सुप्रिया रॉय
राजीव शुक्ला आज राजनीति में भी हैं, क्रिकेट में भी, पत्रकारिता में भी, खबरों के कारोबार में भी और ग्लैमर की दुनिया में भी। सैंतालीस साल की उम्र में राज्य सभा में दूसरी बार आ जाने और देखते ही देखते क्रिकेट की दुनिया पर छा जाने वाले राजीव शुक्ला ने बचपन में कंचे और गिल्ली ठंडा खूब खेला है और कानपुर के दैनिक जागरण में, बड़े भाई दिलीप शुक्ला की छत्र छाया में जब उन्होनें पत्रकारिता शुरू की होगी तो ज्यादातर लोगों की तरह उनकी उम्मीदें बड़ी भले ही हों लेकिन खुद उन्हें अंदाजा नही होगा कि आखिर उनकी नाव किस घाट पर जा कर लगेगी। आज वे सफल भी हैं, समृध्द भी और प्रसिध्द भी लेकिन यह नही कहा जा सकता कि उनकी नाव घाट पर लग गई है। अभी बहुत सारी धाराएं, बहुत सारे भंवर और बहुत सारे प्रपात रास्तें में आने हैं और राजीव शुक्ला को उन्हें पार करना है। इतना तो है कि 1983 में दिल्ली के एक क्रांतिकारी अखबार में नौकरी के लिए इंटरव्यूह देने आए सभी लोगों के बीच कम से कम ढाई हजार रुपए की मांग करने की आम सहमति बनाते धूम रहे राजीव शुक्ला आज अपने टी वी चैनल में लोगों को आसानी से ढाई-ढाई लाख रुपए की नौकरियां देते हैं और एक जमाने में स्कूटर तक नही खरीद पाने वाले राजीव अब हवाई जहाज से नीचे नही उतरते और आम तौर पर उन्हें चार्टड जहाजों में भी देखा जाता है।
इन दिनों जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में वर्चस्व की लड़ाई जोर शोर से चल रही है, जगमोहन डालमिया पर आरोप लगें हैं और वे इनके जवाब में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के मूड में हैं, भारतीय क्रिकेट टीम कभी शेर हो जाती तो कभी ढेर हो जाती है- ऐसे दौर में बी सी सी आई के ताकतवर उपाध्यक्ष और सबसे प्रसिध्द चेहरे के तौर पर होने के बावजूद राजीव शुक्ला विवादों के घेरे में नही आते। वे रणवीर महिन्द्रा, बिन्द्रा, ललित मोदी और शरद पवार के साथ आसानी से चल लेते है और यह बात बहुतों को आश्चर्य में डालती है लेकिन उन्हें नही जो राजीव शुक्ला की फितरत को जानते हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो काफी आसानी से राजीव शुक्ला के सब तरह के उथान को जूगाड़ और अवसरवाद करार दे कर अपना कलेजा ठंडा कर लेते हैं और उनके पास इसके बारे में कुछ तर्क, कुछ कारण जरूर होगें लेकिन उनके लिए यह समझना कठिन है कि अस्तित्व और आकांक्षा के अध्दैत को साधने के लिए निर्गुण और सगुण का नही निराकार और साकार में से साकार का चुनाव करना पड़ता है। राजीव शुक्ला ने राजनीति के साकार पात्रों को साधा और एक बड़ी बात यह है कि धाराएं भले ही अलग हो गई हो, नाता किसी से नही तोड़ा। पता नही कब और किस मोड़ पर वे यह ध््राुव सत्य सीख गए थे कि असली निवेश रिश्तों में किया गया निवेश होता है। जब वे राज्य सभा का पहला चुनाव निर्दलीय लड़े और बड़े बड़े धन्ना सेठों को हरा कर सबसे ज्यादा वोटों से जीते तब यह सच पहली बार उनके संदर्भ में सामने आया था।
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राजीव शुक्ला के बहाने समकालीन राजनीति का और खेल की राजनीति का एक पूरा खाका आप खींच सकते हैं। वे जब किराए के एक मकान में, सरकारी कॉलोनी में कई दोस्तों के साथ रहते थे तो अखबार के काम के अलावा उनका ज्यादातर समय अपनी निजी संपर्क डायरेक्टरी विकसित करने में बीतता था। दिल्ली आ कर वे सबसे पहले पड़ोसी मेरठ जिले के संवाददाता बने और देखते ही देखते मेरठ खबरों के अखिल भारतीय नक्शे पर आ गया। फिर वे रविवार में गए और जिस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह को निरमा साबुन से भी ज्यादा साफ समझा जाता था और उन्हें जयप्रकाश नारायण के उत्ताराधिकारी के तौर पर स्थापित करने की समवेत कोशिशें चल रहीं थी, राजीव ने रविवार के आवरण कथा में एक सच लिख कर सबके छक्के छुड़ा दिए। सच यह था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एक नाटकीय क्षण में अपनी बहुत सारी जमीन विनोबा भावे की भूदान यात्रा में दान कर के यश कमाया था और फिर जब उन्हें लगा था कि गलती हो गई तो उन्होनें अपनी पत्नी की ओर से अपने ही खिलाफ हलफनामा दिलवाया कि उनका पति पागल है और उसके ध्दारा दस्तखत किए गए किसी भी दस्तावेज को कानूनी मान्यता नही दी जाए। राजीव शुक्ला को कांग्रेस का एजेंट घोषित कर दिया गया मगर वे यह मुहावरा चलने के बहुत साल पहले मुन्ना भाई की तर्ज पर लगे रहे। कम लोग जानते हैं कि शाहबानों प्रसंग में बागी आरिफ मोहम्मद खान और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच संवाद का एक सबसे बड़ा सेतु भी राजीव ही थे और यही उनके इस परिवार से संपर्क स्थाापित होने की शुरूआत थी।
क्रिकेट की दुनिया में राजीव शुक्ला को स्वर्गीय माधव राव सिंधिया लाए थे। राजीव ने इस खेल की महिमा और ताकत को पहचाना और इसके सहारे कई राजनैतिक मंजिलें भी पार की। इस बीच वे अचानक बहुत हाई प्रोफाइल हो चुके थे, राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच चाहे जैसी तनातनी चलती रहे लेकिन दोनों की विदेश यात्राओं में राजीव की सीट पक्की होती थी। दिल्ली की पीटीआई बिल्डिंग में अपने ऑफिस में काम करते वक्त पीटीआई की एक बहुत दमदार पत्रकार अनुराधा से पहचान हुई, रिश्ता बना और आज तक बना हुआ है। अनुराधा टीवी में चैनलों की क्रांति होने के पहले से ही दिलचस्पी रखती थी और पीटीआई टीवी के नाम से शुरू हुई संस्था में उनकी मुख्य भूमिका थी। राजीव शुक्ला से भी उन्होनें दूरदर्शन पर बड़े लोगाेंं से अंतरग मुलाकातों का कार्यक्रम रूबरू शुरू करवाया। इस कार्यक्रम को आज एनडीटीवी पर चलने वाले शेखर गुप्ता के वॉक द टॉक का पूर्वज माना जा सकता है। इसी दौरान वे फिल्मकार रमेश शर्मा के टीवी शो के लिए निकले और चंबल घाटी पर कई ऐपीसोड की किस्तें बना कर ले आए।
राजीव शुक्ला की कहानी हमारे समय की राजनीति की एक प्रतिनिधि कथा है। बहुत सारे परिचित और अपरिचित हैं जो राजीव शुक्ला की छवि को पच्चीस साल पुराने सांचे में रखकर देखते हैं जब वे दिल्ली की एक्सप्रेस बिल्डिंग के बगल के एक ढाबे में दोस्तों के साथ खाना खाते थे और अपने हिस्से का दाम चुकाने के लिए चिल्लर की तलाश करते थे। नए अवतार में राजीव शुक्ला पुराने ही हैं मगर उनकी एक छवि में बहुत सारी छवियां समा गई हैं। उनके दोस्तों में अब शाहरुख खान भी हैं और विजय माल्या भी। अंबानी कुटुबं से तमाम विरोधाभासों के बावजूद उनकी इतनी तो निभती ही है कि अंबानी समूह के अखबार ऑब्जर्बर के संपादक वे सांसद बनने के बाद तक बने रहे। आज भी संसद की उनकी परिचय पुस्तिका में उनका पेशा पत्रकारिता ही लिखा हुआ है। रिडिफ वेबसाईट ने तो उन्हें पिछले पंद्रह साल से भारत में सबसे ज्यादा प्रभावशाली संपर्को वाला पत्रकार घोषित किया हुआ है। हिंदी मीडियम में पढे अौर ज्यादातर हिंदी पत्रकारिता करने वाले राजीव शुक्ला ने इतनी धमाकेदार अंग््रोजी कब और कहां से सीख ली, यह जरुर सबके लिए रहस्य बना हुआ है।
लिखने के मामले में राजीव शुक्ला प्रभाष जोशी या राजेन्द्र माथुर नही हैं और न उनकी रिर्पोटिंग में पत्रकारिता में उनके अग््राज उदयन शर्मा वाली तल्लीनता है। लेकिन उनके लिखने, राजनीति करने और क्रिकेट से ले कर कांग््रोस तक के उलझे हुए समीकरण सुलझाने में एक त्वरित तात्कालिकता जरुर है जो उन्हें किसी का विकल्प बनने की मजबूरी में नही फंसाती। बचपन में वे अपने कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम कितने गए हैं यह तो पता नही लेकिन क्रिकेट की दुनिया में अपनी प्रासंगिकता बनाने के लिए वे टीम के मैनेजर भी बने और बहुत सारे निशाने साधने वाले तीरंदाज भी। जगमोहन डालमिया और शरद पवार के बीच डालमिया के भूतपूर्व शिष्य इंद्रजीत सिंह बिंद्रा की वजह से जो लफड़ा शूरू हूआ है उसे निपटाने में राजीव शुक्ला की बड़ी भूमिका रहने वाली है। आपने गौर किया होगा कि डालमिया ने शरद पवार, निरंजन शाह और उनकी मंडली पर सैकेंड़ों करोड़ के घोटाले के आरोप लगा डाले हैं, शरद पवार को तो उन्होनें मुशर्रफ से बड़ा तानाशाह कह डाला है लेकिन इस शत्रु सूची में राजीव शुक्ला का नाम नही है। राजीव शुक्ला क्रिकेट की राजनीति के लगभग अदृश्य रहने वाले तीसरे अंपायर हैं। (शब्दार्थ)
4 comments:
शानदार रपट!!
राजीव शुक्ला को लेकर यही सब सवाल कई बार मन में उठते रहे हैं, अंबरीश जी से फोन पर एक दो बार इनके बारे में चर्चा भी हुई!!
कुछ बातें अभी तक सुनी थीं। अब आपने प्रमाणित कर दीं।
नए पत्रकारों को एक पुराने पत्रकार से रूबरू कराया शुक्रिया
aap aone guru ko bhee padhen aalok jee---
पेंच में क्रिकेट, सिनेमा और राजनीति
प्रभाष जोशी
घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।।
इसे तुम नहीं समझोगे साधो. इसमें पेंच दर पेंच दर पेंच दर पेंच हैं. नहीं तो बॉलीवुड के किंग बनाए जा रहे शाहरुख खान को इतना चिढ़ने की क्या जरूरत थी. उनका तुनक कर मीडिया से कहना कि ऐसा ही है तो अब मैं मैच देखने नहीं जाऊंगा, क्रिकेट बोर्ड वालों को सुनाने के लिए कहा गया था. हजारों लोग मैच देखने जाते हैं. उनमें कई वीआईपी और कितने ही वीवीआईपी भी होते हैं. लेकिन क्रिकेट खिलाड़ियों से गले मिलते और मैच प्रसारित करते चैनल पर बात करते कितने दिखाई देते हैं!
क्रिकेट के दीवाने और खिलाड़ियों से दोस्ती रखने वाले तो और भी सुपर स्टार हैं. बच्चन और आमिर खान को तो तुमने देखा ही होगा. लेकिन चाहे इंग्लैंड के मैदानों पर या दक्षिण अफ्रीका में भारत के बीस×20 का विश्व कप जीतते हुए टीम के साथ कोई दिखाई दिया तो किंग खान. फिर जयपुर में आखिरी वन डे के बाद भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ियों से दोस्ती दिखाते भी शाहरुख खान ही दिखाई दिए.
यहीं पुरस्कार समारोह का संचालन करते भूतपूर्व पाकिस्तानी कप्तान और कमेंटेटर रमीज राजा ने किंग खान से पूछ लिया कि आपकी ओम शांति ओम कैसी चल रही है. मैंने अपने घर वालों को यहां बुलाया तो उनने कहा कि इस फिल्म के टिकट लेकर रखना. शाहरूख खान ने जवाब दिया और पूरे भारतीय उप महाद्वीप ने खुद हीरो के मुंह से सुना कि ओम शांति ओम कैसी चल रही है.
तुम जानते हो साधो कि टीवी वालों ने सिनेमा और क्रिकेट की ऐसी जानलेऊ कॉकटेल बनाई है कि टीआरपी चित हो जाती है. कोई नहीं जानता कि क्रिकेट की लोकप्रियता से सिनेमा को फायदा होता है या सिनेमा के कारण क्रिकेट बढ़ता है. लेकिन इससे टीवी वालों का निश्चित ही फायदा होता है इसे सब जानते हैं. जयपुर मैच के बाद बोर्ड के कार्यकारी मंत्री रत्नाकर शेट्टी ने कह दिया कि अपनी फिल्मों को आगे बढ़ाने के लिए शाहरुख को क्रिकेट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. शेट्टी की बात शाहरुख को लग गई. उनने कहा कि मेरी फिल्मों को क्रिकेट की जरूरत नहीं है. मेरे बच्चे देखना चाहते हैं मैं तो इसलिए उन्हें लेकर जाता हूं. अब नहीं जाऊंगा.
अब साधो, रत्नाकर शेट्टी जानते हैं कि मैदान पर खिलाड़ियों के पास कोई कैसे पहुंचता है. आप लाख वीआईपी हो लेकिन जब तक बोर्ड का कोई अधिकारी आपको लेकर न जाए आप खिलाड़ियों तक औऱ पुरस्कार समारोह में पहुंच नहीं सकते. शाहरुख को भी राजीव शुक्ला ले गए जो बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं और मीडिया से बात करने को अधिकृत हैं. शेट्टी साब उन्हीं को निशाने पर ले रहे थे. भले ही यह सच हो कि
शाहरुख इंग्लैंड में टीम के साथ दिखे तब ‘चक दे’ बन रही थी. दक्षिण अफ्रीका में दिखे तब चल रही थी. और पाकिस्तानी टीम के साथ वन डे में जयपुर में दिखे तब ओम शांति ओम चल रही थी. इसके पहले दिखे थे आस्ट्रेलिया के साथ मुंबई के बीस×20 मैच में दीपिका पादुकोण के साथ तब ओम शांति ओम बन रही थी. लेकिन शाहरुख चाहने भर से खिलाड़ियों के पास और मैदान में पहुंच नहीं सकते भले ही वे बॉलीवुड के किंग हों.
शाहरुख, साधो जब दिल्ली के स्कूल में पढ़ रहे थे तब राजीव और सोनिया गांधी के बेटे-बेटी प्रियंका और राहुल भी स्कूल में थे और शाहरुख से उनकी जान पहचान बचपन की है. बॉलीवुड का कोई स्टार दस जनपथ के सबसे नजदीक है तो वह शाहरुख. अब जो कांग्रेस में अपनी हैसियत बनाना चाहता है राहुल और प्रियंका उसके लिए सोनिया जी तक सीधे पहुंचने के सबसे महत्वपूर्ण साधन हैं. राजीव शुक्ला प्रमोद महाजन और अमर सिंह के बाद काम करने वालों में से प्रथम सेवक हैं. राहुल और प्रियंका के विश्वास पात्र होना उनके लिए बड़े काम का है. शाहरुख को क्रिकेट में दिखाना राजीव शुक्ला के लिए राजनीति और क्रिकेट दोनों में बड़ा फलदायी है. इसलिए अमर सिंह जहां अमिताभ बच्चन को नहीं पहुंचा पाए वहां राजीव शुक्ला शाहरुख को पहुंचा रहे हैं. शेट्टी को भय है कि राजीव शुक्ला इससे बोर्ड के अध्यक्ष हो जाएंगे. वे शाहरुख के खिलाफ नहीं राजीव शुक्ला के खिलाफ बोल रहे थे.
अमर सिंह भी इससे चेत गए होंगे, साधो. राजीव शुक्ला भारत और पाकिस्तान की टीमों को लखनऊ के सहारा शहर ले गए रिसेप्शन के लिए. लेकिन जो सहारा शहर अब तक अमर सिंह और अमिताभ बच्चन का सबसे बड़ा गढ़ रहा है उसमें उस रात उन्हें नहीं बुलाया गया. टीमों का मनोरंजन करने विमान भेज कर मुंबई से किंग खान को लाया गया और उनने करीना के साथ देर रात तक नाच गाने किए जिनमें खिलाड़ी भी शामिल हुए. सहारा भारतीय टीम का स्पांसर है इसलिए टीमों को तो सहारा शहर जाना ही था. लेकिन शाहरुख वहां कैसे पहुंचे? बरास्ता राजीव शुक्ला. इसी रास्ते सहारा श्री भी दस जनपथ पहुंचना चाहते हैं. अमर सिंह का चिंतित होना वाजिब है. राजीव शुक्ला और किंग खान अमर सिंह और अमिताभ बच्चन को निपटाने में लगे हैं. और सहारा श्री नई पगडंडी से राजपथ पर आना चाहते हैं. यानी साधो, क्रिकेट से सिनेमा और सिनेमा से राजनीति. है ना पेंच पर पेंच. तुम भले कि खंजड़ी और मजीरे में ही मस्त हो.
Ye guru kaa ashirvad hai yaa kop?
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