आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Tuesday, March 25, 2008

DATELINE INDIA NEWS, 25 MARCH 2008






DATELINE INDIA NEWS, 25 MARCH 2008
कवर स्टोरी
हमारे हीरो पर शर्मनाक हमला
आलोक तोमर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- भारतीय क्रिकेट के महानायक सुनील मनोहर गावस्कर को निशाने पर ला कर अंतरराषट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड-आईसीसी ने अपने लिए अस्तित्व की सबसे बड़ी आफथ बुला ली है। क्रिकेट पर कालम लिखने वाले सुनील गावस्कर पहले और अकेले खिलाड़ी नहीं हैं और आईसीसी के कई बड़े पदाधिकारी यह करते रहें हैं और कर रहें हैं लेकिन गावस्कर का कसूर यह था कि उन्होने आईसीसी की आलोचना करनी शुरू कर दी थी।
आईसीसी के चीफ मैल्कम स्पीड ने सुनील गावस्कर को सफाई देने के लिए दुबई बुलाया है और वे जब जाएंगे तब जाएंगे लेकिन आईसीसी के खिलाफ पहले से आस्ट्रेलिया दौरे के दौरान शुरू हुई बगावत ने नया मोड़ ले लिया है। सौरव गांगुली से लेकर सचिन तेंदुलकर तक ने ऐलान कर दिया है कि अगर सुनील गावस्कर के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई तो वे खुद खेल के मैदान से संन्यास ले लेंगे। मैल्कम स्पीड ने झुठ बोला है कि बोर्ड की कार्यकारिणी की बैठक ने सर्वसम्मति से गावस्कर के खिलाफ फैसला किया गया क्योंकि आईसीसी के चैयरमैन के तौर पर उनकी भूमिका को चुनौती देने के बारे में दुबई में हुई बोर्ड की बैठक में सभी एकमत नहीं थे। इस समय दुनिया के कम से कम पचास वर्तमान और भूतवपूर्व खिलाड़ी कालम लिखते हैं और यह संयोग नहीं हो सकता की आईसीसी के लोकतंत्र में सवाल सिर्फ भारतीय खिलाड़ियों पर उठाया जाता है।
सुनील गावस्कर ने इस फैसले पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है लेकिन सौरव गांगुली से लेकर बीसीसीआई के अध्यक्ष शरद पवार तक इस फैसले को सरासर अपमानजनक मानते हैं। श्री पवार ने कहा कि गावस्कर की तुलना में सभी क्रिकेट खिलाड़ी छोटे बैठते हैं और उन्होने क्रिकेट को खगोलीय सम्मान दिलवाया है। उनके खिलाफ आईसीसी का यह कदम सिर्फ आपत्तिजनक ही नहीं अपमानजनक भी है। आईसीसी की लड़ाई यह है कि क्रिकेट का सबसे बड़ा बाजार भारत है और उसके कोष का दो तिहाई से भी ज्यादा भारत के प्रायोजक देते हैं। इसके अलावा भारतीय क्रिकेट टीम दुनिया की सबसे लोकप्रिय टीमों में से एक है और इसके खिलाड़ियों को विज्ञापनों के लिए सबसे अधिक अनुबंध मिलते हैं। आईसीसी चाहता है की भारत क्रिकेट के कारोबार के एकाधिकार में उसे हिस्सेदारी दे लेकिन भारत पर वह अपनी शर्ते लादने की हालत में नहीं है। इसीलिए उसका कोप अक्सर भारतीय खेल प्रशासन और टीम के सदस्यों पर निकलता है।
सुनील गावस्कर का अपमान करके आईसीसी ने एक और मुसीबत बुला ली है। सुनील गावस्कर आईसीसी के प्रशासन के ब्रांड एंबेसडर भी हैं और उसके ज्यादात्तर कारोबारी फैसले वे ही किया करते हैं। ऐसे में अगर खुद गावस्कर के खिलाफ नैतिकता सवाल उठा दिया गया तो इससे पूरे क्रिकेट जगत में एक अटपटा संदेश जाएगा। जहां तक गावस्कर की बात है तो वे खुद कुछ नहीं बोल रहे हैं मगर इमरान खान और इंजमाम जैसे भूतपूर्व और वर्तमान पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों ने भी आईसीसी की दादागीरी की खुलकर आलोचना की है। अब यह लड़ाई इस चरण तक पहुंच गई है कि किसी न किसी को वापसी करनी ही पड़ेगी और इससे पूरी दुनिया के क्रिकेट जगत के समीकरण प्रभावित होंगे।
सबसे पहले तो दक्षिण अफ्रीका का भारत दौरा संकट में पड़ गया है। इस दौरे के दौरान विशेष कमेंटेटर के तौर पर सुनील गावस्कर को अनुबंधित किया गया है और प्रायोजकों ने उन्हें पूरी राशि का अग्रिम भुगतान कर दिया है। आईसीसी के फतवे के बाद सुनील गावस्कर की भूमिका पर भी सावलिया निशान लग गए हैं और जाहिर है कि अगर उनके खिलाफ बदतमीजी जारी रही तो भारतीय टीम अपने तरीके से इसका जवाब देगी। नतीजे में निवेशकों के करोड़ों रुपये तो डूबेंगे ही तीन साल बाद होनेवाले विश्व कप की तैयारियों पर भी सवालिया निशान लग जाएंगे। वैसे इस बीच शरद पवार का आईसीसी अध्यक्ष बनना तय हो चुका है और इसीलिए उम्मीद की जा सकती है कि आईसीसी कुछ दिनों में भारत के खिलाफ दादागीरी करना बंद कर देगा और उस पर बाबूगीरी दिखाने वाले आईसीसी के अफसरों का कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
