आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Monday, March 24, 2008

Dateline India News Service, 24th March, 2008

राकेश भटनागर नहीं थे अदालत में
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च-पिछले तीस साल में किसी भी अदालत ने ऐसा कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं हुआ जिसमें एक आदमी मौजूद न होता हो। यह व्यक्ति दिल्ली के एक सबसे बड़े अखबार में कानून संवाददाता है और बड़े-बड़े मामलों के फैसलों की समीक्षा करता रहा है।

लेकिन राकेश भटनागर आज कड़कड़डूमा अदालत में मौजूद नहीं थे। आज उनकी ही पत्नी और इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार शिवानी भटनागर की लगभग आठ साल पहले हुई हत्या के मामले में फैसला आना था और जब हत्या के आरोप में शिवानी के दोस्त और पुलिस अधिकारी रविकांत शर्मा और तीन अन्य अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई तो राकेश भटनागर अपने कार्यालय में भी नहीं पहुंचे और उनका मोबाइल फोन बंद था।

शिवानी और राकेश भटनागर की मित्रता दिल्ली के प्रेस क्लब में शुरू हुई थी दोनों के बीच उम्र का काफी अंतर था लेकिन जल्दी यह दोस्ती रिश्ते में बदल गई और यह रिश्ता शादी में। शिवानी और राकेश भटनागर का स्वभाव एकदम अलग था। उस वक्त राकेश बड़े पत्रकार थे और शिवानी प्रशिक्षु पत्रकार बनकर इंडियन एक्सप्रेस में आईं थीं। राकेश ने शिवानी की अपने संपर्कों के जरिए बहुत मदद की और विडंबना यह है कि हरियाणा के आईपीएस अधिकारी रवि शर्मा से भी शिवानी का परिचय राकेश ने ही करवाया था। बाद में राकेश भटनागर ने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि शिवानी और रवि शर्मा के बीच दोस्ती हद से ज्यादा बढ़ गई थी और उनका जो बेटा है वह भी असल में रवि शर्मा का है। डीएनए जांच से यह साबित हो चुका है।

शिवानी जब इंडियन एक्सप्रेस में आईं थीं तो ऊर्जा से भरी हुई लेकिन शर्मीली लड़की थीं। उस वक्त स्थानीय रिपोर्टिंग टीम में उसे दिल्ली नगर निगम और बाद में स्थानीय भाजपा कवर करने के लिए दिए गए थे। उसी दौरान रवि शर्मा ने उसे कुख्यात पनडुब्बी सौदे के कागज सौंप दिए और यह खबर छपने पर शिवानी को ब्यूरो में खोजी संवाददाता बना दिया गया। जल्दी ही वे प्रमुख संवाददाता बन गई जो मुख्य संवाददाता के बराबर का पद होता है।

रवि शर्मा शिवानी से अपनी दोस्ती के दिन को आजतक कोस रहे होंगे क्योंकि जल्दी ही उनका मोह भंग शिवानी से हो गया था। उधर, शिवानी पूरी तरह खिलाड़ी रवि शर्मा के प्रेम में डुब चुकी थी और उनसे शादी की जिद कर रहीं थीं। अपने पारिवारिक जीवन और इात को बचाने के लिए रवि शर्मा ने शिवानी की हत्या का इंतजाम कर दिया और कानून के रखवाले से अचानक अभियुक्त और फिर अपराधी बन गए।

जेल में लंबा समय बिताया रवि शर्मा ने कैरम खेलते हुए और टेबल टेनिस में जेल का चैम्पियन बनकर बिताया। संयोग से रवि शर्मा हरियाणा में पुलिस के चैम्पियन थे। हालांकि रवि शर्मा के खिलाफ कोई सीधा मामला सामने नहीं आया लेकिन परिस्तितिजन्य साक्ष्य इतने थे की उनका बचना मुश्किल था। अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है और आगे की अदालतों में मामला अभी लंबा खिंचेगा। एक और विडंबना ये है कि कत्ल के आरोप में जेल पहुंचने के सिर्फ एक सप्ताह पहले रवि शर्मा हरियाणा के जेल महानिरीक्षक के नाते तिहाड़ जेल का दौरा करने गए थे। वहां उनसे कैदियों ने खाना खाने के लिए कहा था मगर उन्होंने नहीं खाया था और तिहाड़ की कहावत है कि अगर कोई जेल की रोटी ठुकरा देता है तो जेल उसे वापस बुलाती है।

शाटगन कांग्रेस के दरवाजे पर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24मार्च-अभिनेता से राजनीति में आए शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा का मोह त्याग अब नई पार्टी की तलाश में लगे हैं, जहां उन्हें पार्टी अभिनेता नहीं बल्कि नेता समझा जाए।
शत्रुघ्न सिन्हा के राजनीति में आने करीब एक दशक से ऊपर बीत जाने के बाद भी वे आज तक अपने को एक राजनीतिक के रूप में स्थापित नहीं कर पाए हैं। उनका दर्द ये है कि आखिर कब उन्हें अभिनेता नहीं नेता माना जाएगा। इसी जमीन की तलाश में भाजपा से खार खाए शत्रु अब नई पार्टी तलाश रहे हैं। ऐसा अंदेशा है कि शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में शामिल होने का मन बना चुके हैं और इसी जुगत में वो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से मुलाकात कर अपनी स्थिति साफ कर दी है। हालांकि शत्रु ने इसे महज निजी मुलाकात बताया पर बीते दिनों की घटनाक्रम से यह संकेत साफ मिल रहा है कि श्री सिन्हा का मन अब भाजपा छोड़ किसी और पार्टी का दामन थामने का है।

शत्रुघ्न सिन्हा अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए पिछले कई दिनों में जुगाड़ में लगे हैं और वह उसी पार्टी में जाएंगे जहां उनको राजनीतिज्ञ का दर्जा मिलेगा। इस बात के संके त शत्रु ने कई बार दिया है मसलन जब शिवसेना के मुखपत्र सामना में राज ठाकरे ने बिहारियों पर जहरीला लेख लिखा था तब अपने परंपरागत बिहारी बाबू होने का दम भरने वाले इस सिने अभिनेता ने राज ठाकरे को भगवान का दर्जा देकर ठाकरे का अनुयायी बन कर सामने आया था। यह बात और है कि जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बिहारियों को दिल्ली से बाहर करने की वकालत की थी तो शत्रुघ्न सिन्हा ने श्रीमति दीक्षित को खरी-खरी सुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।

बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा को वर्षों से भाजपा का स्टार प्रचारक माना जाता था। लेकिन इस बार उन्हें पार्टी ने राज्यसभा का टिकट नहीं दिया। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने कभी कुछ नहीं समझा एनडीए सरकार में उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी बनाया गया पर शत्रु अपने मंत्रालय के बारे कम लालू और फिल्मी डायलाग बोलते ज्यादा नजर आए। अब शत्रु अपने हाल के बयान से बिहार में भी राजनीतिक जमीन खो चुके और वह राहुल गांधी से मुलाकात कर मुंबई में अपना राजनीतिक जमीन तलाशना चाहते हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस भी उन्हें मन ही मन गांधीवादी बैनर तले मुंबई में किसी सीट से राज ठाकरे के खिलाफ शंखनाद करने के लिए उतार सकती है।




आईएसआई और अकाली दल के खतरनाक रिष्ते
डेटलाइन इंडिया
अमृतसर, 24 मार्च- पाकिस्तान की आईएसआई भारत को तबाह करने के लिए हेरोइन भेजती है यह कोई रहस्य नहीं है। असली सनसनीखेज घोटाला तो तब हुआ जब आईएसआई के लिए तस्करी करने वाला पंजाब में राज कर रहे अकाली दल का एक नेता निकला।

यहां के राजासासी हवाई अड्डे के इतिहास में हेरोइन की सबसे बड़ी खेप कल पकड़ी गई और इसे ला रहे सज्जन युवा अकाली दल के बड़े नेता पुरूषोत्तम लाल सौंधी थे। लोक सभा के उपाध्यक्ष चरनजीत सिंह अटवाल के प्रिय पात्रों में से एक सौंधी से 23 किलो हेरोइन बरामद की गई है और उन्होंने पाकिस्तान के उन आईएसआई अधिकारियाें के नाम भी बता दिए हैं जो इस देषद्रोह में उनके साथी थे।

