आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Thursday, March 6, 2008

परवेज राडू की दर्दनाक कहानी


Dateline India News Service, 6th March, 2008

फिर एक मासूम कश्मीरी और फिर तिहाड
परवेज राडू की दर्दनाक कहानी

आलोक तोमर
तीन साल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में एक ऐसा कश्मीरी आतंकवादी कैद है, जिसके बारे में कश्मीर पुलिस ने लिख कर दिया है कि वह आतंकवादी नहीं है, दिल्ली पुलिस को झूठा बताते हुए स्पाइस जेट एयरवेज ने उसके यात्रा विवरण देते हुए साबित कर दिया है कि आजादपुर सब्जी मंडी से नहीं, बल्कि नई दिल्ली हवाई अड्डे से पकड़ा गया था।

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल बेगुनाह कश्मीरियों को गिरफ्तार करके तालियां बजवाने और इनाम लूटने में कुख्यात हो चुकी है। उसकी ज्यादातर गिरफ्तारियां या तो निजामुद्दी रेलवे स्टेशन से होती है या आजादपुर सब्जी मंडी से। पुलिस के अनुसार परवेज अहमद राडू नामक इस युवक से तीन किलो आरडीएक्स और हवाला से आए दस लाख रुपए के अलावा कई संदिग्ध दस्तावेज मिले हैं, जिससे यह साबित होता है कि परवेज पाकिस्तानी इशारों पर दिल्ली में धमाके करने आया था।

जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी बताए गए परवेज राडू के साथ अक्टूबर, 2006 में मैंने भी तिहाड़ जेल में दस दिन बिताए थे। उस समय परवेज ने अपनी पूरी कहानी बताते हुए एक लंबा पत्र भी लिखा था, जिसे मैंने केंद्रीय मंत्री और अब कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष सैफुदीन सोज को दिया था। सोज ने आंसू बहाने का अभिनय तो किया था, लेकिन परवेज अब भी जेल में है। अब परवेज को न्याय दिलाने का मामले का का जिम्मा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने ले लिया है और उसने परवेज के पिता प्रोफेसर सनीउल्ला राडू के हवाले से जो सवाल पूछे हैं, उनका जवाब किसी के पास नहीं हैं।

पुणे विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग में पीएचडी पूरी कर रहे परवेज ने मुझे बताया था कि उसके मोबाइल फोन पर कश्मीर से अक्सर फोन आते थे और इसी आधार पर उसे पकड़ा गया। उसने यह भी कहा था कि एक महीने तक उसे हिरासत में लिए जाने की पुष्टि भी नहीं की गई और उसके मोबाइल फोन पुलिसवाले रिचार्ज कराते रहे और घर पर राजी-खुशी की बातें करवाते रहे। इस दौरान उसकी बेतरह पिटाई की गई, करंट लगाया गया, उल्टा लटका कर पीटा गया और फिर देर रात एक मजिस्टे्रट के यहां पेश करके उसे कैद हुआ घोषित कर दिया गया। बहुत धूमधाम से हुई इस प्रेस कांफ्रेंस का लाइव प्रसारण जब परवेज के परिवार वालों ने देखा, तो वे दिल्ली भागे और उन्होंने पुलिस से अपने बेटे के निर्दोष होने की बात कही।

परवेज के हक में सारे सबूत हैं। कश्मीर के जिस सोपोर शहर का वह रहने वाला है, वहां के पुलिस अधीक्षक, वहां के निवासियों, नगरपालिक और सभी रेजिडेंट्स वैलफेयर एसोसिएशन और स्थानीय बार कांउसिल ने लिख कर दिया है कि परवेज के बारे में कभी आतंकवादियों से रिश्ते की बात सुनी ही नहीं गई और वह पढ़ने-लिखने वाला एक शर्मीला सा लड़का है। परवेज ने मुझे बताया था कि स्पाइस जेट की उड़ान से दिल्ली आ कर जब वह पुण्ो की दूसरी उड़ान पकड़ने जा रहा था, तो उसे स्पेशल सैल स्टाफ ने मामूली जांच-पड़ताल के नाम पर रोक लिया। उसके बाद से वह तिहाड़ जेल में ही है। बीच में कुछ समय उसे स्पेशल सैल द्वारा बनाए गए एक सेफ हाउस नाम के फ्लैट में रखा गया, जिसके बारे में परवेज सिर्फ इतना बता सका था कि वहां पड़ोस में कोई स्कूल था क्योंकि बच्चों और घंटियों की आवाज उसे सुनाई पड़ती थी।

परवेज ने बताया था कि स्पेशल सैल के लोधी रोड स्थित मुख्यालय में उसे हर तरह की यातना दी गई। परिवार वालों को उसी के मोबाइल से यह कहलवाया गया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है और इसीलिए वह जल्दी ही सोपोर पहुंचेगा। इसी दौरान पुलिस की टीम उसे पुणे ले गई और पुलिस के पास पहले से आतंकवादियों के जो नंबर थे, उन पर देश-विदेश में बात करवाई गई। तब तक चूंकि वह आधिकारिक रूप से कैद नहीं था इसीलिए इस बातचीत को अब मुकदमे में उसके आतंकवादी संपर्कों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। परवेज ने बताया था कि पुणे में एक होटल के कमरे में उसे बंद किया गया था और वही स्पेशल सैल के एक सब इंसपेक्टर एक बड़ा बैग ले कर आए थे, जिसमें दस लाख रुपए मौजूद थे। बाद में दिल्ली ला कर उसकी पिटाई करके पहले से लिखे हुए एक इकबालिया बयान पर उसके दस्तखत करवा लिए गए, जिसमें कहा गया था कि ये दस लाख रुपए उसे पाकिस्तानी आतंकवादियों ने दिल्ली में अपना अड्डा जमाने के लिए दिए थे।

जो अब अल्पसंख्यक आयोग कह रहा है, वही उस समय परवेज ने भी कहा था। उसने कहा था कि उसने आरडीएक्स कैसा होता है, यह आज तक देखा ही नहीं है और किसी भी आतंकवादी से उसका दूर-दूर तक कोई संपर्क नहीं है। परवेज के पिता प्रोफेसर समानुल्ला ने जब अल्पसंख्यक आयोग से शिकायत की, तो आयोग ने दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल के उपायुक्त आलोक कुमार ने इसी 12 फरवरी को आयोग को पत्र लिख कर बताया कि परवेज अहमद राडू उर्फ राजू जैश ए मोहम्मद का एक सदस्य है, जो हथियार, गोला-बारूद, विस्फोटक और पैसा आतंकवादियों के लिए लाने-ले जाने का काम किया करता था। परवेज के जो आका थे, आलोक कुमार के अनुसार उन लोगों ने ही उसे दिल्ली में अपना अड्डा बनाने के लिए कहा था और इसी के लिए वह दिल्ली आया था। 11 जनवरी, 2007 को परवेज अहमद के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरिशंकर शर्मा की अदालत में अभियोगों पर बहस चल रही है।

परवेज की आखिरी पेशी अदालत में 25 फरवरी को हुई थी और 26 तारीख को उससे मिल कर उसके प्रोफेसर पिता अल्पसंख्यक आयोग के पास पहुंचे थे। दिल्ली पुलिस खास तौर पर अपने पिछले पर्याप्त कुख्यात आयुक्त कृष्ण्ा कांत पॉल के जमाने में बहुत ज्यादा सक्रिय हो गई थी और दिल्ली की तिहाड़ जेल में आज भी पचास से ज्यादा ऐसे कश्मीरी कैदी हैं, जिनके खिलाफ कोई मामला मौजूद नहीं है। कश्मीर बार एसोसिएशन ने मांग की है कि इन सभी कैदियों को कश्मीर ले जाया जाए, जहां इन पर निष्पक्षता से मुकदमा चल सके। परवेज राडू का भाग्य कब और कब तक उसका साथ देगा, यह कोई नहीं जानता लेकिन यह सबको पता है कि दिल्ली पुलिस झूठ को सच और काले को सफेद करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ती।


नटवर सिंह को मिला भाजपा का सहारा
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 मार्च-भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की सूची में अब नटवर सिंह का नाम भी जुड़ने वाला है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लाल कृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह दोनों को इसके लिए मनाने की कोशिश चालू कर दी है। भाजपा की एक ही दिक्कत है और वह कि इराक के तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में पार्टी ने ही नटवर सिंह पर सोनिया गांधी और कांग्रेस के लिए ही वसूली करने का आरोप लगाया था और बहुत दिनों तक संसद को बंद रखा था।

लेकिन अब नटवर सिंह जब कांग्रेस से आधिकारिक रूप से इस्तीफा दे चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि वे अपनी बची हुई जिंदगी में वापस कांग्रेस में नहीं जाएंगे, तो भाजपा उन्हें मंजूर करके अपना ही भला करेगी। भाजपा के पास राजस्थान में जाट नेता नहीं है, जबकि गुर्जर और मीणा नेताओं की भरमार है। नटवर सिंह को भाजपा की मुख्यधारा में लाने का पहला कदम यह हो सकता है कि राजस्थान से राज्य सभा के लिए नटवर सिंह निर्दलीय खड़े हों और भाजपा अपना पूरा समर्थन दे कर उन्हें संसद में ले आए।

राजस्थान में भाजपा के पास राज्य सभा की कम-से-कम दो सीटें चुनवाने लायक वोट हैं और इनमें से एक सीट हाल में ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए महेश शर्मा के लिए सुरक्षित रखी जानी है। महेश शर्मा भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे और अब समाज सेवा कर रहे नानाजी देशमुख के सचिव रह चुके हैं और नानाजी के किसी भी सचिव को पार्टी ने आज तक संसद पहुंचाने से इनकार नहीं किया। सुब्रमण्यम स्वामी भी इसी रास्ते संसद में पहुंचे थे।

भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर भी राज्य सभा में आने के लिए उत्सुक हैं और वसुंधरा राजे असल में उनका ही साथ देना चाहती हैं, लेकिन इस बारे में आखिरी फैसला संघ परिवार का होगा। वसुंधरा राजे का तो इरादा यह भी है कि जाट नेताओं के अलावा राजस्थान में बहुसंख्यक वोट बैंक माने जाने वाले भीलों को भी पार्टी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए इसीलिए वे किसी भील नेता का नाम विकल्प के तौर पर सुरक्षित रखे हुए हैं।

शत्रुघ्न सिन्हा का बगावती पत्र
डेटलाइन इंडिया
पटना, 6 मार्च-फिल्म अभिनेता और भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने राज्य सभा की उम्मीदवारी को ले कर भाजपा आलाकमान के साथ तलवारें खींच ली हैं। पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा है कि वे पहले से इतने प्रसिध्द है कि उन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए राज्य सभा में आने की जरूरत नहीं है।

बिहार में राज्य सभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें से दो सीधे जनता दल यूनाइटेड के हिस्से में जानी हैं, भाजपा के हिस्से में एक ही सीट आनी है, जहां से राष्ट्रीय जनता दल के हरियाणा निवासी नेता और केंद्रीय मंत्री प्रेम चंद गुप्ता दोबारा चुनाव लड़ेंगे। यहां उनके सामने कौन उतरे, इस पर बिहार में राज कर रही जनता दल यूनाइटेड और भाजपा में एक राय नहीं बन पाई है। बाकी दो सीटों के लिए भाजपा और जनता दल यूनाइटेड दोनों अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने एक सीट जनता दल यू को देने की बात तकनीकी रूप से स्वीकार कर ली है। फिलहाल अरबपति व्यापारी किंग महेंद्र यहां से सदस्य हैं। दरअसल भाजपा ने खुद भी प्रदेश स्तर पर शत्रुघ्न सिन्हा को राज्य सभा भेजने के लिए जनता दल यू की मदद मांगी है लेकिन पार्टी भूतपूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री सी पी ठाकुर को भी राज्य सभा में भेजना एक तरह से अपनी मजबूरी ही मानती है। यहीं पर आ कर श्री सिन्हा की उम्मीदवारी को खतरा पैदा हो गया है और फिल्मों आदि में सिन्हा चाहें जितने लोकप्रिय हों और देशभर में उनके लाखों प्रशंसक भी बने रहे, लेकिन सच यही है कि भाजपा में उनकी राजनैतिक उपयोगिता बहुत अधिक नहीं मानी जा रही और इसका एक कारण यह भी है कि कायस्थ वोट बैंक बिहार में ज्यादा प्रभावशाली नहीं है।

शत्रुघ्न सिन्हा ने इस पूरे झमेले को नया मोड़ देते हुए पार्टी अध्यक्ष को लिखा है कि आप मेरा पिछला नामांकन पत्र देख लीजिए और उसके साथ संपत्ति और बचत का ब्योरा देख लीजिए। मेरे पास इतना है कि मुझे राजनीति से कुछ कमाने की जरूरत नहीं है और आपको यह बताने की भी जरूरत नहीं है कि पार्टी मेरे लिए नहीं, मैं पार्टी के लिए समर्थन जुटाता हूं। शत्रुघ्न सिन्हा की छवि को देखते हुए यह भाषा अटपटी नहीं है लेकिन यह भी सही है कि भाजपा के इतिहास में इस तरह की भाषा किसी नेता या कार्यकर्ता ने इस्तेमाल नहीं की। उमा भारती अपवाद हैं, लेकिन उनका जो हाल हुआ है, वह आप सब जानते ही हैं।

स्मिता भाभी से भी डरते हैं उध्दव ठाकरे
डेटलाइन इंडिया
मुंबई, 6 मार्च-स्मिता ठाकरे राज्य सभा सदस्य बन कर संसद पहुंचने वाली ठाकरे परिवार की पहली महिला बनने की तैयारी कर रही हैं, मगर उनके देवर और शिव सेना के कार्यकारी अध्यक्ष उध्दव ठाकरे उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन गए हैं। सेना सूत्रों के मुताबिक उध्दव ने अपने पिता और शिव सेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे को साफ कह दिया है कि अगर स्मिता को पार्टी में उनके बिना किसी योगदान के राज्य सभा भेजा चाहता है, तो इससे पार्टी में गलत संदेश जाएगा।

उध्दव ने अपने बड़े भाई जयदेव ठाकरे की पत्नी स्मिता को राज्य सभा में जाने से रोकने के लिए पार्टी के कुछ बड़े नेताओं को भी अपने साथ कर लिया है, मगर इन नेताओं की परेशानी यह है कि वे बाल ठाकरे के डर से खुलेआम स्मिता का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। इनमें से एक नेता ने कहा कि जब स्मिता ठाकरे ने पार्टी के लिए कुछ किया ही नहीं, तो उन्हें राज्य सभा में भेजने का क्या मतलब है। इस नेता का कहना है कि बिना मेहनत किए अगर उन्हें राज्य सभा में भेजा जाएगा, तो इससे पार्टी के मेहनती नेताओं और कार्यकर्ताओं को तो निराशा होगी। मगर यह नेता यह कहना भी नहीं भूले कि उनका नाम किसी भी हालत में न छापा जाए क्योंकि वे बाला साहब के कोप का शिकार नहीं बनना चाहते।

उध्दव के एक नजदीकी नेता का कहना है कि स्मिता ठाकरे के राज्य सभा पहुंचने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि फायदा ही होगा और यह बात उध्दव भी समझते हैं। फिर भी अगर वे अपनी भाभी के राज्य सभा में जाने का विरोध कर रहे हैं, तो इसकी सिर्फ एक ही वजह है और वह यह कि स्मिता ठाकरे आगे चलकर उनके लिए खतरा बन सकती है। यहां यह भी याद किया जा सकता है कि बाल ठाकरे को अपने भतीजे राज ठाकरे को पार्टी से सिर्फ इसीलिए बाहर करना पड़ा था क्योंकि वे उनके बेटे उध्दव के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गए थे और वे उध्दव से ज्यादा समझदार और लोकप्रिय नेता भी माने जाते हैं। फिर भी अंतिम फैसला बाला साहब का ही होगा और सब जानते हैं कि बाला साहब अपनी बहू को कितना पसंद करते हैं।

शिवरात्रि के उपवास पर अबू सालेम!
डेटलाइन इंडिया
मुंबई, 6 मार्च-डॉन अबू सालेम को ने महाशिवरात्रि से एक दिन पहले ही ऑर्थर रोड जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी थी और उनकी यह भूख हड़ताल शिवरात्रि पर जारी रही। यह बात अलग है कि सालेम को यह नहीं पता था कि भूखा रह कर वह एक तरह से शिवरात्रि का व्रत भी कर रहा है।

सालेम के वकील रशीद अंसारी के मुताबिक उनके मुवक्किल ने भूख हड़ताल इसीलिए शुरू की है कि क्योंकि मुंबई पुलिस अब उन्हेें सुनवाई के दौरान अदालत नहीं ले जाएगी। पुलिस के संयुक्त आयुक्त राकेश मारिया का कहन है कि ऐसा मजबूरी में किया गया है। उनके अनुसार असल में गृह विभाग के पास खुफिया रिपोर्ट आई थी कि सालेम को जेल से बाहर ले जाते वक्त आतंकवादी हमला हो सकता है और वह मौके का फायदा उठा कर भाग भी सकता है इसीलिए गृह विभाग ने जेल प्रशासन को निर्देयश दिया है कि उसे तब तक किसी भी दूसरे राज्य की पुलिस को न सौंपा जाए, जब तक मुंबई में चल रहे उसके खिलाफ मामलों का ट्रायल पूरा नहीं हो जाता।

सालेम के खिलाफ मुंबई में तीन मामले चल रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा मामला मुंबई बम धमाकों का है और उसाके बाद प्रदीप जैन नाम के बिल्डर और अजीत देवानी की हत्या का है। सालेम को इससे पहले ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली भी लाया गया था, मगर अब जेल के बाहर की दुनिया से काफी समय तक दूर रह सकता है और इसी वजह से उसने भूख हड़ताल शुरू की है। गृह विभाग ने सालेम की सुरक्षा कड़ी करने और उसे जेल से बाहर कहीं न ले जाने की सख्त हिदायत दी है।

मुंबई बम धमाकों की सुनवाई के लिए सालेम को जेल से बाहर नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि टाडा अदालत जेल के परिसर के भीतर ही बनाई गई है। इसके अलावा बाकी दोनों मामलों की सुनवाई में भी वह वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लेगा। उसके वकील का कहना है कि यह सरासर गलत है और सालेम की जान का कोई खतरा नहीं है।

मां के चक्कर में मारी गई बेटी
डेटलाइन इंडिया
कोलकाता, 6 मार्च-छह साल की मासूम प्राप्ति को अपने मां के कुकर्मों की सजा भुगतनी पड़ी और कोलकाता पुलिस ने खुलासा किया है कि प्राप्ति और उसकी मां सरबोंती घोष की हत्या इसीलिए कर दी गई थी क्योंकि वे एक प्रेमी युगल को ब्लैकमेल कर रही थीं।

असल में सरबोंती के अपने पड़ोस में रहने वाले पैंतीस साल के समीर बरीक के साथ अवैध संबंध थे, मगर समीर सोमरशी दास नाम की युवती से भी प्रेम करता था और वह अपनी प्रेमिका से प्यार करने के लिए सरबोंती के घर का ही इस्तेमाल करता था। पुलिस अधीक्षक नीरज सिंह के मुताबिक समीर सोमरशी को लेकर सरबोंती के पति पार्थो घोष की अनुपस्थिति में उसके घर आता था और सरबोंती अपने घर का इस्तेमाल करने के लिए समीर से हर बार पांच सौ रुपए वसूलती थी।

मगर बाद में सरबोंती ने अपना मुंह ज्यादा खोलना शुरू कर दिया और वह समीर से ज्यादा पैसों की मांग करने लगी। समीर और उसकी प्रेमिका पर दबाव बढ़ाने के लिए सरबोंती ने उनकी एक आपत्तिजनक तस्वीर अपने मोबाइल फोन के कैमरे से खींच ली और इस तस्वीर के आधार पर उन दोनों को ब्लैकमेल भी करने लगी। सरबोंती की इसी ब्लैकमेलिंग से तंग हो कर समीर और उसकी प्रेमिका सोमरशी ने सरबोंती को ठिकाने लगाने का इरादा बना लिया।

26 फरवरी को पहले सोमरशी सरबोंती के घर दोपहर ढाई बजे के करीब पहुंची और उसके कुछ मिनट बाद ही समीर भी वहां पहुंच गया। सरबोंती अपने बैडरूम में टीवी देख रही थी। समीर के मुताबिक उसने पहले सरबोंती से वह मोबाइल फोन मांगा, जिसमें उसने उसकी और सोमरशी की तस्वीर ली हुई थी, मगर जब उसने मोबाइल देने से इनकार कर दिया, तो उसने दस्ताने पहन कर सरबोंती की गला दबा कर हत्या कर दी। मगर इतने में सरबोंती की बेटी प्राप्ति जग गई और सजा से बचने के लिए इन दोनों ने इस नन्ही बेटी की भी हत्या कर दी। मगर एक मोबाइल फोन के लिए दो हत्याएं करने वाला समीर अपनी प्रेमिका के मोबाइल फोन की वजह से ही धरा गया।

पराजित टीम का मैन ऑफ द सीरिज
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली, 6 मार्च-कंगारूओं की बेईमान और बदतमीज टीम का घमंड टीम इंडिया ने त्रिकोणीय श्रृंखला जीत कर तोड़ दिया, मगर कंगारू बेईमानी करने से फिर भी बाज नहीं आए। आस्टे्रलिया क्रिकेट बोर्ड ने श्रृंखला के आयोजकों के साथ मिलीभगत करके हारी हुई टीम के खिलाड़ी को मैन ऑफ द सीरिज का पुरस्कार दे कर खेल भावना को एक बार फिर कलंकित कर दिया।

टीम इंडिया द्वारा यह श्रृंखला जीतने के बाद माना जा रहा था कि इस श्रृंखला में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले भारत के गौतम गंभीर को मैन ऑफ द सीरिज चुना जाएगा, लेकिन तब सब हैरान रह गए जब यह पुरस्कार देने के लिए आस्टे्रलिया के नाथन ब्रेकन को बुलाया गया। क्रिकेट की परंपरा के अनुसार मैन ऑफ द सीरिज का पुरस्कार आम तौर पर सीरिज जीतने वाली टीम के ही खिलाड़ी को मिलता है और श्रृंखला में सबसे ज्यादा 440 रन बनाने वाले गंभीर के इसके सही हकदार भी थे। गंभीर इस श्रृंखला के अकेले खिलाड़ी थे, जिन्होंने दो शतक भी जमाए।

गौतम गंभीर, सचिन तेंदुलकर और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी सीबी त्रिकोणीय वनडे क्रिकेट श्रृंखला में बल्लेबाजी में पहले तीन स्थान पर रहे जबकि गेंदबाजी में बाजी आस्ट्रेलिया के नाथन ब्रेकन ने मारी। श्रृंखला में दो शतक जड़ने वाले इकलौते भारतीय बल्लेबाज गंभीर ने 10 पारियों में 55 के औसत से 440 रन बनाये। मास्टर बल्लेबाज तेंदुलकर ने दो फाइनल मैचों में एक शतक और 91 रन बनाकर अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया। वह 44.33 की औसत से 399 रन बनाकर दूसरे स्थान पर रहे। मोर्चे से टीम की कमान संभालने वाले धोनी ने 347 रन बनाए और वह तीसरे स्थान पर रहे। टेस्ट श्रृंखला में छाप नहीं छोड़ सके धोनी का औसत 69.40 था जो सर्वश्रेष्ठ रहा। श्रीलंका के कुमार संगकारा 46.57 की औसत से 326 रन बनाकर चौथे स्थान पर रहे।

आस्ट्रेलियाई टीम के खराब प्रदर्शन का आलम यह रहा कि बल्लेबाजों की सूची में उसकी नुमाइंदगी पांचवें नंबर से शुरू हुई। विकेटकीपर बल्लेबाज एडम गिलक्रिस्ट पांचवें (32.20 की औसत से 322 रन) स्थान पर रहे। उनके बाद माइकल क्लार्क (314), मैथ्यू हैडन (298) और माइक हस्सी (278 रन) का नंबर रहा। मुंबई के युवा बल्लेबाज रोहित शर्मा नौवें और खराब फार्म से जूझ रहे युवराज सिंह 11वें स्थान पर रहे। लगातार अच्छा प्रदर्शन करने वाले ब्रेकन ने 16.52 की औसत से 21 विकेट लिये। तेज गेंदबाज ब्रेट ली 16 विकेट लेकर दूसरे स्थान पर रहे। इस दौरे पर भारतीय क्रिकेट की खोज ईशांत शर्मा 14 विकेट चटकाकर तीसरे स्थान पर रहे। श्रीलंका के लसिथ मालिंगा और आस्ट्रेलिया के मिशेल जानसन का नंबर उनके बाद रहा। भारत के इरफान पठान, दूसरे फाइनल के 'मैन ऑफ द मैच' प्रवीण कुमार और एस श्रीसंत क्रमश: छठे सातवें और आठवें स्थान पर रहे।

ब्रेकन को मैन ऑफ द सीरिज चुनने पर रवि शास्त्री ने भी ऐतराज जताया और कहा कि आस्टे्रलिया वाले कभी नहीं सुधरेंगे। उन्होंने कहा ब्रेकन ने हालांकि बहुत बेहतरीन प्रदर्शन किया है मगर क्योंकि श्रृंखला टीम इंडिया ने जीती है इसीलिए यह पुरस्कार गंभीर को ही मिलना चाहिए था।
गांधी पर भारी पड़ा क्रिकेटर
डेटलाइन इंडिया
लंदन, 6 मार्च-क्रिकेट महात्मा गांधी भी भारी पड़ गई है। इंग्लैंड के लीस्टर शहर में रहने वाले गुजराती असल में यहां के डोनाल्डसन रोड के कोने पर गांधी जी की एक कांस्य की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं और इसके लिए बंगाल के मूर्तिकार गौतम पॉल को बीस हजार पौंड यानी लगभग साढ़े तेरह लाख रुपए की प्रतिमा बनाने का ऑर्डर भी दे दिया गया है। मगर यहां के स्थानीय लोग यहां पर गांधी जी की बजाय इंग्लैंड के मशहूर क्रिकेटर रहे डेविड ग्रोवर की प्रतिमा लगाना चाहते हैं।

गांधी जी की प्रतिमा स्थापित करने का फैसला यहां के समन्वय परिवार ने लिया था। समन्वय परिवार एक धमार्थ संस्था है और इसके सचिव जितेंद्र आचार्य के मुताबिक समन्वय परिवार की दुनियाभर में सत्तर से ज्यादा शाखाएं हैं। आचार्य का कहना है कि हम दुनियाभर में सत्य, शांति और अहिंसा के प्रतीक के तौर पर विख्यात बापू की लीस्टर में प्रतिमा लगा कर यहां के लोगों को एक बढ़िया तोहफा देना चाहते हैं।

मगर समन्वय परिवार का सपना तोड़ने पर लीस्टर के स्थानीय लोग तुल गए हैं। हालांकि यहां पर गुजरातियों की संख्या काफी अच्छी-खासी है, मगर ये लोग यहां के अंग्रेजों का मुकाबला नहीं कर सकते। स्थानीय लोगों का कहना है कि गांधी जी का इंग्लैंड से कोई सीधा संपर्क नहीं है इसीलिए यहां उनकी प्रतिमा नहीं लगाई जा सकती। मगर इन लोगों को यह याद नहीं है कि उनके पूर्वजों को भारत से खदेड़ने में गांधी जी की ही सबसे अहम भूमिका मानी जाती है।

यहां के ज्यादातर स्थानीय निवासी क्रिकेटर डेविड ग्रोवर की प्रतिमा लगाने की वकालत कर रहे हैं और गांधी की प्रतिमा लगाने का विरोध कर रहे हैं। काफी लोग फुटबॉल की दुनिया में इंग्लैंड का नाम करने वाले गैरी लाइनेकर की प्रतिमा लगाने की भी मांग कर रहे हैं। मगर समन्वय परिवार के लिए राहत की बात यह है कि गांधी फिल्म में गांधी बन कर ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाले रिचर्ड एटनबरो यहां पर गांधी जी की प्रतिमा लगाने की जबर्दस्त वकालत कर रहे हैं। समन्वय परिवार का कहना है कि वे 2 अक्टूबर को गांधी जी प्रतिमा यहां स्थापित करना चाहते हैं और इससे पहले वे सभी झमेलों को सुलझा लेंगे।
गोवा बनने के रास्ते पर उत्तराखंड
डेटलाइन इंडिया
देहरादून, 6 मार्च-उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाने के बाद भुवन चंद्र खंडूरी ने और कोई उपलब्धि बनाई हो या न हो, मगर आबकारी विभाग का खजाना जरूर भर दिया है। इस साल आबकारी विभाग की कमाई पिछले साल के मुकाबले सौ करोड़ ज्यादा होने की उम्मीद है।

इतनी दारू की बिक्री के बाद भी पियक्कड़ों को चिंता करने की जरूरत नहीं है, होली पर दारू की जरा भी कमी नहीं होगी। साल भर के शेष बचे कोटे से दुकानें सजी हुई हैं। इस महीने में बिक्री के सभी पुराने रेकार्ड टूटने की उम्मीद की जा रही है। वित्तीय वर्ष के लिहाज से मार्च आखिरी महीना है। आबकारी मंत्रालय का चेहरा बीते साल के मुकाबले खिला हुआ है, वजह इस बार कुल आय में 100 करोड़ तक की बढ़ोत्तरी होने जा रही है। इसके उलट दूसरा पहलू पियक्कड़ों का है। होली का धमाल शुरू होने में अब ज्यादा दिन नहीं है तो क्या शराब का कोटा पहले ही खरीद कर रख लें ? पर, इसकी जरूरत नहीं है। वजह, दुकानों पर बीते महीनों की पर्याप्त बोतलें बची हुई हैं। इस महीने का कोटा भी उन्होंने उठा लिया है।

बीते वर्ष हर महीने शराब और बीयर की 15.8 लाख बोतले बिकी। इसमें बार की बिक्री भी जोड़ लें तो यह संख्या 17.25 लाख बोतल हो जाएंगी। इस वक्त दुकानों के पास पिछले महीनों की शेष बची और इस महीने के कोटे में मिली बोतलों को मिलाकर देखें तो पियक्क्ड़ों को दारू की कतई कमी नहीं होगी। पिछले महीनों के औसत के मुकाबले दो गुना से अधिक दारू मौजूद है। यानि, बिक्री के पुराने रेकार्ड टूटेंगे।

मौजूदा नीति में शराब विक्रेताओं को इस बात की छूट दी गई है कि वे आसानी से अपनी श्रेणी चेंज कर सकते हैं। मसलन कोई दुकान 12 हजार बोतल तक की श्रेणी में है और उसे 30 हजार तक की श्रेणी में आना है तो संबंधित दुकान संचालक बैलेंस फीस अदा करके अतिरिक्त शराब ले सकता है। आबकारी मंत्री मदन कौशिक का कहना है कि प्रदेश में दुकानों पर जरूरत के अनुरूप शराब उपलब्ध है, लेकिन यूपी, हिमाचल और हरियाणा से शराब तस्करी के मामलों से कड़ाई से निपटा जाएगा। होली के आसपास अतिरिक्त सतर्कता बरती जाएगी।

प्रेमी युवक प्रेमिका के पति से पिटा
डेटलाइन इंडिया
देहरादून, 6 मार्च-एक शादीशुदा महिला से इश्क लड़ाना उसके पड़ोसी युवक को तब महंगा पड़ गया, जब उसके पति और गांव वालों ने उसे रंगे हाथ पकड़ गया। पति ने गांव वालों की मदद से अपनी पत्नी के इस प्रेमी को इतना पीटा कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह बात अलग है कि इस युवक को पीटने के आरोप में यह बेचारा पति जेल पहुंच गया।

एक विवाहिता के पति और गांव वालों ने प्रेमी को आम के पेड़ से बांधकर पीटा। उसे दून अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस ने इस सिलसिले में पति और प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया। बाद में मजिस्ट्रेट ने दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया।पुलिस के अनुसार डीएल रोड निवासी एक व्यक्ति मजदूरी के कार्य से अक्सर बाहर रहता है। उसकी पत्नी और दो बच्चे घर पर ही रहते हैं।

बताते हैं कि उसकी पत्नी और पड़ोस में रहने वाले एक युवक के बीच काफी समय से संबंध बन गए। दोनों को कई बार समझाया गया लेकिन वह नहीं माने। मंगलवार की रात भी इस बात को लेकर महिला के पति और प्रेमी के बीच जमकर हाथापाई हुई। आसपास के लोगों ने किसी तरह दोनों पक्षों को समझा बुझाकर मामला शांत कराया। पुलिस के अनुसार इसके बाद बुधवार सुबह लगभग पांच बजे युवक विवाहिता के कमरे में घुस गया। महिला के पति और उसके परिजनों ने उसे पकड़ लिया और जमकर पिटाई कर डाली। इतना ही नहीं पास ही एक आम के पेड़ से युवक के हाथ-पैर बांधकर उसकी काफी देर तक पीटा गया जिससे उसे चोटें आर्इं। इस दौरान मौके पर लोगों की भीड़ लग गई।

सूचना मिलते ही डालनवाला पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस ने घायल को दून अस्पताल में भर्ती कराया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे छुट््टी दे दी गई। इसके बाद पुलिस ने महिला के पति और प्रेमी दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया और दोनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जमानत पर छोड़ दिया गया। इस मामले में सिटी मजिस्ट्रेट के यहां महिला के बयान दर्ज किए गए हैं।

परिवार में प्रेम के परिणाम
अक्षय कुमार
अपने ही परिवार में प्रेम करने का नतीजा क्या होता है, यह आप इन घटनाओं को पढ़ कर समझ सकते हैं। पारिवारिक रिश्तों को चुनौती देती ये प्रेम कहानियां जाहिर तौर पर समाज के लिए खतरा बन गई है, मगर अभी खतरा इतना गंभीर नहीं हुआ है कि इन्हें रोका ना जा सके।

आजमगढ़ में मोहब्बत में दगा करने और भाग निकलने की दो घटनाएं बुधवार को और प्रकाश में आईं। शादी के झांसे में सबकुछ गंवाने के बाद जीयनपुर इलाके की किशोरी पछता रही है तो देवगांव कोतवाली इलाके से कक्षा छोड़ प्रेमी केसंग कक्षा नौ की छात्रा भाग निकाली। एक मामले में पुलिस ने अपहरण का मुकदमा दर्ज किया, जबकि दूसरे की जानकारी होने से इंकार किया।जीयनपुर इलाके की 15 वर्षीय किशोरी रानी (काल्पनिक नाम) कक्षा 10 की छात्रा है। पिता ने दर्ज कराए गए मुकदमे में कहा है कि अजमतगढ़ इलाके का रहने वाला युवक उसे प्रेम जाल में फंसा लिया। शादी का झांसा देकर फरवरी के प्रथम सप्ताह में भगा ले गया। लखनऊ में ले जाकर उसे साथ रखा इसके बाद 25 फरवरी को उसके घर केसामने लाकर छोड़कर फरार हो गया।

दूसरी वारदात में देवगांव कोतवाली इलाके की रिजवाना (काल्पनिक नाम) कक्षा नौ की छात्रा है। वह मंगलवार को कालेज आई थी। पूर्वाह्न लगभग 11.30 बजे वह कक्षा चल रह थी। इसी दौरान उसने अध्यापक से विद्यालय केबाहर खड़े मां-बाप से मिलने की इजाजत मांगी। जहां पहले से ही मार्शल जीप लेकर खड़े प्रेमी केसाथ भाग गई। उसके वापस न आने पर विद्यालय परिवार ने इसकी सूचना परिजनों को दी तो हड़कंप मच गया। खोजबीन के बाद भी न मिलने पर इसकी सूचना देवगांव पुलिस को दी गई। जबकि इस संबंध में कोतवाल से जब पूछा गया तो उन्होंने जानकारी होने से इंकार किया। लोगों का कहना है कि आए दिन इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। किशोरियां तो अभी नासमझ हैं, उन्हें सही दिशा देने के लिए अभिभावकों को जागरूक होना चाहिए। साथ ही उनके क्रियाकलापों पर भी ध्यान देना चाहिए।

ममेरी बहन के इश्क में जान गंवाने वाले धर्मेंद्र मोहब्बत के दुश्मनाें से परेशान था। दोनों की शादी केलिए उनके परिजन तैयार थे। दोनों एक होना चाहते थे। कोई ताना न मार सके, इसके लिए दूर जाकर नई दुनिया बसाना चाहता था धर्मेंद्र । यह तथ्य उजागर हुआ है पुलिसिया छानबीन में। जबकि प्रेमिका बगैर पिता की मर्जी के बाहर जाने को तैयार नहीं थी।ममेरी बहन से धर्मेंद्र की प्रेम कहानी लगभग एक वर्ष पहले शुरू हुई थी। मामा और बुआ का रिश्ता होने के चलते परिजनों ने इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। शहर कोतवाल को पूछताछ में धर्मेंद्र के पिता ने बताया कि वह अपनी पत्नी के साथ लगभग आठ माह पूर्व वैष्णो देवी का दर्शन करने के लिए गए थे।

उन्हें आने में दो माह लग गए। इसी बीच प्रेमिका बुआ के घर पहुंची और उनकी अनुपस्थिति में इनका प्यार और परवान चढ़ गया। वापस आने पर जब इस बात की जानकारी परिजनों को हुई तो पहले तो वे अवाक रह गए। बाद में दोनों की अटूट चाहत को देख वे उन्हें खोने से अच्छा एक करना अच्छा समझे। धर्मेंद्र के पिता कतलू यादव झरिया में कोइलरी में काम करते थे। वे सेवानिवृत्त हुए तो दोनों को वहां भेज दिया गया। वहां तीन माह तक रहने के बाद जब उनका मन नहीं लगा तो वे घर आ गए। इसके बाद तो वे अपने घरों पर भी खुलेआम एक-दूसरे के साथ पति-पत्नी के रूप में रहने लगे। शहर कोतवाल जेपी तिवारी ने बताया कि प्रथम दृष्टया धर्मेंद्र मोहब्बत को लेकर ताना मारने वालों से परेशान था। इसलिए वह शादी के पहले ही चोरी से भाग जाने का प्रेमिका पर दबाव बना रहा था। वह जब पिता के संज्ञान में लाए बगैर जाने से इंकार कर दी तो वह नाराज होकर मौत को गले लगा लिया है।

इश्क के जुनून में प्रेमिका के घर आए युवक की जान चली गई। फांसी के फंदे पर लटक रही लाश को प्रेमिका और उसके पिता ने गांव के समीप स्थित कुएं में फेंक दिया। यह वारदात शहर कोतवाली क्षेत्र के मनचोभा गांव में मंगलवार की देर रात हुई। प्रेमी को खोने का गम बर्दाश्त नहीं हुआ तो प्रेमिका दूसरे कुएं में कूद गई। ग्रामीणों ने उसे बचा लिया। प्रेमी के पिता ने प्रेमिका और उसके बाप पर हत्या करने का आरोप मढ़ा। पुलिस ने मां-बाप और बेटी को हिरासत में ले लिया।मृतक धर्मेंद्र यादव (22) पुत्र कतलू मुबारकपुर थाना क्षेत्र के पियरोपुर गांव का निवासी था। शहर कोतवाली क्षेत्र के मनाचोभा गांव में युवक का ननिहाल है। धर्मेंद्र अपने रिश्ते के मामा की लड़की 20 वर्षीय संजू (काल्पनिक नाम) से प्रेम करता था। संजू भी उसे चाहती थी। उनकी दीवानगी देख परिजन भी शादी करने को तैयार थे। दोनों लगभग छह माह से पति-पत्नी के तौर पर रहते भी थे। पिछले एक सप्ताह से धर्मेंद्र प्रेमिका संजू के घर आया था। इसी बीच बुधवार की सुबह उसकी मनचोभा प्राथमिक विद्यालय के पीछे स्थित कुएं में शव पाए जाने से सनसनी फैल गई।

मौके पर गांव के सैकड़ों महिला पुरुष जुट गए। सूचना पाकर नगर क्षेत्राधिकारी एसके श्रीवास्तव और शहर कोतवाल भी हमराहियों के साथ कुएं पर पहुंचे। ग्रामीणों की मदद से पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। बेटे की लाश की गर्दन पर रस्सी का निशान देख पिता कतलू यादव ने अपने साले और उसकी बेटी पर हत्या कर लाश कुएं में फेंकने का आरोप लगाया। कतलू का कहना है कि उन्होंने पांच दिन से अपने घर में उनके बेटे को बंधक बनाकर रखा था। पुलिस ने संजू और उसके मां-बाप को हिरासत में ले लिया।

प्रेमिका और उसके पिता ने हत्या करने से इंकार किया। पुलिस के मुताबिक आरोपी प्रेमिका के पिता ने बताया है कि मंगलवार की देर रात उसकी बेटी ने उससे बताया कि धर्मेंद्र ने फंासी लगा ली है। इसके बाद उसका शव कुएं में डाला गया। प्रेमिका का कहना है कि वह धर्मेंद्र एक ही कमरे में सोए थे। वह उसे चोरी से भागने को दबाव बनाया तो उसने इंकार कर दिया। देर रात उसकी नींद खुली तो उसने कमरे में फांसी लगाकर धर्मेंद्र को लटकते पाया, तब अपने पिता को बताई। शहर कोतवाल जेपी तिवारी का कहना है कि मृतक के पिता की जैसी तहरीर मिलेगी, उसी आधार पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा।

अतरौली कसबे के युवक ने अपनी पत्नी पर रिश्ते के भाई से अवैध संबंध होने का आरोप लगाया है। साथ ही दोनों को उसने आपत्तिजनक हालत में कैमरे में कैद करने तक का दावा किया है। गौर हो कि पत्नी द्वारा पति समेत सात लोगों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कायम होने पर गुन्नौर पुलिस ने पति समेत देवर को गिरफ्तार करके जेल भेज रखा है।कसबे के एक युवक का विवाह एक साल पहले गुन्नौर की युवती के साथ हुआ था। युवक का आरोप है कि विवाहिता के शादी से पहले अपने रिश्ते के भाई से अवैध संबंध थे। पति ने भविष्य में इस तरह की हरकत करने से मना कर दिया था, लेकिन समझाने के बाद भी जब अवैध संबंध समाप्त नहीं हुए तो पति ने अपने बेडरूम में एक खुफिया कैमरा लगा दिया, जिसमें आपत्तिजनक हालत में कैमरे में तस्वीर आ गई। इस तरह की तस्वीर की सीडी गुन्नौर पुलिस को दी गई है। गुन्नौर के कोतवाल अचल सिंह यादव ने कहा है कि इस प्रकार की सीडी का कोई औचित्य नहीं है। दहेज का मुकदमा कायम होने के कारण इस प्रकार के आरोप लगाए जा रहे हैं।

अमृतसर के हरकृष्ण नगर इलाके में एक व्यक्ति ने बुधवार की शाम अपनी भाभी की गला दबाकर हत्या करने के बाद खुद भी फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस उक्त घटना में अवैध संबंधों की आशंका जता रही है। महिला का पति एक साल से विदेश में है और वह अपने तीन बच्चों के साथ किराये के मकान में रह रही थी। फिलहाल पुलिस ने मामला दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी है।मूल रूप से यूपी के गोरखपुर निवासी हरी लाल अपनी पत्नी बिंदू (35) और तीन बच्चों के साथ पिछले कुछ वर्षों से अमृतसर स्थित छेहरटा इलाके में कृष्णा नगर की गली नंबर- 3 में रह रहा था।

कुछ समय बीतने पर हरी लाल अपने भाई पितांबर और साढू ज़तिंदर कुमार को भी अपने पास ले आया था। एक वर्ष पहले किसी ट्रैवल एजेंट के माध्यम से हरी लाल विदेश चला गया और वहीं से अपने बच्चों तथा पत्नी को पैसे भेज रहा था। पुलिस ने आशंका है कि बुधवार दोपहर पितांबर घर पहुंचा होगा तथा उसने भाभी से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की होगी। विरोध करने पर पितांबर ने भाभी को मार डाला। इसके बाद उसने खुद भी पंखे से फंदा लगाकर फांसी लगा ली। पुलिस के मुताबिक महिला के गले पर निशान और कलाई से चूड़ियां टूट कर बिखरी हुई थीं। शाम होने पर जब बच्चे स्कूल से बच्चे लौटे तो उन्होंने पड़ोसियों को बताया और पड़ोसियों ने पुलिस को सूचित किया।

मोदीनगर में प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं करने पर युवक ने बाजार में ही दोस्तों के साथ युवती की पिटाई कर दी। इस दौरान भाग रहे युवक को लोगों ने पकड़कर जमकर धुनाई की। पब्लिक ने युवक के बाल मुंडवा कर दो साथियों के साथ युवक को पुलिस को सौंप दिया। युवती चूना भट््टी नगर के एक शो रूम में कार्य करती है। नौकरी पर जाते समय उसे निकट का युवक परेशान कर रहा था। चार दिन पूर्व युवक ने उसे प्रेम प्रस्ताव भी दिया था। इस प्रस्ताव को युवती ने अस्वीकार कर दिया। इस बात से युवक काफी नाराज था। बुधवार सुबह युवक ने उस लड़की को रास्ते में रोककर पीटना शुरू कर दिया। उसके साथ उसके तीन दोस्त भी शामिल थे। युवती को पीट रहे युवकों को लोगों ने धर दबोचा। लोगाें ने उसकी जमकर धुनाई की। पीटने केबाद उसे गंजा कर पुलिस को सौंप दिया।

कौन बनेगी पी के की दुल्हन?
डेटलाइन इंडिया
मेरठ, 6 मार्च-कंगारूओं का उन्हीं की जमीन पर घमंड तोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले मेरठ के छोरे प्रवीण कुमार के घर अचानक लड़की वालों की लाइन लग गई है। पी के नाम से मशहूर प्रवीण के लिए उनकी मां के मुताबिक पिछले एक सप्ताह में सौ से ज्यादा रिश्तें आ चुके हैं। पी के मां का कहना है कि उनका बेटा आजकल के युवकों की तरह प्रेम विवाह करने में बहुत ज्यादा यकीन नहीं करता।

देश के सबसे योग्य बैचलर के घर शहनाई कब बजेगी? अगर मां की चले तो बहुत जल्द। उधर प्रवीण आस्ट्रेलिया में विकटों की झड़ी लगा रहे थे। इधर उसके घर के आंगन में रिश्तों की सेंचुरी लग रही थी। प्रवीण की मां ने कहा-अरे बेटे के लिए अब तक सौ से अधिक रिश्ते आ गये हैं।

देश के कोने-कोने से हर कोई मेरठी छोरे पीके को दामाद बनाने के लिए कतार में खड़ा है। मॉडल से लेकर बड़ी अधिकारी तक हर कोई पीके के घर की दुल्हन बनने को तैयार है।परंतु माता-पिता की स्पष्ट राय है-बिना पीके की सहमति से रिश्ता तय नहीं होगा। परंतु बातों में दिल की बात कह ही दी-जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा। पता नहीं कब किसका मन बदल जाए। परंतु थोड़ी राहत वाली बात है। माता-पिता हों या फिर पीके। लड़की की पसंद दोनों के कॉमन हैं। लड़की पढ़ी लिखी और सादगी भरी होनी चाहिए। तड़क-भड़क से पीके को भी एलर्जी है। उसके परिवार वालों को भी यह पसंद नहीं।

बातों में प्रवीण के मां के अंदर छुपी एक हसरत भी सामने आयी। मां की इच्छा है-दुल्हन को वह खुद सजाए। खूब उमंग के साथ बेटे की हो शादी। उन्हें अपने बेटे पर भरोसा है कि वह उसके अरमान को पूरा करने देगी। तो कब बजेगी शहनाई? इस मामले में जब पीके की ओर से संकेत मिलेगा तभी कोई अंतिम निर्णय होगा। इस बार आस्ट्रेलिया से पीके लौटेगा तब मां उससे बात भी करेगी। मां की हसरत है मैदान में धुरंधर बल्लेबाजों को अपनी स्विंग से ढेर करने वाला पीके खुद जल्द ही किसी के सामने बोल्ड हो जाए। अब तक जितने रिश्ते आए हैं उन्हें विनम्रता पूर्वक बता दिया गया है कि इस साल शादी नहीं करनी है। परंतु कई रिश्ते ऐसे हैं जो महज हां सुनने के बाद सालों तक इंतजार करने को तैयार हैं। पीके के बढ़ते स्टॉरडम के बाद तो यही लगता है पीके को बोल्ड करने वाली लड़कियों की कतार अगले कुछ दिनों में और लंबी हो जाएगी।
लड़कियाें का निर्यातक भी बना मेरठ
डेटलाइन इंडिया
मेरठ, 6 मार्च-मेरठ अभी दिल्ली और देशभर में क्रिकेट के बैट भेजने के लिए जाना जाता था, मगर अब मेरठ से अब दिल्ली और दूसरे शहरों में कुछ और भी निर्यात होने लगा है। दरअसल मेरठ से अब बड़ी संख्या में लड़कियां दिल्ली, पंजाब और हरियाणा समेत कई दूसरे राज्यों में देह व्यापार के लिए भेजी हा रही है। दिल्ली और जालंधर में तो हाल में ही मेरठ की लड़कियां पकड़ी भी गई हैं।

इसके लिए मेरठ और दिल्ली की लड़कियों को भेज कर वहां के सफेदपोश नेताओं के आगे परोसा जा रहा है। जालंधर पुलिस ने इस तरह के एक रैकेट का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने बताया कि जालंधर के सरस्वती विहार से सटे संगत सिंह नगर में जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली महिला के तार मेरठ-दिल्ली से भी जुडे हुए थे। वह मेरठ और दिल्ली से लड़कियों को लाकर ग्राहकों की खिदमत में पेश करती थी। फिलहाल महिला फरार है। उसकी गिरफ्तारी के बाद कई सफेदपोश नेताओं के चेहरों से नकाब उतरने की संभावना है। उसने नेताओं का सहारा लेकर काफी काम निकलवाएं हैं।

देह व्यापार के अड््डे से छुड़ाई गई मेरठ की नेहा ने यह खुलासा कर सनसनी फैला दी है कि महिला (आंटी) लड़कियों को ठेके पर मेरठ और दिल्ली से भी लाती थी। अगर लड़की शक्ल सूरत व शारीरिक रूप से फिट होती तो उसके लिए वह मेरठ और दिल्ली में बैठे दलाल को 25 हजार से लेकर 50 हजार रुपये का आफर करती थी। सारी रकम एडवांस में देकर लड़की को संगत सिंह नगर के अड््डे पर बैठा लेती थी। हर माह दो से तीन लड़कियां मेरठ और दिल्ली से आती थीं। लड़कियों के बदलने के कारण महिला के ग्राहक भी पक्के बने रहते थे। अगर लड़की की उम्र कुछ ज्यादा और अधिक स्मार्ट न हो तो इसके लिए ठेका 25 हजार से कम में तय होता था। सारी राशि 'आंटी' मेरठ और दिल्ली के दलाल को देती थी, सिर्फ लड़की के रहने व खाने पीने का खर्च वह खुद वहन करती थी।

समीरा रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाया
डेटलाइन इंडिया
आगरा, 6 मार्च-आगरा के मशहूर मेहताब बाग नाम का स्मारक के द्वार मंगलवार को बाहर से बंद थे, मगर स्मारक के अंदर समीरा रेड्डी एक तमिल फिल्म की शूटिंग कर रही थीं। इस फिल्म की शूटिंग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से इजाजत लिए बिना हुई है और पूरे आगरा में खबर फैलने के बावजूद पुरातत्व विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें शूटिंग के बारे में कुछ नहीं पता।

इतना ही नहीं शूटिंग टीम की जनरेटर वैन व अन्य गाड़ियां भी बैरियर के आगे खड़ी कराई गईं। जबकि बैरियर के पास ही बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि बैरियर के आगे वाहन ले जाना प्रतिबंधित है।मेहताब बाग में नियमों की अनदेखी कर शूटिंग का काम बड़े गुपचुप तरीके से हुआ। किसी को अन्दर नहीं घुसने दिया गया। बाहर से स्मारक बंद हुआ और अन्दर फिल्म वाराणम आइरम की शूटिंग चलती रही। फिल्म की हीरोइन समीरा रेड््डी और हीरो सूर्या हैं। तमिल फिल्म की शूटिंग के लिए टीम लगभग साढ़े तीन बजे मेहताब बाग पहुंची। सेट तैयार करने में लगभग डेढ़ घंटे लगे। लगभग साढ़े पांच बजे शूटिंग शुरू हुई। सन सेट का शॉट लेना था।

इतने में सूर्यास्त हो गया लेकिन शूटिंग पूरी नहीं हो पाई थी। स्मारक बंद होने का समय हो गया था। स्मारक के कर्मचारी शूटिंग बंद करने के लिए कहने लगे। स्थानीय सूत्रों के मुताबिक कुछ देर बातचीत के बाद पुन: शूटिंग शुरू हुई। इधर स्मारक के संरक्षण सहायक राम रतन ने पूरे मामले से अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि शूटिंग की अनुमति कब तक की है, मुझे नहीं मालूम। अनुमति की कॉपी मैंने शूटिंग टीम से ही प्राप्त की है। स्मारक के बंद होने का समय लगभग 6 बजे (सूर्यास्त पर) का है। सूर्यास्त के आधे घंटे पहले टिकट बंद हो जाता है। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि यदि सूर्यास्त के बाद लगभग साढ़े सात बजे तक शूटिंग टीम के सदस्य अन्दर क्या कर रहे थे? स्थानीय सूत्रों के मुताबिक लगभग चालीस लोग स्मारक के अन्दर थे। इसके अलावा शूटिंग
टीम की लगेज वैन और जनरेटर वैन भी बैरियर के काफी आगे खड़ी की गई थी।

समीरा रेड््डी और सूर्या अभिनीत फिल्म की शूटिंग दिन भर शहर के कई स्थानों पर हुई। गौतम मेनन द्वारा निर्देशित फिल्म वाराणम आईरम के गीतों को फिल्माया गया। इससे पहले समीरा रेड््डी और सूर्या होटल जेपी पैलेस पहुंचे, जहां उनका स्वागत सीनियर जनरल मैनेजर दीपक सेठी एवं सेल्स मैनेजर सुनील शर्मा ने किया।

नशे की राजधानी भी है लखनऊ
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 6 मार्च-लखनऊ पुलिस ने शहर में सक्रिय नशे के सौदागरों को पकड़ने के लिए अभियान छेड़ दिया है और पहले ही दिनपुलिस ने 9 तस्करों को गिरफ्तार कर 1.22 करोड़ की स्मैक बरामद की है। तस्करों में एक लखीमपुर खीरी के डिप्टी सीएमओ का बेटा भी है। मजे की बात यह है कि नशे के इन सौदागरों ने राजेंद्रनगर स्थित विधायक निवास को अपना अड््डा बना रखा था।

एसएसपी अखिल कुमार के आदेश पर शुरू हुए अभियान के तहत कैसरबाग कोतवाली के एसएसआई बृजकिशोर मिश्रा ने अपनी टीम की मदद बुधवार को तड़के राणाप्रताप चौराहा के अल्टो कार सवार चार तस्करों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से 1 किलो स्मैक बरामद की है। पकड़े गए तस्करों में लखीमपुर खीरी के डिप्टी सीएमओ रुद्रदत्त द्विवेदी का बेटा सोमदत्त द्विवेदी, प्रतापगढ़ के कोहड़ौर थाने के गांव चंदौका निवासी सत्येंद्र प्रताप सिंह, बलिया के कस्बा सेहतवार निवासी ठेकेदार लाल साहब और जौनपुर के चंदवक थाने के हब्बूसही गांव का लालजी शामिल है। पुलिस ने तस्करी में इस्तेमाल की जा रही कार सीज कर दी है।

पूछताछ में खुलासा हुआ कि चारों तस्करों ने विधायक निवास राजेंद्रनगर के फ्लैट नंबर 309 और 409 को अपना अड््डा बना रखा था। पुलिस की गिरफ्त में फंसे सत्येंद्र प्रताप ने खुद को राष्ट्रीय समता दल का सचिव बताया। तस्करों ने पुलिस को बताया कि विधायक निवास राजेंद्रनगर का फ्लैट नंबर 309 विधायक रवींद्र पुंडीर और फ्लैट नंबर 409 सांसद राजेश मिश्रा के नाम आवंटित है। विधायक रवींद्र पुंडीर का निधन हो चुका है। तस्करों ने बहाने से दोनों फ्लैट किराए पर ले रखे थे। एएसपी सिटी पश्चिम परेश पांडेय और सीओ रोशन लाल जयंत ने तस्करों से उनके गिरोह के बारे में गहन पूछताछ की। तस्करों ने माना कि बाराबंकी और अन्य जिलों से स्मैक, कोकीन और अन्य मादक पदार्थों की खेप लाकर यहां सप्लाई करते थे।

इसी तरह कैंट पुलिस और क्राइम ब्रांच की संयुक्त टीम ने एक महिला समेत पांच तस्करों को गिरफ्तार कर 22 लाख की स्मैक बरामद की है। एएसपी सिटी पूर्वी हरीश कुमार ने बताया कि पुलिस टीम ने सुल्तानपुर रोड स्थित मोहनगंज रेलवे क्रासिंग पर नाकाबंदी करके मोहनलालगंज की आश्रयहीन कालोनी एल्डिको निवासी डोमी पासवान की पत्नी रंजन देवी, हरदोई के कासिमपुर थाने केगांव बड़ी बेहदर निवासी गोपाल, सिध्दार्थनगर के सोहरतगढ़ थाने के गांव खरगवां निवासी बबलू, संडीला थाने के गांव मलइया निवासी किशन उर्फ मामा और आलमबाग थाना क्षेत्र के श्रमविहार नगर झोपड़ पट््टी मवइया निवासी चुन्ना को गिरफ्तार कर 22 लाख रुपये अंतर्राष्ट्रीय मूल्य की स्मैक बरामद की है। पूछताछ में खुलासा हुआ कि तस्करों का यह गैंग चारबाग और आसपास के क्षेत्र में स्मैक की बिक्री करता था।

रंजन देवी ने कबूला कि वह काफी समय से स्मैक का कारोबार कर रही है। वह हर रोज करीब 2 सौ पुड़िया स्मैक बेचती है। उसके परिवार के और लोग भी धंधे से जुड़े हैं। महिला और अन्य तस्करों ने कई महत्वपूर्ण जानकारी दी हैं। पुलिस ने स्मैक की थोक सप्लाई करने वाले बदमाशों को भी चिह्नित कर लिया है। एसएसपी ने स्मैक तस्करों की धरपकड़ करने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है।
...तो नहीं होते अदालतों में धमाके
डेटलाइन इंडिया
लखनऊ, 6 मार्च-09451253363, यह वह नंबर था, जिसने उत्तर प्रदेश की अदालतों में हुए सीरियल धमाकों की साजिश रचने में सबसे अहम भूमिका निभाई। खुफिया एजेंसियों का दावा है कि दिल्ली पुलिस अगर सतर्क होती और आतंकी मोहम्मद अमीन वाणी के खुलासे से यूपी पुलिस को वाकिफ कराती तो शायद उत्तर प्रदेश की अदालतों में धमाके नहीं होते।

तफ्तीश में साफ हुआ है कि दिल्ली में दिसंबर 2006 में धरे गए आतंकी अमीन ने जौनपुर और आजमगढ़ से आतंकियों के आपरेट करने की पूरी जानकारी दिल्ली पुलिस को दी थी। दिल्ली एटीएस के अधिकारी इस खुलासे में उजागर हुए तथ्यों पर कुंडली मारे बैठे रहे और आतंकियों का यूपी नेटवर्क ध्वस्त नहीं किया जा सका। डीजीपी विक्रम सिंह ने आतंकी वारदातों से जुड़े करीब एक दर्जन मामलों की तफ्तीश एटीएस के सुपुर्द कर दी है। एटीएस की तफ्तीश में उजागर हुआ है कि कचहरी सीरियल ब्लास्ट में धरे गए हूजी आतंकी वर्ष 2007 से नहीं बल्कि 2006 से पूरी तरह सक्रिय थे। उनकी मंशा प्रदेश में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की थी। दरअसल, दिल्ली पुलिस की एटीएस ने दिसंबर 2006 में जम्मू-कश्मीर में सक्रिय रहे आतंकी मोहम्मद अमीन वाणी को गिरफ्तार किया था। उसके कब्जे से 4.5 लाख रुपए बरामद हुए। यह रकम हवाला के जरिये भेजी गई थी। अमीन ने कुबूला था कि रकम जौनपुर के मड़ियाहूं निवासी खालिद मुजाहिद और डा. तारिक कासमी ने दी थी। वह अक्सर खालिद के मोबाइल नंबर-09451253363 पर बात करता था।

खालिद ने ही आजमगढ़ के डा. तारिक कासमी से उसकी मुलाकात कराई। खालिद ने असलहोें के अलावा हेरोइन, स्मैक आदि की तस्करी में भी रुचि दिखाई। वह असलहों की सप्लाई प्रदेश के बड़े नेता, एमएलए और मंत्री की हत्या के लिए चाहता था। वाणी ने कुबूला कि उसने खालिद के फोन से पाक में बैठे हूजी कमांडर तौकीर से 0092300.......पर 29 नवंबर 2006 को बात की और हवाले से रकम भेजने पर सहमति बनी। साथ ही यूपी में बड़ी वारदात का फरमान सुनाया गया।

खालिद ने ही आतंकी वाणी की डा. तारिक कासिम से मुलाकात उसके आजमगढ़ स्थित दवाखाने पर कराई। डा. तारिक 1000 रुपए प्रति लाख के हिसाब से कमीशन और आने-जाने का खर्चा लेकर हवाला की रकम डिलीवर करने के लिए तैयार हुआ। उसने इस पर खालिद के मोबाइल से पाकिस्तान में बैठे हूजी कमांडर तौकीर से बात की। डा. तारिक ने भी तौकीर से बात की। वह दो दिन तक डा. तारिक के घर रुके। डा.तारिक उसे मुगलसराय स्थित अपने मामू के घर भी ले गया। वाणी ने स्वीकारा कि मुगलसराय से वह वाराणसी गया। जहां से 4 दिसंबर 2006 के आसपास दिल्ली के लिए बस पकड़ी और फिर जम्मू चला गया। वहां से लगातार वह फोन से तारिक और खालिद के संपर्क में रहा। फिर 22 दिसंबर 2006 को उसने डा. तारिक कासमी से हवाले की रकम के 5 लाख रुपए लिए। तभी दिल्ली पुलिस ने उसे दबोच लिया। खुफिया तंत्र का दावा है कि अगर दिल्ली पुलिस ने यूपी पुलिस से वक्त पर समन्वय कर लिया होता तो शायद कचहरी में हुए सीरियल ब्लास्ट न होते।

गुलामी का कलंक मिटाएगी हरियाणा पुलिस
डेटलाइन इंडिया
चंडीगढ़, 6 मार्च-कम-से-कम हरियाणा ने अंग्रेजों की गुलामी के एक कलंक को धो दिया है।
करीब 147 वर्ष बाद हरियाणा का अपना पुलिस एक्ट होगा। इस एक्ट को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया था। पिछले सप्ताह केंद्र ने इसे लौटाते हुए कहा है कि राज्यपाल ही इस एक्ट को मंजूरी देंगे। एक्ट में प्रावधान किया गया है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में स्टेट पुलिस बोर्ड बनेगा।

हरियाणा विधानसभा में यह एक्ट पिछले वर्ष पारित किया गया था। नया पुलिस एक्ट 1861 पुलिस एक्ट का स्थान लेगा। पहले भी यह एक्ट केंद्र के पास भेजा गया था, तब केंद्र ने तीन बिंदुओं में संशोधन करने का सुझाव दिया था। इनमें से एक बिंदु पर संशोधन किया गया, शेष यथावत रखे गए। संशोधन के बाद इसे केंद्र के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन केंद्र ने इसे लौटा दिया है।

हरियाणा के गृह विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव अनिता चौधरी ने राज्य सरकार को सूचित किया है कि यह एक्ट राज्यपाल को भेज दिया गया है। इस एक्ट को राज्यपाल स्तर पर ही मंजूरी मिलेगी। उधर, हरियाणा के राज्यपाल डा. एआर किदवई के सचिव आलोक निगम ने बताया कि अभी तक राजभवन में एक्ट नहीं पहुंचा है।

एक्ट में प्रावधान किया गया है कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में स्टेट पुलिस बोर्ड बनेगा। बोर्ड में गृह मंत्री उपाध्यक्ष, विपक्ष के नेता, हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज या एडवोकेट जनरल, मुख्य सचिव, गृह सचिव सदस्य, डीजीपी सदस्य सचिव और तीन गैर राजनीतिक व्यक्ति स्वतंत्र सदस्य होंगे। बोर्ड राज्य सरकार को सलाह देगा, पुलिस व्यवस्था को जिम्मेदार बनाने के लिए नीतियों की दिशानिर्देश और संगठनात्मक प्रदर्शन की समीक्षा करेगा। एक्ट लागू होने के तीन माह के भीतर पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें सुनने के लिए राज्य स्तर पर पुलिस कंपलेंट अथॉरिटी बनेगी।

इस अथॉरिटी का मुखिया रिटायर्ड जज या सचिव स्तर का रिटायर अधिकारी या आपराधिक मामलों का 20 वर्षों का जानकार वकील होगा। इस अथॉरिटी का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा। यह अथॉरिटी खुद या शिकायत मिलने पर या राष्ट्रीय या राज्य मानवाधिकार आयोग की तरफ से भेजी शिकायतों की जांच करेगी। साथ ही पुलिस हिरासत में मौत, दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास, पुलिस हिरासत में गंभीर रूप से घायल मामलों और राज्य सरकार और पुलिस महानिदेशक की ओर से भेजे मामलों की जांच करेगी। अथॉरिटी को सीआरपीसी की शक्तियां होंगी जिससे समन वगैरह भेजे जा सकें। राज्य सरकार इस अथॉरिटी की जांच रिपोर्ट पर आवश्यक कार्रवाई करेगी। राज्य सरकार जिला स्तर पर भी इस तरह की कंपलेंट अथॉरिटी गठित कर सकती है।

नक्सलियों के अतीत से एक मुलाकात
सुदीप चक्रवर्ती
कानू सान्याल से मिलने के लिए मैंने रामजी को अपना गाइड चुना। रामजी घरों की रंगाई-पुताई का काम करता है। यह उसका अंशकालिक काम है। बाकी समय में वह एक क्रांतिकारी है, मूल नक्सलबाड़ी आंदोलन के सहनायक कानू सान्याल का सिपाही। कानू सान्याल का घर सिलागुड़ी के पास हाथीघिसा पोस्ट ऑफिस से पैदल पंद्रह मिनट की दूरी पर है। इस साफ-सुथरे गांव के ज्यादातर घर बांस, फूस और मिट््टी की ईंटों के बने हैं, जिनमें से कुछ के प्रवेशद्वार घुमावदार हैं।

हाथीघिसा के ज्यादातर निवासी बिहार, झारखंड और दक्षिण-पश्चिम बंगाल के आदिवासी हैं, जो चाय बगान में मजदूर के रूप में लाए गए थे। रामजी मुझे बताता है, 'मैं संघर्ष करूंगा। कानू बाबू ने संघर्ष किया, इसलिए हम भी संघर्ष करेंगे। हम कभी अपना दुखड़ा उनके पास नहीं लेकर गए। वह मुझे रुपये बस भाड़े के लिए दिया करते हैं, लेकिन मैं पैदल चलता हूं, ताकि उन रुपयों से चावल खरीद सकूं।' कैडर का काम है अपने नेता का अनुसरण्ा करना। और इसकी वजह समझना मुश्किल नहीं है। पुराने नक्सलियों में से अनेक या तो मार डाले गए, या उनकी स्वाभाविक मौत हो गई। आश्चर्यजनक रूप से उनमें से ज्यादातर शहरी बुध्दिजीवियों में समाहित हो गए, जहां से वे आए थे। लेकिन कानू सान्याल जमीनी स्तर के उन थोड़े से नेताओं में हैं, जो आज भी 1967 की आधार भूमि से जुड़े हैं।

दो कमरों की मिट््टी की झोंपड़ी कानू सान्याल का घर है, जो हाल में ही में हुई लिपाई-पुताई से चमक रहा है। उनके घर का एकमात्र दरवाजा खुला है और उनकी दीवार पर मैं माक्र्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ को एक साथ देख सकता हूं। उनके कमरे की फर्श पर सरकंडे की चटाई बिछी है। कमरे में एक पुराना टाइपराइटर है और फर्श पर कुछ फाइलें बिखरी पड़ी हैं, साथ ही अखबार, तकिया और मच्छरदानी हैं। पायजामा और हाफ स्वेटर में कानू सान्याल हमें बरामदे में लोहे के स्टूल पर बैठे हुए मिले। मैं अपने जूते उतारने लगा। कानू बाबू ने मुझे टोका, 'आप जूते क्यों उतार रहे हैं? यह कोई मंदिर नहीं है।' मैंने कहा, मैं आपका फर्श गंदा नहीं करना चाहता, क्योंकि मैं देख सकता हूं कि इसे अभी-अभी लीपा गया है

'यह मिट््टी है और इसे बार-बार लीपा जा सकता है', उन्होंने कहा। उस समय कानू सान्याल से मिलने कुछ और लोग आए थे। उनमें एक प्रतिष्ठित बांग्ला दैनिक का रिपोर्टर तथा बांग्ला न्यूज चैनल के दो अन्य लोग शामिल थे। एक सप्ताह में बंगाल विधानसभा के चुनाव होने वाले थे, इसलिए वह साउंड-बाइट का समय था। मैं इतिहास के पलों की गाथा को सुनने के लिए चुपचाप बैठ जाता हूं। कानू बाबू याद करते हैं, '...और इस तरह चारू दा, मैं और दूसरे सभी लोग सीपीआई (एम) के अंग थे। लेकिन हम सभी एक तरह की घुटन महसूस कर रहे थे। सरकार का दबाव था। हम बड़ी संख्या में जेलों के भीतर और बाहर थे। इस बीच बाढ़ की तरह अनेक घटनाएं घटीं। वर्ष 1964 में चारू दा ने अमृतबाजार पत्रिका में एक लेख लिखा। उसमें उन्होंने लिखा था कि जनता को किस तरह छोटे-छोटे हथियारबंद समूहों में संगठित होना चाहिए और इन समूहों को वर्ग विरोधियों का सफाया कर देना चाहिए। फिनिश देम ऑफ।'

कानू बाबू ने जोर देने के लिए यहां अंगरेजी का इस्तेमाल किया और फिर आगे बांग्ला में कहने लगे, 'मैं और कुछ अन्य साथी चारू-दा की इस दलील से असहमत थे। पार्टी भी नाराज थी। कई लोग उन्हें पार्टी से निष्कासित करना चाहते थे। पार्टी सचिव सिलीगुड़ी से आए। हमने उनसे कहा कि आप बिना कोई कारण बताओ नोटिस के उन्हें कैसे निष्कासित कर सकते हैं? वह सहमत थे। चारू दा ने अपने कदम वापस ले लिए और वायदा किया कि आगे कुछ भी छपने के लिए देने से पहले उसे वह पार्टी को दिखाएंगे। इस तरह, उनसे असहमत होते हुए भी हमने उनका साथ दिया। लेकिन वह क्रांति चाहते थे। तत्काल क्रांति।...वह छापामार दस्ते चाहते थे, जो भू-स्वामियों की हत्या कर जमीन पर कब्जा करे। हमें यह गलत लगा। हम चाहते थे कि किसान और कार्यकर्ता पहले जमीन पर 'दखल' करें और फिर उसकी हिफाजत करें।'

बांग्ला दैनिक ने कानू बाबू के आगे सवाल दागा, 'तो आप सशस्त्र क्रांति (सशस्त्रो बिप्लब) में यकीन नहीं रखते?' कानू बाबू गरजते हुए बोले, 'नहीं, मैं इसमें विश्वास करता हूं, लेकिन उसमें उद्देश्यगत शतर्ें भी होनी चाहिए। इसे थोपा नहीं जा सकता।' 'तो इस तरह नक्सल आंदोलन...', मैंने माहौल को ठंडा करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहा, लेकिन मुझे काटते हुए कानू बाबू बोले, 'मीडिया ऐसा कहता है। हम नहीं। लोगों ने इसमें वाद भी जोड़ दिया। हमारे लिए वह कम्युनिज्म था, नक्सलिज्म नहीं।' तभी टीवी वाले ने उनसे सवाल किया, 'फिर क्या हुआ?'

'हम फिर जेल में थे। इस बीच उत्तर बंगाल में स्थितियां बनने लगीं। बहुत तेजी से उनमें बदलाव भी आया। इतनी तेज कि उन पर नजर रखना मुश्किल था और यही वजह थी कि 1967 का आंदोलन हुआ। मैं पार्टी में बहस को पटरी पर नहीं ला सका। चारू-दा जो कह रहे थे...उसकी वजह से मैं या तो जेल में था या भूमिगत। फिर अचानक पार्टी का गठन हुआ। सीपीआई (एमएल)। सीपीआई (एम) के साथ हमारे मतभेद थे। हममें से बहुत सारे लोगों ने नृशंस हत्याओं के जरिये सशस्त्र क्रांति के चार्टर को स्वीकार नहीं किया, लेकिन हम उसमें शामिल हुए। 1969 से 1972 तक हम लगभग भूमिगत रहे। इस दरम्यान मैं चीन भी गया। वहां मैं माओ से मिला (माओर संगे आमार देखा होलो)। उनसे बातचीत के बाद और भारत की स्थिति पर उनसे विचार-विमर्श के बाद मेरा यकीन और पक्का हो गया कि चारू दा का रास्ता सही नहीं था। माओ ने अपने यहां किस तरह आंदोलन खड़ा किया, इसके बारे में मुझे बताया। एक समय तो उनके पास महज 150 नाल राइफलें थीं। लेकिन उन्होंने लोगों के बीच काम किया और उनका समर्थन हासिल किया। माओ ने मुझे बताया कि यदि आपको लोगों का लोकप्रिय समर्थन है, तो आपके पास किसी बाहरी मदद की दरकार नहीं होती।

मैंने सवाल किया कि आप क्रांति का सही समय कैसे मापते हैं? कानू बाबू का जवाब था, 'इसके चार स्तर हैं। पहले चरण में, जैसे आप छात्रों को जो कुछ लेक्चर देते हैं, उन्हें वे आपसे दूर होते ही भूल जाएंगे। दूसरे चरण में वे आपको सुनेंगे तो जरूर, लेकिन उनकी समझ में कुछ नहीं आएगा। तीसरी स्थिति में उन्हें एहसास होगा कि कुछ करने की आवश्यकता है। वे उसके अनुरूप कुछ करना चाहेंगे भी, लेकिन कुछ न कुछ उनके कदमों को रोकेगा। लेकिन चौथे चरण में वे पूर्णतया प्रतिबध्द होंगे और कुछ भी करने को तैयार होंगे।' फिर अपने परिचित अंदाज में कानू बाबू ने कहा, 'चारू-दा ने पहल करने में जल्दीबाजी की दी।',

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