आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.
Tuesday, March 11, 2008
गांगुली से बंगाली सीखेंगे शाहरुख
Dateline India News Service, 11th March, 2008
गांगुली से बंगाली सीखेंगे शाहरुख
डेटलाइन इंडिया
कोलकाता, 11 मार्च-शाहरुख खान को अब अगर आप बंगाली फिल्मों में काम करते हुए भी देखें, तो हैरान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि आईपीएल में अपनी कोलकाता टीम को जिताने के लिए शाहरुख बंगाली रंग में रंगने लगे हैं। खुद किंग खान ने कहा है कि सौरव गांगुली ने उन्हें बंगाली सिखाने का वादा किया है।
शाहरुख ने अपनी टीम का नाम कोलकाता नाइट राइडर्स रखा है और अपनी टीम का गीत बंगाली में बनाया है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि किंग खान ने अपनी टीम का कोच जॉन बुकानन को बना कर अपने बाकी प्रतिद्वंद्वियों को जोर का झटका दिया है। यहां यह याद किया जा सकता है कि जॉन बुकानन पिछले साल तक विश्व चैंपियन आस्टे्रलिया के कोच थे और बुकानन को आस्टे्रलिया के सबसे बेहतरीन कोचों में से एक माना जाता है। बुकानन रिकी पोटिंग की कप्तानी में कोच थे और दिलचस्प संयोग यह है कि कोलकाता की टीम में भी बुकानन और पोटिंग साथ-साथ होंगे।
शाहरुख ने टीम की जर्सी का रंग भी कफी खास रखा है। कोलकाता नाइट राइडर्स की जर्सी का रंग काला और गोल्डन होगा। यह तो सब जान चुके हैं कि शाहरुख की इस टीम के कप्तान टीम इंडिया के भूतपूर्व कप्तान और सौरव गांगुली होंगे। शाहरुख ने अपनी टीम का नाम कोलकाता नाइट राइडर्स बनाने के पीछे भी वजह बताते हुए कहा कि उन्होंने यह नाम युवाओं और बच्चों की पसंद को ध्यान में रखते हुए रखा है। शाहरुख ने अपनी टीम को लाँच करते हुए कप्तान सौरव गांगुली की जमकर तारीफ की। शाहरुख का कहना है कि गांगुली से उनकी दोस्ती काफी पुरानी है और गांगुली उनके दोस्त होने के अलावा, उनके पसंदीदा खिलाड़ी भी हैं।
कोरबो, लड़बो, जीतो रे शाहरुख की टीम का थीम साँग है और हुग-ली टीम का लोगो है। यहां यह भी बताया जा सकता है कि शाहरुख ने आईपीएल में अपनी टीम को सफलता दिलाने की खातिर अपने गेम शो क्या आप पांचवी पास से तेज है, की शूटिंग टालने का भी इरादा बना लिया है। इस गेम शो की शुरुआत भी आईपीएल के साथ होने की संभावना थी मगर अब इसके आगे बढ़ जाने की उम्मीद जताई जा रही हैं।
सरबजीत के परिवार को दिल्ली से भी निराशा
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 11 मार्च-भारत और पाकिस्तान के बीच अब कैदियों की कूटनीति हो रही है। परवेज मुशर्रफ ने सरबजीत सिंह की फांसी खारिज करने से इनकार कर दिया है, तो भारत में राजस्थान की श्रीगंगानगर जेल में बंद एक पाकिस्तानी कैदी ने भारत की सुप्रीम कोर्ट को अर्जी भेजी है कि वह बीस साल से जेल में बंद है और उस पर मुकदमा भी शुरू नहीं हुआ।
पाकिस्तान की जेलों में जितने भारतीय बंद हैं, उन सब पर भारतीय एजेंसी रॉ का होने का ठप्पा लगा दिया गया है। भारत में हालांकि ऐसा नहीं किया गया, लेकिन पाकिस्तानी कैदियों को अपने यहां से पैसे मंगाने की इजाजत नहीं है इसीलिए वे वकील भी नहीं कर सकते। सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर और बहनोई बलदेव सिंह को कल प्रधानमंत्री कार्यालय में जाने का मौका मिल गया और उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन से हो गई।
लेकिन बलदेव सिंह जब बाहर निकले तो बहुत हताश थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को तो उसी दिन कड़ा बयान जारी करना चाहिए था, जिस दिन मुशर्रफ ने सरबजीत की दया की अपील खारिज की थी। पंजाब के कई वकील अब संगठित हो कर सरबजीत सिंह को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और इनमें से एक सरदार दलबीर सिंह खुद सरबजीत सिंह के भाई हैं। एम के नारायणन ने सरबजीत सिंह के परिवार को वक्त तो काफी दिया और मुलाकात पैंतालीस मिनट चली, लेकिन किसी किस्म का आश्वासन देने से इनकार कर दिया।
नारायणन इस बात पर अड़े हुए हैं कि भारत की तरह पाकिस्तान में भी राष्ट्रपति अगर किसी को माफी देने से इनकार कर दें, तो उस फैसले की समीक्षा नहीं हो सकती। लेकिन सरबजीत सिंह के हिमायतियों का तर्क है कि जब सरबजीत को मौत की सजा सुनाई गई थी, तो वह सैनिक शासन का समय था और अब वहां चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार है, जिसे समीक्षा के लिए यह मामला दोबारा दिया जाना चाहिए। बाद में श्री नारायणन ने कई बार संपर्क करने के बाद कहा कि भारत इस संवेदनशील समय में पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। वे शायद यह भूल गए कि सरबजीत पाकिस्तान का नहीं, भारत का नागरिक है और अगर वह जासूसी के लिए पाकिस्तान में गया और वहां पकड़ा भी गया, तो भी वह अपने देश के लिए ही काम कर रहा
था।
बराक, मुखर्जी, एंटनी और बेचारे मनमोहन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 11 मार्च-बराक मिसाइलें और बोफर्स के बीच एक बड़ी समानता यह है कि इन्हें इस्तेमाल करने वाले सेना और नौसेना दोनों संगठनों ने इनकी गुणवत्ता पर कोई सवाल नहीं उठाया है और बोफर्स तथा बराक दोनों को सर्वश्रेष्ठ युध्द आयुधों में से एक की मान्यता दी गई है।
फिर भी बराक मिसाइलों को ले कर दलाली के घोटाले पर जो हंगामा हुआ है, उससे रक्षा मंत्री ए के एंटनी बहुत आहत और नाराज हैं। उन्होंने एक आश्चर्यजनक और आकस्मिक फैसले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सूचित कर दिया है कि जब तक इस पूरे झमेले का अंत नहीं हो जात, तब तक इजरायल से किसी भी किस्म की हथियार खरीद नहीं की जाएगी। रूस के बाद भारतीय रक्षा सेवाएं सबसे ज्यादा इजरायल पर ही निर्भर करती हैं और फिलहाल थल सेना के लिए राडार वायु सेना के लिए नए पायलट रहित जासूसी विमान और नौसेना के लिए और बराक मिसाइलें मंगाने का सौदा लगभग पूरा हो चुका है।
सिर्फ वायु सेना का सौदा तीन अरब डॉलर का है। इजरायल के साथ भारत के राजनयिक संबंध तमाम प्रतिरोधों के बावजूद बहुत अच्छे हैं और सौदों पर प्रतिबंध लगाने का असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ सकता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पत्र पाते ही श्री एंटनी से बात की और उन्हें समझाया कि सीबीआई को अपना काम करने दीजिए और आगे के सौदों में सावधान रहिए। लेकिन श्री एंटनी ने कहा कि उनके पहले के रक्षा मंत्री प्रण्ाब मुखर्जी ने अप्रैल, 2005 में इस बराक सौदे की जांच सीबीआई को सौंपने का जब प्रस्ताव किया था, तो उस पत्र में लिखा था कि आगे के सभी सौदों को स्थगित किया जा सकता है।
प्रणब मुखर्जी से जब इस बारे में पूछा तो पहले तो उन्होंने याद नहीं होने का अभिनय किया, मगर फिर कहा कि सरकारी आदेशों और पत्रों की एक निश्चित भाषा होती है और इस भाषा की परिभाषा हर मंत्री को अपनी तरह करने का अधिकार होता है। यहां यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि प्रणब मुखर्जी मनमोहन सिंह सरकार में नंबर दो तो हैं, लेकिन वे असल में वित्त मंत्री बनना चाहते थे और उनकी यह तमन्ना पूरी नहीं हुई, तो वे मनमोहन सिंह से बहुत खुश नहीं हैं। इंदिरा गांधी की सरकार में प्रणब मुखर्जी ने पूरे पांच बजट पेश किए थे और मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक का गर्वनर बनाने में भी उनका हाथ था।
राहुल से पहले उनकी शिकायत पहुंची दिल्ली
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 11 मार्च-कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की भारत खोज यात्रा उन्हीं की कांग्रेस की केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बन गई है। उड़ीसा के अकाल ग्रस्त इलाकों में यात्रा करते हुए राहुल तीन दिन में दो बार अपने एसपीजी सुरक्षाकर्मियों को बिना बताए निकल लिए थे और राहुल की इस लापरवाही से तंग हो कर उनकी शिकायत गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से की गई है।
रविवार रात की ही बात है। राहुल गांधी को रात गोपालपुर समुद्र तट के पास बने एक रिजॉर्ट में बितानी थी और उनके सुरक्षाकर्मियों ने वहां की जांच भी कर ली थी। मगर राहुल गांधी ने अचानक अपना कार्यक्रम बदल लिया और वे रात को तन्मना गांव में ही रुक गए। यह वही गांव है, जिसे उड़ीसा सरकार ने आदर्श गांव घोषित किया हुआ है। 82 परिवार वाले इस गांव के बारे में कहा जाता है कि इस गांव में कोई शराब को छूता तक नहीं है और साफ-सफाई के मामले में भी यह गांव बहुत आगे है। इस गांव की इन्हीं खासियतों से प्रभावित हो कर राहुल गांधी यहां रुक गए, मगर उनके सुरक्षाकर्मियों की नींद उड़ गई।
इससे दो दिन पहले शुक्रवार को भी राहुल गांधी ने यही किय था। वे पुलिस को बिना बताए एक खतरनाक माने जाने वाले आदिवासी इलाके में चले गए। पुलिस उन्हें चार घंटे तक ढूंढती रही और वे चार घंटे बाद वापस लौटे। वापस आने पर पता चला कि वे एक आदिवासी परिवार के साथ समय बिता कर आए हैं और जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन्हें खाने के लिए पूछा, तो उन्होंने बताया कि वे उसी परिवार के साथ भोजन करके आए हैं।
उड़ीसा पुलिस ने तो गृह मंत्रालय को साफ कह दिया है कि अगर राहुल गांधी के साथ कोई भी दुर्घटना होती है, तो इसके जिम्मेदार वे खुद होंगे क्योंकि पुलिस को तो वे कुछ समझते नहीं हैं। मगर गृह मंत्री शिवराज पाटिल की मुसीबत यह है कि वे राहुल को कुछ कह नहीं सकते हैं इसीलिए सूत्रों के मुताबिक उन्होंने राहुल की मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को कहा है कि वे राहुल गांधी को समझाएं।
दलित के हत्यारे थे भगवान राम?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 11 मार्च-रामायण को लिखने वाले बाल्मीकी अगर जिंदा होते, तो हो सकता है कि उन्हें उत्तर प्रदेश में दिखाई जा रही एक सीडी से रामायण में नए अध्याय जोड़ने का सुझाव मिलता। उत्तर प्रदेश में एक सीडी के द्वारा दिखाया जा रहा है कि भगवान राम दलितों के सख्त खिलाफ थे। लेकिन इस सीडी ने अब सर्वजन समाज की बात करने वाली मुख्यमंत्री मायावती की मुसीबत बता दी है क्योंकि इस सीडी को बांटने वाली संस्था का दावा है कि उन्हें बहन जी का पूरा समर्थन प्राप्त है।
इस सीडी में दिखाया गया है कि भगवान राम एक दलित की हत्या सिर्फ इसीलिए करवा देते हैं क्योकि वह गलती से उनके पांव छू लेता है। जाहिर है कि ऐसा कोई उल्लेख न तो रामायण में हैं और न ही रामचरितमानस में। इस सीडी को तीसरी आजादी का नाम दिया गया है और यह सीडी उत्तर प्रदेश की संस्था अंबेडकर समाज सुधार समिति ने बनाई है।
लालमणि प्रसाद का कहना है कि वे इस संस्था से काफी समय से जुड़े हुए हैं और उनके अनुसार उनकी संस्था को मायावती की बहुजन समाज पार्टी का समर्थन भी प्राप्त है। लालमणि की बात पर इसीलिए भी कुछ भरोसा किया जा सकता है क्योंकि उनकी संस्था के नाम में अंबेडकर का नाम जुड़ा है और मायावती की बसपा भीमराव अंबेडकर की ही कसमें खाती हैं। लेकिन इसके बावजूद बसपा के एक सांसद ने साफ कह दिया है कि उन्होंने न तो इस संस्था का कभी नाम सुना है और न ही बसपा से ऐसी किसी संस्था का कोई संबंध है।
इन सांसद महोदय का कहना है कि यह असल में बसपा को बदनाम करने की साजिश है क्योंकि सब जानते हैं कि बसपा अब सभी जातियों को साथ ले कर चल रही है और दलितों और स्वर्णों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काकर कुछ लोग बसपा को परेशान करना चाहते हैं। उनका कहना है लोगों को ऐसी किसी झूठी फिल्म पर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि यह इतिहास के साथ सीधा छलावा है।
भाजपा और माकपा में एक और भिड़ंत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 11 मार्च-लगता है कि भाजपा और माकपा के बीच छिड़ी जंग लंबी चलने वाली है।
भाजपा और माकपा के बीच टकराव का जो सिलसिला केरल से शुरू हुआ था, वह माकपा कार्यालय पर हमले के बाद अब संसद तक पहुंच गया है। राज्यसभा में भी भाजपा नेता और वामपंथी नेता आपस में भिड़ गए।
शून्यकाल में यह हंगामा उस समय शुरू हुआ जब माकपा की वृंदा करात ने आरोप लगाया कि दिल्ली में भाजपा के नेता अपने कार्यकर्ताओं को देश भर में कम्युनिस्टों के ऊपर हमला करने के लिए भड़का और उकसा रहे हैं। उन्होंने कहा भाजपा नेता इस तरह की हिंसा और असहिष्णुता की राजनीति कर रहे हैं। माकपा सदस्य की इस टिप्पणी से भगवा पार्टी के सदस्य भड़क गए और उनका विरोध करने लगे।
वृंदा ने आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने हैदराबाद में एक भवन का क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया और महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुंदरैया के चित्र को क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया। उन्होंने इस मामले में गृह मंत्री से बयान देने को कहा। इस पर पलटवार करते हुए भाजपा नेता एम. वैंकेया नायडू ने नंदीग्राम में हुई हिंसा की नजीर दी और कहा कि केरल में माकपा कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में लोगों की हत्या की है।
केरल के कन्नूर जिले में हुई हिंसा के बाद हिन्दू महासभा और माकपा के कार्यकर्ताओं के बीच वामपंथी दल के मुख्यालय में झड़प हुई थी, जिसमें कई लोग घायल हो गए। माकपा की पोलित ब्यूरो ने एक बयान में इस हमले की निन्दा करते हुए हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग की
थी और बयान में कहा था कि यह हमला ऐसे समय हुआ जब पार्टी की केन्द्रीय समिति की बैठक चल रही थी। मध्य दिल्ली के गोल मार्केट क्षेत्र में स्थित एके गोपालन भवन की खिड़िकयों के शीशे टूट गए थे। इसके अलावा भूतल को भी नुकसान हुआ जहां पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेमोके्रेसी का कार्यालय है। हिंसा के दौरान पार्टी महासचिव प्रकाश करात और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी की कारों सहित कई वाहनों के शीशे भी टूट गए थे।
मध्य प्रदेश में लगता है भूतों का मेला
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भोपाल, 11 मार्च-कम लोग जानते हैं कि मध्य प्रदेश के एक गांव में भूतों का मेला लगता है। मलाजपुर गांव में भूतों का यह मेला हिंदी कैलेंडर के हिसाब से माघ महीने की पूर्णिमा को लगता है और इस मेले में ज्यादातर वे लोग आते हैं, जो भूतों और प्रेत आत्माओं के शिकार माने जाते हैं।
मेले के आयोजकों के अनुसार इस बार मेले में दस हजार से भी ज्यादा ऐसे लोग पूरे देश से आए थे, जिनके भूत मेले में भगाए गए। यह अपनी तरह का भारत में आयोजित होने वाला इकलौता मेला है और लोगों का दावा है कि यहां आने वाले लोगों को प्रेत आत्माओं से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो इस मेले में सबसे ज्यादा लोग मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से आते हैं मगर लोगों का कहना है कि काफी लोग यहां पर विदेशों से भी पहुंचते हैं।
यहां प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार गुरु महाराजा देओजी ने 18वीं शताब्दी में इस मेले की शुरुआत की थी और उनके बारे में कहा जाता है कि वे इतने चमत्कारी थे कि पानी को घी में बदल देते थे। ऐसे बहुत सारे दूसरे चमत्कार करने का श्रेय यहां के लोग इन महाराज को देते हैं और मलाजपुर में गुरु महाराजा की समाधि भी है, जहां पर मंदिर भी बना हुआ है।
मेले के आयोजन में सालों से हिस्सा लेने वाली आशा यादव का कहना है कि यह गुरु महाराज का ही आशीर्वाद है कि यहां आने वाले लोगों को भूतों से मुक्ति मिल जाती है। आशा का कहना है कि इस बार मेले में श्रीकाली सिंह अपनी बहन के साथ यहां बहुत गोरखल नाम के गांव से आई थी और दोनों बहनें भूतों की शिकार थीं। आशा के मुताबिक मेले में मौजूद पंडितों ने दोनों बहनों को भूतों से हमेशा से आजाद करा दिया और इन दोनों के पति भी यह देख कर हैरान रह गए क्योंकि दोनों ही अपनी पत्नियों से बहुत ज्यादा परेशान हो चुके थे।
धोनी बनने की राह पर मधु कोड़ा
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रांची, 11 मार्च-महेंद्र सिंह धोनी निर्विवाद रूप से झारखंड के सबसे मशहूर हीरो हैं मगर अब धोनी के बाद झारखंड के निर्दलीय मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी दुनियाभर में मशहूर हो सकते हैं। असल में मधु कोड़ा निर्दलीय मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे लंबे समय तक सरकार चलाने के लिए लिम्का बुक में अपना नाम दर्ज कराने के काफी करीब पहुंच गए हैं। हालांकि मधु कोड़ा के मुताबिक वे रिकॉर्ड के लिए काम नहीं करते।
मुख्यमंत्री कोड़ा का कहना है कि वह किसी रिकार्ड के लिए सरकार नहीं चला रहे बल्कि उन्हें जनता के लिए काम करना अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि राजग शासनकाल में गरीब तड़प रहे थे और केंद्रीय नेता राज भोग रहे थे। यह सब उनसे देखा नहीं गया इसलिए उन्होंने निर्दलीय विधायकों को एकजुट करके वैचारिक सिद््धांतों पर अपनी सरकार को चलाया है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और कृषि कार्यों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विपक्ष कुछ भी कहता रहे, यूपीए गठबंधन की सरकार चल ही नहीं रही बल्कि आम लोगों की जरूरतों का निर्वाह भी कर रही है। उन्होंने बताया कि विशेष योजना के तहत झारखंड के छह हजार किलोमीटर राजमार्गों को डबल लेन तथा 1600 किलोमीटर से अधिक राष्ट्रीय राजमार्गों को दुरुस्त किया जा रहा है। नरेगा में निर्माण कार्य देश भर में तीसरे स्थान पर चल रहा है। रांची में रिंग रोड का कार्य भी प्रगति पर है।
बिजली के लिए ठोस व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए टाटा, अभिजीत ग्रुप आदि जैसी बड़ी कंपनियों को सरकारी सहयोग दिया जा रहा है। राजग के मुकाबले कम दिन के शासन के बावजूद प्रदेश सरकार नगर निकाय चुनाव करा रही है। राज्य में नक्सलियों की गतिविधियों को नकारते हुए मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि झारखंड में कोई नक्सलवादी नहीं हैं। नक्सलियों के नाम पर यहां लोग धनी लोगों और ठेकेदारों से सिर्फ पैसे वसूलते हैं। इन पैसों के लिए यह लोग आपस में भी गोलीबारी करते हैं। मुख्यमंत्री का मानना है कि पंचायत चुनाव हो जाने के बाद गांवों का अपने आप विकास होगा और नक्सली हिंसा का नाश हो जाएगा।
मायावती ने दिया भाजपा और कांग्रेस को झटका
डेटलाइन इंडिया
भरतपुर, 11 मार्च-मायावती ने अपनी एक ही चाल से राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों को चित कर दिया है। बहन जी बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान के मजबूत वोट बैंक माने जाने वाले गुर्जरों का समर्थन हासिल कर लिया है और खास बात यह है कि गुर्जरों की महापंचायत ने बसपा को राजस्थान के बाहर पूरे देश में भी समर्थन देने का ऐलान कर दिया है।
