आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Thursday, March 27, 2008

अमिताभ बच्चन को छेड़ना खेल नहीं







आलोक तोमर
मुंबई, 27मार्च-महानायक अमिताभ बच्चन पर बाल ठाकरे की पैरोडी उनके भतीजे राज ठाकरे का हमला एक बार फिर हुआ तो बाजी पलट गई। राज ठाकरे की महाराषट्र नव निर्माण सेना ने मुंबई में पोस्ट लगाए जिसमें नाम लिए बगैर अमिताभ बच्चन को भिखारी दिखाया गया था। गुस्से में मुंबई के उत्तर भारतीयों ने न सिर्फ दीवारों से ये पोस्टर फाड़ दिए बल्कि बीच में आए राज ठाकरे के चेलों की पिटाई भी की।
खुद श्री बच्चन मुंबई में नहीं थे लेकिन उनके कर्यालय में संपर्क करने पर बताया गया कि श्री बच्चन ने किसी को ऐसा करने की सलाह नहीं दी थी और वे पहले ही कह चुके हैं कि राज ठाकरे के बचकाने बयानों की वे परवाह नहीं करते। अमिताभ बच्चन ने अपनी मेहनत की कमाई से मुंबई के पड़ोस में लोनावाला में जमीन खरीदी थी जिसे कानूनी मुसीबतों से पार पाने के लिए उन्होंने कहा था कि वे दान नहीं कर सकते हैं। अब जैसे ही उन्होने कहा कि उन्हें जमीन वापस चाहिए तो राज ठाकरे को एक और मुद्दा मिल गया। संयोग से यह जमीन बाला साहब ठाकरे के प्रसिध्द फार्म हाऊस के पड़ोस में ही है। बाल ठाकरे के दोस्त माने जाने वाले मराठा नेता शरद पवार ने भी राज ठाकरे को हिदायत दी है कि वे बड़े नामों के कंधे पर सवार हो कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश नहीं करें।
राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के लिए मुंबई में आतंक बन पाया हो या नहीं लेकिन उसने शिवसेना की जड़ें खोद दी है। मराठी मुद्दे को लेकर जब बाल ठाकरे मुखर हुए तो पूरे उत्तर भारत में बहुत वर्षो से चल रही शिव सेना की उनकी शाखाएं टूट गई और उनके बहुत पुराने शिषयों ने उन्हें गालियां देते हुए उनसे किनारा कर लिया। जहां तक राज ठाकरे की बात है तो उसने पहले बाल ठाकरे के नाम का सहारा लिया और फिर अमिताभ बच्चन जैसे बड़े नाम के सहारे अपने आप को खबरों में बनाए रखने के लिए तूल गए हैं। बहुत सारे उत्तर भारतीयों की तरह अमिताभ बच्चन भी एक संदूक लेकर मुंबई आए थे और अब वे इस मायानगरी पर ही नहीं पूरी दुनिया में बसे हिंदी फिल्मों के प्रेमियों की पहली पसंद हैं। राज ठाकरे का इरादा है कि अमिताभ बच्चन के नाम की नाव पर सवार हो कर वे अपने संगठन की जड़े हिंदी भाषी इलाकों में भी जमाए मगर जो काम उनके चाचा नहीं कर पाए वह राज ठाकरे क्या खा कर करेंगे। जहां तक अमिताभ बच्चन का सवाल है, उन्होने जब इस देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार और दस जनपथ की नाराजगी की परवाह नहीं की तो राज ठाकरे जैसा सड़क छाप गुंडा उनपर कोई असर डाल पाएगा इसका कोई कारण नहीं दिखता। इसीलिए घबरा कर राज ठाकरे ने अमिताभ बच्चन के बारे में लगे पोस्टरों से नाता तोड़ लिया है।

1 comment:

रवि रतलामी said...

सीधी, सपाट, स्ट्रेट किस्म की रपट नहीं है? कुछ और गंभीर एनालिसिस होना चाहिए था, संदर्भ होने थे....