आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Sunday, March 30, 2008

DATELINE INDIA NEWS, 25 MARCH 2008


एक बाल-सुलभ प्रधानमंत्री
आलोक तोमर
नई दिल्ली, 30 मार्च- राहुल गांधी को बिना मांगे मिला यह प्रमाण पत्र इतना अटपटा और हास्यास्पद है कि उस पर सिर्फ अवाक हुआ जा सकता है। बाकि सब तो छोड़िये, अस्सी साल के होने जा रहे कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह ने अब ऐलान कर दिया है कि राहुल गांधी ही देश में प्रधानमंत्री बनने लायक सबसे योग्य पात्र हैं।
अर्जुन सिंह ने अपना यह बयान भोपाल में दिया जहां हाल ही में राज्य सभा चुनाव में उनकी पार्टी का सफाया हो गया है। मनमोहन सिंह से अर्जुन सिंह के रिश्ते बहुत मधुर नहीं है लेकिन किसी को सपने में उम्मीद नहीं थी कि अर्जुन सिंह मनमोहन सिंह से भी ज्यादा लायक राहुल गांधी को मानेंगे और इस बात का ऐलान ठीक उस दिन करेंगे जब राहुल गांधी अपनी भारत यात्रा की दो किस्तें लगभग असफल यात्री के तौर पर पूरी करके कानपूर में कांग्रेस नेताओं को यह सिखा रहे थे कि चुनाव कैसे जीता जाता है। गनिमत है कि राहुल गांधी में इतनी ईमानदारी शेष है कि उन्होने इन्हीं यात्राओं के दौरान स्वीकार किया कि अगर उनके नाम के साथ गांधी नहीं जुड़ा होता तो राजनीति में उनकी आज वह जगह नहीं होती जो आज है।
पहले उत्तर प्रदेश और रायबरेली के छुटभैये नेताओं ने ऐलान किया था कि राहुल गांधी को अभी से देश का भावी प्रधानमंत्री कर देना चाहिए। बयान यह भी आया था कि बुढ़े लालकृषण आडवाणी का जवाब जवान राहुल गांधी आराम से दे सकते हैं। लेकिन अर्जुन सिंह ने जो साहसी और एक हद तक उन्हें मजाक बना देने वाला बयान दिया है उसकी कोई तुलना नहीं हो सकती। अर्जुन सिंह ने साफ शब्दों में कहा है कि राहुल गांधी के पास पर्याप्त अनुभव है और वे देश के बहुत योग्य प्रधानमंत्री सिध्द हो सकते हैं। काश यही बात श्री अर्जुन सिंह अपने बेटे राहुल के बारे में कहते जो कई बार विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं।
कांग्रेस में राहुल गांधी को लेकर एक विकट अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है। वे 38 साल के हैं और अभी तक बात टीनेजर्स की तरह करते हैं। इसको एकबार भुला भी दिया जाए तो भी जाहिर है कि सिर्फ बचकानी सरलता और असाध्य भोलापन राजनीति में बहुत गंभीरता से नहीं लिये जाते। जहां तक अर्जुन सिंह की बात है तो वे पहले नेहरू के भक्त थे, बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी के दरबार में आए और उनके घोषित चारण बने। फिर राजीव गांधी की उन्होने तमाम उपेक्षाओं के बावजूद इतनी सेवा की कि उन्हें कांग्रेस का पहला और आखिरी उपाध्यक्ष बना दिया गया। राजीव गांधी श्री पेरंबदूर में तमील बम का शिकार हो कर मारे गए थे और अभी उनकी अंतयोषठी भी नहीं हुई थी तभी उन्होने श्रीमति सोनिया गांधी से पार्टी का अध्यक्ष बन जाने की अपील की थी। सोनिय गांधी ने इस अपील को स्वीकार नहीं किया था और अर्जुन सिंह फटाफट उन पीवी नरसिंह राव को खोज लाए थे जिन्हें बुढ़ा और बीमार होने के कारण पार्टी ने चुनाव लड़ने लायक भी नहीं माना था। बाद में यहीं राव सत्ता की संजीवनी पा कर बहुत ताकतवर प्रधानमंत्री साबित हुए और अर्जुन सिंह ने कुछ समय तो उनकी भरपूर सेवा की लेकिन फिर श्रीमति सोनिया गांधी की उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी, नई पार्टी बनाई और घूम फिर कर वापस कांग्रेस में आ गए।
इन दिनों दलितों और अल्पसंख्यकों के स्वंयभू मसीहा बने हुए श्री अर्जुन सिंह के बारे में बार बार कहा जा रहा है कि दिल्ली में उनकी राजनीतिक पारी पूरी हो चुकी है और उन्हें कहीं राज्यपाल आदि बनाकर भेज दिया जाना चाहिए। राहुल गांधी ने खुद भी कई बार अर्जुन सिंह की शिक्षा नीतिओं की तीव्र आलोचना की है और राहुल गांधी अर्जुन सिंह के मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं। अब यह पता नहीं कि अर्जुन सिंह राहुल गांधी की आलोचना को साधने की कोशिश कर रहे हैं या दस जनपथ में अपने नंबर बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। सिर्फ तकनीकी लिहाज से राहुल गांधी अपने वांशीक आधार पर पारसी पिता और जन्म से ईसाई मां की संतान होने के कारण अलपसंख्यकों में गिने जाएंगे और कौन जानता है कि अर्जुन सिंह उन्हें भी अल्पसंख्यक के आधार पर प्रधानमंत्री बनाने की वकालत कर रहे हैं। यह तर्क कुतर्क लग सकता है लेकिन अगर है भी तो इससे बड़ा कुतर्क नहीं है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव पेश किया जाए और वह भी अर्जुन सिंह जैसे बड़े नेता की ओर से। मैं श्री अर्जुन सिंह का बहुत सम्मान करता हूं, एक लगभग प्राण घातक दुर्घटना के बाद अगर वे नहीं होते तो मेरे जीवित बचने का सवाल ही नहीं था, मेरे घर में पहला एयरकंडीशनर उन्होने लगवाया था और सिर्फ 19 साल की उम्र में जिंदगी में पहली बार हवाई जहाज में, मैं उनकी मेहरबानी से ही बैठा था। इस सबके बावजूद विनम्र निवेदन यह है कि जो अर्जुन सिंह कह रहे हैं उसमें कोई सार नहीं है और इसे खारिज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
आडवाणी-कांग्रेस की संदिग्ध दोस्ती
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 30 मार्च-आडवाणी कांग्रेस के साथ मिलकर क्या खेल खेल रहे हैं, इससे सभी भाजपाई भौचक्के है। वे कभी अपनी किताब के विमोचन के कार्यक्रम पर कंाग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को निमंत्रण देने चले जाते है तो किताब के विमोचन समारोह के मंच पर भाजपा अध्यक्ष को ही नहीं बुलाते हैं। कुछ भाजपा नेताओं पर उन शंका की उंगली भी उठाने लगी है।
भाजपा में आडवाणी को पीएम वेटिंग का खिताब मिलने के बाद से ही आडवाणी की राजनीतिक चाल बदलने लगी थी। अब चुनाव नजदीक है और इस समय अपने ही पार्टी के कद्दावर नेता
अटल बिहारी पर निशाना साध रहे हैं। यह समय तो कांग्रेस को घेरने का है लेकिन वह कंधार जैसे मुद्दे पर भी कांग्रेस के समाने चुप्पी साधे हुए हैं उनकी इस चुप्पी से भाजपा में अपसी गुटवाजी बढ़ती जा रही है।
हिदुत्व की राह पर चलकर सत्ता के कुर्सियों को पाने वाले आडवाणी आजकल अपनी धुन इतने मस्त है कि उन्हे संघ के लिए भी समय नही ंनिकाल पा रहे हैं। दो दिन पहले संघ ने कहा था कि उनका नंबर एक दुश्मन कांग्रेस नहीं बल्कि वामपंथी वहीं भाजपा की तरफ से बयान आया था कि वैचारिक तरीके से वामपंथियों को दुश्मन नंबर एक माना जा सकता है लेकिन राजनीतिक तौर पर भाजपा का नंबर दुश्मन कांग्रेस ही है। पार्टी के इन बयानो से भी श्री आडवाणी को खास लेना देना नहीं है। उन्होने किसी से भी नहीं पूछा कि यह बयान किसने और क्यों दिया। वह अभी भी अपनी किताब के चक्कर में फंसे हैं।
आडवाणी ने अपनी किताब में यूपीए अध्यक्ष की तारीफ करना और मोदी को एक तरह से अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप घोषित करना भी दूसरे भाजपाई नेताओं में शंका उत्पन्न कर रहा है। अगर आडवाणी ने अपनी स्थिति नहीं सुधारी तो भाजपा में बहुत बड़ा विघटन जरूर सामने आ सकता है। पूरा देश आज महंगाई को लेकर परेशान है लेकिन आडवाणी इस मुद्दे पर भी सत्तापक्ष को घेरने की वजाय चुप बैठे हैं।
श्री आडवाणी ने अपनी किताब में अपनी बेटी को एक बेहतर राजनीतिक घोषित किया है उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि उनकी बेटी प्रतिभा राजनीति में आती है तो एक बेहतर राजीतिकार के रूप में उभर कर आएगी। प्रतिभा अपने पिता को खाने के समय राजनीति का सबक देती है जिनका वह अधिकतर पालन भी करते है। सूत्रों की माने तो अडवाणी चाहते है जिस प्रकार नेहरू परिवार ने जिस प्रकार विरासत की राजनीति को आगे बढ़ाया है उसी प्रकार वह अपनी बेटी को भी पार्टी में बतौर उपाध्यक्ष बनाकर उतारने की सोच रहे है। लेकिन जिस तरह से वे इस समय चल रहे है उससे उनकी यह मंशा धूमिल भी हो सकती है।


राजबीर की मौत पर बंदूकें तनी
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 30 मार्च- दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की हत्या को लेकर गुडगांव और दिल्ली पुलिस के बीच तकरार इतनी बढ़ गई है कि कल गुड़गांव गई दिल्ली पुलिस की टीम के साथ वहां के पुलिस अधिकारियों की इतनी विकट कहासुनी हुई कि सिर्फ पिस्तौल निकलने की कसर रह गई। राजबीर सिंह की हत्या के मामले में हरियाणा पुलिस गले गले तक डूबी है और अब तो यह भी पता लगा गया है कि हत्या में इस्तेमाल की गई पिस्तौल हरियाण्ाा पुलिस के एक आईपीएस अधिकारी की थी।
गुड़गांव पुलिस का कहना है कि एलकांउटर स्पेशलिस्ट दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की हत्या पूरी योजना बनाकर की गई है। उनकी हत्या में जो पिस्तौल प्रयोग की गई है वह हिसार के एडिशनल एसपी की है जो जुलाई 2007 में एक आपेशन के दौरान खो गई थी। वहीं गुड़गांव पुलिस अब एसीपी राजबीर सिंह की हत्या में प्रयोग किए गए हथियार पर संदेह जता रही है।
विजय भरद्वाज ने एसीपी राजबीर सिंह की हत्या की जिम्मेदारी लेने के बाद तो गुड़गांव पुलिस निश्चिंत हो गई थी कि चलो राजबीर की हत्या की गुत्थी अपने आप सुलझ गई। लेकिन राजबीर की पत्नी ने जब कहा कि विजय ने उसके पति की हत्या नहीं की है उनकी हत्या किसी और ने की है। इसके बाद दिल्ली पुलिस की टीमों ने गुड़गांव जाकर खुद मामले की जांच की तो आज यह खुलासा हुआ है कि राजबीर की हत्या जिस पिस्तौल से की गई है वह हिसार के एक पुलिस अधिकारी की है।
गुड़गांव पुलिस अभी भी अपने को पाक साफ बताने के लिए कह रही है कि जो पिस्तौल उन्ही के एक अधिकारी है वह विजय से मिली है जिसको राजबीर ने उसे दिया था। पुलिस का कहना है कि पिस्तौल एक पुलिस अधिकारी की होने से कई और सवाल खड़े हो गए है जिसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। पुलिस का कहना है कि हिसार के एसपी की खोई हुई पिस्तौल राजबीर के पास कैसे आयी, या लाई गई? क्या वास्तव में विजय ने ही राजबीर को गोली मारी है या इसके बीच कोई और ? बिना सुरक्षा और हथियार के एसीपी राजवीर विजय के आफिस में क्यों आये थे। यह तमाम सवाल है जो गुड़गांव पुलिस सुलझाने में जुटी है हालांकि यह मामला सीबीआई तक पहुंच गया है सीबीआई की दखल के बाद इसमें और राज भी खुलेंगे।

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

वैसे अर्जुन संघ ठीक कह रहे हैं. मनमोहन संघ की जो लाय्कियत है और कांग्रेस में लायाकियत की जो परिभाषा है, उस हिसाब से राहुल गाँधी ही ज्यादा लायक हैं. मनमोहन जैसा आदमी भारत जैसे लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बने, इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ नहीं हो सकता. इस दुर्भाग्य की पराकाष्ठा वह दिन होगा (कह सकते हैं की पाप का घडा उस दिन भरेगा) जिस दिन राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनेंगे.