आलोक तोमर को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते. उनके वारे में वहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच और मामूली और कुछ कल्पित और खतरनाक. दो बार तिहाड़ जेल और कई बार विदेश हो आए आलोक तोमर ने भारत में काश्मीर से ले कर कालाहांडी के सच बता कर लोगों को स्तब्ध भी किया है तो दिल्ली के एक पुलिस अफसर से पंजा भिडा कर जेल भी गए हैं. वे दाऊद इब्राहीम से भी मिले हैं और रजनीश से भी. वे टी वी, अखबार, और इंटरनेट की पत्रकारिता करते हैं.

Friday, March 21, 2008

आडवाणी की राय में अटल सर्वश्रेष्ठ नहीं





आडवाणी की राय में अटल सर्वश्रेष्ठ नहींडेटलाइन इंडियानई दिल्ली, 20 मार्च- आडवाणी की किताब के विमोचन समारोह में यूं तो भाजपा के कई बड़े नेता मौजूद थे। लेकिन आडवाणी के लिए सबसे खास नरेन्द्र मोदी थे। इतना ही नहीं नरेंद्र मोदी की तारीफ उन्होंने अपनी किताब 'माई कंट्री माई लाइफ' में भी की है। इससे साफ होता है कि अगर आडवाणी देश के अगले प्रधानमंत्री बने तो नरेंद्र मोदी ही उनके सबसे करीबी नेता होंगे। नरेंद्र मोदी और आडवाणी की नजदीकियां भाजपा के अन्य बड़े नेताओं की आंखों की किरकरी बनी रही।आडवाणी की आत्मकथा 'माई कंट्री माई लाइफ' किताब में कई ऐसे मुद््दे हैं जिन पर बहस छिड़ सकती है। अयोध्या का सच, जिन्ना प्रकरण, आपात काल, कारगिल युद््ध, कंधार प्रकरण जैसे मुद््दे नए विवाद का सूत्रपात कर सकते हैं। आडवाणी की किताब के विमोचन पर बड़े कांग्रेसी नेताओं को बुलावा भेजा गया था लेकिन उनमें से अधिकतर इस कार्यक्रम में नहीं आए।सिरी फोर्ट के खचाखच भरे सभागार में पूर्व राष्ट्रपति ए।पी.जे. अब्दुल कलाम ने इस पुस्तक का विमोचन किया। इस मौके पर पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत, संघ के कार्यवाह मोहन भागवत, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष जसवंत सिंह तो डायस पर थे ही, सभागार में दिग्गजों की अपार भीड़ थी। राजनीति से लेकर फिल्म और उद्योग जगत की बड़ी हस्तियां कार्यक्रम में मौजूद थीं। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, कृषि मंत्री शरद पवार, उड््डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल, जार्ज फर्नांडीस, ओम प्रकाश चौटाला, अभिनेता संजय दत्त, गायक अभिजीत और सोनू निगम, उद्योगपति अनिल अंबानी आदि मौजूद थे। जसवंत सिंह ने कहा कि आडवाणी के विचार कई मुद््दों पर अलग-अलग रहते थे। मसलन, अयोध्या मसला। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि किस तरह एक बार आडवाणी उनके विचारों से उखड़ गए थे लेकिन, दूसरे ही दिन उन्होंने इसके लिए खेद व्यक्त कर अपने बड़प्पन का परिचय दिया। पुस्तक में देश का विभाजन क्यों हुआ, अल्पसंख्यकवाद क्यों और धर्म निरपेक्षता क्या और क्यों जैसे मुद््दों पर आडवाणी ने बेबाकी से अपनी राय रखी है। किताब का अग्र लेख वाजपेयी ने लिखा है जिसमें उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि आडवाणी और उनके विचारों में कई बार मतभेद रहते थे। वाजपेयी ने आडवाणी को राष्ट्रीयता के मामले में अडिग रहने वाले और राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से लचीला रुख रखने वाला राजनेता बताया है। पुस्तक के एक भाग में आडवाणी के शुरुआती और नजदीकी जीवन और बाद के भाग में सार्वजनिक जीवन की चर्चा है। आडवाणी ने अपनी किताब में गुजरात जीत के बारे में कांग्रेस की खिचाई की है उधर किताब में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध ठहराया था। माउंट आबू में जनसंघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। उसमें पार्टी नेता और ज्योतिषी डॉ. वसंत कुमार पंडित भी आये हुए थे। जिनसे आडवाणी ने अपने राजनीतिक कैरियर के बारे पूछा तो उन्होंने कहा कि यदि सच कहूं तो वह यह है कि हम लोग दो साल के वनवास की तरफ बढ़ रहे हैं। यह सुनकर मैं सन्न रह गया, क्योंकि घटनाक्रम बिल्कुल अलग चल रहे थे। उसके कुछ दिनों बाद ही आंतरिक आपात काल घोषित हो गया और वनवास शुरू हो गया।उत्तराखंड में जेल कर्मचारियों का आकालडेटलाइन इंडिया देहरादून, 20 मार्च- उत्तराखंड की जेल में कैदियों को संभालने वालों का आकाल पड़ा हुआ है। जेल में कर्मचारी इतने कम है कि उत्तर प्रदेश काडर से 91 कर्मचारी बुलाये गए हैं। जेल की सुरक्षा देखी जाए तो यूपी के रक्षक ही संभाले हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड सरकार में तकरीबन तीन सौ कार्मिक उत्तराखंड काडर आवंटित होने के बावजूद आने के लिए राजी नहीं हैं। ऐसे में सरकार के आगे नई भर्ती करने में दिक्कत आ रही है।उत्तराखंड की जेल में इस समय एक जेलर, नौ डिप्टी जेलर और 91 कर्मचारी ऐसे हैं,जो उत्तर प्रदेश काडर के हैं। इनमें से ज्यादातर जाना भी चाहते हैं। उत्तराखंड सरकार इन कार्मिकों को छोड़ने के लिए राजी नहीं है। प्रमुख सचिव (कारागार) नृप सिंह नपल्च्याल ने कहा कि इन्हें तभी छोड़ा जा सकता है, जब उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के आवंटी कर्मचारी यहां आ जाएं। इस मामले में दानों राज्यों की सरकारें कुछ नहीं कर पा रही हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में रुके कर्मचारी अदालत से स्टे ऑर्डर लिए हुए हैं। पहले ही कार्मिकों की कमी से जूझ रही उत्तराखंड सरकार ऐसे में यूपी विकल्पधारियों को छोड़ कर अपनी समस्या बढ़ाना नहीं चाहती है। प्रदेश में पहले ही तीन जेलर, 25 डिप्टी जेलर और 190 रक्षकों के पद खाली हैं। इन्हें भरने के बजाए सरकार ने उत्तराखंड भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड से संविदा पर कर्मचारी लिए हैं। प्रदेश में देहरादून की आदर्श जेल (सुद््धोंवाला) के साथ ही सितारगंज की संपूर्णानंद जेल काफी बड़ी है। दोनों के लिए काफी कर्मचारियों की जरुरत है। हरिद््वार, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल और टिहरी में भी जिला कारागार हैं। हल्द््वानी तथा रुड़की में उप कारागार हैं। शासन के एक अधिकारी का कहना है कि यूपी काडर के कार्मिकों को जबरन रोके जाने से एक नुकसान यह है कि वे आधे मन से यहां कार्य कर रहे हैं। कार्मिकों की कमी के चलते उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता है। नेता संरक्षण देते थे कुख्यात अपराधियों कोडेटलाइन इंडियालखनऊ, 20 मार्च- उत्तर प्रदेश में नेताओं के संरक्षण में बदमाश पल बढ़ रहे है। हालांकि कल्लू- नज्जू गिरोह के सरगना कल्लू और ददुआ का एनकाउंटर कर प्रदेश की पुलिस भले ही अपनी पीठ थपाथपा रही हो लेकिन अभी भी राजू तिवारी जैसे कई शातिर बदमाश खुलेआम आतंक मचा रहे हैं और पुलिस इन तक नहीं पहुंच पा रही है। इसकी दूसरी वजह राजनेता है जिनके संरक्षण के कारण पुलिस उन पर हाथ डालने से बच रही है। ये बदमाश वारदात को अंजाम देकर अपने आकाओं के पास पहुंच जाते हैं जहां पुलिस बेबस और लाचार हो जाती है।हालांकि पुलिस ने एक और उपलब्धि हासिल कर ली है जिसमें वाराणसी पुलिस ने पूर्वांचल के जिलों में आतंक का पर्याय बन चुके तीन कुख्यात अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराया है। मारे गए बदमाशों में 20 हजार का इनामी बदमाश राजू उर्फ सतीश तिवारी, पांच हजार का इनामी बदमाश गब्बर पाण्डेय और मुन्नू उपाध्याय शामिल हैं। आतंक का पर्याय बन चुके राजू तिवारी की पहुंच उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व मध्य प्रदेश की राजनीति में खासी दखल रखने वाले प्रमुख नेताओं तक थी। सफेदपोशों से संपर्क के कारण ही वह किसी भी वारदात को अंजाम देने के बाद सुरक्षित ठिकाने पर पहुंच जाता था। कहा तो यहां जा रहा है कि आधा दर्जन से अधिक सांसद व विधायकों से उसके ठीकठाक संबंध थे।भाजपा विधायक स्व. कृष्णा नंद राय का करीबी होने के कारण राजू का संपर्क पार्टी के कुछ अन्य बड़े नेताओं से भी था। इसके अलावा उसके तार बसपा, कांग्रेस व जनता दल यूनाइटेड के कुछ रसूखदार नेताओं से भी जुड़े थे। प्रदेश के नेताओं के साथ ही कुछ सांसद भी इन बदमाशों को संरक्षण देते रहे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि ऊंची पहुंच व रसूखदार सफेदपोशों तक सीधे संपर्क के कारण ही विरोधी गिरोह उस पर हाथ डालने के पहले बीस बार सोचते थे। राजू ने थोड़े ही समय में उत्तर प्रदेश व बिहार के सत्ताधारी दल से जुड़े कुछ बड़े नेताओं तक पहुंच बना ली थी। पुलिस की मानें तो राजू जब भी किसी बड़ी घटना को अंजाम देता था तो उत्तर प्रदेश के कुछ सफेदपोश उसे सुरक्षित रास्ते से सीधे बिहार पहुंचा देते थे। वहां सत्ताधारी दल जदयू से जुड़े कुछ रसूखदार नेता बाकायदा उसको संरक्षण देते थे। वहां से वह झारखंड की तरफ भी रुख करता रहा है। वहां भी कुछ सफेदपोशों तक उसकी खासी पहुंच बताई जा रही है। यही नहीं, मध्यप्रदेश के कुछ कांग्रेसी नेता भी उसे संरक्षण देते रहे हैं। बिहार, झारखंड व मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, गोंडा, जौनपुर, भदोही व वाराणसी में भी कुछ सफेदपोश उसे बाकायदा संरक्षण देते रहे हैं। राजू ने वर्ष 2005 में बदमाश गुड्डू यादव को एसटीएफ का दारोगा बनकर एके-47 से भून डाला था। वह व्यापारियों को धमकी देते वक्त कहता था कि गुड्डू यादव जैसा हश्र करूंगा। वह कंप्यूटर एक्सपर्ट था और मोबाइल व सिमकार्ड बदलता रहता था। अपनी महारत के चलते वह पुलिस को चुनौती देता था कि इलेक्ट्रानिक सर्विलांस के जरिये उसे दबोचा नहीं जा सकता। इसी तरह गब्बर पाण्डेय ने भी चंदौली के सयदरजा थाना क्षेत्र में लकड़ी व्यापारी की एके-47 से गोलियां चला हत्या कर दी थी। तीनों भगुवा, वाराणसी, बिहार के गड़वा इलाके में जमकर वसूली करते थे। राजू और उसका गैंग वाराणसी और आसपास के जिलों में व्यापारियों को फोन पर धमकाकर वसूली करता था। डीजीपी विक्रम सिंह ने बदमाशों को मारने वाली टीम को 20 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की है। काफी समय से वाराणसी और आसपास के व्यापारियों से शिकायतें मिल रही थीं कि 20 हजार का इनामी बदमाश राजू तिवारी फोन पर धमकी देकर वसूली करता है। उसके आतंक से मजबूर व्यापारी वसूली देने से इनकार नहीं कर पाते थे। तंग आकर वाराणसी के व्यापारियों ने गुपचुप तरीके से एडीजी बृजलाल से मुलाकात की थी। इसके बाद वाराणसी पुलिस की एसओजी प्रभारी गिरजा शंकर त्रिपाठी की टीम को राजू की तलाश में लगाया गया। राजू तिवारी उर्फ सतीश तिवारी को पुलिस मुठभेड़ के बाद मार गिराया। मुठभेड़ में जौनपुर का राजू तिवारी, भगुवा बिहार के गब्बर पाण्डेय और भगुवा बिहार का मुन्नू उपाध्याय मारे गए। उनसे, पुलिस दारोगा से लूटी गई .38 बोर की रिवाल्वर, .30 स्टार पिस्टल, .32 रिवाल्वर और .32 बोर की पिस्टल बरामद हुई है। साथ ही बोरा भर जेलेटिन और छह मोबाइल बरामद हुए हैं। बेटी के साथ जेल जाएंगे हिमाचल के नेताजीडेटलाइन इंडियाशिमला, 20 मार्च - पूर्व मं.त्री सिंधी राम के आगे अपनी बेटी के साथ जेल जाने की नौबत आ गई है। उन पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज में अपनी बेटी का दाखिला फर्जी मार्कशीट के आधार पर कराया है। फर्जी मार्कशीट मामले में उनके अलावा उनकी बेटी उपमा के खिलाफ भी मामला अदालत पर चल रहा है। कोर्ट ने उनकी जमानत की तारीख 24 मार्च तक बढ़ा दी है।अब तक की जांच में पाया गया है कि पूर्व मंत्री की बेटी वाहरवीं की परीक्षा में सनावर-स्कूल में फेल थी और उसके पास फिर भी वाहरवीं कक्षा की मार्कशीट मौजूद है। दाखिले के लिए इस मार्कशीट की अटेस्टेड-कापी लेडी श्रीराम कालेज को सौंप दी गई। इस प्रमाण पत्र की जब जांच की गई तो पाया गया कि हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के रिकार्ड में इस पर लिखा रोल नंबर और सीरीज ही मौजूद नहीं है। जाली मार्कशीट में 86-फीसदी अंक दिखाए गए हैं। इन अंकों के साथ पूर्व मंत्री अपनी बेटी को एससी-कोटे के तहत दाखिल दिलाने में सफल हो गए। विजिलेंस टीम दिल्ली स्थित इस कालेज से संबंधित रिकार्ड जुटा चुकी है। जेल जाने की नौबत आते देख सिंधी राम ने स्थानीय अदालत में अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की। पूर्व मंत्री अकेले ही स्थानीय अदालत में पेश हुए। उनकी लड़की उपमा अदालत में उपस्थित नहीं हुई। इस कारण अदालत ने दोनों की अग्रिम जमानत 24-मार्च तक बढ़ा दी है। फर्जीवाडे-क़े आरोप में फंसे पूर्व मंत्री सिंघी राम और उनकी बेटी उपमा को पूछताछ के लिए विजिलेंस एंड एंटी करप्शन-ब्यूरो ने तलब किया है। उधर पूर्व मंत्री अपने को फंसता देख विजिलेंस का सहयोग देने को तैयार हो गए हैं। विजिलेंस उनसे जो कुछ पूछना चाहेंगी वह उसका जबाव देंगे।मजाक- राहुल गांधी बनाम आडवाणी का मुहावराडेटलाइन इंडियाकानपुर, 20 मार्च - उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जमीन तलाश करने के लिए कांग्रेस अपने राजकुमार राहुल गांधी को आडवाणी की टक्कर में उतारने का मन बना रही है। जिस प्रकार आडवाणी को प्रधानमंत्री के रूप में भाजपा ने पेश कर दिया है उसी तरह कांग्रेस अपने राजकुमार को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करेगी जो कि एक बड़े मजाक से कम नहीं होगा।प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी महासचिव रीता बहुगुणा जोशी ने हाल ही में हुई एक जनसभा में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जाने की पहल की। उसके बाद दिग्विजय सिंह ने भी इसे दोहराया। दिग्गी राजा ने कहा कि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की तरफ से बात उठी है तो वे सोनिया गांधी से बात करें। यूएनपीए की रैलियों पर उनका कहना है कि इसका अस्तित्व ही चुनाव के समय तक समाप्त हो जाएगा। तेलुगु देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू और राष्ट्रीय लोकदल के ओमप्रकाश चौटाला तो भाजपा के संपर्क में हैं। दिग्गी ने बुंदेलखंड के बारे में बताया कि राहुल गांधी ने दौरा कर मायावती सरकार को हिला कर रख दिया है। उत्तर प्रदेश के विभाजन की मांग पर भी दिग्विजय सिंह बोले कि चिट््ठी लिखने भर से राज्य का गठन नहीं होता। इसके लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। हालांकि सत्ता के विकेंद्रीकरण का लाभ लोगों को मिले तो ऐसी मांग ही न उठे। पवार से दोस्ती बढ़ाते वामपंथीडेटलाइन इंडियानई दिल्ली, 20 मार्च- यूपीए सरकार में शामिल वामपंथी शतरंज की चाल चलने से बाज नहीं आते हैं। ऐसे कई मुद्दों पर उन्होंने कांग्रेस को धमकी दी कि अगर ऐसा किया तो सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे लेकिन सत्ता के सुख ने उन्हें ऐसा जजबा कभी दिखाने नहीं दिया कि सरकार से समर्थन वापस लिया हो। अब जब बजट से महंगाई फैली तो वामदल कांग्रेस और वित्तमंत्री पी. चिदंबरम पर तो आग उगल रहे हैं लेकिन किसाानों की हत्याए होने के बाद भी केंद्रीय कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार पर नरमी बरते हुए हैं।आए दिन वामदल किसानों की आत्महत्या के मामलों को लेकर जंतर मंतर पर धरना से लेकर संसद तक घेराव करते रहे हैं लेकिन जैसे ही चुनाव करीब आ रहे हैं वैसे ही वामदल भी गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे हैं। वामदलों ने कभी भी कृषि मंत्री को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश तक नहीं की। माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दल राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ भावी संबंधों को ध्यान में रखकर वामदल ऐसा कर रहे हैं। वामदल पहले ही जता चुके है कि अगले चुनाव में उनकी प्राथमिकता तीसरा विकल्प बनाने की है। इसलिए यूएनपीए के साथ वामदल गलबहियां करते रहे हैं। अब जबकि वामदल महंगाई पर यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं और संसद मार्ग पर धरना भी दे चुके हैं। संसद के भीतर और बाहर उनके निशाने कर कांग्रेस और वित्तमंत्री चिदंबरम तो हैं, लेकिन कृषि व खाद्यमंत्री शरद पवार कतई नहीं है। जबकि खाद्यान्न और सार्वजनिक वितरण प्रणाली का मामला सीधे तौर पर पवार के पास है। जबकि सभी जानते हैं कि परमाणु करार के बाद वामदल सबसे ज्यादा महंगाई पर ही केन्द्र सरकार पर बरसते रहे हैं। वहीं खुद कांग्रेस में एक वर्ग महंगाई के लिए शरद पवार को भी दोषी मानता है। माकपा सांसद मो. सलीम का कहना है कि महंगाई आदि बातें इस बात पर निर्भर करती हैं कि देश का वित्तीय प्रबंधन कैसे हो रहा है। इसलिए वित्तमंत्री पर हमले किए जाते रहे हैं। राजग में भाजपा और शिवसेना को छोड़ बाकी किसी भी दल के खिलाफ नहीं बोलते हैं क्योंकि उनकी नजर अगले चुनाव पर टिकी है। क्योंकि पता नहीं किस क्षेत्रीय दल की सहायता लेनी पड़े। इस बात को ध्यान में रखकर ही वामदल महंगाई के खिलाफ अभियान चला रहे हैं।अतिक्रमण में सबसे आगे हैं तिब्बतीडेटलाइन इंडियाधर्मशाला, 20 मार्च- हिमाचल सरकार तिब्बतियों के लाचार और बेबस हैं। हिमाचल में वन विभाग की जमीन पर तिब्बतियों का कब्जा बढ़ता जा रहा है और हिमाचल सरकार चाह कर भी इन तिब्बतियों से कब्जा नहीं छुड़ा पा रही है और तो और हिमाचल के नागरिकों के कई कब्जे तो हटा दिए गए, लेकिन धर्मशाला के आसपास अतिक्रमण करने वाले तिब्बतियों-का आज तक बाल भी बांका नहीं हुआ। इनके खिलाफ आज तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है।वन विभाग की जमीन पर चल रहे कब्जों को छुड़ाने के लिए संबंधित महकमा छटपटा रहा है। यहां तक कि वन महकमे ने तिब्बतियों-के अवैध निर्माण चिह्नित करके इनकी सूची तैयार कर अपने स्तर पर कार्रवाई भी करनी चाही, लेकिन हिमाचल की जमीन पर कुंडली मारे बैठे तिब्बतियों-के प्रति केंद्र सरकार का रुख नरम होने के कारण कार्रवाई को हमेशा टाला जा रहा है। यह मामला दो साल से केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है। इसके चलते आगे की कार्रवाई नहीं हो पा रही है। हिमाचल सरकार ने भूमिहीन परिवारों को दो बिस्वा जमीन आवंटित करने का फैसला किया था। इस योजना के तहत इक्का दुक्का परिवारों को ही जमीन मिल पाई। अन्य भूमिहीनों को खाली जमीन उपलब्ध नहीं होने की बात कह कर जमीन देने से पल्ला झाड़ दिया गया। दूसरी ओर मैकलोडगंज-और इसके आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर तिब्बतियों-ने अवैध निर्माण कर दिए हैं। मैकलोडगंज,-भागसूनाग तथा टिप्पा-समेत आसपास के इलाकों में लगभग 201-अवैध निर्माण चिह्नित किए गए हैं। लेकिन विभाग कार्रवाई आज तक नहीं कर पाया है।अब तो तिब्बतियों-के इन कब्जों को काफी संवेदनशील मानते हुए वन विभाग भी मुंह फेरे हुए है तथा अवैध निर्माण करने वालों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं।-वर्ष 1960-में जब तिब्बती यहां पहुंचे तो उस वक्त के राजस्व रिकार्ड में मैकलोडगंज-के इन निर्माणों को तिब्बती एनजीओ-के नाम दर्शाया गया था। बाद में काफी वर्ष तक वन विभाग ने अपनी हक की लड़ाई लड़ी तो इन निर्माणों को अवैध घोषित करते हुए सरकार ने वन विभाग की जमीन पर इन निर्माणों को दर्शाया। प्रदेश सरकार तथा वन विभाग ने अपने स्तर पर कार्रवाई करनी चाही तो केंद्र सरकार ने अवैध निर्माणों की सूची तैयार करके भिजवाने की बात कही। वर्ष 2006 में लगभग 201 अवैध निर्माणों की सूची केंद्र सरकार को भेजी गई। अब अगली कार्रवाई केंद्र सरकार के कहने पर ही शुरू हो पाएगी। अलीगढ़ में मौजूद आईएसआईडेटलाइन इंडियाअलीगढ़, 20 मार्च- उत्तर प्रदेश का अलीगढ़ जिला में आईएसआई और आतंकवादी अपना अड्डा बना रहे हैं। दिल्ली के करीब होने के कारण अलीगढ़ को वह अपना अड्डा बना रहे हैं। यहां कई बार आईएसआई एजेंट पकड़े भी जा चुके हैं। खुफिया एजेंसी भी जिले को आतंकी और आईएसआई की शरणस्थली के रूप में मानती हैं। इसलिए अब केंद्रीय गृहमंत्रालय की नजर भी इस जिले पर लग गई है। गृहमंत्रालय ने देश की खुफिया एंजेसियों को निर्देश दिया है कि वह अलीगढ़ पर खास नजर बनाए रखें वहीं गृहमंत्रालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को भी निर्देश दिया है कि वह प्रदेश पुलिस को यहां सर्तक रहने को कहें। प्रदेश में तीन शहरों में जब बम धमाके हुए थे तो प्रदेश की मुख्यमंत्री ने केंद्र पर ही निशाना साधा था कि केंद्र को जानकारी होने के बाद भी उन्हें आतंकवादियों के मंसूबों की जानकारी नहीं दी गई थी। लेकिन अगर अब कोई भी आतंकवादी गतिविधि घटती है तो प्रदेश सरकार कटघरें में खड़ी होगी। यहां कभी आईएसआई एजेंट आतंकी गतिविधियों को संचालित करने में तो कभी नकली नोट खपाने के मामले में कई लोग पकड़े जा चुके हैं।थाना सिविल लाइंस पुलिस ने 22 अगस्त, 2002 में ठंडी सड़क से पाक खुफिया एजेंसी के लिए काम करने वाले तीन युवकों को गिरफ्तार किया था, उन्होंने अपने को फीरोजाबाद का निवासी बताते हुए अपने नाम मुहम्मद ताविश, शारिक तथा अब्बू उर हुसैन बताए, उनके पास तलाशी के दौरान जो दस्तावेज मिले, वह स्तब्ध करने वाले थे। उनके पास से बर्मिंघम की बेवले स्काट 32 बोर का रिवाल्वर, ब्लाक कैमरा, भारत के विभिन्न सैन्य ठिकानों के नक्शे, फर्जी प्रमाण पत्र बरामद हुए। तीनों ऐजेंटों ने पुलिस को बताया था कि वह आईएसआई के लिए काम करते हैं। जनपद न्यायालय सबूतों के आधार पर तीनों को दोषी करार देते हुए सजा भी सुना चुका है। केन्द्रीय खुफिया एजेंसी भी खुलासा कर चुकी है कि आतंकवादी संगठनों के एजेंट अलीगढ़ आते जाते रहते हैं। उन्होंने प्रारम्भ में अलीगढ़ मेेंं पैर जमाने के प्रयास भी किए लेकिन बाद में खुलासा होने पर उनके पैर उखड़ गए। यहां तक कि जावेद यूसुफ नामक युवक अलीगढ़ में पकड़ा गया व उसके लाल डिग्गी रोड स्थित आवास से मिली एक बिल्टी से पुलिस ने एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी से माल छुड़ाया था। बिल्टी कश्मीरी शालों की थी लेकिन उनमें एके- 56 रायफलें मिली थीं। पत्नी ने पति को मारा, दूसरा पति खुद मरा, दोनों प्रेमकथाडेटलाइन इंडियाअजनाला (अमृतसर), 20 मार्च - एक औरत ने प्यार के चक्कर में आकर अपने पति को आशिक के साथ मिलकर नहर में डूबोे कर मार डाला वहीं तरनतारन गांव में एक पति ने अपनी पत्नी के साथ दूसरे व्यक्ति से अवैध संबंधों से आहत होकर जहर पीकर जान दे दी। दोनों ही घटनाएं प्रेम प्रसंग के कारण हुई हैं।बताया जा रहा है कि आरोपी महिला उसी प्रेमी के साथ रह रही थी, जिस पर उसने एक साल पहले बलात्कार का आरोप लगाया था। अजनाला पुलिस ने शव की तलाश कर पोस्टमार्टम करवा दिया है तथा तलवंडी गांव निवासी बलदेव सिंह की हत्या के आरोप में उनकी पत्नी गुरमीत कौर, महिला के आशिक जसवंत सिंह और उसके भाई काला के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। पुलिस ने बताया कि गुरमीत कौर की शादी बलदेव सिंह के साथ कुछ साल पहले हुई थी। इलाके में रहने वाला जसवंत सिंह बलदेव की पत्नी पर बुरी नजर रखता था। एक साल पहले मौका पाकर आरोपी जसवंत सिंह ने गुरमीत कौर को अपनी हवस का शिकार बनाया था। इस संबंध में बलात्कार के आरोप में केस भी दर्ज किया गया था। बाद में गुरमीत कौर ने केस वापस ले लिया था और इसके बाद गुरमीत ने अपने पति को छोड़कर जसवंत सिंह के साथ रहना शुरू कर दिया। जब महिला के पति बलदेव सिंह ने आपत्ति जताई तो दोनों ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बना कर जसवंत का भाई काला बलदेव को बहाने से सक्की नहर के पास ले आया। वहां पहले से ही गुरमीत कौर उसका आशिक जसवंत सिंह मौजूद थे। हत्यारोपियों ने बलदेव सिंह को नहर में डूबो कर मार डाला और फरार हो गए। पुलिस हत्यारोपियों को पकड़ने में जुटी हैं।तरनतारन के गांव भरोवाल निवासी साहिब सिंह ने बुधवार को पत्नी के अवैध संबंधों से दुखी होकर जहर निगलकर जान दे दी। मृतक की मां सुरिंदर कौर ने बताया कि उसकी बहू के गांव के ही एक युवक से अवैध संबंध थे। इसलिए उसके बेटे ने जहर पीकर आत्महत्या की है।गांव भरोवाल निवासी सुरिंदर कौर (मृतक की मां) ने बताया कि 10 साल पहले उसके बेटे साहिब की शादी बंगालीपुर निवासी पाल सिंह की बेटी राजी उर्फ बलविंदर कौर के साथ हुई थी। इस दौरान बलविंदर ने तीन बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया। सुरिंदर कौर का आरोप है कि पिछले एक साल से राजी के व्यवहार में फर्क आने लगा था। जब उन्हें इस बात का पता चला कि राजी के गांव के ही एक युवक से अवैध संबंध हैं तो वे हैरान हो गए। सुरिंदर कौर के मुताबिक उसने तथा साहिब सिंह ने राजी को बहुत समझाया, लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आई। इससे आहत होकर उसने जान दे दी।सरबजीत जेल में, पाक कैदी की रिहाईडेटलाइन इंडियाअटारी बॉर्डर, 20 मार्च- पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भले ही अपने अड़ियल रवैए के कारण सरबजीत की फांसी की याचिका को खारिज कर दिया है। लेकिन भारत ने पाकिस्तान के एक कैदी को उसके वतन भेज दिया है। यहां ढाई साल से उत्तर प्रदेश की शाहजहांपुर जेल में बंद पाकिस्तानी कैदी जमाल कुरैशी को भारत ने रिहा कर दिया। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जिला सक्खर स्थित गांव रोड़ी निवासी वली उल्ला कुरैशी का बेटा जमाल कुरैशी अक्तूबर 2005 में समझौता एक्सप्रेस से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में रहने वाले अपने रिश्तेदारों से मिलने आया था। जहां वह 1800 रुपये की जाली करंसी के साथ पकड़ा गया। अदालत ने उसे ढाई साल कैद की सजा सुनाई थी। सजा पूरी होने के बाद सरकार ने उसकी रिहाई की औपचारिकताएं पूरी करके पाक वापस भेज दिया है। कुरैशी ने कहा कि भले ही वह जाली करंसी के साथ पकड़ा गया था, लेकिन भारत की जेल में उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया। उन्होंने कहा कि उसे खुशी है कि वह सजा पूरी होते ही वापस वतन लौट रहा है। सरकारों को चाहिए कि वह कैदियों को बिना वजह जेल में बंद न रखे और जिनकी सजा पूरी हो चुकी है, उन्हें उनके घर वापस भेज दें। सरबजीत की फांसी की तिथि टाले जाने का समाचार मिलते ही लोग सरबजीत के परिजनों को बधाई देने के लिए घर पहुंचने लगे। लोगों ने सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत और बेटियों स्वपनदीप तथा पूनम का मुंह मीठा कराया। सरबजीत के घर पहुंचे निरंकारी मिशन के प्रचारक निरवैल सिंह, डा.बलदेव सिंह, अकाली नेता हरजिंदर सिंह, दिलबाग सिंह ने कहा कि पाकिस्तान ने फांसी की तिथि आगे बढ़ाकर संकेत दिया है कि सरबजीत की रिहाई संभव है। सरबजीत की फांसी की सजा एक माह के लिए टाल दिए जाने से उसके परिजनों में उसकी रिहाई की उम्मीद जगी है। उनका कहना है कि पाकिस्तान की तरफ से दी गई ढील इस बात का संकेत है कि वह जल्द ही उन्हें रिहा कर वतन भेज देगा।सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत कौर ने बताया कि उनके पति की फांसी की सजा एक माह के लिए टाल दिए जाने से परिवारवालों को थोड़ी खुशी तो हुई है, लेकिन असली खुशी तब मिलेगी जिस दिन वह घर लौट आएंगे। पाकिस्तान के मानवाधिकार मंत्री अंसार बर्नी के पाकिस्तान आने के निमंत्रण का स्वागत करते हुए सुखप्रीत ने कहा कि अगर वीजा मिलता है तो पूरा परिवार सरबजीत से मिलने जाएगा। हेयर की हिम्मत पाकिस्तान जाने की नहींडेटलाइन इंडियालंदन, 20 मार्च-विवादास्पद आस्ट्रेलियन अंपायर डरेल हेयर की अभी भी पाकिस्तान के खिलाफ उंगली उठाने पर पाबंदी बरकार रहेगी। यह बात और है कि आईसीसी के इलीट पैनल से उनका वनवास खत्म हो चुका है। डरेल हेयर को रामायण की सीता की तरह ही पाकिस्तान के खिलाफ उंगली उठाने के लिए एक अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। हालांकि इस अग्नि परीक्षा में राम पाकिस्तान हैं। एक बात जगजाहिर है कि हेयर और एशियायी टीमों के बीच संबंध कभी भी मधुर नहीं रहे चाहे श्रीलंका टीम के दिग्गज स्पिनर मुरलीधरन के साथ हो या फिर ओवल में पाकिस्तान टीम के साथ हो। इन बातों को ध्यान में रखते हुए आईसीसी हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहती है। ताकि आगे चलकर एशियाई टीमें लामबंद होकर अंपायर स्टिव वकनर वाली स्थिति दोबारा न बनने पाये।यह बात रिचर्डसन के बयान से भी साफ साफ समझी जा सकती है। जिसमें उन्होंने कहा है कि 'हमें गंभीर नजरिया अपनाना पड़ेगा। जहां तक हो सकता है हम उन्हें संभवत: उन मैचों से दूर रखेंगे जिसमें पाकिस्तान खेल रहा होगा। हम इस आस्ट्रेलियाई अंपायर को उस अनचाही स्थिति में नहीं उतारना चाहते है जहां उनकी छोटी सी गलती पर भी पैनी नजर रखी जाएं और इससे उनके ऊपर बेकार का दबाव बने।' हालांकि रिचर्डसन ने संकेत दिए कि हेयर को उन सभी मैचों से दूर नहीं रखा जाएगा जिसमें एशियाई टीमें खेल रही होगी। ज्ञात हो कि अगस्त 2006 में हेयर ने इंग्लैंड के खिलाफ ओवल टेस्ट में पाकिस्तान को गेंद के साथ छेड़छाड़ करने का दोषी ठहराते हुए उनके ऊपर पांच मैचों के प्रतिबंध लगाया था। उस समय पाकिस्तान के कप्तान इंजमाम उल-हक ने टीम के साथ विरोध स्वरूप मैदान में उतरने से मना कर दिया था। और इसके पूर्व श्रीलंका के आफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन की गेंदों को आस्ट्रेलिया मे ंएक के बाद एक कई नो वाल दिए थे। हेयर का कहना था कि मुरलीधरन चकर हैं। यानी गेंदों को थ्रो करते हैं जिससे उनकी गेंदबाजी एक्शन संदेहास्पद है हालांकि आईसीसी द्वारा तमाम जांच के बाद मुरलीधरन को क्लिीन चिट मिली थी।इंटरनेट के पिता आर्थर क्लार्क की खामोश मौतडेटलाइन इंडियाकोलंबो, 20मार्च- अपने जन्म स्थान अमेरिका के एरिजोना से पांच समंदर और हजारों किलोमीटर दूर कोलंबो में रात की नींद में सोए एक शख्स की मौत की खबर जब अमेरिका पहुंची तो ई-मेल से पहुंची। यह शख्स आर्थर क्लार्क अगर जनमा नहीं होता तो न ई-मेल होता, न इंटरनेट, न विदेशों को फोन करने की सुविधा और न टीवी चैनलों की विश्वव्यापी पहुंच।1945 में इंटरनेट की परिकल्पना को पहलीबार सोचने और उसको वैज्ञानिक आधार देने वाले क्लार्क 90 साल जिएं और जब उन्होने दुनिया छोड़ी तो वो यह देख चुके थे कि उनके जिस सुझाव और प्रस्ताव का पुरी दुनिया ने उस समय मजाक उठाया था आज उसके बगैर किसी भी किस्म के आधुनिक संचार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस समय तक अंतरिक्ष में उपग्रह भेजे जाने का सूत्रपात हो चुका था और क्लार्क ने इसमें यह भी जोड़ा की उपग्रह को अंतरिक्ष की एक कक्षा में पृथ्वी के घूमने की गति पर स्थिर कर दिया जाए तो पूरी पृथ्वी पर संचार इसी उपग्रह के जरिए हो सकता है। उनका तर्क था कि जब पृथ्वी के किसी भी कोने से वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से उपग्रह तक संदेश पहुंचाए जा सकते हैं और चित्र भेजे जा सकते हैं तो इस प्रथा का इस्तेमाल संचार के क्षेत्र में क्यों नहीं किया जा सकता।आर्थर क्लार्क की इस बात को बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने मजाक में उड़ा दिया। क्लार्क आइंसटीन की तरह पेशेवर वैज्ञानिक नहीं थे बल्कि लेखक और दार्शनिक थे। आइंसटीन के सापेक्षता के सिध्दांत की भी शुरूआत में ऐसे ही खिल्ली उठाई गई थी। मगर अगर ये सिध्दांत माना नहीं गया होता तो हम लोग शायद अबतक विज्ञान के आदि युग में रह रहे होते। आर्थर क्लार्क की किस्मत अच्छी थी अर्ली बर्ड नाम की एक रईस निजी संस्था ने अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने का फैसला किया। उस संस्था ने क्लार्क के विचार को आजमाने की भी सहमति दी। इसी उपग्रह में पहली बार अंतरिक्ष के जरिए अमेरिका और लंदन के बीच बातचीत कारवाई गई थी। उस समय आवाज तैरती हुई आती थी लेकिन बाद में तकनीकि सुधारों में उन्होने जो किया उसके नतीजे सब देख रहे हैं।आर्थर क्लार्क खुद भी अंतरिक्ष में जाना चाहते थे लेकिन मेडिकल कारणों से उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई। क्लार्क ने बहुत बाद में नासा के एक उपग्रह के जरिए अपना डीएनए निकलवा कर एक कैप्सुल में बंद किया और वह कैप्सुल अंतरिक्ष में विसर्जित कर दिया गया। यह भी 40 साल पुरानी घटना है और क्लार्क के डीएनए अंतरिक्ष में हमेशा के लिए मौजूद हैं। उन्होने अपने काम का कापीराइट नहीं करवाया था और न पेटेंट लिया था इसलिए इंटरनेट से खरबों डालर कमाने वालों में उनकी गिरती नहीं है। आजीविका चलाने के लिए वे फिल्मों में चले गए और पटकथाएं लिखने लगे। एन स्पेस ओडीसी नाम की उनकी पटकथा पर बनी फिल्म ने सारे रिकार्ड तोड़े और उसी कि कमाई से बौध्द धर्म में दीक्षित होकर वे श्रीलंका चले आए और कोलंबो में समुद्र तट के पास घर बना कर रहने लगे। 2004 की सुनामी में उनका यह घर उजड़ गया, बहुत सारी किताबें नषट हो गई और इसके बाद उन्होने एक मठ की तरह घर बनाकर लगभग संन्यास में अपने अंतिम दिन बिताए। इंटरनेट का आविषकार करने वाले क्लार्क ने कभी अपनी कोई वेबसाइट नहीं बनाई यहां तक की उनका कोई ई-मेल पता भी नहीं है। सुनामी के बाद बनाए घर में तो वे फोन भी नहीं रखते थे।वाजपेयी के कुटुंब में विरासत का झगड़ाडेटलाइन इंडियानई दिल्ली 20 मार्च-भाजपा के महानायक अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी तो लालकृषण आडवाणी को भले ही घोषित कर दिया हो मगर उनके परिवार में इस फैसले को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया गया है।अटल जी का अपना तो कोई परिवार है नहीं मगर राजनीति में उनके भांजे अनूप मिश्रा हैं और भतीजी करूणा शुक्ला हैं। अनूप मिश्रा मध्य प्रदेश की राजनीति में अपने मामा की वजह से बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं। अटल जी ने एनडीए सरकार के दौरान उन्हें नेहरू युवा केंद्र का उपाध्यक्ष बनाकर केंद्रीय उपमंत्री का दर्जा दिया था और इससे श्री मिश्रा को देश की राजनीति में स्थापित करने की कोशिश माना जा रहा था। अनूप मिश्रा फिलहाल मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं और खासे ताकतवर माने जाते हैं। दरअसल, जब बाबूलाल गौर की विदाई मुख्यमंत्री पद से हुई थी तो अनूप मिश्रा भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन राजनीतिक मजबूरियों के कारण पार्टी को पिछड़े वर्ग का नेता ही चाहिए था इसलिए शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया।अटल जी की भतीजी करूणा शुक्ला छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य हैं और पार्टी की राषट्रीय कार्यकारिणी में हैं। वे भी अटल जी का उत्तराधिकार संभालने की जुगत में लगी हैं। छत्तीसगड़ में ज्यादात्तर भाजपा नेताओं की शिकायत ही यह है कि करूणा शुक्ला सुपर मुख्यमंत्री की तरह आचरण करती हैं। मुख्यमंत्री रमन सिंह ने हालांकि उनकी कभी शिकायत नहीं की लेकिन राज्य का अधिकारी वर्ग करूणा शुक्ला के रवैये और प्रशासन में हस्तक्षेप से खासा परेशान है। दिल्ली में श्री वाजपेयी के घर में ज्यादा आना जाना अनूप मिश्रा का है। लेकिन हाल ही में कुछ गंभीर आरोपों को लेकर अटल जी ने अपने भांजे की अच्छी खासी खबर ली थी। यह बात अलग है कि अटल जी जब ग्वालियर जाते हैं तो अनूप के घर ही ठहरते हैं और इस चक्कर में मानक सुरक्षा इंतजामों के हिसाब से अनूप मिश्रा के घर को फोकट में अच्छा खासा विस्तार मिल गया है।अटल जी दिल्ली में जिस परिवार के साथ रहते हैं वह उनकी ग्वालियर की सहपाठी मित्र राजकुमारी कौल का परिवार है और उनकी बेटी नमिता और दामाद रंजन भटाचार्य ही अटल जी की देखरेख करते हैं। रंजन भटाचार्य सफल व्यापारी हैं और पर्यटन व्यापार में अपनी ही मेहनत से उन्होने अच्छी खासी सफलता अर्जित की है और राजनीति में आने का न उनका कोई इरादा है और न उनकी पत्नी नमिता का। अटल जी खुद भी अपने परिवार में किसी को राजनीतिक भूमिका देने के प्रायोजक नहीं बनना चाहते। उन्होने खुद पत्रकार बनने का सपना देखा था और दैनिक वीर अर्जुन के संपादक की हैसियत से श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आये और वे ही उनके राजनीति में आने का कारण बने।दलाईलामा के भारत यात्रा पर सरकार फंसीडेटलाइन इंडियानई दिल्ली, 20 मार्च- तिब्बत के धर्मगुरू दलाईलामा शनिवार को भारत आ रहे और भारत सरकार अभी तक यह नहीं समझ पा रही है कि करें तो क्या करें? उधर, चीन ने दलाईलामा को अपराधी ठहराया है लेकिन राषट्राध्यक्ष के हैसियत से वे नई दिल्ली आ रहें है। दलाईलामा चीन को लेकर अपनी ही नई नीति पर चल रहें है और उससे नाराज देश के विदेशमंत्री दलाईलामा को राजनीति न करने की नसीहत दे चुके हैं।दलाईलामा का कार्यक्रम दो दिन पार्थना सभा का है लेकिन वह करीब एक सप्ताह राजधानी में ठहरेंगे। लेकिन भारत सरकार चीन के राषट्रपति बेन जियाबाओ के उस बयान को ध्यान में रखना चाहती है, जिसमें उन्होने भारत में दलाईलामा के मूवमेंट को सहीं तरीके से संभालने की तारीफ की थी। लेकिन पेंच यह है कि दलाईलामा घोषित राषट्राध्यक्ष होने के नाते भारत के राषट्रपति और प्रधानमंत्री से मिल सकते हैं। उधर, चीन ने दलाईलामा को तिब्बत में तथाकथित आतंकवादी ठहरा चुका है। दरअसल, चीन ने भारत के साथ सहायता का राग छेडने के पीछे रणनीति पहल है ताकि दलाईलामा को अलग-थलग किया जा सके। लेकिन यह वहीं दलाईलामा हैं जिन्हें भारत ने तकरीबन पचास साल से अथिति देवो भव के सिध्दांत पर शरण दे रहे है।हालांकि भारत की यूपीए सरकार इस मामले को लेकर अंतरराषट्रीय दबाव में भी है। वहीं भारत चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर भी कोई खतरा नहीं मोल लेना चाहता है और इस मुद्दे पर एक संतुलित रवैया अपनाना चाहता है। साथ ही चीन ने भारत को एक तरह से धमकी भी दी है कि तिब्बत का मुद्दा भारत और चीन के रिश्ते पर निर्भर करता है। अगर इसी संदर्भ में भारत के विदेश मंत्री का बयान भी महत्वपूर्ण है कि दलाईलामा राजनीति बंद करें। यह साफ संकेत भारत की तरफ से चीन को दिया गया है कि भारत इस मुद्दे पर अपना रवैया स्पषट और चीनी विरोधी कतई नहीं है।कश्मीर में अंतकवाद के लिए पाकिस्तान से सहायता मिलती है-सलाउद्दीनडेटलाइन इंडियाजम्मू, 20 मार्च-मुशरर्फ की चाहे कितनी भी पैंतरेबाजी कर ले या फिर पाकिस्तान में नई-नवेली चुनी हुई सरकार वहां सत्तासीन हो जाए पर हिजबुल मुजाहीद्दीन के मुखिया सैयद सलाउद्दीन के बयान में यह साफ कर दिया है कि भारत के साथ चाहे जितने भी वादे-इरादे जाहिर किए जाए पर सरकार भारत में अंतकवाद को अपना समर्थन देती रहेगी।पिछले कई वर्षो से भारत-पाक के बीच वार्ता दर वार्ता चल रही है। दिलों को मिलाने के नाम पर रेल, बस और व्यापारिक रिश्ते बहाल करने के की पहल होती रही हो पर यह महज दिखावा साबित हो सकता है। इसके पीछे छिपे भारत में आतंकवाद के मंसुबे की अंतहीन कथा पहले, आज और शायद आगे भी जारी रह सकती है। यह साफ है कि भारत को इन मंसुबों पर विराम लगाने के लिए पाकिस्तान आजतक कोई ठोस वादा नहीं कर सका है। यह और बात है कि वार्ता के नाम पर करोड़ों खर्च होते रहे हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही नजर आते हैं। इस बात पर मुहर सलाउद्दीन ने अपने ताजा जहरीले बयान से लगा दी है।संयुक्त जेहाद परषिद के अध्यक्ष सैयत सलाउद्दीन ने कहा है कि पाकिस्तान कश्मीर में अंतकवाद को लेकर सेना और राजनीतिक मदद देती आ रही और देती रहेगी। हालांकि पाकिस्तान पर कश्मीर मुद्दे ने छेड़ने को लेकर दबाव पर अंदरखाने से आतंकवादियों को मदद में कोई कमी नहीं होने वाली है। सलाउद्दीन के अनुसार कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान उनको न सिर्फ सेना की मदद देती है बल्कि राजनीतिक, मानसिक और रणनीतिक समर्थन देती रही है। लेकिन सलाउद्दीन ने कहा कि हो सकता है कि पाकिस्तान की नई सरकार हमें समर्थन न दे लेकिन हमारा एक एजेंडा है जिसपर हम काम करते रहेंगे बगैर किसी समर्थन के भी।आज जिस बात को सलाउद्दीन चीख चीख कर कह रहा है इस बात को भारत ने लगातार हर मंच पर उठाया है और पाकिस्तान इसे सिरे से खारीज करता आया है। लेकिन सलाउद्दीन का बयान पाकिस्तान में नई बननेवाली संभवतया पीपीपी मुखिया आसिफ अली जरदारी के प्रधानमंत्रीत्व के अगुवाई में सोचने का मुद्दा है और इस पर ठोस पहल करने का भी है कि आखिर उनकी सरकार भारत के साथ रिश्ते को किस तरह से आगे बढ़ाना चाहती है। लेकिन सलाउद्दीन ने अपने बयान में पाकिस्तानी सफेदपोश रवैये का कच्चा-चिठ्ठा लगभग खोल कर रख दिया है।अरूणाचल प्रदेश में खुल रही है अमेरिकी कलईडेटलाइन इंडियानई दिल्ली,20 मार्च- भले ही अमेरिका शुरू से कहता आया है कि वह दोनों में से किसी भी विश्व युध्द में शामिल नहींथा और वह शांतिप्रिय देश रहा है। लेकिन उनका कच्चा चिठ्ठा खुद उनके हमवतन भारत के अरूणाचल प्रदेश में मिले साक्ष्यों से खोल रहे हैं।सदियों से अमेरिका ने एक ही राग अलापा है कि वह प्रथम व ध्दितीय किसी भी विश्व युध्द में शामिल नहीं हुआ। पर भारत के अरूणाचल से मिल रहे सबूतों ने अमेरिका के सच्चाई पर सवाल उठाया है। इस काम में उनके ही वतन के एरीजोना के 53 वर्षीय व्यवसायी क्लायटन कुहल्स ने सरकारी अनुमति के बाद अरूणाचल प्रदेश में खुदाई के बाद अमेरिका के युध्दक विमानों के अंश पाए हैं। जो कि विश्व युध्द के समय के हैं। इस छुपे राज से जब पर्दा उठाया गया तो करीब नौ हजार फीट के ऊंचाई पर कुहल्स गाईड के साथ उन विमानों के टुकड़ों की पहचान की। यह बी-24 जे बांबर जिसका नंबर 42-73308 और उसके डायने मिले। इससे एक आस यह भी जगी है कि करीब छह दशक पहले ध्दितीय विश्व युध्द के समय भारत के आसमान में हुए विमान दुर्घटना मे मारे गए अमेरिकी सैनिकों की पहचान करने में मदद भी मिलेगी।दरअसल हाल ही में भारत और अमेरिका दोनों ने विमान दुर्घटना स्थल पर मिलकर एक संयुक्त टीम बनाई थी। इस दुर्घटना की पहचान पांच साल पहले कुहल्स ने कि थी। उनका कहना है कि हमारा मुख्य काम उस विमान में मारे गए लोगों के बारे में पता लगाना और उनसे जुड़े साक्ष्य को अपने वतन ले जाना है। उन्होने कहा कि यह उन परिवारों के लिए एक आशा की किरण है कि जो सदियों से अपने घरवाले के बारे में पत्ता लगाने के लिए परेशान हैं उनको शायद अब उनके अपनों का पता चल सकेगा। लेकिन एक सवाल फि र सर उठा रहा है कि क्या अमेरिका ने किसी विश्व युध्द में भाग नहीं लिया?झारखंड से राज्यसभा सीट के लिए अखाड़े में उतरी रिलायंस इंडस्ट्रीडेटलाइन इंडियारांची, 20 मार्च-भारत में झारखंड की राजनीति एक नई परंपरा की आधारशीला रख चुकी है। जिससे एकला चलो के नारे के साथ सरकार में बड़े पद हथियाने का कारगर हथियार भी साबित हो रहा है। अब एक स्वतंत्र विधायक या आगे चल कर सांसद भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने से गुरेज बिल्कुल नहीं करेगा। इसी कड़ी की एक और कड़ी झारखंड में जुड़े होने के आसार प्रबल लग रहे हैं।इसे भारतीय राजनीति का खुला दिल कहें या विडंबना पर झारखंड में मधु कोड़ा ने जो कर दिखाया है वह किसी जादू की झप्पी से कम नहीं है। ज्ञात हो कि झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा एक निर्दलीय विधायक थे और झामुमो और कांग्रेस ने राजनीतिक मजबूरियों के सामने घुटने टेकते हुए उन्हें मुख्यमंत्री के कुर्सी का तोहफा पेश किया। अब ऐसा ही कुछ करने के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज के कारपोरेट अध्यक्ष परिमल नाथवानी भी झारखंड से राज्यसभा सीट के दंगल में उतर चुके हैं। दरअसल, नाथवानी स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर झारखंड से राज्यसभा सीट हथियाने के लिए गुजरात की तरह विकास हथियार के सब्जबाग को लेकर विधायकों को पटाने की जुगत में लग गए हैं। उनका दावा है कि गुजरात के विकास के असली विकास पुरूष वहीं हैं और इस माडल को वह झारखंड के उन्नति में लागू करना चाहते हैं।नाथवानी का कहना है कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के उन प्रतिनिधियों में से एक हैं जिन्होंने करीब छह देशों में गुजरात का परचम लहराने में अहम भूमिका निभाई थी। वह पिछले छह सप्ताह से झारखंड की राजधानी रांची में विधायकों से मोल भाव करने के लिए डेरा डाले हुए हैं और उनका नारा है कि तुम मुझे वोट दो हम तुम्हें विकास देंगे। उनका कहना है कि जो लोग अपने पार्टी की राय से सहमत नहीं हैं वे अपना दूसरा वोट मुझे दें। अब मुद्दा नाथवानी ने उछाला है तो जाहिर सी बात है कि झारखंड के विधायकों में इस बाबत रायशुमारी भी शुरू हो चुकी है। उधर, झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष सिबू सोरेन ने अपने पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई और उन्हें संयुक्त रहने का आहान किया। मामला साफ है कि झारखंड की विद्रोही राजनीति कहीं परंपरा का रूप ना ले ले और ना ही कोई विधायक ऐसी पहल कर सेहरा अपने सिर बांध ले, इससे सावधानी बरते हुए पार्टी प्रमुखों के कान खड़े हो गए हैं।लालू प्रसाद यादव भी लिखेंगे आत्मकथाडेटलाइन इंडियानई दिल्ली, 20 मार्च-यशवंत सिन्हा और लालकृषण आडवाणी के बाद लालू प्रसाद यादव ने भी आत्मकथा लिखने का फैसला किया है। इसमें अन्य विषयों के अलावा परिवार नियोजन पर भी जोर दिया जाएगा। साथ ही इसमें जेपी आंदोलन से निकले नेताओं का आचरण, विद्यार्थी परिषद और राबड़ी से प्रेम प्रसंग की भी बात होगी।पहले भाजपा के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, उसके बाद अपनी राजनीति की अंतिम पारी में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृषण आडवाणी के हालिया प्रकाशित आत्मकथा के बाद अब राजद प्रमुख व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव भी आत्मकथा लिखने का मन बना चुके हैं। लालू प्रसाद अपने आत्मकथा में कई सनसनीखेज खुलासा कर सकते हैं। सूत्रों से पता चला है कि रेलमंत्री इस आत्मकथा में परिवार नियोजन पर खासा जोर देकर कुछ खास बातें बताने वाले हैं। इस किताब में एक सनसनीखेज खुलासा व जेपी आंदोलन से निकले नेताओं के आचरण का भी खुलासा करेंगे जिसमें उनके निशाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, जयप्रकाश नारायण सहित कई अन्य नेताओं का जिक्र होगा।लालू प्रसाद यादव अपनी बेबाक अंदाज और चुटीली टिप्पणियों से सबको गुदगुदाते आ रहे हैं। इस किताब में वे अपने विद्यार्थी परिषद की बातों को भी कलमबध्द करेंगें क्योंकि लालू प्रसाद का राजनीतिक सफर वहीं से शुरू हुआ था। वह उन तमाम बातों को अपने सीने से निकाल कर किताब में रखेंगे कि वह राजनीति का ककहरा किस तरह से सीखे और किन कारनामों ने उन्हें सुपरहिट राजनेता बनाया। इसमें शायद लालू प्रसाद वीमन कालजे के कुछ लड़कियों का भी जिक्र कर सकते हैं जिन्होने उन्हें चुनाव जीताने के लिए दिवार पर ईट से लिखकर उनके लिए वोट मांगती थी और वह उनकी सुरक्षा के लिए सदैव किस तरह से तत्पर रहते थे। यही नहीं बचपन में अपने शरारती प्रवृति के भी बारे में लिखेंगे तो लाजमी है कि इसमें गाय-भैंस के साथ चारा का भी दर्द जरूर छिपा होगा। और फिर अपने जादू की झप्पी से रेलवे को चक दे रेलवे तक पहुंचाने का बखान लालू प्रसाद भला कहा भूलेंगे यानी मैनेजमेंट के विद्यार्थी भी इस किताब से लाभ ले सकेंगे।हालांकि लालू प्रसाद परिवार नियोजन के बारे में क्या बताएंगे यह बताना मुश्किल है पर वह अपनी धर्मपत्नी राबड़ी देवी के बारे में जरूर कुछ विशेष लिखने वाले हैं। वो बताएंगे कि आखिर राबड़ी को वह पहली नजर में ही दिल दे बैठे या कुछ और माजरा था। इतना तो साफ है कि लालू प्रसाद अपने और राबड़ी के प्रेम-प्रसंग पर इस किताब के जरिए सारी अटकलबाजियों को खत्म कर देंगे। इस प्यार में कितने सितम और कितने जुगत किए गए शायद लालू प्रसाद इस किताब में दिल खोलकर रख देने वाले हैं। जबकि लालू प्रसाद इस किताब में अपने सखाओं का जिक्र करे या ना करें पर अपने किंग मेकर के भूमिका पर भी काफी कुछ कहेंगे और अपनी अभिलाषा भी दबी जुबान से ही सही पर व्यक्त जरूर करेंगे। शायद यह अभिलाषा उनके प्रधानमंत्री के गद्दी पर पहुंचने की है।

1 comment:

रवीन्द्र प्रभात said...

भाई, आपने तो पूरे हिन्दुस्तान की राजनीति को एक आलेख में समेट कर रख दिया ....अच्छा लगा !