राजबीर के राज मौत के साथ ही दफन
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह को कई बार पुलिस कमिश्नर से भी ज्यादा ताकतवर माना जाता था। उनकी हत्या को लेकर जो विवाद खड़े हुए हैं उनसे ज्यादा विवाद उनकी जिन्दगी में एनकाउंटर विशेषज्ञ के तौर पर उन्हें झेलने पड़े। उनके कई एनकाउंटरों को फर्जी बताया गया और खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्डर्वल्ड ने तो कई बार उन्हें जान से मारने की कोशिश भी की थी।
राजबीर सिंह पुलिस में सब-इंस्पेक्टर भर्ती हुए थे और एक बार राषट्रपति पदक और दूसरी बार शोर्य पदक पाने के साथ ही बगैर बारी के उनको पद्दोन्नति दी गई और वे सहायक पुलिस आयुक्त बन गए। कम से कम दिल्ली पुलिस में ऐसी असाधारण तरक्कियां बहुत कम हुईं थीं। राजबीर सिंह के एक जमाने में सीनियर रहे इंस्पेक्टर स्वतंत्र सिंह गिल हाल ही में यातायात पुलिस में उनके अधीन काम कर रहे थे और वे याद करते हैं कि राजबीर सिंह ने ऐसे ही गपशप में उनसे कहा था कि वे अपनी नौकरी से तंग आ चुके हैं और जल्दी ही वीआरएस लेकर अपना काम शुरू करना चाहते हैं। तबतक उनपर आरोप लग चुका था कि वे लैंड माफिया की भरपूर मदद करते हैं। इसी सिलसिले में उनकी एक फोन काल को रिकार्ड भी किया गया था उसके बाद उनके खिलाफ जांच शुरू हुई थी जिसमें उन्हें निर्दोष पाया गया था।
राजबीर सिंह देश के अकेले और सबसे पहले एसीपी थे जिन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी। इसके बावजूद जब उनकी हत्या उन्हीं की पिस्तौल से की गई तो उनके पास कोई सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं था। संसद और लालकिले पर हमले के मामले में जांच करने वाले अधिकारी के तौर पर उनकी जान को गंभीर खतरा होने की जानकारी गुप्तचर ब्यूरो ने भी दी थी। राजबीर सिंह ने 1982 में शुरू हुए अपने पुलिस कैरियर के दौरान 60 से ज्यादा मूठभेंड़े की और सौ से ज्यादा अपराधियों की लाशें गिराई। जब वे नौरकोटिक्स ब्यूरो में थे तब तस्करों की लाबी ने उनपर आर्थिक आरोप भी लगवाये थे। इनसब आरोपों से मुक्त होने के बाद राजबीर सिंह को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा में सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी।
राजबीर सिंह ने अपनी पूरी जिन्दगी बंदूक के सहारे कानून की रखवाली करने में बिताई और विडंबना यह है कि उनकी उसी बंदूक की गोली से उनकी जान गई। 1994 में जब उन्होने वीरेंद्र जाट नामक एक कुख्यात अपराधी को मुठभेड़ के बाद बकायदा कुश्ती लड़कर जिंदा पकड़ा था तो उन्हें पहले पद्दोन्नति दे कर इंस्पेक्टर बनाया गया था। इसके बाद राजबीर रमोला और रणपति गुर्जर नामक के अपराधियों को उन्होंने अकेले गोली से उड़ा दिया था। राजबीर सिंह का सबसे विवादास्पद एनकाउंटर असंल शापिंग प्लाजा में हुआ था जहां पुलिस ने दो कश्मीरी आतंकवादियों को मारने का दावा किया और उसे झुठा करार दिया गया। इस मामले की जांच अभी चल रही है।

राजबीर हत्या-कुछ और सवाल
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की सनसनीखेज हत्या के मामले में गुथ्थियां सुलझने का नाम नहीं ले रहीं हैं। पहली तो ये है कि दो-दो पिस्तौलें रखने वाले और उसका इस्तेमाल अच्छी तरह जानने वाले राजबीर सिंह ने आखिर इतनी असावधानी क्यों बरती की उनकी जान चली गई। यह ठीक है कि उन्हें गोलियां पीछे मारी गई थी लेकिन इतने भोले राजबीर सिंह भी नहीं थे कि वे शराब की बोतल सहित अपने हत्यारों से मिलने पहुंच जाते।
इसके अलावा राजबीर सिंह अपने हत्यारे विजय भरद्वाज के परिवार को अच्छी तरह जानते थे और उनके साथियों के अनुसार उनकी शैली यहीं थी कि वे अपने सुरक्षा अधिकारियों को एक तय दुरी पर रखकर उन्हें अपने मोबाइल के जरिए सिर्फ एक घंटी मारकर कभी भी बुला सकते थे। इसके अलावा दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि राजबीर सिंह आखिर कितने बड़े पैसे का कौन सा सौदा करने गए थे और क्या वह सौदा खुद उनका था या वे अपने किसी पुलिस अधिकारी के लिए यह काम कर रहे थे? दिल्ली पुलिस के पिछले पुलिस आयुक्त के. के. पाल इसी गुड़गांव में संपत्ति के कई सौदों के लिए चर्चित रहे हैं और वहां उनकी करोड़ों की संपत्ति है। क्या राजबीर सिंह अपनी पुरानी वफादारी के कारण वसूली करने वहां गए थे? जेड श्रेणी की सुरक्षा के बावजूद राजबीर सिंह के साथ तैनात सुरक्षा गार्डों का ना होना भी यह बताता है कि चूक जान-बुझकर सुरक्षा घेरे में हुई थी और हो सकता है कि दिल्ली पुलिस कुछ अधिकारियों का नाम भी इस कांड में सामने आए।
दिल्ली पुलिस के इस सबसे चर्चित अधिकारी की मौत ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को खासतौर पर मुसीबत में डाल दिया है। इस सेल का काम ही यह है कि कुख्यात आतंकवादियों और बड़े अपराधियों का सामना करे और इस चक्कर में निजी दुश्मनियां भी होती ही रहती हैं। दिल्ली पुलिस के अधिकारी जायज तौर पर ही कहते हैं कि हर पुलिस कर्मी को तो सुरक्षा गार्ड नहीं दिए जा सकते। इसके अलावा विजय भारद्वाज ने जिस तरह बड़ी आसानी से हत्या का इल्जाम अपने सिर ले लिया उसी से जाहिर है कि उसपर दबाव डाला गया है।
मौके पर मौजूद लोगों के अनुसार हत्यारे बाहर से आये थे और खुद विजय भारद्वाज ने उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहा था। राजबीर सिंह विजय भारद्वाज के छोटे भाई संजय के बचपन के दोस्त थे और दोनों साथ में खेल कर बड़े हुए थे। संजय भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उसके भाई की इस हत्या में कोई भूमिका रही होगी। संजय का कहना है कि राजबीर सिंह और उनके भाई के बीच अच्छा-खासा रिश्ता था। संजय ने यह भी कहा कि जैसा की कहा जा रहा है कि यह पचास साठ लाख रुपये की लेन-देन का मामला है तो ऐसे में कोई भी पैसा देने वाले की हत्या क्यों करेगा? इससे तो पैसे डूब ही जाएंगे।
गिलानी बख्शेंगे सरबजीत की जान?
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च -पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री के रूप में युसुफ रजा गिलानी को शपथ लेने के बाद पाकिस्तान की जेल में बंद सरबजीत के परिवार को एक आष की नई किरण दिखी है। पाक जेल बंद सरबजीत की बहन गुरूमीत कौर ने कहा है कि श्री गिलानी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुझे आषा है कि मेरे भाई की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाएगा । इससे मेरे भाई की रिहाई संभंव हो सकेगी।
पाकिस्तान में आज प्रधानमंत्री की शपथ युसुफ रजा गिलानी ने ली लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की खुषी सरबजीत के परिवार को हुई क्योंकि वे अगर चाहेंगे तो तो सरबजीत का फांसी की सजा से बचा सकते हैं। वहीं पाकिस्तना मनावाधिकार आयोग के मंत्री अंसार बर्नी ने भी इस बात को कहा है कि वह अपनी तरफ से पाक प्रधानमंत्री श्री गिलानी से बात करेंगे कि 18 साल की जेल काट चुके सरबजीत को फांसी की सजा न देकर उम्र कैद की सजा दी जाए। ताकि सरबजीत की रिहाई संभव हो सके।
श्री बर्नी ने सरबजीत की बहन को विश्वास दिलाया कि प्रधानमंत्री सरबजीत मामले में जरूर कोई ठोस कदम उठाऐंगे। बर्नी की बात सरबजीत के परिवार को एक ढाढस बढाने का काम कर रही है। उधर श्री गिलानी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान के राषट्रपति परवेज मुशर्रफ भी नरम पड गए हैं। उन्होंने ने ही श्री गिलानी को आज शपथ दिलायी। परवेज मुर्षरफ के द्वारा गिलानी को शपथ लेने के कारण पाकिस्तान मुस्लिम लीग -एन के नेता नवाज षरीफ ने शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा नहीं लिया। उनकी पार्टी ने शपथ ग्रहण समारोह वहिषकार कर दिया। जबकि उनकी पार्टी भी श्री गिलानी की पार्टी को समर्थन हासिल है। पाकस्तिान में नए उभरे समीकरणों से यह साफ हो रहा है कि श्री गिलानी से परवेज मुशर्रफ से बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं। लेकिन ऐसा अगर श्री गिलानी करेंगे तो उनके लिए परेशानी का शबब बन सकती है। पाक के नए प्रधानमंत्री श्री गिलानी ने पाक-भारत की दोस्ती को और मजबूत करने का इशारा किया है। इससे साफ हो जाता है कि पाक जेल में बंद सरबजीत को रिहाई मिल सकती है।

