आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.
Tuesday, March 18, 2008
मणिपुर हत्याकांड पर दिल्ली से नोटिस
DATELINE INDIA NEWS DOCUMENT, 18 MARCH
मणिपुर हत्याकांड पर दिल्ली से नोटिस
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 18 मार्च- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असम सहित उत्तर पूर्व के सभी राज्यों से कहा है कि वे अपने यहां आने वाले उत्तर भारतीय और हिंदी भाषी लोगों खासतौर पर मजदूरोें पर पूरा हिसाब रखे और जहां जरूरी हो उनके लिए सुरक्षा इंतजाम करें।
आज में तीन तीन हमलों में एक दर्जन से ज्यादा उत्तर भारतीय मजदूरों की हत्या कर दी गई। इन्हें मिलाकर उत्तर पूर्वी राज्यों में पिछले एक साल में आतंकवादी गुटों ने 60 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी है। मारे गए लोगों मे से ज्यादातर गरीब मजदूर ही हैं। गृहमंत्रालय पहले भी असम, मिजोरम और मणिपुर को चेतावनी की चिठ्ठियां भेज चुका है और यह प्रस्ताव भी कर चुका है कि अगर जरूरी हो तो हिंदी भाश्षीयों को उत्तर पूर्व में सुरक्षित रखने के लिए अध्द सैनिक बलों की मदद भी दी जा सकती है।
कर्वी औनलांग इलाके में हिंदी भाषियों की सबसे ज्यादा हत्याए की जा रही है और सबसे बडे नरसंहार में 40 लोग मारे गए थे। वहां काम कर रहे व्यापारी वर्ग में ज्यादातर राजस्थान के सीकर और मारवाड अंचल के लोग हैं और मजदूरों में अधिकतर उत्तर प्रदेष के पूर्वाचल और बिहार से जाते हैं। ठेकेदारों का एक पूरा माफिया इलाके में सयि है और केंद्र सरकार के पत्र में साफ साफ कहा गया है कि इन ठेकेदारो ंका पंजीकरण होना अनिवार्य है। इस पंजीकरण की सर्त यह होनी चाहिए कि वे अपने लाए हुए लोगों की सुरक्षा के लिए इंतजाम भी करेंंगे।
यह पहला मौका नहीं है जब केंद्रीय गृहमंत्रालय को उत्तर पूर्वी राज्यों को इस तरह की चेतावनी देनी पडी हो। प्रधानमंत्री मनमोहन ंसिंह ने उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रभारी मंत्रालय से इस संबंध में उचित कदम तत्काल कदम उठाने के लिए कहा है। गुप्तचर ब्यूरो से भी कहा गया है कि वह इन हमलों मे ंबांग्लादेष और म्यामार में मौजूद आतंकवादी ठिकानों की पूरी निगरानी करें और इस तरह की घटनाआें के बारे में राज्य सरकार को पहले से सूचित करती रहे। गृहमंत्री षिवराज पाटिल ने गृह सचिव मुधकर गुप्ता से भी उत्तर पूर्व का एक दौरा करके वहां के पुलिस महानिदेषकों से बैठक करने के लिए कहा है। सरकार की चिंता इसलिए भी है कि राजस्थान में चुनाव होने हेै और उत्तर पूर्व की घटनाओं का काफी असर मतदाताओं पर पड सकता है।
राज्यों में बिजली को लेकर घमासान
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ,18 मार्च-गर्मियों के मौसम ने जैसे ही दस्तक दी की उत्तर भारत के लगभग हर प्रदेश को बिजली की चिंता सताने लगी है। आलम यह है कि राज्यों की सरकार मुंहमागी कीतम देने तक को तैयार है बस कुछ चाहिए तो वह है बिजली।
यहीं आलम फिलहाल उत्तर भारत के दो राज्यों का है जो कभी थे थो एक पर अब एक-एक ग्याहर होने के सब्जबाग दिखा कर एक नई लड़ाई को जन्म दे दिया है। यह दोनों राज्य उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल है। दरअसल उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन निजी क्षेत्र के जीवीके समूह की अलकनंदा हाइड्रो कंपनी के साथ मिलकर उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल इलाके में 330 मेगावाट बिजली उत्पादन की कवायद कर रहा है। लेकिन एक पेंज लग यहा जिससे बिजली आने से पहले ही उसका हाईटें शन उठा सकता है। दरअसल, उस बिजली को यूपी में चमकाने के लिए पारेषण लाइन बनाने को हरी झंडी उत्तराखंड पावर कारपोरेशन ने अभी तक नहीं दिखाई है। हालांकि बिजलीघर बनाने का कार्य अपने शबाब पर है।
असल में राज्य के बंटवारे में बाद यह बिजलीघर यूपी के पाले में आया। अलकनंदा हाइड्रो से पावर कारपोरेशन ने दो साल पहले हाथ मिलाया और इसका निर्माण कार्य शुरू कर दिया। यह बिजलीघर 2011 तक बनकर तैयार हो जाने की उम्मीद है लेकिन इसकी शुरूआती पहली इकाई दो साल में पूरे होने की बात कही जा रही है। परियोजना उत्तराखंड में बनने के कारण राज्य को 12 फीसदी बिजली मुफ्त में अनिवार्य रूप से मिलेगी।
यहां तक तो सबकुछ सही लग रहा है पर जलता-बुझता यह सवाल है कि बिजली के सारे इंतजामात होने के बाद भी क्या गांरटी है की यूपी को बिजली मिलेगी क्योंकि जब पारेषण लाइन ही नहीं बनेगी तो उसे बिजली कैसे मिलेगी? लाइन बनाने की मंजूरी देने का हक उत्तराखंड के पावर कारपोरेशन के अधिकार में जो की अभी हरकत में आता नहीं दिख रहा है।
इस बाबत यूपी पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेश अवनीश अवस्थी ने भी यह चिंता जताई की अभी से पारेषण लाइन बनाने का काम शुरू नहीं हुआ तो बाद में काफी वक्त लगेगा जिससे काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है। जबकि कारपोरेशन के अन्य अधिकारियों का मानना है कि लाइन बनाने के एवज में उत्तराखंड इस बिजलीघर की उत्पादित बिजली से ज्यादा हिस्सा लेने की शर्त पर अड़ सकता है। लेकिन अवस्थी ने कहा कि मामले को बातचीत से सुलझा लिया जाएगा।
आपकी होली में जड़ी-बूटियों के रंग
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 18 मार्च-इस होली पर हर होली की तरह ही रंगों की बरसेंगे पर यह आपके स्वास्थ्य के लिए उन पुराने रंगों की तरह हानिकारक नहीं होंगे। क्योंकि अब हर्बल गुलाल बाजार को रंगा-रंग करने की तैयारी में है।
इसका आलम यह है कि यूपी के तमाम बडे शहरों में इसकी मांग जोरो पर है। इसमें लखनऊ, कानपूर, इलाहाबाद, वाराणसी और बरेली जैसे शहर हैं।
डा. वीरेंद्र लाल कपूर इस होली पर हर्बल गुलाल तैयार किया था। इस गुलाल की खासियत है यह रंग जल्द छूट भी जाते है और त्वजा को किसी तरह का कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाते।
एनबीआरआई के वैज्ञानिकों के मुताबिक यह गुलाल इमली के बीज, यूकेलिप्टस की छाल, आनार के छिलके, बेल, चुकंदर, हल्दी, अमलतास की फली का गूदा ौर प्याज का ऊपरी परत का छिल्का आदि में एक निश्चित मात्रा में गंधकों और आउडर के साथ मिलाकर लाल, पीला, हरा, गुलाबी, भूरा और नीला साहित कई रंगों में यह हर्बल गुलाल तैयार किया जाता है।
डा कपुर के अनुसार डीएमएल छत्तीसगढ़ ने इस बार हर्बल गुलाल को चार खुशबुओ जैसमीनस, गुलाब, खस और चंदन में उतारा है जबिक आर बी ने फैंसी पैकिंग पर जो दिया है।
मायावती सरकार की नजर बच्चों पर
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ , 18 मार्च-यूपी के आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्रों के दिन फिरने वाले और उन्हें मुकम्मल जहां शायद नसीब हो जाए। इसके लिए यूपी सरकार ने एक ट्र्स्ट की मदद से ऐसे स्कूलों को खोलने का फैसला किया है जहां समाज के ऐसे बच्चों को शिक्षित किया जाएगा जिससे कि वह जीवन में मुकम्मल स्थान हासिल कर सकें।
हालांकि यह योजना आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के लिए बनाई गई है। इस विद्यालयों को विद्याज्ञान पब्लिक स्कूल के नाम से जाना जाएगा। इन विद्यालयों के संचालन के लिए प्रदेश सरकार के साथ एसएसएन ट्रस्ट भी आगे आए हैं। इन स्कूलों में विद्यार्थियों की चयन प्रक्रिया के लिए जूनियर हाईस्कूल, हाईस्कूल के छात्रों को लिखित परीक्षा देनी पड़ेगी। योजना के पहले चरण में प्रदेश के दस जिलों में से सौ मेधावी छात्रों के चयन का फैसला लिया गया है। छात्रों के चयन का अंतिम निर्णय संबंधित जिले के जिलाइधकारी की अध्यक्षता में बनी कमेटी करेगी। राज्य का पहला स्कूल बुलंदशहर में खुलेगा।
माध्यमिक शिक्षा के प्रमुख सचिव एके मिश्र ने डेटलाइन इंडिया से बताया कि इन स्कूलों के माध्यम से प्रतिवर्ष चार हजार करीब बच्चों को समान शिक्षा का अवसर देने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होने बताया इन स्कूलों के लिए भवन के लिए जमीन और मानव संसाधन की व्यवस्था ट्रस्ट करेगा। इसके लिए राज्य सरकार और एसएसएन ट्रस्ट के बीच समझौता पत्र पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं।
बुंदेलखण्ड में सबसे बड़ा सच है प्यास
डेटलाइन इंडिया
झांसी, 18मार्च-पानी रे पानी तेरा रंग कैसा.....यह गाना यूं नहीं बना बल्कि इस रंग कभी नीला तो कभी लाल भी हो जाता है। हम बात होली की नहीं कर रहे बल्कि बुन्देलखण्ड में प्यासे जानवर और आदमी की है जो पानी लिए एक दूसरे के आमने-सामने होना आम हो गया है।आंकड़ो के मुताबिक बीत एक साल में सिर्फ छतरपुर में 56 लोगों पर जानवरों के हमले ने पानी रंग लाल कर दिया है। इस हमले में दो पानी की तलाश में दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। ज्ञात हो की पिछले 5 साल से बुंदेलखण्ड सूखे का श्राप झेल रहा है। कुंए, पोखरे और तालाब सुखते जा रहे हैं। जंगलों का मत पूछिये कई किलोमीटर तक एक बूंद पानी नहीं मिलने वाली है। यानी जंगल में फंसे तो भुखे भले ना मरे पर प्यासे जरूर मर जाएंगे। यहीं हाल जंगल में रह रहे जानवरों का भी है। जिससे जानवर पानी की तलाश में बस्ती तक जा पहुंचते हैं।
पिछले माह सतना के उचेहरा में एक तेन्दुएं का शिकार करने में शिकारियों को सफलता मिली। इसका कारण यही था कि तेन्दुआ पानी पीने के लिए एक तालाब पर आया था। छतरपुर के वन संरक्षक ए. के. बिसारिया भी स्वीकारते हैं कि जंगलो में पानी के स्रोत सूख चुके हैं और जानवरों को मजबूरी में पानी की तलाश में आबाद बस्ती की ओर आना पड़ रहा है।
छतरपुर में पिछले एक साल में 56 लो+ों को जानवरों ने अपना निशाना बनाया है। इसकी वजह कहीं न कहीं पानी रही है। छतरपुर के वनमण्डलाधिकारी एमं मीणा ने बताया है कि अभी हाल में लौड़ी के पठा गांव में कस्तूरी बाई पर एक तेन्दुएं ने जानलेवा हमला कर दिया। उसका उपचार ग्वालियर में चल रहा है।
पानी के कारण बने हालातों से पर्यावरण प्रेमी भी चिंतित हैं। स्वयंसेवी संस्था रेनेशा के विनय गुप्ता का मानना है कि आने वाला समय तो और भी खतरनाक होगा। उस समय जल स्रोत पानी विहीन हो चुके होंगे। तब जानवरों का रुख गांव की ओर होगा और ग्रामीण इलाकों में भी पानी नहीं होगा। यह स्थिति गांव के लोगों और जानवर दोनों को संकट में डालने वाली होगी। गुप्ता ने सरकार से इन हालातों से निपटने के लिये कारगर योजना बनाने की अपील की है।
शिवानी कांड में दिल्ली पुलिस के कई झूठ
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 18 मार्च। दिल्ली पुलिस देश के सबसे तेज-तर्रार पुलिस मानी जाने वाले का सच जब खुलता है तो सिर शर्म से झुक जाता है। कुछ ऐसा ही वाक्या दिल्ली पुलिस के साथ आये दिन होता है पर पुलिस है कि सुधरना नहीं चाहती। जेसिका लाल कांड में मुंह की खा चूकी राजधानी की पुलिस अब एक बार फिर मुसिबत में पड़नेवाली है।
एक और हाई प्रोफाइल केस और शर्म से सिर झुकाने की बारी है दिल्ली पुलिस की। दिल्ली पुलिस का गैरजिम्मेदाराना रवैया नियती बना चुका है। इस बार बारी जेसिका लाल कांड के बाद अब बारी इंडियन एक्सेप्रेस संवाददाता शिवानी भटनागर ह्त्याकांड का मामला। केस के मुख्य आरोपी हरियाणी पुलिस के पूर्व आईजी रविकांत शर्मा है। इस केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में लेने के लिए कहा गया था। तकरीबन 38 दिन पूर्व आईजी को हवालात से अदालत तक ले जाया गया, और उनकी पत्नी मधु उनके साथ होती थी।
हालांकि अब बचाव पक्ष के वकील केस की गति कम होते देख रहें हैं क्योंकि उनके अनुसार केस की जांच में कुछ तृटियां पाई गई हैं। बचाव पक्ष के वकील डीबी गोस्वामी ने कहा कि उन लोगों ने जानबूझ कर रिकार्ड में साक्ष्य को नहीं दिया है। शिवानी के पति राकेश भटनागर के तरफ से भी इस तरह के आरोप लगे हैं कि उनसे जांच के दौरान कई बार पूछताछ की गई है लेकिन सिर्फ सात बयान ही चार्जशीट में दर्ज किए गए हैं। इस चार्जशीट में वही बयान लगाए गए हैं जिसमें राकेश भटनागर से सिर्फ इन्हीं बयान पर जिरह की जा सकती है। इसलिए बचाव पक्ष भटनागर द्वरा दिए गए 15 अन्य बयानों की भी मांग कर रहा है। इसके बाद अदालत ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिए हैं कि इन बयानों को प्रस्तुत किया जाए।
राकेश भटनागर के बयानों के द्वारा बचाव पक्ष के वकील दबाव बनाना चाहते है क्योंकि दिल्ली पुलिस ने लापरवाही से साक्ष्य को इकट्ठा नहीं रख सकी। अगर यह सच साबित होता है तो जेसिकालाल हत्याकांड के बाद यह एक और हाई प्रोफाइन केस होगा जहां दिल्ली पुलिस की पतलून खिंची जा सकती है। उधर अभियोजन पक्ष ने इन सारे आरोपों को फालतू बताते हुए कहा है कि अब इनका कोई मतलब नहीं है क्योंकि वे नहीं चाहते कि इस केस का हश्र भी जेसिका लाल मामले की तरह हो। जेसिका लाल मामले के मुख्य सरकारी वकील ने साफ आरोप लगाया है कि मामले को सिर्फ लटकाने की कोशिश की जा रही है। इस मामले में अपील के दौरान शिवनाी के पति राकेश भटनागर को फिर कठघरे में बुलाया जा सकता है।
आडवाणी की आत्मकथा से भाजपा को डर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 18 मार्च- आडवाणी की आत्मकथा में आधारित पुस्तक 'माई कंट्री माई लाइफ, प्रकाशित होने से पहले ही आडवाणी के विरोधियों की हवाइयां उडने लगी है। जब पाक यात्रा पर आडवाणी जिन्ना की मजार पर गए थे तो कांग्रेस पार्टी ने उन पर तो निशाना साधा ही था। लेकिन कई दिग्गज उनकी पार्टी में भी उन पर निशान साध रहे थे। अब वह घबरा रहे हैं कि कहीं उनकी पोल आडवाणी अपनी पुस्तक में खोल दें।
