आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.
Thursday, March 6, 2008
ठाकरे का असाध्य पागलपन
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ठाकरे का असाध्य पागलपन
Dateline India News Service, 5th March, 2008
ठाकरे का असाध्य पागलपन
आलोक तोमर
बाला साहब ठाकरे ने अगर शिव सेना की स्थापना नहीं की होती और जो वे कर रहे थे, उसी पर जुटे रहते, तो अब तक पद्म विभूषण पाने वाले दूसरे कार्टूनिस्ट हो चुके होते। उन्होंने शुरुआत फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी और आर के लक्ष्मण उनके समकालीन भी हैं और उनके दोस्त भी।
दोस्त का अर्थ लेकिन यह नहीं होता कि हर बात में सहमत हुआ जाए। लक्ष्मण भी बाल ठाकरे को उन्हीं की भाषा में यानी कार्टून बना कर जवाब देते रहते हैं और मराठी में कार्टूनों की पत्रिका मार्मिक निकालने वाले ठाकरे जवाब में कार्टून नहीं बनाते। अब तो और नहीं बनाएंगे क्योंकि वे अपने भतीजे से प्रतियोगिता करने के चक्कर में खुद कार्टून नजर आने लगे हैं। राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों का मुंबई में अतिक्रमण होने की हमलावर शिकायत जब की थी, तब बाला साहब और उनके मासूम से लगने वाले बेटे उध्दव ठाकरे ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था। लेकिन आग जब फैल गई, तो उध्दव पहले बोले और उन्होंने कहा कि जो लोग बिहार और यूपी से मराठा संस्कृति को नष्ट करने आए हैं, उन्हें मालवाहक विमान में पार्सल बना कर भेज दिया जाएगा।
हंगामा इस पर भी हुआ, लेकिन उध्दव को कोई ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता, सो बात आई-गई हो गई। लेकिन बाल ठाकरे अब बौखला गए हैं। सामना के लाउडस्पीकर से जो प्रलाप वे कर रहे हैं, उससे अब लोग प्रभावित कम होते हैं, या तो आहत होते हैं या उनका मनोरंजन होता है। पहले तो सामना में उन्होंने राज के बारे में लिखा कि उसके साथ चार लोग नहीं हैं। गनीमत है कि उन्होंने वह नहीं लिखा, जो करुणानिधि ने दयानिधि मारन के बारे में अपने अखबार मुरासोली में लिखा था कि मैंने उसे कंधे पर बिठा कर बड़ा किया है, लेकिन द्रविड़ संस्कृति में अगर बेटा भटक जाए, तो उसे मार देने की परंपरा रही है।
बाल ठाकरे या तो सठिया गए हैं या फिर राज ठाकरे की मुद्राओं से बौखला गए हैं। बहुत पहले उन्होंने बंगालियों को भारत और खास तौर पर मुंबई पर कलंक बताया था और बाद में सफाई दी थी कि उनका मतलब बांग्लादेशियों से था। लेकिन अब जब वे छठ पूजा के खिलाफ हो गए हैं, तो भतीजे का अनुसरण ही कर रहे हैं। बिहारियों को गोबर का कीड़ा कहने वाले बाल ठाकरे भारतीय राजनीति के मैथ्यू हेडन हो गए हैं, जिन्होंने हरभजन सिंह को काई कहा था। बाल ठाकरे जो कर रहे हैं, वह क्यों कर रहे हैं, इसका मतलब तो वे ही जानते होंगे, लेकिन जो कर रहे हैं, वह अक्षम्य हैं और बाल ठाकरे की असली जगह या तो पागल खाने में है या ऑर्थर रोड जेल में। भारतीय दंड विधान की धारा 153 के तहत समुदायों के बीच विद्वेष भड़काने का सीधा आरोप उन पर लग सकता है, जिसमें कम-से-कम सजा तीन साल की है।
कहने को यह कहा जा सकता है कि दिल्ली में बैठ कर ठाकरे की आलोचना करना बहुत आसान है, जिसमें हिम्मत हो, वह मुंबई आ कर बोले और जिंदा बच कर दिखा दे। यह माफिया सरगनाओं की पुरानी अदा है। लेकिन ठाकरे तो इस माफियागीरी में भी कोई बहुत बहादुर साबित नहीं हो रहे। दाऊद इब्राहीम और छोटा शकील जैसे लोग तो एक फोन करते हैं और देश में कहीं भी किसी को भी चटका देते हैं। ठाकरे तो आप खुद याद करके देख लें कि आखिरी बार मुंबई से बाहर कब निकले थे? अपने घर में बैठ कर आतंक के जरिए बनाए गए महिमामंडल का इस्तेमाल करके अंट-शंट बकवास करते रहना अलग बात है और मैदान में आ कर लड़ना दूसरी बात है। ठाकरे मैदानी योध्दा नहीं हैं।
1960 में जब ठाकरे का पहला कार्टून न्यूयॉर्क टाइम्स में छपा था, उसी साल उन्होंने पहले कार्टूनों के जरिए और फिर नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से तत्कालीन बंबई में गैर मराठी लोगों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था। शिव सेना की स्थापना के समय जो घोषणापत्र जारी किया गया था, उसमें भी यही कहा गया था कि मराठियो के राजनैतिक हितों की रक्षा करने के लिए यह पार्टी बनी है। ठाकरे की संगठन क्षमता और मराठी बहुल क्षेत्र में मराठा मुहावरा चलाना काम आया और इस दम पर ही शिव सेना पनपती गई। संगठन चलाने के लिए बाहुबली चाहिए और इसीलिए शिव सेना की कामगार सेना का गठन किया गया। दत्ता सामंत और जॉर्ज फर्नांडीज से इस चक्कर में उनकी कई बार टक्कर भी हुई।
मुंबई कोई देहात नहीं है और न उत्तर-पूर्व का ऐसा संवेदनशील इलाका, जहां जाने के लिए इनर लाइन परमिट भी लेना पड़ता है। इसी मुंबई में हिंदी फिल्मों का गढ़ है, जो पूरे देश को प्रभावित करता है। पूरा देश अपनी अर्थव्यवस्था के लिए मुंबई पर भरोसा करता है और ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं, मुंबई के सबसे सफल पुलिस कमिश्नर ज्यादातर पंजाब या उत्तर भारत से ही आए हैं। लेकिन जैसे कि रिवाज है कि गुंडों के मुंह कोई नहीं लगता और किन्नरों को भी शादी-ब्याह के मौके पर उनकी दादागीरी के बावजूद अच्छा-खासा दान दिया जाता है, वैसे ही मुंबई में रिवाज बन गया है कि ठाकरे के मुंह कौन लगे। वैसे भी, अब उन्हें बीयर पीनी छोड़ दी है, वरना अपनी राजनीति के विलोम बाल ठाकरे अपनी निजी जिंदगी में काफी रंगीन मिजाज हैं।
बिहार के संजय निरुपम और बंगाल के प्रीतिश नंदी को शिव सेना की ओर से राज्य सभा में दो बार भेजने वाले बाल ठाकरे आखिर कब तक मुंबईकर होने का चमड़े का सिक्का चलाएंगे? जिस भाजपा से उनका सबसे पुराना गठबंधन है, उसके सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की राय भी ठाकरे के बारे में कोई बहुत उज्ज्वल नहीं है। एक चुनाव अभियान के दौरान मुंबई की उड़ान में वाजपेयी ने ठाकरे के बारे में जो-जो कहा था, वह मैं अगर आज लिख दूं, तो दोनों की राजनीति खतरे में पड़ जाएगी। उस समय शिव सेना और भाजपा मिल कर चुनाव लड़ रही थी और सुबह की उड़ान से उतर कर मैंने सबसे पहले ठाकरे के बारे में वाजपेयी की राय अपने तत्कालीन अखबार के दोपहर के संस्करण में छपवा दी थी। शाम को शिवाजी पार्क में हुई सभा में शिव सेना वालों ने अटल जी को जो काले झंडे दिखाए और जैसी गालियां दीं, वह न देखने वाला नजारा था। बाला साहब ठाकरे में अगर हिम्मत है, तो सामना में जो लिखा है, वह पटना में बोल कर दिखाए? ऊपर से छह इंच छोटे हो कर लौटेंगे!
(शब्दार्थ)
डी पी यादव का नया ठिकाना-बसपा
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 5 मार्च-उत्तर प्रदेश को भय मुक्त सरकार देने का दावा करने वाली मायावती की शरण में डी पी यादव आ गए हैं। बहन जी ने विधानसभा के पटल पर सबके सामने उन्हें संरक्षण दिया और उनकी पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल का विलय अपनी पार्टी में कर लिया।
नीतिश कटारा हत्याकांड में जेल में बंद विकास यादव के पिता और खुद अपने खिलाफ दर्ज कम-से-कम तीस गंभीर मामलों के मालिक डी पी यादव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अंडरवर्ल्ड में एक अच्छी-खासी ताकत माने जाते हैं। अन्य गिरोहों से हुए गैंगवॉर में अब तक पचास से ज्यादा जानें जा चुकी हैं। डी पी यादव ने हर बार की तरह इस बार भी जब चुनाव लड़ा था, तो ऐलान कर दिया था कि जिसे अपनी जान प्यारी नहीं हो, वही नामांकन भरने आए।
नामांकन फिर भी भरे गए और मतदान भी हुआ, लेकिन जैसा कि पहले से तय था, डी पी यादव ही जीते। तब से यादव अपने लिए अपने राजनैतिक आशियाना खोज रहे थे और उन्होंने कांग्रेस तथा अजीत सिंह के लोकदल दोनों से बात की थी। कोई भी उनकी छवि को देखते हुए उन्हें शामिल करने को राजी नहीं हुआ। लेकिन मायावती को शायद छवि की कोई चिंता नहीं है। मायावती ने विधानसभा से निकल कर कहा कि डी पी यादव शरीफ आदमी हैं और उनके खिलाफ जो मुकदमे दर्ज किए गए थे, वे भाजपा की सरकाराें के दौरान किए गए थे।
मायावती ने निश्चित ही अपनी ही पुलिस का रिकॉर्ड नहीं देखा होगा, जिसमें हत्या के प्रयास के दो मामले तब के हैं, जब वे भाजपा की मदद से प्रदेश की मुख्यमंत्री थी। डी पी यादव का असर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इतना है कि भारतीय जनता पार्टी ने भी जलसे और जलवे के साथ उन्हें पार्टी में शामिल किया था और पार्टी महासचिव ने उनके साथ प्रेस कांफ्रेंस की थी। लेकिन तीन दिन में ही भाजपा की इतनी आलोचना हुई कि उसे डी पी यादव को बगैर कोई नोटिस दिए पार्टी से बाहर करना पड़ा। डी पी यादव ने उसी दिन कसम खाई थी कि वे भाजपा से अपने अपमान का बदला लेंगे और उन्होंने कहा था कि वे खुद भाजपा के पास चल कर नहीं गए थे, बल्कि पार्टी के नेताओं ने ही उनसे संपर्क किया था।
कश्मीर सिंह से कईयों को उम्मीदें
डेटलाइन इंडिया
होशियारपुर, 5 मार्च-लगभग सैंतीस साल पहले पाकिस्तान के चंगुल में फंसने वाले सूबेदार अस्सा सिंह की पत्नी निर्मल कौर भी कश्मीर सिंह से मिलने होशियापुर स्थित उनके घर पहुंच गई हैं। निर्मल कौर के पति भी कुछ साल पहले तक उसी कोट लखपत जेल में बंद बताए गए थे, जिसमें कश्मीर सिंह कैद थे।
निर्मल कौर अपने बेटे हरचरन सिंह के साथ कश्मीर सिंह से मिलने इसीलिए आई हैं, ताकि वे अपने पति अस्सा सिंह के बारे में कश्मीर सिंह से जानकारी ले पाए। जम्मू की रहने वाले निर्मल कौर ने कहा कि अगर कश्मीर सिंह इस बात की पुष्टि कर देते हैं कि उनके पति अब भी कोट लखपत जेल में हैं या वे उनके पति के बारे में कोई और सुराग दे देते हैं, जो वे अपने पति की रिहाई के लिए एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान की सरकारों से गुहार लगाएंगी।
निर्मल कौर उन 14 भारतीयों में शामिल थीं, जो पिछले साल अपने परिजनों को पाकिस्तान की जेलों में खोजने गए थे, मगर इन सभी को खाली हाथ लौटना पड़ा था। इसका मतलब यह नहीं है कि निर्मल कौर ने अपने पति के मिलने की उम्मीद छोड़ दी है। उनका कहना है कि पिछले साल जून में जब वे पाकिस्तानों की जेलों में गई थीं, तो उन्हें सैल में नहीं जाने दिया गया था, उन्हें सिर्फ जेलों के रजिस्टर दिखा कर औपचारिकता पूरी कर ली गई थी। यहां इस बात पर भी गौर किया जाना जरूरी है कि कश्मीर सिंह का नाम भी कोट लखपत जेल के रजिस्टर में इब्राहिम दर्ज था।
निर्मल कौर बताती हैं कि 1971 के युध्द में उनके पति जम्मू में छांब सीमा पर तैनात थे और वे लापता हो गए थे। बाद में सेना ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था, मगर अगले ही साल एक रेडियो बुलेटिन में बताया गया कि सूबेदार अस्सा सिंह जीवित हैं और लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद हैं। उनके मुताबिक इसी जेल में उनके पति की तरह ही दो और युध्दबंदी कैद थे, जिनमें से एक जम्मू के ही भोगल राम थे। भोगल और उनके साथी कैदी जब कुछ साल पहले रिहा होकर स्वदेश लौटे थे, तो उन्होंने उन्हें बताया था कि वे कोट लखपत जेल में उनके पति अस्सा सिंह से मिले हैं।
धर्म बदल कर यातना से बचे कश्मीर सिंह
डेटलाइन इंडिया
होशियारपुर, 5 मार्च-पैंतीस साल बाद पाकिस्तान के चंगुल से छूटने वाले कश्मीर सिंह सेहत बिल्कुल ठीक है और उन्हें पिछले कई सालों से पाकिस्तान ने दूसरे भारतीय कैदियों की तरह यातनाएं भी नहीं दी थीं। यह सिर्फ संयोग नहीं था, बल्कि कश्मीर सिंह को इब्राहिम चाचा बनाने की साजिश थी। कश्मीर सिंह ने अपने परिजनों को बताया है कि उन्हें जबर्दस्ती इस्लाम कबलूने के लिए मजबूर किया गया था और अपनी जान बचाने के लिए उन्हें कश्मीर सिंह से इब्राहिम बनना पड़ा।
हालांकि कश्मीर सिंह ने सार्वजनिक तौर पर इस विषय पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है, सिर्फ इतना कहा है कि वे इब्राहिम नहीं, कश्मीर सिंह हैं। कश्मीर सिंह को लाहौर की हाई सिक्युरिटी कोट लखपत जेल में कैदी नंबर 786 दिया गया था, जिसे बिस्मिल्लाह का प्रतीक मानते हैं। कश्मीर के एक परिजन ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह नंबर भी उन्हें जानबूझकर दिया गया था।
पाकिस्तान ने यह दावा किया था कि कश्मीर सिंह ने खुद अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल किया था, मगर पाकिस्तान के इस दावे की हवा तब निकल गई थी, जब कोट लखपत जेल से रिहा होने के बाद कश्मीर सिंह लाहौर में गुरद्वारा डेरा साहिब में मत्था टेकने गए थे। हालांकि पाकिस्तान सरकार ने कश्मीर सिंह की पगड़ी भी कटवा दी और उन्हें पूरी तरह मुस्लिम का रूप दे दिया। यहां तक कि उनके पासपोर्ट भी उनकी जो फोटो है, उसमें भी वे मुस्लिम टोपी पहने हुए हैं। लेकिन पासपोर्ट में उनका नाम इब्राहिम नहीं, बल्कि कश्मीर सिंह ही है।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने यह दावा भी किया था कि कश्मीर सिंह जेल में पांचों वक्त की नमाज अदा करते थे। मगर उनके एक नजदीकी दोस्त जी सी भारद्वाज इसे झूठ बताते हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर सिंह जो भी करते थे, वह सिर्फ दबाव में करते थे क्योंकि वे अब भी खुद को गुरसिख ही मानते हैं। कश्मीर सिंह के एक दूसरे दोस्त ने बताया कि कश्मीर सिंह ने इस्लाम कुछ समय के लिए कबूल जरूर लिया था, मगर यह उनकी सिर्फ मजबूरी थी।
रानी गोविंदा के घर में रहती हैं?
डेटलाइन इंडिया
मुंबई, 5 मार्च-अब जाकर पता चला है कि रानी मुखर्जी का जुहू में जो विशाल बंगला है, असल में वह उन्हें गोविंदा ने तोहफे में दिया था। लेकिन रानी के लिए बुरी खबर यह है कि अब गोविंदा अपना यह बंगला उनसे वापस मांग रहे हैं। गोविंदा के दोस्त इसकी वजह रानी और फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा की अंतरंग दोस्ती को बता रहे हैं।
बहुत कम लोगों को पता था कि यह बंगला गोविंदा ने रानी को दिया था। यह तब की बात है जब रानी ने बॉलीवुड में प्रवेश किया ही था और वे अपने परिवार के साथ मुंबई के अंधेरी में एक अपार्टमेंट में रहती थीं। रानी को उस समय एक बड़े घर की जरूरत महसूस होने लगी थी और उस समय रानी के सबसे अच्छे मित्र माने जाने वाले गोविंदा ने उन्हें अपना जुहू का करोड़ों का बंगला उपहार में दे दिया। इस बंगले के कागजात भी गोविंदा ने रानी के नाम पर करा दिए थे।
लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। अब रानी मुखर्जी गोविंदा से बहुत आगे निकल चुकी हैं और वे बॉलीवुड की सबसे सफल हीरोइनों में शामिल हो चुकी हैं। गोविंदा के एक दोस्त कहते हैं कि गोविंदा अगर रानी से अपना बंगला वापस मांग रहे हैं, तो इसमें गलत ही क्या है। यह बात अलग है कि खुद उन्हें भी अब जा कर पता चला है कि यह बंगला उनके दोस्त गोविंदा ने रानी मुखर्जी
को दिया था। लेकिन गोविंदा के एक दूसरे दोस्त असल वजह बताते हैं। उनके अनुसार जब गोविंदा ने यह बंगला रानी को दिया था, तब उनके बीच बहुत गहरा भावनात्मक लगाव था, जिसे प्रेम भी कहा जा सकता है। उस समय यह भी संभावना बनी थी कि गोविंदा रानी से दूसरी शादी कर रहे हैं मगर पत्नी के विरोध के सामने उन्हें झुकना पड़ा था।
रानी मुखर्जी और गोविंदा की दोस्ती में अब वह बात नहीं रही। अब तो रानी की फिल्म निर्माता आदित्य चोपड़ा से शादी होने की अटकलें लगातार लगाई जा रही हैं, ऐसे में गोविंदा का रानी मुखर्जी से चिढ़ना स्वाभाविक ही है। वैसे गोविंदा और रानी ने अभी तक इस पूरे मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
नवीन पटनायक का माओवादी हथियार
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 5 मार्च-कांग्रेस ने जो लाल कृष्ण आडवाणी के साथ किया, वही आडवाणी के दोस्त नवीन पटनायक ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के साथ किया। कांग्रेस ने आडवाणी की जान को आतंकवादियों से खतरा बता कर उनकी भारत उदय यात्रा स्थगित कर दिया था और अब पटनायक की उड़ीसा सरकार ने राहुल गांधी को नक्सलियों से खतरा बता कर उनके भारत खोजने के अभियान को फ्लॉप बनाने की शुरुआत कर दी है।
राहुल गांधी भारत की खोज उड़ीसा के और संभवत: देश के सबसे पिछड़े हुए इलाकों कालांहाडी-बोलंगीर-कोरपुट बैल्ट वाले इलाके से शुक्रवार को शुरू करना चाहते थे। मगर सरकार ने अब जबकि साफ कह दिया है यहां यात्रा करने से राहुल गांधी की जान को नक्सलवादियों से गंभीर खतरा हो सकता है इसीलिए उन्हें यहां नहीं आना चाहिए, तो अब राहुल ने भुवेनश्वर से अपने इस अभियान की शुरुआत करने का इरादा बनाया है। दिलचस्प संयोग यह है कि कालांहाडी-बोलंगीर-कोरपुट की तरक्की के लिए केबीके प्रोजेक्ट शुरू करने का ऐलान राहुल गांधी की दादी और भूपपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ही की थी, मगर यह प्रोजेक्ट आज तक अधूरा पड़ा है। एक भारत राहुल गांधी के दादी के पिता जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी किताब भारत: एक खोज में खोजा था।
नवीन पटनायक की सरकार ने 15 फरवरी को नयागढ़ इलाके में नक्सली हमले की याद राहुल गांधी को दिला दी और साफ कह दिया कि अगर वे कालांहाडी-बोलंगीर-कोरपुट इलाके से अपने अभियान की शुरुआत करते हैं, तो अपनी जान का खतरा मोल लेने के लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे। इसके जवाब में उड़ीसा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जयदेव जेना का कहना है कि हमारे नेता नक्सली खतरे की वजह से अपना कोई अभियान नहीं रोक सकते, उन्हें सुरक्षा प्रदान करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं।
मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कांग्रेस पर जवाबी निशाना साधते हुए अपने अधिकारियों से कहलवाया है कि यह राहुल गांधी की गलती है कि उन्होंने अपने इस अभियान को हमसे छिपाया रखा और हम उनकी सुरक्षा की पहले से तैयारी नहीं कर पाए। पटनायक का कहना है कि उड़ीसा पूरी तरह सुरक्षित है और राहुल गांधी यहां आ कर खुद देखेंगे कि उड़ीसा ने कितनी तरक्की की है।
गरीबी और अमीरी की बढ़ती दूरियां
कुलदीप नैय्यर
यदि आप किसी देश की प्रगति का आकलन करना चाहते हैं तो आपको निर्धनतम व्यक्ति को खोजना चाहिए और आपको देखना चाहिए कि वह कितनी सीढ़ियां ऊपर चढ़ा है, यह कहा था महात्मा गांधी ने। संसद का बजट अधिवेशन चल रहा है, यह मात्र अर्थव्यवस्था ही नहीं अपितु अन्य क्षेत्रों में भी वस्तु स्थिति के आकलन का समय है। अनेक 'उदार' कदमों के उठाए जाने के फलस्वरूप भारत की विकास दर दोगुनी से अधिक हो गई थी, जो कभी चार प्रतिशत थी और जिसे हिन्दू विकास दर की संज्ञा दी जाती थी, एक हिकारत भरी भाव भंगिमा के साथ।
यदि गांधी के मापदंड के आधार पर परखा जाए तो भारत धनिक है परन्तु असमानता भी है यहां। अरबपति अमेरिका में इस श्रेणी में आने वालों से होड़ लगा रहे हैं। भारत में करोड़पति-अरबपति भी अनेक हैं। फिर भी आम आदमी ने नाममात्र की ही प्रगति की है। सरकारी क्षेत्रों से जारी दो रिपोर्टों में कहा गया है कि सत्तर प्रतिशत लोग दयनीय स्थितियों में जीवन-यापन कर रहे हैं। नवीनतम राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे बताता है कि देहात में लोग आठ रुपए से बारह रुपए की दैनिक आय में जी रहे हैं। यह रिपोर्ट गत वर्ष के आरंभ में जारी हुई थी। उसके बाद से यह राशि आधी रह गयी है। लगभग बारह माह में ही आयी यह तीव्र गिरावट है।
यह भारत भर में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या की व्यथा-कथा है। आत्महत्या की वारदातें समृध्द महाराष्ट्र और पंजाब में भी हुई हैं। आंकड़ा हर आधे घंटे में एक का है। (2006 में आत्महत्या की 7,006 घटनाएं हुई थीं) ग्रामीण ब्याज ऋण अदा नहीं कर सकते क्योंकि वे नकद फसल अर्थव्यवस्था के मकड़ जाल में फंस गए जो बाजीगर की तरंगों को नहीं झेल पाती। कर्ज नहीं चुका पाने के कारण बनी अपमानित स्थिति को कोई भी सम्मानित व्यक्ति नहीं झेल पाता। इसकी तुलना में मध्य वर्ग के बच्चे एक शाम में ही किसी रेस्तरा में उतना खर्च कर देते हैं, जितना एक ग्रामीण परिवार 365 दिनों में खर्च पाता है।
जहां तक सरकार का सवाल है, वह भारतीय किसानों से जो गेंहू एक लाभकारी मूल्य पर, जो किसी भी मामले में विश्व मूल्य का एक चौथाई है, के बजाए सड़े खाद्यान्न के आयात को वरीयता देती है। शरद पवार खाद्य मंत्री हैं। ऐसे घृणित सौदों में पिछड़ना कहां। केन्द्रीय सतर्कता आयोग आवश्यकता से कहीं अधिक मूल्य पर 23 लाख टन गेंहू के आयात के प्रकरण की जांच कर रहा है। गेंहू की गुणवत्ता के परीक्षण के बाद यह जानकर हर व्यक्ति स्तम्भित ही रह गया कि आयतित गेंहू सभी क्वालिटी टेस्टों में फेल रहा।
गांधी ने यह वचन दिया था कि स्वतंत्र भारत में किसी भी व्यक्ति की आंख से आंसू नहीं बहेंगे। साठ वर्ष बाद भी निस्सहाय और भूख के कारण अश्रुओं का भारतीयों के विशाल बहुमत की आंखों से बहना नहीं रूका है। जवाहर लाल नेहरू के समाजवाद और गांधी की आत्मनिर्भरता में हुए टकराव ने भारत को असमान शहरी प्रगति और क्षत-विक्षत ग्रामीण उन्नति की खिचड़ी ही प्रदान की है। ये नरम राज्य के नहीं अपितु दिग्भ्रमित राज्य के संकेत हैं।
मनमोहन सिंह सरकार की नव-उदार आर्थिक नीति ने आम आदमी को चाहे वह लघु उद्योग में रत था अथवा खुदरा व्यापार में लगा था, एक ओर धकेल दिया है। जन अभिमत से प्रभावित होकर सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किया है, जिससे एक ग्रामीण को वर्ष भर में एक सौ दिन काम दिया सके। यह योजना भी भ्रष्टाचार से प्रदूषित हो चुकी है। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि 85 प्रतिशत धनराशि अपेक्षित जन तक नहीं पहुंच पाती। मगर ग्रामीण रोजगार योजना ने लोगों को अपनी आवश्यकताओं के प्रति सजग किया है, ऐसा कहा जाता है।
मगर सरकार को सूचना अधिकार अधिनियम का श्रेय तो दिया ही जा सकता है। इससे अनेक द्वार खुल गए हैं, यद्यपि सरकार, खासतौर पर राज्य अभी भी सूचना प्राप्ति प्रक्रिया में अड़चनें डालना जारी रखे हुए हैं। इस अधिनियम ने मांगने पर सरकारी फाइलों से जानकारी प्राप्त करने में सहायता की है और इससे सही निर्णय लेने में अनिच्छा का भांडा भी फूट गया है। इस सिलसिले में यह भी उल्लेखनीय है कि बिना निपटे आवेदनों का गठ्ठा लगता जा रहा है, जिससे सूचना अधिकार अधिनियम का प्रभाव कम हो रहा है।
ग्रामीण भारत के लोग धन और रोजगार की कमी मात्र से ही दंशित नहीं हैं, उनके अभावों की एक लम्बी सूची है। सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी लाभ से वे वंचित हैं। शिक्षक विद्यालयों में उपस्थित नहीं होते। सड़कें भी कम हैं और वह भी ऊबड़-खाबड़ ही। भूमि रिकार्ड भी गड्ड-मड्ड हैं। राजनीतिज्ञ तथा पुलिस द्वारा समर्थित माफिया अनेक स्थानों पर नौकरशाहों के साथ सांठगांठ से दनदना रहे हैं।
फिर भी इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि मध्यवर्ग का विस्तार हुआ है और 25 करोड़ के लगभग लोग, जो यूरोप की कुल आबादी से अधिक हैं, इस श्रेणी में आ गए हैं। उनके पास मनचाही वस्तुओं को खरीदने के लिए पर्याप्त धन है। किन्तु उपभोक्ताओं का यह वर्ग विदेशी वस्तुओं का दीवाना है। मॉल उनसे भरे हैं। वे लोग जो भारतीय वस्तुएं ही खरीदना चाहते हैं, उन्हें इसे प्राप्त करने में कठिनाई होती है। एक दुखद घटनाक्रम यह है कि भारतीय व्यापारी होते जा रहे हैं और उत्पादन क्षेत्र छोड़ने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। उनमें से अनेक अपने उत्पादों का चीन से आउटसोर्सिंग कर रहे हैं जो बंधुआ मजदूरी का देश है। भारत की अर्थव्यवस्था उल्लासमय है, किन्तु नीतियों का नियमन इस विधि से नहीं होता कि जिसमें जो कुछ अतिरिक्त हो, उसे आबादी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपलब्ध कराया जा सके। रियायतें 'लोवर हाफ' को दी जानी चाहिए, किन्तु वर्तमान रणनीति विकास दर को बनाए रखने की है हालांकि यह धनिकों को और अधिक धनिक और निर्धनों को और अधिक निर्धन बना रही है। विकास का उद्देश्य लाभों को व्यापक स्तर पर प्रसारित करना होना चाहिए था ताकि सामान्य जन भी लाभान्वित हो सकें। यह स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह जो कभी वामाभिमुख अर्थशास्त्री थे उन्होंने भारत को एक पूंजीवादी समाज में बदलने का निश्चय कर लिया है। वह यह अनुभूत नहीं कर रहे हैं कि पूंजीवाद समाजवाद अथवा कोई भी अन्य वाद साधन है, स्वयं में साध्य नहीं है। जिसकी परिणति समग्र समाज की अभिवृध्दि के रूप में होनी चाहिए उसके एक भाग मात्र की नहीं।
किसी को भी आघात इसी बात से लगता है कि धनिक जन अपने धन वैभव की तड़क-भड़क दर्शाते हुए नहीं सकुचाते। राजनीतिक दलों के कुछ नेता सार्वजनिक तौर पर अपने जन्मदिन तड़क-भड़क से मनाते हैं, करोड़ों रुपए ऐेसे आयोजनों में व्यय किए जाते हैं। भारत के समक्ष प्रश्न उपस्थित है: राज्य बनाम जन, शहरी बनाम ग्रामीण, अभियन्त्रिक विकास बनाम मानवीय आवश्यकताएं, अंधे कानून बनाम प्राकृतिक या स्वाभाविक न्याय।
भारत में बड़े-बड़े फार्म हो सकते हैं विशाल औद्योगिक सतह, सुविशाल, प्रयोगशालाएं और सुविशाल भवन भी। किन्तु यदि इस प्रक्रिया में देश अपनी आत्मा ही गंवा बैठा अथवा असमानताओं को पनपने दिया गया तो उसका परिणाम तो उन सपनों के आस-पास भी कहीं नहीं फटक सकेगा, जो स्वाधीनता सेनानियों ने अपने नेत्रों में संजोए थे। एक ऐसा राज्य जिसमें असमानताएं पनप रही हों, उसके लिए तो लोकतंत्र को कायम रखना भी कठिन हो जाएगा। लोगों की सहभागिता और विश्वास ही प्रणाली को सशक्त बनाता है। असमानताएं लोकतंत्र को कमजोर करती हैं और लोगों को हताश और निराश करती हैं।
खुल कर कहें तो यह कि बहुत कम विकसित देश में पूंजीवादी उपाय कारगर नहीं हो पाते। मनमोहन सिंह सरकार जो विकल्प पेश कर रही है, वह तो विकल्प ही नहीं है। यह तो मात्र शोषण हो सकता है कि हम वास्तविक समस्याओं का सामना कर पाने में पर्याप्त रूप में सबल और सक्षम नहीं हाें अथवा हममें पर्याप्त चैतन्य का अभाव हो। हम फिर असफल रहे हैं। एक अन्य बजट, स्टाक टेकिंग की एक और कसरत अकारथ गयी। हम यह स्वीकार करने से भयभीत क्यों हैं कि धनिकों के विरुध्द संघर्ष के मामले में प्रतिबध्दता को हममें अभाव है?
मंगल पर जीवन के और लक्षण
डेटलाइन इंडिया
ह्यूस्टन, 5 मार्च-मंगल ग्रह पर बर्फ होने की पुष्टि हो गई है। नासा के वैज्ञानिकों ने इस लाल गृह के उत्तरी ध्रुव के पास सक्रिय हिमखंडों का पहली बार पता लगाया है। नासा के अंतरिक्ष यान द््वारा ली गई तसवीर में यह हिमखंड दिखाई दे रहे हैं। इस तसवीर में एक ढलान के पास से बादल दूर जाते दिखाई दे रहे हैं, जबकि धूल और बर्फ नीचे की तरफ फिसल रही है।
नासा के अंतरिक्ष यान पर कैमरे को नियंत्रित करने वाले इनग्रिड दौबार ने बताया कि मंगल ग्रह पर यह देखना सुखद है। यह चीजें वहां लाखों सालों से मौजूद हैं। इन हिमखंडों को देखने वाले पहले व्यक्ति इनग्रिड ने कहा कि वह इसे देखकर भौचक्के रह गए थे। तसवीर में दिख रहे ढलान की ऊपरी लाल परतें बर्फ की हैं। यह ढलान करीब 700 मीटर ऊंचा है। स्विट््जरलैंड के बर्ने विश्वविद्यालय के पैट्रिक रशेल ने कहा कि हमें अभी जानकारी नहीं है कि यह किस तरह का भूस्खलन है। ढलान के ऊपर से गिरने वाले मलबे में संभवतया धूल से ज्यादा बर्फ है।
आने वाले महीनों में इस जगह की और तसवीरें लेने से इस ढलान पर बदलावों के बारे में पता चल सकेगा। तब शोधकर्ता इसमें बर्फ के अनुपात का पता लगा सकेंगे। रशेल ने कहा कि यदि बर्फ के टुकड़े ढीले होकर गिर जाते हैं तो इससे लगता है कि उनमें मौजूद पानी ठोस से गैस में बदल रहा होगा। हम आगे देखेंगे कि बर्फ और अन्य मलबा क्या आकार में घट रहा है। इस सब पर नजर रखने से हमें मंगल ग्रह पर वाटर साइकिल को समझने में मदद मिलेगी। नासा का अंतरिक्ष यान मार्च 2006 में मंगल पर पहुंचा था और उसने यह तसवीर 19 फरवरी को ली थी।
चीन की विकराल फौजी तैयारियां
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नई दिल्ली, 5 मार्च-चीन की रक्षा तैयारियों ने अमेरिका सहित कई देशों की नींद उड़ा दी है। इस बार भी उसने अपने रक्षा बजट में 17.6 प्रतिशत की वृध्दि की है। पिछले साल भी चीन ने अपने रक्षा बजट में 17.8 प्रतिशत की वृध्दि की थी। पेंटागन के मुताबिक चीन इसके अलावा हर साल तकरीबन 150 अरब डॉलर से अधिक रक्षा तैयारियों पर खर्च कर रहा है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञ भी इससे इनकार नहीं कर रहे हैं।
चीन इस साल रक्षा पर 58.76 अरब डॉलर खर्च करेगा। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार चीन सैन्य तैयारियों पर इससे कई गुना अधिक राशि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान खर्च कर चुका है। अंतरराष्ट्रीय मंच से पेंटागन भी कई साल से चीन को रक्षा बजट में पारदर्शिता लाने के लिए नैतिक दबाव बना रहा है। साउथ ब्लॉक के विदेश मामलों पर नजर रखने वाले सूत्र भी मानते हैं कि चीन हर साल अघोषित रूप से रक्षा तैयारियों पर भारी धनराशि खर्च कर रहा है। वह लंबी दूरी की परमाणु क्षमता वाली मिसाइल, फुलप्रूफ एडर डिफेंस सिस्टम और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में लगा है।
उसकी इस कोशिश से दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ जैसी स्थिति है और भारत को भी एहतियात के तौर पर तेजी से रक्षा बजट बढ़ाने का दबाव पड़ रहा है। चीन का कहना है कि ताइवान के अलग होने की कोशिशों को वह बर्दाश्त नहीं करेगा और इसलिए वह सैन्य तैयारियों पर खास जोर दे रहा है। गौरतलब है कि चीन दुनिया का एकमात्र देश है जो सीमा विस्तार योजना जारी रखे हुए है। भारत की वह 90 हजार वर्ग किमी भूमि पर दावा जता रहा है और तवांग और अरुणाचल प्रदेश को अपना बताता है। जम्मू-कश्मीर का 38 हजार वर्ग किमी क्षेत्र पहले से उसके कब्जे में है। तिब्बत पर कब्जा कर रखा है। साउथ चाइना सी को अपना हिस्सा मानता है। इसके अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका, सिंगापुर के लिए सीपोर्ट विकसित करने की पहल कर रहा है।
साहूकारों से किसानों को बचाने की तैयारी
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नई दिल्ली, 5 मार्च-साहूकारों और महाजनों के बोझ तले दबे किसानों की कराह केंद्र सरकार को द्रवित कर सकती है। वह कभी भी उनके लिए अलग फंड बनाने की घोषणा कर सकती है। प्रधानमंत्री खुद चाहते हैं कि ऐसे किसानों के घावों पर भी मरहम लगना चाहिए। साहूकारों से कर्ज लेने वाले किसानों के लिए अलग फंड बनाने का उल्लेख उस एजेंडे में भी है जिसे प्रधानमंत्री ने छह माह में पूरा करने का लक्ष्य रखा है। एनसीपी प्रमुख व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के उस बयान को जिसमें उन्होंने साहूकारों के कर्ज न लौटाने को कहा था, इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
चुनावी पिच तैयार कर रही यूपीए सरकार द्वारा वर्ष 2008-09 के बजट में दी गई रियायतों में सर्वाधिक चर्चा व आलोचना किसानों के ऋण माफी को लेकर हो रही है। सवाल उठ रहा है कि उन किसानों का क्या होगा जिन्होंने साहूकारों से कर्ज लिया है? सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऐसे किसानों की संख्या 26 फीसदी है जबकि गैरसरकारी आंकड़े बताते हैं कि यह संख्या 50 फीसदी तक है। यानी कि चार करोड़ किसानों को राहत मिली है तो, चार करोड़ छूट गए हैं।
पैकेज का लाभ पंजाब, हरियाणा व आसपास के राज्यों के किसानों को ही मिलेगा। महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश व राजस्थान जैसे राज्यों में ज्यादातर किसानों ने साहूकारों से कर्ज लिया है। हिमाचल में आढ़तियों से कर्ज लेने का चलन है। इस पूरे पैकेज में एक और पेंच है कि इसका लाभ एक हेक्टेयर से दो हेक्टेयर के मालिक किसानों को ही मिलेगा। बताते हैं कि जिन क्षेत्रों विदर्भ व बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं हुई हैं वहां पर किसानों के पास भूमि का औसत 7-8 हेक्टेयर है किन्तु वह असिंचित है और उसकी बराबरी दो हेक्टेयर सिंचित भूमि से नहीं की जा सकती।
साहूकारों से कर्ज लेने वाले किसानों को राहत देने को लेकर विपक्षी दलों के साथ-साथ संप्रग के घटक दल खासतौर से एनसीपी दबाव बनाए हुए हैं। शरद पवार खुलेआम साहूकारों का कर्ज न लौटाने का आह्वान कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ऐसे किसानों को लेकर चिंतित हैं और वह उनके घावों पर मरहम लगाने के हिमायती है। ऐसे किसानों के लिए अलग से कोष बनाने की बात है और उसका उल्लेख उस एजेंडे में है जिसे प्रधानमंत्री ने संबंधित मंत्रालयों/विभागों को छह माह में पूरा करने को कहा है।
इस फंड को बनाने में सबसे बड़ी दिक्कत धन की तो है ही, प्रक्रिया भी आड़े आ रही है। ऐसे पैसे के लेन देन का कोई सरकारी रिकार्ड नहीं होता। फिर साहूकारों को कैसे पैसा देकर किसानों को उनके चंगुल से मुक्त कराया जाए? साहूकार चार से पांच रुपया सैकड़ा ब्याज पर कर्ज देते हैं। पीढ़ियां उसका भुगतान करती है। फिर भी कर्ज कभी खत्म नहीं होता। इसके लिए चौधरी छोटूराम नीति की मांग हो रही है। उन्होंने पंजाब में कानून बनवाकर किसानों के हर तरह के कर्जे माफ कर दिए थे और मूल से ज्यादा ब्याज लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
मायावती का जवाबी आरक्षण दांव
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लखनऊ, 5 मार्च-राज्य सरकार ने प्रदेश में निवास कर रहे कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोंड, माझी तथा मछुआ जाति के नागरिकों को पिछड़े वर्ग से निकालकर अनुसूचित जाति में शामिल करने संबंधी प्रस्ताव मंगलवार को केंद्र सरकार को भेज दिया है।
यह जानकारी मुख्यमंत्री मायावती ने विधानसभा में दी। उन्होंने बताया कि इन जातियों को संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किए जाने का प्रस्ताव किया गया है।मायावती ने कहा कि इन सभी जातियों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति अत्यन्त निम्न स्तर की है और यह जातियां अनुसूचित जाति की सूची में शामिल होने की लगभग सभी शतर्ें पूरी करती हैं। इनको अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने से वर्तमान अनुसूचित जातियों को कोई नुकसान भी नहीं होगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार से इस मामले में मजबूत पैरवी करने केसाथ ही अनुश्रवण भी किया जाएगा, ताकि इन जातियों को शामिल करने की कार्यवाही जल्द से जल्द पूरी हो सके।
मायावती ने कहा कि इस प्रस्ताव के साथ ही वर्तमान अनुसूचित जातियों को मिलने वाले आरक्षण कोटे को सुरक्षित रखने की दृष्टि से केंद्र सरकार से यह भी प्रस्ताव किया गया है कि इन सभी जातियों की संख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति को अनुमन्य वर्तमान आरक्षण के प्रतिशत में भी वृध्दि की जाए तथा इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाए। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियों को वर्तमान आरक्षण के प्रतिशत में बढ़ोतरी के साथ इन 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने से उनको कोई नुकसान भी नहीं होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-341 एवं सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों में यह स्थापित किया जा चुका है कि किसी भी जाति अथवा उपजाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कार्यवाही राज्य सरकार से विमर्श के बाद केंद्र सरकार द्वारा ही की जा सकती है और संसद ही इस विषय में कानून बना सकती है। राज्य सरकार को ऐसा करने का हक नहीं है। इसीलिए विधिवत प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है।
मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी की पूर्व सरकार ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण) अधिनियम-1994 के तहत एक अधिसूचना जारी करके इन जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्र।ाी से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर दिया था, जबकि ऐसा करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर था। संविधान विरुद्ध होने की वजह से ही उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने डा. भीमराव अंबेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति की याचिका पर 20 दिसम्बर 2005 को तत्कालीन राज्य सरकार की अधिसूचना को स्थगित कर दिया था।
बेटे का नहीं, उसकी लाश का लंबा इंतजार
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रोहतक, 5 मार्च-दो मुल्कों की सरहदों के बीच पौने तीन माह तक अगर किसी को अपने बेटे के पार्थिव शरीर का इंतजार करना पड़े, तो उस परिवार पर क्या गुजरती है, इसको बयां करना मुश्किल है। ऐसा ही एक परिवार है रोहतक जिले के कंसाला गांव के गंगा बिशन का।
जो पिछले तीन माह से सरहदों की सीमाओं के बीच पिस रहा है। गंगा बिशन का छोटा बेटा मुकेश पिछले साल 15 अगस्त को एक एजेंट के मार्फत सऊदी अरब में ड्राफ्ट््समैन के पद पर काम करने के लिए गया था। तय हुआ था कि उसे तीन हजार रियाल (तीस हजार रुपये) प्रतिमाह वेतन मिलेगा। मुकेश के परिजन कहते हैं कि वहां जाने के बाद मुकेश से जो तय हुआ वह डेढ़ हजार रियाल यानी पंद्रह हजार रुपये प्रतिमाह वेतन। बेरोजगारी के कारण वह वहां काम करने को राजी हो गया। 11 दिसंबर को मुकेश ने घर पर फोन करके बताया कि उसे वेतन मिलेगा तो वह खर्चे के लिए पैसे भेजेगा। परिवार के लोग खुशी से झूम रहे थे कि बेटे की पहली पगार आएगी।
परंतु उनकी खुशियां ज्यादा देर नहीं टिक पाईं। मुकेश के भाई रामनिवास के अनुसार तीन दिन बाद 14 दिसंबर, 2007 को उनके पास फोन आया कि मुकेश की एक हादसे में मौत हो गई है।इसके बाद बीते तीन माह में परिजनों ने जो पीड़ा झेली, उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। मुकेश की मौत के बाद उन्हें लगातार फोन आते रहे, कभी उन्हें किसी ने बंगाल से बताकर डराया तो किसी ने बिहार से बताकर। पसोपेश में फंसे परिजनों ने सरकार का दरवाजा खटखटाया, पर न्याय नहीं मिला।
बाद में करनाल के सांसद अरविंद शर्मा के मार्फत वह केंद्र सरकार तक पहुंचे। पौने तीन माह के इंतजार और माफीनामा भेजने के बाद अब बुधवार को मुकेश का शव सऊदी अरब से रोहतक पहुंचेगा। /परिजनों का आरोप है कि मुकेश की हत्या की गई है। उसे जो वेतन दिया जाना था, वह नहीं दिया गया। यही वेतन विवाद का कारण बना होगा और वहां उसकी हत्या कर दी गई। यहां पोस्टमार्टम के बाद यह साफ हो जाएगा कि मुकेश की मौत हादसा थी या हत्या ! इधर, परिजनों ने मुकेश की पत्नी कांता और दो बच्चों कमल व योगेश से अब तक झूठ बोले रखा, ताकि उनका धीरज जवाब न दे। मंगलवार को जब कांता को मायके गांव लाखू बुआना जिला पानीपत में यह सूचना मिली, तो वह होश हवास खो बैठी। तीन माह तक वह अपनी मांग में सिंदूर लगाकर सुहाग की सलामती की दुआ करती रही। उसे कुछ विश्वास नहीं हो रहा है।
कश्मीरी पंडितों के नाम पर राजनीति
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श्रीनगर, 5 मार्च-घाटी छोड़ कर गए कश्मीरी पंडितों की वापसी के नाम पर राजनीतिक दल के अलावा तमाम संगठन अपनी रोटी सेंक रहे हैं। कहीं वोट बैंक को बढ़ाने के लिए तो कहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि सुधारने के लिए कश्मीरी पंडितों की घाटी वापसी और उनके पुनर्वास की बात की जा रही है।
इन दोनों बातों के पीछे राजनीतिक स्वार्थ के अलावा और कुछ भी नहीं है।1989 में घाटी में जब बंदूकें गरजने लगी, उसके तुरंत बाद जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने पंडितों से घाटी खाली करने को कहा। बाद में जगमोहन के इस कदम की चहुंओर निंदा हुई। उसी समय से जब, जिसे और जहां मौका मिला, उसने कश्मीरी पंडितों को घाटी वापस लाने के नाम पर अपना स्वार्थ साधने की कोशिश की। पंडितों की वापसी की बात हर तरफ हुई, लेकिन इस बात के लिए केंद्र और राज्य सरकार में भी आपसी तालमेल नजर आने लगा है। दोनों ही सरकारें इस बात के लिए किसी निर्णय तक नहीं पहुंच सकी है कि घाटी से निकाले गए कश्मीरी पंडितों के साथ क्या करना है। दोनों की अपनी डफली और अपना राग है।
केंद्र सरकार विस्थापित पंडितों को बसाने के लिए जम्मू के नगरोटा इलाके में प्रधानमंत्री रीकंस्ट्रक्शन प्रोग्राम के तहत चार हजार फ्लैट बनवा रही है। दूसरी तरफ राज्य सरकार शेखपोरा बड़गाम में 250 फ्लैट बना चुकी है। सरकार अरबों रुपए लगा रही है, लेकिन अभी यह तय ही नहीं है कि पंडितों को घाटी वापस लाना है या बाहर कहीं बसाना है। केंद्र और राज्य सरकार के इस विरोधाभास को आम लोगों के अलावा अब कश्मीरी पंडित भी भली भांति समझने लगे हैं। जम्मू कश्मीर फोरम फार पीस एंड रीकंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष जीतेंद्र बख्शी ने बताया कि सरकार मजाक कर रही है। विस्थापित घाटी आने के लिए तैयार हैं, लेकिन पहले वहां का वातावरण ठीक किया जाए। आतंकवादी संगठनों से बात की जाए, वो इस बात का आश्वासन दें कि पंडितों पर हमला नहीं किया जाएगा।
अलगाववादी नेताओं मीरवाइज उमर फारूक, सैयद अली शाह गिलानी, यासीन मलिक इस बात को सरेआम कहते हैं कि कश्मीरी पंडित कश्मीर का हिस्सा हैं, लेकिन किसी ने भी इसके लिए पहल नहीं की है कि आतंकवादी संगठन से इस बारे में बात करें। आल कश्मीरी माइग्रेंट के विनोद कुमार कहते हैं कि वोटों के लिए शेखपोरा में नाटक चल रहा है। बाहर गए पंडितों की वापसी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। यहीं के लोगों को फ्लैट की चाबी देकर बोट बैंक को मजबूत करने की राजनीति हो रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जिनको फ्लैट दिया जा रहा है, वो असली माइग्रेंट नहीं हैं। दरअसल, सरकार को ही पता नहीं है कि विस्थापित पंडितों के साथ करना क्या है। एक तरफ घाटी वापस लाने की बात हो रही है, तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री जम्मू में कालोनी बनवा रहे हैं। यह तय नहीं हो पा रहा है कि जिन दो कामों के लिए अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं, उनमें सच कौन है और कौन दिखावा।
अब भी गायब हैं अपहृत डॉक्टर
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गोरखपुर, 5 मार्च-मनोरोग विशेषज्ञ डा. सीबी मध्देशिया को अपहृत हुए चार दिन बीत गए। पुलिस उन्हें मुक्त कराने में फिलहाल असफल है। हालांकि इस दौरान पुलिस के हाथ विशेष जानकारी लगी है।
बिहार पहुंची पुलिस की टीमें सिवान, गोपालगंज व सासाराम में प्रभावशाली लोगों से संपर्क साध रही हैं। अगले 72 घंटे पुलिस महत्वपूर्ण मान रही है।कैंट क्षेत्र के दाउदपुर निवासी व प्रसिध्द मनोरोग विशेषज्ञ डा.सीबी मध्देशिया को शनिवार की रात में अपहृत कर लिया गया। 35 दिन के भीतर अपहरण की इस दूसरी घटना ने पुलिस की परेशानी बढ़ा दी है। 72 घंटे से अधिक का समय बीत गया है। पुलिस डाक्टर को अपहर्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने में सफल नहीं हो सकी है। पर डा. मध्देशिया की रिहाई के लिए बिहार गई पुलिस की टीमों को कुछ विशेष जानकारी मिली है।
जानकारियों को महत्वपूर्ण मान पुलिस की एक टीम मंगलवार की भोर में ही सिवान पहुंच गई जबकि दूसरी टीम ने सासाराम में डेरा डाल दिया है। तीसरी टीम गोपालगंज में ही ठहरी हुई है और अपने तई हाथ पांव मार रही है। एसपीआरए एसपी उपाध्याय खुद गोपालगंज में हैं और तीनों टीमों की प्रगति की मानीटरिंग कर उन्हें निर्देशित कर रहे हैं। देवरिया जिले की पुलिस की एक टीम सीओ के नेतृत्व में डाक्टर को मुक्त कराने के लिए लगाई गई है जो अलग रहकर काम कर रही है। एसटीएफ की टीम भी डाक्टर को मुक्त कराने में जुटी हुई है।
खुद डीआईजी जीएल मीणा व एसएसपी पीयूष मोर्डिया पुलिस टीमों की प्रगति की मानीटरिंग कर रहे हैं। पुलिस अधिकारियों को विश्वास है कि अगले 72 घंटे उनके लिए महत्वपूर्ण हैं। इस अवधि में डाक्टर मध्देशिया अपहरण्ा कांड में पुलिस को सफलता जरूर मिलेगी। इधर पुलिस अधीक्षक नगर डीके चौधरी को भी मंगलवार की देर शाम को बिहार भेजा गया है। यहां बता दें कि 27 जनवरी 08 को अपहृत गौरव मल्ल को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त कराने के लिए श्री चौधरी को ही पुलिस टीमों के साथ बिहार भेजा गया था।
सिध्दार्थ नगर जिले के शोहरतगढ़ क्षेत्र स्थित गड़ाकुल गांव निवासी चंद्र केसरी लाल के पुत्र रिंकू उर्फ रीतेश श्रीवास्तव पर भी पुलिस को संदेह है कि डाक्टर अपहरण कांड में उसका भी हाथ हो सकता है। बताते चलें कि रिंकू श्रीवास्तव व उसके साथियों ने 2004 में बिहार के वैशाली जिला स्थित भगवानपुर क्षेत्र से एनटीपीसी के अधिकारी टी मंडल व केके सिंह का अपहरण किया था। रिंकू ने अपहरण की दो अन्य घटनाएं अंजाम दी। एनटीपीसी के अधिकारियों के अपहरण मदद करने वाले विनोद तिवारी के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने तथा पिंटू तिवारी के गिरफ्तार हो जाने के बाद रिंकू श्रीवास्तव ने चुप्पी साध ली थी।
2005 में शाहपुर क्षेत्र में हत्या की कोशिश करने के बाद रिंकू श्रीवास्तव पुलिस की नजर में नहीं आया। 2006 में यह चरचा जरूर रही कि वह बीमार है और झारखंड के अस्पताल में भर्ती है। उसके बाद से वह कहां है, पुलिस को नहीं पता। अब जब डाक्टर सीबी मध्देशिया के अपहरण की घटना हुई है तो पुलिस अब तक चरचा में रहे अपहर्ताओं पर नजर दौड़ा रही है। पुलिस रिंकू श्रीवास्तव के बारे में जानकारी जुटा रही है। उसे संदेह है कि डाक्टर मध्देशिया अपहरण कांड में रिंकू का भी हाथ हो सकता है।
माफिया दौलत का हिसाब लगाएगी पुलिस
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वाराणसी, 5 मार्च-शासन ने माफिया गिरोह को आर्थिक रूप से कमजोर करने की रणनीति बना ली है। आईजी जोन ने माफिया गिरोहों के सदस्यों की संपत्ति का ब्योरा मांगा है। कहा गया है कि मुन्ना बजरंगी, बृजेश और मुख्तार समेत प्रमुख गिरोहों के बारे में 15 मार्च तक रिपोर्ट भेजी जाए।
रिपोर्ट में अवैध ढंग से संपत्ति अर्जित करने का मामला साबित होने पर जिला प्रशासन उनकी बस, ट्रक या अचल संपत्ति भी जब्त कर लेगा।शासन को सूचना मिली है कि पूर्वांचल के माफिया गिरोहों ने विभिन्न प्रांतों में अवैध ढंग से काफी संपत्ति अर्जित कर ली है। शराब, बिल्डिंग समेत कई धंधों से जुड़कर प्रमुख गिरोह करोड़पति की श्रेणी में आ गए हैं। इसके बावजूद उनको घेरने के लिए पुलिस के पास कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है। माफिया के आर्थिक साम्राज्य पर प्रहार करने के लिए जोन कार्यालय ने दस जिलों के जिला पुलिस प्रमुखों से 14 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी थी। जिले की रिपोर्ट का निरीक्षण करने से पता चला कि उसमें किसी माफिया गिरोह की संपत्ति का विवरण ही उपलब्ध नही है। गिरोह के सदस्यों की संख्या अंकित करने के बाद एक खाना छोड़ दिया गया है।
रिपोर्ट से खफा आईजी जोन प्रवीण सिंह ने संपत्ति का विवरण इकट््ठा करने के लिए एक प्रारूप तैयार कर जिलों को भेजा। नए प्रारूप के तहत स्थानीय पुलिस की टीम तहसील, आयकर विभाग, एलआईयू और अन्य स्रोतों से बस, ट्रक, बैंक एकाउंट, मकान-जमीन का विवरण इकट््ठा करने के लिए कहा गया है। रिपोर्ट के आधार पर पुलिस अधिकारी पुलिस एक्ट के तहत कार्रवाई करके ऐसे माफिया की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई करेंगे। आईजी जोन का कहना है कि गैंगेस्टर के तहत भी पुलिस को माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त है। इस मामले में किसी माफिया गिरोह को बख्शा नहीं जाएगा।
