आलोक तोमर
अब यह पता नहीं कि राहुल गांधी ने कैंब्ररिज विश्वविद्यालय से एम फिल की डिग्री कब ले ली? कम से कम लोक सभा की वेबसाइट पर उनके परिचय में यही लिखा है। जहां तक दिल्ली में जानकारी है राहुल सुरक्षा कारणों से शुरू में घर पर पढ़े फिर कनाट प्लेस के पास सेंट कोलंबस स्कूल में भर्ती हो गए। इसके बाद पिताजी के स्कूल में देहरादून चले गए और फिर सूना गया कि दिल्ली के प्रतिषिठत सेंट स्टीफंस कालेज में उन्हें खेल कोटे में दाखिला मिला है। उन्होने पिस्तौल से निशानेबाजी का खिलाड़ी होने के प्रमाणपत्र दिए थे। यहां भी एक साल बाद उन्होने कालेज छोड़ दिया और अगली जानकारी यह है कि वे विकास अर्थशास्त्र विषय में कैंब्ररिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कालेज में दाखिला लिया था और तर्क यह है कि सुरक्षा के हास्यास्पद कारणों की वजह से उन्होने वहां अपना नाम राहुल विंसी रख लिया था। इतालवी भाषा में विंसी का अर्थ दिग्विजयी होता है।
इन दिनों कांग्रेस की ओर से दिग्विजय करने की राहुल गांधी की कोशिशें जोर-शोर से चल रही है। राहुल गांधी इसी साल 38 साल के हो जाएंगे और उम्र के हिसाब से अमेठी से सांसद बन के उन्होने राजनीति की पहली मंजिल तो पार कर ली लेकिन अमेठी से उनका जीतना कोई बड़ा चमत्कार नहीं है। राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी ने इस क्षेत्र को लगातार पनपाया है। उनके चुनाव की मैनेजर बड़ी बहन प्रियंका थी और मां का आशीवार्द तो लाडले के साथ था ही। राहुल गांधी राजनीति में आते ही युवराज के तौर पर स्थापित कर दिये गए और अब तो उनका वैकल्पिक नाम बन गया है। राहुल गांधी ने सबसे पहले बूढ़े पुराने कांग्रेसियों को ज्ञान दिया कि खादी पहनना कोई जरूरी नहीं है और शराब पीने से किसी का चरित्र गिर नहीं जाता। यह ज्ञान उन्होने कांग्रेस कार्यसमिति में दिय था जहां उनके शब्दों को खंडित करने का साहस किसी ने नहीं दिखाया था।
इसके बाद राहुल गांधी ने लगातार कांग्रेस को लज्जित और राजनीति को स्तब्ध करने वाले बयान एक के बाद एक दिए। उनके सलाहकारों और जनसंपर्क अधिकारियों की एक फौज बनाई गई। उनका समाज में उठना बैठना बनाया गया। उनके लिए नए-नए कार्यक्रम तैयार किए गए लेकिन राहुल गांधी अपने आप को अपनी मम्मी के बेटे से आगे कुछ साबित नहीं कर पाए। शादी करने के मामले में भी वे अटल बिहारी वाजपेयी की लाइन पर चल रहें हैं मगर कुंवारा रहने से अगर प्रधानमंत्री बनना तय होता तो कोई राजनेता मंडप में बैठता ही नहीं। राहुल गांधी ने पहले कुलियों के हक का मुद्दा उठायाऔर फिर कालाहांडी के आकालग्रस्त इलाकों के दौरे पर निकल गए। वहां जा कर उन्होने अपने आप को भूख के खिलाफ लड़ने वाला योध्दा स्थापित किया लेकिन कमाल की बाद ये है कि वे पश्चिमी उड़ीसा का पूरा इलाका घूम लिए मगर कालाहांडी ही नहीं जा पाए। उड़ीसा में एनडीए यानि बीजू जनता दल की सरकार है इसलिए उन्होने जमकर राजनीतिक बयानबाजी की। आखिरकार वे वहां से वैसे ही निकल लिए जैसे उनके पिता और उनकी दादी बहुत बड़ी-बड़ी बातें करके निकल लिए थे।
मम्मी के लाडले राहुल राजनीति के दायरों में अभी तक अपने आप को परावर्तित सत्ता का केंद्र नहीं बना सके हैं और एक तरह से यह लोकतांत्रिक सौभाग्य ही था लेकिन राहुल के मामले में यह सौभाग्य एक तरह कि मजबूरी साबित हो गया है। मां के पड़ोस में एक बड़े बंगले में वे रहते हैं और अब मुख्यमंत्रियों और सारे बड़े कांग्रेसी नेताओं को हुक्कम दे दिया है कि 10 जनपथ के अलावा राहुल बाबा के बंगले पर भी हाजिरी लगाया करें। ऐसे ही एक बड़े नेता ने एक दिलचस्प किस्सा यह सुनाया की राहुल गांधी ने विशेष तौर पर उन्हें फोन करके सारी मतदाता सूचियों और राजनैतिक होमवर्क के साथ बुलाया, लंबी बातचीत की और दो घंटा माथा खपाने के बाद उठते हुए अपने मेहमान से अपने राज्य में कांग्रेस को मजबूत बनाने का प्रवचन दिया। यहां तक तो ठीक था मगर राहुल गांधी इतनी लंबी चर्चा के बाद भी राज्य का नाम भूल गये थे और गुजरात को मध्य प्रदेश समझने की भूल कर रहे थे। ऐसे ही हाल ही में उत्साही और लगातार चर्चित होते जा रहे राजीव शुक्ला ने उनकी दोस्ती शाहरूख खान से करवा दी और अपने आप को कांग्रेस का अमर सिंह सिध्द कर दिया। राहुल गांधी शायद शाहरूख खान की मौजूदगी में जितने सूखी नजर आते हैं उतने अपने राजनैतिक साथियों की मौजूदगी में नजर नहीं आते।
राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी हैं और देश के पहले प्रधानमंत्री के वंशज हैं। वे इंदिरा गांधी के नाती भी हैं और राजीव गांधी के बेटे भी है। इतनी सारी विरासतों का बोझ संभालने की उनकी शक्ति है या नहीं इसपर हमारे देश का आने वाले दिनों का सौभाग्य या दुर्भाग्य टिका हुआ है। जहां तक खुद राहुल गांधी के भविषय का सवाल है तो सबसे पहले लोगों को इंतजार है कि वे अपनी शादी कब रचाते हैं? रिश्तों की कमी नहीं है, प्राथमिकता की बात है। राहुला गांधी भी ठीक उसी तरह बुरे आदमी नहीं हैं जैसे उनके पिता राजीव गांधी नहीं थे। दिक्कत सिर्फ चुनाव की प्राथमिकता की है। इंदिरा गांधी ने अपने बड़े बेटे के स्वभाव को जानते हुए राजीव गांधी की बजाय संजय गांधी को राजनीति के लिए चुना था लेकिन नियति ने संजय को जीवित ही नहीं रखा। इसीलिए राजीव को राजनीति में आना पड़ा और जबतक उन्हें लोकतांत्रिक होश आता तब तक उनकी हत्या हो चुकी थी। राहुल गांधी की दीर्धायु की सभी कामना करते होंगे लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस न तो अपने वर्तमान रूप में रह पाएगी और न दीर्घायु हो पाएगी। आप जानते हैं कि राहुल गांधी का संसदीय रिकार्ड कोई बहुत चमकदार नहीं है और नई पीढी के ज्यादातर सांसद उनसे ज्यादा बेहतर काम कर रहे हैं। इसके बावजूद अगर राहुल को शिखर पर रहना है तो अपने आप को शिखर पर होने की शक्ति अर्जित करने वाला बनाना पड़ेगा। फिलहाल यह होता दिखाई नहीं पड़ता।
(शब्दार्थ)
4 comments:
आप जब से ब्लागवाणी पर आये हैं मेरी पहली पसंद बन गये हैं. आपके लेख बड़े बड़े होते है पर मैं इन्हें बिना पढ़े नहीं रह पाता.
आपकी प्रशंसा में क्या कहूं?
आपने सच कहा है राजनीति विरासत में मिलने मात्र से ही कोई शिखर पुरुष नहीं हो जाता.इसके लिए कड़ी मेहनत और दूरदृष्टि की जरूरत है. खुद को आग में तपाना पड़ता है तब कोई राजनीति के शिखर को छू पाता है.
आपको ब्लॉग पर देखकर अच्छा लगा.
:)
यानी आप भी राजकुमार के दोष देख रहे है.:)
राजा नंगा है ये कहा नही जाता जी...:)
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