फिलहाल आत्मकथा माई कंट्री माई लाइफ बुधवार को पाठकों के हाथ में पहुंचेगी। चूंकि, यह किताब आत्मकथा की मूल भावना के मुताबिक लिखी गई है इसलिए कुछ ऐसे प्रकरण का जि भी है जिससे पार्टी के अंदर और बाहर कुछ लोग असहज हो सकते हैं। श्री आडवाणी के साठ साल के राजनीतिक सफर में जो भी अवरोध आए उनको पुस्तक में जगह दी गई पुस्तक के कुछ अंश से नए विवाद का जन्म हो सकता है। स्वयं आडवाणी भी इस चीज को महसूस कर रहे हैं।
आडवाणी के नजदीकी लोगों का कहना है कि उन्होंने आत्मकथा की मूल भावना के सांचे में ही पुस्तक को रखा है। इसके लिए उन्होंने अपनी आत्मकथा अपने हाथों से अपने घर पर लिखी है। पुस्तक का कोई हिस्सा किसी वजह से जब वह स्वयं नहीं लिख पाए तो उन्होंने अपनी पुत्री प्रतिभा आडवाणी को डिक्टेट कराया। पुस्तक का शीर्षक प्रतिभा आडवाणी ने ही तय किया है और पुस्तक की मुख्य पृष्ठ पर जो तस्वीर छपी है वह 2001-02 में आडवाणी के पीए ने ली थी। यह फोटो उस वक्त की है जब आडवाणी अंडमान गए थे और जहाज में अनायास ही उनकी तस्वीर कैमरे में कैद कर ली गई।
सरबजीत मामले में अभी कोई उम्मीद नहीं
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली भिखीविंड अमृतसर लुधियाना, 18 मार्च-सरबजीत के मामले में विदेश मंत्रालय सख्त हो गया है राज्यसभा और लोकसभा में सरबजीत का मामला जोर शोर से गूंजने के बाद विदेश मंत्रालय ने कहा कि सरब जीत ने कहा कि सरबजीत को किसी भी कीमत पर लाने का प्रयास कर रही है लेकिन अंतिम फैसला पाकिस्तान सरकार के हाथ में है। सरकार से अधिक विदेश मंत्रालय के अधिकारी इस मामले पर सख्त है।
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सरबीजीत प्रकरण मंत्रालय के लिए ंचिंता का विषय है। कुछ साल पहले भी पाकिस्तान की सरकार से इस दिशा में न्यायपूर्ण कदम उठाने के लिए कहा गया था। सरकार इस दिशा में अपने स्तर से प्रयास कर रही है। सरकार जानती है कि सरबजीत सिंह जासूस नहीं है। वह भूल से भटक कर सीमा के उस पार चला गया था। हमारी उससे और उसके परिवार से हमदर्दी है लेकिन वह दूसरे देश की कैद में है। उसकी रिहाई और फांसी की सजा से माफी देने के लिए पहल की जा चुकी है।
आधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान में नयी सरकार के गठन के प्रयिा शुरू हो गयी है। सरकार इस अवसर का फायदा उठाकर सरबजीत को फांसी से बचा सकती है। सरबजीत के परिवार को सहायता की भी पहल हो। सरबजीत को फांसी दिये जाने की तारीख तय होने से लोग चिंतित हैं। इसलिए सरकार को बताना चाहिए कि वह उसे बचाने के लिए क्या कदम उठाने जा रही है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति चाहें तो फांसी की सजा माफ कर सकते हैं या टाल सकते हैं। सरबजीत के बदले पाकिस्तान अपने कुछ नागरिकों की रिहाई के लिए कह सकता है। पाक में लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता संभालने तक सजा मुल्तवी की जा सकती है।
सरबजीत सिंह की माफी की याचिका खारिज होने की सूचना से भिखीविंड स्थित उसके घर में मायूसी छाई रही। आस-पडोस के लोग रोते हुए परिजनों को चुप कराते रहे। जालंधर से लौटी सरबजीत की बडी बेटी सपनदीप भी अपनी मां सुखप्रीत कौर और छोटी बहन पूनम के गले लगकर रोती रही।
नया किडनी घोटाला, नए तरीके
डेटलाइन इंडिया
अमृतसर, 18 मार्च- किडनी गिरोह का सरगना डॉ अमित के पकडे जाने के बाद भी किडनी बेचने का धंधा रूक नहीं रहा है। अमित का जाल पूरे देश मे ंफैल चुका है जिसका पर्दाफाश करना पुलिस के लिए एक टेढी खीर हो रहा है। अब पंजाब के अमृतसर में लोगों को कब्जे में लेकर किडनी निकालने का मामला सामने आ गया।
जिस तरह से अमृतसर पुलिस ने किडनी का धंधा करने वाले गिरोह के छह लोगों को गिरफ्तार किया है।उससे यही लगता है कि ऐसे कितने और गिरोह देश में काम कर रहे है। पकडा गया गिरोह भी डॉ. अमित की तरह लोगों को फंसाकर उन्हें एक कोठी में रखता था। ग्राहक मिलने पर अस्पतालों के जरिए उनकी किडनी बेच दी जाती थी।
अमित के बाद दूसरा किडनी कांड का सरगना दलाल विक्की भाटिया है। वह वर्ष 2002 के बहुचर्चित किडनी कांड में फरार चल रहा है। इन्होंने पंज पीर इलाके में एक कोठी में किडनी बेचने वालों को रखा था। लेकिन एक भी ऑपरेशन अमृतसर में नहीं होना था। देश के कई अस्पतालों से इनके संबंध हैं।
डॉ अमित और विक्की जैसे चंद लोगों की वजह से आज किडनी बेचने का धंधा तेजी पकड रहा है। पूरे देश में इनकी जडे फैल चुकी है। पुलिस को चाहिए किडनी रैकेट को पूरा खात्मा करने के लिए देश की खुफिया एजेंसियों की भी मदद ली जाए।
बंधक बनाया और निकाला खून
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 18 मार्च- उत्तर प्रदेश के कई जिलों में खून बेचने का अवैध कारोबार प्रशासन की नाक की नीचे हो रहा है। यह के खून का कारोबार करने वाले माफिया गरीब-वेघर बच्चों और भिखारियों का खून कम दामों पर कहीं भी कभी भी निकाल लेते हैं। यहां तक भिखारियों को जबरन बंधक बनाकर खून निकाल लिया जाता है। पुलिस अफसरों की मानें तो यूपी में एक दर्जन जिले 'खून चूसने वाले रैकेट' की चपेट में हैं।
यूपी के गोरखपुर में बंधक बनाकर बेबसों का खून चूसने वाले रैकेट ने भले ही फिलवक्त लोगों को हैरत में डाल दिया है, पर हकीकत यह है कि पूर्वांचल में करीब 18 साल पहले ऐसे रैकेट का पहली बार खुलासा हुआ था। आजमगढ के तत्कालीन एसएसपी शैलेंद्र सागर एक रोज अपने दफ्तर में बैठे थे। तभी एक जीर्णशीर्ण सा अधेड उनके कमरे में धड़धडाता घुस आया। वह खुद को बचाने की गुहार कर रहा था। एसएसपी आफिस के चंद कदम दूर एक निजी नर्र्सिंग होम में बेबस मजदूरों, गरीबों और घर से लापता हुए बच्चों को बंधक बनाकर खून निकलाने का रैकेट चल रहा था। रैकेट संचालक नर्सिंग होम का मालिक था। पुलिस ने मालिक समेत 17 लोगों को गिरफ्तार किया था।
पूछताछ में खुलासा हुआ था कि रैकेट के तार मऊ, गाजीपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, देवरिया, बस्ती के निजी नर्सिंग होम से ज़ुडे थे। पुलिस अधिकारी कहते हैं कि बंधक बना कर खून चूसने का धंधा ज्यादातर पूर्वांचल के जिलों में ही जारी है। कारण इन इलाकों में अपेक्षाकृत अधिक गरीबी लोग हैं।
खूनी पप्पू यादव अब भी फरार
डेटलाइन इंडिया
गोरखपुर, 18 मार्च- खून का कारोबार करने वाले गिरोह का सरगना और मास्टर माइंड को अभी भी पुलिस पकड नहीं पायी है। हलांकि गिरोह के सरगना पप्पू यादव और मास्टर माइंड जयंत सरकार समेत अन्य आरोपियों की तलाश में पुलिस की दो टीमों ने आज भी कई स्थानों पर छापे मारे, लेकिन उन्हें कोई सफलता तो नहीं मिली।
एसएसपी पीयूष मोर्डिया ने गिरोह के सारे सदस्यों को पकडने के लिए दो टीमें गठित की। पुलिस की ये टीमें सबसे पहले पप्पू यादव और उसके भाई सुरेन्द्र यादव की तलाश में जगह जगह छापेमारी कर रही हैं। लेकिन अभी तक इन टीमों को कोई सफलता नहीं मिली है।