अभी तक मायावती बसपा की तरफ से ही भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश की गई थीं, मगर अब गुर्जर महापंचायत ने भी बहन जी को देश की भावी प्रधानमंत्री घोषित कर दिया है। यही नहीं, महापंचायत में भाजपा और कांग्रेस के बहिष्कार का भी निर्णय लिया गया। सोमवार शाम लगभग साढ़े पांच बजे तक चली महापंचायत में गुर्जर नेताओं के अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों ने कहा कि बसपा पहला राजनीतिक दल है, जिसने गुर्जर आरक्षण आंदोलन को शुरू से ही खुला समर्थन दिया। महापंचायत में उत्तर प्रदेश के तीन कैबिनेट मंत्री अनंत मिश्रा, चौधरी लक्ष्मीनारायण और लखीराम नागर के अलावा राष्ट्रीय महासचिव धर्मवार सिंह अशोक भी मौजूद रहे।
अन्य किसी राजनीतिक दल का कोई नेता मंच पर नहीं आया। महापंचायत में भाजपा की टिकट पर निर्वाचित तीन विधायकों ने भी बसपा को पूरा समर्थन देने की घोषणा की। भाजपा से निष्कासित प्रहलाद सिंह गुंजल, पार्टी से निलंबित अतर सिंह भडाना और कामां से भाजपा विधायक मदन मोहन सिंघल ने मंच से घोषणा की कि अगले विधानसभा चुनाव में बसपा के पक्ष में काम करेंगे। दूसरी तरफ, राज्य सरकार की मुसीबत उस समय टल गई, जब साढ़े पांच बजे इस महापंचायत को संपन्न घोषित कर दिया गया। आशंका थी कि कहीं यह महापंचायत अनिश्चितकालीन महापड़ाव आंदोलन के रूप में परिवर्तित न हो जाए। हालांकि सरकार ने हर स्थिति से निपटने के लिए पूरी तैयारियां कर ली थीं।
कामां क्षेत्र के भाजपा विधायक मदनमोहन सिंघल ने कहा कि उन्होंने बसपा में शामिल होने की घोषणा नहीं की है। केवल पार्टी को समर्थन देने की बात कही है। जयपुर में सोमवार को आयोजित गुर्जर महापंचायत के दौरान विधानसभा चुनाव में बसपा के समर्थन की घोषणा के बारे में पूछने पर उन्होंने साफ कहा कि अभी न तो भाजपा छोड़ी है और न ही बसपा ज्वाइन की है। मंच से अन्य विधायकों की तरह बसपा को समर्थन की बात अवश्य कही है। यह उनका व्यक्तिगत फैसला है। वह पूर्व में भी गुर्जर समाज के आंदोलनों में भाग लेते रहे हैं।
गुर्जर नेताओं के बीच आंदोलन की अगुआई के मसले पर टकराव का असर संयुक्त गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की ओर से जयपुर में सोमवार को आयोजित महापंचायत में साफ दिखा। महापंचायत में दो लाख की भीड़ जुटने का दावा किया था, लेकिन 10-15 हजार लोग ही जुट पाए। पुलिस द्वारा कई दिन पूर्व ही गुर्जर नेताओं को हिरासत में लिए जाने और इस समय खेतों में काम होने के कारण महापंचायत को लेकर उत्साह नहीं था। जानकारों के मुताबिक अतर सिंह भड़ाना के मुकदमा वापसी के मसले पर मुख्यमंत्री और गृहमंत्री से मुलाकात पर दूसरे गुट के नेता कर्नल किरोड़ी लाल बैंसला नाराज चल रहे हैं इसीलिए बैंसला मंच पर नहीं आए।
उड़ीसा में संघ और मुस्लिम साथ-साथ
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भुवनेश्वर, 11 मार्च-राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और मुस्लिम संगठनों को एक साथ देखना बेशक पूरे देश में अजूबा हो सकता है मगर उड़ीसा में यह अजूबा आप देख सकते हैं। दरअसल संघ और मुस्लिम संगठनों ने उड़ीसा में हिंदुओं और मुस्लिमों का धर्मांतरण करा रही ईसाई मिशनरियों पर लगाम कसने के लिए हाथ मिलाया है।
उड़ीसा में ईसाइयों की तादाद तेजी के साथ बढ़ी है। हिंदू संगठन इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई शहरों में आदिवासी और दलित आबादी का 40 फीसदी हिस्सा अपना मजहब बदल चुका है। ईसाई मिशनरीज उन्हें घर, धन और रोजगार मुहैया कराती हैं। आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों में धर्मांतरण ज्यादा हुआ है। इनमें अधिकतर लोग तेलगू बोलने हैं। धर्मांतरण को लेकर राज्य के कई हिस्सों में ईसाई मिशनरीज पर हमला भी हो चुका है।
गंजाम में मुसलमानों के धर्मांतरण की कई घटनाएं सामने आई हैं। मोहम्मद शरीफ कुछ दिन पहले ही कलमा पढ़कर दोबारा इसलाम में दाखिल हुआ है। वह कहता है कि उसके आस पड़ोस के कई लोग मिशनरीज की सहायता से मुंबई और गोवा में नौकरी कर रहे हैं। ऐसे में किसी के भी मन में लालच पैदा हो सकता है। पर अब वह कभी ऐसा नहीं करेगा। इस काम में तबलीकी जमात ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। जमात में सक्रिय रियाज अहमद का गोपालपुर में अपना कारोबार है। वह बताते हैं कि पलासा में मुसलमानों ने अपना मजहब बदल लिया। मिशनरीज ने उन्हें कई तरह के लालच दिए। जमात को जब यह पता चला तो फौरन हरकत में आई। काफी मेहनत के बाद उन्हें दोबारा मजहब में शामिल किया गया। जमात के सदस्य सभी आदिवासी क्षेत्रों में घूमकर लोगों को समझा रहे हैं कि वह किसी लालच में अपना मजहब न बदलें। बकौल उनके, जब हम किसी गांव या बस्ती में जाते हैं तो सिर्फ मुसलमान नहीं बल्कि हिंदुओं को भी समझाने की कोशिश करते हैं कि वह अपना मजहब न बदलें। आरएसएस भी इसी तरह का व्यवहार करती है।
...तो गिर जाएगा ताजमहल
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 11 मार्च-जिस ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में शामिल कराने के लिए भारत के गरीबों ने भी अपने एसएमएस करके भारत की इज्जत बचाई थी, उसी ताजमहल की अब हालत यह है कि उसके पत्थर चटक कर गिरने लगे हैं। पीलेपन का शिकार तो ताज पहले ही हो चुका है।
ताज के मुख्य गुंबद से लेकर मेहमानखाने, जल महल, मस्जिद और प्रवेश द्वार के पत्थर चटककर गिर रहे हैं। सबसे खराब हालत है मुख्य गुंबद की। यहां पर एएसआई की ही रसायन शाखा केमिकल क्लीनिंग कर पत्थरों को निखार रही है। इसी मुख्य गुंबद के चारों तरफ के संगमरमरी पत्थर दरक गए हैं। संगमरमर पत्थर के साथ ही बल्कि पच्चीकारी में लगे रंगीन पत्थर कोरल, ग्रीन जैड भी गिर रहे हैं। मुख्य गुंबद में शहंशाह की कब्र के प्रवेश द्वार के बायीं ओर का संगमरमर टूट कर गिर चुका है। यमुना किनारे की ओर सबसे ज्यादा पत्थर निकले हैं। मेहमानखाने की ओर गुंबद पर दो जगह पत्थर गिरने की हालत में हैं। इसी तरह यमुना किनारा की ओर पांच जगह पत्थर गिरने की कगार पर है। पत्थरों को संभालने के लिए लगाई गईं लोहे की क्लैंप भी गल चुकी हैं।
ताजमहल पर पत्थरों के उखड़ने की यह प्रक्रिया दरअसल कई साल पुरानी है। इस पर पुरातत्व विभाग ने पहले ध्यान दिया होता तो शहंशाह के ख्वाबों को साकार करने वाले पत्थर टूटकर बिखर नहीं रहे होते। 358 साल पुराने ताज पर कई जगह पत्थरों के उखड़ने पर उनकी जगह नहीं भरी गई। इससे बारिश में पानी उसके अंदर जाता रहा। इससे इमारत को नुकसान होने की प्रक्रिया चलती रही। मुख्य गुंबद, जल महल, मेहमानखाना, मस्जिद की ओर पत्थरों के जगह छोड़ने पर तुरंत ही मरम्मत की गई होती तो पत्थरों को नुकसान नहीं पहुंचता।
ताजमहल के संरक्षण सहायक मुनज्जर अली के मुताबिक मुख्य गुंबद वाले क्षेत्र में जहां से पीले, काले और सफेद पत्थर निकले हैं वहां संरक्षण का काम कराया गया है। लोहे की क्लैंप गलने से कॉपर की क्लैंप का इस्तेमाल कर पत्थरों से कवर किया गया है। उन्होंने बताया कि इस साल सवा करोड़ रुपये से ताज में संरक्षण का काम कराया गया हैं। मीनारों में पिछले साल काम कराया गया था।
ईरान में कैद भारतीयों का भविष्य सरकार भरोसे
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 11 मार्च-ईरान में अवैध रूप से सीमा पार करने के आरोप में पकड़े गए चौदह भारतीयों की रिहाई तभी संभव होगी, जब भारत सरकार इनका मुकदमा लड़ने के अलावा इन पर लगाए करोड़ों रुपए का जुर्माने का भुगतान कर दे क्योंकि पकड़े गए ज्यादातर भारतीयों की आर्थिक स्थिति कमजोर है।
यह राशि करोड़ों में है। इसे चुकाने वाले एक जहाज में बैठे तीन भारतीयों को छोड़ दिया गया है। जो इस जुर्माने को नहीं दे पा रहे हैं, उन्हें दो वर्ष की अतिरिक्त कारावास भी भुगतना होगा। ओसी-ठाकुर ने बताया कि वर्तमान में जो 11-भारतीय नहीं छूट पाए हैं, उनमें से एक हिमाचली-गौरव ठाकुर ऊनाजिला-के हरोली-के मंझराझोला-गांव से हैं। वह स्काई-नामक जहाज में सवार था। मिनाब-जेल में बंद अन्य 10-भारतीयों में हरियाणा से चार, राजस्थान से तीन, उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा से एक-एक-हैं। आईजी-ओसी-ठाकुर ने बताया कि सभी संबंधित राज्यों-की सरकारों को इस बारे में सूचना भेज दी गई है। उन्होंने बताया कि अगर ईरान की कानूनी कार्रवाई का अनुसरण करते हुए जुर्माने की भारी-भरकम राशि दे दी जाए, तो पकड़े गए युवकों की रिहाई संभव है। उन्होंने बताया कि सीआईडी-की कार्रवाई पूरी हो गई है और अब इस बारे में-जो भी निर्णय होगा, वह सरकारी स्तर पर ही लिया जाएगा।
हिमाचल प्रदेश पुलिस ने भारतीयों-के ईरान की मिनाब-जेल में-कैद होने की सूचना बाहरी राज्यों-की सरकारों-को भी भेज दी है। पुलिस का कहना है कि तेल की तस्करी और ईरान की प्रतिबंधित समुद्री सीमा पार करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला की हरोली-तहसील के गौरव ठाकुर की रिहाई संभव है।
पुलिस से संबध्द सीआईडी-के आईजी-ओसी-ठाकुर ने बताया कि मामले की तह तक पहुंचने-की प्रक्रिया पूरी होने के बाद हिमाचल प्रदेश पुलिस की भूमिका पूरी हो गई है।आईजी-ओसी-ठाकुर ने बताया कि विदेश मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार जिन तीन जहाजों से 14 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया, उनके नाम बरकात,-स्काई-मेरियम-क्रु-न और अलनफात-चार-हैं। इरानियन डिसिपलिनरी-फोर्स (नेवी) ने 6-और 27-सितंबर 2007-को इन जहाजों और उनमें-सवार मचर्ेंट नेवी के व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। मुकदमे के दौरान उन्हें डीजल चुराने और गैर कानूनी तरीके से सीमा में प्रवेश करने के आरोप में एक साल की सजा और 5.88-बिलियन-रियाल-की सजा सुनाई गई।
बृजेश का इंतजार करती यूपी पुलिस
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नई दिल्ली, 11 मार्च- माफिया डॉन बृजेश सिंह उत्तर प्रदेश का है और उसके खिलाफ सबसे ज्यादा और कुख्यात मामले भी उत्तर प्रदेश में ही दर्ज है। मगर विचित्र संयोग यह है कि बृजेश सिंह से उत्तर प्रदेश पुलिस अभी तक पूछताछ नहीं कर पाई है। फिलहाल वह मुंबई पुलिस के पास है और 24 तारीख को उसे दिल्ली लाया जाएगा। उत्तर प्रदेश पुलिस का इंतजार पता नहीं कब खत्म होगा?
अदालत ने माफिया बृजेश सिंह को मुंबई से दिल्ली लाने के लिए एक मामले में नया पेशी वारंट जारी किया है। अदालत ने मुंबई के आर्थर रोड जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि बृजेश को 24 मार्च को तीस हजारी अदालत में पेश किया जाए।
अदालत में यूपी पुलिस की ट्रांजिट रिमांड की अर्जी को विचाराधीन रखा गया है। बृजेश को सोमवार को तीस हजारी न्यायालय स्थित अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कंवलजीत अरोड़ा की अदालत में पेश किया जाना था। मुंबई के आर्थर जेल से नहीं आने से उसे अदालत में पेश नहीं किया गया। आखिर अदालत ने पुन: प्रोडक्शन वारंट जारी किया है। बृजेश पर दिल्ली में लोधी कॉलोनी निवासी एक व्यवसायी को धमकाकर पचास लाख फिरौती मांगने का आरोप है।
बृजेश सिंह को तीसहजारी अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत और मुंबई के लिए ट्रांजिट रिमांड में चार फरवरी को भेज गया था। अदालत ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया था कि वह तीन दिनों के भीतर बृजेश को मुंबई की अदालत में पेश करे। मुंबई में बृजेश पर फरवरी 1992 में हुए जेजे हॉस्पिटल शूटआउट में मामला चल रहा है।
डॉक्टर मध्देशिया का अब भी पता नहीं
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पटना, 11 मार्च-नीतिश कुमार ने डाक्टर सीबी मध्देशिया को अपहरण कर्ताओं के चंगुल से आजाद कराने के लिए पुलिस की इक्कीस टीमें लगा रखी हैं, मगर इसे बिहार पुलिस का निकम्मापन ही कहा जा सकता है कि पुलिस लगभग दो सप्ताह बाद भी डॉक्टर को आजाद नहीं करा पाई है। एक पुलिस अधिकारी ने तो यह डॉक्टर मध्देशिया की हत्या की भविष्यवाणी भी कर दी है।
पुलिस की नजर राजेश यादव उर्फ मुलायम, अजय राय गिरोह के साथ ही साथ बिहार की जेल में कुख्यात ऋषि मुनि तिवारी के गुर्गों पर है।बताते चलें कि कैंट थाना क्षेत्र स्थित दाउदपुर निवासी व प्रसिध्द मनोरोग चिकित्सक सीबी मध्देशिया को चौरी चौरा क्षेत्र स्थित फुटहवा इनार से बदमाशों ने उस समय अपहृत कर लिया जब वे देवरिया से मरीज देखकर लौट रहे थे। घटना पहली मार्च की है।
तकरीबन दस दिन यानी 240 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस की टीमें डाक्टर मध्देशिया को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त नहीं करा सकी हैं। इस बीच एसपी सिटी डीके चौधरी को भी बिहार भेज दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि गोरखपुर, देवरिया व कुशीनगर की पुलिस टीमों के साथ ही एसओजी व एसटीएफ भी डाक्टर मध्देशिया को मुक्त कराने के लिए लगाई गई। इस तरह कुल 21 टीमें डाक्टर को मुक्त कराने में जुटी हुई हैं। खुद एसएसपी पीयूष मोर्डिया पुलिस टीमों की प्रगति की मानीटरिंग कर रहे हैं।
बिहार में डेरा डाली पुलिस की टीमें कुख्यात राजेश यादव उर्फ मुलायम यादव, अजय राय व ऋषि मुनि तिवारी गिरोह पर शिकंजा कसने में जुटी हैं। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि इस काम में पुलिस बिहार के प्रभावशाली लोगों की मदद ले रही है। फिलहाल हालात बताते हैं कि डाक्टर को मुक्त कराने में पुलिस टीमों को कुछ और समय लग सकता है।
मनमोहन के बहाने चमका बनारस
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वाराणसी, 11 मार्च-बनारस के लोग प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बनारस यात्रा को शायद कभी नहीं भुला पाएंगे क्योंकि प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए मायावती की सरकार बनारस को चमकाने में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है और बनारस की कई सड़कें तो बिल्कुल चमक गई हैं।
सूबे के गृह सचिव जेएन चेंबर तथा डीजीपी विक्रम सिंह ने मातहतों के साथ सोमवार की शाम बीएचयू, काशी विश्वनाथ मंदिर एवं दशाश्वमेध क्षेत्र का निरीक्षण किया। दशाश्वमेध घाट पर निरीक्षण के दौरान गंगा पार के अलावा गंगा नदी का काफी इलाका सुरक्षा घेरे में लेने का सुझाव दिया। जहां तक नजर जाए वहां तक फोर्स की तैनाती करने को कहा। घाट पर साफ सफाई के साथ ही प्रकाश व्यवस्था को भी चुस्त दुरुस्त रखने को कहा। अधिकारियों के दल ने विश्वनाथ मंदिर के विभिन्न सुरक्षा प्वाइंटों का निरीक्षण किया। उन्होंने बीएचयू की हवाईपट््टी का भी निरीक्षण किया। हिदायत दी कि आसपास के मकानों पर भी फोर्स की तैनाती रहे। दीक्षांत समारोह स्थल एम्फी थियेटर मैदान तथा एलडी गेस्ट हाउस (जहां प्रधानमंत्री को रहना है) का भी बारीकी से निरीक्षण कर हर जगह सुरक्षा के चाक चौबंद व्यवस्था के निर्देश दिए।
उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से यह जानने का प्रयास किया कि कितने विद्यार्थी कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे। मंच की सीढ़ियां कैसी हैं। गृह सचिव का कहना था कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था अभेद्य रहेगी। किसी को बगैर परिचय पत्र के प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। आईजी जोन प्रवीण सिंह ने बताया कि शासन से उपलब्ध फोर्स के अलावा जोन के अन्य जनपदों से डेढ़ हजार पुलिसकर्मी भी बुलाए गए हैं। प्रधानमंत्री के लिए गंगा में नाव के जरिए वैकल्पिक यातायात की व्यवस्था की गई है। निरीक्षण में एडीजी इंटेलिजेंस मिल्कियत सिंह, एडीजी सुरक्षा डीके शर्मा के अलावा स्थानीय पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारी साथ थे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 14 मार्च को काशी आएंगे। वे बाबतपुर हवाई अड््डे से हेलीकाप्टर से बीएचयू पहुंचेंगे। वहां से एलडी गेस्ट जाकर कुछ देर तक विश्राम करने के बाद दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में शामिल होंगे। अगले दिन 15 मार्च को सुबह 10 बजे विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाग लेंगे। पखवारा भर पहले मुख्यमंत्री मायावती के आने पर तीन करोड़ रुपये खर्च कर शहर को चमकाने की कोशिश की गई थी। अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम पर तीन दिन के अंदर बाबतपुर से बीएचयू तथा कचहरी से सारनाथ तक की सड़क को दुरुस्त करने का कार्य शुरू कर दिया गया है।
बीते फरवरी महीने में 21 तारीख को मुख्यमंत्री मायावती संत रविदास जन्म स्थली पर आई थीं। मुख्यमंत्री की हनक से घबराए विभागीय अधिकारियों ने उन सभी सड़कों को पैच व मरम्मत कार्य करके दुरुस्त करा दिया था, जहां से मुख्यमंत्री के गुजरने की संभावना थी। केवल सड़कों की मरम्मत व पैच वर्क के नाम पर 3 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि खर्च कर दी गई थी। मुख्यमंत्री को आए पखवारा भर ही बीता है कि अब 14 मार्च को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आने का कार्यक्रम यहां आ गया है।
प्रधानमंत्री उस दिन शाम को गंगा आरती में भाग लेने के लिए घाट जाएंगे। अगले दिन 15 मार्च को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह में भाग लेंगे। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को देखते हुए लोक निर्माण्ा विभाग व राष्ट्रीय राजमार्ग अभिकरण फिर केवल सड़कों को दुरुस्त करने के नाम पर करीब 2 करोड़ रुपये खर्च करने जा रहा है। इसमें से लोक निर्माण विभाग विजया सिनेमा से कमच्छा, रथयात्रा तथा गोदौलिया तक की सड़क की मरम्मत व पैच वर्क पर 20 लाख रुपये से अधिक धनराशि खर्च करेगा। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग अभिकरण भी बाबतपुर से कचहरी तथा कचहरी से सारनाथ तक की कुल 27 किलोमीटर सड़क के निर्माण व मरम्मत पर डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च कर रहा है।
इसमें भी केवल बाबतपुर से वरुणा पुल तक 20 किलोमीटर दूरी तक की सड़क के निर्माण पर 1 करोड़ 20 लाख रुपये से अधिक धनराशि खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। कचहरी से सारनाथ तक 7 किलोमीटर की दूरी वाले मार्ग पर क्षतिग्रस्त स्थानों पर सड़क की मरम्मत व पैच वर्क पर भी करीब 25 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा नगर निगम भी अपनी सड़कों की मरम्मत व पैच वर्क करा रहा है। लोक निर्माण विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि समय कम होने के कारण विस्तृत कार्ययोजना के बगैर केवल अनुमानित लागत का आंकलन कर सड़कों के निर्माण व मरम्मत का कार्य शुरू करा दिया गया है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए एम्फी थियेटर मैदान में पक्का सेफ हाउस बनाया जा रहा है। दो कमरे बन रहे हैं। फर्श पर टाइल्स बिछाया जा रहा है। साथ ही कमरा वातानुकूलित होगा। कमरे के साथ अटैच बाथरूम भी होगा। कमरे में सभी प्रकार की सुख सुविधाएं तथा अत्याधुनिक संचार माध्यम के साधन उपलब्ध रहेंगे।
छह फीट ऊंचा पक्का मंच बनाया जा रहा है। मंच पर प्रधानमंत्री के अलावा मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह, चांसलर डा. कर्ण सिंह, राज्यपाल टीवी राजेस्वर, विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रो. पंजाब सिंह तथा रजिस्ट्रार के अलावा विभिन्न संस्थानों के निदेशक एवं संकाय प्रमुख होंगे। स्टेज पर भी एसी की व्यवस्था की गई है। मंच से 45 फीट के दायरे में डी एरिया होगा। इसके बाद विशिष्ट व्यक्तियों तथा छात्रों के बैठने की व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री मायावती बाबतपुर हवाई अड््डे पर प्रधानमंत्री की अगवानी करेंगी।
उधर, विश्वविद्यालय प्रशासन भी दीक्षांत समारोह की तैयारियां युध्दस्तर पर कर रहा है। छात्रों को सूचना भेज दी गई है। वाइसचांसलर प्रो. पंजाब सिंह की अध्यक्षता में सोमवार को हुई समीक्षा बैठक में तैयारियों को अंतिम रूप दिया गया। तय हुआ कि मुख्य द्वार को छोड़कर सभी गेट दीक्षांत समारोह के दिन बंद रहेंगे। समारोह स्थल पर राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक लोगों के बैठने की व्यवस्था के संबंध में मार्गदर्शन करेंगे।
रो रही होगी ध्यानचंद की आत्मा
संजय शर्मा
अगर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद 100 साल जी गए होते, तो हॉकी को रसातल में जाते देखकर न जाने उन पर क्या बीतती। हालांकि वर्ष 1979 में जब उनका निधन हुआ, तब वह मांट्रियल ओलंपिक में भारत का बुरा प्रदर्शन देख चुके थे। लेकिन 80 साल में यह पहली बार है, जब भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाई। चिली में फाइनल में ब्रिटेन ने उसे 2-0 से पीट दिया। यानी वर्ष 1928 के बाद पहली बार होगा, जब आठ बार स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम ओलंपिक में नहीं होगी। जाहिर है, इस हार पर पूरे भारत में हायतौबा मची हुई है।
भारत की खोज में निकले राहुल गांधी ने चयन में पक्षपात को जिम्मेदार बताया है, तो कुंभकर्णी नींद में पड़े खेल मंत्रालय के मौजूदा मंत्री मणिशंकर अय्यर ने लंबी रणनीति बनाने की बात कही है। कुछ सांसदों ने अफसोस जताया है, तो कुछ पूर्व ओलंपियनों ने ठीकरा अध्यक्ष केपीएस गिल पर फोड़ा है। एक समय अध्यक्ष के चुनाव में गिल के खिलाफ खम ठाेंकने वाले उपाध्यक्ष नरेंद्र बतरा की अंतरात्मा अलसुबह जाग गई और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। पूर्व ओलंपियन जलालुद््दीन साहब ने बताया कि हॉकी वालों में एक जुमला खूब चलता है कि गिल साहब जो जिम्मेदारी लेते हैं, उसे खत्म करके ही दम लेते हैं। पहले पंजाब से आतंक को खत्म किया, अब हॉकी को खत्म करेंगे। गिल साहब का कहना है कि इस्तीफा नहीं देंगे।
हॉकी को वक्त चाहिए। यह कोई इन्स्टेंट कॉफी मशीन नहीं है। हालांकि वह काफी वक्त ले चुके हैं।
दरअसल सचाई यह है कि कभी हिटलर तक को मोहित करने वाली भारतीय हॉकी की सफलता के जमाने में इसके बहुत माई-बाप थे, आज भी हैं। लेकिन इन सबने इसकी ठीक से परवरिश नहीं की। वर्ष 1975 का वर्ल्ड कप जब हम जीते थे, तब वह टीम भारतीय ओलंपिक संघ ने भेजी थी, क्योंकि तब हॉकी फेडरेशन में झगड़ा चल रहा था।
विडंबना देखिए कि जब हमारे यहां छीना-झपटी का खेल चल रहा था, तब दूसरे देश इस खेल में भारत-पाकिस्तान के दबदबे को खत्म करने के लिए इसे एस्ट्रो टर्फ पर लाकर कलात्मक की जगह 'पावर गेम' बनाने में जुटे थे। ऑस्ट्रेलिया ने जिस भारतीय शख्स को वर्ष 1971 के आसपास अपनी टीम का कोच बनाया था, उसे हमारे फेडरेशन वालों ने कभी घास नहीं डाली। जहां यूरोपीय हॉकी को एस्ट्रो टर्फ पर लाने वाले थे, वहीं कंगारुओं ने इस भारतीय शख्स की मदद से एशियाई और यूरोपीय हॉकी को मिलाकर अपनी हॉकी को 'खच्चर' बना डाला। उसके बाद हॉकी में आस्ट्रेलिया की ताकत दुनिया ने देखी।
आखिरी बार हम वर्ष 1975 में क्वालालंपुर में घास के मैदान पर विश्व चैंपियन बने थे। और मॉस्को में पॉलीग्रास (यह भी कृत्रिम घास थी) पर ताकतवर मुल्कों की गैरमौजूदगी में हमने ओलंपिक जीता था। लेकिन हमारी हॉकी ने वर्ष 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में मानो कफन ओढ़ लिया। भले ही लोग कहें कि इस पर आखिरी कील अब ठुकी है, लेकिन इसका एक ठोस पहलू यह भी है कि वर्ष 1983 में कपिल देव की टीम के इंगलैंड में विश्व कप क्रिकेट जीतने के साथ ही इसका पतन शुरू हो गया था।
हॉकी को रसातल में ले जाने का जिम्मा भले ही हॉकी फेडरेशन का हो, लेकिन कुछ बातें हैं, जिन पर गौर करें, तो हॉकी में फैली हताशा समझी जा सकती है। इसकी एक वजह तो क्रिकेट का ब्रांड बनना या उसका एकाधिकार ही है। फिर हॉकी के राष्ट्रीय खेल होने और वेस्ट इंडीज क्रिकेट के पराभव का भी विश्लेषण करें, तो बात आसानी से समझ में आ जाएगी। हर कोई जानता है कि एकाधिकार या प्रभुत्व ऐसे बरगद हैं, जिनके नीचे कोई दूसरा वृक्ष पनप नहीं सकता। क्रिकेट रूपी बरगद ब्रांड के नीचे हॉकी समेत अन्य सभी खेल दबते चले गए। हॉकी में 1975 की पराजय के दस साल के भीतर क्रिकेट भारत में ब्रांड बनने लगा था।
यह जानकर हैरत होगी कि वर्ष 1983 की विजेता टीम की अगवानी और सम्मान कार्यक्रम कराने के लिए लता मंगेशकर ने बीसीसीआई के लिए पैसे जुटाए थे, क्योंकि क्रिकेट को भारत सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मिलती थी और बीसीसीआई केपास इतने पैसे नहीं थे। वैसे यह क्रिकेट के लिए शुभ ही रहा। एक अन्य बिंदु है वेस्ट इंडीज क्रिकेट का पराभव, जिससे हम भारतीय हॉकी की दुर्गति को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
वेस्ट इंडीज की क्रिकेट अचानक निचली पायदान पर नहीं गई। इसकी प्रक्रिया तभी शुरू हो गई थी, जब यह टीम शिखर पर थी। तब उन 15-20 सालों में वहां के बच्चे-किशोर क्रिकेट के बजाय बास्केटबॉल को अपना रहे थे। जानते हैं क्यों? उन्हें बगल में बसे अमेरिका में अपना भविष्य सुरक्षित नजर आया। वहां बास्केटबॉल में इफरात पैसा था और इस मामले में कंगाल वेस्ट इंडीज बोर्ड अपनी कामयाबी के मद में इतना चूर था कि वह जान ही नहीं पाया कि उसके पैरों तले जमीन खिसक चुकी है। नतीजा यह हुआ कि जिन प्रतिभाशाली लड़कों में लॉयड, होल्डिंग, गार्नर, रिचड््र्स बनने के गुण थे, वे बास्केटबॉल में नामी हो गए।
हमें यह समझना होगा कि किसी भी देश में बेहतरीन मेधा सीमित ही होती है और यह उसके तंत्र पर निर्भर करता है कि वह विभिन्न क्षेत्रों या खेलों में अग्रणी बनने के लिए उसका उपयोग समान रूप से कैसे करता है। कहना न होगा कि इस मोरचे पर हमारा प्रबंधन तंत्र बुरी तरह से विफल रहा है। विभिन्न खेल संघों पर राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के कब्जे ने हालात को बदतर बनाया है। ऐसे में, स्वाभाविक रूप से हॉकी समेत तमाम खेलों में पेशेवर नजरिये की कमी देखी गई।
वर्ष 1983 में क्रिकेट में जीत और 1976 में मांट्रियल ओलंपिक की हार के नतीजों के संभावित परिणामों का हमारी सरकार और भारतीय ओलंपिक संघ सही आकलन नहीं कर पाए। उनमें शायद इतनी दूरदर्शिता थी भी नहीं। क्रिकेट में जीत से लोगों को ऐसा नशा मिला, जिसे बढ़ना ही था। इसमें ग्लैमर आया, पैसा घुसा, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की क्रांति के बाद यह छोटे शहरों और कसबों में पसर गया। नतीजा यह हुआ कि जो यूपी, बिहार (झारखंड), पंजाब, हरियाणा हॉकी, फुटबॉल, कुश्ती, बॉलीवॉल और बास्केटबॉल की नर्सरी होते थे, आज वहां के कसबों-गांवों की दिमागी और शारीरिक तौर से मजबूत बाल-किशोर प्रतिभाएं क्रिकेट की सप्लाई लाइन बन गई हैं। अगर सरकार और खेल संगठनों ने सभी क्षेत्रों में इस सप्लाई लाइन के समान वितरण के गणित को नहीं समझा, तो यह कहने में तनिक भी हिचक नहीं होनी चाहिए कि देश से दूसरे खेलों का वजूद मिटते देर नहीं लगेगी।
पाक में अभी तो लोकतंत्र की शुरुआत है
कुलदीप तलवार
पड़ोसी देश में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार कायम होने जा रही है। मुसलिम लीग (नवाज) व अवामी नेशनल पार्टियों का सरकार में शामिल होना तय है। जबकि पंजाब में मुस्लिम लीग (नवाज), सिंध में पीपीपी, सरहद में एएनपी और बलूचिस्तान में मुसलिम लीग (क्यू) के नेतृत्व में गठबंधन सरकारें कायम होने के आसार बन गए हैं। पीपीपी व मुसलिम लीग (नवाज) में कुछ मुद््दों पर मतभेद हैं, इसलिए सरकारों के गठन में देर हो रही है। जबकि राष्ट्रपति के संसद भंग करने के विशेष अधिकारों को खत्म करने के लिए पीपीपी के सह-अध्यक्ष आसिफ जरदारी व एमएल (एन) के अध्यक्ष नवाज शरीफ में लगभग सहमति बन चुकी है। अब यह मामला संसद के सामने पेश किया जाएगा।
नई सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पडेग़ा। सबसे बड़ी चुनौती देश को अमन व अमान की संगीन सूरतेहाल से निजात दिलाने की होगी। इसके लिए जरूरी है कि न केवल सत्ताधारी पार्टियां, बल्कि विपक्षी पार्टियां देश में स्थिरता कायम करने को प्राथमिकता दें। नई केंद्रीय व प्रांतीय सरकारों के लिए बागडोर संभालने के बाद सबसे बड़ी चुनौती अल कायदा, तालिबान व पाकिस्तानी तालिबान की विध्वंसक कार्रवाइयों पर काबू पाना होगा। क्योंकि इन तत्वों ने वजीरिस्तान व सवात कबायली क्षेत्रों में खुद को इतना मजबूत बना लिया है कि इन क्षेत्रों की स्थानीय आबादी इनके सामने बेबस महसूस करती है। काबिल-ए-गौर है कि पाक में गठित होने जा रही सरकार को अलकायदा ने धमकी दी है कि अगर मुशर्रफ ने कबायली इलाकों में दहशतगर्दी के खिलाफ अपनी मुहिम जारी रखी, तो वे पहले से भी ज्यादा शिद््दत से हमले करेंगे। हाल ही में अशांत उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान में कबायली सरदारों और स्थानीय अधिकारियों की परंपरागत जिरगा (महापंचायत) पर आत्मघाती हमला इसकी ताजा मिसाल है।
आम चुनावों के बाद पिछले कुछ दिनों में तीन बडे हमले हुए हैं, जिनमें उक्त जिरगे पर हमला और एक पुलिस अधिकारी के जनाजे पर हुआ हमला शामिल है। इन हमलों में कम से कम 100 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इधर कबायली इलाकों में उग्रवादी हिंसा में बढ़ोतरी के मद््देनजर पाक में अमेरिका की मदद से अफगानिस्तान की सीमा से सटे इन इलाकों में तालिबान और अल कायदा के संदिग्ध अड््डों के खिलाफ एक बड़ा सैन्य अभियान चलाने की योजना बनाई है। डॉन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका अपने 100 सैन्य प्रशिक्षकों को भी पाक भेज रहा है, जो आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाइयों में भी हिस्सा ले सकते हैं।
इस समय पाक में उग्रवादियों पर काबू पाना बहुत जरूरी है। इन तत्वों पर पाकिस्तानी फौज व अर्ध्दसैनिक बल काबू पाने में बुरी तरह विफल रहे हैं। अमेरिका और पाक सेना मिलकर पाकिस्तान की राजनीति तय करते रहे हैं। पाकिस्तान 11 सितंबर के बाद अमेरिका की जंग पाक धरती पर लड़ रहा है और अपनी फौजों का इस्तेमाल अपने ही निर्दोष नागरिकों के खिलाफ कर रहा है। लेकिन अब यह नीति छोड़नी होगी। अब ऐसी विदेश नीति बनानी होगी, जिसमें किसी बाहरी ताकत का हाथ न हो। इसलामाबाद स्थित सामरिक अध्ययन संस्थान की महानिदेशक शीरीन मजारी ने अपने द नेशन में छपे लेख में सवाल उठाया है कि हम कब तक अमेरिका की विफल हो चुकी सेना पर आधारित रणनीति के अनुरूप आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपनी ऊर्जा खपाते रहेंगे? या फिर अपनी कोई आधिकारिक या व्यवहारिक नीति तय करेंगे? इसलिए जरूरी है कि ऐसी नीति बनाई जाए, जिसके तहत कबायलियों को यह एहसास मिले कि वे पाक के नागरिक हैं। उन्हें भी वे सभी सहूलियतें दी जाएं, जो दूसरे प्रांतों के नागरिकों को मिलती हैं। तभी पाक के कबायली क्षेत्रों में फैली हिंसा को रोका जा सकता है।
पाक की आर्थिक दशा भी अब लड़खड़ा रही है। स्टेट बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश का विदेशी कर्ज छह प्रतिशत बढ़कर 42.88 अरब डॉलर हो गया है। विदेशी कर्ज में वर्ष 2004 से लगातार बढ़ोतरी जारी है। इस दौरान आठ अरब डॉलर का बोझ बढ़ गया है। इस बीच घरेलू स्रोतों से भी सरकार का कर्ज बढ़ा है। इसका असर देश की क्रेडिट रेटिंग पर भी हो सकता है। इस बारे में नई सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। आटा दालों, चीनी, खाद्य तेल, घी और गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं। इन चीजों की कालाबाजारी के कारण सख्त किल्लत हो गई है।
पाक में केंद्र और चारों प्रांतों की सरकारों में शामिल होने वाली पार्टियों के नेताओं को राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय देना होगा। इसलिए जरूरी है कि वे सरकार बनाकर मिल-जुलकर समस्याओं के हल निकालें। फौज व अफसरान से गैर जरूरी टकराव से बचना होगा, तभी पाक में असली लोकतंत्र कायम होगा।
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