौर पर स्थापित करने वाले अजीत सिंह एनडीए छोड़ चुके थे और भाजपा को जाट नेताओं की सख्त जरूरत थी। भाजपा सूत्रों के अनुसार राकेश तैयार भी हो गए थे और उनकी अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात भी करवा दी गई थी लेकिन खुद महेंद्र सिंह टिकैत ने अपने बेटे को भाजपा में जाने से रोक दिया।
श्री टिकैत को अब लग गया है कि बगैर किसी बड़े राजनीतिक दल के समर्थन के, वे अपनी किसान राजनीति नहीं चला सकते। इसलिए लाल जी टंडन और राजनाथ सिंह से राकेश लगातार संपर्क में हैं और टिकैत समर्थकों के अनुसार जल्दी ही उनके नेता दिल्ली में एक रैली करेंगे जिसमें भाजपा के नेता भी शामिल होंगे।यह अगर होना ही है तो विधानसभा चुनावों से पहले ही होगा ताकि जाट वोटों का समर्थन राजस्थान विधानसभा चुनावों में मिल सकें। पिछली बार भी राजस्थान में भाजपा जाट वोटो की मदद से ही सरकार बना पाई थी।
मनमोहन के अधिकारियों का पलायन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 अप्रैल- बिना किसी सर्वेक्षण या ज्योतिषी की भविष्यवाणी क,े प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधिकारी जान गए हैं कि सरकार लंबी नहीं चलने वाली, चुनाव होंगे, नई सरकार बनेंगी और भले ही यूपीए फिर से जीते कम से कम मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे।
इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय से मनमोहन सिंह के सबसे भरोसेमंद अधिकारियों का पलायन शुरू हो गया है। प्रेस सलाहकार सजंय बारू के बाद अब प्रधानमंत्री निजी सचिव बी वी आर सुब्रमण्यम भी सात रेसकोर्स रोड छोड़ कर विश्व बैंक के मुख्यालय में निदेशक बन कर जा रहे हैं। अर्थशास्त्र के पोस्ट ग्रेजुएट होने के नाते खुद प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन पर काफी भरोसा करते हैं। छत्तीसगढ़ काडर के आईएएस अधिकारी श्री सुब्रमण्यम को मनमोहन सिंह ने शपथ लेने के कुछ महीने बाद ही साउथ ब्लॉक में बुला लिया था। उन्हें मिलाकर अब चार बड़े अधिकारी प्रधानमंत्री कार्यालय से विदा हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय की विशेष अधिकारी सुजाता मेहता स्पेन में राजदूत बन गई हैं और जावेद उस्मानी पहले ही विश्व बैंक में जा चुके हैं। भारत में प्रधानमंत्री कार्यालय की परंपरा रही हैं कि कार्यकाल खत्म होने के करीब आते ही हर प्रधानमंत्री अपने खास अधिकारियों का उनके कैरियर में चमकदार पुर्नवास करता है। क्या मनमोहन सिंह मान चुके हैं कि उनका कार्यकाल खत्म होने वाला है।
संजय बारू फाइनेंशियल एक्सप्रेस के संपादक के नाते मनमोहन सिंह के संपर्क में आए थे। उन्हें प्रधानमंत्री का मीडिया सलाहकार बनाया गया। संयोग से श्री बारू के पहले इसी अखबार के संपादक रहे बलबीर पुंज भाजपा की ओर से राज्यसभा के सदस्य हैं। सुब्रमण्यम ने प्रधानमंत्री से अपना कार्यभार बदलने के लिए कई बार कहा था लेकिन प्रधानमंत्री ने उन्हें नहीं छोड़ा। खबर तो यह भी है कि प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार और प्रधानमंत्री कार्यालय के सबसे ताकतवर अधिकारी एम के नारायणन भी अपना पद छोड़ना चाहते हैं। श्री नारायणन के केबिनेट सचिवालय में काम काज के तरीकों को लेकर सवाल उठने से वे काफी विचलित हैं। श्री नारायणन को कंधार के मुद्दे पर चल रहे विवादों से संबंधित वाजपेयी सरकार के दस्तावेज निकालने के लिए कहा गया था लेकिन वह यह दस्तावेज मांगने श्री वाजपेयी के जमाने के सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र के पास इन फाइलों की जानकारी लेने चले गए।

वासना के अभियुक्त नेता का दावा -
'मेरे कर्मो से पार्टी को फायदा'
डेटलाइन इंडिया
भुवनेश्वर, 3 अप्रैल-विधानसभा की सुरक्षाकर्मी के साथ यौनशोषण के आरोपों के बाद उड़ीसा विधानसभा के अध्यक्ष महेस्वर मोहंती ने इस्तीफा दे दिया है और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने जनसंपर्क मंत्री देबाशीष नायककोइस मामले का सूत्रधार बताते हुए,बर्खास्त कर दिया है... ऐसा होने के तुरंत बाद विभूति पति ने मोहंती से बात की...
असिस्टेंट मार्शल गायत्री पांडा ने आपके ऊपर यौन उत्पीड़न के जो आरोप लगाए हैं उस पर आप क्या कहेंगे?
ये मेरी लोकप्रियता को तार-तार करने की एक पूर्व नियोजित राजनीतिक साजिश है जिसे बीजू जनता दल के कुछ नेताओं ने मिलकर अंजाम दिया है। सबसे ज्यादा दुख मुझे इस बात का है कि उन लोगों ने मेरे ऊपर आरोप लगाकर पूरे बीजेडी को बदनाम कर दिया है।
आप कोई ऐसी वजह बताना चाहेंगे जिसकी वजह से गायत्री पांडा ने इस तरह के आरोप लगाने के लिए आप ही को चुना?
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सरत कार ने उन्हें अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया था। हर साल जनवरी में उनके अनुबंध का नवीनीकरण हो जाता था, इस साल भी मैंने उसे बढ़ा दिया था। लेकिन गायत्री अनुशासित तरीके से काम नहीं कर रही थी। यहां तक कि जब विधानसभा का सत्र चल रहा था, वो बिना किसी आधिकारिक छुट्टी के अपनी डयूटी से गायब थी। इसके फलस्वरूप पिछले साल 30 अगस्त को उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि बाद में उन्हें बहाल कर दिया गया, लेकिन उन्होंने अपना तरीका नहीं बदला। इस साल 16 फरवरी को उन्हें एक बार फिर से बर्खास्त कर दिया गया। हो सकता है उन्होंने ये ओछे आरोप इसी वजह से लगाए हों लेकिन मैं आपको एक बात और बता दूं कि इसके पीछे और भी कई लोगों की भूमिका है।
पहली बार उनकी बर्खास्तगी को वापस लेने की क्या वजह रही? क्या उस वक्त किसी तरह का दबाव था या फिर कोई और वजह...?
गायत्री ने माफी मांगी थी और आगे से अपना तरीका बदलने का वादा किया था। इसके अलावा एक मंत्री ने मुझे पत्र लिख कर और कई बार फोन करके उन्हें बहाल करने के लिए कहा था।
वो मंत्री कौन था?
जब तक मामले की जांच चल रही है मैं कुछ नहीं कह सकता। मैंने जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इस्तीफा दे दिया है।
क्या आप सूचना एवं जन संपर्क मंत्री देबाशीष नायक की तरफ इशारा कर रहे हैं?
मुख्यमंत्री ने उन्हें बाहर कर दिया है। अनुमान लगाने का काम आपका है।
ये बीजेडी नेताओं की आंतरिक खींचतान का नतीजा है?
नहीं, ऐसा नहीं है। दरअसल येर् ईष्या का नग्न प्रदर्शन है।
विपक्षी नेता हाउस कमेटी की बजाय सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। आप क्या कहेंगे?
मुझे समझ नहीं आता कि विपक्ष हाउस कमेटी की जांच को स्वीकार क्यों नहीं कर रहा है। आप संसद को देखिए, सवाल के बदले पैसा लेने के मामले में हाउस कमेटी ने जांच की और इसके आधार पर सांसदों को बर्खास्त किया गया। इसलिए विपक्ष द्वारा हाउस कमेटी की जांच को स्वीकार नहीं करने मुझे कोई कारण नज़र नहीं आता।
आपको लगता है कि इस विवाद की भारी कीमत बीजेडी को आने वाले विधानसभा चुनावों में चुकानी पड़ेगी?
नहीं, मैं ऐसा नहीं सोचता। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने बिल्कुल सही समय पर क़दम उठाया है। उन्होंने मंत्री देबाशीष नायक को बर्खास्त कर दिया, मैंने अपनी इच्छा से इस्तीफा दे दिया ताकि ईमानदारी से जांच हो। इन क़दमों से हमारी पार्टी की छवि और प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। इससे आने वाले चुनाव में हमें और भी बेहतर प्रदर्शन करने का हौसला मिलेगा।
नायक को निकाले जाने से आप खुश हैं?
ये मुख्यमंत्री का निर्णय है, उन्होंने कहा कि नायक से उनका विश्वास उठ चुका है। मुझे खुशी है कि अंतत: साजिश का खुलासा हो गया।

सिमी की कहानी में साध्वी का नाम भी
डेटलाइन इंडिया
इंदौर, 3 अप्रैल - पहले से जैड क्लॉस सुरक्षा में चल रही उमा भारती का सुरक्षा घेरा अब और बढ़ाया जाएगा। यहां गिरफ्तार हुए सिमी नेताओं ने खुलासा किया कि साध्वी को मारने के लिए उन्हें पच्चीस लाख रूपए की सुपारी दी गई थी। इस बात से सनसनी यह भी मची है कि सिमी के जरिए क्या भाजपा के नेता उमा भारती का सफाया कराना चाहते हैं? गुप्तचर ब्यूरो के अधिकारी पकड़े गए सिमी कार्यकर्ताओं और कमांडरों से पूछतांछ के लिए कल इंदौर पहुंच रहे हैं।
इसके अलावा अब इस खबर की भी पुष्टि हो चुकी है कि सिमी मध्यप्रदेश के मालवा अंचल को अपनी राजधानी मानकर चल रहा है और इससे मध्यप्रदेश पुलिस के होश उड़ गए हैं। प्रतिबंधित संगठन स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) के तेरह प्रमुख नेताओं की इंदौर में गिरफ्तारी के बाद हो रहे सिलसिलेवार खुलासों ने मध्य प्रदेश की धड़कनें बढ़ा दी हैं। प्रदेशभर से सिमी कार्यकर्ताओं की धरपकड़, खरगोन जिले के जंगलों में स्थित सिमी के प्रशिक्षण स्थल का भंडाफोड़ और वहां से विस्फोटकों के जखीरे की बरामदगी यह बताने के लिए काफी है कि संगठन प्रतिबंध के बावजूद लगातार अपनी जड़ें फैलाता रहा है। आपकी जानकारी के लिए खरगोन पिछले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और भूतपूर्व उप मुख्यमंत्री सुभाष यादव का इलाका है और भाजपा बात बढ़ने पर इस तथ्य को इस्तेमाल कर सकती ह
पुलिस अधिकारियों के अनुसार खरगौन जिले की दुर्गम पहाड़ियों से घिरे जंगलों में बीते दो सालों के दौरान सिमी ने एक-दो नहीं बल्कि पूरे पांच राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर लगाये। इन शिविरों में सिमी ने न केवल लड़ाके तैयार किए बल्कि वहां कुछ विस्फोटकों का परीक्षण भी किया गया।यह स्थान इंदौर जिले के महू सैन्य क्षेत्र से महज चालीस किलोमीटर के दायरे में स्थित है। सिमी के प्रशिक्षण स्थल के भंडाफोड़ के लिए चलाए गए खास अभियान में शामिल एक आला पुलिस अफसर ने कहा- हमने दो अप्रैल की सुबह सिमी सरगना सफदर हुसैन नागौरी, कमरूद्दीन नागौरी और आमिल परवेज को साथ लिया।
वह हमें खरगौन जिले के ग्राम गवालू से कोई आठ किलोमीटर दूर चोरल नदी के किनारे बने एक फार्म हाउस पर ले गया। फार्म हाउस का दरवाजा बंद था। हम इसे तोड़कर भीतर दाखिल हुये। मेटल डिटेक्टर व खोजी कुत्तो की मदद से तलाशी शुरू कर दी गई। उन्होंने कहा- वहां एक नजर में सब कुछ सामान्य लग रहा था। तभी खोजी कुत्ताा फार्म हाउस के बाहर एक गङ्ढे में जाकर बैठ गया। हमने देखा कि इसके पास एक और गङ्ढा था। खुदाई में हमें वहां बोरे का एक सिरा दिखाई दिया। इसे जब बाहर निकालकर खोला गया तो कुछ देर के लिए हमारे होश उड़ गये।
पुलिस अफसर ने कहा कि बोरे में जिलेटिन की 122 छड़ें, सौ डेटोनेटर, तार के दो बंडल, इलेक्ट्रिक स्टार्टर, वीडियो सीडी और सिमी से जुड़े आपत्तिजनक पर्चे बरामद किए गये। इसके अलावा वहां से उज्जैन से इंदोर के बीच के तीन टिकट भी मिले। इन पर तीन अलग-अलग दिनांक दर्ज थे। पुलिस अधिकारी ने कहा कि कुछ विस्फोटकों पर चिपकी पर्चियों से पता चलता है कि इनका निर्माण नागपुर में किया गया था। उन्होंने कहा कि पुलिस दल को सिमी के प्रशिक्षण स्थल से रोजमर्रा के इस्तेमाल की कुछ चीजें भी मिलीं। इससे ऐसा लगता है कि वहां बाहरी लोग लगातार आते जाते रहे हैं।
इस बीच फार्म हाउस के मालिक शहजाद हुसैन को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। उससे पूछताछ की जा रही है। साथ ही सिमी नेताओं से यह जानने की कोशिश भी जारी है कि विस्फोटकों का जखीरा उन तक कैसे पहुंचा। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक प्रशिक्षण स्थल के लिए खरगौन के जंगलों में स्थित फार्म हाउस का चयन खुद कमरूद्दीन ने किया था। कुछ शिविरों में उसके साथ सिमी सरगना सफदर हुसैन नागौरी, हफीज हुसैन, पीए शिवली और आमिल परवेज भी शामिल हुए थे। प्रत्येक शिविर में देशभर के कम से कम बीस सिमी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया गया। सूत्रों के मुताबिक पुलिस के हाथ ऐसे 19 कार्यकर्ताओं की सूची लगी है जिन्होंने सिमी के खरगौन प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लिया। सूत्रों ने कहा कि सिमी नेताओं से पूछताछ में पता चला है कि इन्होंने उज्जैन जिले में स्थित जागीर गांव में भी प्रशिक्षण शिविर लगाया था। इसमें कमरूद्दीन की खास भूमिका थी।
सिमी सरगना सफदर हुसैन नागौरी समेत संगठन के 13 नेताओं को 27 मार्च को इंदौर के श्यामनगर से गिरफ्तार किया गया था। सिमी नेता 11 अप्रैल तक पुलिस हिरासत में हैं। शहर के सशस्त्र पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय में खुफिया एजेंसियां और कई प्रदेशों के पुलिस दल इनसे रात-दिन पूछताछ कर रहे हैं।
भावी प्रधानमंत्रियों की लंबी सूची
डेटलाइन इंडिया
इंदौर, 3 अप्रैल - लोकसभा चुनाव जब होंगे तब होंगे लेकिन इस बार देश में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की भरमार है। भारतीय जनता पार्टी ने आधिकारिक रूप से विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी को इस पद के लिए अपना उम्मीदवार तय किया है और विपक्षी गठबंधन के अन्य सहयोगी दलों से भी उनके नाम के प्रति समर्थन जताया गया है। लेकिन वे सूची में अकेले नहीं हैं।
समय-समय पर कांग्रेसजन गांधी-नेहरू परिवार के जानशीन 37 वर्षीय राहुल गांधी को पार्टी के भावी नेता और संभावित प्रधानमंत्री के बतौर पेश करते रहे हैं। राहुल को कुछ ही माह पहले अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव बनाया गया है। कांग्रेस राहुल को अपने धोनी के रूप में भी पेश कर रही है। उधर पिछले साल उत्तार प्रदेश में अपनी जीत से उत्साहित बहुजन समाज पार्टी भी अपनी नेता मायावती को देश की अगली प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है।
अभी तक साथ कार्रवाई की शुरुआत करने में नाकाम रहने के बावजूद तीसरे मोर्चे ने भी यह संकेत देना शुरू किया है कि इस दौड़ में उसके अध्यक्ष एवं उत्तार प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पीछे नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन के नाम से जाने जाने वाले इस गैर-कांग्रेस गैर-भाजपा मोर्चे में चंद्रबाबू नायडू सरीखे नेता भी हैं जिनका नाम पहले इस शीर्ष पद के लिए आ चुका है। चूंकि मनमोहन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्णय से प्रधानमंत्री बने हैं और वे इस पद पर मजबूती से विराजमान हैं इसलिए कांग्रेस इस मुद्दे पर कुछ बोलना नहीं चाहती।
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति इस प्रश्न पर कहती है कि इस पद के लिए कोई रिक्ति नहीं है और चुनाव के समय इस पर फैसला किया जाएगा। राकांपा महासचिव डीपी त्रिपाठी ने कहा है कि प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारों को पेश करने के पार्टियों के कदम स्वागतयोग्य हैं। त्रिपाठी का कहना है कि देश फिलहाल गठबंधन युग से गुजर रहा है और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को पेश करना राजनीतिक बहुवाद का नतीजा है।
इधर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थक और विरोधी उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश कर रहे हैं जिसे गुजरात में ब्रांड मोदी की सफलता के बाद प्रधानमंत्री बनना चाहिए। खुद आडवाणी भी संकेत दे चुके हैं कि मोदी उनके हमकदम होंगे। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तरफ से कह चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री पद के मुद्दे में फंसना नहीं चाहते। उनके अनुसार मीडिया ने शरद पवार और चंद्रबाबू नायडू पर शीर्ष पद के लिए भविष्य का नेता के रूप में ध्यान केन्द्रित कर उनका राजनैतिक कॅरियर चौपट कर दिया।
पवार की पार्टी राकांपा कहती है कि पवार में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण हैं लेकिन त्रिपाठी कहते हैं कि हम छोटी पार्टी हैं और हम अपनी सीमाएं जानते हैं। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दिसंबर 2006 में लखनऊ में हुई बैठक में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने दुल्हनिया (सत्ताा) को उत्तार प्रदेश से दिल्ली ले जाने की बात कही थी। अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता और रेल मंत्री लालू प्रसाद प्रधानमंत्री बनने की अपनी इच्छा का संकेत पहले ही दे चुके हैं। लेकिन उनका कहना है कि फिलहाल उनका लक्ष्य अगले लोकसभा चुनाव में अच्छी खासी सीटें जीतना है। राजद संप्रग सरकार में फिलहाल दूसरा सबसे बड़ा घटक दल है। लेकिन बिहार में राजनैतिक परिदृश्य बदल रहा है। मौजूदा लोकसभा में अन्नाद्रमुक का एक भी सांसद नहीं है।
सर्वणों का कांशीराम कौन होगा?
डेटलाइन इंडिया
पटना, 3 अप्रैल - कांशीराम ने दलित शोषित संघर्ष समाज यानी डीएस-फोर पार्टी बनायी थी जो आज बसपा के रूप में बहुत बड़ी ताकत है। इसी तर्ज पर अब बिहार में सर्वर्णो की एसएस- फोर बन रही है। पहला महासम्मेलन हो चुका है और दूसरे की तैयारी दिल्ली में आयोजित करने की है।
बिहार में राजनीतिक रूप से हाशिए पर ढकेल दिए गए सवर्णों की अस्मिता और पहचान को लेकर सवर्ण शोषित संघर्ष समिति (एस-फोर) ने मुहिम छेड़ दी है। पटना में इस सामाजिक संगठन ने पहली बार राज्य के हिंदू व मुसलमान सवर्णों को एक मंच पर जमा किया और अपनी बात रखी। संगठन करीब छह महीने पहले वजूद में आया था और शुरू में उसमें हिंदू सवर्ण समुदाय की चार जातियां राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ शामिल थे।
संगठन ने बिना किसी शोर शराबे के राज्य में अपना काम शुरू किया और उसे व्यापक जनसमर्थन मिला। बाद में संगठन से जुड़े लोगों को लगा कि मुसलमानों को साथ लेने से सामाजिक सतह पर ही नहीं, राजनीतिक स्तर पर भी उनकी ताकत में इजाफा होगा। नतीजा यह निकला कि संगठन में शेख, सैयद, मल्लिक और पठान जैसे सवर्ण मुसलमानों को साथ लिया गया और अब शोषित सवर्ण संघर्ष समिति (एस फोर) के झंडे तले सवर्ण हिंदू व मुसलमान जमा हो रहे हैं।
बिहार में 15 सालों से राज्य की सत्ता पर काबिज लालू प्रयाद यादव और उनकी पार्टी राजद को उखाड़ फेंकने में राज्य के सवर्णों की प्रमुख भूमिका रही। बिना किसी भेदभाव के बिहार के 35 फीसदी सवर्ण हिंदू व मुसलमानों ने नीतीश कुमार की अगुआई में बनने वाली सरकार को एकमुश्त वोट दिया और सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाया। नतीजा यह निकला कि पहले राजद प्रमुख लालू प्रयाद यादव और फिर लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान तक को यह कहना पड़ा कि उनकी पार्टी आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण देने के पक्ष में है।
पटना में पिछले दिनों आयोजित इस संगठन के महासम्मेलन में 'चलो जात से जमात की ओर' का नारा देकर लोगों को बुलाया गया था। एस फोर ने इस महासम्मेलन में किसी भी राजनीतिक दल के सांसदों, विधायकों या राज्य के पदाधिकारियों को नहीं न्योता था। यानी एक भी ऐसा नाम नहीं, जो भीड़ जुटा पाए। पर इसके बाद भी हजारों लोग जमा हुए। बिहार के कोने-कोने से अपने साधनों से वे पटना आए और दिल की बात महासम्मेलन में रखी। लोगों के इस तरह जमा होने पर राजनीतिक दल अचंभे में भी हैं और उनकी परेशानी भी बढ़ी है। महासम्मेलन में राजद सुप्रीमो लालू प्रयाद यादव, लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वक्ताओं के निशाने पर रहे।
सम्मेलन में आम सहमति इस बात पर बनी कि सवर्णों को राजनीतिक रूप से हाशिए पर ढकेल दिया गया है और आजादी के बाद भी आरक्षण पर राजनीति हो रही है। आरक्षण का फायदा अब तक कितने लोगों या परिवार वालों को मिला है, इसकी जानकारी न तो सरकार के पास है और न ही आरक्षण का फायदा उठाने वाले बता रहे हैं। आरक्षण का प्रावधान देश में आजादी के बाद सिर्फ दस सालों के लिए कमजोर वर्गों को मुख्य धारा में लाने के लिए किया गया था पर 60 साल गुजरने के बाद आज भी यह जारी है।
बारूद पर बैठे पंजाब -कश्मीर के लोग
डेटलाइन इंडिया
श्रीनगर, 3 अप्रैल - पंजाब और जम्मू कश्मीर में आतंकवादियो से निपटने के लिए जो सुरंगे बिछायी गई थी वे लगातार जाने ले रहीं हैं और सेना ने हाथ खड़े कर दिए हैं। सेना मुख्यालय के एक प्रवक्ता के अनुसार जिन लोगों ने ये सुरंगे बिछायी थी वे अब रिटायर हो चके हैं और उनके बिना एक एक सुरंग को खोजना और निष्क्रिय करना संभंव नहीं हैं। सबसे खतरनाक बात यह है कि इनमें से कई जगहों पर इमारते भी बन चुकी हैं।
खासतौर पर जम्मू कश्मीर की जनता खतरनाक बारूदी सुरंगों के साए तले जिन्दगी काट रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के करीब 1900 वर्ग किमी क्षेत्र में लाखों बारूदी सुरंगें दबी पड़ी हैं जिनके आसपास लाखों लोग अपना जीवन काट रहे हैं। हालांकि इससे अधिक क्षेत्र और संख्या में बारूदी सुरंगें पाक अधिकृत कश्मीर में दबी पड़ी हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लैंडमाइन्स अर्थात बारूदी सुरंगों पर प्रतिबंध लागू करवाने के लिए जुटे करीब 1000 संगठनों की ताजा रिपोर्ट ने यह आंकड़े पेश किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इतनी संख्या में बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल करने और उनका भंडारण करने वाले देशों में भारत का स्थान अगर छठा है तो पाकिस्तान पांचवें स्थान पर आता है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, कश्मीर को बांटने वाली एलओसी तथा जम्मू सीमा के हजारों गांवों में लाखों लोग प्रतिदिन इन बारूदी सुरंगों के साए में अपना दिन आरंभ करते हैं और रात भी इसी पांव तले दबी मौत के साए तले काटते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये बारूदी सुरंगें आज कल में बिछाई गई हों बल्कि देश के बंटवारे के बाद से ऐसी प्रक्रिया चलती आ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत व पाकिस्तान की सरकारों ने माना है कि हजारों बारूदी सुरंगें अपने स्थानों से लापता हैं।

एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बारूदी सुरंगों के संजाल की बात तो समझ में आती है लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में कई ऐसे गांव हैं जिनके चारों ओर बारूदी सुरंगें बिछाई गई हैं। रिपोर्ट कहती है कि इनमें अगर आतंकवादग्रस्त क्षेत्र भी हैं तो वे गांव भी हैं जिन्हें एलओसी पर लगाई गई तारबंदी दो हिस्सों में बांटती है। असल में एलओसी की तारबंदी की सुरक्षा की खातिर इन बारूदी सुरंगों को इसलिए बिछाया गया था ताकि आतंकी घुसपैठ के दौरान उसे नुकसान न पहुंचा सकें।
पर सच्चाई यह है कि ये सुरंगें आज नागरिकों को क्षति पहुंचा रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, कुपवाड़ा के वरसुन गांव की कथा बहुत दर्दनाक है जहां 1990 के आरंभ में सेना ने अपने कैम्प के आसपास हजाराें बारूदी सुरंगें दबाई थीं। अब वहां कैम्प नहीं है पर बारूदी सुरगें वहीं हैं। यह वहीं पर इसलिए हैं क्योंकि सेना दबाईर् गई बारूदी सुरंगों के मैप को खो चुकी है।
करनाह के करीब चार गांव ऐसे हैं जिन्हें एलओसी की तारबंदी के साथ साथ अब बारूदी सुरंगाें की दीवार ने भी बांट रखा है। कई घरों के बीच से होकर गुजरने वाली बारूदी सुरंगों की दीवार को आग्रह के बावजूद भी हटाया नहीं जा सका है तो वर्ष 2002 में पाकिस्तान के साथ युध्द के करीब की स्थिति के दौरान आप्रेशन पराक्रम के दौरान दबाई गई लाखों बारूदी सुरंगों में से सैंकड़ों अभी भी लापता हैं। इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया जा चुका है। ये बारूदी सुरंगें कितना नुकसान पहुंचा रही हैं, सरकारी आंकड़े आप इसकी पुष्टि करते हैं। रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1989 से लेकर 2005 तक 10,709 मौतें जम्मू कश्मीर और आंध्र प्रदेश में इन बारूदी सुरंगों के कारण हो चुकी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अकेले पुंछ जिले के मेंढर कस्बे में 2000 ऐसे हादसे हो चुके हैं।

छह महीने की छुट्टी चाहिए बबलू डॉन को
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 3 अप्रैल - ओमप्रकाश उर्फ बबलू श्रीवास्तव इन दिनों एक ऐसी जेल तलाश रहें हैं जहां उन्हें छह महीने का एकांत मिल सके। इसलिए आज कल वे अपने खिलाफ दर्ज मामलों में स्टे आर्डर मांगते घूम रहे हैं। अंडरवर्ल्ड डॉन बबलू श्रीवास्तव अपाहरण के तौर तरीकों पर एक किताब लिख चुके हैं और अगली किताब कस्टम के जरिए हथियारों की तस्करी पर लिखने की तैयारी कर चुके हैं।
आज बबलू श्रीवास्तव को दिल्ली की एक अदालत में पेश किया गया और खतरनाक डॉन की आंखें नींद से बंद हो रही थी। कल डॉन लखनऊ में था और जरूरी कागज नहीं होने के कारण उसे जेल में घुसने भी नहीं दिया गया। रात हवालात के बाहर शख्त पहरे में कटी क्योंकि भीतर भीड़ बहुत थी और डॉन की सुरक्षा को खतरा था।

अजीब बात यह है कि कभी लखनऊ जिला कारागार को अपनी आरामगाह समझने वाले माफिया सरगना बबलू श्रीवास्तव और मंगे सरदार को लखनऊ के जिला कारागार में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई। काफी मशक्कत के बाद सुरक्षा में तैनात सिपाहियों ने उन्हें लौटा दिया।
बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया।बरेली सेंट्रल जेल में निरुध्द माफिया सरगना बबलू श्रीवास्तव और मंगे सरदार गत दो वर्षों में 80 बार पेशी पर लखनऊ आ चुके हैं। अक्सर वे जिला कारागार में गैर कानूनी तरीके से टिकते थे। बुधवार को भी उन्हें कोर्ट में पेश होना था। कोर्ट जाने से पहले सुरक्षा में तैनात पुलिस अधिकारी दोनों को लखनऊ जिला जेल लेकर पहुंच गए और अंदर प्रवेश करने की अनुमति मांगने लगे।
इस पर जेल अधीक्षक आर.के केसरवानी ने उनसे जेल में प्रवेश का आदेश पत्र मांगा। आदेश पत्र मुहैया न करा पाने पर जेल अधीक्षक ने प्रवेश की अनुमति से इनकार कर दिया। बताया जा रहा है कि बबलू और मंगे पेशी पर जाने से पहले जिला कारागार में नहाना और कपड़े बदलना चाहते थे। जेल अधिकारियों के मुताबिक, दोनों पेशी के बहाने यहां आते हैं और गैर कानूनी तरीके से लखनऊ जिला कारागार में आराम करते थे। इस दौरान अपने गुर्गों से संपर्क करते थे। पेशी के दौरान लखनऊ जिला जेल में गैरकानूनी ढंग से प्रवेश पाने के मामले में जेल विभाग जांच की तैयारी कर रहा है।

पुराने जासूसों को खोज रही है सरकार
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 3 अप्रैल - कश्मीर ंसिंह व सरबजीत के बहाने पाकिस्तान में वक्त बिताकर आए भारतीय जासूसों की कहानियां जैसे जैसे आम हो रही हैं, भारतीय विदेश मंत्रालय की मुशीबतें बढ़ती जा रही हैं। किसी भी दिन पाकिस्तान भारत से इन जासूसों का हवाला देकर उस पर दुश्मनी निभाने का आरोप लगा सकता हैं।इसलिए केबिनेट सचिवालय में अब जासूस के तौर भर्ती किए गए सभी लोगों का अता पता लेने और उनके कष्ट दूर करने की एक गुप्त मुहिम चला दी है।
इस बीच एक और कहानी पंजाब से ही सामने आयी है। अपनी जान को जोखिम में डालकर पाकिस्तान में जासूसी करने गए फरीदकोट निवासी ओमकार नाथ बधवार ने देश के लिए जासूसी भी की लेकिन उनके परिवार को फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। पाकिस्तान में बिताए छह साल के दौरान परिवार को उनका वेतन तक न दिए जाने के मामले पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 23 अप्रैल के लिए केंद्र और पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
फरीदकोट में हाईकोर्ट के निरीक्षक जज को इस मामले में अरजी देकर मांग की थी कि उनका छह साल का वेतन अदा किया जाए। साथ ही देश के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल देने पर उनके बेटे को सरकारी नौकरी में रखा जाए। इस अरजी को हाईकोर्ट ने न्यायिक स्तर पर रखते हुए इसे याचिका का स्वरूप देकर केंद्र और पंजाब सरकार से जवाब मांगा है।
खुफिया विभाग में नियुक्ति के बाद वे तीन बार पाकिस्तान गए। दो बार वापस भारत सुरक्षित लौटकर आए लेकिन तीसरी बार जाते समय 24 दिसंबर 1968 को पाक सेना ने उन्हें तब पकड़ा जब वे झज्जल सरहू चेक पोस्ट से पाकिस्तान में दाखिल हो रहे थे। लाहौर शशि फोर्ट में उनसे लगभग डेढ़ साल तक पूछताछ की गई। दो साल तक पाकिस्तान की अलग अलग जेलों में रखने के बाद उन्हें अक्तूबर 1972 में फांसी की सजा सुना दी गई।
भारत और पाकिस्तान के बीच कैदियों के आदान प्रदान के दौरान 9 दिसंबर 1974 को उनकी वतन वापसी हुई। भारत पहुंच कर उन्हें हैरानी हुई कि उनकी गैरमौजूदगी में उनके परिवार को उनका वेतन तक नहीं दिया गया। इससे परिवार को भूखे मरने की नौबत तक आ गई। अरजी में कहा गया कि पाकिस्तान में बिताए छह साल का वेतन दिलाया जाए और उनके बेटे को सरकारी नौकरी पर रखा जाए। जस्टिस मेहताब सिंह गिल और जस्टिस राकेश कुमार जैन की खंडपीठ ने 23 अप्रैल के लिए केंद्र और पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

सिंधी राम का कोई साथी नहीं बचा
डेटलाइन इंडिया
शिमला 3 अप्रैल -फर्जीवाड़े-में फंसने के बाद कांग्रेस पार्टी ने ही नहीं अब तो पूर्व बागवानी मंत्री सिंघी राम का अपनों ने भी साथ छोड़ दिया। बीमारी के बावजूद कांग्रेस के आला नेता और उनके करीबी भी सिंघी राम की सुध नहीं लेने नहीं पहुंचे।-इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में बीमार सिंघी की धर्मपत्नी उनकी तीमारदारी में पूरी तन्मयता से जुटी है।
आम मरीज की तरह अस्पताल में सिंघी का उपचार चल रहा है, जबकि कभी ऐसा वक्त भी था, जब उनके आगे पीछे कई लोग चलते थे। बेटी के फर्जी सर्टिफिकेट मामले में सिंघी ऐसे फंसे कि अब उनके साथ चलने का साहस कोई नहीं कर रहा है।सिंघी को अस्पताल की स्पेशल सेवाएं भी नसीब नहीं हैं। अन्य मरीजों की तरह उनकी भी पहले रोगी पर्ची बनी। इसके बाद आपातकालीन विभाग में डाक्टरों ने उनका चेक अप किया। डाक्टर ने उन्हें देर रात सीसीयू-में भरती किया। 14-घंटे तक वह सीसीयू-(क्रिटिकल-केयर यूनिट) में ही रहे। सोमवार 12-बजे के बाद ही उन्हें स्पेशल वार्ड में रेफर किया गया।
पूर्व मंत्री जब आईजीएमसी-में भरती हुए तो सबसे पहले डाक्टरों ने उनका ब्लड प्रेशर और शुगर टेस्ट किया। शुगर और ब्लड प्रेशर नार्मल था। पूर्व मंत्री ने फिर डाक्टरों को बताया कि उनकी छाती में दर्द है। डाक्टर ने फिर उन्हें-दर्द की दवाइयां दी। चिकित्सकों ने पुष्टि करते हुए बताया कि पूर्व मंत्री का अल्ट्रासाउंड भी किया जाना है। अन्य मरीजों की तरह उनका भी रुटीन में उपचार चल रहा है। इधर, आईजीएमसी-के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डा.-एसएस-मिन्हास-ने बताया कि पूर्व बागवानी मंत्री सिंघी राम मधुमेह और रक्तचाप के मरीज हैं। मेडिसन यूनिट-11-के चिकित्सक उनका उपचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डाक्टर से सिंघी राम की हालत के बारे में पूछा जा रहा है और उनको दो दिन तक निगरानी में रखा जाना है।
पूर्व कैबिनेट मंत्री सिंघी राम के अचानक अस्वस्थ हो जाने से फर्जी मार्क्सशीट-मामले की जांच प्रभावित हुई है। इस पर विजिलेंस एंड एंटी करप्शन-ब्यूरो अदालत से सिंघी के पुलिस रिमांड की अवधि बढ़ाने के लिए आग्रह करेगा। बीती रात सीने में दर्द होने के कारण सिंघी को इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती करवाया गया है, जबकि प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बीआर-राही को थाना सदर की हवालात में रखा गया। इस दौरान विजिलेंस ने राही से पूछताछ की, लेकिन जांच अधिकारी उनसे कुछ खास नहीं उगलवा पाए। सिंघी और राही के आमने-सामने-होने पर ही कई साक्ष्य हाथ लगने की उम्मीद विजिलेंस कर रही है।
अदालत से बाहर निकलने के बाद सिंघी ने अस्वस्थ होने की बात विजिलेंस अधिकारियों से कही। इसके बाद इन्हें पहले स्वास्थ्य जांच के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले जाया गया जहां से चिकित्सकों ने सिंघी को आईजीएमसी-रेफर कर दिया। सिंघी सीने में दर्द के अतिरिक्त रक्त चाप, मधुमेह से भी पीड़ित बताए जा रहे हैं। चिकित्सकों ने उन्हें दो दिन के आराम के लिए कहा है। दूसरी ओर राही, प्रमाण पत्र के बारे में सिंघी को ज्यादा जानकारी होने की बात कहकर खुद को निर्दोष बता रहे हैं। ऐसी स्थिति में जांच अधिकारी की दोनों आरोपियों से एक साथ पूछताछ करने की योजना थी, लेकिन सिंघी के अस्वस्थ होने से ऐसा संभव नहीं हो पाया। सिंघी के बीमार होने के कारण विजिलेंस की जांच धीमी पड़ गई है।
सूत्र बताते हैं कि सिंघी के आईजीएमसी-में भर्ती हो जाने से जांच प्रभावित हुई है। ऐसे में अब सिंघी की रिमांड अवधि बढ़ाने के लिए विजिलेंस अदालत में आग्रह करेगी। मंगलवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी शिमला यशवंत चोगल-की अदालत ने दोनों को पांच अप्रैल तक पुलिस रिमांड पर भेजा था। इन दोनों आरोपियों की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई पांच अप्रैल को होगी। इसी दिन विजिलेंस अदालत से सिंघी की रिमांड अवधि बढ़ाने के लिए अपना पक्ष अदालत के सामने रखेगी।
सिंघी के अस्पताल में भर्ती हो जाने के बाद प्रदेश शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बीआर-राही को हवालात में अकेले रात बितानी पड़ी। लेकिन इस बार आरोपियों को थाना छोटा शिमला की जगह थाना सदर में सरकारी मेहमान बनाया गया। दो दिन के भीतर विजिलेंस ने सिंघी और राही को दो थानों की सैर करवा दी। थाना सदर में मंगलवार की रात राही पर भारी पड़ी। रात साढ़े दस बजे राही को सदर के बंदी गृह में बंद कर दिया गया। हवालात के भीतर ही उन्हें दूसरे आरोपियों की तरह खाना दिया गया। बुधवार सुबह साढ़े आठ बजे विजिलेंस उन्हें थाने से अपने साथ पूछताछ के लिए पुलिस मुख्यालय ले गई।
पंजाब, हरियाणा और सीबीआई
विनोद मणि गौतम
पंजाब और हरियाणा ने सीबीआई पर बहुत ज्यादा अपराधिक मामलों का बोझ डाल दिया है। इनमें ज्यादातर मामलों में राजनैतिक लोग और बड़े अधिकारी मुजरिम हैं। अकाली दल-भाजपा सरकार के कार्यकाल में फिलहाल दो महत्वपूर्ण मामले सीबीआई को सौंपे जा चुके हैं जबकि पिछले बीस सालों में राज्य से लगभग 22 मामले में सीबीआई जांच कराई गई है।
सीबीआई के जांच के घेरे में अब तक अधिकतर पंजाब पुलिस के आला अफसर ही आए हैं।वर्तमान सरकार के कार्यकाल में तो छोटे-छोटे मामले भी सीबीआई को सौंपने की मांग उठने लगी है। कुछ समय पहले मोगा सेक्स स्कैंडल की जांच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंपी है। इस केस में दो पुलिस अफसर, जिनमें मोगा के पूर्व एसएसएपी डीएस गरचा और एक एसपी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। अब तो पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ही आतंकवाद के दौरान दस लोगों के फर्जी एनकाउंटर के सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। इस मामले में भी पंजाब पुलिस के पूर्व डीआईजी बख्शी राम समेत पुलिस के कई आला अफसरों पर गंभीर आरोप हैं।
आतंकवाद के दौरान फर्जी एनकाउंटर समेत अन्य कई मामलों की जांच सीबीआई पहले से ही कर रही है। इन मामलों में, वर्तमान महानिदेशक विजिलेंस सुमेध सिंह सैनी को सीबीआई ने हत्या और अपहरण के आरोप में चार्जशीट किया जा चुका है। सैनी पर ही चंडीगढ़ में एसएसपी रहते बम बलास्ट के एक आरोपी की पुलिस हिरासत में मौत और उसके बाद आरोपी के गायब होने के मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई है।वहीं वायरलेस घोटाला (6 आईपीएस समेत आठ पुलिस अफसर फंसे) मोगा सीआईए स्टाफ द्वारा दस लोगों का फर्जी एनकाउंटर मामला गुरदासपुर का खुंगर कांड (18 पुलिस अधिकारी और कर्मचारी फंसे) आईपीएस सुमेध सिंह सैनी पर अपहरण और हत्या का मामला भी इनमें से एक है।
हरियाणा के करीब दो दर्जन मामले जांच के लिए सीबीआई के सुपुर्द किए जा चुके हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके परिवार पर आय से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने का मामला, डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह के खिलाफ साध्वी के यौन उत्पीड़न, पत्रकार छत्रपति और कुरुक्षेत्र जिले के एक डेरा प्रेमी की हत्या का मामला, गुड़गांव में अंतरराष्ट्रीय किडनी कांड, गोहाना में अनुसूचित जाति के लोगों पर हमले की जांच का मामला अहम हैं।
सीबीआई ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को आरोपी ठहराया है तो जेबीटी शिक्षक घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, उनके बेटे अजय चौटाला, उनके राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी, दो आईएएस संजीव कुमार और विद्याधर को भी आरोपी बनाया है।
जेबीटी घोटाले के जांच सीबीआई से करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए थे जबकि गोहाना कांड और किडनी कांड की सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार द्वारा आग्रह किया गया था। इसी प्रकार डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने दिए थे। मार्च के अंतिम सप्ताह में गुड़गांव में एसीपी राजबीर की हत्याकांड की जांच सीबीआई से करवाने के लिए हरियाणा सरकार ने 1 अप्रैल को केंद्र को पत्र लिख दिया है। वहीं, पिहोवा में व्यापारी के पूरे परिवार की मौत के मामले की जांच सीबीआई से करवाने की घोषणा मुख्यमंत्री कर चुके हैं।
बीते वर्ष फरवरी माह के दौरान पानीपत के पास समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोट की जांच का काम अंतरराष्ट्रीय मामला होने के बावजूद सीबीआई को नहीं सौंपी गई। हालांकि इस घटना की जांच में जुटी हरियाणा पुलिस के हाथ आज तक कुछ भी नहीं लगा है। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के काफिले पर हुए बम हमले की जांच भी सीबीआई को नहीं दी गई, हालांकि डेरा प्रेमियों ने इसकी पुरजोर मांग की थी।
समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट की जांच की भांति ही काफिले पर हमले की जांच का जिम्मा भी हरियाणा पुलिस ही उठा रही है। लेकिन इस मामले में भी जांच दल मास्टर माइंड बख्शीश सिंह तक नहीं पहुंच सका है। इन मामलों की सीबीआई जांच से इंकार करते हुए राज्य सरकार ने हिसार में गुम हुए एक युवक के परिजनों की मांग पर मामले की जांच सीबीआई से करने को आग्रह किया। इसी तरह पलवल में दो बहनों की मौत के मामले की जांच भी सीबीआई से करवाने का आग्रह राज्य सरकार कर चुकी है। हालांकि सीबीआई ने इन दोनों मामलों की जांच करने से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार ने हिसार जिले से गायब युवक के मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए दोबारा आग्रह करने का फैसला किया है। शब्दार्थ

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