आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Thursday, March 13, 2008

विदेश मंत्री को प्यारे हैं सिर्फ बंगाली?




Dateline India News Service, 13th March, 2008
विदेश मंत्री को प्यारे हैं सिर्फ बंगाली?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 13 मार्च-भारतीय विदेश सेवा की सबसे वरिष्ठ अधिकारी बीना सीकरी ने अब विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी पर सीधे हमला बोल दिया है। विदेश सचिव पद की सबसे मजबूत दावेदारों में से एक रहीं श्रीमती सीकरी इससे पहले सूचना के अधिकार के तहत वे मानदंड मांग चुकी हैं, जिनके आधार पर उन्हें विदेश सचिव नियुक्त नहीं किया गया।

विदेश मंत्रालय ने उस समय तो कई नियम-कानूनों का हवाला देते हुए सीकरी की अर्जी को खारिज कर दिया था, लेकिन अब श्रीमती सीकरी ने किसी भी किस्म का समझौता करने से इनकार कर दिया है और सीधे प्रणब मुखर्जी पर आरोप लगाया है कि महिला होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है और यह संविधान के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। श्रीमती सीकरी का नाम संयुक्त राष्ट्र, इंग्लैंड या कॉमनवैल्थ में भारतीय दूत के लिए चला था, लेकिन बगैर कोई कारण बताए उनकी नियुक्ति इनमें से किसी पद पर नहीं की गई।

श्रीमती सीकरी ने विदेश मंत्री को जो पत्र लिखा है, वह बगावत से कम नहीं है। उन्होंने कहा है कि शिव शंकर मेनन को उनसे जूनियर होने के बावजूद विदेश सचिव बनाना एक ऐसा फैसला है, जिसके बारे में मुखर्जी को सफाई देनी ही पड़ेगी। उन्होंने विदेश सेवा के प्रमुख पदों पर नियुक्ति के मामले में श्री मुखर्जी पर अपने चमचे या बंगाली अधिकारी नियुक्त करने का आरोप भी लगाया है। श्रीमती सीकरी ने लिखा है कि हालांकि मुझे आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन अनौपचारिक रूप से साफ शब्दों में कह दिया गया है कि मुझे विदेश सचिव के मुद्दे पर सवाल खड़े करने की सजा दी जा रही है।

पिछले पंद्रह महीने से विरोध में अवकाश पर चल रहीं श्रीमती सीकरी ने पत्र में आरोप लगाया है कि विदेश मंत्री प्रतिभा और कार्यकुशलता की बजाय निजी प्राथमिकताओं पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जबकि संसद ने सरकार ने महिलाओं के सशक्तिकरण के बड़े-बड़े दावे किए हैं। उन्होंने दोहराया है कि वे न सिर्फ देश की सबसे वरिष्ठ राजनयिक है, बल्कि उनके सेवा रिकॉर्ड पर लगातार अत्यंत शानदार लिखा गया है। लेकिन सरकार तो अब मेरी चिट्ठियों का जवाब भी नहीं देती।

विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने तो इस पत्र के अस्तित्व से ही इनकार कर दिया, लेकिन श्रीमती सीकरी के पास इस पत्र की प्राप्ति रसीद भी है। इस साल दिसंबर में रिटायर हो रही श्रीमती सीकरी ने कहा कि अगर वक्त पर फैसला हो जाता, तो वे दो साल तक विदेश सचिव के पद पर रह सकती थीं। संयोग से श्रीमती सीकरी के पति रवि सीकरी भी उन्हीं के बैच के आईएफएस अफसर हैं। लेकिन उनकी उम्र ज्यादा होने के कारण उनके रिटायरमेंट को बहुत वक्त नहीं बचा था, फिर भी मेनन की नियुक्ति का विरोध तो उन्होंने भी किया था।

दलाई लामा के खिलाफ अब हुई बगावत
आलोक तोमर
आखिरकार तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को उनके शिष्य भी नहीं झेल पाए। भारत में रह कर निर्वासित सरकार चला रहे और भारत के ही खर्चे पर पल रहे दलाई लामा इन दिनों चीन को ले कर अपने गोल-मोल रवैये से भारत सरकार ही नहीं, अपने शिष्यों के लिए भी परेशानी का कारण बने हुए हैं।

आखिर दलाई लामा तिब्बत से भारत भाग कर आए ही इसीलिए थे कि वे अपने आप को धर्म गुरु के नाते तिब्बत का शासक मानते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो वे तिब्बत की बराबरी वेटिकन से कर रहे थे, जहां पोप को राष्ट्र प्रमुख का दर्जा दिया जाता है। लगभग छयालीस साल से भारत को अनाथालय बना कर रह रहे दलाई लामा को शांति के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है। यह भी कहा जाता है कि चीन को सबक सिखाने क लिए अमेरिकी सीआईए के लोगों ने तिब्बत में बगावत को हवा दी थी और सीआईए ने ही दलाई लामा के भारत पहुंचने में मदद की थी।

जिन लोगों की दलाई लामा में अटूट आस्था है, वे सपना देख रहे थे कि अपनी परा भौतिक शक्तियों और खगोलीय राजनयिक दांव-पेंचों के जरिए दलाई लामा आखिरकार तिब्बत को आजाद देश बना लेंगे और वहां फिर बौध्द धर्म का राज चलेगा। शुरू में दलाई लामा के तेवर थे भी इसी तरह के, लेकिन बहुत दिनों तक अकारण अभिवादन प्राप्त करते हुए और फोकट का अन्न खाते हुए शायद हिज होलीनैस की मति भ्रष्ट हो गई या उम्र का असर हुआ इसीलिए अब उनका झुकाव बार-बार चीन की ओर दिखाई देता है। बीजिंग ओलंपिक के मामले में तो खास तौर पर तिब्बत की आजादी को मुद्दा बनाने की पहल उनके प्रवक्ताओं ने की थी और जब यह पहल चीन से धिक्कार के साथ लौट आई, तो उन्होंने भी अपना रुख बदल लिया और कहा कि तिब्बत को सिर्फ सीमित स्वायत्ता दे दी जाए, तो भी काम चल जाएगा। दूसरे शब्दों में वे तिब्बत में गोरखा लैंड की तर्ज पर एक प्रशासनिक ढांचा चाहते थे और हिज होलीनैस होने के बावजूद उनकी तमन्ना भूतपूर्व सिपाही सुभाष घिशिंग से ज्यादा नहीं थी। भारत सरकार तो अपनी स्थापित राजनयिक नीति की वजह से इसे झेल गई, लेकिन अपने तिब्बत का सपना देखते हुए उम्र बिता देने वाले दलाई लामा के भक्तों को यह हजम नहीं हुआ।

इसीलिए धर्मशाला और उसके पड़ोस में जो हुआ, वह हुआ। यह बात अलग है कि बीजिंग ओलंपिक के मुहाने पर तिब्बत समस्या की ओर अंतररराष्ट्रीय समुदाय का अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये खेल आयोजन के विरोध में धर्मशाला से ल्हासा मार्च की तैयारियां धरी की धरी रह गईं। रही सही कसर भारतीय पुलिस ने पूरी कर दी। विरोध मार्च के लिये निर्वासन में रह रहे तिब्बत युवा कांग्रेस व दूसरे चार संगठनों के करीब एक हजार लोग इसके लिये तैयार थे। इसकी तैयारियां निछले तीन माह से चल रहीं थीं। लेकिन तिब्बतियों के अध्यात्मिक नेता महामहिम दलाई लामा ने तिब्बत की आजादी की 49 वीं वर्षगांठ पर दिये अपने अभिाभाषण में सबका जोश ठंडा कर दिया। तिब्बति समाज में दलाई लामा की बात का सम्मान किया जाता है। लिहाजा सबकुछ बदल गया। बावजूद इसके तिब्बत युवा कांग्रेस के अध्यक्ष सेवांग रिंगजिन के नेतृत्व में तिब्बतियों का एक जत्था धर्मशाला से निकल चुका है।

लेकिन पुलिस ने साफ कर दिया है कि यह लोग कांगड़ा जिला की सीमा को पार नहीं कर पायेंगे। कांगड़ा के पुलिस अधीक्षक अतुल फुलझले ने बताया कि केन्द्र सरकार से उन्हें एक आदेश मिला है। लिहाजा मार्च को रोक लिया जायेगा। यह भारत व निवौसित तिब्बतियों के बीच ये अनुबन्ध का खुला उल्लंघन है। जिसमें भारतीय भूमि पर चीन का विरोध नहीं करने की बात है। यही वजह है कि मार्च को रोकन के आदेश प्रदेश सरकार ने भी जारी कर दिये हैं। उधर दलाई लामा ने भी चीन के प्रति अपने नरम रूख का इजहार करते ये कहा है कि तिब्बतियों को खेल आयोजन में कोई भी बाधा उत्पन नहीं करनी चाहिये। उन्होंने कहा है कि चीनी समाज पूरी उत्सुकता के साथ इंतजार कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह शुरू से ही चीन में इसके आयोजन के हक में रहा॥ उन्होंने तिब्बतियों से इस खेल आयोजन में कोई बाधा उत्पन्न न की जाये। इसी बात से हम चीन समुदाय की सोच भी बदल सकते हैं। लेकिन दलाई लामा की यही बात अब तिब्बतियों के एक बड़े वर्ग को चुभने लगी है। लेकिन दर्लाईलामा इसी बात पर पिछले दिनों से चीन सरकार की अलोचनाओं के शिकार हो रहे थे , व चीन बार बार कह रहा था कि दलाई लामा आलोकिं में कोई बाधा उत्पन्न न करे। दरअसल दलाई लामा भी जानते हैं कि बदलते समय में विरोध एक सीमा में रह कर किया जा सकता है।

खुद दलाई लामा भी कह रहे हैं कि मैं जब भी तिब्बतियों की भलाई की बात अंतरराष्ट्रीय समुदाय से करता। , उन्हें बुरा लगाता है। लेकिन जब तक दोनों किसी नतीजे पर न पंचे तब तक यह खत्म नहीं होगा। मेरे कंधों पर जो जिम्मेदारी है उसे बखूबी निभाना है। सब जानते है कि मैं भी अपनी रिटायरमेंट की ओैर बढ़ रहा हूं। समय बदल रहा है। दलाई लामा ने कहा कि चीन प्रगति कर रहा है , ताकतवर राष्ट्र बन चुका है। इसका स्वागत किया जाना चाहिये। लेकिन उन्हें भी बदलना चाहिये। दलाई लामा की इसी नीति पर नई बहस छिड़ गई है।

दलाई लामा के रिटायर होने के साथ ही क्या तिब्बत का मुद्दा भी रिटायर हो जाएगा? यह सवाल दलाई लामा से तो क्या पूछा जाएगा, लेकिन भारत सरकार से पूछा जाना चाहिए कि जब धर्म गुरु खुद संधि और समर्पण की मुद्रा में हैं, तो हमें चीन के फटे में टांग अड़ाने की जरूरत क्यों महसूस हो रही है। अच्छे-खासे रिश्ते बेहतर हो रहे हैं और सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है, लेकिन हमें दलाई लामा की भक्ति के चक्कर में अपने देश का कबाड़ा करने की क्या जरूरत है और कब तक हम एक बूढ़े सफेद हाथी को ढोएंगे?
(धर्मशाला से बिजेंद्र शर्मा के साथ)

सरकारी अफसर बनना चाहते हैं बौध्द भिक्षु
डेटलाइन इंडिया
केलाँग, 13 मार्च-लाहौल स्पीति के बहुत सारे बौध्द मठों को संभालने के लिए बौध्द भिक्षुओं का लगभग अकाल पड़ गया है और हालत यह हो गई है कि यहां पर भिक्षुओं को लद्दाख से मंगवाना पड़ रहा है। एक लामा का कहना है कि इसके पीछे कई कारण हैं मगर तिब्बत के मुद्दे पर दलाई लामा जिस तरह से लगातार हाशिए पर जाते जा रहे हैं, उससे बहुत सारे बौध्द भिक्षुओं का उनसे मोहभंग होता जा रहा है।

लाडलों को भिक्षु बनाने की बजाय अफसर बनाने की चाहत ने शीत मरुस्थल लाहौल-स्पीति-के बौध्द समुदाय के सामाजिक ढांचे में बदलाव की जमीन तैयार कर दी है। आलम यह है कि घाटी के कई बौध्द गोंपा-भिक्षु विहीन हो गए हैं। कई गोंपाओं-का संचालन गृहस्थ लामा और पुजारी ही कर रहे हैं।

वहीं, लद््दाख क्षेत्र के गांगस्कर से भिक्षु मंगवाकर कुछ गोंपाओं-में उनकी तैनाती करनी पड़ी है। खास बात यह है कि घाटी में अब भिक्षुओं की बजाय भिक्षुणियों-की संख्या धीरे-धीरे-बढ़ रही है। इसी साल शिक्षा-दीक्षा-पूरी कर करीब दो दर्जन नई भिक्षुणियां घाटी लौटकर बौध्द धर्म के प्रचार-प्रसार-का जिम्मा संभाल लेंगी।बदलाव की बयार से कबाइली जिला लाहौल-स्पीति-भी अछूता नहीं रह सका है। घाटी का बौध्द समुदाय परिवर्तन के दोराहे पर खड़ा नजर आ रहा है। युवक भिक्षु बनने से कतराने लगे हैं। अफसर बनने के लिए उनमें होड़ सी मची है।

दूसरा पहलू यह है कि महात्मा बुध्द के ब्रह्मचार्य-नियम का पालन करते हुए बौध्द धर्म के प्रचार प्रसार के लिए लड़कियों ने कदम आगे बढ़ा दिए हैं। कुछ सालों में घाटी में कुछ लामा और रिपोंछे-भी विवाह कर गृहस्थी हो गए हैं। अकेली लाहौल-घाटी में ही अब मुश्किल से पांच दर्जन लामा बचे हैं। करीब तीन दशक पहले लाहौल-में लामाओं-की संख्या सैकड़ों में हुआ करती थी। लाहौल-बुध्दिष्ठसोसाइटी-के रिकार्ड पर भरोसा करें तो इनमें से भी आधे लामा गृहस्थी हैं।
शैंशू-गोंपा,-बिनिंग-गोंपा,-ज्ञैमूर-गोंपा-तथा दारचा-गोंपा-भिक्षु विहीन हो गए हैं। वहीं, तिंगरेट गोंपा,-ओथंग-गोंपा,-लिंडूर,-तुपचिलिंग,-लंबरंग-तथा कोकसर-गोंपा-आदि में लद््दाख से भिक्षुओं को मंगवाकर उनकी तैनाती की गई है। विवाह कर गृहस्थी बसाने वालों में स्पीति-घाटी के मठ के सुलामा-टीके लोचन टुलकू-भी शामिल हैं। जाहलमा-गांव के निवासी अवतारी-लामा अजय उर्फ डा.-गिनग्यूर-रिपोंछे-ने फिल्म अभिनेत्री मंदाकिनी से विवाह रचाया है।

अजय मंदाकिनी के साथ अब मुंबई में ही रहते हैं। अजय के चाचा एसएस-यांबा-कहते हैं कि दंपति काफी खुश है। मनाली के समीप चिकयाड़ी-गोंपा-के लामा सेरस-रिपोंछे-भी गृहस्थी हैं। स्पीति-घाटी के सबसे बड़े मठ की के सुप्रीमो लामा टीके लोचन टुलकू-भी शादी कर गृहस्थ हो गए हैं। वह कहते हैं कि गृहस्थ जीवन अपनाकर भी आप अपने धार्मिक और सामाजिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर सकते हैं। सोसाइटी के महासचिव नावांग-उपासक कहते हैं कि परिवार नियोजन मुहिम और लड़कों को लामा न बनाकर उन्हें अफसर बनाने के बढ़ते प्रचलन घाटी में भिक्षुओं की संख्या में आ रही कमी का प्रमुख कारण हैं।

लाहौल-स्पीति-इतिहास संकलन समिति के अध्यक्ष डा.-छेरिंग-दोरजे-भी मानते हैं कि लड़कों को धार्मिक व्यक्ति न बनाकर उसे बड़ा अफसर बनाने की चाहत से घाटी में लामाओं-की संख्या घटी है। लेकिन दूसरा सुखद पहलू यह है कि युवतियों में भिक्षुणी बनने का क्रेज बढ़ा है। जल्द ही लाहौल-घाटी में भिक्षुओं की तुलना में भिक्षुणियों-की संख्या में इजाफा हो जाएगा। वर्तमान में घाटी में करीब पांच दर्जन लामा हैं। इनमें से आधे लामा ही ब्रह्मचार्य-का पालन कर रहे हैं। इन दिनों करीब पचास युवतियां नेपाल के प्रसिध्द अमिताभ मठ (स्वयंभूनाथ,-काठमांडू) में बौध्द धर्म की शिक्षा-दीक्षा-ले रही हैं। मठ के रिपोंछे ज्ञालवांग-दुकछेन-बताते हैं कि इसमें से करीब दो दर्जन प्रशिक्षु इसी साल भिक्षुणियां-बनकर घाटी में बौध्द धर्म का प्रचार प्रसार करेंगी।

शॉटगन को मिलेगा दिल्ली से टिकट!
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 13 मार्च-शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने असल में एक सोची-समझी रणनीति के तहत राज्यसभा का टिकट नहीं दिया है। खबर है कि पार्टी आलाकमान शॉटगन को दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़वाकर दिवगंत साहिब सिंह वर्मा और मदन लाल खुराना की कमी कुछ हद तक पूरी करना चाहती है। शत्रुघ्न सिन्हा को उत्तर-पूर्वी या पूर्वी दिल्ली से टिकट मिलने की सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं क्योंकि यहां पर बिहार और पूर्वांचल के लोगों की आबादी बहुत ज्यादा है। शत्रुघ्न सिन्हा एक बार पहले भी दिल्ली से राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ कर जीत चुके हैं।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी ने शत्रुघ्न सिन्हा को साफ कर दिया है कि उन्हें नाराज होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि पार्टी उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाने के बारे में पहले ही सोच चुकी है। भाजपा के एक नेता ने बताया कि शत्रुघ्न सिन्हा को दिल्ली से चुनाव लड़वाने के पीछे आडवाणी के दो तर्क हैं। एक तो वे शत्रुघ्न सिन्हा को दिल्ली में ला कर साहिब सिंह वर्मा और मदन लाल खुराना की कमी को दूर करना चाहते हैं और दूसरे यह कि शत्रुघ्न सिन्हा के दिल्ली आ जाने से उनका बिहार की राजनीति में दखल काफी हद तक कम हो जाएगा।

हालांकि दिवंगत साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा भी अपने पिता के उत्तराधिकारी बन कर लोक सभा चुनाव लड़ना चाहते हैं मगर भाजपा ने अभी तक उनके बारे में कोई फैसला नहीं किया है। वैसे भाजपा के एक नेता कहते हैं कि प्रवेश को लोकसभा चुनाव में टिकट देना पार्टी की बड़ी भूल साबित हो सकती है क्योंकि राजनीति में अभी वे बिल्कुल नए हैं और इसीलिए अगर वे विधानसभा सीट जीतने में कामयाब हो जाए, तो भी गनीमत होगी। शत्रुघ्न सिन्हा बिहार में भाजपा के लिए कई बार परेशानी का सबब बन चुके हैं, खास तौर पर तब जब उन्होंने खुद को भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर दिया था। आडवाणी चाहते हैं कि शत्रुघ्न सिन्हा को बिहार की राजनीति से अलग कर दिया जाए, ताकि वहां सरकार आराम से काम कर सके।

उपेक्षा से दुखी पुलिस कमिश्नर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 13 मार्च-युध्दवीर सिंह डडवाल दिल्ली के सबसे उपेक्षित पुलिस कमिश्नर साबित हो रहे हैं और अब उन्होंने लगातार हो रही अपनी उपेक्षा के लिए अपने जूनियर अफसरों को चिट्ठी लिख कर उनके आदेश मानने की सख्त हिदायत दी है। डडवाल की चिट्ठी पाने वाले दिल्ली पुलिस के एक अफसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि डडवाल साहब चाहें जितनी कोशिश कर लें, मगर वे के के पॉल नहीं बन सकते।

डडवाल ने खुद यह माना है कि उनके ज्यादातर जूनियर अधिकारी उनके आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते। यही वजह है कि अब उन्होंने किसी भी थाने में जा कर औचक्क निरीक्षण करने का मन बनाया है और ऐसा वे पहले भी कर चुके हैं। डडवाल पिछले समय दीवाली से पहले दक्षिण दिल्ली के कई थानों में अचानक पहुंच गए थे और वे एसएचओ के कमरों में दीवाली के तोहफों की भीड़ देखकर हक्के-बक्के रह गए थे। इसके बाद ही उन्होंने पत्र लिख कर अपने सभी पुलिसवालों को आदेश दिया था कि दिल्ली पुलिस का कोई भी कर्मचारी किसी का तोहफा स्वीकार नहीं करेगा। उनके इस आदेश का कितना पालन होता है, यह बताने की जरूरत नहीं है।

डडवाल की चिट्ठी पाने वाले दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि कमिश्नर साहब ने निर्देश दिया है कि जो भी कर्मचारी 31 मार्च तक उनके सभी आदेशों को लागू नहीं करेगा, उसे सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। डडवाल ने इस चिट्ठी के साथ अपने आदेशों की सूची भी भेज दी है, जिनका पालन उनके अनुसार अनिवार्य रूप से होना चाहिए। डडवाल ने अपने अफसरों को कहा है कि डीसीपी रैंक से नीचे के किसी भी अफसर के कमरे में एयरकंडीशन नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह आदेश भी दिया है कि सभी पुलिस कर्मचारी हर समय अपने साथ अपना हथियार रखेंगे। शिकायतकर्ताओं की शिकायत सुनने को भी उन्होंने सभी कर्मचारियों को पहली प्राथमिकता देने का आदेश दिया है। यह बात अलग है कि दिल्ली पुलिस के पास रिपोर्ट लिखवाने को ज्यादातर लोग एवरेस्ट फतेह करने से कम नहीं मानते।

पंजाब में परेशान डीएसपी ने जान दी
डेटलाइन इंडिया
अमृतसर, 13 मार्च-शराब के नशे में एक पंजाबी गायक को जान से मारने वाले और पंजाब में फर्जी मुठभेड़ के आरोप झेल रहे भूतपूर्व उप पुलिस अधीक्षक स्वर्ण सिंह हुंडल ने आत्महत्या कर ली है। स्वर्ण सिंह के पुराने साथियों का आरोप है कि उन्होंने सीबीआई द्वारा की जा रही जांच के दबाव में आ कर आत्महत्या की है।

स्वर्ण सिंह की पत्नी ने भी यही दावा किया है कि उनके पति सीबीआई के मामले की वजह से पिछले कुछ समय से काफी तनाव में रहते थे और यही उनकी मौत की वजह बन गई। अमृतसर के गोपालनगर में रहने वाले स्वर्ण सिंह डीएसपी के पद से 2002 में रिटायर हुए थे और उन्होंने अपने घर पर अपनी ही पिस्तौल से खुद को गोली मार ली। इससे पहले 2005 में रिटायर्ड एसएसपी अजीत सिंह संधू ने तरनतारन में आत्महत्या कर ली थी। संधू पर मशहूर खालरा हत्याकांड में शामिल होने का आरोप था और उन्होंने एक चलती टे्रन से कूद कर अपनी जान दे दी थी।

स्वर्ण सिंह के परिवार के साथ हमदर्दी रहने वाले पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि हो सकता है कि स्वर्ण सिंह ने फर्जी मुठभेड़ मामले पर चल रही जांच के दबाव में आ कर आत्महत्या की हो, मगर उनके द्वारा की गई बेकसूर पंजाबी गायक दिलशाद अख्तर की हत्या को माफ नहीं किया जा सकता।

यह तब की बात है, जब एक शादी के समारोह के दौरान स्टेज पर दिलशाद सिंह गुरदासपुर जिले में गा रहे थे। वहां स्वर्ण सिंह भी मौजूद थे। स्वर्ण सिंह ने दिलशाद से ''नचे जो साढ़े नाल...'' गाना गाने के लिए कहा, मगर दिलशाद ने यह गाना गाने से इसीलिए इनकार कर दिया क्योंकि यह गाना असल में हंसराज हंस का था। स्वर्ण सिंह तो पहले ही नशे में थे, दिलशाद के इनकार करने पर वे गर्म हो गए और उन्होंने अपने बॉडी गार्ड से एके-47 राइफल ले कर दिलशाद को वहीं भून डाला। इस हत्या के बाद स्वर्ण सिंह को जेल भेज दिया गया था और उनकी नौकरी भी चली गई थी। बाद में हालांकि वे जेल से बाहर आ गए थे, मगर दूसरे मामलों से उन्हें मुक्ति नहीं मिल पाई थी।

जेल की गोभियों में होता है नशा
डेटलाइन इंडिया
लुधियाना, 13 मार्च-एक सप्ताह पहले की बात है। पैरोल खत्म होने के बाद एक आदमी अपने साथ कुछ फूल गोभी ले कर लुधियाना जेल पहुंचा। जेल के गार्डों ने जब इन गोभियों की जांच कीं, तो उनकी आंख फटी की फटी रह गई क्योंकि इन गोभियों के अंदर चरस के पैकेट बहुत खास अंदाज में छिपाए गए थे। लुधियाना जेल में अब गोभी, प्याज और दूसरी सब्जियों का इस्तेमाल कैदियों को नशे का सामान सप्लाई किए जाने के किया जा रहा है।

जेल अधिकारियों का कहना है कि कैदियों द्वारा घी, तेल, अचार, दही, दूध आदि में नशीली दवाएं मिला कर सप्लाई करने के तो बहुत किस्से सामने आए थे, मगर सब्जियों द्वारा नशे का सामान सप्लाई करने के तरीके देख कर तो वे खुद भी हैरान रह गए। जेल अधिकारियों के अनुसार हाल में ही स्वर्ण सिंह नाम का एक आदमी हत्या के दो अभियुक्तों पुरुषोत्तम और सोमैय से मिलने आया था। अपने साथ वह कुछ प्याज लाया था, जो उसने इन दोनों को दे दी। लेकिन जब प्याज की जांच की तो, प्याजों के अंदर से चरस के दस छोटे-छोटे पैकिट निकले। जेल अधिकारियों के अनुसार उसने प्याज के अंदर के हिस्से को बड़ी सफाई से बाहर निकाला हुआ था और उसके अंदर चरस के पैकेट छिपाए हुए थे।

मगर जगतार सिंह नाम के एक आदमी ने तो तब कमाल ही कर दिया था, जब वह दो घी के टीनों में लगभग दस हजार इनटोक्सिकेटिंग नाम की नशे की गोलियां ले कर आ गया था। जेल अधीक्षक एस पी खन्ना बताते हैं कि जगतार अपने नशे के आदी बेटे गगनदीप सिंह के लिए इतनी सारी गोलियां लाया था। मगर उसका दुर्भाग्य यह रहा कि वह भी अपने बेटे के पास जेल के अंदर पहुंच गया। जेल अधिकारी बताते हैं कि बहुत सारे कैदी तो अफीम, चरस या दूसरे नशे के सामन को किसी प्लास्टिक की थैली में बांध कर अपने गुप्तांगों में भी छिपा लेते हैं और बहुत बार तलाशी होने के बाद भी नहीं पकड़े जाते थे। लेकिन अब यह तरीका पुलिस को पता चल चुका है इसीलिए पुलिस को मजबूरी में कैदियों के गुप्तांगों की भी तलाशी लेनी पड़ती है।

आमिर खान ने खुद को टॉप घोषित किया
डेटलाइन इंडिया
मुंबई, 13 मार्च-आमिर खान आम तौर पर कम बोलते हैं, मगर जब बोलते हैं, तो एक बार में ही सभी को धराशायी कर देते हैं। इस बार भी यही हुआ और आमिर खान ने बड़ी समझदारी से शाहरुख खान को यहं संदेश दे दिया कि वे खुद को नंबर वन मानने की भूल न करें क्योंकि नंबर वन तो वे खुद हैं।

आमिर ने तो इशारों ही इशारों में किंग खान की इंडियन प्रीमियर लीग की कोलकाता टीम खरीदने के लिए भी खिंचाई कर दी। यह सब तब हुआ, जब आमिर सैमसंग मोबाइल के बैंड अम्बसेडर के तौर पर स्टेज पर उतरे। आमिर से एक पत्रकार ने यह सवाल कर दिया कि अगर वे पत्रकार होते तो शाहरुख खान से क्या सवाल पूछते? हालांकि सभी को यह पता था कि हर सवाल का सधा हुआ जवाब देने में माहिर आमिर इस सवाल का भी कुछ न कुछ दिलचस्प जवाब देंगे, मगर इतने सधे हुए जवाब की उम्मीद किसी को नहीं थी।

आमिर ने जवाब दिया कि अगर वे पत्रकार होते तो शाहरुख से पूछते कि आमिर खान के सामने आपको नंबर दो होने पर कैसा लगता है। जाहिर है कि आमिर ने बातों ही बातों में शाहरुख को यह संदेश दे दिया कि वे उनके सामने नंबर दो ही हैं। मगर इसके साथ ही आमिर ने यह भी साफ कर दिया कि उनका शाहरुख से कोई मुकाबला नहीं है। लेकिन बात यहीं पर नहीं थमी।

आमिर से शाहरुख के बारे में एक और सवाल पूछा गया। उनसे पूछा गया कि क्या वे भी शाहरुख की तरह आईसीएल या आईपीएल में कोई क्रिकेट टीम खरीदना चाहते हैं। आमिर ने दो टूक शब्दों में कहा कि क्रिकेट खरीदने या बेचने का उन्हें कोई शौक नहीं है, वे तो एक आम भारतीय की तरह क्रिकेट को खेल की तरह सिर्फ देखना पसंद करते हैं और वहीं वे करते भी हैं।

शाहरुख ने अभी तक हालांकि आमिर के इस हमले का कोई जवाब नहीं दिया है, मगर माना जा रहा है कि किंग खान आमिर खान को जवाब जरूर देंगे। वैसे शाहरुख पर अब चौतरफा हमले हो रहे हैं। बिग बी के निशाने पर तो वे पहले ही रहे हैं, पिछले दिनों अजय देवगन ने भी उन पर हमला बोला था और रही-सही कसर आमिर खान ने पूरी कर दी।
फिल्मी वोटों पर टिकी तमिल राजनीति
डेटलाइन इंडिया
चेन्नई, 13 मार्च-अभिनेता से नेता बनने वाले दक्षिण भारतीय फिल्मों के मशहूर हीरो विजयकांत को अभी विधायक बने ज्यादा दिन बीते भी नहीं है कि वे तमिलनाडु में होने वाले राज्य सभा चुनाव में किंगमेकर बन गए हैं। विजयकांत के वोट ही दरअसल राज्य सभा की उस सीट का फैसला करेंगे, जिस पर करुणानिधि और जयललिता दोनों के गठबंधन की नजर है।

तमिनलाडु में 22 सालों बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि डीएमके के नेतृत्व वाले डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव एलायंस-डीपीए और जयललिता की एआईडीएमके और एडीएमके गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला होगा। डीपीए में करुण्ाानिधि की डीएमके के अलावा, कांग्रेस, सीपीएम और पीएमके भी हैं। तमिलनाडु में राज्य सभा की छह सीटों के लिए मुकाबला होना है, जिसमें से चार सीट डीपीए और एक सीट एआईडीएमके और एमडीएमके गठबंधन को मिलनी पहले से तय है, मगर असली टक्कर तो उस छठी सीट के लिए हो रही है, जिसके बारे में अभी कोई भी कुछ नहीं कर पा रहा है।

डीपीए अपने पांच उम्मीदवारों की घोषणा कर चुका है, इसमें दो डीएमके के, दो कांग्रेस और एक सीपीएम का है। छठी सीट के लिए अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है। जयललिता ने अपनी पार्टी की तरफ से एक सीट पर ए बालगंगा को और दूसरी सीट पर अपने सहयोगी एमडीएमके के उम्मीदवार को उतारने की घोषणा की है। संभावना है कि एमडीएमके अपने सचिव और विवादस्पद नेता वाइको ही उतारेगी।

लेकिन असली सवाल तो आंकड़ों का है। डीएमके के पास 95 विधायक हैं, कांग्रेस के 36, सीपीएम के 9 और पीएमके 18 विधायक मिला कर डीपीए के पास कुल 118 विधायक है। जबकि अम्मा की एआईडीएमके के पास 60 और उसके सहयोगी एमडीएमके के सिर्फ छह विधायक हैं। जयललिता का गठबंधन एक सीट तो आसानी से जीत लेगा, मगर दूसरी सीट जीतने के लिए उसे सिर्फ दो वोटों की जरूरत है। अगर निर्दलीय विधायक विजयकांत का समर्थन अम्मा को मिल गया, तो वे दूसरी सीट जीतने में भी कामयाब हो जाएंगी।

एक अपहरण और कई रहस्य
शोभा सिंह
अपहरण उत्तर प्रदेश में होता है और बरामदगी बिहार में। यह एक चर्चित घटना ही यह बताने के लिए काफी है कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में अपराधी राज्यों की सीमा नहीं मानते और यह भी कि स्थानीय पुलिस खुलेआम उनसे मिल जाती है। यह कहानी मनोचिकित्सक सीबी मध्देशिया की है, जिन्होंने सनसनीखेज खुलासा किया है कि उनके अपहर्ताओं को बिहार पुलिस के एक कांस्टेबल की मदद मिली थी। वह यूपी और बिहार पुलिस की सारी गतिविधियों को अपहर्ताओं तक पहुंचाता था। यही नहीं जिस दिन गोरखपुर पुलिस डाक्टर मध्देशिया को मुक्त कराने के करीब पहुंच गई थी, उस दिन भी वही कांस्टेबल सफलता की राह में रोड़ा बन गया था। छापे की कार्रवाई से ठीक पहले ही वह कांस्टेबल अपहर्ताओं के अड्डे तक पहुंच गया था।

उसने डाक्टर समेत अपहर्ताओं को वहां से हटवा दिया था। इसके बाद पुलिस पहुंची, लेकिन उस शातिर कांस्टेबल की वजह से पुलिस डाक्टर तक नहीं पहुंच पाई थी। उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ा था।पुलिस की इस छापामार कार्रवाई के दौरान अपहर्ता फोन के जरिए कांस्टेबल के सम्पर्क में थे। करीब घंटे भर बाद जब पुलिस वहां से खाली हाथ लौट गई, तो अपहर्ताओं ने अपना अड्डा बदल दिया और डाक्टर को लेकर पैदल ही दूसरे स्थान पर चले गए। सूत्रों के मुताबिक बिहार पुलिस का वह कांस्टेबल अपहर्ताओं को अखबार भी उपलब्ध करता था। उसमें छपी खबरें डाक्टर को पढ़कर सुनाई जाती थी। डाक्टर के अपहरण का विरोध, मशाल जलूस, योगी आदित्यनाथ का धरना, फिरौती की रकम की मांग आदि सब कुछ पढ़कर बदमाश सुनाते थे। इसके बाद वह डाक्टर पर अपना गुस्सा भी उतारते थे। उन्हें जान से मारने की धमकी भी देते थे।

डाक्टर सीबी मध्देशिया ने अपनी रिहाई के लिए यूपी पुलिस को पूरा श्रेय दिया है। गोरखपुर स्थित अपने आवास पर उन्होंने कहा कि बिहार पुलिस भी सहयोग करती रही, लेकिन दबाव यूपी पुलिस का ही रंग लाया। श्री मध्देशिया ने घर आने के बाद आई जी, डीआईजी और एसएसपी को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यूपी पुलिस के दबाव ने अपहर्ताओं के मन में भय पैदा कर दिया था। पुलिस की घेराबंदी और सटीक लोकेशन के आसपास पहुंचने की क्षमता के बाद बदमाशों ने उन्हें मुक्त करने का निर्णय लिया।

श्री मध्देशिया ने बताया कि मंगलवार की शाम करीब साढ़े पांच बजे अपहर्ताओं ने उन्हें सीवान जिले के एक जंगल में छोड़ दिया। दूर कहीं दो स्ट्रीट लाइट जल रही थी। बदमाशों ने डाक्टर से कहा कि वह इन्हीं दो लाइटों की दिशा में पैदल ही चला जाए। तीन घंटे तक पैदल चलने के बाद रास्ते में एक लड़का मिला। डाक्टर ने उसे आप बीती सुनाई। लड़का पहले डर गया। बाद में उसे रहम आ गई। उसके पास मोबाइल भी था। लेकिन मोबाइल में सिर्फ 3.54 पैसे ही थे। डाक्टर के मुताबिक वह लड़का अपनी रिश्तेदारी में आया था। उसने पहले अपने रिश्तेदार से बात की। बाद में डाक्टर को मोबाइल दिया।

रात करीब साढ़े आठ बजे डाक्टर मध्देशिया ने अपनी पत्नी सुनीता मध्देशिया से उसी मोबाइल के जरिए बात की। पत्नी को बताया कि अपहर्ताओं के चंगुल से मुक्त हो गया हूं। लड़के से मिली मदद के बारे में भी बताया। सुनीता ने इसकी जानकारी गोरखपुर पुलिस को दी। इस बीच डाक्टर उस लड़के के साथ पास में स्थित रघुनाथपुर थाने तक पहुंचे। एसओ गुलरिहा और शाहपुर थाने पर पहुंचे। अफसरों के कहने पर वहां से एसओ तिवारीपुर को डाक्टर को सौंप दिया। एसओ तिवारीपुर डाक्टर को लेकर गोरखपुर के लिए रवाना हो गए, रास्ते में सीवान में परिजनों से भी डाक्टर की मुलाकात हो गई।
डाक्टर के परिजन उस समय उसी इलाके में थे। एसओ तिवारीपुर उन्हें लेकर बुधवार को तड़के साढ़े चार बजे गोरखपुर स्थित घर आ गए। डाक्टर ने सबसे पहले पत्नी से मुलाकात की। बाद में आईजी, डीआईजी और एसएसपी भी उनसे मिले। पुलिस अधिकारियों से उनकी बात हुई। अफसरों ने डाक्टर को कुछ बताया। करीब बारह बजे उन्होंने मीडिया से बात करने की हामी भरी और अपहरण की पूरी दास्तान सुनाई। उन्होंने बताया कि उनकी रिहाई के लिए बिहार और यूपी की कुल 29 टीमें लगी थी। उनके साले आईएएस हैं और सीवान तथा बेतिया के डीएम उनके मित्र हैं। लिहाजा वह भी पूरा सहयोग दे रहे थे।

अपहर्ताओं ने ग्यारह दिन के भीतर सिर्फ दो बार डाक्टर सीबी मध्देशिया की बात उनकी पत्नी सुनीता मध्देशिया से कराई। यह बात तब हुई जब फिरौती की मांग हुई। इस पर सुनीता ने अपहर्ताओं से कहा कि पहले पति से बात कराएं तभी आगे कुछ बात होगी। इसके बाद बात हुई। डाक्टर सीबी मध्देशिया की पत्नी से यह पहली बात अपहरण के छठे दिन हुई थी। चन्द मिनट तक ही बात हो पाई थी कि अपहर्ताओं ने मोबाइल छीन लिया था। इसके बाद से अपहर्ता फिरौती पर जोर देने लगे थे। रकम मिलने में देरी और पुलिस के बढ़ते दबाव पर उन्होंने अपनी डिमांड एक करोड़ से दो करोड़ तक बढ़ा दी थी।

यही नहीं पैसा न मिलने पर जान से मारने की धमकी भी दी थी। इसके बाद अपहर्ताओं से बात और मोलभाव का क्रम चलता रहा। जब एक सीमित रकम के नीचे अपहर्ता आने को तैयार नहीं हुए तो फिर उनकी मांग पर ही डील तय हुई। रकम देने से पहले भी डाक्टर की पत्नी ने पति से बात करने की इच्छा व्यक्त की। मंगलवार की सुबह करीब साढ़े दस बजे अपहर्ताओं ने दुबारा बात कराई। बात होने के बाद डाक्टर के भाई और रिश्तेदार बिहार के लिए रवाना हो गए। अपहर्ताओं ने करीब साढ़े पांच बजे डाक्टर को छोड़ने से पहले उन्हें इसकी जानकारी दे दी। उसके बाद डाक्टर ने रात में साढ़े आठ बजे पत्नी से बात की और जल्द ही रघुनाथपुर थाने तक पहुंचने को कहा। पत्नी ने राहत की सांस ली। सुबह साढ़े दस बजे से रात साढ़े आठ बजे तक का समय
सुनीता के लिए काफी भारी गुजरा।

डाक्टर सीबी मध्देशिया ने स्वीकार किया कि सतर्कता में उनसे थोड़ी बहुत चूक हो गई। उन्होंने बताया कि डाक्टर केके मिश्र के अपहरण के बाद से वे काफी सतर्कता बरत रहे थे। आने जाने के समय में बदलाव किया था। स्कार्पियो से हमेशा दो तीन लोगों के साथ ही आते जाते थे। लाइसेंसी असलहे के लिए अप्लाई भी कर दिया था। पर थोड़ी बहुत चूक हो गई जिसके परिणाम स्वरूप उनका अपहरण हो गया।

उन्होंने बताया कि पहली मार्च की देर शाम 7.35 पर वह घर के लिए चले। रास्ते में कसया स्थित अपने भाई के पास अंतिम काल किया था। 2 मार्च को भतीजे का बहूभोज था, उसी सिलसिले में बात हुई थी। तरकुलहा मंदिर और दुबियारी पुल के बीच एक बोलेरो उनकीगाड़ी के आगे आई और उसमें से छह की संख्या में बदमाश उतरे। सभी के हाथ में असलहा था। गाड़ी का शीश तोड़कर वह अन्दर घुसे, सभी को इंजेक्शन लगाया। सरदार नगर और सोनबरसा होते हुए गोपालगंज ले गए। इंजेक्शन का असर उनको नहीं हुआ था, लिहाजा उन्हें रास्ते में हो रही सभी गतिविधियों की जानकारी थी।

डाक्टर ने बताया कि अपहर्ताओं ने उनका बीएसएनएल मोबाइल छीनकर स्विच आफ कर दिया था। जबकि उनके पास मौजूद एयर टेल के मोबाइल के बारे में उनको जानकारी नहीं थी। उन्होंने बताया कि मैंने उसे साइलेंट मोड में कर दिया था ताकि नेटवर्क एरिया के बारे में जानकारी होती रहे। रात में ग्यारह बजे के करीब मोबाइल के वाइब्रेशन से अपहर्ताओं को एक और मोबाइल होने का शक हुआ। उसे भी छीन कर स्विच आफ कर दिया। तब तक साठ से अधिक मिस्ड काल आ चुके थे। डाक्टर सीबी मध्देशिया ने बताया कि उनके छूटने के बाद रास्ते में उनके भाई से पता चला कि उनके अपहरण की योजना करीब तीन माह से बनाई जा रही थी।

शहर की प्रत्येक गतिविधि पर अपहर्ताओं की नजर थी। वह जहां पुलिस की गतिविधियों की जानकारी के लिए बिहार पुलिस के कांस्टेबल का सहारा ले रहे थे, वहीं शहर की गतिविधियों के बारे में अपने कुछ खास लोगों से बात कर रहे थे। डाक्टर के घर के आसपास भी उनके मुखबिर घूम रहे थे। वह पल पल की जानकारी देते थे। रही सही कसर अगले दिन के अखबार से पूरी हो जाती थी। बदमाश डाक्टर को दूर से अखबार पढ़कर सुनाते थे और व्यंग भी करते थे। वह यह भी कहते थे कि भले योगी व अन्य लोग धरना और मशाल जुलूस निकालें वह बिना रकम लिए छोड़ने वाले नहीं।

सीबी मध्देशिया के अपहर्ताओं की तलाश में लगी गोरखपुर पुलिस की कुछ टीमें अभी बिहार में मौजूद हैं। एसपी सिटी के नेतृत्व में मौजूद इस टीम से कुछ कारनामे की उम्मीद की जा रही हैं। हालांकि सूत्रों के मुताबिक पुलिस अब भी गैंग के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं हासिल कर पाई है। पुलिस की टीमें सुराग हासिल करने के लिए बुधवार को उस इलाके में दोबारा गईं जहां उन्होंने पहली बार दबिश दी थी और अपहर्ता डाक्टर को लेकर उसी के आस पास मौजूद थे।
डाक्टर सीबी मध्देशिया के अपहरण के बाद अपहर्ता उन्हें सबसे पहले गोपालगंज ले गए। वहां थाने के पास ही गाड़ी में कई चक्कर घुमाया। बाद में वहां से छपरा, सीवान रोड पर गाड़ी से उतारा।

खेत के रास्ते तीन घंटे तक पैदल लेकर चलते रहे। रात में बारह बजे डाक्टर को खाने में दो रोटी दी और पानी पिलाया। वहां से एक सुनसान स्थान पर ले गए। उनका कपड़ा उतरवाया और लूंगी और एक शर्ट पहनने को दिया। वहां से ले जाकर एक कमरे में रखा। वहां चार असलहाधारी हमेशा पहरे पर रहते थे। भोर में साढ़े चार बजे नित्यक्रिया के लिए ले जाते थे। साढ़े तीन दिन एक जगह और डेढ़ दिन एक जगह रखा। पुलिस की छापामारी और कड़ाई के बाद नाव में नदी के बीच रखा और रात में नदी की रेत पर सुलाते रहे। नाव पर नाविक के अलावा चार आदमी रहते थे। खाना और उनका असलहा प्रत्येक दिन बदलता था। ग्यारह दिन के भीतर बारह अपहर्ताओं की शक्ल देखने को मिली। सभी बोल चाल से कम पढ़े लिखे लग रहे थे। उनकी उम्र पच्चीस से तीस के करीब थी। एक व्यक्ति उनका बास था जिसे वह खान कहकर बुलाते थे। बाकी किसी का नाम नहीं लेते थे। ग्यारह दिन के भीतर सिर्फ दो दिन ही नहाने दिया था।
(शब्दार्थ)
जबलपुर में आंकड़े गिनेंगे मुलायम सिंह
डेटलाइन इंडिया
जबलपुर, 13 मार्च-भाजपा के भावी प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की बड़ी रैली के बाद जबलपुर में एक बार फिर बड़ा राजनैतिक आयोजन होने जा रहा है। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी जबलपुर में 26 और 27 मार्च को अपना राष्ट्रीय अधिवेशन बुला रही है, मगर इसमें राष्ट्रीय राजनीति से ज्यादा चर्चा राज्यों की राजनीति और खास तौर पर उत्तराखंड की होगी क्योंकि उत्तराखंड में सपा पर अब जड़ से सफाया होने को खतरा मंडरा रहा है।

उत्तराखंड सपा के तीनों नेता अब जबलपुर में होने वाली राष्ट्रीय अधिवेशन ने अपनी एकजुटता को नए सिरे से प्रदर्शित करेंगे। फिलहाल, पार्टी अधिवेशन के लिए प्रदेश से डेलीगेटों के नामों को अंतिम रूप देने में जुटी है।प्रदेश में सपा अपनी आंतरिक राजनीति के कारण अधिक चर्चा में रहती है। हाल में दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के बाद पार्टी के तीनों बड़े नेता (प्रदेश अध्यक्ष अंबरीष कुमार, राष्ट्रीय महासचिव विनोद बड़थ्वाल और हरिद्वार के सांसद राजेंद्र बॉडी) पहले के मुकाबले एकजुट दिख रहे हैं। फिलहाल, तीनों नेता इसी महीने 26-27 तारीख को जबलपुर में होने वाले महाधिवेशन की तैयारी में जुटे हैं।

इस महाधिवेशन में देश भर से 20 हजार से अधिक प्रतिनिधि भाग लेंगे। प्रदेश के नेता उत्तराखंड के डेलीगेटों के नामों को अंतिम रूप दे रहे हैं। महाधिवेशन में तीनों नेता अपनी एकजुटता को नए सिरे से प्रदर्शित करेंगे। वैसे, सूत्रों का कहना है कि तीनों ही नेता महाधिवेशन में हरिद्वार लोकसभा सीट के टिकट के लिए अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए कोशिश करेंगे। राष्ट्रीय महासचिव विनोद बड़थ्वाल का कहना है कि अधिवेशन में किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा। प्रदेश में भी तीसरे मोरचे को सबल बनाने की रणनीति पर भी चर्चा होगी।

सपा ने बजट सत्र के दौरान कांग्रेस और बसपा के सदन से बाहर रहने पर निशाना साधा है। पार्टी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस और बसपा सत्ताधारी पार्टी के लिए खुला मैदान छोड़ रही हैं। राष्ट्रीय महासचिव विनोद बड़थ्वाल ने कहा कि दोनों पार्टियों को प्रदेश के लोगों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। इन पार्टियों के रुख से भाजपा को मदद मिली है।

कश्मीर में पहेली बन गए कांग्रेस अध्यक्ष
डेटलाइन इंडिया
श्रीनगर, 13 मार्च-जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद सैफुद्दीन सोज को श्रीनगर पहुंचने में पंद्रह दिन लग गए। न कोई उड़ान रद्द हुई थी और न रास्तों पर बर्फ थी, मगर उन्हें मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद से सुलह होने का इंतजार था। फिर जब सोज पहुंच तो खुलेआम जलसा और जलवा किया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उम्मीदों के अनुसार ही उन्होंने पहली बार कश्मीर पहुंचने पर भारतीय जनता पार्टी को जम कर कोसा। मगर यह बात किसी को समझ में नहीं आई कि भाजपा की तरह विपक्ष में होने के बावजूद नेशनल कांफ्रेंस के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा।

भाजपा के एक नेता का कहना है कि सोज का इशारा साफ है कि वे नेशनल कांफ्रेंस के साथ भी जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बाद गठबंधन कर सकते हैं। हालांकि कांग्रेस नेताआें ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि नेशनल कांफ्रेंस पिछले कुछ समय से कांग्रेस पर चूंकि हमला नहीं कर रही है, इसीलिए सोज ने उसके बारे में कुछ नहीं कहा।

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सोज का यह पहला घाटी दौरा है। इससे पहले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पीरजादा मोहम्मद सईद ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया और एक जुलूस के साथ उन्हें शेर-ए-कश्मीर पार्क लाया गया।अपने संबोधन में सोज ने कहा कि कांग्रेस लोगों की सेवा करना चाहती है। इसलिए इस बार बजट पेश करने से पहले हर वर्ग के लोगों के बारे में सोचा गया। लेकिन, लोगों का भला भाजपा से देखा नहीं जा रहा है।

भाजपा नहीं चाहती है कि देश के मुसलमान, दलित, कमजोर और पिछड़े वर्ग के लोगों का विकास हो, उनके साथ न्याय हो। आडवाणी को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि वो देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। जिसके पास हर वर्ग के लोगों को देखने के लिए अलग-अलग चश्मा हो, जो शिवसेना जैसी पार्टी के साथ हो, ऐसे लोग भारत की हुकूमत चलाने का ख्वाब क्यों देखते हैं। केंद्र में अगली सरकार भी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की ही बनेगी। प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शुक्रिया अदा करते हुए उन्होंने कहा पार्टी की एकता को राज्य के तीनों खित्तों में और मजबूत करने की कोशिश की जाएगी।

रैली के बाद पत्रकारों से बातचीत में सोज ने कहा कि न्यूक्लियर डील देश के भले के लिए है, इसलिए वाम दलों को भी न्यूक्लियर डील स्वीकार कर लेना चाहिए। पाकिस्तान के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने का कि पड़ोसी देश से बातचीत जारी रहेगी, क्योंकि कश्मीर समस्या का समाधान बातचीत से निकल सकता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पीरजादा के शिक्षा मंत्री का पद छोड़ने के बाद ये पद मुख्यमंत्री के पास ही रहेगा या कोई और शिक्षा मंत्री होंगे, इस सवाल का जवाब मुख्यमंत्री ही दे सकते हैं।

स्वास्थ्य मंत्री पंडित मंगत राम शर्मा ने दुआ की है कि मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रो. सैफुद््दीन सोज की जोड़ी सलामत रहे। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अपने दम पर सरकार बनाएगी। शेर-ए-कश्मीर पार्क में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि तमाम पार्टियां चुनावी बिगुल बजा चुकी है। अब कांग्रेस की बारी है। राज्य की किसी भी पार्टी का वजूद तीनों खित्तों में नहीं है। अकेली कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जिसका जनाधार जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों जगह है। उन्होंने कहा कि प्रो. सोज की अध्यक्षता में पार्टी मजबूत होगी। आजाद केंद्र से लगातार पैसा ला रहे हैं, जिससे हर विभाग का विकास हो रहा है। जम्मू और श्रीनगर में एम्स जैसा अस्पताल बनेगा। इसके अलावा हर जिले में 300 बिस्तरों पर अस्पताल बनाया जाएगा। किसी का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि पार्टी की एकता को नुकसान पहुंचाने वाले शख्स को बख्शा नहीं जाएगा।

चंडीगढ़ में पुलिस की हजारों गोलियां गायब
डेटलाइन इंडिया
चंडीगढ़, 13 मार्च-चंडीगढ़ पुलिस की पिछले तीन साल से किसी अपराधी से कोई मुठभेड़ तक नहीं हुई है, फिर भी पिछले तीन साल में चंडीगढ़ पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक उसने 1 करोड़, 35 लाख रुपए की गोलियां दाग दीं। मजे की बात यह है कि पुलिस के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि इतनी सारी गोलियां कहां खर्च की गईं। यही वजह है कि चंडीगढ़ पुलिस के अब कारतूस घोटाले में फंसने की संभावना पैदा हो गई है।

चंडीगढ़ पुलिस के अफसरों के मुताबिक विभाग को प्रशासन की ओर से गोलियां खरीदने के लिए 45 लाख रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से बीते तीन सालों से भुगतान हो रहा है। आर्डिनेंस फैक्ट्री से चंडीगढ़ पुलिस गोलियां खरीदती भी है। किसी निजी कंपनी से कभी भी खरीदारी नहीं की गई। सरकारी दरों पर ही असलहे भी खरीदे गए। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक सामान्यत: गोलियां खराब नहीं होती हैं, मगर उनका एक साल में इस्तेमाल किया जाना अच्छा होता है।

चंडीगढ़ पुलिस के सभी अफसरों और मुलाजिमों का निशाना सही बना रहे, इसके लिए हर साल सभी को मानकों के अनुरूप फायरिंग करनी होती है। सामान्यत: हर मुलाजिम को सालाना 50 राउंड फायर करने होते हैं। पिस्टल से 25 फायर करने होते हैं। अभ्यास के लिए होने वाली फायरिंग में कुल 10 लाख रुपये से कम की गोलियां लगती हैं। फायरिंग करने के अलावा चंडीगढ़ के सभी पुलिस थानों, पीसीआर कर्मियों और कमांडो को असलहे दिए जाते हैं। सभी मुलाजिमों को कानून-व्यवस्था और अपराध नियंत्रण के लिए असलहों के साथ कारतूस दिए जाते हैं। इनका इस्तेमाल विधिक जरूरत के मुताबिक करना होता है। ऐसे में बाकी रकम की गोलियां कहां खपती हैं? इसके बारे में किसी भी अफसर के पास कोई जानकारी नहीं है।

प्रदर्शनकारियों के आक्रामक होने पर पिछले साल दो बार पुलिस को तीन-तीन राउंड फायरिंग करनी पड़ी थी। एक बार पीजीआई के पीछे उग्र प्रदर्शनकारियों को शांत कराने के लिए और दूसरी बार किशनगढ़ में उग्र लोगों को शांत कराने के लिए हवाई फायर किए गए थे। पुलिस आंकड़े बताते हैं कि बीते सात सालों में चंडीगढ़ पुलिस की किसी भी अपराधी से ऐसी मुठभेड़ नहीं हुई जिसमें पुलिस को फायरिंग करनी पड़ती। चंडीगढ़ पुलिस ने इस दरम्यान न तो किसी अपराधी को पकड़ने के लिए और न ही उसे मार गिराने के लिए फायर किया है।

चंडीगढ़ ही एकमात्र ऐसा सूबा होगा जहां के 80 मुलाजिम असलहों को साथ लेकर न तो चलते हैं और न ही डयूटी देते हैं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक किसी भी डीएसपी, एसएचओ, 30 इंस्पेक्टरों और चौकी प्रभारियों ने कोई असलहा नहीं लिया हुआ है। गार्ड डयूटी वाले मुलाजिम और पीसीआर मोटरसाइकिलों पर चलने वाले मुलाजिम ही असलहे रखते हैं। संतरी डयूटी वाले मुलाजिम भी असलहे लेते हैं।

जिस तरह का असलहा होता है, उसके मुताबिक साल में फायरिंग की एक तय सीमा है। पिस्टल की कम होती है एके-47 की ज्यादा। यह फायरिंग मुलाजिमों को असलहे के बेहतर इस्तेमाल के लिए तैयार करने के आशय से दी जाती है। काम के दौरान कानूनन जरूरी होने पर फायरिंग के लिए थानों, चौकियों और पुलिस लाइन के शस्त्रागार में उनका पर्याप्त भंडारण किया जाता है। यही वजह है कि हर साल खरीदारी की जाती है।
चौटाला को निपटाने पर तुली कांग्रेस
डेटलाइन इंडिया
चंडीगढ़, 13 मार्च-भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला और उनके सांसद बेटे अजय चौटाला को लोकसभा चुनाव से पहले निपटाने की तैयारी कर ली है। हरियाणा के संसदीय कार्यमंत्री रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि ओमप्रकाश चौटाला और उनके साथियों उनके खिलाफ चल रही विजिलेंस जांच आगामी छह माह में पूरी कर ली जाएगी और उसके बाद जरूरत पड़ने पर आपराधिक मामले भी दर्ज किए जाएंगे।

यह बात संसदीय कार्यमंत्री रणदीप सुरजेवाला ने बुधवार को हरियाणा विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान कही। शमशेर सिंह सुरजेवाला ने प्रश्न पूछा था कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला और उनके सहयोगियों के खिलाफ कोई अभियोग या जांच लंबित है। विधानसभा में बुधवार को यह प्रश्न शमशेर सिंह सुरजेवाला के न होने के कारण करण सिंह दलाल ने पूछा। रणदीप सुरजेवाला ने जवाब दिया कि पूर्व मुख्यमंत्री चौटाला, हरियाण्ाा लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष के.सी. बांगड़ और अन्य के खिलाफ एचसीएस, एलाइड सर्विस और अन्य सेवाओं के पदों पर नियुक्तियों में अनियमितता के आरोप में 18 अक्तूबर 2005 को मामला दर्ज हुआ था।

इस मामले की विजिलेंस जांच अभी तक लंबित है क्योंकि हरियाणा लोक सेवा आयोग ने संबंधित रिकार्ड देने से मना कर दिया है। इसलिए हिसार की अदालत से सर्च वारंट मांगा गया, अदालत ने इजाजत नहीं दी। सेशन ने भी अपील रद कर दी। अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सेशन जज के आदेशों को चुनौती दी गई है। सुरजेवाला ने कहा कि विजिलेंस ब्यूरो पशुपालन एवं डेयरी विभाग के तत्कालीन निदेशक और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ जांच कर रहा है। आरोप है कि अनुदान राशि में दुरुपयोग और खरीद में अनियमितताएं हुई हैं। विधायक करण दलाल ने पूछा कि कितनी राशि है, जिस पर सुरजेवाला ने बताया कि एक करोड़ से ज्यादा का मामला है। सुरजेवाला ने जानकारी दी कि हरियाणा लोक सेवा आयोग के खिलाफ 37 शिकायतें मिली हैं, जिनमें नियुक्तियों में हेराफेरी का आरोप है।

स्वराज पुरी से सीख लेंगे नेता जी?
डेटलाइन इंडिया
शिमला, 13 मार्च-हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व मंत्री सिंघी राम को मध्य प्रदेश के भूतपूर्व पुलिस महानिदेश स्वराज पुरी से मिली प्रेरणा भारी पड़ी। पिछले साल श्री पुरी को अपने बेटे के प्रवेश के मामले में जाली दस्तावेज पेश करने की वजह से नौकरी गंवानी पड़ी थी और अब सिंघी राम ने तो सरकारी रिकॉर्ड में ही जालसाजी कर डाली। अब बचना कैसे है, इसके लिए सिंघी राम को भोपाल फोन लगाकर स्वराज पुरी से बात करनी पड़ेगी।

सिंघी राम की बेटी बारहवीं कक्षा में फेल हो गई थी। मगर सिंघी राम के पास अपनी बेटी की जो अंकतालिका थी, उसमें उसके पूरे 86 प्रतिशत अंक थे और उन्होंने दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में से एक लेडी श्रीराम कॉलेज में बेटी का एडमिशन भी करवा दिया था। यह बात अलग है कि भूतपूर्व मंत्री जी के इस काले कारनामे की पोल कॉलेज की जांच में खुल गई और उन पर जेल जाने का खतरा भी मंडराने लगा।

बेटी को फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर दिल्ली के एक कालेज में प्रवेश दिलाने के आरोपी पूर्व मंत्री सिंघी राम ने अग्रिम जमानत ले ली है। विशेष न्यायाधीश (वन) शिमला आईएल-गुप्ता ने पूर्व मंत्री और उनकी बेटी की अलग-अलग-याचिका की सुनवाई करते हुए 19-मार्च तक उन्हें अग्रिम जमानत दे दी।

जमानत 10-10 हजार रुपये के मुचलके पर दी गई है। उधर, स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन-ब्यूरो की टीम जल्द सिंघी राम से पूछताछ के लिए उनके गृहक्षेत्र-रामपुर जाएगी। इस बारे में एसपी (विजिलेंस) आनंद प्रताप सिंह ने कहा कि साक्ष्यों को एकत्रित किया जा रहा है। मामले की जांच चल रही है।प्रारंभिक जांच में विजिलेंस टीम पूर्व मंत्री और उनकी बेटी के खिलाफ लगे आरोपों के साक्ष्य जुटाने में लगी है। सबूतों के एकत्रित होते ही इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार के ध्यान में लाई जाएगी। सिंघी राम की सीधी गिरफ्तारी से स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन-ब्यूरो इनकार कर रहा है। पूछताछ के लिए विजिलेंस टीम जल्द ही उनके गृहक्षेत्र रामपुर रवाना होने की तैयारी में है।

पूर्व मंत्री पर आरोप है कि उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज,-दिल्ली में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर अपनी बेटी को एडमिशन-दिलाया। सिंघीराम-की बेटी बारहवीं की परीक्षा में सनावर-स्कूल में फेल थी और उसके पास फिर भी बारहवीं की अंकतालिका-मौजूद है।

अंकतालिका-को प्रदेश सचिवालय में एक अधिकारी द्वारा अटेस्ट किया गया। इसके बाद अंक तालिका की अटेस्टेड-कॉपी-लेडी श्रीराम कॉलेज-को सौंप दी गई। इस प्रमाण पत्र की जब जांच की गई तो पाया गया कि हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड के रिकार्ड में इस पर लिखा रोलनंबर और सीरीज ही मौजूद नहीं है। जाली अंक तालिका में 86-फीसदी अंक दिखाए गए हैं। इन अंकों के आधार पर पूर्व मंत्री अपनी बेटी को एससी-कोटे के तहत दाखिला दिलाने में सफल हो गए। विजिलेंस टीम इसके लिए दिल्ली स्थित कॉलेज से रिकार्ड भी जुटा चुकी है। प्रारंभिक जांच में-इन साक्ष्यों के आधार पर विजिलेंस ने मंगलवार को सिंघीराम-और उनकी बेटी के खिलाफ शिमला में धारा -420-और 120-के तहत मामला दर्ज कर लिया।

मनमोहन सरकार की मौत की मुनादी
शंभूनाथ सिंह
अमेरिका के साथ परमाणु करार का मुद््दा मनमोहन सरकार के गले की हड््डी बन गया है। इसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की राजनीतिक अदूरदर्शिता कहा जाए या उनकी सरकार की दुर्बलता माना जाए कि बिना सोचे-समझे या अपनी स्थिति का आकलन किए बगैर वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर परमाणु करार करने की घोषणा कर आए और मसौदे पर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हस्ताक्षर भी कर आए। अब उसे अमली जामा पहनाने का मतलब अपनी सरकार की मौत की मुनादी करने जैसा हो गया है। करार से पीछे हटकर सरकार की मृत्यु को टाला जा सकता है, लेकिन ऐसा करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीतिक-कूटनीतिक साख की मौत को चकमा नहीं दिया जा सकता। देश की राजनीति में मनमोहन सिंह की जो भी हैसियत हो, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रधानमंत्री होने के नाते वह दुनिया के एक अरब लोगों का प्रतिनिधित्व करने के कारण बहुत ताकतवर शख्सीयत माने जाते हैं।

जिस अमेरिका में वह कभी नौकरी करते थे, वहां विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में आतिथ्य ग्रहण करते समय उनका उत्साह और आत्मविश्वास चरम पर चला गया होगा और कुछ समय के लिए भूल गए होंगे कि वह जिस सरकार के मुखिया हैं, उसके शक्ति के स्रोत सरकार के भीतर नहीं, बाहर हैं। उन्होंने सोचा होगा कि अमेरिका के साथ परमाणु करार करके इतिहास बनाया जाए और देश पर तीन दशकों से लगे हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु प्रतिबंध को खत्म कर दिया जाए। 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था, तभी से परमाणु टेक्नोलॉजी और उसके ईंधन आपूर्ति वगैरह के मामले में भारत पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लागू हैं। क्योंकि भारत सीटीबीटी और एनपीटी जैसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौतों का हस्ताक्षरकर्ता देश नहीं है। इंदिरा गांधी ने अमेरिका और तथाकथित अभिजात्य अंतरराष्ट्रीय परमाणु क्लब के ताकतवर सदस्य देशों की परवाह किए बिना पोखरण में परीक्षण किया था। पोखरण का दूसरा परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 1998 में हुआ।

उन्होंने भी बिना किसी की परवाह किए यह काम किया। मनमोहन सिंह को लगा होगा कि उनकी पार्टी की सर्वमान्य नेता इंदिरा गांधी के समय से जो परमाणु प्रतिबंध लगा हुआ है, यदि वह उनके हाथों से खत्म हो, तो यह श्रीमती गांधी के प्रति उनकी राजनीतिक श्रध्दांजलि भी होगी। लेकिन वह न तो इंदिरा गांधी और वाजपेयी जितने भाग्यशाली हैं और न ही राजनीतिक रूप से उतने ताकतवर। श्रीमती गांधी के अच्छे-बुरे फैसलों पर उस समय कांग्रेस पार्टी ही नहीं, पूरे देश में किसी की उंगली उठाने की हिम्मत नहीं थी। वाजपेयी भी गठबंधन की सरकार जरूर चला रहे थे, पर सर्वमान्य और ताकतवर नेता के रूप में जाने जाते थे। वाजपेयी की निर्भीकता भी सर्वविदित है। पोखरण्ा के परमाणु परीक्षण की तैयारियों की भनक तब रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस तक को नहीं लगी थी। इसीलिए पिछले दिनों संसद में संकटग्रस्त होने पर जब मनमोहन सिंह वाजपेयी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह कहकर मदद के लिए पुकार रहे थे, तो भाजपा के नेता बैठे मुसकरा रहे थे।

भारत चूंकि अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधियों का हस्ताक्षरकर्ता देश नहीं है और परमाणु शक्ति संपन्न भी है, इसलिए उसके साथ समझौता करने के लिए अमेरिका को अपने घरेलू कानूनों में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय परमाण्ाु कानूनों में भी संशोधन करवाने के लिए ज्यादा मशक्कत करनी पड़ी है। फिर भी यदि यह करार नहीं हो पाया, तो यह बुश प्रशासन की विदेश नीति के इतिहास में विफलता के एक अध्याय के रूप में जुड़ जाएगा। अमेरिका भी इन दिनों चुनावी प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है। वहां के चुनावों में विदेश नीति एक बड़ा मुद््दा होती है। आठ साल से अमेरिकी सत्ता पर काबिज जॉर्ज बुश की विदेश नीति वहां वैसे भी विवाद और आलोचनाओं के घेरे में है। भारत के साथ परमाणु करार एक सकारात्मक तत्व हो सकता है, जिसकी संभावना लगातार क्षीण होती जा रही है। यही वजह है कि बुश प्रशासन का धैर्य टूट रहा है। लेकिन अमेरिकी जल्दबाजी से भारत में ऐसा लग रहा है कि परमाणु करार से अमेरिका का कोई बड़ा फायदा होने वाला है। दूसरा पक्ष यह भी उभर रहा है कि अमेरिकी दबाव में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारतीय हितों के साथ जरूर कोई न कोई समझौता कर रहे हैं, वरना इसके लिए सरकार को दांव पर लगाने की बात न करते। इस तरह परमाणु करार के दूसरे पक्ष गौण होते जा रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में भारतीय हितों को लेकर चल रही सौदेबाजी पूरी हो गई है और परमाणु ऊर्जा विभाग व विदेश मंत्रालय का प्रतिनिधिमंडल वहां से सुरक्षा उपायों के मसौदे को लेकर वापस आ चुका है। यह मसौदा भारत के अनुकूल बताया जा रहा है। सरकार को लगता था कि संयुक्त राष्ट्र की एक वैधानिक संस्था से भारतीय परमाणु हितों की संस्तुति हो जाने से देश में प्रसन्नता महसूस की जाएगी। लेकिन माकपा महासचिव कॉमरेड प्रकाश करात ने करार पर सरकार गिराने की धमकी दे दी। घबराई सरकार के विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने कदम पीछे खींचते हुए करार के लिए सरकार को कुरबान करने से मना कर दिया। मुखर्जी ने वाम दलों को खुश करने के लिए यह साफ कर दिया कि हम किसी समय सीमा में बंधकर काम नहीं कर सकते।

जबकि वह बखूबी जानते हैं कि यदि अगले तीन-चार महीनों में करार का अंतिम मसौदा अमेरिकी कांग्रेस के विचारार्थ नहीं पहुंचा, तो यह खटाई में पड़ जाएगा। अभी 45 देशों के परमाणु ईंधन आपूर्तिकर्ता देशों के संगठन से इस मसौदे को गुजरना बाकी है। वामपंथी यह जानते हैं कि यदि मसौदे को कुछ समय के लिए रोक लिया जाए, तो यह अपने आप ही बेमतलब हो जाएगा। इसलिए उन्होंने सरकार को बताया है कि मसौदे का ठीक से अध्ययन करने के लिए उन्हें कम से कम दो-तीन महीने का समय लगेगा। सवाल यह उठता है कि वाम दल अमेरिका के नाम पर अपने देश के हितों को स्थगित करने को क्यों तत्पर हैं?

इसकी वजह वाम राजनीति की अपने हितों की रक्षा करना है। वामपंथी जानते हैं कि अमेरिका से भारत का कोई समझौता हो जाता है, तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि शीतयुध्द का दौर खत्म होने के बाद अमेरिका को यदि कोई अपना दुश्मन नंबर एक मानता है, तो वह है अंतरराष्ट्रीय मुसलिम समुदाय।

इसलिए यदि विकट अमेरिकी विरोध के जरिये देश के बीस करोड़ मुसलिम मतदाताओं को अपना
बंधक बनाया जा सकता है, तो यह घाटे का सौदा नहीं है। उन्होंने करार पर राजनीति करके मुसलमानों की नजरों में कांग्रेस को भी गिराने का काम किया है। एक कॉमरेड की व्यंग्यात्मक टिप्पणी थी कि भारतीय मुसलमान मानें या न मानें, पर आज की तारीख में अमेरिका के दुनिया में दो ही विश्वसनीय शत्रु बचे हैं। एक, अल कायदा और दूसरा, भारत की वामपंथी पार्टियां।
(शब्दार्थ)

कालाहांडी से डर गए 'युवराज'?
असगर वजाहत

राहुल गांधी शासक दलों के एक घटक के महामंत्री हैं। इन्हें मीडिया प्रेमवश युवराज कहकर संबोधित करता है। वह सोनिया गांधी के सुपुत्र हैं। इसलिए यह बात समझ में नहीं आती कि उन्हें कालाहांडी के आदिवासियों की समस्याओं को समझने के लिए वहां जाने की जरूरत क्यों आन पड़ी।

क्या वहां की खबरें उन तक नहीं पहुंचतीं? या उन ख़बरों पर राहुल गांधी को विश्वास नहीं है? वह अपनी पार्टी के किसी विश्वसनीय आदमी को कालाहांडी भेजकर वहां के लोगों की समस्याओं की जानकारी क्या नहीं ले सकते थे? या उनके पास ऐसा विश्वसनीय कोई आदमी नहीं है? क्या यहां के मीडिया पर उन्हें विश्वास नहीं है? क्या वह सरकारी-अर्ध्दसरकारी संस्थाओं के आंकड़ों पर विश्वास नहीं करते? क्या कालाहांडी कोई ऐसी दुर्गम जगह है, जहां के बारे में अब तक देश को कुछ पता नहीं? फिर वह कालाहांडी क्यों गए? क्या सिर्फ इसलिए कि उनके पिता जी और दादी जी भी वहां गए थे?

अगर कालाहांडी जाने की यही वजह है, तो उनका वहां न जाना ही उचित होता, क्योंकि उनके पिताजी ने, और उससे पहले उनकी दादी जी ने कालाहांडी के गरीब आदिवासी लोगों से बहुत से वायदे किए थे। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि कालाहांडी के लोग राहुल गांधी से उन वायदों की चर्चा करने लगे।

यह भी पता चला है कि उन्होंने कालाहांडी में किसी आदिवासी घर में खाना खाया। इससे पहले वह बुंदेलखंड में भी एक दलित परिवार के यहां खाना खा चुके हैं। दलितों और आदिवासियों के घर खाना खाकर वह आखिर क्या साबित करना चाहते हैं? क्या वह दलितों या आदिवासियों के बारे में जानना चाहते हैं? क्या वह खान-पान की इनकी आदत पर कोई किताब लिख रहे हैं? सवाल यह है कि आदिवासी के घर भोजन करके वह उनकी कौन-सी समस्या का समाधान कर देंगे?

आज देश के दुर्गम से दुर्गम ग्रामीण क्षेत्र के बारे में सभी जानकारियां उपलब्ध हैं। अगर ज्यादा जानकारी चाहिए, तो पी. साईनाथ जैसे दिग्गज पत्रकार से बात की जा सकती है, जिन्होंने अपना जीवन ही वंचितों की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया। लिहाजा राहुल गांधी को दुर्गम इलाकों में जाकर अपना समय बरबाद करने की कोई जरूरत नहीं थी। बेहतर होता कि वह अपने बहुमूल्य समय का उपयोग देश की गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, जड़ता और धर्मांधता समाप्त करने में लगाते। इससे इस देश का कुछ कल्याण होता। लेकिन इसके बजाय उन्हें रोड शो करने की सलाह दी जाती है और वह वैसा ही करते हैं। जबकि ऐसे रोड शो का कोई फायदा नहीं। चुनावों में इसका लाभ उनकी पार्टी को नहीं मिला।

उनके ऐसे दौरों से उलटे परेशानियां ही ज्यादा होती हैं। मसलन, अगर उनकी उड़ीसा यात्रा को देखें, तो कालाहांडी और उस इलाके के उनके दौरे ने स्थानीय प्रशासन के लिए परेशानियां ही खड़ी कर दीं। प्रशासन जनता को छोड़ कर उनकी सुरक्षा और सुविधा का बंदोबस्त करने में जुटा रहा। न जाने ऐसे मामले में हमारे नेताओं को कभी कोई अपराध बोध क्यों नहीं होता। वे यह क्यों महसूस नहीं कर पाते कि उनकी सुविधा और सुरक्षा के कारण बहुत से लोगों का समय बरबाद होता है, वे अपनी जिम्मेदारी से विमुख होते हैं।

राहुल गांधी को जानना चाहिए कि इस देश की समस्याएं जग जाहिर हैं। यह सब कुछ जानने के लिए दलित, आदिवासी परिवारों के साथ खाना खाने या चुनावी रोड शो करने की जरूरत नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के राजनीतिक नेतृत्व में उन समस्याओं से जूझने की इच्छा है? पूरा देश जानता है कि हमारे समाज में अमीरों और गरीबों के बीच बहुत बड़ा अंतर आ गया है। आर्थिक मजबूती की खुशफहमी में हाशिये केलोगों के दुखों की अनदेखी हो रही है। यहां लोकतंत्र की परंपरा कितनी भी मजबूत क्यों न हो, सामाजिक न्याय का रिकॉर्ड उतना अच्छा नहीं है। यह परिदृश्य भयावह और अमानवीय है। हमारी नीतियां धनवानों की ओर झुकी हुई हैं।

यही कारण है कि देश में जिस तेजी से खरबपतियों की संख्या बढ़ रही है, उसी तीव्रता से भुखमरी, अकाल, शोषण, आत्महत्या, बेरोजगारी भी बढ़ रही है। क्या राहुल गांधी और उनकी पार्टी के पास इसका कोई इलाज है? जाहिर है, इन समस्याओं का समाधान सिर्फ रोड शो से या केंद्र में सरकार बन जाने से नहीं होगा। कांग्रेस के युवराज को समझना चाहिए कि गरीब के घर खाना खा लेने, उन्हें माला समर्पित कर देने, बच्चों को गोद में उठा लेने, सिर पर टोकरा उठा लेने जैसे नुसखे अब पुराने पड़ गए हैं। उन्हें समझना चाहिए कि देश की मुख्य समस्याओं से आंखें चुराने के नतीजे बहुत भयानक निकलते हैं। सांप्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद के दानव आज बहुत विकराल हो गए हैं। कहीं ये पूरे देश को निगल न लें!
(शब्दार्थ)

1 comment:

Udan Tashtari said...

विदेश मंत्री वाली जानकारी भी एक जानकारी ही है..आभार.