आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Monday, March 10, 2008

जब हॉकी वाकई राष्ट्रीय खेल थी




जब हॉकी वाकई राष्ट्रीय खेल थी
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 10 मार्च-1932 के ओलंपिक की बात है। भारत और ब्रिटेन के बीच ओलंपिक में हॉकी का फाइनल हो रहा था और तब बारिश की वजह से मैदान में इतनी फिसलन हो गई कि भारत के दो फॉरवर्ड खिलाड़ी के डी सिंह बाबू और किशनलाल नंगे पांव ही मैदान में खेलने उतर गए। दोनों के शानदार खेल से भारत ने ब्रिटेन को 4-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता था। 76 साल बाद इसी ब्रिटेन से हार कर भारत पहली बार ओलंपिक में पहुंचने से भी चूक गया।

भारतीय हॉकी के सभी भूतपूर्व खिलाड़ियों ने कल के दिन को भारतीय हॉकी के लिए काला दिन घोषित कर दिया है और भारतीय हॉकी इस दुर्दशा के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार भारतीय हॉकी में परवेज मुशर्रफ बन चुके तानाशाह केपीएस गिल को जिम्मेदार ठहराया है। भूतपूर्व भारतीय कप्तान परगट सिंह का कहना है कि यह तो होना ही था और इसका श्रेय गिल को ही जाना चाहिए। मगर गिल ने सभी आलोचनाओं को झेलते हुए कहा है कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, जब खिलाड़ी मैदान पर खेलेंगे नहीं, तो इसमें महासंघ क्या कर सकता है।

भारती हॉकी महासंघ के उपाध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने भी इस दुर्दशा के लिए पूरी तरह से केपीएस गिल को जिम्मेवार ठहराया है और अपना इस्तीफा दे दिया है। उनसे पहले भारतीय हॉकी टीम के कोच कार्वाल्हो ने भी हार की जिम्मेदारी स्वीकारते हुए इस्तीफा दे दिया है। परगट सिंह का तो साफ तोर पर कहना है कि हॉकी में पैसे की इतनी कमी है, जैसी दुर्दशा भारतीय हॉकी की हुई है।

यहां 1932 के ओलंपिक को भी याद किया जा सकता है, जब भारतीय हॉकी टीम के पास ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए पैसे तक नहीं थे। तब लोगों का मानना था कि अगर गांधी जी लोगों से अपील करें, तो टीम के लिए पैसा जुटाया जा सकता है। गांधी जी उस समय लॉर्ड इर्विन से बात करने के लिए शिमला में मौजूद थे और तब के एक अंग्रेज पत्रकार चार्ल्स न्यूहम ने गांधी जी को हॉकी टीम के लिए पैसा जुटाने के संबंध में लोगों से अपील करने की सिफारिश की। मगर तब सब हैरान रह गए, जब गांधी ने पूछा-यह हॉकी क्या होता है? खास बात यह है कि यह किस्सा हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद्र ने अपनी जीवनी 'द गोल' में लिखा था।

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