उधर पूछताछ में पुलिस को उनके खिलाफ कोई ठोस सुराग नहीं मिले। डॉक्टर ने अपने यहां काम करने वाले हैदर को ही जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने बताया कि जुल्फिकार अली हैदर ही उनका लैब टेक्निशियन था। वही खून की व्यवस्था करता था। उन्होंने हैदर के खिलाफ पुलिस को एक लिखित तहरीर भी दी। आईजी ज्ञान सिंह सोमवार को खून चूसने वाले रैकेट के शिकार हुए 17 व्यक्तियों से मिलने सदर अस्पताल पहुंचे। उन्होंने सभी से बात की। आईजी के साथ एसएसी पीयूष मोर्डिया और सीओ कैंट विश्वजीत श्रीवास्तव भी थे। आईजी ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया। उन्होंने आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का निर्देश भी दिया।
पाक दोस्ती की नई राह से खतरा
डेटलाइन इंडिया
श्रीनगर, 18 मार्च- पाक और भारत की दोस्ती और मजबूत करने के लिए एक और कदम बढाया जा रहा है। लेकिन आतंकवादियों की लगातार मिल रही धममियों यह कदम कहीं देश के लिए और खतरनाक न साबित हो जाए। जिस प्रकार अटारी में हुआ कही आगे भी इन मार्गो से आतंकवादी आकर ऐसा कुछ कर जायें। इसलिए सरकार को इस तरफ भी सोच कर अगला कदम उठाण्।
सरकार की मंशा है श्रीनगर मुजफ्फराबाद सडक मार्ग पर लोगों की ही आवाजाही नहीं होगी बल्कि कारोबारियों का कारवां भी चलेगा। करीब साठ साल तक बंद रहे इस मार्ग को तीन साल पहले ही खोला गया था। इसमें भी संदेह करना चाहिए कि सामान के साथ कहीं विस्फोटक सामान न ले आएं और देश को नुकसान पहु्रंचाएं
उधर केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री जय राम रमेश की माने तो अगले तीन महीने में यहां से भी व्यापार शुरू हो सकता है।अब सिर्फ पाकिस्तान में सरकार बनने का इंतजार है। गौरतलब है कि 7 अप्रैल 2005 को अमन कमान सेतु बनाकर श्रीनगर-मुजफ्फराबाद सडक खोला गया था।
केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री जय राम रमेश के अनुसार पाकिस्तान में सरकार बनने की देर है, उसके बाद बैठकों में जो तय हुआ था उस पर कागजी कार्रवाई कर व्यापार शुरू कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि हमने श्रीनगर-मुजफ्फराबाद सडक के जरिए 15 सामान पाकिस्तान भेजना चाहा था और उसकी सूची पाकिस्तान के अधिकारियों को दी थी। उन्होंने भी इस सहमति जतायी थी। वाणिज्य राज्य मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान में सरकार गठन के बाद कागजों पर दस्तखत करने की औपचारिकता पूरी कर ली जाएगी।
जनता गरीब, विधायक कराेडपति
डेटलाइन इंडिया
छत्तीसगढ, 18 मार्च- गरीब माने जाने वाले राज्य छत्तीसगढ के विधायक लखपति है। इसका खुलासा एक संस्था की रिपोर्ट ने किया है। राष्ट्रीय जन वकालत केंद्र एनसीएएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि छत्तीसगढ के 90 विधायकों में से 84 विधायक लखपति और जबकि छह विधायक कराेडपति हैं। 90सदस्यीय सदन की औसत संपत्ति 30 लाख रूपए प्रति विधायक है। वहीं आदिवासी विधायको की औसत संपत्ति 16.31 लाख रूपए प्रति विधायक है। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के पश्चिमी क्षेत्र के विधायक सबसे अधिक अमीर हैं। उनकी कुल संपत्ति करीब 593.75 लाख रूपए है। इनके बाद नंबर आता है रायपुर क्षेत्र के विधायकों का उनकी संपत्ति 568.96 लाख रूपए है जबकि बस्तर क्षेत्र के विधायकों की कुल संपति सिर्फ 162.82 लाख रूपए है।
रिपोर्ट के अनुसार इन लखपति और कराेडपति विधायकों के पास सदन में देने के लिए ज्यादा समय नहीं है। एक साल में औसतन 39 बैठके अभी तक हुए पांच शीतकालीन सत्र में सिर्फ 28 बैठकें हुई हैं। इस दौरान सदन की कार्यवाही का सिर्फ बीस फीसदी समय प्रश्नकाल पर , 36 फीसदी समय गैर वित्तीय व अन्य कार्यो पर दिया गया है। जबकि केवल तीस फीसदी समय ही विधायकों की चर्चा में खर्च किया गया है। राज्य बनने के बाद से अब तक विधानसभा में शिक्षा और सेवा से ज़ुडे विधेयक ही सबसे अधिक रखे गए हैं। इसके बाद विधायी सुविधाओं से संबंधित विधेयक और सामाजिक न्याय व कल्याण से ज़ुडे महज 16 फीसदी विधेयक प्रस्तुत किए गए।
रिपोर्ट में विधायकों के व्यवसाय के बारे में खुलासा किया कि 90 में से 8 विधायक डॉक्टर हैं। 71 विधायकों का व्यवसाय कृषि ,आठ फीसदी विधायक व्यापारी और एक विधायक वकील और एक विधायक बुनकर शामिल है। वही रिर्पोट में बताया गया है कि छत्तीसगढ विधानसभा में 30 साल से कम का एक ही विधायक है जबकि 51 की आयु वाले 2 विधायक हैं। 61 की उम्र वाले 11 विधायक और 75 से ज्यादा उम्र वाले दो विधायक है। 31-45 साल वाले 19 और 46-50 वाले 22 विधायक हैं। आयुवर्ग के आधार पर राजनैतिक दल के विधायकों की औसत आयु देखें तो भाजपा के विधायकों की औसत आयु 49.5 तथा कांग्रेस के विधायकों की 55 वर्ष है। रिपोर्ट को तैयार करने वाले संस्था के अभिताभ बेहार का कहना है कि यह रिपोर्ट पूरे तौर पर विधानसभा सचिवालय पुस्तकालय वेबसाईट प्रकाशन तथा समाचारपत्रों के आधार पर तैयार की गई है।
प्रधानमंत्री अपने विश्वविद्यालय नहीं गए
डेटलाइन इंडिया
चंडीग़ढ, 18 मार्च-पंजाब विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री मनमोहन को डीलिट की उपाधि से सम्मानित करने की चाह लिए बैठा है। पीयू प्रशासन को अब चिंता सताने लगी है कि उसी चाह कही किसी सपने में न तबदील हो जाए। क्योंकि अगला लोक सभा चुनाव आाने वाला है और अभी प्रधानमंत्री का कोई कार्यम पीयू आने का नही ंबना है। पीयू श्री मनमोहन प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें कैंपस लाने की पुरजोर कोशिश की जाती रही है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली।
दरअसल पीयू के पूर्व प्रोफेसर डा. मनमोहन सिंह को डीलिट उपाधि से सम्मानित करने की हसरत लिए बैठा है। जो अब तक पूरी नहीं हो सकी है। यूं तो 1 अक्तूबर 2007 को पीयू के डायमंड जुबली ईयर सेलिब्रेशन के मौके पर मनमोहन सिंह ने कैंपस में आने की हामी भरी थी, लेकिन ऐन वक्त पर कार्यम रद कर दिया गया। पीयू ने इस बार भी श्री सिंह से डायमंड जुबली ईयर सेलिब्रेशन का उद््घाटन कराने का कार्यम बनाया है। इसके लिए उन्हें बुलावा भी भेज दिया गया है लेकिन चुनावी वेला पर क्या प्रधानमंत्री पीयू प्रशासन के सपने को पूरा कर पाएंगे इस पर अभी सवालिया निशान लगा हुआ है।
मनमोहन सिंह ने पंजाब यूनिवर्सिटी में करीब 8 साल तक इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट में पढाया है। वे काबिल प्रोफेसरों में से एक थे। कहा जाता है कि अपने साथ सीनेट में हुई राजनीति के कारण वे पीयू प्रशासन से खासे नाराज हो गए। पीयू छाेडने के बाद मनमोहन सिंह केवल एक बार ही कैंपस में सेमिनार में हिस्सा लेने पहुंचे थे।
पीयू के कुलपति प्रो. आरसी सोबती, ने बताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, लेकिन लगता है कि अब इंतजार काफी लंबा हो चला है। उनके स्वागत के लिए कैंपस का हर व्यक्ति पलके बिछाए बैठा है।
आजमगढ बाहुबलियों का संसदीय दरवाजा
डेटलाइन इंडिया
आजमगढ, 18 मार्च- आजमगढ सदर संसदीय उपचुनाव का शंखनाद बज चुका है और इस सीट पर सबसे अधिक नजर बाहुबलियों की लगी है। वह इस पर जीतर हासिल कर संसद के दरवाजे तक पहुंचना चाह रहे हैं। प्रदेश की सत्ता पर काबिज बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट के लिए जहां अपना तेजतर्रार नेता अहमद अकबर डंपी को उतारा है। वही बसपा के टक्क्र का उम्मीदवार उतारने के लिए समाजवादी पार्टी में भी रस्साकसी चल रही है।
सपा पार्टी सूत्रों के अनुसार सपा डंपी के टक्क्र का उम्मीदवार उतारना चाहती है। वहीं सपा से टिकट के मुख्य दावेदारों में निवर्तमान सांसद रमाकांत यादव, सदर विधायक दुर्गा प्रसाद यादव और पूर्व मंत्री बलराम यादव सामने आ रहे है। कयास लगाए जा रहे हैं कि तीनों में एक को टिकट मिल सकता है। हालांकि पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ही टिकट का फैसला करेंगे कि इस सीट के लिए किसे उम्मीदवार बनाया जाए।
उधर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस भी जद्दोजहद तेजी से जारी है कि टिकट किसे दिया जाए। ताकि सीट को हथिया लिया जाए। दोनों ही पार्टी के क्षेत्रीय बडे नेता टिकट पाने के लिए लखनऊ और दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं के चक्कर काट रहें हैं। भाजपा से टिकट चाहने वाले भी लखनऊ और दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं की गणेश परिमा कर रहे हैं। आईपी सिंह, नरेंद्र सिंह टिकट के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के साथ ही कई अन्य लोग टिकट के लिए कतार में लगे हुए हैं। माना जा रहा है कि रामनरेश यादव को कांग्रेस का टिकट मिलना तय है।
सत्ताधारी दल का टिकट पाने के बाद डंपी ने चुनावी स्थल में लाव लश्कर के साथ तंबू तान दिया है। वह आज वाहनों के लंबे काफिले के बीच डंपी खुली जिप्सी में अपने सुरक्षाकर्मियों के बीच हाथ जाेड मतदाताओं को अपनी आमद से अवगत कराते रहे। ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण करते हुए शाम को वे शहर में पहुंचे। हाथी वाले झंडी लगी गाडियों का काफिला देख लोगों ने चुनावी गर्मी को महसूस किया।
ज्ञातव्य हो कि अंडर वर्ल्ड डॉन अबू सलेम भी आजमगढ ही रहने वाला है और विधानसभा चुनाव में उसने भी चुनाव लडने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन कोर्ट ने उसे अनुमति नहीं दी है। माना जाता है कि डॉन जेल में है तो क्या हुआ उसका दबदबा अभी भी आजमगढ चल रहा है। राजनीतिक समीकरण बता रहे हैं कि सलेम जिस पार्टी को अपना समर्थन देगा उसके आदमी उस पार्टी की मदद करेंगे। ऐसे में यह तय हो जाता है कि सभी पार्टियां इस सीट पर दमदार प्रत्याशी की उतारेगी ताकि दूसरी पार्टी की टक्कर में उनका प्रत्याशी खरा उतरे । माना जा रहा है कि टक्कर बसपा और सपा प्रत्याशी में ही होगीं।
आग में झोंक दिए पांच बच्चे
डेटलाइन इंडिया
इलाहाबाद, 18 मार्च-दुश्मनी चाह जिससे और चाह जैसी रही हो एक आग जली और पांच बच्चे जिंदा चिता में झोंक दिए गए। इन बच्चों को तो पता भी नहीं कि
आखिर उनका कुसूर क्या है। रात में किसी ने राइस मिल मालिक के घर में घुसकर पूरे परिवार को जलाकर मारने के इरादे से सो रहे पांच बच्चों पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी।
बुरी तरह जले भाई-बहन समेत तीन बच्चों की जान तो बच गई पर आज दिन भर निजी चिकित्सालय में उनकी दर्दनाक सिसकियां गूंजती रहीं। पुलिस उदासीनता का आलम यह है कि तीसरे रोज भी इस वारदात में शामिल लोगों की धरपकड नहीं की गई। आईजी के आदेश पर सोमवार रात पुलिस सयि हुई।दिल दहला देने वाली यह घटना शुवार रात पूरे मातादीन (मऊआइमा) में रहने वाले गिरीशचंद्र पटेल के घर में हुई। गिरीश राइस मिल और नलकूप चलाते हैं जबकि उनके पिता जगतबहादुर पटेल इंदिरा गांधी इंटर कॉलेज में अध्यापक हैं। उस रात गिरीश नलकूप चलाने चले गए थे।
घर में छत पर बने कमरे में उनके बच्चे अनुपम (17), आलोक रंजन (16), विकास (8), दीपा (10) और रिश्ते में साली लगने वाली अर्चना (18) दो तख्त पर साथ सोए थे जबकि पत्नी देवकली बरामदे में लेटी थीं। रात करीब ड़ेढ बजे बिजली चली गई। तकरीबन दो बजे जीने से चढकर बरामदे के खुले दरवाजे से बदमाश कमरे में घुसे और तख्त पर सो रहे बच्चों पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। आग भडकते ही तख्त पर किनारे सोए विकास और अनुपम हड़बडाकर फर्श पर गिर गए। वे दोनों आग की चपेट में आने से बच गए जबकि आलोक, दीपा और अर्चना लपटों से घिर गए। बच्चों की चीखों से घर में खलबली मच गई।
राइस मिल के नौकर मिथिलेश ने घर के बाहर से आग देखी तो उसने भी शोर मचाया जिससे गांव वाले भी आ गए। परिजनों द्वारा आग बुझाने तक में पेट्रोल डालकर जलाए गए तीनों बच्चों का सिर से कमर तक का हिस्सा बुरी तरह झुलस गया। तख्त के पास एक लीटर का खाली गैलन पडा था। उससे पेट्रोल की बदबू आ रही थी। परिजन झुलसे बच्चों को आनन-फानन में शहर में टैगोर टाउन स्थित उषा हॉस्पिटल ले आए। डॉक्टरों ने भरसक प्रयास किया जिससे तीनों की जान अब खतरे से बाहर है, मगर उनके चेहरे, गर्दन, हाथ, पेट गंभीर रूप से झुलसे हैं। इनमें दीपा सबसे ज्यादा झुलसी है। उन्हें अलग-अलग रूम में रखकर विशेष देखरेख की जा रही है। इनमें अर्चना इंटर की परीक्षा देने की खातिर गिरीशचंद्र के घर आकर ठहरी थी क्योंकि वहां से परीक्षा केंद्र निकट है। अनुमान है कि सीढी से चढकर आए बदमाश आग लगाने के बाद छत से भूसे के ढेर पर कूदकर भागे थे। बच्चों के बाबा अध्यापक जगतबहादुर ने बताया कि रविवार को मऊआइमा थाने में घटना की तहरीर दी गई लेकिन पुलिस ने पता नहीं क्यों तीसरे रोज भी ध्यान नहीं दिया है। आईजी जोन एकेडी द्विवेदी के फटकारने पर सोमवार रात पुलिस ने छानबीन शुरू की।
सीमा लांघी मगर बच नहीं पाए अपराधी
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 18 मार्च-आगरा-राजस्थान की सीमा पर उत्तर प्रदेश से राजस्थान तक चली एक मुठभेंड़ में एक अपराधी मारा गया और चार पकडे गए। इस मुठभेंड़ की खास बात यह है कि इसमें जनता ने भी हिस्सा लिया और पुलिस का साथ दिया। आम तौर पर अपराधी जब दूसरे राज्य की सीमा में चले जाते हैं तो उनका पीछा होना बंद हो जाता है।