तिब्बत पर सच निकली पटेल की चेतावनी"
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च - देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सरदार बल्लभ पटेल ने अपने पत्र के माध्यम से पहले की अगाह कर दिया था कि तिब्बतियों के साथ चीन विश्वासघात करेगा जबकि भारत ने तिब्बितियों पर हमेशा विश्वास किया है और उनका मार्गदर्षन करते रहे है।

बल्लभ भाई पटेल ने श्री जवाहर लाल को 7 नवंबर, 1950 को लिखे पत्र से अवगत कराया गया था कि चीन सरकार ने हमें अपने शांतिपूर्ण उद्देश्याें के आंडबर में उलझाने का प्रयास किया है। मेरा यह मानना है कि वह हमारे राजदूत के मन में यह झूठ विश्वास कायम करने में सफल रहे कि चीन तिब्बत की समस्या को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहता है। चीन की अंतिम चाल, मेरे विचार से कपट और विश्वासघात जैसा ही है। दुखद बात यह है कि तिब्बतियाें ने हम पर विश्वास किया है, हम ही उनका मार्गदर्शन भी करते रहे हैं और अब हम ही उन्हें चीनी कूटनीति या चीनी दुर्भाव के जाल से बचाने में असमर्थ हैं। ताजा प्राप्त सूचनाओं से ऐसा लग रहा है कि हम दलाई लामा को भी नहीं निकाल पाएंगे । यह असंभव ही है कि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति तिब्बत में एंग्लो-अमेरिकन दुरभिसंधि से चीन के समक्ष उत्पन्न तथाकथित खतरे के बारे में विश्वास करेगा।
पिछले कई महीनाें से रूसी गुट से परे हम ही केवल अकेले थे जिन्हाेंने चीन को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता दिलवाने की कोशिश की तथा फारमोसा के प्रश्न पर अमेरिका से कुछ न करने का आश्वासन भी लिया।
मुझे इसमें संदेह हैं कि चीन को अपनी सदिच्छाओं, मैत्रीपूर्ण उद्देश्याें और निषकपट भावनाओं के बारे में बताने के लिए हम जितना कुछ कर चुके हैं, उसमें आगे भी कुछ किया जा सकता है। हमें भेजा गया उनका अंतिम टेलिग्राम घोर अशिष्टता का नमूना है। इसमें न केवल तिब्बत में चीनी सेनाओं के घुसने के प्रति हमारे विरोध को खारिज किया गया है बल्कि परोक्ष रूप से यह गंभीर संकेत भी किया गया है कि हम विदेशी प्रभाव में आकर यह रवैया अपना रहे हैं। उनके टेलिग्राम की भाषा साफ बताती है कि यह किसी दोस्त की नहीं बल्कि भावी शत्रु की भाषा हैं। इस सबके पटाक्षेप में हमें इस नई स्थिति को देखना और संभालना होगा जिसमें तिब्बत के गायब हो जाने के बाद जिसका हमें पता था चीन हमारे दरवाजे तक पहुंच गया है। इतिहास में कभी भी हमें अपनी उत्तर-पूर्वी सीमा की चिंता नहीं हुई है। हिमालय श्रृंखला उत्तर से आने वाले किसी भी खतरे के प्रति एक अभेद्य अवरोध की भूमिका निभाती रही है। तिब्बत हमारे एक मित्र के रूप में था इसलिए हमें कभी समस्या नहीं हुई। हमने तिब्बत के साथ एक स्वतंत्र संधि कर उसकी स्वायत्तता का सम्मान किया है। उत्तर-पूर्वी सीमा के अस्पष्ट सीमा वाले राज्य और हमारे देश में चीन के प्रति लगाव रखने वाले लोग कभी भी समस्या का कारण बन सकते हैं।
चीन की कुदृष्टि हमारी तरफ वाले हिमालयी इलाकाें तक सीमित नहीं है, वह असम के कुछ महत्वपूर्ण हिस्साें पर भी नजर गडाए हुए है। बर्मा पर भी उसकी नजर है। बर्मा के साथ और भी समस्या है क्योकि उसकी सीमा को निर्धारित करने वाली कोई रेखा नहीं है जिसके आधार पर वह कोई समझौता कर सके। हमारे उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में नेपाल, भटान, सिक्किम, दार्जिलिंग और असम के आदिवासी क्षेत्र आते हैं। संचार की दृष्टि से उधर हमारे साधन बडे ही कमजोर व अपर्याप्त है; सो यह क्षेत्र 'कमजोर' है। उधर कोई स्थायी मोर्चे भी नहीं हैं
इसलिए घुसपैठ के अनेकाें रास्ते हैं। मेरे विचार से अब ऐसी स्थिति आ गई है कि हमारे पास आत्मसंतुष्ट रहने या आगे-पीछे सोचने का समय नहीं है। हमारे मन में यह स्पष्ट धारणा होनी चाहिए कि हमें क्या प्राप्त करना है और किन साधनाें से प्राप्त करना है।
इन खतराें के अलावा हमे गंभीर आंतरिक संकटाें का भी सामना करना पड सकता है। मैने एच वी आर आयंगर को पहले ही कह दिया है कि वह इन मामलाें की गुप्तचर रिपोर्टों र्की एक प्रति विदेश मंत्रालय भेज दें। निश्चित रूप से सभी समस्याओं को बता पाना मेरे लिए थकाऊ और लगभग असंभव होगा। लेकिन नीचे मैं कुछ समस्याओं का उल्लेख कर रहा हू जिनका मेरे विचार में तत्काल समाधान करना होगा और जिन्हें दृष्टिगत रखते हुए ही हमें अपनी प्रशासनिक या सैन्य नीतियां बनानी हाेंगी तथा उन्हें लागू करने का उपाय करना होगा :
· सीमा व आंतरिक सुरक्षा दोनाेंमोर्चों र्पर भारत के समक्ष उत्पन्न चीनी खतरे का सैन्य व गुप्तचर मूल्यांकन।
· हमारी सैन्य स्थिति का एक परीक्षण।
· क्षेत्र की दीर्घकालिक आवशयकताओं पर विचार.
· हमारे सैन्य बलाें के ताकत का एक मूल्यांकन.
· संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रवेश का प्रश्न.
· उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी सीमा को मजबूत करने के लिए हमें कौन से राजनीतिक व प्रशसनिक कदम उठाने हाेंगे?
· चीन की सीमा के करीब स्थित राज्याें जैसे यूद्बऱ्पीद्बऱ्, बिहार, बंगाल, व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में आंतरिक सुरक्षा के उपाय.
· इन क्षेत्रों और सीमावर्ती चौकियाें पर संचार, सडक, रेल, वायु और बेहतर सुविधाओं में सुधार.+
· ल्हासा में हमारे दूतावास और गयांगत्से व यातुंग में हमारी व्यापार चौकियाें तथा उन सुरक्षा बलाें का भविष्य जो हमने तिब्बत में व्यापार मार्गो की सुरक्षा के लिए तैनात कर रखी हैं.
· मैकमोहन रेखा के संदर्भ में हमारी नीति.

आपका
वल्लभ भाई पटेल

आडवाणी के खिलाफ भाजपा में बगावत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च -आडवाणी की किताब की वजह से पार्टी में उनकी सर्वोच्चता को चुनौती मिलने लगी है। पार्टी के अंदर मौजूद दूसरे दिग्गज नेता कंधार मामले में उन ही निषाना साधने लगे हैं। कंधार प्रकरण में आतंकियों के छोड़े जाने की जानकारी न होने संबंधी बयान जो उन्होंने अपनी किताब में छापा है उसे भाजपा के दूसरे बडे नेता झूठा करार दे रहे हैं।पार्टी ने स्पष्ट किया कि अपहृत यात्रियाें के बदले आतंकवादियाें को छाेडे जाने की जानकारी आडवाणी को थी।
भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि आडवाणी को न सिर्फ आतंकवादियों को छाेडने की जानकारी थी बल्कि वह निर्णय का हिस्सा थे। दरअसल भाजपा में आडवाणी के इस बयान के बाद एक बार फिर विघटन की स्थिति समाने आ गई है। 'पीएम इन वेटिंग' आडवाणी का असली वेट इस कदर सामने आया है कि पार्टी नेता परेशान हो गए हैं। संतुलन के लिए अटल जैसे कद का सही नेता पार्टी के पास है नहीं, सो इंसाफ के लिए नजरें संघ पर टिक गई हैं। पार्टी की बागडोर थामे राजनाथ असहाय नजर आ रहे हैं। उन्हाेंने संघ से गुहार लगाई। संघ से बातचीत के बाद पार्टी प्रवक्ता का यह बयान आया।
आडवाणी ने अपनी किताब के विमोचन पर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ को मंच पर स्थान नहीं दिया। फिर एक चैनल को साक्षात्कार में यह कहा कि अपहृत विमान यात्रियों के बदले तीन खूंखार आतंकवादियों को छाेडने की जानकारी उन्हें नहीं थी। इसके अलावा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्होंने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर प्रोजेक्ट किया। इससे पार्टी में खलबली मच गई है। चर्चा होने लगी है कि क्या ऐसा बयान यदि आडवाणी के अलावा कोई और नेता देता तो पार्टी उस पर चुप रहती? वाजपेयी ने कभी भी आडवाणी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया। उत्तराधिकार आडवाणी को मिला तो पार्टी संसदीय बोर्ड में चर्चा और सहमति के बाद।

एक और एसीपी की रहस्यमय मौत
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च- शिवानी भटनागर हत्याकांड में मुख्य अभियुक्त रविकांत शर्मा के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण सबूत लाने वाले दिल्ली पुलिस के सहायक पुलिस आयुक्त हेमंत चोपड़ा की मौत का रहस्य अभी भी नहीं सुलझा है। यह मौत 35 साल पुराने नागरवाला जालसाजी कांड के जांच अधिकारी की सड़क दुर्घटना में मौत की तरह रहस्यमय बन गई है।
अक्टूबर 2004 में जब हेमंत त्रिवेदी की लाश उनके कमरे में मिली थी। दरअसल, जब उन्हें बेहोश पाया गया तबतक उनकी सांसे चल रही थी लेकिन अस्पताल पहुंचते-पहुंचते उनकी मौत हो गई। हेमंत चोपड़ा उस समय सिर्फ 36 साल के थे और सबसे पहले यह कहा गया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है जिससे उनकी मौत हुई है। सच यह है कि हेमंत चोपड़ा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को आजतक सार्वजनिक नहीं किया गया और यह भी सच है कि हेमंत चोपड़ा को दिल की कोई बीमारी नहीं थी और कुछ दिन पहले उन्होने सिर्फ पेट में दर्द की शिकायत की थी जो मामूली दवाईयों से ठीक हो गई थी।
जिन रविकांत शर्मा के खिलाफ हेमंत चोपड़ा जांच कर रहे थे वे पद और संपर्कों में उनसे बहुत ऊपर थे और हरियाणा में भी तैनात थे। जांच के दौरान हेमंत चोपड़ा ने अपने अधिकारियों से कहा था कि वे भी कुरूक्षेत्र के हरियाणा के रहनेवाले हैं और रविकांत शर्मा के साथियों की ओर से उनके परिवार को बहुत धमकियां मिल रहीं हैं।
1993 में सीधे दिल्ली पुलिस में शामिल होने वाले हेमंत चोपड़ा सीधे एसीपी बने थे और उन्होने जांच के दौरान हिमाचल प्रदेश के सोलन में छिपे रविकांत शर्मा की तलाश कर ली थी। सोलन के तार घर में काम कर रहे वीपी सैनी नामक जूनियर इंजिनियर से पूछताछ करके उन्होने रविकांत शर्मा का ठिकाना भी जान लिया था लेकिन तभी दिल्ली से उन्हें वापस लौटने का हुक्म सुना दिया गया। इसी तार घर से शर्मा अपने परिवार से गुप्त शैली में लिखे गए कई तार भेजे थे और मोबाइल पर निगरानी रखने के इस जमाने में संपर्क का यह तरीका काफी काम आया था।
हेमंत चोपड़ा ने रविकांत शर्मा को अपने सूत्रों के जरिये एक निजी संदेश भी भेजा था जिसमें पद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए पूरे आदर सहित उन्हें पूछताछ में शामिल होने के लिए बुलाया गया था। श्री शर्मा ने पुलिस के सामने आत्मसमपर्ण करने के बाद दिए गए बयान में इस बात की पुषिट भी की है और हेमंत चोपड़ा को एक शानदार पुलिस अधिकारी बताया है। मुद्दे फिर भी वही है कि दिल्ली पुलिस ने डीएसपी रैंक के हेमंत चोपड़ा को आईजी स्तर के एक अधिकारी के खिलाफ जांच देना कितना अव्यवहारिक था यह बड़े अधिकारियों ने नहीं देखा। इस बात पर भी गौर नहीं किया गया कि हेमंत चोपड़ा कुरूक्षेत्र के रहने वाले हैं जो रविकांत शर्मा के असरवाला इलाका था।
हेमंत चोपड़ा का इकलौता बेटा राजीव अब वकालत की पढ़ाई कर चुका है और उसका इरादा है कि अपनी पिता के मौत के रहस्य को वह सबसे सामने ला सके। उसका साफ कहना है कि उसके पिता एकदम स्वस्थ थे और उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सार्वजनिक किए बगैर पूरे सच का खुलासा नहीं हो सकता। हेमंत चोपड़ा के परिवार का आरोप है कि उन्होने जब तत्कालीन मंत्री स्वर्गीय प्रमोद महाजन से अपने आप को इस जांच से अलग करने की अपील की थी तो महाजन ने उन्हें सहयोग का पूरा वचन दिया था। इसके बावजूद बहुत संदिग्ध हालत में उनकी मौत हो गई और यह कैसे हुआ इसपर से अभी तक पर्दा नहीं उठा है।

भूटान में राजा की पार्टी ही करेगी राज
डेटलाइन इंडिया
थिंपू ,25 मार्च - नेपाल की राह पर अब चला भूटान। भूटान की जनता ने जिस प्रकार संसदीय चुनाव मेंं राजशाही को नकारा है उससे साफ हो गया है कि अब वह नेपाल की तरह जीना चाहता है। भूटान में 100 साल बाद राजशाही के खिलाफ ख़डे होकर ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि राजशाही ज़ड से ही समाप्त हो गई है।
