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रायपुर, छत्तीसगढ़, 23 मार्च- फिल्म स्टार ओम पुरी ने निजी रिश्तों के नए समीकरण बना दिए हैं। वे अपनी भूतपूर्व पत्नी सीमा कपूर द्वारा राज्य के पर्यटन विभाग के लिए बनाए जा रहे एक वृतचित्र में सूत्रधार के तौर पर शूटिंग करने रायपुर पहुंचे और उनके साथ एक ही होटल में रुके।
यह बात इसलिए और ध्यान देने लायक है कि ओम पूरी और सीमा कपूर की शादी डेढ़ साल से भी ज्यादा नहीं चली थी। उस दौरान भी सीमा कपूर ने ओम पूरी पर अनपढ़ जाहिल और सभ्य समाज में नहीं बैठने लायक होने के आरोप लगाये थे। जब बात हद से बढ़ गई थी तो सीमा कपूर के भाई अंताक्षरी की ख्याति वाले अन्नू कपूर, फिल्म निदेशक राजकुमार संतोषी और दोनों के पत्रकार मित्र आलोक तोमर ने ओम पूरी के मुंबई वाले घर त्रिशूल में बैठ कर दोनों के बीच सूलह का रास्ता निकाला था। सीमा कपूर की मांग पर ओम पूरी ने उन्हें एक फ्लैट, राजस्थान के झालावाड़ शहर में रह रही उनकी मां कमल शबनम के नाम जमीन, और सीमा को मोटी धनराशि देकर तलाक दिया था।
इसके बाद सिटी आप जाय फिल्म की शूटिंग के दौरान कोलकाता मिली नंदिता नामक एक पत्रकार से ओम पूरी ने शादी की और उनका अब एक आठ साल का बेटा भी है। फिर भी लोगों को आश्चर्य होता है कि इतने कड़वे संबंध होने के बावजूद ओम पूरी सीमा कपूर से अपने घनिषठ रिश्ते निभा रहे हैं और उनके लिए बगैर कोई फीस लिए शूटिंग करने दूर्गम आदिवासी इलाकों में पहुंच जाते हैं। सीमा कपूर ने एक दो सीरियल बनाए हैं लेकिन पहले वे दिल्ली के श्रीराम सेंटर में कठपुतलियां नचाया करतीं थीं। उधर ओम पूरी इस समय यूरोप और हालीवुड में सबसे ज्यादा मांग रखने वाले भारतीय अभिनेता हैं।
सीमा कपूर अपने मित्रों से अक्सर कहा करती हैं कि ओम पूरी को उन्होने अपने पालतू जानवर की तरह रखा हुआ है जो चाहे जहां रहे उनकी एक पुकार पर दौड़ चला आता है। रिश्तों को आखिरी हद तक निभाने वाले और कई राषट्रीय पुरस्कार जीत चुके, और भारत की पद्मश्री और ब्रिटेन के आर्डर आफ मैरिट से सम्मानित होने वाले ओम पूरी सबकी मदद करने में हमेशा आगे रहते हैं और अब ये जाहिर हो चुका है कि सीमा कपूर हर रिश्ते का शोषण करके अपनी जिन्दगी बिताने की विशेषज्ञ हो चुकी हैं।
पत्रकार पाक प्रधानमंत्री से कितनी उम्मीद?
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इस्लामाबाद, 23मार्च- पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार कोई पत्रकार प्रधानमंत्री बनने जा रहा है और वह भी ऐसा पत्रकार जो मुशरर्फ की जेल में छह साल काट चुका है। मुल्तान के एक रईस परिवार में जन्म ईरानी मूल के यूसुफ रजा गिलानी के पूर्वज तो सूफी साधुओं में गिन जाते थे। उनकी एक बुआ केरल के सबसे पूज्य धर्मगूरु पीर पगारा की पत्नी हैं।
पत्रकारिता में मास्टर्स डिग्री लेने वाले यूसुफ गिलानी 26 साल की उम्र में जनरल जिया के मार्शल ला के विरोध में खुलकर सामने आ गए थे और उन्होने जूल्फिकार अली भूट्टो को फांसी दिए जाने के खिलाफ इस्लामाबाद की पाक मीनार पर आत्मदाह की कोशिश की थी। अंग्रजी में स्नातक यूसुफ गिलानी स्वर्गीय बेनजरी भूट्टों के निजी दोस्त भी थे और जब पूरा भूट्टो कुटूंब आसिफ अली जरदारी से उनकी शादी का विरोध कर रहा था तो यूसुफ गिलानी ने ही बेनजीर को नैतिक सहारा दिया था। वैसे भी पाकिस्तान की राजनीति में उनके परिवार का काफी असर है और वे मुल्तान से कई बार संसद के लिए चुने जा चुके हैं। इस साल के चुनाव में वे मुशरर्फ के सबसे खास और प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे सिकन्दर हयात को हरा कर आए थे। दरअसल, मुशरर्फ द्वारा बर्खास्त न्यायधिशों की बिना शर्त बहाली के मुद्दे पर जब नवाज शरीफ अकेले पड़ गए थे तो यूसुफ गिलानी ही उनका साथ दिया था।
यूसुफ गिलानी की जेल यात्रा कम कमाल की नहीं थी फरवरी 2001 में उन्हें अपने पद का दूरपयोग करने के आरोप में जेल में डाल दिया गया था और खुद मुशरर्फ की पार्टी के एक सबसे बड़े नेता सैयद मुसाहिद हुसैन ने इस कदम के विरोध में पार्टी छोड़ दी थी। जेल में रहते हुए यूसुफ गिलानी ने अपनी बहुत प्रसिध्द किताब लिखी जिसमें पाकिस्तान में लोकतंत्र की बहाली भारतीय लोकतंत्र की तर्ज पर करने की वकालत की थी। इस किताब का अब कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यूसुफ गिलानी अपनी जेल यात्रा के दौरान तब बहुत सनसनी फैला दी थी, जब एक दिन वे जेल से गायब पाये गए थे और पता चला कि वे एक जेल कर्मचारी की मोटरसाइकिल पर जेल की ही ड्रेस पहनकर बाहर निकल गए थे। यूसुफ गिलानी अगर चाहते तो जेल से फरार हो सकते थे लेकिन उन्होने खुद जेल आकर आत्मसमर्पण कर दिया और उस कर्मचारी का नाम भी कभी नहीं बताया। यूसुफ गिलानी का नाम पहले प्रधानमंत्री के तौर पर किसी सूची में नहीं था लेकिन बाद में सबको वे सबसे निरापद उम्मीदवार लगे और खास तौर पर इसलिए क्योंकि संसद के अध्यक्ष के नाते अपने संक्षिप्त कार्यकाल में उन्होने सबका दिल जीत लिया था। कश्मीर के मामले में यूसुफ गिलानी पाकिस्तान की परंपरागत धारा को मानते हैं लेकिन इस मामले में उनका रवैया दूसरे पाकिस्तानी राषट्रनायकों की तरह हमेशा टकराव का नहीं रहता है।
दिल्ली पुलिस ने फिर निर्दोषों को पकड़ा
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कौंसपूर(जालंधर), 23 मार्च- पंजाब पुलिस ने दिल्ली पुलिस की लगभग आतंकवादी साबित हो रही स्पेशल सेल का एक और झूठ पकड़ा है। आमतौर पर बेगूनाह कश्मीरियों को आंतकवादी बता कर पकड़ने या मारने के लिए कुख्यात स्पेशल सेल ने पंजाब के जिन दो युवकों को बब्बर खालसा का आतंकवादी होने के आरोप में पकड़ा है वे पंजाब पुलिस के रिकार्ड में एकदम बेदाग पाए गए हैं। उनके खिलाफ जो हथियार रखने के सबूत थे वे भी दिल्ली पुलिस के मालखाने से निकाले हुए थे।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने कोई तीन महीने पहले जालंधर के कौंसपूर के 23 वर्षीय सुरिन्दर सिंह उर्फ फौजी और 31 साल के जसवंत सिंह उर्फ काला को बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सदस्यों के तौर पर गिरफ्तार किया था और अब वे दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं। कौंसपूर गांव शाहपूर पुलिस थाने के अंतर्गत आता है और इस थाने में सुरिन्दर के खिलाफ भी जोर से बोलने की शिकायत भी दर्ज नहीं हुई। वह तो गुरूद्वारों में पाठ करने नियमित रूप से जाता था और अजनाला में दमदमी टकसाल नामक प्रसिध्द गुरूद्वारे में भी वह एक रागी के तौर पर खासा लोकप्रिय है। पुलिस अधिकारी खुद सुरिन्दर की गिरफ्तारी पर हैरान हैं। उनका कहना है कि सुरिन्दर 18 मार्च की सुबह स्थानीय पुलिस के एक सिपाही के साथ स्वर्ण मंदिर में अरदास करने बस से गया था। तभी दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच के एक सिपाही ने शाहपुर थाने में आकर बताया कि सुरिन्दर को 19 मार्च को जसंवत के साथ जालंधर के सतुलज नदी के पुल के पास से दौ पिस्तौंलों और कारतूसों के साथ पकड़ा गया है।
शाहपूर इलाके के पुलिस उप अधिक्षक दजिन्दर सिंह ढिल्लों ने भी कहा कि सुरिन्दर और जसवंत की गिरफ्तारी की कोई सूचना पंजाब पुलिस को नहीं दी गई और यह न सिर्फ अवैद्य है बल्कि कानून के सारे नियमों का उल्लंघन करता है। फिर ढिल्लो ने कहा कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सदस्य की हैसियत से दिल्ली पुलिस जिन दिनों जसंवत और सुरिन्दर को पाकिस्तान गया हुआ बता रही है उन दिनों जसवंत मध्यप्रदेश में सहडोज जिले के अपने एक रिश्तेदार के घर मौजूद था और सुरिन्दर दमदमी टकसाल में पाठ करने गया हुआ था। उसी दौरान टकसाल में पंजाब के तीन मंत्री भी आये थे जिनमें से एक ने सुरिन्दर को अच्छी कलाकारी के लिए बख्शीश भी दी थी।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल आप तौर पर अपने संदिग्ध कारनामों के लिए जानी जाती है। कश्मीर के एक नौजवान छात्र को दिल्ली हवाई अड्डे से एक आतंकवादी के नाम पर कैद करने के बाद भी अबतक वह इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह आतंकवादी था। कश्मीर पुलिस और पूरे कश्मीर के वकील शिकायत कर चुके हैं कि दिल्ली पुलिस निर्दोष कश्मीरियों को गिरफ्तार करके उन्हें आतंकवादी करार दे देती है और उन्हें लगभग 10-10 साल तक जेल में रखती है। इसी सेल ने हाल ही में हरिद्वार में हरियाणा के घोषित अपराधी को हरिद्वार में एक मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था और इस दावे का खंडन खुद हरिद्वार पुलिस कर रही है। इतना ही नहीं मारे गए अपराधी की पत्नी जिसे दिल्ली पुलिस अपने साथ लेकर आई थी अब लापता है और दिल्ली उच्च न्यायालय लगातार पुलिस से कह रहा है कि इस महिला को अदालत में पेश किया जाए या उसका पता ठिकाना बताया जाए। दिल्ली पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है।
हाल ही में सूचना करे अधिकार के तहत दिल्ली पुलिस से जानकारी मांगी गई थी कि कितने कश्मीरी उसने आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार करके जेल में बंद किए हैं और उनका मूल पता ठिकाना क्या है। पुलिस के सूचना अधिकारी ने इसका एक सक्षिप्त जवाब बनाकर दे दिया। जिसमें कहा गया था कि यह बहुत संवेदनशील जानकारी है और इसके बारे में कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर गई दिल्ली पुलिस से यह जवाब सुनना रावण के मुंह से रामायण सुनने की तरह है।
राजस्थान का दंगा गुजरात पहुंचा
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जयपुर, अहमदाबाद, 23 मार्च- भाजपा शासित ये दोनों राज्य एक बड़े सांप्रदायिक दंगे के ज्वालामुखी के फटने का इंतजार कर रहे हैं। राजस्थान में चितौड़गढ़ और टौंक जिले में होली को लेकर शुरू हुए सांप्रदायिक दंगे ने इतना जोर पकड़ा की राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में भी अल्पसंखयकों की पिटाई शुरू हो गई।
राजस्थआन से शुरू हुआ दंगा जब गुजरात के बनासकांठा तक पहुंचा तबतक 50 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो चुके थे। इनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक वर्ग के लोग थे और कई पुलिस वाले में उन्हें बचाने में घायल हुए। गुजरात में तो नरेंद्र मोदी हाल में ही तीसरी बार भाजपा की सरकार लाने में सफल हुए हैं लेकिन असली आफत राजस्थान की मुख्यमंत्री महारानी वसुंधरा राजे की है। यहां इसी साल चुनाव होने हैं और वसुंधरा दो तरफ से आफत में हैं। अगर उन्होने अल्पसंख्यकों का बचाव किया और हिंदु नेताओं को जेल में भेजा तो पहले से नाराज संघ परिवार और उसके सहयोगी संगठन हमलावर साबित हो सकते हैं। अगर उन्होने ऐसा नहीं किया तो उन्हें नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा गालियां पड़ेंगी क्योंकि राजस्थान सांप्रदायिक हिंसा के लिए नहीं जाना जाता। चितौड़गढ़ में फिलहाल कर्फ्यू लगा हुआ है और वहां के कलेकटर पुरूषोत्तम लाल अग्रवाल ने फोन पर बताया कि रबर की गोलियां चलाने और आंसू गैस छोड़ने के बावजूद हालात को सामान्य नहीं किया जा सका है।
जिन घायलों को अस्पताल ले जाया गया था उनपर हमला करने के लिए एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी जिस पर पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी। टोंक के पुलिस अधिक्षक गिरीराज मीणा ने कहा है कि होली के जूलुस जब मुस्लिम बस्तियों से निकले तो दोनों तरफ से पत्थर चले और कई लोग घायल हुए ,उधर गुजरात के बनासकांठा में हिंदु-मुस्लिम समुदाय में एक मजार के पास से जूलुस निकलने को लेकर तनाव पैदा हो गया था। थोड़ी ही देर में दोनों तरफ से लोग हथियार लेकर आ गए और हालात काबू से बाहर होने लगे। बनासकांठा पुलिक अधिाकरियों के अनुसार ज्यादात्तर हमलावरों की शिनाख्त कर ली गई है और वे राजस्थान के ही हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा राजे से फोन पर बात की और उनसे हालात सुधारने के लिए कहा। गुजरात सरकार के सूत्रों के अनुसार मोदी ने कहा कि जबतक हालात ठीक नहीं हो जाते तबतक राजस्थान की ओर से घुसनेवाले हर वयक्ति चाहे वह किसी भी धर्म का हो, गोली से उड़ा दिया जाएगा। लोकतंत्र की जंग जितने के बाद मोदी अब अपनी छवि सुधारना चाहते हैं।
महाराष्ट्र का एक करोड़पति गांव
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अमलनेर, महाराषट्र, 23मार्च-इस छोटे से गांव में फसल खराब हो जाने और कर्ज के कारण आत्महत्या करने पर उतारू एक परिवार में परिवार की गृहणी कपिला मजदूरी के लिए निकलने और घर में ताला लगाने के लिए समान एक कमरे में बंद कर रही थी। एक बक्से से कुछ पुराने कागज निकले जिन्हें वे फेकने जा रही थी उनके पति अरविन्द ने ये कागज गांव के स्कूल के अध्यापक को दिखाने का फैसला किया।
अब कपिला का परिवार सारे कर्जे चुका कर 16 लाख रूपये का मालिक है और खेती के लिए ट्रैक्टर खरीदने की तैयारी कर रहा है। और तो और उनके घर में एक एयरकंडीशनर भी लग गया है। इन कागजों से हुई कमाई लगातार जारी रहने वाली है क्योंकि ये देश की सबसे बड़ी साफ्टवेयर कंपनी विप्रो के एकदम शुरूआती दिनों के शेयर सर्टिफिकेटस हैं। विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी ने इसे विश्वव्यापी संस्था तो बाद में बनाया लेकिन उनके पिता जी ने 1947 में जो 17 हजार शेयर बेचकर विप्रो की शुरूआत की थी उनमें से हर शेयर का दाम अब एक लाख रुपये हो गया है इसके अलावा हर तीन साल पर एक बोनस शेयर भी जुड़ता गया है।
जिन गांव वालों को प्रेमजी सीनियर ने ये सर्टिफिकेट खुद एक पुरानी कार में आकर बेचे थे उनमें से बहुत कम लोग जीवित बचे हैं और अंदाजा भी नहीं है कि शेयर बाजार चलता कैसे है। इसीलिए इन गांव वालों को पता ही नहीं था कि वे लाखों रुपये के खजाने पर बैठे हैं। एक बार जब खुलासा हुआ और कपिला की तरह बाकी लोगों ने भी इन कागजों के साथ विप्रो के कार्यलय में संपर्क किया तो पता चला कि हर परिवार दस लेकर 25 लाख रुपये का मालिक है और यह कमाई सिर्फ लाभांश के भुगतान की है। अगर ये शेयर आज बेचे जाएं तो गरीबी कि सीमारेखा पर मौजूद इस गांव को हर परिवार करोड़पति हो जाएगा।
विप्रो के मुखिया अजीम प्रेमजी को उनके प्रबंधकों ने जब इस गांव की कहानी बताई तो बहुत दिनों से उलझी हुई गुत्थी सुलझ कर सामने आई। अजीम प्रेमजी ने बताया कि हर साल उनके आडिटर उनसे पुछते थे कि लगभग आठ हजार शेयरों पर लगातार पैसा जमा होता जा रहा है लेकिन पते पुरे नहीं होने के कारण यह पैसा इन शेयर धारकों के पास पहुंचाया नहीं जा रहा है। श्री प्रेमजी ने कहा कि गांव के जिन लोगों के शेयर्स का इस्तेमाल कंपनी ने किया है उन्हें ब्याज के तौर पर भी अतिरिक्त रकम दी जाएगी। इस घोषणा के बाद तो जिस गरीब गांव में लोग लड़कियां नहीं ब्याहना चाहते थे वहां जोर-शोर से रिश्ते आने लगे हैं।
अजीम प्रेमजी के पिता की ननिहाल इसी गांव में थी और इसलिए जब उन्होने अपना कारोबार शुरू करने के लिए गांव वालों से मदद मांगी तो जिसके पास जितना हो सकता था उतना दिया गया तब तो गांव के लोग अपनी गांव की बेटी के बेटे की मदद कर रहे थे लेकिन वे नहीं जानते थे कि अगली पीढ़ियों को इस मदद के बदले कितना बड़ा लाभ हासिल होगा। अबतक इस गांव के सबसे बड़े जमींदार और सबसे रईस मानेजाने वाले रसिक चौहान के पूवर्जो ने एक भी शेयर नहीं खरीदा था और वे आज गांव के सबसे गरीब आदमी है।
प्रभात, विवेक और चुनाव में खुली थैलियां
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नई दिल्ली, 23 मार्च-मध्य प्रदेश में राज्यसभा चुनावों को लेकर अच्छी खासी नौटंकी चल रही है। कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार विवेक तन्खा पर पैसे देकर वोट खरीदने का आरोप लगाने वाले भूतवपूर्व अपराधी विधायक किशोर शमरीते को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है और विवेक तन्खा दिल्ली में आकर बैठ गए हैं। उनकी ओर से उनका चुनाव अभियान मध्यप्रदेस कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी चला रहे हैं जिन्हें 24 साल राज्य सभा में रहने के बाद इस बार टिकट नहीं दिया गया।
दिल्ली में बसंत विहार की अपनी अभिजात कोठी में बैठे श्री तन्खा ने कहा कि उन्हें मालूम है कि वे जीत रहे हैं इसलिए वे किसी भी हाल में किसी आरोप का जवाब देना नहीं चाहते। उन्होने कहा कि किशोर समरीते पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं और वे इनमें से कुछ में उनके खिलाफ वकील हैं। समरीते अगर कानून की लड़ाई को चुनाव में लड़ना चाहते हैं और भारतीय जनता पार्टी उनका इस्तेमाल करना चाहती है तो ये उनके मुबारक हो। किशोर समरीते ने टीवी चैनलों के जरिए आरोप लगाया था कि उन्हें तीस लाख रुपये एक वोट के बदले देने का वायदा किया गया था और दस लाख रुपये अग्रीम किश्त के तौर पर हजार के नोटों की शक्ल में दिए गए थे। समरीते ने यह भी कहा कि जहां तक कानूनी मामलों का सवाल है वे जानते हैं कि अदालत उनके साथ न्याय करेगी।
मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों पर चुनाव हो रहा है और असली झमेला इस तीसरी सीट को लेकर है इसके लिए प्रदेश भाजपा के भूतपूर्व प्रवक्ता अब अखिल भारतीय सचिव प्रभात झा और देश के सबसे बड़े वकिलों में से एक और राज्य महाधिवक्ता रह चुके विवेक तन्खा के बीच मुकाबला है। कांग्रेस में बहुत लोग विवके तन्खा की उम्मीदवारी को पचा नहीं पा रहे हैं तो भाजपा में भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो प्रभात झा को पसंद नहीं करता। ग्वालियर से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले प्रभात झा भाजपा के सहयोगी दैनिक स्वदेश में पत्रकार भी रह चुके हैं लेकिन एक तो बाहरी यानी बिहारी होने के कारण उन्हें स्वीकार करने में दिक्कत आ रही है और दूसरे अपने मुखर स्वभाव के कारण श्री झा ने बहुत सारे दुश्मन बनाए हैं। उधर विवेक तन्खा भी जन्म से कश्मीरी हैं लेकिन मध्यप्रदेश में सब उन्हें जानते हैं। उनके ससुर कैप्टर अजय नारायण मिश्रा लंबे समय मध्यप्रदेस कांग्रेस के ताकतवर नेता रहे हैं। प्रभात झा को जीतने के लिए पांच अतिरिक्त वोट चाहिए जबकि श्री तन्खा को आठ वोटों की जरूरत है। इनमें से छह उन्हें समाजवादी पार्टी के विधायकों के वोट मिल गए हैं और तीन वांमदलों के। इसके अलावा यह भी पक्का माना जा रहा है कि चुकी विधानसभा चुनाव करीब है इसलिए भाजपा के कुछ विधायक ही अपनी दलगत निषठा को त्याग कर उन्हें वोट दे सकते हैं।
दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं की स्थिति को समझ पाना मुश्किल है। प्रदेश कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक अजुर्न सिंह तो दिल्ली छोड़कर राजस्थान के जोधपुर में जाकर बैठ गए हैं और कांग्रेस विधायकों में आधे से ज्यादा ऐसे हैं जो उनके ही आदेश का पालन करेंगे। श्री तन्खा ने उनका आर्शीवाद पाने के लिए समय मांगा है लेकिन कुंवर साहब शहर में ही नहीं हैं। श्री तन्खा के सबसे बड़े समर्थकों में से एक कमलनाथ संक्षिप्त विदेश यात्रा पर हैं और लौट भोपाल जाने वाले हैं। प्रदेश के भूतवपूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह खुलकर विवेक तन्खा का प्रचार कर रहे हैं। यह चुनाव एकदम फिल्मी कहानी के तर्ज पर चल रहा है।
चुनाव आयोग में महाभारत
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नई दिल्ली, 23मार्च-चुनाव आयोग में झगड़ा हो गया है। मध्य प्रदेश कैडर के बड़े अफिसर रहे एस वाई कुरैशी को छोड़कर बाकी दोनों आयुक्त चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को बेल्जियम सरकार का सम्मान लेने और वहां के संविधान को स्वीकार करने को लेकर नोटिस दिया जाए। नोटिस देने की राय रखने वाले नवीन चावला भी हैं जो इंदिरा गांधी परिवार के चपरासी की तह आचरण करते रहें हैं और आपात काल में ज्यादातर कांग्रेस और गैर कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी में उनकी मुख्य भूमिका थी।
नवीन चावला एनडीए सरकार में सूचना मंत्रालय के सचिव थे और अपने मंत्री रविशंकर प्रसाद से उनकी कभी नहीं बनी। यहां तक की तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दूरदर्शन के समाचार चैनल के प्रमुख के तौर पर काम करने के लिए जिस पत्रकार का नाम दिया था और मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी उसपर मुहर लगा दी थी, नवीन चावला ने तकनीकि मुद्दे निकाल कर इस नियुक्ति में इतनी देर की कि पत्रकार ने ही इंकार कर दिया। नवीन चावला चुनाव आयुक्त के तौर पर अब कर्नाटक चुनाव को टलना चाहते हैं और इसे लेकर भी चुनाव आयुक्तों में झगड़ा मचा हुआ है। नवीन चावला ने तो परिसीमन से लेकर चुनाव अधिनियम की धारा 24 तक का हवाला देते हुए कर्नाटक में नियत 29 मई को चुनाव टालने की हर संभव कोशिश की। इस बार श्री कुरैशी भी उनसे समहत थे लेकिन आयोग कानूनी सलाह देने वाले विशेषज्ञों ने इसे आप्रत्याशित और आलोचित बताया। कांग्रेस का कहना है कि कर्नाटक में 58 लाख फर्जी वोटर हैं और 20 लाक मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए हैं। इसलिए जबतक मतदाता सूचियों की ठीक से समीक्षा न हो जाए तबतक कांग्रेस वहां किसी भी किस्म की राजनीतिक गतिविधि नहीं चाहती। भले ही इसके लिए चुनाव टाल कर वहां राषट्रपति शासन कुछ समय के लिए और बढाना पड़े। नवीन चावला लगातार अपनी पूरानी वफादारी निभा रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग के नियमों और शर्तो में किसी भी किस्म की वफादारी और पक्षपात के लिए कोई जगह नहीं होती।
श्री कुरैशी ने जीवन में पहली बार अपने बंगले 10 अकबर रोड़ पर होली मिलन का आयोजन किया और बिरहा तथा कजरी संगीत का इंतजाम भी किया। वहां मौजूद अतिथियों में से सबसे महत्वपूर्ण सीबीआई के निदेशक विजयशंकर थे। जिन्हें कांग्रेस के खिलाफ लगे आरोपों खासतौर पर इराक से दलाली वसूलने के मुद्दे की जांच करनी है। श्री विजयशंकर संगीत के बीच इस मामले और राजवी गांधी हत्याकांड जांच से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात कर रहे थे कि श्री कुरैशी हाथ पकड़कर इस संवाददाता को खींच ले गए और हाथ में गोलगप्पे का दोना पकड़ा दिया। इस संक्षिप्त आहार व्यवधान के बाद लौट कर पाया कि श्री विजयशंकर जा चुके थे। वाफादारी दिखाने के अपने-अपने हर रंग होते है।
पाक अफसर ने खोली भारत की पोल
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नई दिल्ली, 23 मार्च- 1971 के भारत-पाक युध्द में लोंगेवाला की लड़ाई को लेकर भारतीय वायुसेना और थलसेना के बीच जो टकराव चल रहा है उसे पाकिस्तान के एक जनरल ने हवा दे दी है।
उस समय ब्रिगेडियर रहे इस अधिकारी जाहिर आलम खान ने दो टूक शब्दों में कहा है कि अगर भारतीय वायुसेना नहीं आती या पाकिस्तान वायुसेना के जहाज समय पर आ जाते तो इस लड़ाई का नतीजा कुछ और ही होता। जाहिर आलम अपनी जल्दी ही प्रकाशित होने वाली खिताब में और भी कई भेद खोले हैं। उन्होने लिखा है कि भारत के उत्तर-पूर्व के मिजो आतंकवादियों को पाकिस्तान सेना ने मिजो ललदेंगा के कहने पर मदद की थी। बाद में राजीव गांधी और ललदेंगा के बीच समझौता होने के बाद वे मिजोरम के मुख्यमंत्री भी बने थे। जाहिर आलम ने यह भी कहा जुल्फिकार अली भूट्टो ने सैनिक शासक याहिया खान का तख्ता पलटने की जबरदस्त कोशिश की थी और इससे घबरा कर याहिया खान ने सत्ता भूट्टो को सौंप दी थी। कहा जाता है कि सैनिक इस अपमान का ही बदला जनरल जियाउल हक ने भूट्टो को फांसी पर चढ़ा कर लिया था।
बांग्लादेश के नायक शेख मुजीबल रहमान को खुद गिरफ्तार करने वाले जाहिर आलम ने बहुत सारे सनसनीखेज खुलासे किए हैं। श्री खान खुद प्रशिक्षित कमांडों हैं और लोंगेवाला में वे ही पाकिस्तानी सेना का नेतृत्व कर रहे थे। राजस्थान सीमा पर तनोट क्षेत्र से पाकिस्तान सेना घूंसी थी और रामगढ़ तथा भोटुरू कस्बो पर कब्जा करने के बाद पाक सेना को जैसलमेर पर कब्जा करना था। जाहिर आलम का आज भी दावा है कि भारतीय वायुसेना ने आकर सारे पाकिस्तानी टैंक उड़ा दिए और कई बार बुलाने पर भी पाक वायुसेना के जहाज नहीं आ पाए। उन्होने ये भी कहा है कि हमारे पास विमानभेदी मिसाइलें थी लेकिन वे रेत में जाम हो गई थीं और काम नहीं कर रहीं थीं।
मिजो आतंकवादियों को मदद करने के बारे में खुलासा पहलीबार हुआ है कि असम सीमा के पास से पाकिस्तान मिजो बागियों को लगातार हर तरह की मदद कर रहा था। उस समय ललदेंगा अपने आप को मिजोरम का राषट्रपति कहते थे और उन्होन अपने तथा कथित विदेशमंत्री को पाकिस्तान के साथ संपर्क के लिए इस्तेमाल किया था। इरादा यह था कि इन मिजो बागियों की मदद लेकर बांग्लादेश के चटगांव इलाके से भारतीय सैनिकों को भगाया जा सके।
कर्नाटक में अकेले जूझेगी भाजपा
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नई दिल्ली, 23 मार्च-कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। इसी तर्ज पर भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक में जनता दला(एस) की बेवफाई से सबक लेते हुए इस बार वहां के विधान सभा के चुनावी समर में अपनी दम पर उतरने का फैसला किया है। हालांकि पार्टी राज्य के चुनावी समीकरणों के बिगड़ने पर गंठबंधन से भी गुरेज नहीं करने वाली है।
कर्नाटक में मई में चुनाव होना तय हुआ है। नए परिसीमन के आधार पर होने वाले इस चुनाव में भाजपा अकेले उतरेगी पर नजरें पांच साल के लिए किसी हमसफर पर भी होगी। राज्य के चुनावी समीकरणों से एक बात तो पक्की है कि मैदान में तीन ही पार्टी जद(एस), कांग्रेस और स्वंय भाजपा होगी और ऐसा हो
सकता है कि भाजपा फिर उसी बेवफा से वफा की उम्मीद भी रखे। इस बाबत राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा हाल ही में दिल्ली आए भी थे। हालांकि भाजपा के अनुसरा यह एकला चलो का नारा अंतिम फैसला न होकर चुनावी तिथियों के घोषणा के बाद तय होगा। चुनाव आयोग की हुई बैठक के बाद यह साफ हो गया है कि राज्य में 28 मई से पहले चुनाव करा लिए जाएंगे। पार्टी के इस फैसले पर कल कर्नाटक प्रभारी अरूण जेटली के साथ येदियुरप्पा और राज्य के भाजपा अध्यक्ष सदानंद गौडा के बीच गुफ्तगू हुई। इसमें यह तय किया गया कि पार्टी राज्य में अकेले दम पर चुनाव लडेगी।
सूत्रों के अनुसार अरुण जेटली के जरिए शीर्ष नेतृत्व ने इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। रणनीति के उस्ताद अरुण जेटली ने हालांकि, चुनाव बाद गठजोड़ का विकल्प खुला रखा है। ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि जेडीएस के सदस्य चुनाव भले अपनी पार्टी के बैनर तले लडें लेकिन, चुनाव बाद वह बहुमत के करीबी दल के पक्ष में जा सकते हैं। वैसे भाजपा नेता यह मानकर चल रहे हैं कि चुनाव की तारीख घोषित होने के साथ ही जेडीएस के कुछ सदस्य भाजपा के करीब आ सकते हैं।
पर्दे के हीरो मैदान में जीरो
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नई दिल्ली, 23 मार्च-चुनावी मौसम में रूपहले पर्दे के तेवरों के साथ बॉलीवुड की ग्लैमरस दुनिया के फिल्मी सितारे जब चुनावी सभा में पहुंचते है तो उस मंच पर ऐसे डायलाग बोलते है कि जनता को लगता है कि आ गया उनका असली रहनुमा पर उन्हें यह नहीं पता कि रुपहले पर्दे के ये डायलाग बोलने वाले सपनों के सौदागर उनके विचारों का सौदा कर रफूचक्कर हो जाएंगे। यानी जो दिखता है वो है नहीं जो है वो दिखता नहींवाली बात है।
जनता जब अपना नेता चुनती है तो हकीकत से ज्यादा भावनाओं में बह कर अपना फैसला करती है और भावनाओं पर राज करने वाले सीने जगत के सितारे तो माहिर हैं अपने इसी हुनर का फायदा वो भाड़े पर या फिर किसी पार्टी के टिकट पर कैश करते हैं। आज फिल्मी संसद में फिल्मी सीतरों की फेहरिस्त काफी लंबी हैं जो सिलवर स्क्रीन से लोकतंत्र के दिल संसद भवन तक सफर अपने फिल्मी जुबान के भरोसे पहुंच जाते हैं। सांसद विनोद खन्ना, धमर्ेंद्र और गोविंदा का नाम उन लोगाें की फेहरिस्त में शामिल है, जो बजट सत्र के अहम तीन दिन गैरहाजिर रहे। वे संसद का रास्ता भूल कैमरे के सामने अपनों और उनके रिश्ते की दुहाई दे कर जनता का सिना छल्ली करते रहे। उनके संमोहित करने वाले डायलाग से जनता यह भूल जाती है कि इन्हें संसद में आखिरी बार कब देखा था।
वाजपेयी के कुटुंब में निकले हत्यारे
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आगरा, 23मार्च-भारत में उदारवाद के प्रतीक माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उलट उनके दो नाती हत्या के प्रयास तथा दलित उत्पीड़न के मामले में फंस गए हैं। उनके खिलाफ दलित के साथ मारपीट करने के आरोप में एससीएसटी एक्ट और जानलेवा हमला करने का मामला दर्ज किय है।
पूर्व प्रधानमंत्री पूरे देश में जाति-धर्म के दिवार को तोड़ने के लिए जनता को समझाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी वह अपने नातियों पर दलितों पर अत्याचार का आरोप लगा। रिपोर्ट में विवाद आटो ख़डा करने को लेकर हुआ। आरोपियों का कहना है कि विवाद जमीन को लेकर है। इसी के चलते शिकायतकर्ता ने उनके घर पर अपने साथियों के साथ आकर हंगामा किया और लूटपाट की। इस संबंध में देर शाम उन्हाेंने भी लिखित शिकायत पुलिस को दे दी। भाजपा ने वाजपेयी के नातियाें के खिलाफ दर्ज मुकदमे को पूरी तरह फर्जी करार दिया और उसे तत्काल खारिज करने की मांग की है। एसएसपी ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी की बहन निर्मला दीक्षित अपने परिवार के साथ अलकापुरी इलाके में रहती हैं। उनके पुत्र अनिल दीक्षित के तीन बेटे पुनीत, अक्षय और पराग हैं। शुवार को गढी भदौरिया निवासी भानसिंह सोन ने थाना जगदीशपुरा को दी लिखित शिकायत में कहा कि वह गुरुवार रात अपने भाई के साथ फीरोजाबाद से लौटा था। बिजलीघर से दोनाें आटो में घर आ रहे थे। उन्हाेंने आटो को पुनीत दीक्षित के दरवाजे के सामने ख़डा कर दिया था। बस इसी बात पर पुनीत घर से निकल कर आया और अभद्रता करने लगा। जब उन्हाेंने विरोध किया तो पुनीत के भाई अक्षय और पराग निकल आए। आरोप है कि अक्षय और पराग ने भान सिंह और उसके भाई के साथ मारपीट व गाली गलौज शुरू कर दी। इसके बाद पराग घर से चाकू निकाल लाया और जान से मारने की धमकी देते हुए वार किया, जिससे भान सिंह घायल हो गया। इसी बीच शोर-शराबा सुनकर बस्ती के लोग आ गए और उन्हें बचाया।
शिकायतकर्ता के कहने मात्र पर पुलिस ने बिना जांच किए अटल बिहारी वाजपेयी के नातियाें के खिलाफ हत्या के प्रयास और दलित उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कर लिया, जबकि मामले में नामजद अक्षय और पराग का कहना है कि विवाद जमीन का है। गुरुवार की रात भान सिंह ने अपने 15-20 साथियाें के साथ उनके घर पर हमला बोला दिया। विरोध करने पर मारपीट और लूटपाट की। पराग का कहना है कि भान सिंह और उनके साथी 20 हजार रुपए और जेवरात लूट ले गए। उन्हाेंने बताया कि घटना के संबंध में शुवार सुबह उन्हाेंने लिखित रूप से शिकायत की थी, लेकिन देर शाम पुलिस ने दबाव के चलते उसे रिसीव किया।
देहरादून जेल में आनंद ही आनंद
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देहरादून, 23मार्च-राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष गीता ठाकुर का जिला कारागार में हुआ आकस्मिक निरीक्षण कैदियों के लिए होली की सौगात लेकर आया। उनके साथ आए महानिरीक्षक (जेल) भास्करानंद जोशी ने गीता की तरफ से ध्यान खींचे जाने पर सभी वार्डों में टेलीविजन लगाने और एक महिला कैदी के परिवार को संदेश भेज कर मिलने आने के लिए कहा।
ठाकुर तथा जोशी एक साथ दोपहर सुद््धोंवाला के आदर्श जेल पहुंचे। आयोग की उपाध्यक्ष महिला बैरक में पहुंचीं। उन्होंने वहां उनके रहने के स्थान, रसोई और आसपास का जायजा लिया। महिला कैदियों की तादाद 15 थीं। उनसे पूछा गया कि किसी प्रकार की नाजायज परेशानी तो उन्हें नहीं हो रही। किसी ने भी उनसे शिकायत नहीं की। सिर्फ, यह मांग रखी गई कि उन्हें टेलीविजन नहीं दिया गया है। यह मिल जाए तो उनका वक्त कट जाएगा।
ठाकुर ने इस पर महानिरीक्षक (जेल) जोशी से इस बाबत कदम उठाने को कहा। उन्होंने सभी वार्डों में टेलीविजन लगाने के निर्देश प्रभारी जेलर को दिए। एक महिला कैदी मोनिका ने पूछे जाने पर ठाकुर से कहा कि उनके घर से उन्हें मिलने कोई नहीं आता है। इस पर आयोग की उपाध्यक्ष ने लुधियाना की इस महिला कैदी के परिवार वालों के घर तुरंत संदेश भेज कर मिलने के लिए आने को कहा।
उन्होंने जेल में महिला कैदियों की स्थिति पर संतोष जताया लेकिन उन्हें प्रशिक्षित कर उनके हाथों से बनाई गई वस्तुओं को बेचने और उनकी प्रदर्शनी लगाने की व्यवस्था करने की जरुरत भी जेल प्रशासन से जताई। उन्होंने जेल में उत्तराखंड की एक भी महिला कैदी के न होने को राज्य की महिलाओं के शरीफ और स%चे होने का सुबूत करार दिया।
हिन्दुस्तानी मां का पाकिस्तानी बेटा
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चंडीगढ, 23 मार्च-20 साल पहले सीमा पार कर गया बेटा वापस लौट आया है तो अमीना उससे नहीं मिल सकती। बेटे अहमद के पास पाकिस्तानी नागरिकता है और अमीना गुजरात की निवासी हैं।
पुलिस की दलील है कि किसी विदेशी नागरिक से मिलने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अमीना ने अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अमीना ने याचिका दायर कर बेटे से मिलने की अनुमति दिए जाने का आग्रह किया है। याचिका पर 25 मार्च के लिए सेंट्रल जेल अमृतसर के सुपरिटेंडेंट को नोटिस जारी किया गया है।अमीना की तरफ से याचिका में कहा गया है कि उसका बेटा अहमद 20 साल पहले क%छ के रास्ते सीमा पार कर गया था।
वहां जाकर उसने सीमा नामक लडकी से शादी कर ली और पाकिस्तान की नागरिकता हासिल कर कराची में रहने लग गया। कुछ समय पहले ही उसके पिता का देहांत हो गया और गरीबी रेखा से नीचे होने के कारण गुजरात सरकार की तरफ से परिवार के गुजर बसर के लिए हर्जाना भी दिया गया। इस बात की जानकारी मिलने पर अहमद अपनी मां से मिलने समझौता एक्सप्रेस के जरिए भारत आया तो बीएसएफ ने उसे पत्नी समेत गिरफ्तार कर लिया।
अधिकारियाें का कहना है कि उसके पास वीजा संबंधी पूरे दस्तावेज नहीं हैं। ऐसे में वह अवैध ढंग से भारत आया है। इस मामले में अहमद और उसकी पत्नी को एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। दोनों इस समय अमृतसर सेंट्रल जेल में हैं। अमीना ने कई बार जेल में बेटे से मिलने का प्रयास किया लेकिन जेल अथारिटी ने उसे मिलने की इजाजत नहीं दी। अमीना ने इस संबंध में अब हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मुलाकात की इजाजत मांगी है।
शेर सिंह के खजानों से निकली अपार दौलत
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शिमला, 23मार्च-स्टेट विजिलेंस एंड एंटी करप्शन-ने पूर्व स्टेट ड्रग कंट्रोल शेर सिंह के पिंजौर-और चंडीगढ-के ठिकानाें से विभिन्न बैंकाें की 14-एफडी-बरामद की है। इसके साथ ही कुछ गाड़ियाें की नंबर प्लेट भी जांच के दौरान मिली हैं। अंदेशा जताया जा रहा है कि आरोपी की आकूत संपत्ति में गाड़ियाें की संख्या बढ सकती हैं।
शुवार सुबह विजिलेंस टीम ने एक बार फिर से इन ठिकानाें को खंगाल कर वापस लौट आई। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (विजिलेंस) आईडी-भंडारी ने कहा कि मामले की जांच चल रही है इस बारे में अभी ज्यादा कुछ कहा नहीं जा सकता।रिश्वत लेने के आरोप में फंसे शेर सिंह के खिलाफ सतर्कता विभाग में आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला भी दर्ज है। राज्य सरकार की अनुमति के बाद स्टेट विजिलेंस ने प्रीवेंशन-ऑफ करप्शन-एक्ट की धारा 13डी-के तहत दर्ज हुआ है।
सूत्र बताते हैं कि अब तक की जांच में आरोपी की सोलन, शिमला, ऊना, मंडी सहित पंजाब के मोहाली आदि में करोड़ाें की संपत्ति है। अब तक की जांच में विजिलेंस ने करीब साढे चार करोड़ की संपत्ति का पता लगाया है। इससे पूर्व ड्रग कंट्रोलर-के खिलाफ सोलन में पौने पांच लाख रुपये की घूस लेने का मामला दर्ज है। तफ्तीश के दौरान आरोपी की आय से अधिक संपत्ति होने के साक्ष्य जांच टीम को मिले।
संपत्ति के ब्यौरे की रिपोर्ट एसपी विजिलेंस आनंद प्रताप सिंह ने तैयार की। विजिलेंस द्वारा राज्य सरकार के समक्ष वास्तविक स्थिति रखने के बाद आरोपी पर मामला दर्ज किया गया। सोलन में दर्ज घूसखोरी के मामले में शेर सिंह के कुछ सहयोगियाें का पता जांच टीम ने लगाया है। इनकी संख्या आधा दर्जन से अधिक है। इनसे विजिलेंस एक बार पूछताछ कर चुकी है। इनमें से कुछ सहयोगियाें के खिलाफ भी विजिलेंस मामला दर्ज करने की तैयारी कर रही है।
जांच टीम अब तक शेर सिंह के सोलन आवास से करीब 15-लाख रुपये नगद, नौ लाख रुपये के इलेक्ट्रानिक उपकरण, विदेशी महंगी शराब ,-11 किलो चांदी, शिमला ,मोहाली, ऊना, मंडी, पंचकूला-में करोड़ाें की अचल संपत्ति के दस्तावेज, पांच लाख की एफडी-के कागजात, विभिन्न बैंकाें की पासबुक सहित कई अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद कर चुके हैं।
जलती चिता से उठाई गई लाश
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पवई (आजमग़ढ), 23मार्च-तीन बच्चाें की मां को ससुरालीजनाें ने जहर देकर मार डाला। मायके वालाें की सूचना पर शुवार की अल सुबह पुलिस ने मझुई नदी के किनारे जल रही चिता को बुझाकर 60 फीसदी तक झुलस चुकी लाश को कब्जे में लिया।
पवई थाना क्षेत्र के महमदपुर गांव में हुई इस घटना में पुलिस ने ससुरालीजनाें के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज किया है। इस मामले में पति को गिरफ्तार किया गया है और अन्य परिजनों को हिरासत में लेकर पूछताछ चल रही है। मृतका शकुंतला देवी (35) महमदपुर गांव निवासी अंगद सिंह की पत्नी थी। उसका मायका सुल्तानपुर के अखंड नगर थाना क्षेत्र के भिऊरा गांव में था। शकुंतला की शादी 14 साल पूर्व हुई थी।
उसने ससुराल में तीन बच्चाें को जन्म दिया। पति के घर पर रहने के चलते उसका परिवार आर्थिक समस्याआें से जूझ रहा था। आए दिन नोकझाेंक और मारपीट होती रहती थी। ससुरालियों के अनुसार पांच दिन पूर्व शकुंतला ने विषाक्त पदार्थ का सेवन कर लिया था। उपचार के दौरान अंबेडकर नगर में उसकी गुरुवार की रात मौत हो गई। शुवार की अलसुबह ससुरालीजन उसका शव लेकर मझुई नदी के किनारे पहुंचे और चिता पर रखकर फूंकने लगे।
इसकी सूचना मायके वालाें को नहीं दी गई थी। इसी बीच किसी दूसरे से जानकारी पाकर पवई थाने पहुंचे मायके वालाें ने बेटी की हत्या कर शव को जलाने का आरोप लगाया। इस पर मौके पर पहुंची पुलिस ने जलती चिता को बुझाकर शव को कब्जे में ले लिया। ससुरालीजनाें को भी हिरासत में ले लिया। लाश 60 फीसदी तक जल चुकी थी। थानाध्यक्ष टीबी सिंह ने कहा कि हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। साथ ही पति को गिरफ्तार कर अन्य परिजनों से पूछताछ चल रही है। उधर ससुराल पक्ष के लोगाें ने पुलिस को बताया कि घर में अनबन के बाद शकुंतला ने खुद जहर निगल लिया था।
आजमगढ़ में लोकदल उम्मीदवार आतंकवादी
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आजमगढ, 23 मार्च-कचहरियाें में सीरियल बलास्ट के आरोपी हकीम मोहम्मद तारिक कासमी को संसदीय उपचुनाव में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद अरशद खां ने कोट चौराहा स्थित पार्टी कार्यालय पर यह घोषणा की।
इस घोषणा के बाद तारिक समर्थक उसके निर्दोष होने की बात कहकर उसके बचाव के लिए उसके पक्ष में मुसलमानाें को लामबंद होकर वोट मांगने में जुट गए हैं।श्री खां ने कहा कि आजमग़ढ संसदीय उपचुनाव में जनता की अदालत में हकीम तारिक को फर्जी तरीके से आतंकी बनाने का पक्ष रखा जाएगा। उन्हाेंने कहा कि देश में किसी भी मुसलमान को पकडकर आतंकवादी बनाने की गलत परंपरा शुरू हो गई है।
यदि किसी मुसलमान को शक के आधार पर भी आरोपी बना दिया जाता है, उसे तब तक जेल में रखा जाता है, जब तक कि वह खुद अपनी बेगुनाही साबित न कर दे। श्री खां ने कहा कि मुलाकात के दौरान हकीम तारिक को 12 दिसंबर को उठाए जाने के बाद उसे जबरदस्ती शराब पिलाकर मनमर्जी बयान लिया गया। बैटरी आदि पर फिंगर प्रिंट लिए गए। आज भी एसटीएफ के जवान और जेल अधीक्षक उसे प्रतिदिन प्रताड़ित करते हैं। श्री खां ने कहा कि एक आलिम-ए-दीन को जबरदस्ती शराब पिलाना मुसलमानाें की धार्मिक भावनाओं पर चोट है।
उन्हाेंने कहा कि तारिक कासमी को दिगी की लोकसभा में भेजकर आजमग़ढ की जनता एसटीएफ को करारा जवाब देगी। श्री खां ने कहा कि हकीम तारिक और खालिद मुजाहिद मामले में उनकी पार्टी को राजनीति करने का शौक नहीं है, क्याेंकि न्याय की यह लडाई हम अब तक जनता की अदालत में ही लडते रहे हैं। इसलिए हकीम मोहम्मद तारिक के अनुरोध पर पार्टी ने उन्हें आजमग़ढ लोकसभा उपचुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए उनका मुकदमा जनता के अदालत में पेश करेगी। इस दौरान अमित यादव पहलवान, छोटेलाल कन्नौजिया, महताब फरीद, फिरोज अख्तर ने सपा छोड़कर नेलोपा की सदस्यता ग्रहण की।
सरकार को सीमाओं की कितनी चिंता है?
जगमोहन सिंह राजपूत
जब 1962 में चीन ने भारत पर आमण किया था, तब इस देश का नेतृत्व आश्चर्यचकित रह गया था। वह हिंदी-चीनी भाई-भाई का दौर था। अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर भारत आत्ममुग्ध था। स्वतंत्र भारत में कश्मीर पर कबाइलियाें को आगे कर पाकिस्तान ने जो हमला किया था, उसे हमारी सेना ने विफल कर दिया था। लेकिन राजनीतिक निर्णयाें के कारण आज भी भारत के एक भूभाग पर पाकिस्तान का कब्जा है। चीन ने भी भारत की काफी जमीन पर अधिकार जमा रखा है। चीनी आमण ने विदेशी खतराें के रूप में भारत को पहली बार झकझोर दिया था। सत्तासीन नेतृत्व रूस और चीन के साम्यवाद व वामपंथ से प्रभावित था और विपरीत विचाराें की सुनना भी नहीं चाहता था। परिणामस्वरूप देश को इतना बडा घाटा सहना पडा। आज पाकिस्तान से शांति वार्ता भी जारी है और आईएसआई की भारत-विरोधी गतिविधियां भी चल रही हैं। प्रधानमंत्री की सफल चीन यात्रा के बाद बीजिंग मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर विरोध जताता है और हमारी सरकार अत्यंत विनम्र तथा लचर ढंग से उसे अस्वीकार करती है।
वर्ष 1962 के चीनी हमले के समय सारा देश एक साथ उठ ख़डा हुआ था। उस हमले से देश को सबक मिला। हमारी सैनिक तैयारियां बढीं। उसी के कारण वर्ष 1965, 1971 और 1999 में हमें सामरिक सफलताएं मिलीं। वर्ष 1962 में भारत की विविधता में एकता का दर्शन सभी को हुआ था। साहस, शौर्य तथा वीरता की कहानियां हर तरफ फैलीं। तब देश का नेतृत्व उन लोगाें के हाथ में था, जिनका व्यक्तित्व स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि में निखरा था। आज देश के पास अनुभव तो है, पर उसका उपयोग कर संकीर्णताआें से ऊपर उठकर निर्णय लेने का साहस रखने वाला नेतृत्व नहीं है। जबकि किसी भी बाहरी आमण या घुसपैठ को नजर अंदाज करना घातक ही सिध्द होता है। बांग्लादेशी घुसपैठिये हमारे यहां बहुत बडी संख्या में हैं
लेकिन उनके बारे में कोई सुचिंतित राजनीति नहीं है। घुसपैठ की समस्या को आधार बनाकर असम में असम गण परिषद सत्ता में आई थी, लेकिन आज वह पार्टी हाशिये पर है। उल्फा के कैंप उस बांग्लादेश में अब भी पनाह लिए हुए हैं, जो आतंकवाद और कट््टरवाद का नया ग़ढ बनता जा रहा है। भारत के जन-जन को इन खतरों के प्रति आगाह करना आवश्यक है। किसी राष्ट्र की बाह्य सुरक्षा तभी संभव है, जब उसकी आंतरिक एकजुटता की दृढ़ता से बाहरी विश्व भली भांति परिचित हो। पिछले कुछ वर्षों से सामाजिक तथा धार्मिक एकजुटता में जो दरारें बढ रही हैं, वर्तमान राजनीति उन्हें पाटने का नहीं, बल्कि बढाने का सुनियोजित प्रयास कर रही है। जाति और धर्म आधारित राजनीति से सभी परिचित हैं। अल्पसंख्यकाें की राजनीति सदाशयता से प्रेरित होकर नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थवश की जा रही है। अल्पसंख्यक समुदाय को केवल वायदे मिलते हैं, स%चर कमेटी जैसे प्रतिवेदन चर्चा में आते हैं, घोषणाएं होती हैं और स्थिति जस की तस बनी रहती है।
व्यावहारिक रूप में आपसी भाईचारे, परस्पर विश्वास तथा समझ आशंका व अविश्वास का रूप ले लेते हैं। आम नागरिक इससे चिंतित होता है। दिन-प्रतिदिन के सामान्य जीवन पर इसका प्रभाव पडता है और कहीं न कहीं यह आंतरिक सुरक्षा तथा सामाजिक समरसता को प्रभावित करता है। कुछ महीने पहले एकाएक एक दिन के लिए कोलकाता किसके अधिकार में चला गया था? कुछ अनजान लोग सारे शहर को बंधक बना लें और सरकार के हाथ-पांव फूल जाएं, सेना बुलाने की नौबत आ जाए, तो व्यवस्था में निश्चित रूप से कहीं न कहीं असमर्थता व असहायता घर कर गई है। जिस प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर भारत को गर्व है, उसे कमजोर करने के प्रयासाें की जानकारी प्राप्त करना तथा उसे सुधारने के लिये जनमत को तैयार करने का काम अब प्रबुध्द नागरिकाें को ही स्वत: संभालना पडेगा। ऐसा न होने पर यह देश छोटी-छोटी उलझनाें में अपनी ऊर्जा और संसाधन गंवाता रहेगा। राजनेता अपनी रोटी अलग-अलग सेंकते रहेंगे। इसका खामियाजा तो आम नागरिक को ही भुगतना पडेगा। पिछले दिनों मुंबई में जो कुछ घटा, उसने भाषा और क्षेत्र के आधार पर भावनाएं भडकाकर कुत्सित राजनीति का एक और उदाहरण पेश किया।
सवाल यह है कि आजादी के साठ साल पूरे कर चुकने के बाद क्या किसी को भी इस प्रकार राष्ट्रीय एकता की ज़डों में विष घोलने की आजादी मिलनी चाहिए? पश्चिम बंगाल में भी हाल ही में इस तरह का एक मामला सामने आया, जिसमें एक मंत्री ने मारवाड़ियों की क्षमता, कर्मठता तथा कौशल को सिरे से नकारते हुए उन पर बेईमानी से आगे बढने का आरोप लगा दिया। कुछ महीने पहले असम में एक आदिवासी महिला को शर्मनाक ढंग से सैकडों लोगाें के सामने जलील किया गया, आदिवासी युवकाें को बेरहमी से पीटा गया। अपने देश में अपने लोगाें द्वारा अपनाें पर ऐसा अन्याय न होने देने के लिए सारे देश को सोचना होगा, केवल राजनेताआें के भरोसे रहने का समय निकल चुका है। उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा में जो दस हजार से अधिक लोग मुंबई से लौट गए हैं, उनके रोजगार और उनके ब%चों की शिक्षा का क्या होगा? भाषण देकर स्थितियां बिगाडने वाले तो उसी ढंग से भाषण देते रहेंगे, विकास तथा प्रगति की बातें करते रहेंगे। जम्मू-कश्मीर के लाखाें लोग आज अपने ही देश में शरणार्थी शिविराें में रह रहे हैं। हमारी असमर्थता बढ गई है या संवेदनशीलता घट गई है कि उनकी मदद करने और उन्हें फिर उन्हें अपनी ज़डों से जोड़ने के लिए कुछ भी नहीं हो पा रहा? कुछ दिन पहले लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि राजनेताआें में अहंकार तथा हठवादिता बढ गई है। मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा इसका सुबूत है। ऐसे उदाहरण हर तरफ मिल जाते हैं।
जैसी कि अपेक्षा थी, आडवाणी के राजनीतिक विरोधियाें ने तत्काल उनकी उस टिप्पणी का विरोध किया। काश वे राजनीति में संवाद की महत्ता को समझते और सच को स्वीकार करने की क्षमता रखते। वरिष्ठ राजनीतिज्ञ आडवाणी का यह कथन विशेष रूप से उभरते हुए उस हर राजनेता के लिए सोचने और सीखने का अवसर दे सकता है, जो संवाद की राजनीति की शक्ति को समझ सकता हो। स्थिति इतनी विद्वेषपूर्ण है कि यदि कोई आडवाणी की इस उक्ति को सही कहे, तो हमारे देश के सेक्यूलर उसे तत्काल कम्युनल घोषित कर देंगे। राष्ट्रहित में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना आवश्यक है। देश की जनता की शक्ति का अंदाजा लगाने के लिए राजनीतिक दलाें को इंदिरा गांधी के सत्ता से हटने, जनता दल के बनने तथा विघटित होने और इंदिरा गांधी की वापसी को पूरे परिदृश्य में समझने वाले दल ही आगे अपना अस्तित्व कायम रख सकेंगे। शेष दल कब कहां बिखर जाएं, यह कोई नहीं कह सकता। शब्दार्थ
(लेखक एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक हैं)
2 comments:
आलोक जी, आप रायपुर आ के निकल भी लिए!!
खैर!! शायद फिर कभी हो मुलाकात!!
एक ही पोस्ट मे इतनी सारी खबरें न डालें प्लीज़!!
बाप रे!!! इतना लम्बा पोस्ट.. हर टापिक अपने में एक पोस्ट है भाई.. वैसे सही कहूं तो आधे से अधिक टापिक अच्छे लगे.. :)
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