आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Friday, April 4, 2008

जिन्ना के खेल और भोपाल के रिश्ते








आलोक तोमर
नई दिल्ली, 4 अप्रैल- मोहम्मद अली जिन्ना की नजर भोपाल और इंदौर रियासतों पर थी और उन्होने अपनी तरफ से इन दोनों को पाकिस्तान में विलय करवाने का पूरा इंतजाम कर लिया था। इस इंतजाम में यह सौदा भी शामिल था कि भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां को जिन्ना खुद पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल न बनकर पाकिस्तान का पहला शासक बनना चाहते थे।
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद दस्तावेजों से एक अविश्वसनीय लेकिन सच कहानी सामने आई है। यह कहानी अगर ठीक वैसे ही चलती रहती, जैसे लिखी गई थी तो हम नवाब पटौदी को पाकिस्तान के संस्थापक शासक का नाती और फिल्म एक्टर सैफ अली खान को पाकिस्तान के एक सबसे बड़े नेता के वंशज के तौर पर जानते। इस कहानी में सिर्फ फिल्म का ही नहीं क्रिकेट का भी ग्लैमर है। यह ग्लैमर सिर्फ टाइगर नवाब पटौदी की वजह से नहीं, उनके पिता इफ्तिखार पटौदी की वजह से भी है जो एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जो भारत और इंग्लैंड दोनों की क्रिकेट टीमों के लिए खेल चुके हैं। वे नवाब पटौदी के पिता और हमीदुल्ला खां के दामाद थे।
भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला खां और इफ्तिखार दोस्त भी थे और नवाब, जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू दोनों के दोस्त थे। टाइगर पटौदी के पिता इफ्तिखार तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के संस्थापक अध्यक्ष भी कहे जाते हैं। तब यह बोर्ड नहीं कमेटी थी। जिन्ना ने अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होने भोपाल नवाब परिवार की राजकुमारी आबेदा सुल्तान से निकाह करने का प्रस्ताव भी बुढ़ापे में भेज दिया था और इस बात की परवाह भी नहीं की थी कि वे मध्यप्रदेश के ही करूवाई के नवाब सरवर अली की तलाकशुदा बीबी थी। आबेदा पाकिस्तान जा कर बस जरूर गईं लेकिन विभाजन के ठीक बाद जिन्ना की मौत टीबी से हो गई और आबेदा ताउम्र अकेली रहीं। उन्होने कराची में एक हवेली बनवाई थी जिसका नाम आज भी भोपाल हाउस है।
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के ठीक पहले, इन दस्तावेजों के अनुसार, जिन्ना खुद भोपाल आए थे और जहानुमां महल में रूके थे। ये महल अब एक पांच सितारा होटल है। आबेदा ने एक बागी राजकुमारी की डायरी नाम से अपने सस्ंमरण लिखे हैं और इनमें लिखा है कि नवाब ने भोपाल में नीचे का बाग स्थित एक इमारत में उन्होने बुलाया और पिस्तौल दिखा कर कहा कि वे पाकिस्तान के शासक बन कर जा रहे हैं और भोपाल की रियासत उन्हें ही चलानी होगी। आबेदा ने मना कर दिया तो रियासत का वारिस साजीदा सुल्तान को चुना गया और उनकी शादी इफ्तिखार अली खान से हुई।
नवाब पटौदी इफ्तिखार और साजीदा के बेटे हैं और सैफ अली खान उनके बेटे हैं। नवाब हमीदुल्ला खान पाकिस्तान जा पाते इसके पहले सरदार बल्लभ भाई पटेल को इस बात की भनक लग गई और उन्होने तब के युवा नेता और बाद में भारत के राष्ट्रपति बने शंकर दयाल शर्मा के नेतृत्व में भोपाल में एक नवाब विरोधी आंदोलन खड़ा करवाया और आंदोलनकारियों ने महल से बाहर निकलने के सारे रास्ते रोक दिए। फिर पटेल की सचिव बीपी मेनन एक विशेष विमान से भोपाल पहुंचे, नवाब से उनकी मुलाकात हुई और उन्हें बताया गया कि पाकिस्तान और भोपाल के बीच हमेशा इतना हिन्दुस्तान रहने वाला है कि, पाकिस्तान में विलय का उनका सपना कभी पुरा नहीं हो सकता। नवाब ने इसके बदले अपनी नवाबी सुरक्षित रखने की मांग रखी, जिसे मान लिया गया। कहानी का अगला मोड़ यह है कि हमीदुल्ला खान की मौत जब हुई तो नवाब पटौदी को भोपाल का नवाब भी घोषित कर दिया गया मगर भारत सरकार ने इसे कभी मान्यता नहीं दी। बाद में तो राजा राजकुमार और नवाब संबोधन भी संवैधानिक रूप से खत्म कर दिये गए और उनके भत्ते यानी प्रीवी पर्स पर भी बंदिश लगा दी गई। श्रीमति इंदिरा गांधी के इस कदम के खिलाफ नवाब पटौदी हरियाणा के गुड़गांव से लोकसभा चुनाव लड़े थे और बुरी तरह हार गए थे।
जहां तक इंदौर की बात है तो जिन्ना के इंदौर जाने का कोई हवाला इन दस्तावेजों में नहीं मिलता लेकिन जिन्ना ने इंदौर के एक सबसे रईस परिवार में निकाह करने का अपना दांव चला था और इंदौर की मस्जिद में पाकिस्तान के पक्ष में दुआ करते हुए नमाजें भी पढ़वाई थी। जिन्ना की बहन फातिमा इंदौर गईं थी और अपने भाई के लिए रिश्ता और इस रिश्ते के एवज में इंदौर का पाकिस्तान में विलय मांगा था। तब तक इंदौर के होल्कर परिवार का असर खत्म हो चुका था। इंदौर हालांकि हिन्दु बहुल इलाका है लेकिन यहा कई रईस परिवार सुदखोरी की वजह से अपना अच्छा खासा असर बनाए हुए थे। इंदौर और भोपाल पर पाकिस्तान का झंडा फहराने का जिन्ना का सपना पूरा नहीं हुआ और बाद में तो पाकिस्तान में भी यही हाल हो गये थे कि जिन्ना की बहन फातिमा अयूब खान के जमाने में चुनाव लड़ीं तो उनकी जमानत ही जब्त हो गई।


जिन्ना के बंगले का एक और वारिस
डेलाइन इंडिया
्मुंबई, 4 अप्रैल-मुंबई में पाकिस्तान के संस्थापक कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना का आलीशान बंगला अक एक और नए विवाद में फंस गया है। अब तक पाकिस्तान सरकार और जिन्ना की बेटी डीना बाडिया ही इस पर हक जमाते आए थे लेकिन अब एक और वारिस पैदा हो गया है।



मोहम्मद इब्राहीम नाम के इस शख्स ने एक वसीयत अदालत में पेश की है, जिसके अनुसार जिन्ना ने उनकी दादी मरियम पीरभाई के नाम इस बंगले की वसीयत की थी। मरियम जिन्ना की चचेरी बहन थी और इस नाते मोहम्मद इब्राहीम जिन्ना के वंशज ही हुए। दो हजार करोड़ रुपये कीमत के माने जाने वाले इस आलिशान बंगले के वारिस होने के पक्ष में इब्राहीम के पास वसीयत भी है। दीना वाडिया मशहूर उद्योगपति नुसली वाडिया की मां हैं और उनकी ओर से उनके वकील ने अदालत को सूचित किया है कि यह वसीयत जिन्ना की हो सकती है लेकिन मरीयम खुद पाकिस्तान चली गई थी और वहीं जाकर उन्होने वसीयत को वहां की अदालत से प्रमाणिथ करवाया था। पाकिस्तानी अदालत के प्रमाण की भारत में कोई कीमत नहीं है।



इस समय यह इमारत भारत सरकार की संपत्ति है। इस बंगले का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि भारत और पाकिस्तान बनने से रोकने के लिए विभाजन के खिलाफ बातचीत करने के लिए महात्मा गांधी भी यहां आए थे और एक तरह से विभाजन का फैसला भी इसी बंगले में हुआ था। खुद जिन्ना ने जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर इस बंगले के रख-रखाव और इसकी देख रेख के लिए पैसा देने का प्रस्ताव किया था और यह भी कहा था कि वे भारत आते रहेंगे और हमेशा बंबई के इसी इमारत में ठहरेंगे। 1939 में बना ये बंगला अब खंडहर होता जा रहा है और हाल ही में सरकार ने इसके नवीनीकरण के लिए रकम मंजूर की है। सरकारी वकील का कहना है कि इब्राहीम इतने वर्षो तक बंगले पर दावेदारी करने का इंतजार करता रहा, इसका सीधा मतलब यह है कि उसे बंगले की विरासत में नहीं कीमत में दिलचस्पी है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 अप्रैल को होगी।

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