शातिरों से देशी हथियार और कारतूस बरामद हुए हैं। पुलिस की मानें तो सभी आरोपी गुड्डन काछी गिरोह के सदस्य हैं। इन्होंने ही रविवार शाम खेरागढ के गांव पाय सितौली से एक किसान को अगवा किया था। देर रात पुलिस ने ग्रामीणों की मदद से किसान को मुक्त करा लिया था, लेकिन शातिर राजस्थान सीमा में प्रवेश कर गए।राजस्थान के धौलपुर स्थित कौलारी थाना स्थित बसई नवाब गांव में सोमवार सुबह हथियार बंद पांच लोगों को भागता देख ग्रामीण दहशत में आ गए। कुछ ही देर में उनको तलाशते हुए खेरागढ पुलिस गांव पहुंच गई।
जब ग्रामीणों को पता चला कि भाग रहे हथियार बंद पांच लोग बदमाश हैं तो उन्होंने भी पुलिस का साथ शुरू कर दिया। इसी बीच राजस्थान पुलिस भी सूचना पर बदमाशों की घेराबंदी को जुट गई। पुलिस से बचने के लिए बदमाशों ने अपने ही एक साथी को गोली मारकर घायल कर दिया। इससे वह मौके पर ही गिर गया। इसके बावजूद ग्रामीणों और पुलिस ने बदमाशों का पीछा नहीं छाेडा। आखिर मुठभेड हुई और एक बदमाश को ढेर कर दिया गया, जबकि उसके तीन साथियों का ग्रामीणों ने दबोच लिया। इसके बाद ग्रामीणों ने शातिरों की जमकर धुनाई की। पुलिस ने किसी तरह शातिरों को ग्रामीणों के कब्जे से मुक्त कराया। इसमें राजस्थान पुलिस के एक दारोगा के चोट भी आ गई।
मुठभेड की सूचना कुछ ही देर में दोनों जिलों के आधा अधिकारियों को दे दी गई। इस पर आगरा की एसएसपी नीरा रावत, एसपी विनय यादव, क्षेत्राधिकारी खेरागढ और कई थानों का फोर्स मौके पर पहुंच गया। उधर, धौलपुर के एसपी, आईजी भरतपुर और वहां के भी कई थानों का फोर्स मौके पर था। पुलिस ने घायल बदमाश डोंगर काछी पुत्र भगवान सिंह को धौलपुर में उपचार के लिए भेज दिया, जबकि पकडे गए अन्य बदमाशों से पूछताछ शुरू कर दी।
मरने वाले बदमाश की शिनाख्त राकेश पुत्र सुजान निवासी ग्राम पथैना गढी चुटैला राजस्थान के रूप में पकडे गए साथियों ने की। दबोचे गए आरोपियों में मुनेश पुत्र शंकर काछी, प्रधान पुत्र बंधु काछी और निरोगी पुत्र हेतराम काछी शामिल हैं। खेरागढ पुलिस की मानें तो दबोचे गए शातिर गुड््डन काछी गिरोह के सदस्य है। मारा गया बदमाश वर्तमान में गिरोह की कमान संभाले हुए था। उस पर सहपऊ राजस्थान में एक हत्या का मुकदमा भी दर्ज है। मुकदमा दर्ज करने को लेकर देर शाम तक दोनों राज्यों की पुलिस विचार विमर्श कर रही थी। दरअसल कोई भी मुठभेड का मुकदमा दर्ज कराने को तैयार नहीं है।
ओमवेश की रिहाई और अग्निवेश की आफत
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 18 मार्च-जिला जेल में सवा तीन महीने बिताने के बाद सोमवार को स्वामी ओमवेश रिहा हो गए, और यह उनकी गैर हाजिरी में आर्य समाज के मुखिय बन बैठे स्वामी अग्निवेश के लिए अच्छी खबर नहीं है। जिस तरह से जेल के दरवाजे पर ओमवेश का स्वागत हुआ, उसी से जाहिर है कि आर्य समाज का एक बडा वर्ग अब भी उनके साथ है। मुलायम सिंह यादव तो जेल जाकर उनसे मिले थे।
वैसे स्वामी ओमवेश पर नौ मुकदमे चल रहे हैं मगर राष्ट्रीय लोक दल ने उन्हें अपना नेता मान लिया है। अब आने वाले दिनों मे स्वामी ओमवेश रैलियां करके अग्निवेश के उन कामों का खुलासा करेंगे जिन्हें वे पाखंड कहते हैं। जेल से बाहर निकलते ही स्वागत में आए राष्ट्रीय लोकदल कार्यकर्ताओं के नारों के बीच स्वामी ने विजय का निशान बनाते हुए सबका अभिवादन स्वीकार किया।
पत्रकारों से बात करते हुए स्वामी ओमवेश बोले कि इन तीन महीनों में मैने जेल में आत्म चिंतन किया और साधना की। भविष्य के बारे में उन्होंने कहा कि कई योजनाएं हैं, समय आने पर उन्हें पूरा करूंगा। उनके स्वागत के लिए जेल पर लोक दल कार्यकर्ताओं के अलावा सपा और भाजपा के कुछ नेता भी पहुंचे हुए थे।उनकी रिहाई के इंतजार में सुबह नौ बजे से ही कार्यकर्ता जेल के बाहर खडे हो गए। सपा कार्यकर्ता भी जुटने लगे। सवा दस बजे स्वामी की रिहाई का आदेश आया।
औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लगभग साढे ग्यारह बजे जेल प्रशासन ने उन्हें रिहा कर दिया। जेल से बाहर आते ही उनके स्वागत के लिए रालोद कार्यकर्ताओं में धक्का मुक्की होने लगी। इसके चलते पार्टी जिलाध्यक्ष कुसुम चाहर सहित अन्य महिला पदाधिकारी उनके स्वागत से वंचित रह गईं। इसी धक्का मुक्की के बीच पत्रकारों से बात करते हुए स्वामी ने कहा कि तीन महीनों के दौरान मैंने जेल में साधना की। आत्म चिंतन किया। कुछ पुराने साथियों से भी मुलाकात हुई, जिसमें सपा के मुखिया मुलायम सिंह और कुछ भाजपा नेता भी थे। आगामी योजनाओं पर उन्होंने कहा कि कुछ विचार मेरे मन में हैं उन्हें मूर्त रूप देना है। राजनीति स्तर पर भी बहुत कुछ करना है, लेकिन सब सलाह मशविरा के बाद ही होगा। सपा में शामिल होने के सवाल को वह टाल गए।
सरबजीत के साथ हुए कई भूतपूर्व पाक कैदी
डेटलाइन इंडिया
नजीबाबाद, 18 मार्च-जासूसी के आरोप में पाक जेल में 13 साल कठोर यातनाएं झेलने वाले मनोज रंजन दीक्षित को हिंदुस्तान के सरबजीत सिंह के लिए पाक सरकार द्वारा डेथ वारंट जारी किए जाने से गहरा सदमा है। दीक्षित पाक में भारतीय कैदियों के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने और हिंदुस्तान की ओर से अपने कैदियों की पैरवी न किए जाने से बेहद खफा है।
रिहाई के दो वर्ष बाद भारत सरकार के उपेक्षित रवैये से नाराज मनोज दीक्षित ने देश के लिए पाकिस्तान में जासूसी करने की बात कही है। उन्होंने बताया कि वे हिंदुस्तान के लिए काम करते हुए उम्र के बेशकीमती 21 साल पाक में गंवाने के बाद भी उनके पास एक अदद नौकरी नहीं है।नजीबाबाद निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक वी. एस. दीक्षित के पुत्र मनोज रंजन दीक्षित बॉर्डर ॉस करके वर्ष 1985 में पाक पहुंचा था। जासूसी के आरोप में कडी यातनाएं मिलीं और लगभग ड़ेढ दशक तक जेल में बंद रहा। 23 जनवरी 1992 से 19 मार्च 2005 तक करांची (पाक) की लांडी जेल में गुजारने के बाद उसे जासूसी के आरोप से मुक्ति देकर रिहा कर दिया गया था। भारत के सरबजीत सिंह को बम धमाकों के आरोप में 17 साल की यातनाओं के बाद उसकी फांसी के लिए डेथ वारंट जारी किए जाने से मनोज रंजन दीक्षित बुरी तरह आहत है। दीक्षित का कहना है कि हिंदुस्तान और बांग्लादेश के कैदियों के साथ पाक जेलों में सौतेला व्यवहार होता है।
जिंदगी के 13 बेशकीमती साल पाक जेल में गुजारने वाले दीक्षित ने बताया कि लांडी जेल में उसके रहते छह बैरक और सडक संपर्क मार्ग बना। जिसमें भारतीय कैदियों को ही मजदूरी के लिए लगाया गया। मार्च 2005 में रिहा होकर भारत लौटे मनोज रंजन दीक्षित रोजी-रोटी के लिए दर-दर भटक रहा है। उसका कहना है कि दो साल जबान बंद रखने के बाद अब उसे कहना पडा है कि उसने पाक में हिंदुस्तान की एक प्रतिष्ठित गुप्तचर एजेंसी के लिए काम किया। उम्र के 21 साल बर्बाद करने की कीमत सरकार ने रिहाई के बाद दो किश्तों के रूप में मात्र 1.36 लाख रुपये और प्रदेश सरकार द्वारा रोजी-रोटी की गुहार करने पर मात्र पांच हजार रुपये का आर्थिक सहयोग प्रदान किया गया।
अगस्त 2006 में शोभा जोशी के साथ दांपत्य सूत्र में बंध चुके मनोज रंजन फिलहाल हरिद्वार (उत्तराखंड) की एक फैक्टरी में मजदूरी के लिए पहुंचा है। उन्होंने भारत सरकार पर अपने लिए काम करने वालों और हिंदुस्तान के कैदियों की पैरवी के प्रति निष्यि रवैया अपनाने तथा पाक में कैदियों को हिंदुस्तान की किसी भी खबर से पूर्णत: महरूम रखे जाने का दावा किया। मनोज रंजन दीक्षित ने सरबजीत सिंह के परिवार द्वारा की गई उस गुहार का भी समर्थन किया, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि यदि समय से पैरवी करते हुए आवश्यक दस्तावेज पाक को उपलब्ध कराए जाते, तो सरबजीत का डेथ वारंट जारी न होता।
पाक कैदियों की एक और कहानी
डेटलाइन इंडिया
अमृतसर, 18 मार्च-तीन साल पहले पाकिस्तान से लौटे पंजाबी युवकों ने बताया कि भारत में किसी तरह की बयानबाजी का असर पाक जेलों में बंद कैदियों पर नहीं पडता है। उनके साथ सामान्य व्यवहार किया जाता है।
जेल में तैनात मुलाजिम उन्हें अपनों की तरह प्यार करते थे।मार्च 2005 में रिहा होकर लौटे अजनाला तहसील के गांव अवाण निवासी जोगिंदर सिंह के बेटे अमोलक सिंह ने बताया कि वह करीब तीन माह तक पाकिस्तान की क्वेटा और कोट लखपत जेल में रहा है। अमोलक ने बताया कि जेल में तैनात सुपरिंटेंडेंट सोमवार और बुधवार को कैदियों से हालचाल पूछा करते थे। उनसे पूछा जाता था कि कोई मुलाजिम उन्हें तंग तो नहीं करता। जेल सुपरिंटेंडेंट उनसे कहा करता था कि उसका वश नहीं चलता, वर्ना वह उन्हें आज ही रिहा कर देता।
भारत में किसी तरह की बयानबाजी का जेल में बंद लोगों पर असर नहीं पडता था। उसी जेल में सरबजीत के बंद होने की खबर भी निचले स्तर के मुलाजिम उसे दिया करते थे। मगर वे सरबजीत से उसे मिलाने की मांग पूरी नहीं कर सके।
क्वेटा जेल से तीन साल पहले रिहा होकर लौटे अमृतसर की शर्मा कॉलोनी निवासी हरीश ने बताया कि उनके साथ 60 पंजाबी युवक बंद थे। लेकिन जेल में किसी को तंग नहीं किया गया। समय पर खाना मिलता था। हो सकता है कि जासूसी के आरोप में बंद लोगों के साथ अलग से व्यवहार होता हो, लेकिन उनकी जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं कि भारत में होने वाली किसी बयानबाजी का जेल में बंद लोगों पर कोई असर दिखा हो।
पढाई में निकम्मे थे परवेज मुशर्रफ
डेटलाइन इंडिया
इसलामाबाद, 18 मार्च-पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पढने में कमजोर थे, इस लिए उन्हें सेना में भेजा में जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। मुशर्रफ ने अपने जीवन के उन महत्वपूर्ण क्षणों का खुलासा किया, जिनसे उनको सफलता की राह मिली। मुशर्रफ ने बताया कि उनको मां जरीन बेगम ने ही सेना में जाने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि वह अपने भाइयों से पढाई में काफी पीछे रहा करते थे, इसी लिए मां ने सेना में जाने की उन्हें सलाह दी, इस लिए मेरे जीवन में मां सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत हैं। सेना के कमांडो से आगे बढते हुए एक कुशल राजनेता बने मुशर्रफ ने मुस्कराहट दबाते हुए कहा कि शायद मां यह नहीं जानती थी कि सेना में काफी पढना भी पडता है।
उल्लेखनीय है 1999 में सेना प्रमुख रहे मुशर्रफ ने तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट कर सत्ता अपने कब्जे में ले ली थी। जियो टीवी पर एक साक्षात्कार के दौरान मुशर्रफ ने कहा कि पिछले आठ सालों में अक्सर उन्होंने अपने को अकेला महसूस किया है, लेकिन उस समय भी वह निराश नहीं हुए हैं। 62 वर्षीय मुशर्रफ जिनके समर्थक गठबंधन की 18 फरवरी को हुए चुनाव में करारी हार हुई है, चाहते हैं कि पाक की अवाम उन्हें ईमानदार, सरल और स्पष्ट बोलने के लिए जाने। उनकी पहचान देश के लिए ईमानदारी से काम करने वाले राष्ट्रपति के रूप में हो। पठान सूट पहनकर टीवी इंटरव्यू दे रहे मुशर्रफ ने बताया कि मां एक अध्यापिका थीं, जो हर रोज अपने स्कूल तक इस लिए पैदल जातीं थीं, जिससे वह अपने बच्चों के लिए फल खरीदने के लिए कुछ पैसे बचा सकें। उन्होंने कहा कि उनके पिता भी एक देशभक्त और ऊंचे चरित्र वाले व्यक्ति थे। मुशर्रफ ने कहा कि वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से आए , लेकिन खुदा ने उन्हें उम्मीदों से कहीं ज्यादा दिया है।
पाक राजनीति में आरोपों का दौर
डेटलाइन इंडिया
इसलामाबाद, 18 मार्च-प्रधानमंत्री की दाैड में शामिल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के उपाध्यक्ष मखदूम फहीम पाकिस्तान मुसलिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के उस आरोप से खासे नाराज हैं, जिसमें उनके और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच खास रिश्तों की बात कही गई थी। खफा फहीम ने इस आरोप का खंडन करते हुए पीएमएल-एन के उस नेता को कानूनी नोटिस भेजा है, जिसने उन पर यह आरोप लगाया है। बहरहाल प्रधानमंत्री पद की दाैड में सबसे आगे चल रहे फहीम इस आरोप के बाद पिछडते दिखाई दे रहे हैं क्योंकि पार्टी ने उनका नाम ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
फहीम ने मुशर्रफ से निजी ताल्लुकात का आरोप लगाने वाले पीएमएल-एन के वरिष्ठ नेता ख्वाजा मोहम्मद आसिफ को मंगलवार को कानूनी नोटिस भेज दिया है। नोटिस में फहीम ने आरोप को आपत्तिजनक बताते हुए इसे पूरी तरह से वापस लेने की बात कही है। गौरतलब है कि ख्वाजा ने फहीम पर आरोप लगाया था कि वह बेनजीर भुट््टो की हत्या वाले दिन से लेकर आम चुनाव के परिणाम आने तक मुशर्रफ से कई बार मिले थे। इसके बाद पीएमएल-एन ने फहीम के मुशर्रफ से संपर्क को गंभीर बताते हुए उनकी प्रधानमंत्री की दावेदारी पर विरोध जताया था। इस बीच यह खबर है कि फहीम पीपीपी में इस मसले को लेकर पैदा हुए भ्रम को दूर करने के लिए जल्द ही पार्टी के सह अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी से मुलाकात कर सकते हैं।
नोटिस में फहीम ने कहा है कि उनकी पीपीपी के प्रति निष्ठा संदेह से परे है। उन्होंने कहा है कि गत सोमवार को एक टीवी चैनल पर साक्षात्कार के दौरान ख्वाजा ने उन पर यह आरोप लगाया था। फहीम ने यह भी कहा है कि नोटिस मिलने के 24 घंटे के भीतर ख्वाजा आरोप वापस लें, नहीं तो उनके खिलाफ मजबूर होकर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने सफाई देते हुए यह भी कहा है कि बेनजीर की हत्या वाले दिन उनकी मुशर्रफ से मुलाकात नहीं हुई, उस दिन हमले से पहले वह पूरे दिन बेनजीर के ही साथ थे। यहां तक की वह उस कार में भी सवार थे जिस पर आत्मघाती हमला हुआ था।
अकारण रिश्ता ताेडेंगे वामपंथी?