भूटान में संसदीय चुनावों में राजशाही के खिलाफ जिग्मी थिन्ले ने जीत दर्ज की है। उन्होंने 47 में से 44 सीटों पर कब्जा कर लिया है। अब भूटान का पहला निर्वाचित प्रधानमंत्री राषट्रीय संसद के सदस्यों में से ही बनेगा। चुनाव में राजा की पार्टी की कमान राजा के मामा सांगे न्गेदप ने संभाली थी लेकिन उन्होंने यह कभी न समझा था कि उन्हें भूटान की जनता इस कदर नकार देगी कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र से ही हार गए।
भूटान के मतदाता राजशाही से इतने आतंकित थे कि वह मतदान के दिन भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। जहां महिलाए और पुरूश अपनी पारंपरिक वेशभूशा पहनकर मत डालने के लिए मतदान केंद्रो पर पहुंची थी। भिक्षुओं ने भूटान में लोकतंत्र बहाली के लिए विशेष प्रार्थना और देशी घी के दिए जलाए और उनकी प्रार्थना भगवान ने सुनी और भूटान में राजशाही का खात्मा हो गया। ं।
आजमगढ़ चुनाव और सांप्रदायिक तनाव
डेटलाइन इंडिया
र्र्र्नई दिल्ली, 25 मार्च-उत्तर प्रदेश में होने वाले आजमगढ़ उपचुनाव में सभी योध्दा अपने जहरीले बयान से जनता को दंगों की आग में झोंक देना चाहते हैं। क्या शहर, क्या गांव हर तरफ सांप्रदायिक नारे जोर पकड़ने लगे हैं।
इस लड़ाई का अकेले सबसे खतरानक केंद्र बन चुका आजमगढ़ अब सुलगने की तैयारी में है। सदर लोस सीट पर हो रहे उपचुनाव को धार्मिक रंग में रंगने का खेल शुरू हो गया है। शहर के साथ ही गांवों में भी अब गूंजने लगा है कि यूपी भी गुजरात बनेगा आजमगढ़ आगाज करेगा। यह नारा किसने दिया इसको लेकर
राजनीतिक दलों में घमासान छिड़ा हैं। सभी दल एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहें हैं पर आग तो जनता के मन में सुलगाई जा चुकी है और यह कभी भी बड़े पैमाने पर हिंसा फैला सकती है। दलों की चुनावी तैयारी देखने से भी ऐसा लगता है कि इस उपचुनाव को सांप्रदायिक रंग में रंग कर सीधी लड़ाई में आने की कोशिश नेता कर रहे हैं।
हरबंशपुर स्थित सपा के केंद्रीय चुनाव कार्यालय में एक्रत्र हजारों कार्यकर्ताओं को पार्टी के महासचिव अमर सिंह और कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव मिले। सपा महासचिव अमर सिंह ने आगाह किया कि क्षेत्र में कुछ लोग नारा दे रहे हैं कि यूपी भी गुजरात बनेग आजमगढ़ आगाज करेगा, इनसे सतर्क रहना होगा। इतना ही नहीं नेलोपा द्वारा घोषित प्रत्याशी आरोपी आतंकी हकीम तारिक कासमी के प्रति भी उनकी जुबां से मीठे बोल ही फूटे। मुसलमानों को आक र्षित करते हुए उन्होंने कहा कि हकीम तारिक कासमी को एसटीएफ ने आतंकी होने का आरोप लगाते हुए फंसाया तो सबसे पहले सपा ने आवाज उठाई। जहां भी मुसलमानों पर अन्याय हुआ सपा ही सबसे पहले आगे आई।
दूसरी तरफ एक प्रत्याशी के समर्थको ने यूपी भी गुजरात बनेगा, आजमगढ़ आगाज करेगा नारा लगाक र सरायमीर कस्बे में माहौल को गरमा दिया है। सैकड़ों समर्थक एक त्रित हो गए। समर्थकों ने नारेबाजी शुरू की। कुछ समर्थकों ने यूपी भी गुजरात बनेगा, आजमगढ़ आगाज करेगा का नारा लगाया। लगभग पांच मिनट तक नारेबाजी चली। इससे एक समुदाय के लोग भड़क उठे। धीरे-धीरे यह नारा क्षेत्र के आम मतदाताओं के बीच चर्चा और भय का विषय बना हुआ है।
बेटी की चिता सजाए बैठा एक पिता
डेटलाइन इंडिया
पवई (आजमगढ़), 25मार्च-बाप बेटी को जब ब्याह देता है तो यहीं समझता है कि अब उसकी जिम्मेदारियां खत्म हो गई पर एक बाप ऐसा भी जो अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने की बाट जोह रहा है। लेकिन पुलिस और कागजी खानापूर्ति ने उसे बेबस और लाचार बना दिया है।
एक बाप अपनी बेटी की शादी के बाद चैन की सांस ले ही रहा था कि उस पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा। वह भी ऐसा की बाप अपनी बेटी के कंकाल के सामने बैठा तिल-तिल कर अपनी अंतिम सांसों की दुआ मांग रहा है। पवई थाना क्षेत्र के मुहमदपुर गांव में ब्याही शकुंतला की जहर खाने से मौत हो गई थी। मायके वालों का आरोप है कि उसे जहर देकर मारा गया है। पुलिस ने शकुंतला की लाश को जलती चिता से उतरवाया था। बेटी को खोने वाले पिता को अंतिम संस्कार के लिए उसकी लाश भी नसीब नहीं हो सकी। पोस्टमार्टम के बाद सील कर थाने में रखे शकुंतला के कंकाल के पास पूरा परिवार चार दिन से बैठा हुआ है।
मुहमदपुर गांव निवासी अंगद सिंह की पत्नी शकुंतला देवी की संदिग्ध परिस्थितियों में विषाक्त पदार्थ का सेवन करने से 20 मार्च को मौत हो गई थी। ससुरालवालों ने गांव के बाहर नदी के किनारे उसकी लाश को जला रहे थे। इसी दौरान मायके वालों की सूचना पर पुलिस वहां पहुंची और जलती चिता से शकुंतला की लाश को कब्जे में ले लिया। सुल्तानपुर जिले के अखंडनगर थाना क्षेत्र के भ्यूरा के रहनेवाले शकुंतला के पिता सर्वजीत सिंह ने जहर देकर मारने तथा साक्ष्य को छिपाने के लिए उसकी लाश को जलाने ता मुक दमा दायर करवाया है। इस संबंध में पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन आरोपी बनाई गई सास और जेठानी फरार हैं। सर्वजीत सिंह अपने परिवार के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे। उन्होंने कहा कि बेटी तो गई, अब उसकी लाश मिल जाए, जिसका अंतिम संस्कार कर दें।
हालांकि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की क ार्रवाई के बीच फंसी शकुंतला की लाश भी उनको मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। थानाध्यक्ष टीबी सिंह ने कह कि लाश 90 प्रतिशत से अधिक जल चुकी है। बिसरा रिजर्व को छोड़कर सिर्फ कंकाल बचा है। वह भी जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला लखनऊ भेजा गया। सर्वजीत सिंह अपने परिवार के साथ थाने में बेटी के सीलबंद कंकाल के पास चार दिन से इस आश में बैठे रहे कि लाश के नाम पर उन्हें कंकाल मिलेगा। उनकी इस मंशा पर भी पानी फिरता लग रहा है। थानाध्यक्ष ने कहा कि कंकाल परिजनों को मिलेगा या नहीं, इस बारे में जांच के बाद ही कुछ बताया जा सकता है।

मां की मौत का गवाह है अंतरिक्ष
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 25 मार्च - उच्च न्यायालय द्वारा पत्नी की हत्या के आरोपी को उसके बच्चों को सौंप देने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बदल कर बच्चे को नाना- नानी को सौंप दिया है क्योंकि आठ साल का अंतरिक्ष नाम का बच्चा ही अपनी मां की मौत का गवाह है।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश सी.के. ठक्कर और डी.के. जैन की खंडपीठ ने यह आदेश कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दिया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में जमानत पर छूटे पर पिता को बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक मानते हुए उसके संरक्षण की जिम्मेदारी दे दी थी। बच्चे के नाना-नानी ने अधिवक्ता राजकुमार गुप्ता के जरिए इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। गुप्ता ने कहा कि यह सही है कि अभिजित कुंडु बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है, लेकिन इस मामले में यह देखना जरूरी है कि उसके पिता पर ही उसकी मां की हत्या का आरोप है। इस मामले का वह प्रत्यक्षदर्शी गवाह भी है, क्याेंकि मां के मरने पर उसने ही नाना को फोन करके वारदात की जानकारी दी थी। उन्हाेंने कहा कि ऐसी स्थिति में पिता के पास बच्चे का सही विकास नहीं हो सकता क्याेंकि वह उस पर अनेक किस्म के दबाव बनाएंगे।
खंडपीठ ने इस पर बच्चे का चेंबर में बयान लिया। उसके बाद दोनाें पक्षाें के वकीलाें की जिरह सुनने के बाद नाना-नानी को बच्चे की कस्टडी दे दी। नाना का आरोप है कि उनके दामाद अभिजित ने 2004 में उनकी बेटी की हत्या कर दी थी। मृतक उनकी अकेली बेटी थी जिसकी शादी में उन्हाेंने दहेज के रूप में कार भी दी थी। अभिजित एक कंपनी में मैनेजर है।

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