आगरा में कटे पेड़ अदालत में पहुंचे
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आगरा, 5 मार्च-सौंदर्यीकरण के नाम पर खेरिया मोड़ से जेपी होटल और ताज के पूर्वी गेट तक जरूरत से ज्यादा पेड़ काटे जाने की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश किए जाने से वन विभाग में हड़कंप मच गया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कटे पेड़ों की हकीकत जानने के लिए विभाग ने मंगलवार से इस रूट पर पेड़ों की गिनती शुरू करवा दी है। इस काम में अधिकारियों की तीन अलग अलग टीम लगाई गई है। वन विभाग की टीम में रेंज अफसर, एई और जेई स्तर के अधिकारी लगे हैं। गिनती मंगलवार की दोपहर से शुरू हुई। विशेष टीमों ने शुरुआत खेरिया हवाई अड्डे के वीआईपी गेट से की। वन विभाग के अनुसार तीनों टीमों को पेड़ों की गिनती के साथ ही साथ उस पर एक विशेष चिह्न लगाने के निर्देश दिए गए हैं। टीमें खेरिया मोड़ से ईदगाह के पास तक, माल रोड और फतेहाबाद रोड पर अलग अलग रूप में कार्य करेंगी। बुधवार को एक अन्य टीम पेड़ों पर लगे निशानों पर नंबर डालेंगी। विभाग को उम्मीद है कि गिनती की प्रक्रिया बुधवार की शाम तक पूरी हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में ताजमहल मानीटरिंग कमेटी की ओर से पेश रिपोर्ट की बाबत डिस्ट्रिक्ट फारेस्ट अफसर ओपी सिंह का कहना है कि हकीकत खेरिया मोड़ से जेपी होटल व ताजमहल के पूर्वी गेट तक पेड़ों की गिनती पूरी होने के बाद ही पता चलेगी। पेड़ों की गिनती के लिए रेंज अफसरों के नेतृत्व में टीमें काम कर रही हैं। बुधवार की शाम तक ही स्पष्ट बताया जा सकता है।
खेरिया मोड़ से लेकर ताजमहल के पूर्वी गेट तक सड़क के चौड़ीकरण के लिए प्रदेश सरकार ने सड़क के किनारे लगे 2332 पेड़ों को काटने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी थी। ताजमहल मानीटरिंग कमेटी ने कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में बताया है कि प्रदेश सरकार जितने पेड़ों की अनुमति मांग रही है, उससे ज्यादा ही पेड़ काट लिए गए हैं। अब इस 14 किलोमीटर लंबे रूट पर मात्र 12 सौ पेड़ ही बचे हैं। जस्टिस एसबी सिन्हा, एसएच कपाड़िया और डीके जैन की विशेष ताजमहल पीठ ने मानिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रदेश सरकार के रवैए पर कड़ी आपत्ति दर्ज की। साथ ही उसे तीन हफ्ते में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।
मां-बाप के झगड़े में अनाथ हुई बच्ची
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अमृतसर, 5 मार्च-तलाक के बाद जन्मी बच्ची को सौतेले बाप ने अपनाने से इंकार कर दिया तो नानी उसे यतीमखाने में छोड़ने चली गई। वहां बच्ची को स्वीकार नहीं किए जाने पर बच्ची की नानी उसे जिला प्रशासन की तरफ से लगाए गए पालने में डाल गई।
लेकिन रेड क्रास ऑफिस में आठ दिन की कोमलप्रीत को छोड़ने आई उसकी नानी मंजीत कौर को ऑफिस के कर्मचारियों ने देख लिया तो उन्होंने महिला से पूछताछ की तो उसने पूरी कहानी कर्मचारियों को बताई।कस्बा अजनाला के अंतर्गत गांव थोबा निवासी 65 वर्षीय मंजीत कौर ने बताया कि उसकी बेटी गुरजीत कौर की शादी अनायतपुर निवासी निंदर सिंह के साथ हुई थी।
लेकिन दोनों में अनबन होने के कारण तलाक हो गया। उस समय गुरजीत गर्भवती थी। 25 फरवरी को उसने गांव करियालियां निवासी गुरजीत सिंह से 25 फरवरी 2008 को दोबारा शादी कर दी। उसने बताया कि 24 फरवरी को ही उसकी बेटी ने एक बच्ची को जन्म दिया। लेकिन उसके नए दामाद ने बच्ची को अपनाने से इनकार कर दिया। जिसके चलते वह पहले बच्ची को यतीमखाने में छोड़ने गई थी जहां बच्ची को नहीं अपनाया गया। इसके बाद वह बच्ची को पंगूड़ा में डालने के लिए यहां पहुंची थी। मंजीत कौर ने कहा कि वह गरीबी के कारण नवजात बच्ची को नहीं पाल सकती थी। लोगों की तरह इसको मारना भी नहीं चाहती थी, इसलिए सहारे की तलाश में थी। वहीं डीसी काहन सिंह पन्नू ने कहा कि आठ दिन की कोमलप्रीत को शिशु निकेतन नकोदर भेज दिया जाएगा जहां उसकी सही ढंग से परवरिश हो सकेगी।
टीम इंडिया ने कर्नल की इज्जत बचाई
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नई दिल्ली, 5 मार्च-अब बीसीसीआई की चयन समिति में कुछ ही दिनों के मेहमान दिलीप वेंगसरकर की चुनी हुई युवाओं की टीम ने आस्टे्रलिया को उसी की धरती पर पीट कर उनके सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को बाहर करने को फैसले को सही ठहरा दिया है।
'सौरव और राहुल का बतौर महान खिलाड़ी मैं आज भी सम्मान करता हूं। लेकिन मेरा मानना है कि वन-डे क्रिकेट में आखिरी बीस ओवर अहम होते हैं। आस्ट्रेलिया के ग्राउंड काफी बड़े हैं। वहां पर ऐसे युवा चाहिए थे जिनमें एनर्जी हो। हमने कहा, यही टीम बेस्ट है। इसकी आलोचना भी हुई। मेरा मानना है कि हर किसी को अपनी राय रखने का अधिकार है। लेकिन अंत में परिणाम मायने रखता है और इस टीम ने साबित कर दिया कि चयन समिति का फैसला गलत नहीं था। मेरी नजर में भारतीय क्रिकेट में यह एक बड़ा दिन है।', दिलीप ने हर सवाल का जवाब अपने स्वभाव के विपरीत पूरे उत्साह से दिया।
'सिलेक्शन कमेटी की ओलाचना तो पहले ही दिन से हो रही है। लेकिन हमने हमेशा टीम के हित और कांबिनेशन को ध्यान में रख ही फैसले किए। आस्ट्रेलिया युवाओं को भेजा गया सिर्फ इसी उम्मीद से कि वे अपना श्रेष्ठ करेंगे। उन्हाेंने यह साबित कर दिया। मैं खुश हूं कि हमने ऐसी टीम चुनी जो आस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर हराने में सफल रही। मुझे नहीं लगता कि टीम का चयन करते समय हमसे कोई चूक हुई। मैं इस बात से भी खुश हूं कि यह युवा टीम चयन समिति की उम्मीदों पर पूरी तरह से खरी उतरी।'
अन्य चयनकर्ता भूपिंदर सिंह का उत्साह भी देखते बनता था। 'इस जीत के बाद साफ है विश्व क्रिकेट में भारत ही ऐसी टीम है जो आस्ट्रेलिया को लगातार चुनौती देगी। हम इस समय नंबर दो हैं और जल्दी ही शीर्ष पर हाेंगे। बेशक में उस टीम का हिस्सा था जिसने आखिरी बार आस्ट्रेलिया में सीरीज जीती थी लेकिन यह जीत बिलकुल अलग है। एक युवा टीम की जीत।' दिलीप ने युवाओं की इस उपलब्धिको 23 साल पहले मिली जीत से बड़ा करार दिया। 'अंडर-19 टीम अभी विश्व कप जीत कर लौटी है और अब भारतीय क्रिकेट के पास काफी ऑप्शन हैं। मुझे खुशी है कि हमारे पास एक ऐसा पूल है जो निकट भविष्य में खिलाड़ियाें की आपूर्ति बनाए रखेगा। मेरा मानना है कि लगातार जीत के लिए यह सबसे जरूरी है।' दिलीप की नजर में यह जीत सही समय पर मिली है।
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1 comment:
आपका ठाकरे वाला पोस्ट पढा. बिल्कुल सही है.
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