महेश रंगराजनयह कोई नहीं जानता कि सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और वाम दलों का रिश्ता कब टूटेगा। लेकिन सभी लोग महसूस करते हैं कि दोनों पक्षों के बीच मतभेद मुख्यत: भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते की शर्तों और उसके निहितार्थों को लेकर है। इस समझौते पर मुख्य वामपंथी पार्टी माकपा का रुख तो जुलाई 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वाशिंगटन दौरे से लेकर आज तक, कभी नरम ही नहीं हुआ। बल्कि पिछले वर्ष अगस्त में दोनों का यह मतभेद उस वक्त गठबंधन की टूट के कगार पर पहुंच गया, जब प्रधानमंत्री ने वाम दलों को समर्थन वापस लेने की चुनौती दे डाली। हालांकि बाद में वह नरम पड गए और यहां तक कहा कि सार्वजनिक जीवन में मायूसियों के साथ जीना ही पडता है। परिणामस्वरूप, कम्युनिस्ट पार्टियां भी इस बात के लिए राजी हो गईं कि सरकार अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ बातचीत कर सकती है।
यह सहमति संभवत: इस तथ्य से प्रभावित हो सकती है कि इससे परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) से मंजूरी का रास्ता साफ हो जाएगा। पैंतालीस सदस्यों वाले एनएसजी के सदस्य रूस और फ्रांस जैसे देश हैं और ईरान के शासकों को, जिन्होंने अमेरिकी धौंस के आगे घुटने नहीं टेके, क्लीन चिट देने वाले इसके मुखिया महमूद अलबरदेई की निजी साख भी बेदाग है। बहरहाल, यहां इस कवायद से संप्रग और विशेषकर कांग्रेस को कुछ मोहलत मिल गई। कुछ लोग समझते हैं कि मार्च के अंत तक आईएईए इस करार पर अपनी सहमति की मुहर लगा सकता है, लेकिन इसके बाद गेंद एनएसजी के पाले में जाती है, जहां सर्वानुमति के लिए यह समझौता जाएगा। वहां अनेक प्रमुख देशों की घरेलू राजनीति इसके अाडे आ सकती है क्योंकि सचाई यह है कि ऑस्ट्रेलिया में अब लेबर सरकार सत्ता में है तथा जर्मनी में ग्रीन पार्टी का बोलबाला है। फिर यह भी जगजाहिर हो चुका है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति को घरेलू राजनीति सफाई से काटती है। एनएसजी से पास होने के बाद ही इस समझौते को पारित करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस में मतदान होगा। तब जाकर भारत दोबारा इस प्रयिा में शामिल हो पाएगा।
इधर पी चिदंबरम का किसान उन्मुखी बजट संसद सत्र के अंत तक पारित हो जाएगा। तब तक लोकसभा में कम्युनिस्ट पार्टियों के इकसठ वोटों की सत्ताधारी गठबंधन को दरकार होगी। असल में, इस तरह के सहयोगों की जरूरत ने ही मनमोहन सिंह सरकार को इतने लंबे समय तक कायम रखा है। पिछले दिनों गोल मार्केट स्थित माकपा मुख्यालय पर संघ परिवार के हमलों ने दोनों के गठबंधन को मजबूत किया है।
लेकिन जैसे-जैसे गरमी करीब आएगी, यह समीकरण बदलेगा। गौर कीजिए, भारत-अमेरिकी परमाणु करार के मामले की सुनवाई एनएसजी मई के मध्य में करेगा। तब तक यहां केंद्र सरकार संभवत: वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर चुकी होगी। करीब तीस लाख केंद्रीय कर्मचारियों के लिए यह एक बडी खुशखबरी हो सकती है। लेकिन यह कदम राज्य सरकारों के सत्तर लाख कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शनों का रास्ता भी खोल देगा। जाहिर है, इससे विपक्षी पार्टियां ही अधिक प्रभावित होंगी, क्योंकि ज्यादातर बडे राज्यों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। तीन राज्यों में, जहां कांग्रेस और वाम मोरचे में सीधा मुकाबला है, वामपंथी पार्टियां इससे परेशानी महसूस करेंगी।
उस वक्त पिछले तीन दशकों से माकपा का मुख्य गढ रहा पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों के मुहाने पर होगा। हालांकि तब भी वहां बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि ममता बनर्जी गैर वाम दलों को एक छतरी के नीचे ला पाने में कामयाब हो पाती हैं या नहीं। यदि वह आंशिक रूप में भी इसे पूरा कर लेती हैं, तो इसके परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण होंगे। ऐसे में, मुकाबला उन दो ताकतों के बीच होगा, जिन्होंने दिल्ली में मौजूदा सरकार को संभव बनाया है। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव भी एक-दूसरे के विरुध्द लडा था और एक बार फिर वे एक-दूसरे के सामने होंगे। उन्हें तब भी और आज भी एक ही तत्व साथ रखे हुए है, और वह है भाजपा से चिढ। कांग्रेसी और कम्युनिस्ट यह बखूबी समझते हैं कि या तो वे साथ आएं, वरना राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हाथों में देश की बागडोर होगी।
लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस और मार्क्सवादियों के बीच सहयोग की सीमाएं स्पष्ट हैं। जहां माकपा के लिए विश्व को एकधु्रवीय बनाने की किसी भी अमेरिकी कवायद का विरोध लाजिमी हो जाता है, वहीं इसके विपरीत नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल से ही कांग्रेसी सरकारों के लिए भारत-अमेरिकी सहयोग को और आगे ले जाना जरूरी हो गया है। कांग्रेस पार्टी दलील देती है कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था के हितों से बगैर कोई समझौता किए ऐसा करती रही है। अब वे कौन से हित हैं और किस तरह से उनका संरक्षण किया जाता रहा है कि दोनों पार्टियां उस पर एकमत नहीं हो पाई हैं, इसका निरूपण होना शेष है। दोनों पार्टियां स्थिति से नाखुश हैं, लेकिन उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।
यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है कि पिछले वर्ष अगस्त में प्रधानमंत्री ने वाम दलों को क्यों उकसाया था। तब वह पीछे हट गए थे। लेकिन अब स्थिति बिलकुल अलग है। यह सही है कि विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने, जो स्वयं पश्चिम बंगाल से लोकसभा सदस्य हैं, यह स्पष्ट किया है कि कोई भी अल्पमत सरकार अकेले अपने बूते पर आगे नहीं बढ सकती। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि बजट के बाद कांग्रेस किसी भी पार्टी के आगे झुकने के मूड में नहीं है। वास्तव में, सचाई यह है कि हर पार्टी की अपनी समस्याएं हैं। कांग्रेस लगातार नौ विधानसभा चुनाव हार चुकी है। अपने पुराने गढ कर्नाटक में उसे जल्दी ही एक कडे मुकाबले का सामना करना है। पार्टी को उम्मीद है कि किसानों की ऋण माफी का उसे उत्तर भारत में लाभ मिलेगा, लेकिन अभी उसे लंबा सफर तय करना होगा। जहां तक माकपा का सवाल है, तो पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम और सिंगूर के बाद केरल में पार्टी के दो बडे नेताओं के बीच छिडी जंग अब भी जारी है। तो क्या विदेश नीति का मसला कांग्रेस-माकपा टूट का कारण बनेगा? ऐसा हो सकता है। सुधारों के मौजूदा काल में अमेरिका के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के विस्तार पर देश का मुख्य जोर रहा है। लेकिन इसकी गति और सीमा क्या हो, यह एक विवादास्पद मुद्दा है।
कुल मिलाकर, हम एक जबरदस्त राजनीतिक तापमान वाली गरमी की तरफ बढ रहे हैं। कौन पार्टी कामयाब होगी, सोनिया गांधी की कांग्रेस या प्रकाश करात की माकपा? इनमें से चाहे जो भी पार्टी मजबूत होकर उभरे, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राजनीति को शायद ही उससे कोई लाभ होगा। (शब्दार्थ)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment