आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Thursday, June 19, 2008

कांग्रेस अब चुनाव की मुद्रा में

कांग्रेस अब चुनाव की मुद्रा में
आलोक तोमर

कांग्रेस ने भले ही एटमी करार के मामले पर वाम मोर्चा को भले ही उसकी औकात बता दी हो और फिर भी अपनी नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को टिकाए रखने का इंतजाम कर दिया हाें मगर सोनिया गांधी कोई खतरा मोल नही लेना चाहती। उन्होने चुनाव अभियान की शैली मे देश घूमना शुरू कर दिया है। इसी महीने वे लगभग पंद्रह साल बाद मिजोरम गयी थी जहां उनकी बांस की टोपी पहने तस्वीरे आपने अब तक देंख भी ली होगी।

इसके बाद उन्होने महाराष्ट्र के औरंगाबाद के दौरे का कार्यक्रम बनाया। यह विदर्भ का वह इलाका है जहां शरद पवार की खूब चलती है और भाजपा ने भी अच्छा खासा वोट बैंक विकसित किया है। शिव सेना का भी यहां खूब असर है। कांग्रेस जानती हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद अगर महाराष्ट्र भी हाथ से गया तो सरकार बनाने मे अच्छी खासी दिक्कते आ सकती है। कांग्रेस के पास श्रीमती सोनिया गांधी से ज्यादा बड़ा और जीत सुनिश्चित करवाने वाला कोई दुसरा नेंता नही है और जाहिर है कि सोनिया गांधी अपनी इस महिमा को अच्छी तरह समझती है और इसलिए वे अभी से चुनाव अभियान मुद्रा मे आ गयी है।

सोनिया गांधी के भाषण भी खासे चुनावी अंदाज मे होते है। इसके पहले कि दुसरे लोग महंगाई को मुद्दा बनाएं, खुद सोनिया गांधी मुद्रास्फीति और महंगाई की बात छेड़ देती है और लगे हाथ एटमी करार को सभी मुसीबतो का निदान बता कर एक तीर से कई निशाने साध लेती है। वे मनमोहन सिंह को उनकी गैर हाजिरी में देश का अब तक का सबसे काबिल प्रधानमंत्री करार दे देती है और इस चक्कर मे नेहरू जी, इंदिरा गांधी और अपने पति राजीव गांधी का नाम भी किनारे कर देती है। सोनिया गांधी वर्तमान मे रहने की राजनैतिक ललित कला सीख गई है।

मिजोरम की सभा उस दिन हुई जिस दिन के अखबारो के शीर्षक पेट्रोलियम के दाम और ज्यादा बढ़ने की आशंकाओ से भरे हुए थे। सोनिया गाधी अपने भाषण मे कहा - भाइयो और बहनो, आपको हमारे माक्र्सवादी मित्रो और देश की आत्म निर्भरता मे से एक का चुनाव करना है। एटमी करार को एक चुनावी मुद्दा बना देना न आकस्मिक है और न अनायास। अ्रगर यूपीए की सरकार दोबारा बनी तो बहुत आराम से यह कहा जा सकता है कि अब तो इस समझौते को जनादेश भी मिल गया है। अगर कांग्रेस और उसके साथी सरकार बनाने लायक बहुमत नही जुटा सके और भाजपा सहित किसी तीसरे चौथे या पांचवे मोर्चे की सरकार आई तो इस करार पर फैसला लेने की जिम्मेदारी होगी। भाजपा तो वैसे भी इस करार का विरोध बहुत मुखर हो कर नही कर रही है। उसका कहना सिर्फ यह है कि भारत के हितो को सर्वोपरि रखना चाहिए। इस मामले मे मनमोहन सिह पहले ही भारतीय हितो की रक्षा करने वाले दस्तावेज तैयार कर चुके है।

अब यह मनमोहन सिह का कसूर नही है कि माक्र्सवादियो को यह दस्तावेज और उसकी भाषा पसंद नही आ रही है। लेकिन यह कांग्रेस की चिंता का विषय जरूर है। वामपंथी सरकार के अस्तित्व के लिए पच्चीस जून तक की समय सीमा दे चुके है। इसके बाद अगर एटमी करार पर उनकी बात नही मानी गई तो वे समर्थन वापस लेगें और पक्की बात है कि अविश्वास प्रस्ताव ले कर आएगें। भाजपा उनका समर्थन करेगी और अभी तक जो गणित है उसके अनुसार सरकार यह विश्वास मत जीत भी सकती है मगर इसके लिए उसे मुलायम सिंह यादव आदि को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और यह कीमत सिर्फ राजनैतिक नहीं होगी। इसीलिए कांग्रेस अव्वल तो वामपंथियो को सरकार गिराने का सुख नही लेने देगी और बाइज्जत विश्वास मत जीत कर लोक सभा भंग करने की सिफारिश करेगी और फिर शान से चुनाव के मैदान में जाएगी।

जैसे कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि अगले आम चुनाव में माक्र्सवादियों के सांसदों की गिनती बीस तक घटेगी तो यही हाल लालू यादव का भी होने वाला है। वे दस जनपथ के वफादार सही लेकिन यूपीए के लिए गणित में मददगार नही होगें। लालू यादव का नुकसान नीतिश कुमार का लाभ होगा और कांग्रेस का मानना है कि वह धर्मनिरपेक्षता के टोटके के सहारे नीतिश कुमार और उड़ीसा के नवीन पटनायक को भी अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो सकेगी।

समीकरणों पर और गणित पर ही जब पूरी राजनीति चलनी है तो एटमी करार से बढ़िया मुद्दा कांग्रेस को नही मिल सकता। जहां बिजली नही है, और वह देश के ज्यादातर हिस्सों में नही है, मतदाता को आसानी से समझाया जा सकता है कि अगर लेफ्ट वालों ने यह करार होने दिया होता तो आपके घर इस समय दीवाली मन रही होती। सौ बातों की एक बात यह है कि कांग्रेस अब आम चुनाव की मुद्रा में आ चुकी है और जाहिरा तौर पर वामपंथियों को ब्लैकमेलर साबित करने पर तुल गई है। शुरूआत बहुत पहले ही खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कर दी थी जब हरियाणा की एक सभा में कई महीने पहले उन्होंने गरज कर कहा था कि वामपंथी सरकार कल गिरा रहे हों तो आज गिरा दें लेकिन यूपीए उनकी धमकियों के बीच नही चलेगा और हमें कुर्सी से कोई खास मोह नही है।

उधर कांग्रेस भी जानती है कि भाजपा को भले ही साथियों की कमी खल रही हो, उसे हल्का प्रतिपक्ष मान कर नही चला जा सकता। आखिरकार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस लगातार हारती जा रही है और भाजपा उसका सफाया करती जा रही है। जब यूपीए सरकार बनी थी तो उसके पास चौदह राज्य सरकारे थीं जो अब घट कर चार रह गई हैं। इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कोई बहुत चमकदार नतीजों की उम्मीद नही करनी चाहिए। जिस राजस्थान में भाजपा घिसटती हुई दिख रही थी वहां भी गुर्जरों और उनके साथ दूसरी जातियों के गरीबों को आरक्षण दे कर वसुंधरा राजे ने तुरप चाल चल दी है। सोनिया गांधी को इन राज्यों में लोकल नेता की तरह मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि मध्य प्रदेश, छत्ताीसगढ़ और राजस्थान में जो लोकल नेता उन्होंने भावी शासक बना कर भेजे हैं उनमें से ज्यादातर का कोई जनाधार ही नही है। इसके अलावा कांग्रेस को यह अच्छी तरह याद है कि तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार करेंगे। इसीलिए आश्चर्य नही होना चाहिए कि सरकार विश्वास मत जीते और अगले दिन लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दे।

1 comment:

cartoonist ABHISHEK said...

dada
pranaam kar rha hun...