हेरोइन की बरामदगी और वह भी अकाली दल के नेता से, एनडीए के लिए यह मुद्दा बहुत भारी पड़ने वाला है। खासतौर पर इसलिए कि सिख धर्म में मादक पदार्थो के कारोबार पर सख्त पाबंदी लगी हुई है और पुरूषोत्तम सौंधी खुद अकाली दल की ओर से तस्करी विरोधी सेल के नेता भी हैं।

अमुतसर हवाई अड्डे से हेरोइन तस्करी होने की खबर दिल्ली पहुंची थी और यहां से राजस्व गुप्तचर विभाग के जासूसों की एक टीम ने अमृतसर जाकर छापा मारा। पुरूषोत्तम सौंधी की इंडिका कार में पीछे की सीट पर टीवी के बाक्स में रखी गई 23 करोड़ की यह हेरोइन मिली। कार चला रहा उसका साथी विट्टू अटवाल गायब हो गया। विट्टू लोक सभा उपाध्यक्ष के परिवार से ही है। पुरूषोत्तम सौंधी ने ष्षुरूआती पूछतांछ में बताया है कि महिलाओं के कपड़ों में छिपा कर यह हेरोइन उन्हें उनके पाकिस्तानी साथियों ने सौंपी थी और इसे कनाडा भेजा जाना था।

पुरूषोत्तम सौंधी ने बहुत मासूमियत से कहा कि वे पहले भी ऐसा करते रहे हैं और आईएसआई के जरिए होने वाली इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा पार्टी के खजाने में जमा करते रहे हैं। इसका दूसरा अर्थ यह है कि अपने को पाक साफ बताने वाली एनडीए का एक घटक दरअसल आईएसआई के पैसे से चलता है। पहले से की कंधार विवाद मे फंसे एनडीए के लिए यह झटका बहुत भारी है।

लोक सभा उपाध्यक्ष श्री अटवाल से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पुरूषोत्तम सौंधी अकाली दल के कार्यकर्ता जरूर हैं लेकिन उनके किसी आपराधिक काम से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। अटवाल ने कहा कि उनकी पार्टी कानून के रास्ते में बाधक नहीं बनेगी। यह बात अलग है कि डीआरआई के अधिकारियों ने जब पुरूषोत्तम सौंधी की कार रोकी थी तो स्थानीय पुलिस ने उनके काम में रोक लगाने की पूरी कोषिष की थी।


भाजपा का हाथ चौटाला के साथ
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च - भाजपा हरियाणा को तमिलनाडु बनाने पर तुली है। हरियाणा में इस बार भाजपा ने इनेलो प्रमुख ओम प्रकाष चौटाला से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया है। हरियाणा में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए भाजपा और इनेलो मिलकर आगामी चुनाव लड़ने की योजना तैयार की है। भाजपा के पाले में यह दूसरा स्वतंत्र संगठन आएगा इससे पहले एडीएमके पहले से ही षामिल है।

पाटर्ाी सूत्रों की माने तो भाजपा आलाकमान हरियाणा में कांग्रेस को खत्म करने के लिए कांग्रेस के विरोधियों को हर हालत में अपने पाले में मिलाना चाहती है। पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि कांग्रेस से किनारा काट चुके पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल और उनके पुत्र कुलदीप विष्नोई को अपने पाले में मिलाने के लिए भाजपा हर संभव प्रयास कर रही है। पार्टी को बेहतर तरीके से मालूम है कि भजनलाल और उनके पुत्र विष्नोई ने जिन सैनिको से अपनी सेना खड़ी की है वह कभी कांग्रेस के ही सिपाही हुआ करते थे। लेकिन कांग्रेस के निर्मोह ने उन्हें पार्टी से अलग रहने को मजबूर कर दिया।

जातिगत समीकरणो को देखा जाए तो भाजपा के साथ चौटाल या भजन लाल में से एक ही ष्षामिल हो सकता है क्योंकि चौटाला जाट समुदाय से हैं जिसमें अधिकतर राज्य पर ष्षासन किया है और पूरा बहुमत लेकर बैठे कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र ंसिंह हुड्डा भी इज्जतदार जाट परिवार से ही हैं। उधर भजन लाल विष्नोई वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भले ही बहुसंख्यक नहीं हो फिर भी भजनलाल ने इसे ष्षक्तिषाली अवष्य बना दिया है। हाल ही में हरियाणा में जाट राजीति के आयामों में लोकदल के चौधरी अजीत सिंह भी दिलचस्पी दिखाने लगे हैं लेकिन पाले बदल बदल कर कुख्यात हो गए चौधरी चरण सिंह के बेटे पर कोई भी विष्वास करने को तैयार नहीं है।

कांग्रेस से भजन लाल और कुलदीप के निकलने से यहां की राजनीति में नया तूफान आने वाला है । कांग्रेस से इस्तीफा देने के कारण यहां पर एक लोकसभा सीट और चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। माना जा रहा है कि कांग्रेस के लिए यह सीटे हथियाना ष्षेर की मांद में हाथ डालने के बराबर होगी। उधर हरियाणा के राजनीति के जानकारों का कहना है कि चूंकि यह सीटे भजन लाल और उसके बेटे को अगर दोबारा मिलती हैं तो हरियाणा की आगे की राजनीति में बहुत बड़ा परिवर्तन होगा।


राज्यसभा में अंबानी के मोहरे
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च - मुकेष और अनिल अंबानी में एक अंतर साफ है। अनिल अंबानी जहां अपने समाजवादी दोस्तों के साथ सीधे राजनीति में आए और राज्यसभा में पहुंच गए, वहीं मुकेष अंबानी ने अपने पिता धीरू भाई की तर्ज पर संसद में अपने मोहरे बिठाने को प्राथमिकता दी है।

अगले महीने राज्यसभा में मुकेष अंबानी के समर्थित और प्रायोजित कम से कम छह सांसद होंगे जिनमे से तीन को तो सीधे सीधे रिलायंस का उम्मीदवार कहा जा सकता है। संसद में अपने प्रतिनिधि पहुंचाने का एक सीधा अर्थ यह होता है कि सरकार की नीतियों के निर्माण पर असर डाला जा सके। स्वर्गीय धीरू भाई अंबानी सांसद लाबी काफी बड़ी थी।

अनिल अंबानी ने खुद राज्यसभा में आकर और वह भी प्रतिपक्ष की ओर से, अपने औद्योगिक हितों के लिए खतरा मोल लिया है। मुकेष अंबानी ज्यादा सधे हुए खिलाड़ी निकले उन्होंने रिलायंस बोर्ड के निदेषक वी के त्रिवेदी के अलावा रिलायंस समूह के कारपोरेट मामलों के मुखिया परिमल नाथवानी को मैदान में उतारा और अपनी आर्थिक ताकत से उनका संसद में पहुंचना सुनिष्चित कर दिया। इस अलावा भूतपूर्व कैबिनेट सचिव एम के सिंह रिलायंस समूह के सलाहकार भी हैं और बिहार से जनता दल युनाइटेड के टिकट पर लड़ रहे हैं।

नाथवानी ने तो झारखंड पहली बार देखा ही तब जब वे राज्यसभा के लिए नामांकन भरने रांची पहुंचे। मुकेष अंबानी ने उनके लिए भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री षिबू सोरेन से हाथ मिलाया और उनके झारखंड मुक्ति मोर्चा की मदद ले ली। नाथवानी की उम्मीदवारी से मोर्चा में दरार पड़ गई है।

पहले से ही राज्यसभा सदस्य रह चुके विवादस्पद वकील आर के आनंद यहां निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। श्री आनंद ने दिल्ली में कहा कि जब नाथवानी बाहर से आकर ग्यारह विधायकों का समर्थन ले सकते हैं तो मै तो झारखंड से पहले भी चुना गया हूं और यहां की राजनीति को अच्छी तरह जानता हॅू। आर के आनंद षिबू सोरेन से नाराज हैं क्योंकि उनके अनुसार सोरेने ने विधायकों को बेच दिया है। सोरेन के वकील रह चुके आनंद बहुत वीरोचित उत्साह से भरकर कहते हैं कि झारखंड की जनता और यहां के जनप्रतिनिधि उन्हें अच्छी तरह जानते हैं। उन्हाेंने कहा कि रिलायंस लोकतंत्र नहीं खरीद सकता है।


मुषर्रफ की चार्जषीट तैयार

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इस्लामाबाद , 24 मार्च - पाकिस्तान की नई सरकार ने परवेज मुषर्रफ के खिलाफ 33 आरोपों की एक सूची के तौर पर अभियोग पत्र तैयार कर लिया है और इनमें से कम से कम चार आरोप ऐसे है जिनमें उन्हें उम्र कैद से लेकर मौत की सजा भी हो सकती है।

मुषर्रफ ने आफतो का अंदाजा पहले से ही लगाया था और इसलिए संविधान में संसोधन करके अपने आप को हर कानूनी दायरे से बाहर करवा लिया था। पाकिस्तान की संसद ष्षपथ के दौरान ही कह चुकी कि वह मुषर्रफ के संविधान की बजाय पाकिस्तान के मूल संविधान को मानेगी। मूल संविधान में प्रेसीडेंट पर संसद में महाभियोग चलाया जा सकता है और परवेज मुषर्रफ की त्रासदी यह है कि उन्होंने देष के सभी जजों को वर्खास्त करके न्याय पालिका को अपना इतना बढ़ा ष्षत्रु बना लिया है कि कोई वकील इस महाभियोग के दौरान उनकी मदद करने भी नहीं आएगा।

मुषर्रफ पर जो सबसे बड़ा और गंभीर आरोप है वह नबाज ष्षरीफ का तख्ता पलटने को लेकर सेना का अवैध इस्तेमाल करने को लेकर है। इसे संविधान के मूल संविधान के अनुसार इस आरोप में मौत की सजा भी हो सकती है। इसके अलावा तालिवानों को समर्थन देने के मामले में भी मुषर्रफ गले गले तक फंसे हुए हैं और पाकिस्तान के खजाने से तालिबानों को मदद देने के बारे में उनके खिलाफ सारे सबूत मौजूद हैं।

परवेज मुषर्रफ ने इसी डर के कारण नई सरकार बनने की भूमिका सामने आते ही सबसे पहला बयान यही दिया कि वे आने वाली सरकार के साथ हर तरह से सहयोग करेंगे और प्रेसीडेंट की मार्यादा मेंं रहते हुए उसके हर फेसले को स्वीकार करेंगें। यह छह महीने पहले की मुषर्रफ की जुबान नहीं है जब वे कहा करते थे कि मुषर्रफ का मतलब ही पाकिस्तान है। इंदिरा इज इंडिया की तर्ज पर बयान देने वाले मुषर्रफ यह भूल गए थे कि उन्हें इंदिरा गांधी के तरह कभी कोई सा्फ जनादेष नहीं मिला।

नई सरकार में फिलहाल मुषर्रफ के खिलाफ मामले तो बनाए हैं लेकिन उनके सुरक्षा इंतजामों के किसी भी किस्म की कमी करने का अभी कोई फैसला नहीं किया गया है। एक सबसे दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता आसिफ अली जरदारी से मुषर्रफ ने मिलने की इच्छा जाहिर की है अभी जरदारी ने इसका कोई जबाव नहीं दिया है लेकिन साफ जाहिर है कि मुषर्रफ हर तरफ से हताष हो चुके हैं और हर संभंव सुरक्षा कवच खोज रहे हैं।




क्रिकेट के षिखर पर कानूनी संग्राम
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मुंबई , 24 मार्च - क्रिकेट का खेल अब हवालात तक पहुंचता नजर आ रहा है। बीसीसीआई के भूतपूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमियां पर 1996 में आयोजित विष्वकप के दौरान लगभग तीन करोड़ रूपए की हेराफेरी करने का आरोप है और बोर्ड के अनुसार पुलिस को इससे संबंधित सारे दस्तावेज सौंप दिए गए हैं। जगमोहन डालमियां ने जबावी हमले में कहा है कि उनके पास वर्तमान बोर्ड के कई सौ करोड़ के घपले के कागज हैं।

डालमियां अपने कागज जब दिखायेंगे दिखायेेंगे लेकिन मुबंई पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान ष्षाखा ने इन दस्तावेजों के आधार पर अदालत से डालमियां के खिलाफ चार्जषीट दाखिल करने की अनुमति मांगी है। वर्तमान बोर्ड ने मार्च 2006 में डालमियां के खिलाफ अमानत में खयानत, जालसाजी और धोखाधड़ी की एफआईआर लिखवायी है।
डालमियां के साथ बोर्ड के भूतपूर्व खजांची एस के नायर और किषोर रूंगटा और ज्योति वाजपेई के अलावा डालमियां के निजी सहयोगी किषन चौधरी के नाम भी अभियुक्तों की सूची में हैं।


ज्गमोहन डालमियां ने एफआईआर दर्ज होते समय ही इन आरोपो को गलत बताया था और इसे प्रतिषोध की कार्रवाई करार दिया था। पिछले साल कोलकाता के क्रिकेट बोर्ड चुनाव में हिस्सा लेने के लिए वहां के उच्च न्यायालय ने कार्रवाई को स्थगित कर दिया था और डालमियां ने बोर्ड के खिलाफ दुष्मनी निभाने के लिए कानून इस्तेमाल करने का आरोप भी अदालत में लगाया था।

इस झगड़े की जड़ में ललित मोदी हैं जिन्हें कानून से सबसे ज्यादा खतरा है। अमेरिका में नषीली दवाओं के धंधे और अपहरण के आरोप में ललित मोदी के खिलाफ मामला साबित हुआ था और उन्हें दस साल की सजा सुनायी गई थी। इसके बाद भारी जुर्माना भरने पर ललित मोदी को इस ष्षर्त पर छोड़ा गया कि वे अमेरिका में ही रह कर अच्छे आचरण का प्रमाण देंगे। ललित मोदी लेकिन भारत भाग आए और उनके खिलाफ अमेरिका में अब भी वारंट मौजूद है। इसलिए श्री मोदी पूरी दुनिया घूमते हैं लेकिन अमेरिका नहीं जाते।





अरबों का खर्च, बिजली लापता
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नई दिल्ली,24 मार्च-बिजली की समस्या का निदान करने के लिए सरकार आये दिन तरह-तरह के इंतजाम करती है पर लालफीताशाही और राजनीतिक अड़चनों की वजह से अंत में मामले का पता चलता है कि रुपये खर्च तो हुए करोड़ पर काम जहां से चला था अभी वहीं पर खड़ा है। कुछ यहींहाल ओबरा की सिर्फ ढाई सौ मोगावाट क्षमता की इकाइयों को चलवाने को लेकर है।
इस इकाइ को चलवाने के लिए अब शासन और राज्य विद्युत उत्पादन निगम के अधिकारी जी-जान से लगे हुए हैं। दरअसल, इस इकाइ को शुरू करने के लिए रुस की एक फर्म जिम्मा दिया गया था लेकिन समय सीमा समाप्त होने के कारण्ा और सरकारी दखलअंदाजी से त्रस्त यह फर्म पांच साल में 160 करोड़ खर्च कर अपना समयसीमा समाप्त कर चुकी है और अब वह अपना बोरिया बिस्तर समेट रही है। इस 160 करोड़ रुपये के खर्च के बवजूद आलम यह है कि इसके अंतर्गत आने वाली इंकाइयां जस की तस वाली स्थिति में हैं। अब इस स्थिति से खार खाई राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने रूसी कंपनी पर हर्जाने का दावां ठोंकने की जुगत में है।

अब इस काम को जल्द से जल्द पूरा करने का जिम्मा भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स (भेल) को सौंपने पर विचार किया जा रहा है। अपनी उम्र पूरी कर चुकी ओबरा बिजलीघर की 50-50 मेगावाट क्षमता की पांच इकाइयों के जीर्णोध्दार का काम 2003 में रूस की कंपनी टेक्नोप्रोम एक्सपर्ट को सौंपा गया था। इस पर तकरीबन 335 करोड़ रुपये व्यय अनुमानित था। दो चरणों में इकाइयों का जीर्णोध्दार कराया जाना था और 2007 तक सभी पांचों इकाइयों को चालू कर दिए जाने का लक्ष्य रखा गया था। बीच में कई बार इकाइयों के जीर्णोध्दार को लेकर कंपनी और उत्पादन निगम के बीच विवाद भी हुआ। करीब 160 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद इस साल जनवरी में जैसे-तैसे 50 मेगावाट की एक नंबर इकाई चालू की गई, लेकिन कुछ ही दिन बाद वह ठप हो गई। इतनी ही क्षमता दो नंबर इकाई का 95 फीसदी काम पूरा हो चुका था इसी बीच 15 मार्च को कंपनी का करार रद्द कर दिया गया।

सूत्रों के अनुसार करार की शर्त है कि समय से काम पूरा न होने पर कंपनी उत्पादन निगम को क्षतिपूर्ति करेगी। चूंकि टेक्नोप्रोम एक्सपर्ट अपना ओबरा से कामकाज समेटने में जुटी है इसलिए उसके ऊपर भुगतान किए कए 160 करोड़ रुपये के अलावा इतने दिनों तक उत्पादन न होने की वजह से हुए नुकसान की भरपाई का दावा ठोंकने की तैयारी की जा रही है। इसके साथ ही जीर्णोध्दार का काम भेल तथा कोटा स्थित इंस्ट्रूमेंटेशन लिमिटेड को सौंपने पर भी विचार किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि जितना श्रम और पैसा 50 मेगावाट की इकाइयों के लिए लगाया जा रहा है उतने में नई इकाइयां लगाई जा सकती हैं। चूंकि ये इकाइयां कमाई का अच्च्छा जरिया हैं इसलिए इनके जीर्णोध्दार में अफसरों की ज्यादा दिलचस्पी है।

जब फाइलों में समार्र्र् गईं गंगा नदी
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हरिद्वार, 24 मार्च-सरकारी बाबूगीरी से पहले आम आदमी त्रस्त था अब पवित्र गंगा भी उनके कारगूजारियों से अपना रंग बदलने को मजबूर हो गई हैं। बाबूओं पर होली का खुमार ऐसा छाया की वह गंगा की अविरल धारा पर ही अपनी कलम चला दी और दूसरों को पानी देने वाली गंगा हरिद्वार में खुद बूंद-बूंद को तरस गई।

हरिद्वार में रविवार सुबह अचानक गंगा सूख गई। किसी को भी समझ नहीं आया कि आखिर गंगा में जल लगातार कम होते-होते इस कदर क्याें घट गया कि आचमन तक करना मुश्किल हो गया। बाद में पता चला कि टिहरी बांध अफसराें और कर्मियाें पर होली का खूमार ऐसा छाया कि भागीरथी को बंद कर दिया था, जिससे रविवार सुबह हरिद्वार में गंगा पानी मांगती नजर आई। सिंचाई विभाग से मिली जानकारी के अनुसार भागीरथी नदी पर बने टिहरी बांध के अफसराें, कर्मियाें ने होली मनाते हुए वे फाटक बंद कर दिए, जो भागीरथी के जल को देवप्रयाग की ओर भेजते हैं। इसका असर यह हुआ कि ऋषिकेश, हरिद्वार तक केवल अलकनंदा का जल ही पहुंचा। गंगा में चूंकि अधिकांश जल भागीरथी का है, अत: सभी जगह गंगा का जल स्तर तक रविवार तडके से घटना शुरू हो गया।

एसडीओ कैनाल केपी सिंह ने बताया कि इस बात की सूचना टिहरी से हरिद्वार प्रशासन को दी भी नहीं गई। पता तब चला जब हरकी पैडी एकाएक जल विहीन हो गई। तीन दिनाें का अवकाश होने के कारण बिना किसी पर्व हरिद्वार में लाखाें यात्रियाें का आगमन होली के अवसर पर हो गया था। रविवार के दिन और अधिक भीड धर्मनगरी में आ गई। रविवार को चूंकि पुलिस की होली भी थी, अत: तमाम वाहन हरकी पैडी के आसपास जमा हो गए। सडकाें पर कहीं भी पुलिस कर्मी नजर नहीं आ रहे थे। हरकी पैडी पर उमडे लाखाेंं श्रध्दालुआें को गंगा के आचमन तक के लिए तो तरसना ही पडा। उधर, खडखडी श्मशान घाट पर जहां केवल अविछिन्न धारा का जल आता है, पानी की बूंद तक नसीब नहीं हुई। श्मशान घाट आए श्रध्दालुआें को भारी कठिनाइयां उठानी पडी। अब सरकारी बाबूगीरी का यह नमूना अपने आप में विचित्र है हालांकि सरकार को इस बाबत सूचित कर दिया है और शासन इस पर क्या कार्रवाई करेगी इसपर मंथन जारी है।

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नई दिल्ली, 24 मार्च- उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर हो रहे उप चुनावों में जरिए एक बार फिर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की साइकिल और मायावती की हाथी आपस में टकराने वाली है हाथी साइकिल का दिल्ली जाने के लिए रोकने में लगी है तो साइकिल हाथी को रोकने में लगी है। दोनों दल इस उप चुनाव को दिल्ली पहुंचने का माध्यम मान रहे हैं।
प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले लगभग यह आखिरी चुनाव है इसलिए सपा और बसपा इसे आम चुनाव से पूर्व सेमीफाइनल मान कर चल रही है और अपना पूरा जरो लगा कर लोकसभा चुनावों की तैयारी का जायजा और केंद्र की सत्ता में अपनी हिस्सेदारी का दावा ठोंकने के लिए फूल एण्ड फाइनल के मूड में है। सपा नेतृत्व का मानना है कि अगर उप चुनाव में बसपा को पटकनी मिलती है तो उसके दिल्ली जाने के मंसूबों को निश्चित ही झटका लगेगा, साथ ही सपा की संभावनाएं भी प्रबल होंगी। पार्टी के जबलपुर सम्मेलन के बाद सारे नेता इन्हीं चुनावों में जुटेंगे। वहीं बसपा की पूरी कोशिश इन चुनावों के जरिए लोकसभा चुनाव के लिए अपनी दावेदारी और मजबूत ढंग से पेश करने की है। मायावती का मंसूबा है चिघाड़ मारता हुआ उनका हाथी पूरे देश में अपना जनाधार मजबूत कर दिल्ली के सिंहासन के लिए अपने घर को दस जनपथ की दर्जा दिला दे।

सपा बसपा के बीच छीड़े घमासान से विचलित भाजपा और कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि दोनों दल अधिसूचना जारी होने के एक हफ्ते बाद तक अपने सारे प्रत्याशियों के नाम तक घोषित नहीं कर सके हैं। प्रदेश में लोकसभा की दो और विधानसभा की तीन सीटों पर उपचुनाव हो रहा है। खास बात यह है कि करनैलगंज और मुरादनगर विधानसभा सीट को छोड उपचुनाव वाली सभी सीटों पर बसपा का कब्जा था। लेकिन आजमगढ और खलीलाबाद पर जिन्होंने (रमाकांत यादव व भालचंद्र यादव) बसपा का परचम फहराया था वह अब बसपा के विरोध में हैं। सबसे दिलचस्प मुकाबला आजमगढ में होना है जहां सपा ने पूर्व काबीना मंत्री बलराम यादव को प्रत्याशी बनाया है और बसपा ने अकबर अहमद डंपी को टिकट दिया है। डंपी एक बार 1998 में बसपा प्रत्याशी के तौर पर यहां से चुनाव जीत चुके हैं।

आक्रामक तरीके से चुनाव लडने वाले डंपी हर तरह से सक्षम हैं। प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार है। पर लोगों का कहना है कि 1998 में चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इस इलाके में मुड़कर नहीं देखा। इस बात का उन्हें थोडा नुकसान हो सकता है। अपेक्षा की जा रही थी कि सपा इस सीट पर रमाकांत यादव को अपना प्रत्याशी बनाएगी पर अपेक्षाओं को लगाम देते हुए सपा ने पूर्व काबीना मंत्री बलराम यादव को प्रत्याशी बनाया है। सपा नेताओं का तर्क है कि रमाकांत की तुलना में बलराम जनता में ज्यादा स्वीकार्य हैं। पर रमाकांत यादव अगर निर्दलीय भी मैदान में उतरते हैं तो सीधा असर बलराम पर ही डालेंगे। खलीलाबाद से सपा ने पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर जीतने वाले भालचंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया है। भालचंद्र ने अपनी राजनीति सपा से ही प्रारंभ की है पर मुलायम सिंह यादव से नाराज होने के कारण उन्होंने पिछला चुनाव बसपा के टिकट पर लडा और जीते। इस बार बसपा प्रत्याशी के तौर पर उनके सामने हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म नारायण तिवारी उर्फ कुशल तिवारी हैं। हर स्तर पर सक्षम होने के बावजूद कुशल विगत समय में लोकसभा के दो चुनाव हार चुके हैं। नतीजे कुछ भी हों पर इतना तय है कि बसपा प्रत्याशी होने के कारण कुशल चुनाव मजबूती से लडेंगे।
जबकि गोंडा जिले की करनैलगंज सीट पर बसपा ने कांग्रेस से चुनाव जीतने वाले लगा भैया को इस्तीफा दिलवाकर उनकी बहन को पार्टी प्रत्याशी बनाया है, वहीं सपा ने पूर्व मंत्री योगेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है। योगेश पिछली बार भी बसपा से ही जीते थे पर मुलायम सिंह की सरकार बनने के दौरान वह पाला बदल कर सपा खेमे में शामिल हो गए थे। लोगों का कहना फिलहाल यही है कि जो व्यक्ति कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत सकता है उसे बसपा का सहयोग मिल जाए तो उसको परास्त करना काफी मुश्किल होगा। बिलग्राम सीट बसपा विधायक उपेंद्र तिवारी के निधन के कारण रिक्त हुई थी। बसपा ने उपेंद्र की पत्नी को इस उम्मीद के साथ टिकट दिया है कि उसे सहानुभूति का भी लाभ मिलेगा। वहीं सपा ने पुराने विधायक विश्राम सिंह यादव को टिकट दिया है। सपा और बसपा दोनों ने इस इलाके में एक महीने पहले से कवायद प्रारंभ कर दी थी। तय है कि मुकाबला कड़ा होगा। मुरादनगर सीट निर्दल विधायक राजपाल त्यागी के इस्तीफे से रिक्त हुई है। राजपाल इस बार बसपा प्रत्याशी हैं नतीजे कुछ भी हों पर लोगों का अभी यही कहना है कि जो व्यक्ति कांग्रेस और निर्दल प्रत्याशी के तौर पर जीत सकता है उसे बसपा के टिकट पर हरा पाना बहुत ही मुश्किल होगा।

जेल की बच्ची, जेल में मायका
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 24मार्च-एक बच्ची जेल में ही पैदा हुई थी। उसकी शादी जेल में ही हुई थी। जब उसे मायके जाकर होली मनाने के लिए कहा गया तो वह अपनी होली जेल में ही जाकर मनाई।

सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुंवरपाल की बेटी मीना ने शादी के बाद पहली होली अपने मायके (सेंट्रल जेल) में मनायी।अलीग़ढ के सजायाफ्ता कैदी कुंवरपाल ने लाड़िली मीना की शादी विगत 24 फरवरी को सेंट्रल जेल में अलीग़ढ के संदीप से की थी। जेल परिसर के मंदिर में आयुक्त सीताराम मीना की देखरेख में स्टाफ ने शादी की रस्म पूरी करवायी। परंपरा के अनुसार शादी के बाद पहली होली लडकी अपने मायके में मनाती है। होली पर वह वहीं जाती है जहां से शादी होती है। मीना अपने पति संदीप के साथ होली से एक दिन पहले जेल पहुंची।

यहां दोनों नव दंपत्ति ने कुंवरपाल से मुलाकात की। जेल के बाहर एक सिपाही के क्वार्टर में दोनों को ठहराया गया। ज्ञात हो कि कुंवरपाल को जेल प्रशासन ने शादी के लिए पैरोल पर रिहा नहीं किया था। उसकी पत्नी विकलांग है। इस कारण जेल प्रशासन ने मीना की शादी जेल परिसर से करायी थी।

सीमा के लोगों को करोड़ो की मदद
डेटलाइन इंडिया
जम्मू, 24 मार्च-खौड़ हलके के 6072 सीमांत विस्थापितों के प्रति परिवार 25 हजार रुपये की आर्थिक मदद मुहैया कराई गई। इसके खौड हलके के 6072 विस्थापित परिवाराें को प्लाट और प्रति परिवार 25000 रुपये की आर्थिक मदद मुहैया करा दी गई है। सीमांत विस्थापिताें को सुरक्षित स्थान पर मकान बनाने लिए आर्थिक सहायता की दूसरी किस्त भी जल्द मिलेगी। शनिवार को मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने खौड़ हलके में सैकडाें लोगाें के बीच विस्थापिताें को प्लाटाें के दस्तावेज और पच्चीस-पच्चीस हजार रुपये के चेक बांटे। राज्य विधानसभा के स्पीकर और खौड़ विधानसभा क्षेत्र के विधायक तारा चंद के मुताबिक सीमांत विस्थापिताें के बीच 15 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की जा चुकी है। बकाया राशि का भुगतान भी जल्द किया जाएगा। उन्हाेंने बताया कि विस्थापिताें को अखनूर तहसील में बनाई गई कालोनी में मकान बनाने के लिए 25-25 हजार रुपये मुहैया कराए गए हैं। मुख्यमंत्री ने अपने हाथाें से इसका शुभारंभ किया। तारा चंद ने बताया कि उन्हाेंने खौड़ में इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत तीन हजार लोगाें को छत मुहैया कराने की मांग भी सीएम से की है।

मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने इस मौके पर सैकडाें लोगाें को संबोधित करते हुए कहा कि कारगिल संघर्ष के दौरान कांग्रेस ने ही दूसरे राज्याें से मदद लेकर विस्थापिताें की मदद की थी। पार्टी ने विस्थापिताें के साथ जो भी वादे किए उन्हें पूरा करके दिखाया है। विधानसभा के स्पीकर तारा चंद, सांसद मदन लाल शर्मा और विधायक शाम शर्मा ने भी इस मौके पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया। स्वास्थ्य एवं मेडिकल शिक्षा मंत्री पंडित मंगत राम शर्मा ने मौजूद लोगाें से विधायक को दोबारा विजयी बनाने आग्रह किया।

मुठभेड़ मौत मामले में अदालत जागी
डेटलाइन इंडिया
जम्मू, 24 मार्च-एक जून, 1999 में हुए एनकाउंटर में मारे एक अज्ञात आतंकी के मामले में जारी ट्रायल को सुप्रीम कोर्ट ने जिला सत्र न्यायालय जम्मू में स्थानांतरित करने का निर्देश जारी किया है। यह एनकाउंटर बडगाम के निकट पखुरपुर इलाके में हुआ था। इस मामले में राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर बडगाम स्थित सेशन कोर्ट में वर्ष 2003 से सुनवाई जारी थी।

मामले में पुलिस की एसओजी टीम में शामिल एसआई बारिस गिल और इशपाल सिंह समेत तीन लोगाें को आरोपी बनाया गया है। ाइम ब्रांच द्वारा इन लोगाें के खिलाफ आरपीसी की धारा 302 और 120-बी के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भान और जस्टिस दलवीर भंडारी ने इस मामले में आरोपी बनाए गए इशपाल सिंह के पिता जनक सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया। याचिका में जनक सिंह ने बडगाम में उनके बेटे से संबंधित मामले की पैरवी के लिए वकीलाें द्वारा पेश होने से इनकार करने को आधार बनाया था।

एक जून, 1999 को गुप्त सूचना के आधार पखुरपुर में एसओजी की टीम ने तलाशी अभियान शुरू किया। इस दौरान हुए एनकांउटर में एसओजी के एक सदस्य को गोली लगी और एक हथियाराें के साथ एक अज्ञात व्यक्ति का शव बरामद किया गया। लेकिन मीडिया रिपोर्ट के आधार पर राज्य मानवाधिकार आयोग ने नोटिस लिया और इस एनकाउंटर में शामिल पुलिस कर्मियाें के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की हिदायत पुलिस को दी। बाद में मामले की जांच ाइम ब्रांच ने की और बीस सितंबर, 2003 को आरपीसी की धारा 302 और 120-बी के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था।

लंदन में बिका अनाथ भारतीय बच्चा
डेटलाइन इंडिया
लंदन, 24मार्च-जब अपनों का साया सर से उड़ जाए तो हमारे देश में रिश्तेदार आगे आकर मदद करते हैं पर एक भारतीय बच्चे मां-बाप के गुजर जाने के बाद उसके रिश्तेदार ने ही उसको बेच कर ब्रिटेन की सड़कों की खाक छानने को मजबूर कर दिया।

वह बच्चा ब्रिटेन में एक बस स्टॉप पर खडा मिला और उसे अंग्रेजी नहीं आती है। पुलिस का मानना है कि र्र्र्कोई तस्कर गिरोह बच्चे को ब्रिटेन लाया है। पुलिस ने बताया कि गुरिंदर सिंह नामक वह बच्चा सिख है और सिर्फ पंजाबी बोलता है। गुरिंदर ने पुलिस को बताया कि उसके चाचा ने उसे बस स्टॉप पर खडे रहने के लिए कहा और कहीं चले गए। पुलिस दुभाषिए के जरिए गुरिंदर से बातचीत कर रही है। उसके मुताबिक उसके माता-पिता का निधन हो चुका है। वह पिछले दो-तीन वर्षों से ब्रिटेन में है।

उसने कहा कि वह अपने चाचा के साथ तीन कमराें के एक फ्लैट में रहता था। उसने कहा कि उसके चाचा श्वेत हैं और उनकी उम्र तीस साल के आसपास है। वह साउथहॉल तक एक बस में अपने चाचा के साथ सफर करके पहुंचा था। साउथहॉल के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने कहा कि बडी हैरानी की बात है कि गुरिंदर को यह पता नहीं है कि वह कहां है और पिछले कुछ वर्षों से वह क्या कर रहा था। यह कोई मामूली घटना नहीं है। पुलिस इस बच्च्चे के परिवार की खोज में जुटी है। पुलिस ने लोगाें से अपील की है कि अगर गुरिंदर के बारे में उन्हें कोई जानकारी है तो पुलिस को बताएं। पुलिस अधिकारी इयान जेनकिंस ने बताया, जब वह हमें मिला तो बुरी तरह से थका हुआ था। यदि कुछ दिनाें तक उसका कोई रिश्तेदार सामने नहीं आया तो हम इसे मानव तस्करी का एक मामला मान लेंगे। हम उससे मंगलवार को भी पूछताछ करेंगे। हो सकता है वह अपने बारे में कोई जानकारी दे सके। वहीं इस पूरी घटना पर साउथहॉल के सबसे बडे गुरुद्वारे के जनरल सेटरी डॉक्टर परविंदर सिंह ने कहा, इस केस में सबसे अधिक शक तो उस गोरे व्यक्ति पर जा रहा है, जिसे यह बच्च्चा अपना अंकल बता रहा है। इस मामले की गहन जांच किए जाने की जरूरत है।

भज्जी के बचाव में आए लिटिल मास्टर
डेटलाइन इंडिया
मुंबई, 24 मार्च- भारत के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर जल्दी मुंह नहीं खोलते लेकिन जब खोलते हैं तो अपनी नपी-तुली बात से विपक्षी की गेंद सीमा रेखा के पार होती है। इसी अंदाज में गावस्कर ने इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया को आड़े हाथों लिया है। खासकर आस्ट्रेलिया में भज्जी पर लगे आरोप उन्हें नागवार गुजरे हैं।
आईसीसी किेट कमेटी के प्रमुख गावस्कर ने अपने कॉलम में के जरिए कहा है, 'वो समय अब बीत चुका है जब अंतरराष्ट्रीय किेट में इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया का दबदबा हुआ करता था। यहां तक वे अभी भी मीडिया में पक्षपात पूर्ण सलाह देने की कोशिश कर रहे हैं। वह आंख खोलकर सच्च्चाई को नहीं देख सकते। विश्व किेट जानती है कि अंतरराष्ट्रीय किेट समुदाय में भारत की आवाज कमजोर नहीं रह गई है। वह एक आश्वस्त आवाज है जो जानता है कि किेट के लिए क्या अच्च्छा है और वह उसे हर हालत में पाएगा।

पूर्व कप्तान ने लिखा, 'अपने खिलाडी हरभजन सिंह पर लगाए गए नस्लभेदी आरोप का अगर भारत ने बचाव किया तो इससे इन लोगाें की चिंता क्याें बढ गई। दुनिया की सभी तकनीकें इस बात को साबित करने में नाकाम रही कि हरभजन ने ऐसा कुछ कहा था। इसके बाद इनकी तकलीफ और बढ गई। खास कर आस्ट्रेलियनों ने अपने ढंग से बयानबाजी की। जब खुद पर पडी तो पचा नहीं पाए।' भारत विश्व किेट का आर्थिक केंद्र बन चुका है।

आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में भी दूसरे पायदान पर पहुंच गया। 2010 में बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार का आईसीसी प्रमुख चुना जाना है। गावस्कर ने यह भी कहा, मैल्कम स्पीड के उत्तराधिकारी के होड में इंद्रजीत सिंह बिंद्रा के शामिल होने को ब्रिटिश और आस्ट्रेलियाई मीडिया ने अच्च्छी तरह पेश नहीं किया। बकौल गावस्कर, 'जब बिंद्रा के नाम की घोषणा की गई तब इंग्लैंड और आस्ट्रेलियाई मीडिया में हडबडी में कई लेख लिखीं गई। यह लिखा गया कि इससे भारत के हाथाें में काफी शक्ति आ जाएगी। भारत की प्रगति से चिंतित ये लोग इस बात को भूल गए कि कुछ साल पहले तक आईसीसी के दो प्रमुख शीर्ष पद आस्ट्रेलियाई ही कार्यरत थे।
मैं टीम इंडिया के इंतजार में हूं
जैक कालिस
वैसे तो हरेक दौरा रोमांच से भरपूर होता है लेकिन भारत के खिलाफ शुरू होने वाली आगामी टेस्ट सीरीज मेरे कैरियर की उन सीरिजों में से एक है जिसके लिए मैं अत्यधिक उत्साहित हूं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय किेट नई ऊंचाइयां छू रही है और वह आस्ट्रेलिया के साथ एक महीने पहले हुई टेस्ट सीरीज बांटने का हकदार थी। हम सभी ने भारत को विवादों पीछे छोड़ कर आस्ट्रेलिया की बादशाहत भी काबू में करते हुए देखा। आस्ट्रेलिया में भारतीय टीम ने बेहतरीन किेट खेली।
मेरे पास पिछले भारत दौरे पर खुशनुमा यादें नहीं है और पिछले दौरे पर तो हमें टेस्ट सीरीज गंवानी भी पडी। कानपुर में शानदार ड्रा खेलने के बाद ईडेन गार्डंस में हमें हार का सामना करना पडा और हम सीरीज 1-0 से हार बैठे। व्यक्तिगत तौर पर ईडेन गार्डंस (जिसे एशियाई किेट का मक्का कहा जाता है) में शतक मेरे कैरियर की सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक है। इस दौरे पर मैं यह देखने के लिए काफी उतावला हूं कि टेस्ट मैचों के लिए पिचें स्पिन या फिर तेज गेंदबाजों की मददगार बनाई जाएगी। भारत किस रास्ते पर जाने के लिए आकर्षित होगा? टीम में कुंबले के साथ हरभजन होंगे, क्या वे सूखी और धूल भरी पिच पर मैच जिताऊ साबित होंगे? या इशांत शर्मा के 'आगाज' के बाद बनी परिस्थितियों के बीच भारत श्रीसंत और इरफान पठान के साथ तेज गेंदबाजों से ज्यादा विकेट हासिल करने की उम्मीद करेगा।

जहां तक मेरा अनुमान है कि भारत अपने स्पिन आमण और अनुभव पर ध्यान केंद्रित करेगा जबकि दक्षिण अफ्रीका की ताकत उसका तेज गेंदबाजी आमण है। डेल स्टेन और मोर्ने मोकेल अफ्रीकी टीम के नए एलेन डोनाल्ड और शॉन पोलाक हैं और उनके साथ निस्संदेह वर्तमान समय के महान तेज गेंदबाज मखाया एंटिनी। यदि उनके पास हाल में समाप्त हुए बांग्लादेश दौरे जैसी स्विंग रही तब हम शुरुआत में ही कुछ विकेट हासिल कर लेंगे। इस सीरीज का एक अन्य रोमांचक पहलू गैरी कर्स्टन और पैडी अपटन की विपक्षी ड्रेसिंगरूम में मौजूदगी होगी। हाल में कर्स्टन ने कहा था कि वह किसी खास खिलाडी के खिलाफ बहुत प्रभावशाली योजना नहीं बना पाएंगे क्योंकि 2004 में उनके रिटायर होने के बाद दक्षिण अफ्रीका टीम के ज्यादातर खिलाडी अब टीम में नहीं है लेकिन मैने किेट नहीं छोडी है और कर्स्टन मेरे खेल को अच्छी तरह से जानते हैं। हम दोनों ही केप टाउन में रहते हैं और वेस्टर्न प्रोविंस के लिए खेले हैं।

कर्स्टन का मेरे कैरियर में अहम योगदान हैं, खासतौर पर शुरुआती सालों में जब मैं शुरुआत कर रहा था। वह मेरे आदर्श और सलाहकार हैं और उसके बाद वह मेरे खास दोस्त बन गए। मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि जब मैं उन्हें टीम इंडिया की टी-शर्ट में देखूंगा तो किस तरह की प्रतियिा जाहिर करूंगा। लेकिन मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि वह किसी तरह प्रतियिा करेंगे क्योंकि वह पेशेवर हैं और परिस्थितियां संभालने में सक्षम हैं। मुझे आश्चर्य होगा यदि किसी दिन के खेल के बाद मैं उन्हें बीयर के लिए प्रस्ताव दूं और वह स्वीकार कर लें। जब कर्स्टन भारतीय टीम के कोच नियुक्त हुए थे तो मुझे काफी खुशी हुई थी। सबसे पहले जो विचार मेरे दिमाग में आया वह था कि कैसे पूर्व कप्तान हैंसी ोनिए हमेशा उनसे सचिन और अजहरुद््दीन की बगेबाजी का लुत्फ उठाने के लिए कहते थे। अब जितना हमारे गेंदबाज परेशान होंगे, कर्स्टन को उतना अधिक मजा आएगा।

अभी कुछ दिन पहले ही महेंद्र सिंह धोनी के उस बयान ने सीनियर्स को काफी तकलीफ पहुंचाई होगी, जिसमें उन्हाेंने कहा था कि आस्ट्रेलिया में उन्हीं के कहने पर वन-डे टीम का चयन किया गया था। जिसका साफ मतलब यह निकाला गया कि वह पूर्व कप्तान राहुल द्रविड और सौरव गांगुली का पत्ता साफ हुआ। अब टीम दक्षिण अफ्रीका से भिडने के लिए तैयारियाें को आखिरी रूप देने में जुटी है। कप्तान अनिल कुंबले जूनियर्स और सीनियर्स के बीच तालमेल बनाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं। उन्हाेंने कहा कि टीम में जूनियर्स और सीनियर्स जैसा कोई बंटवारा नहीं है। टीम एक इकाई की तरह है। सभी खिलाड़ियाें की अपनी भूमिका है और सब एकजुट होकर अभ्यास कर रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीन मैचाें की टेस्ट सीरीज 26 मार्च से शुरू होनी है। इस पर कप्तान कुंबले का मानना है कि घरेलू सीरीज होने का फायदा होने के बावजूद भारत को दक्षिण अफ्रीकी से कडी चुनौती मिलने वाली है। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि मौसम भी इस सीरीज में रंग में भंग का काम नहीं करेगा। नए कोच गैरी कर्स्टन के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कुंबले ने कहा, 'पिछली बार जब दक्षिण अफ्रीकी यहां दो मैचाें की टेस्ट सीरीज खेलने यहां आएं थे तो उन्हाेंने उम्दा प्रदर्शन किया था। कानपुर में हम पहला टेस्ट ड्रा कराने में कामयाब रहे जबकि कोलकाता में दूसरा टेस्ट मुश्किल से जीते। उनकी टीम में कुछ महान खिलाडी हैं और वे बार-बार खुद को साबित कर चुके हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में जीत दर्ज कर उन्हाेंने दिखाया कि उपमहाद्वीपीय क्षेत्र में उनको हलके में लेना भूल होगी।

कुंबले श्रीलंका के ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन और आस्ट्रेलिया के शेन वार्न के बाद टेस्ट मैचाें में तीसरे सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। बतौर कप्तान कुंबले की यह दूसरी सीरीज है। बकौल कुंबले, 'हमें घरेलू सीरीज होने का फायदा मिलेगा। फिर भी यह सीरीज काफी चुनौतीपूर्ण है क्याेंकि दक्षिण अफ्रीका ने हमेशा ही हमारे खिलाफ बेहतर प्रदर्शन किया है।' यह पूछे जाने पर कि क्या आप दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज में भी आस्ट्रेलिया दौरे के समान ही स्लेजिंग की उम्मीद करते हैं! इस पर भारतीय कप्तान का जवाब था, 'यह सीरीज स्लेजिंग के बजाय उम्दा किेट के लिए याद की जाएगी। मैं इसे सकारात्मक देख रहा हूं।'

क्या युवाआें ने अपने प्रदर्शन से सौरव गांगुली और राहुल द्रविड के वन-डे के कैरियर पर पर्दा डाल दिया है? इस सवाल पर बीसीसीआई अध्यक्ष शरद पवार कन्नी काट गए और कहा कि वह चयन मामले पर दखल नहीं देना चाहते है और ये सब बातें प्रदर्शन पर निर्भर करती हैं। सीनियर खिलाड़ियाें ने ट््वंटी-20 टूर्नामेंट से अपना नाम वापस लेकर युवाआें के लिए रास्ता खोला। पवार ने कहा, 'सचिन तेंदुलकर मुझसे मिले थे और उन्हाेंने मुझसे बताया कि मेरी पीढी के खिलाडी ट््वंटी-20 के लिए फिट नहीं हैं। लिहाजा युवाआें को मौका दिया जाए।

' गांगुली और द्रविड की वन-डे टीम में वापसी की संभावना के बारे में उन्हाेंने कहा, 'मैं यह नहीं कह सकता कि उनमें वन-डे के लिए कितना किेट बाकी है अथवा नहीं। चयन मामले में मेरी दखलंदाजी भी नहीं है। इसका फैसला चयनकर्ताआें पर होता है। यहां भी चयनकर्ता ही फैसला ही लेंगे कि किसे मौका दिया जाए और किसे नहीं।'
पवार ने अपने बचपन के दिन को याद करते हुए कहा कि उनके पिताजी ने उन्हें किेट खेलने के लिए पांच रुपये दिए थे जबकि आज आईपीएल में खेलने के लिए महेंद्र सिंह धोनी की बोली छह करोड़ रुपये लगी है। हालांकि उन्हाेंने यह भी स्वीकार किया कि आईपीएल से मिलने वाली भारी भरकम रकम से देश के युवा किेटराें का कैरियर खराब नहीं होगा। बकौल पवार, 'यह पैसा युवाआें को स्थायित्व प्रदान करेगी और बढ़िया करने के लिए प्रेरित करेगी।'
(शब्दार्थ)
जैककालिस दक्षिण अफ्रीका के स्टार खिलाड़ी हैं

होली के बाद के विचार
शशि शेखर
इसे प्रौढ़ावस्था का सिंड्रोम कहूं या फिर अतीत की धुंधलाती यादाें का मोह? होली आते ही मन बेचैन होने लगता है। एक अजब-सी खुमारी मन को घेर उठती है। जी करता है। कुछ नया करूं। पर नया है कहां? महानगरीय सूनापन अंदर भी है और बाहर भी। त्योहार अब अखबाराें और टीवी की स्ीन पर सजे नजर आते हैं। बाजार सरसब्ज होने की खबरें आती हैं। पर मस्ती और रंग के त्योहार की एंद्रजालिक पौराणिकता एक मिथक की तरह हर साल दूर होती नजर आती है।

जब आप तक ये पंक्तियां पहुंचेेंगी, होली का हगा शांत हो चुका होगा। पर इन शब्दाें को सोचते-लिखते समय गहरी तनहाई के बीच होली हर ओर पसरी नजर आती है। मोबाइल हर कुछ देर में बज रहा है। तरह-तरह के एसएमएस नमूदार हो रहे हैं। कुछ में व्यंग्य है, तो कुछ में विद्रूप। कोई मस्ती की बात कर रहा है, तो कोई सुस्त नजर आ रहा है। ठंडाई पीने वालाें को मलाल है कि तन और मन को शीतलता प्रदान करने वाला उनका यह पारंपरिक पेय तामसी शराब से पिट चुका है। दिगी और आसपास 'ड्राइ डेज' शुरू होने से पहले 150 करोड़ रुपये की शराब बिक गई, जबकि ठंडाई का पूरे देश में बाजार सिर्फ 100 करोड़ का है। कुछ मन से बुढ़ाए लोग खुशी से इस तथ्य पर रोना-पीटना मचा सकते हैं

उन्हें इसमें भारतीयता का पतन भी नजर आ सकता है। वेलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे आदि नए-नए त्योहारों और उत्सवों से आजिज इन लोगों को हर समय भय सताता रहता है। वे कांपते रहते हैं। हमारी महान संस्कृति पर हमले हो रहे हैं। कहीं वह खत्म न हो जाए। यह भय पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी रगों में बहता आया है। ईसा से सैकड़ों साल पहले महर्षि वेदव्यास को आर्यों के पतन की चिंता होती थी। उनकी लेखनी ने पतन के तमाम उदाहरण्ा पेश करते हुए द्वंद्व की अनोखी गाथा रच डाली थी। लिप्सा, मोह, मद, आकांक्षा, अभिप्सा, जुगुप्सा, महाभारत में सब कुछ था। जो लोग आज के बाजारवाद को गरियाते नजर आते हैं, वे भूल जाते हैं कि बाजार स5यता के विकास के साथ ही शुरू हुआ। आदमीयत के उद्भव के साथ वह भी उठता और गिरता रहता है।
त्योहाराें की पवित्रता और अस्मिता का रोना रोते वक्त हम यह भी भूल जाते हैं कि यह यांत्रिकता का दौर है। मशीनाें ने हमारे जीवन को जितना सरल बनाया है, उतना ही दुरूह भी कर दिया है। एक समय था, जब हम अपने किसी प्रिय को देखने और उसकी आवाज सुनने के लिए तरसा करते थे। दूरियां भौगोलिक तौर पर उतनी विकराल नहीं थीं, जितनी दिक्कत उनको तय करने में होती थी। 'नौ दिन चले अढाई कोस' की रवायत वाले इस देश में हम त्योहाराें, पर्वों और खास मौकाें का इंतजार किया करते थे। इसीलिए ऐसे अवसर ग़ढे गए। जब लोग मिल सकें। इकट््ठा होकर सुख-दुख बांट सकें। अगर थोड़ी गहराई से देखें, तो यह वजह और आसानी से समझ में आती है। काल और देश के साथ-साथ हमारे यहां त्योहार और परंपराएं भी बदली नजर आती थीं। कभी सोचा है। उत्तर के भगवान गोरे क्याें हैं और दक्षिण भारत के ज्यादातर देवी-देवता किस वजह से गहरी रंगत लिए हुए हैं? महादेव की नगरी काशी की होली का रंग और उनकी ससुराल हिमालय की होली का ढंग एक-दूसरे से बिलकुल जुदा क्याें है?
एक समय था। जब केदारनाथ और बदरीनाथ जाने वाले लोग अपना यिा-कर्म खुद निपटाकर घर से निकलते थे। सात समंदर पार जाना तो जन्म-जन्मांतर का खेल नजर आता था। पर अब कब आप हवा में उडते हैं और कितनी दूरी किस कालखंड में तय कर लेते हैं, इसके मानक बदलते जा रहे हैं। इसी होली पर यांत्रिक आधुनिकता का अद््भुत नजारा देखने को मिला। आगरा में मेरे एक मित्र हैं। रिटायर हो चुके हैं। उनकी दो बेटियां और एक बेटे हैं। ये सारे के सारे विदेश में रहते हैं। दोनाें दामाद हिंदुस्तानी हैं, पर बहू रूसी।
कुछ दिन पहले उन्हें पोते की प्राप्ति हुई। वे दोनाें तत्काल विदेश नहीं जा सकते। क्या करें? विदेश में बैठे उनके बच्च्चाें ने सलाह दी कि वे वेब कैमरा खरीद लें। आनन-फानन में कंप्यूटर से कैमरा जोड़ लिया गया। अब ये दोनाें बुजुर्ग आगरा में बैठे-बैठे इस कैमरे के जरिये अपने नाती-पोते से बात करते हैं। स्ीन पर एक तसवीर उभरती है। कंप्यूटर से ही बच्च्चाें की किलकारियाें की आवाज आती है और हजाराें मील दूर से हैप्पी होली या हैप्पी दिवाली का आदान-प्रदान होता है। हम खुश हो सकते हैं। मॉडर्न तकनीक ने दूरियां घटा दी हैं। पर आगरा के आलीशान मकान में बैठे इस बुजुर्ग दंपति से पूछिए कि उनके लिए दूरियां घटी हैं या बढीं? खुद उनके बच्च्चे भी परदेस में जमकर कमा रहे हैं। खुशी है, तो बस इतनी कि पैसा आ रहा है। आज की व्यावसायिक दुनिया में अकेला मूल मंत्र है-चलते रहो। जो थम जाता है, वह खत्म हो जाता है। असुरक्षा बढ गई है और इसी ने लोगाें को आामक और जुझारू बना दिया है। परदेस में बैठे उन बच्च्चाें को होली या दिवाली की छुट््टी नहीं मिलती। आगरा में बैठे उनके मां-बाप अपनी तनहाई में चाराें ओर पसरी नीरवता को कोसते नजर आते हैं और धीरज धारण कर लेते हैं। उनके बच्च्चे इस दौर के बच्च्चे हैं। मुझे याद आती है वह उक्ति-चरैवति चरैवति, यानी चलते रहो, चलते रहो।
मतलब साफ है। हजाराें साल पहले भी यही युग धर्म था। जो चलता नहीं था, वह समाप्त हो जाता था। आज भी जो चलता नहीं है, उसे अलविदा कहना होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि टेक्नोलॉजी ने लोगाें को अपने से बांध लिया है। अब टेलीविजन को ही लें। इसने लोगाें को खुद से जोड़ा है या सामाजिक ताने-बाने को तोड़ डाला है? लोग अपने घराें में इस बुध्दू बक्से से चिपटे नजर आते हैं। उनकी दुनिया सिमट गई है। टीवी के सहारे वे दिन तो कट जाते हैं, जब काम करना होता है। पर छुटि््टयां या त्योहार फुर्सत के पुराने दिनाें की याद दिलाते हैं। अब तय आपको करना है। आप चरैवति चरैवति की परंपरा में ढलना चाहते हैं या भय की चादर ओढ़कर कांपने की कामना करते हैं? एक बात और। क्या आपने इस बार रंग खेला? हो सकता है। वह रंग भी चीन में बना हो। हमारी कामनाएं ही नहीं, रंगत भी सार्वदेशिक हो गई है। इस तेजी से बदलते दौर की परंपराएं भी रफ्तार से घट-बढ रही हैं। मन कितना भी अकुलाए, हमें उनका खैर मकदम करना चाहिए। (शब्दार्थ)
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)

डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 24 मार्च- हमारी सरकार अपने जासूसों के साथ किस तरह का व्यवहार करती है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने पाक सीमा पर खास मिशन पर काम कर रहे एक जासूस को लोकल पुलिस ने ही तस्करी के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया और इस मामले में उसकी संस्था गुप्तचर ब्यूरो ने उसे पहचानने से भी इंकार कर दिया।

वह देश को दुश्मनों के षड़यंत्र से बचाने निकला था पर उलटा जेल की सलाखों के पीछे अपने जिन्दगी के अहम 25 साल बिता कर कैद से आजाद हो गया है। 5 अगस्त 1983 को जासूस नमन सिंह शेखावत को रात को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। नमन सिंह की नियुक्ति राजस्थान में की गई थी। शेखावत के जीप से उस दिन 530 इलेक्ट्रानिक कैलकुलेटर, 19 ट्रांजिस्टर के साथ टेप और 1767 मीटर के सिंथेटिक फैबरिक बरामद हुए। जो कि पाकिस्तान की थी और इसकी कीमत करीब 19 लाख की थी। शेखावत ने तब कहा था कि वो इसे वाड़मेर के पास गागरिया गांव से बरामद किया है और इसे कस्टम विभाग को जांच के लिए सौंपने जा रहा है। आईबी के सब इंस्पेक्टर शेखावत का जो कुछ भी कहना था ठीक वहीं बात उसके जीप के ड्राईवर ने भी दुहराई। लेकिन पुलिस ने एक न सुनी और उनकी सर्विस रिवाल्वर जब्त कर उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत विदेशी एक्ट, आर्म्स एक्ट और कस्टम एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया। साथ ही उन पर तस्करी करने के लिए उकसाने का भी आरोप लगा।

हालांकि अंत में भारत के उच्च्चत्तम न्यायालय ने जासूस नमन सिंह को 25 साल बाद रिहा कर दिया है। लेकिन यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक ओर जहां भारत सरकार पाकिस्तान की जेल में कैद सर्वजीत सिंह को पहले फांसी के फंदे पर लटकने से बचाने की कवायद के बाद अब उसे पाकिस्तानी कैद से आजाद करवाने के लिए राजनीतिक और रणनीतिक पहलूओं को खंगाल रही है। वहीं दूसरी तरफ इस देश का जासूस सरहद पर सुरक्षा का जायजा लेते हुए षड़यंत्र का आरोप बता कर जेल की चार दीवारी के पीछे अपने जिन्दगी के 25 साल काटने पर मजबूर हो गया।

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